"और रामकटोरी उदास हो गई"
नौकरानी का कहना
मेमसाहिबा स्कूल खुलने वाले हैं
इस बार मुन्नू को भी स्कूल भेजना है
बेटी की फ़ीस भरनी है.
कुछ एडवांस मिल जाता तो
मेमसाहिबा का फ़रमाना
रामकटोरी तुझे शर्म भी नही आती?
अभी पिछला एडवांस बाकी चल रहा है
और तू नये की बात करती है?
काम करना हो कर
वर्ना मैं कोई दुसरी बाई रख लूंगी.
इसी बीच हल्की फ़ुहारों का शुरु होना
और साहब की फ़रमाईश
मौसम कितना सुहावना हो गया है?
गर्मा गर्म कचोडियां हो जायें
तो कुछ बात बने
मेमसाहिबा का चिल्लाना
रामकटोरी ओ रामकटोरी
अरे कहां मर गई?
देख मौसम कितना सुहाना होगया है?
जरा कचोडियां और भजिये तल ले
रामकटोरी का कचोडियां तलते हुये
इतना सुहावना मौसम क्युं आता है?
जिसमे बच्चों की फ़ीस भरनी पडती है?
क्या ये वाकई सुहावना मौसम है?
और रामकटोरी उदास हो गई.
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
नौकरानी का कहना
मेमसाहिबा स्कूल खुलने वाले हैं
इस बार मुन्नू को भी स्कूल भेजना है
बेटी की फ़ीस भरनी है.
कुछ एडवांस मिल जाता तो
मेमसाहिबा का फ़रमाना
रामकटोरी तुझे शर्म भी नही आती?
अभी पिछला एडवांस बाकी चल रहा है
और तू नये की बात करती है?
काम करना हो कर
वर्ना मैं कोई दुसरी बाई रख लूंगी.
इसी बीच हल्की फ़ुहारों का शुरु होना
और साहब की फ़रमाईश
मौसम कितना सुहावना हो गया है?
गर्मा गर्म कचोडियां हो जायें
तो कुछ बात बने
मेमसाहिबा का चिल्लाना
रामकटोरी ओ रामकटोरी
अरे कहां मर गई?
देख मौसम कितना सुहाना होगया है?
जरा कचोडियां और भजिये तल ले
रामकटोरी का कचोडियां तलते हुये
इतना सुहावना मौसम क्युं आता है?
जिसमे बच्चों की फ़ीस भरनी पडती है?
क्या ये वाकई सुहावना मौसम है?
और रामकटोरी उदास हो गई.
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
Very Nice taau!!!
ReplyDeleteसच कहा ताऊ जी, सब इन्सान के अपने हालातों पर निर्भर करता है। किसी के लिए ईद तो किसी के लिए रोजा भी हो सकता है।
ReplyDeleteबहुत बढिया रचना!!!! आभार!
कहीं पर ईद, कहीं पर मातम
ReplyDeleteहाय!! ये कैसा आया मौसम!!
-वाकई, एक ही मौसम के स्थितियों से मायने बदल जाते हैं.
सुन्दर रचना//
बहुत गहरी बात कहलवा दी राम कटोरी के बहाने ...क्या कहूँ ..
ReplyDeleteज़िंदगी की हकीकत को बयान करती कविता.. आभार
ReplyDeleteबहुत सही कहा है..किसी के लिए जो अच्छा है वही किसी और के लिए बुरा..
ReplyDeleteएक ही मौसम दो तरह की खबरें ले कर आता है और गरीब के लिए तो सारे मौसम एक से ही होते हैं.
इतना सुहावना मौसम क्युं आता है?
ReplyDeleteजिसमे बच्चों की फ़ीस भरनी पडती है?
क्या ये वाकई सुहावना मौसम है?...
यह मौसम भी बहुत बेईमान होता है किसी के लिए खुशी तो किसी के लिए गम का सौगात लाता है.
इतना सुहावना मौसम क्युं आता है?
ReplyDeleteजिसमे बच्चों की फ़ीस भरनी पडती है?
क्या ये वाकई सुहावना मौसम है?
और रामकटोरी उदास हो गई.
सुश्री सीमाजी गुप्ता!
इन पक्तियो मे मुझे सामाजिक एवम आर्थिक पहलुओ मे मानवीय जीवन कि एक ऐसी व्यथा दिखाई दे रहे है जहॉ दर्द ही दर्द है। वास्तव मे हमे इन पक्तियो कि गहराई मे जाने की जरुरत है।
आपकी शब्दावली अर्थ पुर्ण लगी जो समाज मे एक सन्देस देती है।
आभार ताऊजी का भी !
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई टाईगर
बहुत सुंदर और संवेदनशील कविता।
ReplyDeleteउदास होने की बात है मगर दुनिया ऐसे ही तो चल रही है !
ReplyDeleteआम जिन्दगी के दुख-दर्द को
ReplyDeleteशब्दों मे बड़े करीने से पिरोया है।
आभार सुश्री सीमा गुप्ता जी आपका।
ताऊ को धन्यवाद!
बहुत गहरी संवेदन्शील कहानी सीमाजी को बधाई
ReplyDeleteजीवन की यही कटु सच्चाई है!
ReplyDeleteजीवन की यही कटु सच्चाई है!
ReplyDeleteइतना सुहावना मौसम क्युं आता है?
ReplyDeleteजिसमे बच्चों की फ़ीस भरनी पडती है?
क्या ये वाकई सुहावना मौसम है?
और रामकटोरी उदास हो गई.
एक कटु सत्य को कहा आपने.
इतना सुहावना मौसम क्युं आता है?
ReplyDeleteजिसमे बच्चों की फ़ीस भरनी पडती है?
क्या ये वाकई सुहावना मौसम है?
और रामकटोरी उदास हो गई.
एक कटु सत्य को कहा आपने.
बहुत ही मार्मिक रचना.
ReplyDeleteबहुत ही मार्मिक रचना.
ReplyDeleteYe udasi kuchh kahti hai.
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
बडा जालिम होता है ये जिदंगी का मौसम। बहुत उम्दा भाव।
ReplyDeleteshayad jivan aisa hi hai.
ReplyDeleteshayad jivan aisa hi hai.
ReplyDeleteरचना पढकर मन उदास होगया. वाकई बहुत ही कडवी सच्चाई है ये.
ReplyDeleteरचना पढकर मन उदास होगया. वाकई बहुत ही कडवी सच्चाई है ये.
ReplyDeleteरचना पढकर मन उदास होगया. वाकई बहुत ही कडवी सच्चाई है ये.
ReplyDeleteताऊ बहुत ही मार्मिक. बरसात का मजा आज कुछ नीरस सा लग रहा है.
ReplyDeleteरामकटोरी तुझे शर्म भी नही आती?
ReplyDeleteअभी पिछला एडवांस बाकी चल रहा है
और तू नये की बात करती है?
काम करना हो कर
वर्ना मैं कोई दुसरी बाई रख लूंगी.
kya pata kitani ramkatoriyo ko ye shabd sunane padate honge? bahut marmik
रामकटोरी तुझे शर्म भी नही आती?
ReplyDeleteअभी पिछला एडवांस बाकी चल रहा है
और तू नये की बात करती है?
काम करना हो कर
वर्ना मैं कोई दुसरी बाई रख लूंगी.
kya pata kitani ramkatoriyo ko ye shabd sunane padate honge? bahut marmik
सच much कितनी की raamkatoriyon की kahaani है यह............ lajawaab rachna है........ seema जी ने इसे अपने andaaz से रंग दिया है .........
ReplyDeleteकहां से घुमाकर कहां ले आये. वत्स जी और समीर जी के साथ बाकियों ने भी मेरे मन की बात कह दी.
ReplyDeleteइतना सुहावना मौसम क्युं आता है?
ReplyDeleteजिसमे बच्चों की फ़ीस भरनी पडती है?
क्या ये वाकई सुहावना मौसम है?
और रामकटोरी उदास हो गई.
achhi lines...
मौसम का असर कही कैसा तो कहीं कैसा
ReplyDeleteबहुत उम्दा रचना...
ReplyDeleteस्वीकृति से बड़ा सच । ईमानदार अभिव्यक्ति ।
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण.. यथार्थ..
ReplyDeleteइतना सुहावना मौसम क्युं आता है?
ReplyDeleteजिसमे बच्चों की फ़ीस भरनी पडती है?
क्या ये वाकई सुहावना मौसम है?
और रामकटोरी उदास हो गई.
.....लाचारी .......
और क्या....
बस...
मीत
marmik,magar zindagi ka aham sach bhi,sab ke liye mausam suhana nahi hota.
ReplyDeleteमौसम किसी के लिए सुहाने तो कसीस के लिए , मुसीबत होते ही हैं | बहुत सुन्दर तरीके से बेबसी दरसाई है |
ReplyDeleteओह, रामकटोरी ही नहीं, हम भी उदास हो गये। :(
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