पटना यात्रा के अनुभव भाग - 2

अगली सुबह सोकर उठे तो चाय सुडकने की तलब लगी और किसी गुमटी ठेले पर चाय सुडकने का एक अलग ही आनंद होता है. गुमटी पर चाय सुडकने जावो तो वहां के खास देशी लोगों से मुलाकात हो ही जाती है और उस जगह के बारे में उन लोगों से जो जानकारियां पता चलती हैं वाकई में वही उस स्थान की असली पहचान होती है. पर इस होटल  के आस पास ऐसी कोई व्यवस्था नहीं दिखी सो लौटकर वापस आगये और सुबह के नित्य कर्म से निपटकर सभी लोग कमरे में जमा हो गये. सबको नाश्ते का इंतजार था कि होटल वाला अब नाश्ते के लिये निमंत्रण भेजेगा... तब भेजेगा.... कि ब्रेकफ़ास्ट लग गया है पर उसके निमंत्रण का इंतजार ही करते रहे.

थक हार कर रिशेप्शन पर फ़ोन किया तो वो बोला कि यहां नाश्ते के लिये कोई बफ़ेट टाईप वाला सिस्टम नहीं है. नाश्ते में पोहा और चाय मिलेगा आप कहें तो कमरे में भिजवा देते हैं. पोहा का नाम सुनते ही वत्स जी का दिमाग फ़िर गया और हमको लेकर सीधे नीचे रिशेप्शन पर पहुंच गये और बोले - यह क्या तरीका है? फ़्री नाश्ता डील में शामिल था और तुम पोहे की बात कर रहे हो? भले आदमी आलू गोभी के परांठे और दही आचार का जुगाड कर दे तो कुछ बात बने.... पर वो आखिर पूरी भाजी पर मान गया. 

वत्स जी बोले - ताऊ यह होटल तो बदलना पडेगा यहां गुजारा नहीं हो सकता. फ़िर मधु जी से बात की तो उन्होंने कहा कुछ देर रूकिये फ़िर कुछ बंदोबस्त करती हूं. कुछ देर बाद उनका फ़ोन आ गया कि गाडी भिजवा रही हूं आप लोगो के लिये Amalfi Hotel  बुक करवा दिया है.  सबने अपना अपना सामान पैक कर लिया और नीचे रिशेप्शन में बैठकर इंतजार करने लगे.

तब तक पूरी भाजी तैयार हो चुकी थी सो सबने अपने पेट में कूदते चूहों को उसी से शांत किया और फ़िर नये ठीकाने की तरफ़ निकल पडे.

नये होटल में पहुंचे तो रिशेप्शन पर एक भद्र सी मुस्कराती लडकी ने स्वागत किया और आई. डी. कार्ड वार्ड मांगे जो उनको दे दिये, फ़िर वो पूछने लगी कि और क्या सेवा की जाये? हमने कहा जो सबसे बडा और अच्छा कमरा हो वो हमे दे दिजीये... वो बोली आप ये लिजीये रूम नं 402 की चाबी... सबसे बडा कमरा है और हम सब अपने अपने कमरे में चले गये.

सभी लोग नहाये धोये तो थे ही.... सबने अपना अपना सामान अपने कमरों में पटका और 402 में मजमा लगा लिया.


हमने और वत्स जी ने अपनी अपनी पोजीशन संभाल ली और सारे सामने जम गये. सबसे आखिर में आये सुरेश जी और डाक्टर निधीश जी.... कुर्सी और जगह अब थी नहीं सो दोनों ने अपने बचपन की यादे ताजा करते हुये सामने की खिडकी वाली जगह में अपना आसन जमा लिया. और सवाल जवाब होते रहे, वत्स जी और हम सबकी जिज्ञासा मनोयोग पूर्वक शांत करते रहे.  

तभी मधु जी का फ़ोन आ गया कि खाना खाने प्रभुजी रेस्टोरेंट आना है. सब तैयार होकर नीचे आ गये और उनका ड्राईवर हम सबको प्रभु जी रेस्टोरेंट ले गया.


अब दोपहर के भोजन के लिये सारे अपनी अपनी पोजीशन संभाल चुके थे. इसमें क्रमश बांये से वत्स जी, आचार्य सोहन वेदपाठी जी, डा. निधीश सारस्वत जी, पं राकेश जी शर्मा, पं सुरेश जी शर्मा, पं आशुतोष जी शर्मा और आखिर में कौन बैठा है ये बताने की कोई आवश्यकता लगती नहीं है.

इस फ़ोटो को खींचने वाले महान पंडित शिरोमणी के दर्शन आपको अगली फ़ोटो में हो जायेंगे और इनका तार्रूफ़ तो आपको विस्तार से बाद में करवायेंगे.


वो पिछली फ़ोटो के जो महान पंडित शिरोमणी थे पं विक्की शर्मा जो यहां आपको काली शर्ट में नजर आ रहे होंगे. ये पंडित जी इतने भोले भाले, निहायत ही शरीफ़ किस्म के हैं. इनकी प्रसंशा में तो एक पूरे पांचवे वेद की ही रचना करनी पडेगी तभी इनके सारे गुण आप जान पायेंगे. वैसे कुछ गुण तो आप लोगों को वहीं इनके सामने ही बखान कर दिये गये थे.

खाना बडा स्वादिष्ट शाकाहारी और लजीज था सो सबने छककर सूत दिया और गाडी में डलकर वापस होटल पहुंच गये. वहां कुछ लोग तो अपने अपने कमरों में आराम करने चले गये पर डा. निधीष जी व सुरेश जी ने अतिरिक्त ज्ञान की जिज्ञासा में हमारे कमरे में ही डेरा जमा लिया.


डा. निधीश जी को तो खिडकी वाली जगह इतनी पसंद आई कि वहीं लेटकर आराम करते हुये सवाल जवाब करने लगे.

(शेष अगले भाग में)



 

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