क्या यही नारी है?
हर रूप मे जीती है नारी
कभी पिता , कभी पति,
भाई और संतान के लिए
रूप धर माँ बेटी
बहन और पत्नी का
कभी पिता , कभी पति,
भाई और संतान के लिए
रूप धर माँ बेटी
बहन और पत्नी का
नही जान पाती
कभी अपनी निजता
गुम हो जाती है रिश्तो में
और खो जाते है स्वपन उसके
भूल जाती है पहचान अपनी
रिश्तों की इस अंधी दौड में
और खो जाते है स्वपन उसके
भूल जाती है पहचान अपनी
रिश्तों की इस अंधी दौड में
रात के सूनेपन में
पुकारती है उसकी निजता
उसे कोमलता से
उसे कोमलता से
और वो अश्रु पुर्वक
विदा कर देती है
अपनी पहचान को
अगली रात तक
अगली रात तक
क्या यही नारी है
जिसने
मुझे जन्म दिया है?
जिसने
मुझे जन्म दिया है?
रचना करती, पाठ-पढ़ाती,
ReplyDeleteआदि-शक्ति ही नारी है।
फिर भी अबला बनी हुई हो,
क्या ऐसी लाचारी है।।
प्रश्न-चिह्न हैं बहुत,
इन्हें अब शीघ्र हटाना होगा।
खोये हुए निज अस्तित्वों को,
भूतल पर लाना होगा।।
इसी लिए तो उसे जगत जननी कहा गया .वह केवल सृजन है ,केवल सृजन . ...
ReplyDeleteअच्छी कविता -नारी की खुद अपनी पहचान -अपना होने का अहसास ही इस आपाधापी में खो सा जाता है ! नारी मन की समझ की कविता -बहुआयामी होते ताऊ !
ReplyDeleteWah
ReplyDeleteBehter Kavita
Behter Prastuti
Shukriya
यथार्थ कविता!
ReplyDeleteत्याग का दूसरा नाम ही नारी है।
ReplyDeleteजिंदगी के हर मोड़ पर, हर उम्र में कुछ ना कुछ त्यागना ही उसकी नियती है। यहां तक की विवाह के पश्चात कभी-कभी अपनी पहचान, अपने नाम, को भी बदलना पड़ता है। एवज में जो मिलता है वह जगजाहिर है !
कवि राज ताऊ की जय हो!
ReplyDeleteहमेशा की तरह एक बेहतरीन रचना. आभार.
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा रचना।
ReplyDeleteहर रूप मे जीती है नारी
ReplyDeleteकभी पिता , कभी पति,
भाई और संतान के लिए
रूप धर माँ बेटी
बहन और पत्नी का
" ताऊ जी बेहद भावनात्मक अभिव्यक्ति.....नारी ही है जो एक साथ इतने रूप धर अपने कर्तव्य निभा सकती है....हर शब्द में जाने नारी के कितने रूप उभर आये हैं.. आभार"
Regards
हाँ नारी ऐसी ही होती है। सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति........आभार
ReplyDeletekomal sunder bhav,bahut sunder
ReplyDeleteवाह ताऊ जी छा गये,एक्दम सच्ची कविता।ऐ मां तेरी सूरत से अलग भगवान की मूरत क्या होगी?
ReplyDeleteआपकी तो ये अदा भी निराली है.. कमाल और सिर्फ़ कमाल
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव पूर्ण अभिव्यक्ति .
ReplyDeleteबेहद ही सुंदर शब्दों में नारी की पहचान बताई है ताऊ जी बहुत अच्छी लगी कविता
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा लिखा है ..बहुत पसंद आई यह शुक्रिया
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना.. राम राम
ReplyDeletebahut khub...
ReplyDeletebahut hi achha likha hai aapne to nari shakti ko samjha hai bahut badiya ........... know about C.g. & raipur log on -www.helloraipur.com
ReplyDeleteबहुत खूब.. दिल को छू जाने वाली कविता..
ReplyDeleteआज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया बहुत अच्छा लगा आकर...
ReplyDeleteमीत
भावपूर्ण।
ReplyDeleteनारी तो रूप है शक्ति का, प्रेम का, विशवास का
ReplyDeleteनारी के बिना ये जग जूठा है.......
बहूत सुन्दर रचना
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति........राम राम
ReplyDeleteताऊ, घनै भूत दिख रहे हैं थारे बिलोग पे
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर लगी ताऊ आप की यह कविता,
ReplyDeleteधन्यवाद
ताऊ को सलाम एक सुंदर अभिव्यक्ति के लिये वो भी इतने सधे-सजे शब्दों में...
ReplyDeleteबहुत खूब..सुंदर भाव वाली सुंदर रचना। सीमा जी और ताउ का आभार।
ReplyDeletekyaa yae kavita seema gupta ji kii haen ?? aabhar daekh kar aesa hi laagaa . phir ek commentmae seema gupta ji kaa naam bhi deekha . to kyaa kavita p c rampuriya ji ki haen . clear kardaetey duvidha ko maeri samjh ki
ReplyDeleteबाप रे ताऊजी, कब से आपकी और राज भाटिया जी की पोस्ट पर टीप करने को तरस गए हम। पता नहीं क्यूँ आप दोनों की साइट ही ब्ला॓क कर देता था हमारा एन्टीवायरस। बड़ी मुश्किल से अब माना। बहुत ही ख़ूब कविता लिखी है ताऊ साहब आपने। वास्तव में दिल को छू लिया जी। आपका बहुत बहुत आभार और सीमाजी को भी हमारा आभार प्रेषित करें।
ReplyDeleteबेहद भावनात्मक अभिव्यक्ति......आभार
ReplyDeletebahut hi achchee kavita likhi hai Taau ji aap ne.
ReplyDelete'निजता गुम हो जाती है रिश्तो में
और खो जाते है स्वपन उसके
भूल जाती है पहचान अपनी
रिश्तों की इस अंधी दौड में रात के सूनेपन में पुकारती है उसकी निजता ...
Sshkat abhivyakti.
badhaayee.