वहां एक खतरनाक शेर रहता था. उसके डर से वहां कोई भी नही जाता था. जैसे ही उस शेर ने ताऊ को देखा – शेर गुर्राया और त्योरियां चढाली. और गर्ज कर पूछा – क्यों बे? तू यहां आया कैसे? तेरी हिम्मत कैसे हुई ? क्या जीने से तेरा पेट भर गया है?
ताउ ने शेर की गरज भरी आवाज सुनी और उसके तो होश गुम हो गये. वो बोला – माई बाप, जान बख्शी जाये हमारी… मैं कर्जदारों से बहुत तंग हूं..भाटिया जी और गाम के सेठ ने मेरा जीना हराम कर रखा है हुजुर…उन दोनों का सताया हुआ ही आया हूं यहां तक.
ताऊ और आगे बोला -- आपके राज मे मुझसे बहुत बेइन्साफ़ी हो रही है. मेरे छोटे २ बच्चे हैं… भूख से बिलबिलाते ..अगर आपकी आज्ञा हो तो रोज कुछ लकडियां ले जाया करूं..बच्चों का गुजर बसर हो जायेगा..आपको दुआ देंगे हुजुर…
पता नही शेर पर ताऊ की बातों का क्या असर हुआ कि वो बोला – हां तो तेरा क्या नाम है? हां याद आया ताऊ…तू एक काम कर चुपचाप आकर लकडियां ले जाया कर..पर एक बात का ध्यान रखना कि सिर्फ़ सूखी लकडियां ही काटना..अगर किसी हरे पेड को हाथ भी लगा दिया तो फ़िर मुझसे बुरा कोई नही होगा. किसी और को ये बात बताना मत.
अब ताऊ रोज आता और सूखी लकडियां काट कर ले जाता. आप जानते ही हैं कि ताऊ मेहनती तो बहुत है..बस उसकी तो किस्मत ही साथ नही देती…सो मेहनत करने से उसका यह काम चल निकला. गुजर बसर भी होने लगा और कुछ रुपये भाटियाजी को वापस भी चुकाने लग गया.
लोगो को जब मालूम पडा कि ताऊ शेर वाले जंगल से लकडियां काट कर लाता है तो लोग ताज्जुब करने लगे कि इतने खतरनाक शेर के जंगल से ताऊ लकडियां लाता है सो ताऊ कोई बहुत ही बहादुर आदमी होगा.
तऊ भी अपनी प्रसंशा सुनकर फ़ूल कर कुप्पा हो जाता था..धीरे २ ताऊ ने भी ऊंची नीची शूरमा भोपाली वाली स्टाइल मे देनी शुरु कर दी. झूंठी तारीफ़ मे यही होता है कि आदमी अपनी औकात भूल जाता है सो ताऊ भी भूल गया.
अब वो लोगों से कहने लगा कि अरे यार वो कोई शेर थोडे ही है..वो तो गीदड है..बस मैं जब जंगल मे जाता हूं ..तो जाते ही मेरे लिये हुक्का भर कर ला देता है और जब तक मैं हुक्का पीता हूं डर के मारे खुद ही तब तक लकडियां काट कर बांध देता है..
ताऊ की कमाई भी हो रही थी..और गाम मे रुतबा भी बिल्कुल शेरखान वाला हो रहा था. ताऊ की बहादुरी के किस्से भी दूर दूर तक पहुंचने लगे.
धीरे २ ये बात जंगल मे शेर तक पहुंची कि ताऊ तो तुझको गीदड बताता है. एक दिन जैसे ही ताऊ जंगल मे गया..शेर ने पकड लिया..और जोर से गुर्राया..बोला- क्यों बे, मैं गीदड हूं? तेरी चिलम भरता हूं?
ताऊ समझ गया कि कोई चुगलखोर दिलजला पहुंच गया, और आज जान गई. सो शेर के पांवों मे गिर पडा..बोला – माई बाप..गलती हो गई..एक बार और जान बख्शी जाये. आज के बाद फ़िर कभी नही होगी ऐसी गल्ती.
शेर दहाडते हुये बोला – खामोश ताऊ के बच्चे…ला तेरी कुल्हाडी ला ..और मेरी पीठ पर मार..ताऊ बोला – हुजुर क्या जुल्म करते हैं? मेरी क्या औकात ? जो आपकी पीठ पर कुल्हाडी मारूं. ? हुजुर गुस्सा थूक दिजिये.
शेर बोला – ताऊ तू मेरी पीठ मे कुल्हाडी मार ..वर्ना मैं तुझे अभी चीरफ़ाड के रख देता हूं..डर के मारे कांपते हाथों से ताऊ ने एक हल्का सा वार कुल्हाडी का शेर की पीठ पर किया.
शेर की पीठ से खून बहने लगा..अब शेर बोला – ठीक है..अब सात दिन बाद मिलेंगे. इसके बाद ताऊ से उस शेर की मुलाकात सात दिन बाद हुई.
मिलते ही शेर ने ताऊ को अपनी पीठ दिखाई और बोला – ताऊ देखो जरा मेरी पीठ का घाव कैसा है? ताऊ ने पीठ देखी और बोला – हुजूर..घाव तो एक दम भर चुका है. कहीं निशान भी नही दिख रहा है.
शेर बोला – देखा ताऊ, तुम्हारी कुल्हाडी का घाव सात दिन मे ही भर गया. पर तुम्हारी बोली का घाव अभी तक भी हरा है.कडवी जबान के घाव कभी नही भरते, हथियारों के भर जाते हैं. मैने तुम्हे क्षमा कर दिया है, पर भविष्य मे इस बात को ध्यान रखना.
बोली मे ही सब कुछ है. बोली मे ही अमृत और बोली मे ही जहर है. मीठा बोलो.और आराम से अपना गुजर बसर करो. और यह कर शेर जंगल के अंदर चला गया.
ऐ बुद्धिवालों तुम रहो अपनी बुद्धि से त्रस्त
ताऊ तो रहता है अपनी ताऊगिरि में मस्त.
अभी पिछले सप्ताह हमारे यहां एक मुशायरा हुआ. एक नामी शायर हैं, नाम अभी भूल गया हूं क्योंकि ताऊ हूं. इसलिये भूलुंगा ही. भूलना ताऊ होने के लिये एक शर्त है. उन्होने एक शेर पढा..
तुझे करीना नही मिल सकती ऐ दोस्त
क्युंकि तू जयसुर्या है सैफ़ खान नही.
हमने इसे यूं कहा :-
तुझे जन्नत नही मिलेगी ऐ ताऊ
क्योंकि तू मसखरा है, बुद्धिजीवी नही.
बुद्धि वालों को उनकी जन्नत मुबारक और हमे अपने भतिजे भतिजियों के साथ मसखरा होना मुबारक.
इब रामराम भाई.
इब खूंटे पै पढो :- ताऊ ने शेर के डर के मारे जंगल जाना छोड दिया. अब एक नया धंधा पकड लिया. अब ताऊ को किसी ने बताया कि ताऊ कुल्फ़ी बेचने का काम करले. बहुत मुनाफ़े का काम है. ताऊ को बात जंच गई. पर ताऊ सीधे से कोई काम करना जानता ही नही है. उसे तो हर काम अपने तरीके से करने मे ही मजा आता है. सो घर का बढिया भैंस वाला दूध लेकर और उसकी कुल्फ़ी बनवा कर अपने ठेले पर रखी और रामप्यारी को हाथ मे घंटी (बजाने वाली) पकडा कर ठेले पर कुल्फ़ी की मटकी के बराबर बैठा दिया. अब ताऊ गलियों मे ठेला धका रहा था. और रामप्यारी जोर जोर से घंटी बजा रही थी. और ताऊ आवाज लगा रहा था….ले लो..कुल्फ़ी..ये ताजी और गर्मा गर्म कुल्फ़ी.. चले आवो..गरमा गरम कुल्फ़ी ..और रामप्यारी बिल्कुल ताल मे घंटी बजा रही थी. लोग चौंके पर ताऊ के कौन मुंह लगे? थोडी देर बाद भाटिया जी आये और ताऊ को रोक कर पूछा – अरे बावली बूच ताऊ..तेरी कुल्फ़ी कौन खरीदेगा ? बेवकूफ़ कहीं के.. कुल्फ़ी भी कहीं गर्म होती है क्या ? ताऊ बोला – अरे भाटिया साहब..मेरे को एक बात बताओगे ? भाटिया जी : भई ताऊ बात तो तू एक छोडकै दस बूझ ले..बस पिस्से उधार मत मांग. ताऊ बोला – मुझे ये बताओ जब बिना मास्टरों के स्कूळ चल सकते है?..जब डाक्टर अपने औजार मरीज के पेट मे भूल सकते हैं?..सडक, बांध और पुल कागजों पर बन सकते हैं?…अंगुठा छाप नेता बन सकते हैं?… कुछ लोग बुद्धिजिवी होने का ढोंग रच सकते हैं? ..तो मेरी कुल्फ़ी गर्मागरम क्यों नही हो सकती ? चल बेटा रामप्यारी…घंटी बजा..कुल्फ़ी..गरमा गरम कुल्फ़ी…लेलो जी .. और ताऊ ने अपना ठेला आगे बढा लिया.. भाटिया जी देखते रह गये. |
वाह, आज तो ज्ञान की गंगा ही बहा दी। परन्तु बहुत रोचक गंगा ! सब बातें ध्यान देने लायक हैं।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
वाह ताऊ वाह. आपकी सीख भी अच्छी लगी और गरमा-गरम कुल्फी के बहाने स्वयम्भू बुद्धिजीवी वर्ग की पोल भी सही खुली.
ReplyDeleteबिना खूंटा और खूंटा दोनों का मॉल खाँटी रहा इस बार ! थोड़ी गरम कुल्फी इधर भी ताऊ गला खराब चल रह है इन दिनों !
ReplyDeleteताऊ शेर ने ठीक शिक्षा दी हथियार से लगा घाव तो भर सकता है पर किन्तु कटु वचनों से लगा घाव जिन्दगी भर हरा रहता है वह कभी नहीं भरता | आपने बहुत सरल तरीके से बहुत बड़ी बात कह दी | आभार
ReplyDeleteइसी सम्बन्ध में आज से सैकडो वर्ष पहले भी कवि कृपाराम जी ने राजिया को संबोधित करते हुए यही बात कही थी |
पाटा पीड उपाव , तन लागां तरवारियां |
वहै जीभ रा घाव, रती न ओखद राजिया ||
शरीर पर तलवार के लगे घाव तो मरहम पट्टी आदि के इलाज से ठीक हो सकते है किन्तु हे राजिया ! कटु वचनों से हुए घाव को भरने की कोई ओषधि नहीं है |
किस बुद्धिजीवी प्राणी ने टंगड़ी मार दी कि आलेख भी और खूँटा भी वही गाथा दुहरा रहा है ताऊ?
ReplyDeleteबेहतरीन!!
बोली मे ही सब कुछ है. बोली मे ही अमृत और बोली मे ही जहर है. मीठा बोलो.और आराम से अपना गुजर बसर करो. और यह कर शेर जंगल के अंदर चला गया.
ReplyDelete" आज सूरज कौन दिशा से निकला है....या हम किसी गलत ब्लॉग पर आ गये जो ताऊ जी के नाम से है.....ये सुबह सुबह ताऊ जी कैसे कैसे बात करने लगे हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा लगता है रामप्यारी सांगत का असर है....वो स्कूल जो जाती है न हाहा हा...जो भी हो ताऊ जी आज बात सोलह आने सच कही है आपने....मीठी बोली हर मर्ज की दवा है इसमें कोई शक नहीं....मीठा बोलो और मीठा ही सुनो.....और रामप्यारी की कुल्फी अपने आप ही मीठी हो जायेगी है न रामप्यारी...."
Regards
भई वाह्! आज तो आनन्द आ गया पोस्ट पढकर .......विनोद,व्यंग्य,कटाक्ष और सीख हर रंग से सरोबार पूरी तरह ज्ञानमय पोस्ट.
ReplyDeleteये ताऊ इत्ती बड़ी बड़ी बाते कब से करने लग गया.. लगता है बुद्धिजीवी हो गया.. :)
ReplyDeleteसही कहा शेर ने "बोली मे ही सब कुछ है. बोली मे ही अमृत और बोली मे ही जहर है"
ReplyDeleteबातन हाथी पाइये, बातन हाथिन पाँव .
ताऊ आप गरमा गरम कुल्फी बेचो, मैं भी गरमा गरम लस्सी की दुकान खोल लेता हूँ , गर्मियां जो आ रही है .
Inti achhi seekh aur inta halka andaaz...
ReplyDeletemaza bhi aya aur seekh bhi mail gayi...
बहुत ज्ञानवर्धन करा दिया जी. आभार..
ReplyDeleteआज तो बातों बातों में बड़ी गहरी बातें कह दीं आपने.....सचमुच बातों के घाव बड़े गहरे होते हैं...सुन्दर शिक्षाप्रद पोस्ट के लिए आभार.
ReplyDeleteवाह ताऊजी, आज तो कस के रामराम करने का मन है। बड़ी बढ़िया पोस्ट!
ReplyDeleteकहानी का दूसरा उपदेश - "अगर आपके पास जीभ है तो कुल्हाडी की क्या ज़रुरत." -:)
ReplyDeleteशानदार कथा. सचमुच शब्दों के घाव नहीं भरते.
ReplyDeleteआज के किस्सों का क्या कहना ताऊ! बढ़िया रहा पढना...और गरमागरम कुल्फी, क्या बात है!कभी बंगलोर भी आओ अपना ठेला लेकर. रामप्यारी की चॉकलेट पक्की.
ReplyDeleteमिल गयी सीख? ताऊ अभी ताऊगिरी करने का टाइम है, शेरगिरी नहीं. वैसे तू मुझे भी उस जंगल का पता बता दे जहाँ पर वो बोलने वाला शेर रहता था/है.
ReplyDelete(तुम्हारी कुल्हाडी का घाव सात दिन मे ही भर गया. पर तुम्हारी बोली का घाव अभी तक भी हरा है.कडवी जबान के घाव कभी नही भरते, हथियारों के भर जाते हैं. मैने तुम्हे क्षमा कर दिया है, पर भविष्य मे इस बात को ध्यान रखना.
ReplyDeleteबोली मे ही सब कुछ है. बोली मे ही अमृत और बोली मे ही जहर है. मीठा बोलो.और आराम से अपना गुजर बसर करो.)
बहुत गहन विचार . आपके लेखनी को प्रणाम .सहज विनोद के साथ इतनी गहराई वाली बात कोई आपसे सीखे .
पंचतंत्र जैसी शिक्षा प्रद कहानी /
ReplyDeleteवाह ताऊ वाह
ReplyDeleteRegards
ताऊ को तो जन्नत ही मिलेगी क्योंकि यमराज जहन्नुम का डिसिप्लिन मस्करी से खराब होता थोडे ही देख सकते हैं:)
ReplyDeleteताऊ आज तो बहुत ही अच्छी ओर ग्याण की बात बताई, लेकिन एक बात बताऊ, आज तक जिस ने भी मुझे चूना लगाया मीठा वोल के ही लगाया, इस लिये अब मीठा वोलने वाले को ओर ज्यादा प्यार दिखाने वाले से मै बच कर रहता हुं.
ReplyDeleteचलो कुल्फ़ी बेचो, गर्मिया शुरु हो गई है, कुल्फ़ी खुब बिके गी.
राम राम जी की
ताऊ कहानी के माध्यम से आपने बहुत अच्छी शिक्षा दी। आपका आभार।
ReplyDeleteखुटे मे भी आपने बात को शिक्षाप्रद बना दिया।
वचन सम्भारि बोलिये, वचन के हाथ ना पाव।
ReplyDeleteएक वचन ओषद करे एक करेगो घाव॥
वाह ताऊ मजा आ ग्या थारी लठ बरगी कलम नै तो लठ गाड दिये ।
ReplyDeleteगरम कुल्फी ,रामप्यारी.भाटिया जी का तकादा...
ReplyDeleteऔर उस पर शेर कि सीख 'कडवी जबान के घाव कभी नही भरते, हथियारों के भर जाते हैं'बहुत पसंद आई.
गरमा गरम कुल्फी खाकर मजा आ गया। और कल के लिए दो कुल्फी बंधवा भी ली है।
ReplyDelete" मोती टूटे जो बीधते, मन टूटे कटु बैन,
ReplyDeleteकरिये लाख उपाय, फिर ना सधे किसी रैन "
सही शिक्षा -
उत्तम शिक्षा दी आज ताऊ जी आपने
स स्नेह,
- लावण्या
ताऊ की जय हो!
ReplyDeleteवाह वाह taau
ReplyDeleteइतनी gahri सोच की बात कह दी....
और वो भी शेर की maarfat. लगता है बहुत कुछ seekhna बाकी है अभी तो और वो garam garam kulfi.....भाई khoonta और भी painaa हो गया vyang की dhaar से
पूरी की पूरी post jordar
एक ऐसा कडुआ सच भी है इस ग़ज़ल में....और भोली से मुस्कान, कोमल सी अभिव्यक्ति भी है इसमें