ताऊ साप्ताहिक पत्रिका : अंक 14

प्रिय बहणों, भाईयो, भतिजियों और भतीजो आप सबका ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के १४ वें अंक मे स्वागत है.

आजकल गर्मियों का मौसम शुरु हो चुका है और इस मौसम मे बच्चे बडे़ बूढे़ सबकी मनपसंद चीज होती है आईसक्रीम. यह आईसक्रीम ईंगलैंड से अमेरिका पहुंची और वहां से इसने बहुत तरक्की की. लेकिन हम आपको आज आईसक्रीम के इतिहास मे एक मात्र शहीद हुये व्यक्ति के बारे मे बताना चाहेंगे.

आईसक्रीम बनाना उन दिनो मे बडा कठीन काम था और फ़्रांस का सम्राट आईस्क्रीम बहुत पसंद करता था. आम जनता तक आईस्क्रीम की पहुंच भी नही थी. उन्ही दिनों मे फ़्रांस की राजकुमारी का विवाह इंगलैंड के चार्ल्स प्रथम के साथ हुआ था.

और राजकुमारी अपने साथ आईस्क्रीम बनाने वाले गोलातियरी को भी ईंगलैंड ले आई थी. चार्ल्स प्रथम ने जब उसकी बनाई आईस्क्रीम चखी तो वो उसका मुरीद हो गया. और उसने गोलातियरी पर यह पाबंदी लगा दी कि वो यह फ़ार्मुला किसी को नही बतायेगा.

फ़िर बाद मे गोलातियरी से जलने वाले कुछ दरबारियों ने सम्राट के कान भर दिये कि वो कुछ धन के एवज मे यह फ़ार्मुला दुसरे लोगों को बेच रहा है तो सम्राट चा्र्ल्स प्रथम ने उसे मृत्यु दंड दे दिया. और इस तरह वो अईस्क्रीम के इतिहास मे शहीद होने वाला एक मात्र शहीद था.

जो पहेली पिछले शनीवार आपसे पूछी गई थी वो जगह थी जंतर मंतर दिल्ली. और इस विषय पर विस्तृत जानकारी दे रही हैं ताऊ पत्रिका की विशेष संपादक सु. अल्पना वर्मा.

आइये अब चलते हैं सु अल्पनाजी के “मेरा पन्ना” की और:-

-ताऊ रामपुरिया





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"मेरा पन्ना"

-अल्पना वर्मा



आईये इस अंक मे आपको हमारी पहेली के स्थान के बारे में विस्तृत जानकारी देते हैं.

महाराजा सवाई जयसिंह [द्वितीय] का एक खगोलशास्त्री के रूप में परिचय-

आप सब पिछली पहेलियों में जानचुके हैं कि सवाई जयसिंह कौन थे और उनके पूर्वज कौन थे.
थोडा सा परिचय उनके इस पहलू के बारे में देती चलूँ.

जैसा कि आप जानते हैं कि राजा जयसिंह [II] बहुत ही छोटी सी उम्र से गणित में बहुत ही अधिक रूचि रखते थे.
उनकी ओपचारिक पढ़ाई ११ वर्ष की आयु में छूट गयी क्योंकि उनकी पिताजी की मृत्यु के बाद उन्हें ही राजगद्दी संभालनी पड़ी थी.

जनवरी २५,सन् १७०० में गद्दी संभालने के बाद भी उन्होंने अपना अध्ययन नहीं छोडा.उन्होंने बहुत खगोल विज्ञानं और ज्योतिष का भी गहरा अध्ययन किया.उन्होंने अपने कार्यकाल में बहुत से खगोल विज्ञान से सम्बंधित यंत्र एवम पुस्तकें भी एकत्र कीं. उन्होंने प्रमुख खगोलशास्त्रियों को विचार हेतु एक जगह एकत्र भी किया.हिन्दू ,इस्लामिक और यूरोपीय खगोलशास्त्री सभी ने उनके इस महान कार्य में अपना बराबर योगदान दिया.अपने शासन काल में सन् १७२७ में,उन्होंने एक दल खगोलशास्त्र से सम्बंधित और जानकारियां और तथ्य तलाशने के लिए भारत से यूरोप भेजा था.वह दल कुछ किताबें,दस्तावेज,और यंत्र ही ले कर लौटा.न्यूटन,गालीलेओ,कोपरनिकस,और केप्लेर के कार्यों के बारे में और उनकी किताबें लाने में यह दल असमर्थ रहा.

या कहीये..eupropean समुदाय ने उन्हें पूरा सहयोग नहीं दिया.इस लिए उन्होंने जो जानकरियां मिलीं उसी के आधार
पर अपने प्रोजेक्ट को पूरा किया.

निम्न लिखित masonary यंत्र खुद राजा जयसिंह द्वारा ही बनाये गए थे-

1-सम्राट यन्त्र
2-सस्थाम्सा
3-दक्सिनोत्तारा भित्ति यंत्र
4-जय प्रकासा और कपाला
5-नदिवालय
6-दिगाम्सा यंत्र
7-राम यंत्र
8-रसिवालाया

राजा जय सिंह तथा उनके राजज्योतिषी पं. जगन्नाथ द्वारा इसी विषय पर लिखे गए कुछ ग्रन्थ हैं- 'यंत्र प्रकार' तथा 'सम्राट सिद्धांत'.

५४ वर्ष की आयु में उनकी मृत्यु के बाद देश में यह वेधशालाएं बाद में बनने वाले तारामंडलों के लिए प्रेरणा और जानकारी का स्त्रोत रही हैं.हाल ही में दिल्ली के जंतर-मंतर में स्थापित रामयंत्र के जरिए प्रमुख खगोलविद द्वारा शनिवार को विज्ञान दिवस पर आसमान के सबसे चमकीले ग्रह शुक्र की स्थिति नापी गयी थी.इस अध्ययन में नेहरू तारामंडल के खगोलविदों के अलावा एमेच्योर एस्ट्रोनामर्स एसोसिएशन और गैर सरकारी संगठन स्पेस के सदस्य भी शामिल थे.

यंत्र मंदिर -जंतर मंतर



कनोटप्लेस में स्थित स्थापत्य कला का अद्वितीय नमूना 'जंतर मंतर 'दिल्ली के प्रमुख पर्यटन स्थलों में से एक है .
यह एक वेधशाला है.इस वेधशाला में १३ खगोलीय यंत्र लगे हुए हैं.यह राजा जयसिंह द्वारा डिजाईन की गयी थी.
एक फ्रेंच लेखक 'दे बोइस' के अनुसार राजा जयसिंह खुद अपने हाथों से इस यंत्रों के मोम के मोडल तैयार करते थे.

जैसा आप सभी जानते हैं कि जयपुर की बसावट के साथ ही तत्कालीन महाराजा सवाई जयसिंह [द्वितीय] ने जंतर-मंतर का निर्माण कार्य शुरू करवाया, महाराजा ज्योतिष शास्त्र में दिलचस्पी रखते थे और इसके ज्ञाता थे. जंतर-मंतर को बनने में करीब 6 साल लगे और 1734 में यह बनकर तैयार हुआ। इसमें ग्रहों की चाल का अध्ययन करने के लिए तमाम यंत्र बने हैं.यह इमारत प्राचीन भारत की वैज्ञानिक उन्नति की मिसाल है।दिल्ली का जंतर-मंतर समरकंद [उज्बेकिस्तान] की वेधशाला से प्रेरित है। मोहम्मद शाह के शासन काल में हिन्दु और मुस्लिम खगोलशास्त्रियों में ग्रहों की स्थित को लेकिर बहस छिड़ गई थी। इसे खत्म करने के लिए सवाई जय सिंह ने जंतर-मंतर का निर्माण करवाया। राजा जयसिंह ने भारतीय खगोलविज्ञान को यूरोपीय खगोलशास्त्रियों के विचारों से से भी जोड़ा .उनके अपने छोटे से शासन काल में उन्होंने खगोल विज्ञानमें अपना जो अमूल्य योगदान दिया है उस के लिए इतिहास सदा उनका ऋणी रहेगा.

ग्रहों की गति नापने के लिए यहां विभिन्न प्रकार के उपकरण लगाए गए हैं।

सम्राट यंत्र सूर्य की सहायता से वक्त और ग्रहों की स्थिति की जानकारी देता है।

मिस्र यंत्र वर्ष के सबसे छोटे ओर सबसे बड़े दिन को नाप सकता है।

राम यंत्र और जय प्रकाश यंत्र खगोलीय पिंडों की गति के बारे में बताता है।

राम यंत्र गोलाकार बने हुए हैं.



-इन सभी यंत्रों की कार्यविधि को विस्तार से जानना चाहते हैं तो यहाँ से pdf.फॉर्मेट में पूरी सामग्री को डाउनलोड भी कर सकते हैं.

बड़ी बड़ी इमारतों से घिर जाने के कारण आज इन के अध्ययन सटीक नतीजे नहीं दे पाते हैं.

दिल्ली सहित देशभर में कुल पांच वेधशालाएं हैं- (बनारस, जयपुर , मथुरा और उज्जैन) में मौजूद हैं, जिनमें जयपुर जंतर-मंतर के यंत्र ही पूरी तरह से सही स्थिति में हैं.

मथुरा की वेधशाला १८५० के आसपास ही नष्ट हो चुकी थी.
[दुर्भाग्य से यह दिल्ली में जन आंदोलनों /प्रदर्शनों/धरनों की एक जानी मानी जगह भी है ]

वेधशाला के बारे में Dr.RathnaSree,Director, Nehru Planetarium बता रही हैं -आप भी देखीये-



अगली पहेली तक के लिए नमस्कार.

-अल्पना वर्मा
( विशेष संपादक )






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“ दुनिया मेरी नजर से”

-आशीष खण्डेलवाल


आम आदमी की कार नैनो आज धूमधाम से लॉन्च हो रही है। भले ही यह दुनिया की सबसे सस्ती कार कही जा रही हो, लेकिन यह सबसे छोटी कार नहीं है। अगर आप सबसे छोटी कार को देखेंगे तो दांतों तले उंगली दबा लेंगे। नहीं मैं आपको खिलौना नहीं दिखा रहा हूं। मैं आपको ऐसी कार दिखाने जा रहा हूं, जिसका नाम गिनीज बुक में सबसे छोटी कार के रूप में दर्ज है। यह कार है- पील पी50



इस छोटी सी कार को देखकर यह मत सोचिए कि किसी ने एक सामान्य आकार की कार को दो हिस्सों में बांट दिया है। यह वास्तविक कार है और इसे दुनिया की ऐसी सबसे छोटी कार का रुतबा हासिल है, जिसका बड़े स्तर पर उत्पादन हुआ है। इस कार में केवल चालक और उसका शॉपिंग बैग ही आ सकता है। थोड़ा सटकर बैठें तो एक साथी भी बैठ सकता है। ब्रिटिश कंपनी पील ने यह कार 1962-65 के बीच 119 पाउंड (करीब दस हजार रुपए) में बाजार में उतारी थी। तीन पहियों वाली इस कार में केवल 49 सीसी का छोटा सा इंजन लगाया गया और इसकी लंबाई महज 52 इंच है व चौड़ाई 39 इंच। इसका वजन सिर्फ 59 किलोग्राम है और इसे हाथ से खींचकर कहीं भी ले जाया सकता है। इसमें रिवर्स गियर नहीं है और कम वजन की होने के कारण उसकी जरूरत भी नहीं है।



आप चाहें तो इस छोटे से वीडियो में पील पी50 और ट्राइडेंट माइक्रोकार को और करीब से देख सकते हैं-



अब सुनिए राज़ की बात। जब से रामप्यारी ने यह कार देखी है, मेरे पीछे ही पड़ गई है कि उसे यही कार चाहिए। इधर ताऊजी उसे नैनो दिलवाने की जुगत भिड़ा रहे हैं और रामप्यारी आजकल ड्राइविंग सीख रही है।

सादर.
-आशीष खण्डेलवाल
( तकनीकी संपादक )






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"मेरी कलम से"
-Seema Gupta


एक बार एक कौवा एक पेड़ पर बैठा था और दिन भर वो मौज लेता दिखाई देता था.
यानि उसने सारा दिन कुछ काम नही किया बस खाली बैठा रहा.

इन कौवे महाराज को एक छोटा सा खरगोश दिन भर मौज लेते देख रहा था.

आखिरकार उस खरगोश से रहा नही गया और उसने कोवे से पूछ ही लिया कि

" क्या मै भी आपकी तरह सारा दिन बिना कुछ किए मौज से बैठा रह सकता हूं?

इस पर वो कौवा बोला - " हाँ हाँ क्यूँ नही". बस दिन भर आराम से बैठो और मौज लो.
कौन मना करता है?

ये सुन कर वो खरगोश उसी पेड़ की नीचे आराम से बैठ गया. और मौज लेते हुये आराम करने लगा..




अचानक कहीं से एक लोमडी आई और उसने बिना मौका दिये उस मौज लेते हुये खरगोश को मुंह मे दबाया और खरगोश की जीवनलीला समाप्त कर दी.

प्रबन्धन सीख:

असल मे खाली बैठ कर मौज लेने के लिये यानि कुछ न करने के लिए भी आपको बहुत
ऊँचे मुकाम तक पहुंचना जरूरी है जहा सिर्फ़ आपके बैठने मात्र से काम हो जाये ...
और वहां तक पहुंचने की लिए कितनी मेहनत और लगन की आवश्कता है ये बताना जरूरी नही....


अगले सप्ताह फ़िर मिलते हैं तब तक के लिये अलविदा.

-Seema Gupta
संपादक (प्रबंधन)


अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.

संपादक मंडल :-

मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया

विशेष संपादक : अल्पना वर्मा

संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta

संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल

सहायक संपादक : बीनू फ़िरंगी एवम मिस. रामप्यारी

Comments

  1. आईसक्रीम शहीद, यंत्र-तंत्र, कार और ज्ञान सब एक से बढ़कर एक! सभी संपादको को आभार

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  2. मेरी पोती ने भी ताऊ, बिल्ला पाला है प्यारा।
    उसका उसने नाम धरा है, शेरू राम पियारा।
    ठण्डी आइस-क्रीम जीभ से, चाट-चाट वो खाता।
    बड़े चाव से वह सबकी ही, गोदी में ही आ जाता।
    राम-पियारी से ताऊ, इसकी शादी करवा देना।
    बिन दहेज के इसको, शेरू के संग भिजवा देना।

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  3. मेरी पोती ने भी ताऊ, बिल्ला पाला है प्यारा।
    उसका उसने नाम धरा है, शेरू राम पियारा।

    ठण्डी आइस-क्रीम जीभ से, चाट-चाट वो खाता।
    बड़े चाव से वह सबकी ही, गोदी में ही आ जाता।

    राम-पियारी से ताऊ, इसकी शादी करवा देना।
    बिन दहेज के इसको,शेरू के संग भिजवा देना।

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  4. विस्तृत जानकारी के लिए आपके पूरे सम्पादन मंडल को धन्यवाद ,अच्छा होगा कि ऐसे ही कुछ प्राचीन ऐतिहासिक स्थलों पर विस्तृत परिशिस्ट प्रकाशन के बारे में आप का सम्पादक मंडल सक्रिय हो .

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  5. "आज तो सुबह सुबह आइस-क्रीम का नाम सुनकर ही मुह में पानी आ गया....हा हा हा अल्पना जी ने पुरे जंतर मंतर की सैर करा दी घर बैठे ही बहुत मजा आया, और आशीष जी की नैनो कार की जानकारी भी बेहद रोचक रही....कल टेलीविजन में भी इसके लांच की खबर आ रही थी....रोचक जानकारी..."

    Regards

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  6. क्या बात है ताऊ ! वाह वाह ! आज की यह पोस्ट बहुत ही उम्दा पाई । तमाम काम की जानकारियों से ओतप्रोत। बहुत आभार आपका और बहुत बधाई।

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  7. यह तो पोस्टों का पोस्ट बनता जा रहा है. एक में अनेक. हमें हमारे ही पोस्ट की एक चिदिय, अनेक चिडिया याद आ गयी. आइसक्रीम की कहानी, अल्पना जी का जंतर मंतर, आशीष खंडेलवाल जी की कार, सीमा जी की कविता सभी बेहतरीन. आभार.

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  8. हारी ताऊ इतनी उत्कृष्ट प्रस्तुतियां जल्दी बाजी में तो नहीं पढ़े जा सकतीं ! देखता कब फुरसत से पढने का समय मिलता है !

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  9. सीमा जी की शिक्षाप्रद कहानी,आशीष जी की तकनीकी जानकारी ,व जन्तर मंतर पर विस्तृत जानकारी अच्छी लगी ।

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  10. सर्वोत्तम ताऊ
    सर्वोत्तम पोस्ट

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  11. बहुत बढ़िया अल्पना जी आशीष जी ,और सीमा जी तीनों ने बहुत अच्छे से हर बात बतायी ..रोचक लगा यह अंक भी ..शुक्रिया

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  12. राम राम
    बहुत अच्छी , जानकारी और लेख .

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  13. आपका ब्लाग वास्तव में एक पत्रिका का रूप ग्रहण करता जा रहा है. इतनी बेहतरीन एवं उपयोगी जानकारियों के लिए आपका समस्त संपादक मंडल सचमुच में बधाई का पात्र है.......आशा करता हूं कि भविष्य में इसका साप्ताहिक की अपेक्षा दैनिक प्रकाशन होने लगेगा...

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  14. *"असल मे खाली बैठ कर मौज लेने के लिये यानि कुछ न करने के लिए भी आपको बहुत
    ऊँचे मुकाम तक पहुंचना जरूरी है "
    मौज लेने और फुरसतिया दिन बिताने के लिए ऊँचे मकाम से चिठाचर्चा करनी पडती है- यह तो माना ही गया है ना:)

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  15. जानकारी से भरपूर पत्रिका ! वाह जी वाह !

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  16. बहुत अच्छी जानकरी आप सभी बधाई के पात्र हैं...

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  17. आईसक्रीम अच्छी थी। और कोवा,खरगोश, लोमडी की कहानी अच्छी सीख दे गई। और हाँ अल्पना जी तो एक इतिहासकार बन चुकी है। हर चीज की जानकारी है उनके पास। पर एक चीज तो उन्होंने नही बताई कि जंतर मंतर के पास जहाँ धरने होते है उससे थोडे आगे एक छोटी सी दुकान है अगर आप मुर्दाबाद करते करते थक गए है और पेट में चूहे उछल कुद मचाने लगे है तो वहाँ जाकर साऊथ इडियन का बेहतरीन खाना खाकर चूहों को शाँत कर सकते है। नोट- जो धरने में नही शामिल वो भी जा सकते है।

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  18. ताऊ आज की पोस्ट तो ज्ञान से भरपूर है ! सभी ज्ञान दाताओं का आभार !

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  19. हमेशा की तरह संग्रहणीय (बुकमार्क योग्य) अंक। ताऊजी, अल्पनाजी और सीमाजी का स्तंभ शानदार..

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  20. पत्रिका का यह अंक भी शानदार रहा. जंतर-मंतर के बारे में जानकारी और राजा साहब के खगोल-प्रेम की जानकारी नहीं थी हमें. जैसा कि मैंने कहा था, अब तो नियमित पाठक हूँ इस पत्रिका का.

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  21. आज की साप्ताहिक पत्रिका में आशीष जी ने आज सब से छोटी कार भी दिखा दी..नयी तकनीकियों की जानकारी इस पत्रिका के जरिए मिल रही है..यह सच में बहुत अच्छा है.अगली नए अविष्कार के बारे में जानने की उत्सुकता है.ताऊ जी ने आईस क्रीम के बारे में जो जानकारी दी वह भी रोचक लगी..और सीमा जी के प्रबंधन शिक्षा सम्बंधित कहानी भी शिक्षाप्रद लगी.बहुत बहुत धन्यवाद.
    @सुशील जी,दिल्ली के बारे में क्या क्या बताया जाये..और ..जंतर मंतर अकेले के बारे में इतना कुछ लिखना यहाँ एक पोस्ट में कहाँ संभव है.इस लिए मैं ने लिंक दिया है.
    बाकि
    [जंतर मंतर पर हड़ताल/धरने वाली बात यह--[दुर्भाग्य से यह दिल्ली में जन आंदोलनों /प्रदर्शनों/धरनों की एक जानी मानी जगह भी है ]
    मैं ने लिखी है,,विडियो क्लिप के ऊपर ..]

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  22. एस क्रीम से ले कर जंतर मंतर का सफ़र और साथ में सीमा जी की सीख और आशीष जी की जानकारी ............
    एक से बढ़ कर एक

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  23. राम-राम जी। घणी राम-राम। राधे-राधे। सभी संपादकों यानी संपादन मंडल को मेरा प्रणाम। आनंद आ गया।

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  24. पूरी पत्रिका पढ़ी ,दो साथियों को भी पढ़वाई ,और आजीवन सदस्यता भी ले ली ,वो भी मुफ्त-फीड बर्नर से .

    आपको घणी राम राम

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  25. ताऊ सभी लेख बहुत ही सुंदर लगे, एक से बढ कर एक, इस राम प्यारी को एक् कार मै यहा से भेज देता हुं, लेकिन पहले अपना लाईसेंस बनबाये.
    राम राम जी की

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