हमने आपसे जो पहेली पूछी थी उसमे जो चित्र लगा था वो मदन महल जबलपुर का था. जबलपुर मध्यप्रदेश की संस्कार धानी तो है ही साथ मे यहां पर इतने रमणीक दृष्य हैं कि आप एक बार यहां चले गये तो बार बार जाने को दिल चाहेगा. हमारा अनगिनत बार वहां जाना हुआ है. हम जब भी जाते हैं वहां पर ग्वारीघाट पर मां नर्मदा में स्नान करना नही भूलते. अगर यूं कहा जाये कि जबलपुर वासी बल्कि कहिये कि हर नर्मदा किनारे रहने वाले प्राणी का दिल “हर हर नर्मदे” बोलते हुये ही धडकता है.
यहां का प्रवास आपको घर वापस लौटने नही देता. यहां आसपास मे ही अमरकंटक (नर्मदा का उदगम स्थान) कान्हा किसली पंचमढी ( मध्यप्रदेश का एक मात्र हिल स्टेशन) मैहर, खजुराहो बिल्कुल आसपास ही हैं. यानि आपको इस क्षेत्र मे घूमने के लिये हमेशा समय कम पडेगा.
और सबसे बडी बात तो यह है कि हमारे गुरुजी श्री समीरलालजी, बवाल भाई, श्री महेंद्र मिश्राजी और श्री बिल्लोरे जी भी यहीं जबलपुर से ही हैं. और श्री समीरलाल जी का बचपन का घर तो यहां से सिर्फ़ पांच मिनट की दुरी पर ही है. और एक बात आपको बताते हैं कि ब्लागरों के हर दिल अजीज श्री अनूप जी शुक्ल यानि फ़ुरसतिया जी भी अपने सेवाकाल में अनेकों बार जबलपुर प्रवास पर रहे हैं. और शायद ये जगह उनको इतनी रमणीक लगती है कि श्री समीर लाल जी के सुपुत्र की शादी मे सम्मिलित होने की यादों को एक पुरी श्रंखला के रुप मे लिपिबद्ध कर दिया है. जिसको आप विस्तृत रुप से उनके ब्लाग पर पढने का आनन्द ले सकते हैं
कहते हैं तपस्या करने के लिये नर्मदा से अनुकुल जगह कलियुग मे कहीं नही है. जो भी नर्मदा के किनारे रहता है वो स्वत: ही योगी है. अमरकंटक में तो एक से बढ कर एक महान तपस्वी आज भी रहते हैं.आपको महाभारत के गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वथामा की याद हो तो सुना है कि आज भी वो मां नर्मदा के किनारे कई लोगों द्वारा देखा गया है.
जबलपुर मे भेडाघाट एक ऐसी जगह है जहां आप आश्चर्य चकित रह जायेंगे. मार्बल की चट्टानों के बीचो बीच बहती नर्मदा और वहां नाव मे सवार आप, और बीच धारा मे भुलभुलैया, क्या नजारा होता होगा? सोचिये. अगर नाविक नही हो तो आपको किधर जाना है ? यही नही सूझेगा.
इस बारे मे ताऊ पत्रिका की सलाहकार संपादक सुश्री अल्पना जी ने विस्तृत विव्रण दिया है सो आईये उनके स्तम्भ “मेरा पन्ना“ की और चलते हैं.
-ताऊ रामपुरिया
"मेरा पन्ना" -अल्पना वर्मा नमस्कार, आज फ़िर हम एक पहेली के बहाने मध्यप्रदेश के एक खूबसुरत शहर और वहां की संस्कारधानी कहलाये जाने वाले शहर जबलपुर के बारे मे कुछ जानने की कोशीश करेंगे.
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से 330 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है प्राचीन शहर जबलपुर। इस शहर को जबालिपुरम भी कहते हैं क्योंकि इसका सम्बन्ध महर्षि जाबालि से जोड़ा जाता है।रामायण एवं महाभारत की कथाएँ इस शहर से जुड़ी हुई हैं। 'बावन तालों का सुन्दर नगर 'जबलपुर , मनोहारी प्राकृतिक सुन्दरता की वजह से 12शताब्दी में गोंड राजाओं की राजधानी रहा, उसके बाद कालाचूडी राज्य के हाथ रहा और अन्तत: इसे मराठाओं ने जीत लिया और तब तक उनके पास रहा जब तक कि ब्रिटिशर्स ने 1817 में उनसे ले न लिया।
भेडाघाट, जबलपुर विश्वप्रसिध्द मार्बलरॉक्स के लिए प्रसिध्द है,नर्मदा के दोनों दूर तक ओर 100-100 फीट ऊंची ये संगमरमरी चट्टानें बहुत सुन्दर दृश्य प्रस्तुत करती हैं। यहां बहुत ही सुंदर जलप्रपात है जो धुंआधार के नाम से विख्यात है. फ़िल्म “जिस देश मे गंगा बहती है” की अधिकांश शूटिंग इसी जगह भेडाघाट मे हुई थी.
और इस शहर के बारे मे जानिये – श्रीमती कृष्णा राजकपूर यहीं की हैं यहीं के सिनेमा व्यवसायी नाथ परिवार की बेटी हैं. यहां का एम्पायार थियेटर इसी परिवार की मालकियत का है. यह सिनेमा हिंदुस्थान के उस समय के सात लाजवाब सिनेमाओं की श्रंखला मे अपना स्थान रखता था. जहां आर्मी के लोग युद्धकाल के बाद मनोरंजन के लिये जाया करता थे.
फ़िल्म अभिनेता प्रेमनाथ और नरेन्द्रनाथ श्रीमती कृष्णा कपूर जी के सगे भाई थे. उनके भाई साहब प्रेमनाथ को तो आप सब अच्छी तरह जानते ही होगें. उनको भी इस शहर से इतना लगाव रहा कि फ़िल्म “जानी मेरा नाम“ के दिनों की चरम सफ़लता के दिनों मे वो यहा लौट आये थे और गेरुएं वस्त्र धारण कर लिये थे. और वहीं ग्वारीघाट मे आश्रम बनवाकर रहने लगे थे.
ओशो रजनीश और महर्षि महेश योगी इन दोनो विभुतियों को कौन नही जानता? ये दोनों भी यहीं की देन हैं. श्री हरीशंकर जी परसाई को कौन भूल सकता है? आप भी जबलपुर से ही थे. यानि इस शहर ने एक से बढ्कर एक रत्न समाज और दुनियां को दिये हैं. एक बात इस शहर के बारे मे जानना शायद और अच्छी लगेगी कि जबलपुर को संस्कारधानी नाम आचार्य बिनोवा भावे ने दिया था. जबलपुर का भौगोलिक क्षेत्र पथरीली, बंजर ज़मीन और पहाड़ों से आच्छादित है।
गोंडवाना क्षेत्र-
घने जंगलों का क्षेत्र, गोंडवाना अब मध्यप्रदेश का अंग है। पर एक जमाने में यह देश से अलग-थलग था और बाकी देश पर जो कुछ बीता उससे यह बहुत कुछ अछूता रहा। तथापि उत्तर के सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव से यह नहीं बच सका।
अनेक ऋषि-मुनियों ने यहाँ अपने आश्रम बनाये, क्योंकि यहाँ एकान्त भजन-पूजन के लिए बहुत उपयुक्त था। कभी यहाँ रानी दुर्गावती शासन करती थीं।
रानी दुर्गावती - गोंडवाना साम्राज्य के गढ़ा-मंडला सहित ५२ गढ़ों की शासक वीरांगना रानी दुर्गावती कालिंजर के चंदेल राजा कीर्तिसिंह की इकलौती संतान थी। उनका जनम 1524 A.D में हुआ था. गोंडवाना शासक संग्राम सिंह के पुत्र दलपत शाह की सुन्दरता, वीरता और साहस की चर्चा धीरे धीरे दुर्गावती तक पहुँची परन्तु जाति भेद आड़े आ गया . फ़िर भी दुर्गावती और दलपत शाह दोनों के परस्पर आकर्षण ने अंततः उन्हें परिणय सूत्र में बाँध ही दिया.
सन् 1542 में अपने विवाह के उपरान्त दलपतशाह को जब अपनी पैतृक राजधानी गढ़ा रुचिकर नहीं लगी तो उन्होंने सिंगौरगढ़ को राजधानी बनाया और वहाँ प्रासाद, जलाशय आदि विकसित कराये.
रानीदुर्गावती से विवाह होने के ४ वर्ष उपरांत ही दलपतशाह की मृत्यु हो गई और उनके ३ वर्षीय पुत्र वीरनारायण को उत्तराधिकारी घोषित किया गया. रानी ने सन् 1555 से 1560 तक मालवा के सुल्तान बाजबहादुर तथा मियाना अफगानों के आक्रमणों को विफल किया। अकबर ने उसके दरबार में गोप कवि को भेजकर, दुर्गावती के दीवान आधार सिंह कायस्थ (आधारताल का निर्माता) को अपनी और मिलाने का कूटनीतिक प्रयास किया पर उसमें असफल रहा। अंतिम युध्द जबलपुर की मंडला की सीमा पर नर्रई नाला पर 23 जून 1564 को हुआ। नाले में बाढ़ आ जाने से रानी सुरक्षित स्थान पर नहीं जा सकी। रात्रि में धोखे से आक्रमण कर आसफ खां ने रानी को कपटपूर्वक पराजित किया। परन्तु वीर रानी ने अपने हाथ से ही अपना प्राणांत कर,अपने शील व स्वाभिमान की रक्षा की।
इस तरह रानी ने साहस और पराक्रम के साथ 1546 से 1564 तक गोंडवाना साम्राज्य का कुशल संचालन किया. इन्हीं के नाम पर जबलपुर में एक विश्वविद्यालय का नाम रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय रखा गया है.
यह तस्वीर इस महल के 'क्लू ' में दिखाई गयी थीं अब जानिए उस शिला के बारे में-जो मानव अंगुली की मोटाई के बराबर सहारे पर टिकी हुई है.
इसे कहते हैं-संतुलित शिला (बैलेंस रॉक )
प्रागैतिहासिक पृथ्वी के संरचना के समय पहाड़ों में मदन महल की पहाड़ियाँ और चट्टानें गौड़ वान ट्रैक के नाम से जानी जाती हैं पुरातत्व शास्त्रियों के अनुसार यह सरंचना हिमालय से भी पुरानी है।
संतुलित शिला का इस गौड़्वाना ट्रैक में होना खुद इस बात क प्रमाण है कि यह क्षेत्र करोड़ों वर्ष पुराना है। दो पत्थरों के बीच लाखों वर्षों तक पानी और हवा के बहाव से पैदा हुए कटाव द्वारा संतुलित शिला का निर्माण होता है।खास बात यहाँ की यह शिला भूकंप में भी नहीं हिली।
'ज़रा सा इनकी तरफ़ तो देखो, हैं दोनों आलम सँभाल रक्खे
---बवाल
मदन महल-
यह कब बना? इस के बारे में कुछ भी साफ़ साफ़ नहीं कहा जा सकता है. अधिकतर सूत्रों के अनुसार यह किला राजा मदन शाह ने १११६ में बनवाया था.
ज़मीन से लगभग ५०० मीटर की ऊँचाई पर बने इस 'मदन महल 'की पहाड़ी 150 करोड़ वर्ष पुरानी मानी जाती है | इसी पहाड़ी पर गौंड़ राजा मदन शाह द्वारा एक चौकी बनवायी गई ।इस किले की ईमारत को सेना अवलोकन पोस्ट के रूप में भी इस्तमाल किया जाता रहा होगा.
इस इमारत की बनावट में अनेक छोटे-छोटे कमरों को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ रहने वाले शासक के साथ सेना भी रहती होगी. शायद इस भवन में दो खण्ड थे। इसमें एक आंगन था और अब आंगन के केवल दो ओर कमरे बचे हैं। छत की छपाई में सुन्दर चित्रकारी है। यह छत फलक युक्त वर्गाकार स्तम्भों पर आश्रित है। माना जाता है ,इस महल में कई गुप्त सुरंगे भी हैं जो जबलपुर के 1000 AD में बने '६४ योगिनी 'मंदिर से जोड़ती हैं.
यह दसवें गोंड राजा मदन शाह का आराम गृह भी माना जाता है. यह अत्यन्त साधारण भवन है। परन्तु उस समय इस राज्य कि वैभवता बहुत थी. खजाना मुग़ल शासकों ने लूट लिया था.
गढ़ा-मंडला में आज भी एक दोहा प्रचलित है - मदन महल की छाँव में, दो टोंगों के बीच . जमा गड़ी नौं लाख की, दो सोने की ईंट.
इस महल के बारे में बहुत अधिक जानकारी नहीं मिली-जो भी मिल सकी यहाँ प्रस्तुत की गई है. घटनाओं के काल में भी कई स्थान पर भिन्नता देखी गयी है.यहाँ दी गयी सभी जानकारी अंतरजाल पर पहले से प्रस्तुत सामग्री के आधार पर है.यह भवन अब भारतीय पुरातत्व संस्थान की देख रेख में है. ( सलाहकार संपादक, पर्यटन ) |
अब आईये ताऊ पत्रिका के तकनिकी संपादक श्री आशीष खंडेलवाल के स्तम्भ “ दुनिया मेरी नजर से” की और चलते हैं.
“ दुनिया मेरी नजर से” -आशीष खण्डेलवाल नमस्कार आइए आज आपको उड़नतश्तरी दिखाएं.
अब आप कहेंगे कि हिन्दी चिट्ठा संसार तो समीर लाल जी की उड़नतश्तरी को रोजाना ही देखता है। इसमें नया क्या है? तो दोस्तों इसमे नया यह है कि आज आपको इसे सचमुच में देखने का सौभाग्य मिल रहा है। आप इस लिंक पर चटका लगाएं और देख लें। यह रोमानिया का एक बगीचा है और यहां आप खुद ही देखिए कि क्या नजर आ रहा है।
http://googlesightseeing.com/maps?p=1564&c=&t=k&hl=en&ll=45.70334,21.301975&z=18
खा गए न धोखा! यह उड़नतश्तरी नहीं है और गूगल अर्थ पर दिख रही डिस्क जैसी इस आकृति के कारण रोमानिया प्रशासन और गूगल की नींद उड़ी है। दरअसल यह रोमानिया के टिमिसोअरा शहर में पानी सप्लाई करने वाली एक पुरानी इमारत का नजारा है। लोग इसे गूगल अर्थ पर देखकर अफवाह फैला रहे हैं कि यह कोई यूएफओ (अनआइडेंटिफाइड फ्लाइंग ऑब्जेक्ट) है।
रोमानिया का प्रशासन और गूगल दोनों ही नेटिजंस से अपील कर रहे हैं कि कृपया वे बार-बार उन्हें इस बारे में सूचना नहीं दें। अब तकनीक है तो बेजा इस्तेमाल तो होगा ही।
Thanks and Regards Ashish Khandelwal |
और अब आईये चलते हैं सुश्री सीमा गुप्ता के स्तम्भ “मेरी कलम से” की और.
हमारे पहेली अंक - 9 के विजेता श्री काजल कुमार जी का साक्षात्कार आपसे करवायेंगे ५ मार्च
गुरुवार को. अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक – ताऊ रामपुरिया
सलाहकार संपादक (पर्यटन) – सुश्री अल्पना वर्मा
विशेष संपादक (प्रबंधन) – सुश्री सीमा गुप्ता
तकनिकी संपादक – श्री आशीष खंडेलवाल
सहायक गण :-
सहायक ( पहेली) – श्री बीनू फ़िरंगी
सहायक ( बोनस पहेली) – मिस. रामप्यारी
अल्पना जी ने जबलपुर के बारे में बड़ी विस्तृत जानकारी दी. पढ़कर बहुत अच्छा लगा. आशीष भाई ने भी एक बार को तो हमें चौंका दिया कि न जाने क्या बताने जा रहे हैं हमारे बारे में. :)
ReplyDeleteसीमा जी की बोधकथा बहुत भाई. विचार करना ही चाहिये इस ओर.
बढ़िया रहा ताऊ यह अंक.
ताऊ जी की जय हो। अल्पनाजी जबलपुर में परसाईजी का नाम भी जोड़ें। सीमाजी आप महान हैं जो ऐसी सीख दीं। सबकी जय हो!
ReplyDeleteबात तो बहुत सही समझाई सीमा जी ने मगर मेरे यहाँ झगडा अंतर्जाल के समय की कटौती को लेकर भीषण होता जा रहा है -इस पर कुछ परामर्श मिल सकेगा क्या ?
ReplyDeleteबहुत बढिया रहा ये अंक्।जबलपुर का भूवैज्ञानिक महत्व भी है।यहां विभिन्न काल की संरचनाओ के अलावा डायनोसारस के जिवाश्म भी मिले हैं।
ReplyDeleteअल्पना जी ने जबलपुर और महल के बारे में बड़ी विस्तृत और रोचक जानकारी दी. फ़िल्मी हस्तियों का जबलपुर से सम्बन्ध होना , नर्मदा नदी का महत्व ये सब पढ़कर बहुत अच्छा लगा. आशीष जी की जानकारी भी कम रोचक नहीं थी.....शुरू में तो लगा की शायद ये ......लकिन बाद में जब भेद खुला तो पता चला हा हा ...आप दोनों को आभार"
ReplyDeleteRegards
-आज की पत्रिका की फीड सही पहुँच गयीहै.
ReplyDelete-आशीष जी का लेख रोचक लगा.
सच है अफवाहें बड़ी जल्दी उड़ती हैं..
और लोग यू अफ ओ के बारे में अक्सर भ्रांतियां फैलाते ही रहते हैं.
मिलती जुलती चीज़ दिखनी चाहिये बस!
_सीमा जी की दी जानकारी भी
ज्ञानवर्धक है.
हम जिनके साथ रहते हैं या जिन्हें प्यार करते हैं उन्हें अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ पल अवश्य देने चाहिए .
बहुत सही लिखा है.यह भी एक बड़ा गुर है.
@Anoop ji aap ki request Taau ji ne padh li hogi.
[आज शांति शांति सी लग रही है ब्लॉग पर!]
नई जानकारी मिली और ज्ञान बढ़ा. धन्यवाद. बस इसी लिए यहाँ चले आते है, बाकि पास तो शायद ही हों कभी. :(
ReplyDeleteजन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाये व् इश्वर आपकी सभी उज्वल कामनाये पूर्ण करे.
ReplyDeleteप्रणाम
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी प्राप्त हुई जबलपुर के बारे में, अगर मौका लगा तो अवश्य घुमाने जायेगे .
अल्पना जी,सुश्री सीमा गुप्ता जी,आशीष जी और ताऊ जी आप सब लोगों का आभार कि आप इतने रोचक एवं विस्तृ्त तरीके से नई नई जानकारियां प्रदान कर रहे हैं...........पुन:आभार
ReplyDeleteजन्मदिन की बहुत बहुत बधाई आपको ..
ReplyDeleteताऊ जी
ReplyDeleteकल मेरा नेट ख़राब होने की वजह से नेट नहीं पर नहीं आया तो आपके जन्मदिन की बधाई नहीं दे पाया | :(
विलंब के लिए क्षमा चाहूँगा
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई |
ताऊ साप्ताहिक अंक बहुत ही रोचक है |
ताऊ पहेली द्वितिय राऊंड मेरिट लिस्ट (अंक - १) की merit लिस्ट थोडी अलग दिख रही है,
मेरा नाम सबसे आखरी में ? :(
ताऊजी को जन्मदिन की बधाई,
ReplyDeleteजबलपुर की बहुत अच्छी जानकारी दी सु.अल्पना जी ने. सु सीमाजी और आशीष जी ने भी आपकी पत्रिका को चार चांद लगा दिये हैं. योग्य लोगो की टींम बना रहे हैं आप. बधाई.
आपकी रामप्यारी के हाल चाल हैं? सैम कहां गया आजकल ? लगता है रामप्यारी भी एक लाजवाब क्युट सी सहायक पकड लाये हैं कहीं से.:)
ReplyDeleteविजेताओं को बधाई. ताऊजी को जन्मदिन की बधाई.
ReplyDeleteमिस रामप्यारी और बीनू फ़िरंगी को ताऊ पत्रिका मे सहायक बनने की बधाई. यानि बधाई ही बधाई.
आदरनीय रामप्यारी जी
ReplyDeleteआपको बोनस प्रश्न के लिए एक सलाह देना चाहूँगा |
जैसा की आप जानती हैं बोनस प्रश्न पूरे ३० नंबर का है पर शनिवार की रात
कों बोनस सही जवाब publish कर देने के बाद जिसने गलत जवाब भी दिया है वह
भी सही लिख कर बोनस अंक पा जाता है |
इससे सभी की मैरिट वही बराबर हो जाती है और बोनस का कोई मतलब नहीं रह जाता |
अतः मै बोनस के जवाब के बारे में एक नियम बनाने का आग्रह करना चाहूगा |
१. सभी से बोनस का जवाब केवल एक बार ही स्वीकार किया जाए उसे बदलने की
अनुमति न प्रदान की जाए | अथवा
२. रात कों सही जवाब छपने के बाद आये बोनस के जवाब न मान्य किये जाए |
उम्मीद करता हूँ मेरी सलाह पर ध्यान दिया जायेगा |:)
आपका यह प्रयास बहुत सराहनिय है. पत्रिका को अच्छा स्वरुप दिया है आपने.
ReplyDeleteजन्मदिन की बधाई ताऊ जी को.
ReplyDeleteरामप्यारी क्या सही मे कोई ब्लागर है या कोई कैरेक्टर है? बडी क्यूट बाते करती हैं. धन्यवाद रामप्यारी जी को..अरे..रे....सारी मिस. रामप्यारी जी को.:)
prem nath ji ke baare me aur parsayee jI ke bare me jaanakar bada achchha lagaa
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाई...देर से ही सही।
ReplyDeleteअच्छा लगा ये अंक। जबलपुर की बात ही अलग है।
आशीष के जरिये कुछ और मनोरंजन हो गया अपना..
जै जै
हम तो अनारकली और चम्पाकली को देखने आए थे पर जबलपुर की वितृत यात्रा कर ली।:)
ReplyDeleteताऊ राम राम
ReplyDeleteबहुत अच्छी जानकारी जबलपुर की इसकी संस्कृति के बारे में पढ़ कर अच्छा लगा.
अल्पना जी ने भी खूबसूरत तरीके से इसके इतिहास को बयान किया, मदन महल की भी अच्छी जानकारी है.
आशीष जी की जानकारी विस्मास्यकारी है.
सीमा जी की कलम से बहुत ही सुन्दर बात सीखने को मिली, अपनों के लिए वक़्त निकालना चाहिए
alpana,seema ashish ji sabhi ne badi mehnat se achi jankari di shukran
ReplyDeleteताऊ जी,
ReplyDeleteटिप्पणी प्रकाशित करने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि वह जवाब सही ही है।
वैसे मेरे हिसाब से आप दोहरे मानदंड नहीं रख सकते कि शनीचरी पहेली की जवाब में आखिरी टिप्पणी का जवाब माना जाएगा और बोनस सवाल में केवल पहला। दोनों के लिए नियम एक ही होना चाहिए।
सादर
नियम यही रखा जाना चाहिए कि आखिरी टिप्पणी वाली जवाब सही माना जाएगा..
ReplyDeleteबोनस का मतलब ही यही है कि हर योग्य उम्मीदवार को तो वह मिलना ही चाहिए।
और एक बात कहना चाहूंगा कि ये पूरा पहेली आयोजन ज्ञानवर्धन के लिये किया गया है. इसका मतलब ही मनोरंजन के साथ ज्ञानवर्धन है.
इसे दिलचस्प तरीके से पेश करना ही इसकी सफ़लता है. यहां कोई रुपया पैसा नही बंट रहा है.
अब आज आप जबलपुर का ही उदाहरण लें कि कितने लोग बैलेंसिंग रोक के बारे में जानते थे?
कितने लोग ये जानते थे कि प्रेमनाथ भी जबल पुर मे आश्रम बना कर रहते थे और वहीं के मूळ वासी थे. सू. अल्पनाजी ने काफ़ी मेहनत पुर्वक यह पोस्ट तैयार की होगी. क्यों?
क्या जीतने के लिये? नही बल्कि ज्ञान को आगे बढाने के लिये.
मेरी समझ से इसका स्वरुप जो चल रहा है वो काफ़ी हद तक दुरुस्त है. और इसे इसी स्वरुप मे चलने देना चाहिये.
यहां सभी लोग कम्पिटिशन करने नही आते बल्कि मनोरंजन के साथ जानकारी पाने आते हैं. अत: इसका स्वरुप जो है हमारी निगाह मे वही अति उत्तम है.
सादर
@ श्री शुभम आर्य
ReplyDelete@श्री मकरंद
आप दोनो की बात हमने सुन ली है. पहली बात तो यह है कि आप दोनों का इसमे इतना रुची लेना एक अच्छा संकेत है कि आयोजन अपने उद्देष्य मे कामयाब है.
आपकी बात हमने हमारे संपादक मंडल मे रख दी है. अब जो भी संपादक मंडल की राय होगी उससे हम अगले पहेली प्रकाशन के समय सभी को अवगत करवा देंगे.
आप सभी का बहुत शुक्रिया.
हमको कल और आज भी जिन्होने जन्मदिन ्की बधाईयां दी हैं उनको तहेदिल से आभार प्रकट करते हैं. और आपका प्रेम एवम आशिर्वाद बना रहे यही आकांक्षा रखते हैं.
रामराम
ताऊ रामपुरिया
राम राम ताऊ.. इस दिनों कुछ व्यस्त था तो पहेली पर शोध नहीं पाया.. और शुन्य अंक के साथ अंतिम स्थान पर रहा... क्या करें...:) और अगले तीन शनिवार भी.. वक्त मिलने की संभावना कम है.. दे्खते है...
ReplyDeleteराम राम..
सारे मित्रों को हार्दिक बधाई!!
ReplyDeleteताऊ वाकई में एक ताऊ के समान सारे परिवार को एक साथ बांधे हुए हैं. आपको मेरा अनुमोदन!!
साहित्यिक पत्रिका का ये अंक भी जबरदस्त रहा है.....खास कर अल्पना जी की संपूर्ण जानकारी और सीमा जी का व्याख्यान
ReplyDeleteताऊ जी
ReplyDeleteसादर नमस्कार
जन्मदिन की बहुत बहुत बधाई
पहेली में जबलपुर संस्कारधानी में माँ नर्मदा और शौर्य के प्रतीक मदनमहल किले का उल्लेख करने लिए मै आपका तहेदिल दिल से आभारी हूँ . जबाली मुनि की नगरी जबलपुर का एक अपना ऐतिहासिक महत्त्व है . मुझे खेद है कि पहेली का उत्तर मै नहीं दे सका आभार आभार पुनः आभार
राम राम ताऊ.is shnivar to aisa mood bigda ke aapke blog pe aake bhi comt na kar payi ....Raj Singh ji k blog pe chli gayi thi wahan jo pdha dimag jhnna gya ...ab aap sabke tau hain kuch kro k aisi baten blog pe na likhi jaye . haan janam din ki bhot bhot subh kamnayen...!!
ReplyDeleteअल्पना जी ,आशीष भाई ,सीमा जी आप सभी का धन्यवाद, सभी नए बहुत सुंदर जानकारी दी.
ReplyDeleteताऊ को राम राम जी की
bahut sarthak prayas tau.
ReplyDeleteआप लोग मिल जुल कर यह प्रयास कर रहे है यह आज के जमाने मे बडी बात है. इश्वर आपको सफ़लता दे.
ReplyDeleteहिंदी मे इतनी जानकारी से चम्त्कृत हूं.
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद . गजब की जानकारी जुटाई है ु अल्पना जी ने.
ReplyDeleteसु.अल्पनाजी, सु. सीमाजी और श्री आशीष को बहुत धन्यवाद और ताऊ आप तो खैर हो ही बधाई के हकदार.
ReplyDeleteअल्पना जी की जानकारी काफी ज्ञानवर्द्धक रही और सीमा जी की यह सलाह " हम जिनके साथ रहते हैं या जिन्हें प्यार करते हैं उन्हें अपनी व्यस्त दिनचर्या से कुछ पल अवश्य देने चाहिए" गांठ बांध ली है..
ReplyDelete