संतू का फ़ोन आते ही ताऊ फ़टाफ़ट अंधे कुयें की तरफ़ भागा. वहां पहले से ही भीड लगी थी. रामदयाल और उसका लडका रमलू दहाडे मार कर रो रहे थे. गांव के सब चैम्पियन अपनी २ राय दे रहे थे कि किस तरह संतू गधे को बाहर निकाला जाये.
रस्सी के सहारे…. कोई कुछ ..कोई कुछ.. कह रहा था पर बडा मुश्किल हो गया था. संतू का बाहर निकालना. गांव मे इतने साधन भी नही थे.
खैर साहब गांव के एक परम ज्ञानी ने सुझाव दिया कि संतू गधा कुयें के अंदर भूखा प्यासा मरे इससे अच्छा है कि इसे यहीं कुये मे दफ़न कर दिया जाये. जिससे इसको कम से कम तकलीफ़ होगी.
रामदयाल तो यही चाहता था. पर नकली दहाड मारते हुये बोला – अरे नही भाईयों ऐसा जुल्म मत करना. संतू तो मेरे सगे लडके रमलू से भी बढ कर प्यारा है मुझे.
पर मौत जिस घर मे आ जाये वहां घर वालों की बात नही सुनी जाती वहां यार लोग ही अर्थी ऊठवाने को तत्पर रहते हैं. सो यहां भी कौन सुनने वाला था? तुरंत परात फ़ावडो का इन्तजाम किया गया और तय हुआ कि उपर से परातों मे मिट्टी भर भर के कुये मे डाल कर संतू को जिंदा दफ़न कर दिया जाये.
अब जैसे ही संतू गधे ने यह प्रोग्राम सुना उसकी तो हवा खिसक गई. और एक लंबी ढेंचू…ढेंचू ..की तान लगा कर चिलाया..पर उस गरीब की कौन सुनने वाला था?
और अब ताऊ के दिमाग ने भी तेजी से काम करना शुरु किया. और सारी बात को नाप तौल कर संतुष्ट हो गया कि अब संतू गधा पक्के से बच जायेगा.
अब ताऊ वहां से निकल गया और वापस काफ़ी दुर आकर संतू को फ़ोन लगाया. और दोनों मे यों बात चीत होने लगी.
ताऊ – हैलो कौन? कौन संतू…अरे बोलता क्यों नही..? मैं ताऊ बोल रहा हूं.
उधर से संतू गधे की मरी सी आवाज आई..अरे ताऊ..मैं तो बस समझो मर ही गया.
अब क्या बोलूं? यमदूत सामने ही खडे हैं.
ताऊ : अरे बावली बूच ..मरे तेरे दुश्मन… सुसरी के.. हिम्मत मत हार.. अरे ब्लागरों का यमदूत कुछ नही बिगाड सकते. ब्लागरों के ज्ञान चक्षू खुल जाते हैं. उनका उपयोग करते ही तेरे प्राण पक्के से बच जायेंगे. मैने तेरे जिंदा रहने का प्लान बना दिया है.
अब संतू को कुछ उम्मीद बंधी.. सो कुछ जी मे जी आया.
अब ताऊ बोला – सुन बे बावली बूच.. तू बस ध्यान से मेरी बात सुन..और जैसा मैं समझाऊं बस वैसे ही करना.. अगर हिम्मत रखी तो आज शाम को हम दोनो एक साथ ही चिकन आलाफ़ूस का डिन्नर लेंगे. अरे चम्पा भी तेरे लिये पूछ रही थी.
और ताऊ ने अपना प्रोग्राम संतू गधे को समझा दिया.
उधर गांव वालों ने खेत मे से मिट्टी खोद खोद कर कुंये मे डालना शुरु किया और रामदयाल उपर से आंसू बहाते हुये मन ही मन राजी हो रहा था.
अब जैसे ही मिट्टी की पराते कुएं मे खाली होती और संतू के उपर गिरती वैसे ही संतू गधा ताऊ के बताये अनुसार मिट्टी को झटक देता. धीरे धीरे हुआ यह कि उस डाली गई मिट्टी का ढेर लगता रहा और संतू गधा उस ढेर पर चढता जाता. मिट्टी आती गई और संतू उसे पीठ पर से झटक कर उस पर चढता हुआ उपर तक आगया.
जब तीनेक फ़ुट गढा ही रहा तो संतू उचक कर ऊछला और सीधे खुशी से ढेचूं.. ढेंचु…
करता हुआ बाहर निकल आया.
सारा मंजर ही बदल गया. कहां मौत नाच रही थी और कहां अब चिकन आलाफ़ूस का डिनर तैयार था. संतू गधा सीधे जाकर ताऊ के सामने साश्टांग होगया. और बोला – ताऊ आज आपने बचा लिया.
अब ताऊ बोला – देख बेटा संतू, जीवन ऐसा ही है. जब हम असफ़ल हो जाते हैं तो हमारे अपने ही हमको छोड देते हैं. और अगर हम उस संकट की घडी मे घब्रराये बिना अपना काम हिम्मत से करते रहे तो वापस उस कठीन काम मे भी सफ़ल हो सकते हैं.
जब भी मुसीबत आये उनको साहस और अक्ल से ठोकर मार कर उपर देखो फ़िर उन् मुसीबतों के उपर ऊठने का रास्ता भी दिखाई दे जाता है.
संतू गधा बोला – ताऊ आप सही कह रहे हो. ताऊ की और संतू गधे की बातें वहीं खडी चम्पा गधेडी भी सुन रही थी. वो संतू की तरफ़ मीठी नजरों से देखती हुई डिनर का इंतजाम करने लगी.
ताऊ समझ गया कि अबकी बार मामला इक तरफ़ा नही है. लगता है चंपा गधेडी भी वही चाहती है जो संतू गधा चाहता है. लगता है अबकी सीजन मे इनका मुहुर्त निकलवाना ही पडेगा.
इब खूंटे पै पढो:- कल “काकी की गुहार” शीर्षक से हमने और सु.सीमा जी ने काकी द्वारा काका योगिंद्र मौदगिल जी को लिखे गये प्रेम पत्र को हम दोनों ने अपने परम ज्ञानी चक्षुओं द्वारा पढ कर आप लोगों को सुनाया था. कल काका दिन भर कहीं इधर उधर पता नहीं कहां कहां मुंह मारते रहे? सो कल रात आठ बजे उनको इस प्रेम पत्र के सार्वजनिक होने की खबर लगी. तब उनकी टीपणी आई. हम तो हैरान होगये भाई ये टीपणी पढ कर. क्योंकि काकी बता रही थी कि इनकी फ़ौज १२ की थी. और अब काका दावा कर रहे हैं कि बाकी १२ कहां छोड आई? मैं तो यानि काका तो पूरे २४ छोड गये थे. सो भाई हमको तो कुछ समझ मे आ नही रहा है. और श्री अर्विंद मिश्रा जी भी इसका जवाब मांग रहे थे. और भी लोग जवाब के इंतजार मे थे. उस प्रेम पत्र का काका ने कल जो जवाब अपनी टीपणी के द्वारा दिया उसको हम यों का यों खूंटे पर बांध रहे हैं. आप स्व्यम ही उसको खूंटे से खोल लें. हम तो इन पति पत्नि के बीच मे नही पडते. “काकी की गुहार” के जवाब मे “काका की फ़ुहार” :- होली की शुरूआत में, सीधे फंदा डाल.
फिर भी मैंने तो किया, ताऊ, यार यक़ीन.
इसमें चिंता है नहीं, भेद खुलें छब्बीस. मेरी सत्यानाशिनि, छोड़ मुझे अन्यत्र.
मिश्रा जी भी जोह रहे, अब तो मेरी बाट.
|
वाह ताऊ, इसे कहते हैं एक पंथ दो काज.
ReplyDeleteगधे की जान भी बच्चा दी और काका कविता भी पढा दी.
वाह ताऊ, वाह..!!
ReplyDeleteआखिर टांग दिया खूंटे पर....!!!
जय हो.....
कुछेक यक्षप्रश्न उभर रहा है मस्ती में,
इस बाक्समैटर का शीर्षक खूंटा क्यों धरा..?
खूंटा किस की और इंगित करता है..?
झोट्टे को बांधने के अलावा खूंटा और किस काम आ सकता है..?
और अंत में
अन्य कुछ हो या ना हो पर खूंटे पर बाट नहीं बंध सकता....!
रंगीन प्रणाम सहित,
-योगेन्द्र मौदगिल
ताऊ हमेशा ही चार काम एक साथ करते हैं। दो नजर आने वाले और दो नजर नहीं आने वाले।
ReplyDeletetauji ka dimaag tej hai,gadha bach gaya aur kaka ji ki kavita,mast mast:)
ReplyDeleteकितना भी कोशिश कर ले ताऊ तू मौदगिल जी को खूंटे से नहीं बाध पायेगा रे ! तेरा यह रहा सहा खूंटा भी अब टूटा ! अरे वह कितनी खूंटे -खूंटियों से कितने बार बांधा गया -फिर भी अपनी ह्यूडनी कलाकारी से हर बार छूटा और कितनी नावों में कितनी बार सैर कर आया है -ज्यादा उसकी फिक्र में न रह नहीं तो वह तो तुझे डूबा देगा मगर खुद तैर बाहर आ जायेगा !
ReplyDeleteमेरा यह साबर मन्त्र वही समझेगा भी रे -तूं लट्ठ भाजने वाला क्या समझ पायेगा ! (होली है )
दोनों ही सुन्दर. आभार.
ReplyDeleteजब भी मुसीबत आये उनको साहस और अक्ल से ठोकर मार कर उपर देखो फ़िर उन् मुसीबतों के उपर ऊठने का रास्ता भी दिखाई दे जाता है.
ReplyDelete" आज तो ताऊ जी की अक्ल और सलाह से बेचारे गधे की तो जान बच गयी......एक नेक काम तो किया ताऊ जी ने वरना तो .........भगवान् ही मालिक है हा हा हा "
Regards
ताऊ का दिमाग और काका का हाजिरजवाब कटाक्ष .. मज़ा आ गया पढ़कर..
ReplyDeleteहोली का माहोल नज़र आ रहा है!
ReplyDeleteये हंसी ठिठोली!
गज़ब है!
योगेन्द्र मोदिल जी का जवाब पढ़ कर हंसी रोके नहीं रुक रही!
**जब 'चंपा और संतू 'के लिए मुहूर्त निकले तो हमें भी न्योता देना मत भूलियेगा.
चिकन अलाफुस तो नहीं खाते लेकिन मिठाई जरुर खाने पहुंचेंगे!
क्यूकि मूरख तुझे नहीं बुद्धि आती है.
ReplyDeleteकिसके कितने.. ये नारी ही तो बतलाती है.
Good One
पर ताउ एक बात मन्ने बेरा ना पडे है कि ताउ गधे गधेडि के साथ डिनर खैर पसन्द अपनी अपनी
ReplyDeleteताउ काका तो काकी से यही कह रहे है कि
चाल दिखाउगा तन्ने ताउ जी का ब्लोग
जल्दी जल्दी तु कर ले पुरे काम
ताउ जी ने ब्लाग ने उपर हुड्दन्ग मची है भरी
हसते हसते पागल होवे सारे नर औ नारि
regards,
pankaj mihsra
ताऊ आपने तो भला काम किया आज...चंपा का घर बस जायेगा इस लगन में तो...मुहूर्त निकलवाइए. खूंटे की होली वाली ठिठोली मस्त रही.
ReplyDeleteजोहार
ReplyDeleteसही कहा ताऊ आपने "घब्रराये बिना अपना काम हिम्मत से करते रहे " तो कोई काम नामुमकिन नहीं .
काकी १ दर्जन बच्चे कहा छोड़ आई , अभी तलक रपट कराइ या नहीं कराइ .
योगेन्द्र जी, होशियार, अभी तो खूंटे पे टांगा है, आगे देखना कहीं और न टांग दिया जाए।
ReplyDeleteआप धन्य हैं,गधे की जान बचा दी। अपना फोन नम्बर सभी जानवरों को उपलब्ध कराइए। क्या पता कब किसे सलाह की आवश्यकता पड़ जाए। पशु प्रेमी होने के कारण आपकी विशेष आभारी हूँ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
ताऊ अगर हो सकै तो मेरी एक शंका का निवारण जरूर कर दिये., वा यू कि कुए मैंह के पी.सी.ओ. खोल राख्या था जडै तै संतू गधै नै तेरे तै फोन घमा दिया.........हा हा हा हा हा
ReplyDeleteअर मौदगिल जी, म्हारे हरियाणा की शान के न्यूं ए थोडी हैं, के आसानी तै खूंटे पै बंध जैं गे...
बोहत ही बढिया.........मजेदार.....पूरी तरियां फाग की मस्ती मैं डूबी पोस्ट...बधाई
@ काका मोदगिल जी.
ReplyDeleteनीचे खूंता नाम इसलिये रखा गया है कि हम्रारा तो शिवजी जैसा परिवार है.
सबसे बडा जानवर = खुद ताऊ
और ताऊ से भी बडी जानवर = ताई
दो भैंसे = चम्पाकली और दुसरी अनारकली
दो कुत्ते = सैम और बीनू फ़िरंगी
बिल्ली = रामप्यारी
गधा = संतू गधा
हधेडी - चम्पा गधेडी
और दो तीन बंदर भी हैं.
असल मे इन सबको बांधने के लिये यह खूंटा गाडा गया था. पर लोग मूल पोस्ट से ज्यादा इन जानवरों को यहां बाम्धा जाना पसंद करने लगे.
इसलिये आज काका नामक झौठ्ठे को यहां बांधा है. पबलिक तो मजे ले रही है अब देखो झौठ्ठा टिकता है या खूंटा उखाड कर भागता है.:)
रामराम.
ज्यादा
@ प.डी.के. शर्मा "वत्स"
ReplyDeleteकृपया पोस्ट मे दी गई पिचली लिंक का अवलोकन करें.
सम्तू गधे को मोबाईल साथ रखने की हिदायत ताऊ ने पहले ही दे दी थी और इसीलिये उसकी जान बच गई.
टेकनोलोजी का फ़ायदा जानवरों को भी मिल रहा है.
रामराम.
Tauji aaj to apne holi ka chanda de diya...
ReplyDeleteaapke lekha ki sath yogendra maudgil ji ki kavita bilkul free...
जीवन ऐसा ही है. जब हम असफ़ल हो जाते हैं तो हमारे अपने ही हमको छोड देते हैं. और अगर हम उस संकट की घडी मे घब्रराये बिना अपना काम हिम्मत से करते रहे तो वापस उस कठीन काम मे भी सफ़ल हो सकते हैं.
ReplyDeleteसच कह दिया आपने जी। और खूंटा तो बेहतरीन लिखा है। और योगेन्द्र जी का जवाब :-) और होली के फोटो बेहतरीन लगाए है सोच रहा हूँ इस बार होली मना ही लूँ।
होली अब दूर नहीं..--:)
ReplyDeleteमेरे प्यारे ताऊ रामपुरीयाजी,
ReplyDeleteपाये लागु।
कुछ समय से व्यस्थता के कारण आपके दरबार मे हाजरी न लगा पाया।
आप कि माया का अन्त नही........चलो ताऊ जी होली खेलते है..............
इब लगता है होली शुरू हो गयी है ताओ
ReplyDeleteजोरदार कुंडालनियाँ बाँध दी दोनो गुरु भाई खेल रहे है मज़ा तो आवेगा ही
मैं तो इंतेज़ार कर रा हूँ होली वाले दिन के होगा
लगता है फगुनाहट जोर पर है और हमारे आंखों के आगे अभी मालगाड़ियों के काफिले ही चल रहे हैं।
ReplyDeleteक्या बतायें अपनी दशा!
होली है सब रंग चलेगा । एक पंथ दो काज ।
ReplyDeleteजब हम असफ़ल हो जाते हैं तो हमारे अपने ही हमको छोड देते हैं. हंसी-हंसी में काफी सही नसीहत दे दी ताऊ आपने.
ReplyDeleteसुना है ये दो सौवीं पोस्ट है..ताऊ घणी बधाई ले ले इत्ती स्पीड के लिए. जबरदस्त भई!!
ReplyDeleteवाह...ताऊ की चौपाल पर होली का धमाल अभी से...
ReplyDeleteकाका काकी कविता पढ़ायी, गधे की जान बचायी लेकिन क्या दो सौवीं पोस्ट की बात बतायी। दौ सौवीं पोस्ट और ५ हजार टिप्पणियों के लिये बहुत बहुत बधाई। आप यूँ ही दिनदुनी रात चौगुनी प्रगति करते रहें।
ReplyDeleteप्रिय ताऊ जी, सुना कि आप 200 पार कर गये!! (उमर नहीं!! आलेख! चिट्ठा-अलेख!!).
ReplyDeleteउमर की तो हम दुआ देते हैं कि आप शतायु हों, उससे अधिक नहीं!! उसके बाद तो आजकल के दवादारू बेकार हो जाते हैं.
सबसे पहले तो दो शतक के लिए मेरा हा.........र्दिक (!!!!!) अभिनंदन स्वीकार करें.
हां, आप के कारण बेचारे गधे की जान में जान आई. वह दुआएं देगा. (हम तो आपको रोज दुआएं देते हैं कि आप के आगमन से हिन्दीजगत में आमूल परिवर्तन हो गया है).
दिनेश जी गलत बोले कि "ताऊ हमेशा ही चार काम एक साथ करते हैं। दो नजर आने वाले और दो नजर नहीं आने वाले।"
दर असल ताऊ हमेशा ही छ: काम एक साथ करते हैं: ताऊ हमेशा ही चार काम एक साथ करते हैं। दो नजर आने वाले और दो नजर नहीं आने वाले, और दो समझ में नहीं आने वाले!!!
सस्नेह -- शास्त्री
ताऊ यह गधे वाली कहानी, बहुत ही अच्छी लगी, बहुत ही सुंदर शिक्षा मजाक मजाक मे दे दी...
ReplyDeleteवाकी ताऊ इन हास्य कवियो के पंगा मत लो, भाई यह तो तो तुम्हे खुटे से बांध कर बंधाई के पेसे भी आप से ले लेगे.
ओर इस २०० वी पोस्ट के लिये आप को ताई समेत बधाई.राम राम जी की
दुआ गधी की लेते रहना ताऊ जी।
ReplyDeleteप्यार गधे को करते रहना ताऊ जी।
प्रेरक घटना याद रहेगी,
मुझको जन्म-जिन्दगी भर।
इससे शिक्षा यह पाई है,
मूर्ख नही होते सब खर।।