प्यारे श्रोताओं, मैं रामप्यारे ताऊ तरही कम गरही सम्मेलन में आप सबका स्वागत करता हुं. ताऊ गरही मुशायरे में अभी तक आप महाकवि ताऊ जी महाराज, महान कवियित्री मिस समीरा टेढी, और आलराऊंडर श्री ललित शर्मा को सुन चुके हैं. और आज इस सम्मेलन में महान कविकार, अनेक विधाओं के ज्ञाता श्री विजयकुमार सप्पात्ति अपनी हास्य व्यंग की रचना प्रस्तुत कर रहे हैं.
और हमेशा की तरह आन लाईन कैट स्केनिंग का कार्यभार संभाल रही हैं मिस रामप्यारी. और अब मैं आमंत्रित करता हूं आज की रेवडी प्राप्त श्री विजयकुमार सप्पाति को...जोरदार स्वागत किजिये हमारे आज के महाकवि महाराज का... आईये विजय जी.... अपनी बिल्कुल ताजी और हास्य व्यंग की रचना से इस गरही सम्मेलन की गरिमा को साढे नौ चांद लगाकर हम सब को कृतार्थ किजिये..
कविराज श्री विजय सप्पाति के कविता पाठ पर डांस करता रामप्यारे, कैट स्केन करती हुई मिस. रामप्यारी
प्यारे श्रोताओं, आप सबको विजय सप्पाति की और से होली की भांग भरी नमस्कार, आज मैं आपको अपनी कविता "मेरी कविता की किताब" की दास्तान सुना रहा हूं, ध्यान से सुनिये और मटका भर कर होली युक्त टिप्पणी दिजिये.
नीरज जी से मेरी मुलाकात हुई ;
मन की पूरी बहुत बड़ी आस हुई !
उन्हें अपना समझकर उन्हें चाय पिलाई ;
दिल उनका जीतकर मैंने एक बात बतलाई !
नीरज जी , मुझे कविता की किताब छपवाना है
साहित्य की दुनिया में बड़ा नाम कमाना है
बहुत बड़ा कवि बनकर दिखलाना है
नीरज जी हंसकर बोले ,
और बोल कर गज़ब ढा दिया
मेरा छोटा सा दिल तोड़ दिया
कविता लिख लिख कर बोरा भर , बौरा गया है
तेरी किताब को कोई नहीं पढ़ेगा
उस पर घास रखकर गधे चरेंगे
और दाल रख कर लोग रोटी खाएँगे
सुनकर दिल मेरा भयभीत सा हुआ
मेरे भीतर का कवि व्यथित हुआ !!
फिर भी निडर हो मैंने किताब छपवाने की ठान ली
नीरज जी को अनसुना कर दिया ;
जाते जाते नीरज जी फिर बोल गए
कानों में नीम सा कुछ घोल गए
विजय, क्यों पगला गया है
और दिल की बात मान ली
बेटा ,दोबारा सोच ले
मेरी बात पर कान दे !
पर मैंने न कान, न नाक और न आंख दी
उनकी सलाह को आंख दिखा दी
एक कान से सुनी दूसरे से निकाल दी
मैं कहा , नीरज जी , बस अब देखिये क्या होता है
साहित्य की दुनिया में मेरा कैसा नाम होता है
घर आकर सारे रूपये लगाकर
मैंने मोटी सी किताब छपवाई
और अपने खर्चे पर दोस्तों को भिजवाई
और लोकार्पण की एक बड़ी पार्टी रखवाई
ये बात अलग है कि इस सारी प्रक्रिया में
बीबी ने मुझे डांट ही खिलाई
खाना तो छोड़िये चाय भी नहीं पिलाई
बहुत दिन बीत गए
कर्जा जिनसे लिया था
वो आने शुरू हो गए
मेरे नाम से गालियों के दौर शुरू हो गए
कविता की वाहवाही की कोई निशान नहीं था
साहित्य जगत में मेरे कोई नाम नहीं था
मैंने एक दिन फैसला किया
और दोस्तों के घर जाने का हौसला किया !!
एक दिन भरी बरसात में एक
दोस्त के घर गया और जो देखा
उसके बच्चे मेरी किताब के पेजों की
एक दूसरे पर हवाई जहाज़ बना कर उड़ा रहे है
देख कर ये सीन दिल मेरा टूट गया
उसे जी भर भर कोसा
नाव बना रहे हैं और
मैं उस दोस्त से रूठ गया !
और मेरी किताब को चबा रहा था !!
दूसरे दोस्त के घर गया
उसका छोटा बच्चा खडा था
तीसरे दोस्त के घर गया
वहां हाल और भी खराब थे
वे किताब को वो बेच कर छोले खा चुके थे !!!
घूमते घूमते रात हो गई
पेट में चूहे तांडव मचाने लगे
एक दोस्त के घर पहुंचा
वो बेचारा गरीब था
बरतनों से भी मरहूम था
मुझे बड़े प्यार से खिलाई
उसने मेरी ही किताब पर रख कर दाल रोटी ,
ऐसा कर के उसने मुझे बड़ी ठेस
पर पेट की आंतडि़यों को राहत पहुंचाई
वापिस आते हुए ठोकर लगी और मैं गिर पड़ा
मेरे पैर को मेरी किताब ने ही ठोका था
मुझे गिराने का मौका उसने नहीं चूका था
आँख खुली तो हॉस्पिटल नजर आया
मेरे उपर पड़ रही थी नीरज जी की छाया
गिरा और बेहोश हो गया मैं
नीरज जी हंसकर कहा
फिक्र मत करो , सब ठीक है
हॉस्पिटल का बिल कुछ ज्यादा आया था
तेरी मोटी किताबों को बेचकर चुकाया है
मैं फिर खुश हो गया
पर दोबारा से रो गया
जब मुझे बताया कि बिकी नहीं
मोटी थी, तुली हैं, तोलाराम कबाड़ी वाले ने खरीदी हैं
तभी बिल चुकाया है
हाय रे मेरी कविता की किताब
जिसने अस्पताल में भर्ती करवाया मुझे जनाब !!!
अब कभी भी अपनी कोई किताब नहीं छपवाऊंगा ,
ये बात अब समझ आ गयी है
अब आप भी इसे समझ ले , यही दुहाई है ......!!!!!
हमारे अगले रेवडी प्राप्त कवि हैं चच्चा रामपुरी चक्कू वाले यानि श्री अनुराग शर्मा (स्मार्ट इंडियन)
(अगले अंक में)
और हमेशा की तरह आन लाईन कैट स्केनिंग का कार्यभार संभाल रही हैं मिस रामप्यारी. और अब मैं आमंत्रित करता हूं आज की रेवडी प्राप्त श्री विजयकुमार सप्पाति को...जोरदार स्वागत किजिये हमारे आज के महाकवि महाराज का... आईये विजय जी.... अपनी बिल्कुल ताजी और हास्य व्यंग की रचना से इस गरही सम्मेलन की गरिमा को साढे नौ चांद लगाकर हम सब को कृतार्थ किजिये..
प्यारे श्रोताओं, आप सबको विजय सप्पाति की और से होली की भांग भरी नमस्कार, आज मैं आपको अपनी कविता "मेरी कविता की किताब" की दास्तान सुना रहा हूं, ध्यान से सुनिये और मटका भर कर होली युक्त टिप्पणी दिजिये.
नीरज जी से मेरी मुलाकात हुई ;
मन की पूरी बहुत बड़ी आस हुई !
उन्हें अपना समझकर उन्हें चाय पिलाई ;
दिल उनका जीतकर मैंने एक बात बतलाई !
नीरज जी , मुझे कविता की किताब छपवाना है
साहित्य की दुनिया में बड़ा नाम कमाना है
बहुत बड़ा कवि बनकर दिखलाना है
नीरज जी हंसकर बोले ,
और बोल कर गज़ब ढा दिया
मेरा छोटा सा दिल तोड़ दिया
कविता लिख लिख कर बोरा भर , बौरा गया है
तेरी किताब को कोई नहीं पढ़ेगा
उस पर घास रखकर गधे चरेंगे
और दाल रख कर लोग रोटी खाएँगे
सुनकर दिल मेरा भयभीत सा हुआ
मेरे भीतर का कवि व्यथित हुआ !!
फिर भी निडर हो मैंने किताब छपवाने की ठान ली
नीरज जी को अनसुना कर दिया ;
जाते जाते नीरज जी फिर बोल गए
कानों में नीम सा कुछ घोल गए
विजय, क्यों पगला गया है
और दिल की बात मान ली
बेटा ,दोबारा सोच ले
मेरी बात पर कान दे !
पर मैंने न कान, न नाक और न आंख दी
उनकी सलाह को आंख दिखा दी
एक कान से सुनी दूसरे से निकाल दी
मैं कहा , नीरज जी , बस अब देखिये क्या होता है
साहित्य की दुनिया में मेरा कैसा नाम होता है
घर आकर सारे रूपये लगाकर
मैंने मोटी सी किताब छपवाई
और अपने खर्चे पर दोस्तों को भिजवाई
और लोकार्पण की एक बड़ी पार्टी रखवाई
ये बात अलग है कि इस सारी प्रक्रिया में
बीबी ने मुझे डांट ही खिलाई
खाना तो छोड़िये चाय भी नहीं पिलाई
बहुत दिन बीत गए
कर्जा जिनसे लिया था
वो आने शुरू हो गए
मेरे नाम से गालियों के दौर शुरू हो गए
कविता की वाहवाही की कोई निशान नहीं था
साहित्य जगत में मेरे कोई नाम नहीं था
मैंने एक दिन फैसला किया
और दोस्तों के घर जाने का हौसला किया !!
एक दिन भरी बरसात में एक
दोस्त के घर गया और जो देखा
उसके बच्चे मेरी किताब के पेजों की
एक दूसरे पर हवाई जहाज़ बना कर उड़ा रहे है
देख कर ये सीन दिल मेरा टूट गया
उसे जी भर भर कोसा
नाव बना रहे हैं और
मैं उस दोस्त से रूठ गया !
और मेरी किताब को चबा रहा था !!
दूसरे दोस्त के घर गया
उसका छोटा बच्चा खडा था
तीसरे दोस्त के घर गया
वहां हाल और भी खराब थे
वे किताब को वो बेच कर छोले खा चुके थे !!!
घूमते घूमते रात हो गई
पेट में चूहे तांडव मचाने लगे
एक दोस्त के घर पहुंचा
वो बेचारा गरीब था
बरतनों से भी मरहूम था
मुझे बड़े प्यार से खिलाई
उसने मेरी ही किताब पर रख कर दाल रोटी ,
ऐसा कर के उसने मुझे बड़ी ठेस
पर पेट की आंतडि़यों को राहत पहुंचाई
वापिस आते हुए ठोकर लगी और मैं गिर पड़ा
मेरे पैर को मेरी किताब ने ही ठोका था
मुझे गिराने का मौका उसने नहीं चूका था
आँख खुली तो हॉस्पिटल नजर आया
मेरे उपर पड़ रही थी नीरज जी की छाया
गिरा और बेहोश हो गया मैं
नीरज जी हंसकर कहा
फिक्र मत करो , सब ठीक है
हॉस्पिटल का बिल कुछ ज्यादा आया था
तेरी मोटी किताबों को बेचकर चुकाया है
मैं फिर खुश हो गया
पर दोबारा से रो गया
जब मुझे बताया कि बिकी नहीं
मोटी थी, तुली हैं, तोलाराम कबाड़ी वाले ने खरीदी हैं
तभी बिल चुकाया है
हाय रे मेरी कविता की किताब
जिसने अस्पताल में भर्ती करवाया मुझे जनाब !!!
अब कभी भी अपनी कोई किताब नहीं छपवाऊंगा ,
ये बात अब समझ आ गयी है
अब आप भी इसे समझ ले , यही दुहाई है ......!!!!!
हमारे अगले रेवडी प्राप्त कवि हैं चच्चा रामपुरी चक्कू वाले यानि श्री अनुराग शर्मा (स्मार्ट इंडियन)
(अगले अंक में)
अब भी कोई किताब छपवाना चाहे तो उसकी मर्जी !:)
ReplyDeleteजय हो होली पर...श्री विजय सप्पत्ति जी की....
ReplyDeleteमजेदार
वाह वाह! कसम परबतिया भौजी की, बहुत सुंदर रचना है। सतपति अंटी हाथ में दु-दु मोबाईल धरे गजब ढा रही हैं।
ReplyDeleteताऊ वंदना के कुछ अंश
ताऊ चरण कमल रज नित श्रद्धा लेय लगाये
तिनके सकल काज सिद्ध ताऊ जी करे सहाय
जय हो ताऊ ज्ञान के आगर
सकल भुवन में तुम उजागर
ताऊ ब्लाग के तुम हो स्वामी
तुम्हारी पहेली सबने जानी
खेल खिलाओ तुम सतरंगी
चेलों की नहीं है तुम्हे तंगी
एक हाथ में लट्ठ विराजे
दुसर हाथ में माउस साजे
ब्लाग जगत है तेरा वन नंदन
उडन तश्तरी का है अभिनन्दन
बुद्धिवान तुम गुण की खान
भतीजों के तुम हो भगवान
तुम्हारा चरित हमारे मन बसिया
तुम हो हास्य व्यंग्य के रसिया
अपन रूप तुम केहू ना दिखावा
रामप्यारे को ही सम्मुख लावा
मुझ अपढ़ गंवार की विनती सुन लो त्रिपुरारी
थोड़ी किरपा मुझ पे हो,ध्यान धरो संगवारी
होली की रंगारंग शुभकामनायें आप सबको।
ReplyDeleteवाह आज तो विजय जी ने बड़ी लंबी कविता लिख छोड़ी है :)
ReplyDeleteमेरी तरफ से कीचड़ भरा एक गुब्बारा...छपाक।
ReplyDeleteकविता अच्छी है, और चांदों के काबिल भी. लेकिन यह साढ़े नौ चांदों का क्या राज है..
ReplyDeleteआदरणीय ताऊ जी राम राम
ReplyDeleteकेवल राम की तरफ से
आज की रचना एक दृष्टान्त लग रही है .. लेकिन भाव सम्प्रेषण बहुत सजगता से हुआ है ....बहुत उम्दा ...आपका आभार
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ...
ReplyDeleteब्लागराग : क्या मैं खुश हो सकता हूँ ?
होली का रंगारंग प्रोग्राम सपाति जी के साथ बहुत अच्छा लगा\ राम राम ताऊ होली की हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteतो होली धमाल छन रही है :))
ReplyDeleteशुभकामनायें
आदरणीय ताऊ जी को मेरा प्रणाम.
ReplyDeleteसंग सारे साथियो को भी मेरा आदर भरा प्रणाम.
दोस्तों आप सभी को सबसे पहले होली की रंगारंग शुभकामनाये .
दोस्तों, मुझे आपने इतना प्यार दिया उसके लिए मैं आप सभीको सलाम करता हूँ .
ये कविता मैंने श्री नीरज गोस्वामी जी और श्री अविनाश जी के आशीर्वाद के बाद लिख पाया हूँ. श्री अविनाश जी ने इसे final edit किया था.
आप सभी गुरुजनों का दिल से शुक्रिया , मैंने इसे कल और आज भी ऑडियो में रिकॉर्ड करने की कोशिश की थी , श्री गिरीश जी ने सुबह बहुत मेहनत की , लेकिन शायद कुछ त्रुटी रह रही है .. देखते है , शाम को अगर हुआ तो एक बार और कोशिश करूँगा .
मैं आशा करता हूँ की आप सभी का प्यार मुझे यूँ ही प्राप्त होंगा .
बहुत धन्यवाद.
ताऊ जी को एक बार फिर से स्पेशल शुक्रिया .
आपका
अपना
विजय
होली की हार्दिक शुभकामनाएँ..
ReplyDeleteविजय सप्पत्ति जी को
ReplyDeleteशानदार कविता पाठ के लिए बधाई.....
वाह वाह, क्या कविता सुनाई ताऊ ! :)
ReplyDelete@@हाय रे मेरी कविता की किताब
ReplyDeleteजिसने अस्पताल में भर्ती करवाया मुझे जनाब !!!
अब कभी भी अपनी कोई किताब नहीं छपवाऊंगा ,
ये बात अब समझ आ गयी है
अब आप भी इसे समझ ले , यही दुहाई है ......!!!!!..
सही बात आपने बतलाई--राम-राम.
काव्य पुस्तक प्रकाशन पर व्यंग अच्छा है ।
ReplyDeleteअब तो हम भी कभी नाम न लेंगे छपवाने का ।
अरे ताऊ क्यो इस उम्र मे हमारी नीयत खराब कर रहे हो... रोज नये नये पटाखे दिखा कर, आज पतली कमर के झटके दिला रहे हो:)
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचनापाठ!
ReplyDeleteहोली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
--
वतन में अमन की, जागर जगाने की जरूरत है,
जहाँ में प्यार का सागर, बहाने की जरूरत है।
मिलन मोहताज कब है, ईद, होली और क्रिसमस का-
दिलों में प्रीत की गागर, सजाने की जरूरत है।।
बहुत सुन्दर रचनापाठ!
ReplyDeleteहोली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
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वतन में अमन की, जागर जगाने की जरूरत है,
जहाँ में प्यार का सागर, बहाने की जरूरत है।
मिलन मोहताज कब है, ईद, होली और क्रिसमस का-
दिलों में प्रीत की गागर, सजाने की जरूरत है।।
बहुत सुन्दर रचनापाठ!
ReplyDeleteहोली की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
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वतन में अमन की, जागर जगाने की जरूरत है,
जहाँ में प्यार का सागर, बहाने की जरूरत है।
मिलन मोहताज कब है, ईद, होली और क्रिसमस का-
दिलों में प्रीत की गागर, सजाने की जरूरत है।।
विजय जी को सुंदर हास्य रचना के लिए बधाई.मेरी होली के शुभ अवसर पर सभी को हार्दिक शुभ कामनाएँ .
ReplyDelete