होली साल में एक बार ही आती है. इसके जाते ही "फ़िर वही रामदयाल और वही गधेडी" बचा रह जाता है. हमारे कहने का मतलब है कि होली पर्व भी जीवन का एक चक्र है. हमारे शास्त्रों में ध्यान की जो प्रक्रियाएं बताई गई है उसमे स्व से मिलन की एक प्रक्रिया स्थूल से सुक्ष्म की तरफ़ लौटना भी है. और अगर किसी ने इसका अभ्यास किया हो तो यह बडे काम की चीज है. शायद इस तथ्य को श्री राकेश कुमार जी ज्यादा अच्छे तरीके से समझा सकेंगे.
इसी प्रक्रिया के तहत अगर हम होली को साल के एक मास की बजाये मास में एक दिन पर ले आयें, फ़िर एक दिन यानि चौबीस घंटे में से एक घंटे पर ले आयें तो चमत्कार घटित हो सकता है. और रोज होली मनाई जा सकती है. जीवन की इतनी भागदौड और आपाधापी में हम तो एक दिन में ये एक घंटा आराम से निकाल लेते हैं और रोज होलियाना मूड में रहते हैं. भले ही इसकी कीमत हमें दो चार लठ्ठ खाकर चुकाना पडती है. और यूं भी श्री प्रवीण पाण्डेय ने घोषित कर ही दिया है कि पिटना भी भाग्य बढ़ाता है सो भाईयो आप भी राज भाटिया से लठ्ठ मंगाकर भौजाईयों को यानि अपनी अपनी लुगाईयों को पकडा दिजिये और रोज होली मना कर, उनसे पिट कर अपना भाग्य बढवाते रहिये. इसमें हर्ज भी क्या है? आपका भाग्य बढेगा, भौजाईयों का अहम संतुष्ट होगा कि सदियों से उन पर होते आये अत्याचार का बदला चुक रहा है और घर में शांति भी बनी रहेगी.
वैसे ये होली (हास्य) के किटाणु सभी के अंदर चौबीसों घंटे ही मौजूद रहते है पर कुछ सज्जन या दुर्जन लोग जबरदस्ती मुंह फ़ुलाकर ऊपर से गंभीरता का मुल्लम्मा चढा लेते हैं जैसे सारे दुनियां जहान को उन्हीं को चलाना है. हमारे बारे में भी लोग यहां वहां कहते फ़िरते हैं कि जब देखो...हा..हा..ठी..ठी..करता रहता है. जानवरों के साथ रहते रहते, ताई के लठ्ठों से पिट पिट कर, भाग्य बढवा कर ताऊ भी जानवर जैसा ही हो गया है. उसे शर्म भी नही आती.
पर भाईयों और भौजाईयो...कसम खुदा कि..हम इतने जंगली नही हैं. ये अलग बात है कि सुबह शाम लठ्ठ से पिट पिट कर हमारी बुद्धि कुछ कुंद और निर्मल जरूर हो गई है. होली की भांग कुछ ज्यादा चढ गई थी. ताई के लठ्ठों से भी नही उतरी. आराम से घर में पडे थे. पर रिश्तेदारी की एक उम्रदराज अम्मा जी काफ़ी लंबी बीमारी के बाद देवलोक गमन कर गई और उनकी शवयात्रा में जाना जरूरी था. सो चले गये. आप जानते ही हैं कि श्मसान में श्मसान वैराज्ञ तो हर किसी को व्यापत होता है फ़िर ताऊ क्या चीज है.
दाह संस्कार से वापसी में लौटते हुये :-
मेरे आगे आगे एक टिरिक का बच्चा (आटो) जा रिया था
पीछे पीछे मैं वैराज्ञ में डूबा श्मसान से वापस आ रिया था
ट्रक के बच्चे के पीछे लिखा था :-
कीचड से खेलोगे तो धोना भी पडेगा
करोगे अगर शादी तो रोना भी पडेगा
धतूरे के पेड़ से धतूरा ही मिलेगा
आम खाने को आम बोना भी पड़ेगा.
जो ढूंढते विकास परमाणुओं के खेल में
उन्हें जिन्दगी के नाम को खोना भी पडेगा
जो तानते रहें हैं जंगल कांक्रिट के उनको
भूकंप और सुनामी के साये में सोना भी पड़ेगा
समझायें चलो आज इन सिरफिरे आकाओं को
करनी का असर हर हाल में ढोना भी पड़ेगा
घर पहुंचते २ मन उदास होगया, मन में आया कि पता नही कब हमारा देश भी जापान हो जाये, क्योंकि हमने भी पूरा इंतजाम विनाश का कर रखा है सो क्यों ना इस क्षण भंगुर संसार में जब तक अपना जीवन है उसमे होली मनाते रहे?
इधर होली बीती थी कि ताई थोडी होलियाना मूड से बाहर निकली, घर बार की सुध आई, भैंसों को चारा पानी भी ठीक से नही दिया गया था सो उसने भैंसो को चारा पानी दिया. इधर हमारी भैंस (जिसने भागकर यमराज के झौठे से शादी करली थी) का केडा (भैंस का बच्चा) भी पूरी तरह होली के मूड मे था. अभी तक स्कूल की छुट्टियां थी और आज स्कूल भी खुल गये थे पर वो स्कूल जाने को तैयार नही हो रहा था. ताई ने उसको जैसे तैसे नहला धुलाकर स्कूल के लिये तैयार किया तो पसर गया कि स्कूल नही जाऊंगा. पर ताई के आगे उसकी एक नही चली, आखिर उसकी कंघा चोटी करके उसको स्कूल बस में बैठा ही दिया.
हमने नहा धोकर खा पीकर कुछ विश्राम किया और हल्की सी नींद लगी ही थी कि रामप्यारे आकर धमक गया और बोला - ताऊ, वो ब्लाग भौजी सुंदरी प्रतियोगिता के लिये बहुत सी उम्मीदवार ताऊ सीटी बीच पर पहुंच चुकी हैं और बिकनी व स्विंमिग शूट टेस्ट मैने ले कर नंबर दे दिये है. आगे अब रैंप पर परेड आप देख लो और नंबर दे दो फ़िर इस साल की ब्लाग भौजी सुंदरी - 2011 के नाम की घोषणा कर देते हैं. आप चलकर तैयारी भी देख लिजिये. सो हम रामप्यारे के साथ ताऊ सीटी में पहूंचे और सभी ब्लाग भौजियों से परिचय प्राप्त किया, उनमें राजीवा भौजी तो इतनी लंबी थी कि कैमरे के फ़्रेम में भी नही आरही थी. किसी तरह एडजस्ट करके रामप्यारे ने एक यादगार फ़ोटो लिया.
वहां ब्लाग भौजियों से परिचय प्राप्त करने के बाद हम लौटने लगे तो हमने एक कोने में दराल भौजी, सतीशा भौजी और रजिया भौजी को कुछ गुफ़्तगू करते पाया, हमें लगता है कि ये तीनों मिलकर ब्लाग भौजी सुंदरी एवार्ड - 2011 जीतने के लिये कुछ षडयंत्र कर रही हैं. अब आगे क्या हुआ? और कौन कौन सी ब्लाग भौजियां आई? रैंप पर किसका पल्लू खिसका? और मुद्दे की बात यह कि किसने जीता ब्लाग भौजी सुंदरी एवार्ड - 2011... ये सब अगले अंक में पढिये.
इसी प्रक्रिया के तहत अगर हम होली को साल के एक मास की बजाये मास में एक दिन पर ले आयें, फ़िर एक दिन यानि चौबीस घंटे में से एक घंटे पर ले आयें तो चमत्कार घटित हो सकता है. और रोज होली मनाई जा सकती है. जीवन की इतनी भागदौड और आपाधापी में हम तो एक दिन में ये एक घंटा आराम से निकाल लेते हैं और रोज होलियाना मूड में रहते हैं. भले ही इसकी कीमत हमें दो चार लठ्ठ खाकर चुकाना पडती है. और यूं भी श्री प्रवीण पाण्डेय ने घोषित कर ही दिया है कि पिटना भी भाग्य बढ़ाता है सो भाईयो आप भी राज भाटिया से लठ्ठ मंगाकर भौजाईयों को यानि अपनी अपनी लुगाईयों को पकडा दिजिये और रोज होली मना कर, उनसे पिट कर अपना भाग्य बढवाते रहिये. इसमें हर्ज भी क्या है? आपका भाग्य बढेगा, भौजाईयों का अहम संतुष्ट होगा कि सदियों से उन पर होते आये अत्याचार का बदला चुक रहा है और घर में शांति भी बनी रहेगी.
वैसे ये होली (हास्य) के किटाणु सभी के अंदर चौबीसों घंटे ही मौजूद रहते है पर कुछ सज्जन या दुर्जन लोग जबरदस्ती मुंह फ़ुलाकर ऊपर से गंभीरता का मुल्लम्मा चढा लेते हैं जैसे सारे दुनियां जहान को उन्हीं को चलाना है. हमारे बारे में भी लोग यहां वहां कहते फ़िरते हैं कि जब देखो...हा..हा..ठी..ठी..करता रहता है. जानवरों के साथ रहते रहते, ताई के लठ्ठों से पिट पिट कर, भाग्य बढवा कर ताऊ भी जानवर जैसा ही हो गया है. उसे शर्म भी नही आती.
पर भाईयों और भौजाईयो...कसम खुदा कि..हम इतने जंगली नही हैं. ये अलग बात है कि सुबह शाम लठ्ठ से पिट पिट कर हमारी बुद्धि कुछ कुंद और निर्मल जरूर हो गई है. होली की भांग कुछ ज्यादा चढ गई थी. ताई के लठ्ठों से भी नही उतरी. आराम से घर में पडे थे. पर रिश्तेदारी की एक उम्रदराज अम्मा जी काफ़ी लंबी बीमारी के बाद देवलोक गमन कर गई और उनकी शवयात्रा में जाना जरूरी था. सो चले गये. आप जानते ही हैं कि श्मसान में श्मसान वैराज्ञ तो हर किसी को व्यापत होता है फ़िर ताऊ क्या चीज है.
दाह संस्कार से वापसी में लौटते हुये :-
मेरे आगे आगे एक टिरिक का बच्चा (आटो) जा रिया था
पीछे पीछे मैं वैराज्ञ में डूबा श्मसान से वापस आ रिया था
ट्रक के बच्चे के पीछे लिखा था :-
कीचड से खेलोगे तो धोना भी पडेगा
करोगे अगर शादी तो रोना भी पडेगा
धतूरे के पेड़ से धतूरा ही मिलेगा
आम खाने को आम बोना भी पड़ेगा.
जो ढूंढते विकास परमाणुओं के खेल में
उन्हें जिन्दगी के नाम को खोना भी पडेगा
जो तानते रहें हैं जंगल कांक्रिट के उनको
भूकंप और सुनामी के साये में सोना भी पड़ेगा
समझायें चलो आज इन सिरफिरे आकाओं को
करनी का असर हर हाल में ढोना भी पड़ेगा
घर पहुंचते २ मन उदास होगया, मन में आया कि पता नही कब हमारा देश भी जापान हो जाये, क्योंकि हमने भी पूरा इंतजाम विनाश का कर रखा है सो क्यों ना इस क्षण भंगुर संसार में जब तक अपना जीवन है उसमे होली मनाते रहे?
भैस के केडे को कंघा चोटी करके स्कूल भेजने के लिये तैयार करती ताई
इधर होली बीती थी कि ताई थोडी होलियाना मूड से बाहर निकली, घर बार की सुध आई, भैंसों को चारा पानी भी ठीक से नही दिया गया था सो उसने भैंसो को चारा पानी दिया. इधर हमारी भैंस (जिसने भागकर यमराज के झौठे से शादी करली थी) का केडा (भैंस का बच्चा) भी पूरी तरह होली के मूड मे था. अभी तक स्कूल की छुट्टियां थी और आज स्कूल भी खुल गये थे पर वो स्कूल जाने को तैयार नही हो रहा था. ताई ने उसको जैसे तैसे नहला धुलाकर स्कूल के लिये तैयार किया तो पसर गया कि स्कूल नही जाऊंगा. पर ताई के आगे उसकी एक नही चली, आखिर उसकी कंघा चोटी करके उसको स्कूल बस में बैठा ही दिया.
"ब्लाग भौजी सुंदरी प्रतियोगिता" के लिये "ताऊ सीटी" पहूंच चुकी ब्लाग भौजियों का एक ग्रुप फ़ोटो
हमने नहा धोकर खा पीकर कुछ विश्राम किया और हल्की सी नींद लगी ही थी कि रामप्यारे आकर धमक गया और बोला - ताऊ, वो ब्लाग भौजी सुंदरी प्रतियोगिता के लिये बहुत सी उम्मीदवार ताऊ सीटी बीच पर पहुंच चुकी हैं और बिकनी व स्विंमिग शूट टेस्ट मैने ले कर नंबर दे दिये है. आगे अब रैंप पर परेड आप देख लो और नंबर दे दो फ़िर इस साल की ब्लाग भौजी सुंदरी - 2011 के नाम की घोषणा कर देते हैं. आप चलकर तैयारी भी देख लिजिये. सो हम रामप्यारे के साथ ताऊ सीटी में पहूंचे और सभी ब्लाग भौजियों से परिचय प्राप्त किया, उनमें राजीवा भौजी तो इतनी लंबी थी कि कैमरे के फ़्रेम में भी नही आरही थी. किसी तरह एडजस्ट करके रामप्यारे ने एक यादगार फ़ोटो लिया.
दराल भौजी, सतीशा भौजी और रजिया भौजी किसी षडयंत्र की जुगाड में
वहां ब्लाग भौजियों से परिचय प्राप्त करने के बाद हम लौटने लगे तो हमने एक कोने में दराल भौजी, सतीशा भौजी और रजिया भौजी को कुछ गुफ़्तगू करते पाया, हमें लगता है कि ये तीनों मिलकर ब्लाग भौजी सुंदरी एवार्ड - 2011 जीतने के लिये कुछ षडयंत्र कर रही हैं. अब आगे क्या हुआ? और कौन कौन सी ब्लाग भौजियां आई? रैंप पर किसका पल्लू खिसका? और मुद्दे की बात यह कि किसने जीता ब्लाग भौजी सुंदरी एवार्ड - 2011... ये सब अगले अंक में पढिये.
इतनी खूबसूरत भौजाईया आज से पहले एक साथ कभी कही नहीं देखी ...!
ReplyDeleteहा हा!! वाह रे भौजियाँ मगर इसका पॉड कास्ट कहाँ है....भौजियों को देखते ही आवज गुम गई क्या ताऊ की... :)
ReplyDeleteताऊ भौजाईयों की फ़ोटु तो कोनी दिख रही।
ReplyDeleteमन्ने देख के अंतर्ध्यान हो गयी के?
राम राम
ताऊ श्री आपके वैराग्य ने तो कमाल का दार्शनिक बना दिया आपको.
ReplyDeleteजो ढूंढते विकास परमाणुओं के खेल में
उन्हें जिन्दगी के नाम को खोना भी पडेगा
जो तानते रहें हैं जंगल कांक्रिट के उनको
भूकंप और सुनामी के साये में सोना भी पड़ेगा
तो यह बात है बाहर से कुछ और भीतर से कुछ और. सब ध्यान-योग का चमत्कार है,ताई श्री के लठ्ठों ने सही असर करना शुरू कर दिया है.
एक आध को छोड के बकिया सब भौजी को वैसलीन से मंजवाईये तो मुंह कान सब ...अरे मार मूंछ पंछ उग आया है ताऊ । इना ने स्क्रौच ब्राईट की घणी आवश्यकता से । लुगाईयां तो कमाल दीख री ताऊ
ReplyDeleteलगातार मजेदार, झन्नाटे दार पोस्ट झोंक रहे हो ताऊ!
ReplyDeleteट्रक के बच्चे को गोदी में क्यो नहीं उठा लिया बिचारा रो रहा था...!
इस बात को तो आज झूठी साबित कर दिये..
कि दूसरों की अक्ल की पोटलियाँ समेट कर आज कल ताऊ अक्ल का जागीरदार बना बैठा है...
...ताऊ जीना तो तुम्हीं जानते हो
मूड जितना भी खराब हो कुछ हंसी दे जाते हो।
होरी है।
ReplyDeleteहोली के पर्व की अशेष मंगल कामनाएं।
जानिए धर्म की क्रान्तिकारी व्याख्या।
अजय कुमार झा ने सही बात कही है ...अब इन मूंछ वालों को कोमलांगी बनवाओगे तो स्क्रोच बाईट से भी काम नहीं चलने वाला ! शुभकामनायें ताऊ !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भौजियाँ
ReplyDeleteमैं भी वोट करना चाहता हूँ sms किस नम्बर पर करना होगा
बढिया आयोजन है…………और ताऊ ही ऐसे आयोजन करवा सकते हैं………………तो जल्दी बताओ विजेता कौन है?
ReplyDelete:):) इतनी सारी भौजियाँ एक साथ ...कौन जीतेंगी यह पुरस्कार ..
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगी मुझे आपकी पोस्ट इसमें सिर्फ हसी मजाक ही नहीं
ReplyDeleteकिन्तु पाठकोंको विनोद के जरिये बहुत सारी जीवन
की सच्चाई से भी रूबरू कराती है आपकी पोस्ट
सचमुच काबिलेतारीफ है
ये गलत बात है प्रतियोगिता में मूंछो वाली भौजीय तो है किन्तु पूंछ वाली ताई नजर नहीं आ रही है अरे ताई भी कभी भौजी थी |
ReplyDeleteसभी भौजाईयां एक से बढ़ कर एक हैं...
ReplyDeleteस्पर्द्धा कड़ी है...
अकल ही काम नहीं कर रही है कि टरक के बच्चे का जीवनदर्शन ज्यादा बढिया रहा या ब्लाग भौजियों की फेशन परेड का जमावडा.
ReplyDeleteविजेता के परिणाम की प्रतिक्षा में. रंगपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं सहित...
धो भी रहे हैं, रो भी रहे हैं।
ReplyDeletetau....tera....jawaw nahi........
ReplyDeletebhoujaieeon ki to khair nahi........
ghani pranam.
हा हा हा ! बस घूंघट की कमी रह गई ताऊ । डाठे आली भी कोए कोन्या ।
ReplyDeleteदराल भौजी,को हमारी वोट जी, खुब जंच रही हे, रचना ओर कविता भी बहुत सुंदर लगी..राम राम
ReplyDeleteधतूरे के पेड़ से धतूरा ही मिलेगा
ReplyDeleteआम खाने को आम बोना भी पड़ेगा.
bahut khoob!
jabardast raha!!
भौजाईयां एक से बढ़ कर एक हैं
ReplyDeleteधन बरसे मैली चदरिया रे धन बरसे
ReplyDeleteधन बरसे मैली चदरिया रे धन बरसे
वाह ताउजी!...पिच्कारियों से रंग की बजाए धन की धार निकलनी शुरु हो जाती है तो हम भी भोजाइयों के संग रोज होली खेलेंगे!..ऐसी होली की बहुतेरी बधाई!
ha ha a ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha h ha ha ha ha
ReplyDeleteregards