प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम ! हम आपकी सेवा में हाजिर हैं ताऊ पहेली अंक - 117 का जवाब लेकर. कल की ताऊ पहेली का सही जवाब है भंगी दरवाजा, Bhangi Gate, Mandav (M.P.)
पहेली के विषय से संबंधित थोडी सी जानकारी मिस. रामप्यारी आपको दे रही है.
विंध्याचल की पहाडियों में 2000 फुट की ऊंचाई पर मालवा के पठार पर स्थित मांडव गढ मुख्य रूप से चार वंशों के शासन का गवाह रहा है - परमार काल, सुल्तान काल, मुगल काल और पॅवार काल. यहां के निर्माण अफगान वास्तुकला के श्रेष्ठतम उदाहरण है. यहां का वर्षाकालीन सौंदय इतना आनंद दायी होता है जिसके लिये बादशाह जहांगीर ने कहा है " मैं ऐसी कोई जगह नही जानता जिसका वर्षाकालीन वातावरण, और दृष्यावली मांडव जितनी सौंदर्यमयी हो. मांडव को मालवा का काश्मीर भी कहा जाता है. जहांगीर को मांडव की रातें बेहद पसंद थी और वो अनेकों बार यहां आया था. सन १६१७ में जहांगीर अपनी बेगम नूरजहां के साथ यहां आया था जहां नूरजहां ने एक लडकी को जन्म दिया था.
भंगी दरवाजा प्रवेश के पूर्व, मांडव
४५ किलोमीटर की दिवारों के घेरे मे घिरे मांडव में कुल १२ दरवाजे हैं. मांडव प्रवेश के लिये इन दरवाजों से होकर गुजरना पडता है. दिल्ली दरवाजा, रामपोल दरवाजा, तारापुर दरवाजा, जहांगीर दरवाजा, कमानी दरवाजा, आलमगीर दरवाजा, भंगी दरवाजा इत्यादि हैं. आलमगीर दरवाजा पार करते ही अगला दरवाजा भंगी दरवाजा पार करना पडता है. इस दरवाजे को पार करते ही मांडव गढ की हरी भरी वादियों से गुजरते हुये यहां की मनोरम दृष्यावली मन मोह लेती है.
वर्तमान में भंगी दरवाजा, छत गिर चुकी है.
भंगी दरवाजा पहले कभी पूर्ण दरवाजा था पर वर्तमान में इसकी छ्त गिर चुकी है. यहां पर तीव्र घुमावदार सडक से होकर गुजरना पडता है, जिसकी वजह से यहां अभी सिगनल लाईट लगा दी गई है. एक शिलालेख भी यहां लगा हुआ है.
दरवाजे में प्रवेश द्वार पर लगा शिला लेख
शाहजहां १६१७ एवम १६२१ में माण्डव आया था. वो होशंगशाह के मकबरे से अत्यंत प्रभावित था. एक बार तो वो अपने वास्तुकार हामिद के साथ इस मकबरे की निर्माण शैली को समझने के लिये मांडव आया था एवम यहीं पर ताजमहल बनाने का विचार परिपूर्ण हुआ.
होशंगशाह का मकबरा, मांडव
सफेद संगमरमर से बने होशंगशाह के मकबरे ने शाहजहां को बहुत आकर्षित किया. यहां मकबरे के नीचे कब्र पर एक- एक बूंद पानी जिस प्रकार गिरता है, उसकी भी नकल ताजमहल के निर्माण में की गई. शाहजहां के मुख्य वास्तुकार हामिद ने होशंगशाह के मकबरे के मुख्य द्वार पर एक शिलालेख लगवाया था जिससे आज भी यह मालूम पडता है कि ताजमहल निर्माण की प्रेरणा हुंमायू के मकबरे से नही मिली थी बल्कि ताजमहल का प्रेरणा श्रोत माण्डू स्थित होशंगशाह का मकबरा था.
आईये अब मिलते हैं आज के विजेताओं से :-
आज के प्रथम विजेता हैं "श्री दिलीप कवठेकर"
प्रथम विजेता श्री दिलीप कवठेकर अंक 101
आईये अब बाकी विजेताओं से आपको मिलवाती हूं.
श्री उडनतश्तरी
श्री दीपक तिवारी साहब
अब उनसे रूबरू करवाती हुं जिन्होनें इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह वर्धन किया
श्री ललित शर्मा
डाँ. मनोज मिश्र
श्री काजल कुमार
श्री सुशील बाकलीवाल
श्री अनिल पूसदकर
श्री विजय कुमार सप्पात्ति
श्री अंतर सोहिल
सुश्री वंदना
सुश्री मनप्रीत कौर
श्री राज भाटिया
श्री देवेंद्र पाण्डेय
श्री पी.सी.गोदियाल ’परचेत’
डाँ. अरूणा कपूर
श्री राकेश कुमार
श्री दिगंबर नासवा
डाँ.रूपचंद्र शाश्त्री
डाँ. टी.एस. दराल
श्री केवलराम
सुश्री अंजू
मग्गाबाबा का चिठ्ठाश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग
ताऊजी डाट काम
रामप्यारे ट्वीट्स
पहेली के विषय से संबंधित थोडी सी जानकारी मिस. रामप्यारी आपको दे रही है.
विंध्याचल की पहाडियों में 2000 फुट की ऊंचाई पर मालवा के पठार पर स्थित मांडव गढ मुख्य रूप से चार वंशों के शासन का गवाह रहा है - परमार काल, सुल्तान काल, मुगल काल और पॅवार काल. यहां के निर्माण अफगान वास्तुकला के श्रेष्ठतम उदाहरण है. यहां का वर्षाकालीन सौंदय इतना आनंद दायी होता है जिसके लिये बादशाह जहांगीर ने कहा है " मैं ऐसी कोई जगह नही जानता जिसका वर्षाकालीन वातावरण, और दृष्यावली मांडव जितनी सौंदर्यमयी हो. मांडव को मालवा का काश्मीर भी कहा जाता है. जहांगीर को मांडव की रातें बेहद पसंद थी और वो अनेकों बार यहां आया था. सन १६१७ में जहांगीर अपनी बेगम नूरजहां के साथ यहां आया था जहां नूरजहां ने एक लडकी को जन्म दिया था.
४५ किलोमीटर की दिवारों के घेरे मे घिरे मांडव में कुल १२ दरवाजे हैं. मांडव प्रवेश के लिये इन दरवाजों से होकर गुजरना पडता है. दिल्ली दरवाजा, रामपोल दरवाजा, तारापुर दरवाजा, जहांगीर दरवाजा, कमानी दरवाजा, आलमगीर दरवाजा, भंगी दरवाजा इत्यादि हैं. आलमगीर दरवाजा पार करते ही अगला दरवाजा भंगी दरवाजा पार करना पडता है. इस दरवाजे को पार करते ही मांडव गढ की हरी भरी वादियों से गुजरते हुये यहां की मनोरम दृष्यावली मन मोह लेती है.
भंगी दरवाजा पहले कभी पूर्ण दरवाजा था पर वर्तमान में इसकी छ्त गिर चुकी है. यहां पर तीव्र घुमावदार सडक से होकर गुजरना पडता है, जिसकी वजह से यहां अभी सिगनल लाईट लगा दी गई है. एक शिलालेख भी यहां लगा हुआ है.
शाहजहां १६१७ एवम १६२१ में माण्डव आया था. वो होशंगशाह के मकबरे से अत्यंत प्रभावित था. एक बार तो वो अपने वास्तुकार हामिद के साथ इस मकबरे की निर्माण शैली को समझने के लिये मांडव आया था एवम यहीं पर ताजमहल बनाने का विचार परिपूर्ण हुआ.
सफेद संगमरमर से बने होशंगशाह के मकबरे ने शाहजहां को बहुत आकर्षित किया. यहां मकबरे के नीचे कब्र पर एक- एक बूंद पानी जिस प्रकार गिरता है, उसकी भी नकल ताजमहल के निर्माण में की गई. शाहजहां के मुख्य वास्तुकार हामिद ने होशंगशाह के मकबरे के मुख्य द्वार पर एक शिलालेख लगवाया था जिससे आज भी यह मालूम पडता है कि ताजमहल निर्माण की प्रेरणा हुंमायू के मकबरे से नही मिली थी बल्कि ताजमहल का प्रेरणा श्रोत माण्डू स्थित होशंगशाह का मकबरा था.
आईये अब मिलते हैं आज के विजेताओं से :-
आईये अब बाकी विजेताओं से आपको मिलवाती हूं.
श्री उडनतश्तरी
श्री दीपक तिवारी साहब
अब उनसे रूबरू करवाती हुं जिन्होनें इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह वर्धन किया
श्री ललित शर्मा
डाँ. मनोज मिश्र
श्री काजल कुमार
श्री सुशील बाकलीवाल
श्री अनिल पूसदकर
श्री विजय कुमार सप्पात्ति
श्री अंतर सोहिल
सुश्री वंदना
सुश्री मनप्रीत कौर
श्री राज भाटिया
श्री देवेंद्र पाण्डेय
श्री पी.सी.गोदियाल ’परचेत’
डाँ. अरूणा कपूर
श्री राकेश कुमार
श्री दिगंबर नासवा
डाँ.रूपचंद्र शाश्त्री
डाँ. टी.एस. दराल
श्री केवलराम
सुश्री अंजू
सभी प्रतिभागियों का हार्दिक आभार प्रकट करते हुये रामप्यारी अब आपसे विदा चाहेगी. अगली पहेली के जवाब की पोस्ट में मंगलवार सुबह 4:44 AM पर आपसे फ़िर मुलाकात के वादे के साथ, तब तक के लिये जयराम जी की.
ताऊ पहेली के इस अंक का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और रामप्यारी ने किया. अगली पहेली मे अगले शनिवार 1:00 AM से 11:00 PM के मध्य कभी भी आपसे फ़िर मुलाकात होगी तब तक के लिये नमस्कार.
मग्गाबाबा का चिठ्ठाश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग
ताऊजी डाट काम
रामप्यारे ट्वीट्स
दिलीप कठवेकर सहित सभी प्रतिभागियों को बधाई!
ReplyDeleteदिलीप भाई को बहुत बधाई...अन्य सभी के लिए शुभकामनाएँ.
ReplyDeleteविजेताओं को बधाईयाँ।
ReplyDeleteश्री दिलीप जी को बहुत-बहुत बधाई...
ReplyDeleteशेष प्रतिभागियों के लिये हार्दिक शुभकामनाएँ...
दिलीप कठवेकर सहित सभी को बधाई ...
ReplyDeleteदिलीप कठवेकर सहित सभी प्रतिभागियों को बधाई!
ReplyDeleteपहेली के बहाने तोड़ की जानकारी ।
ReplyDeleteराम राम !
भंगी लिखा था हम तो वानी पढ़के तुक भिड़ा रहे थे। दिलीप जी को बहुत बधाई।
ReplyDeleteबहुत बहुत बधाईयां श्री दिलीप जी को और आपको.
ReplyDeleteउम्दा जानकारी देने के लिए भी धन्यवाद.
दिलीप कवठेकर जी को हार्दिक बधाई।
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