| प्रिय भाईयो, बहणों और बेटियों, सबनै शनीवार सबेरे की घणी रामराम. शनीचरी पहेली न.७ मे आपका हार्दिक स्वागत है. संपादक मण्डल ने कुछ मित्रों की सलाह पर यह तय किया है कि ताऊ पहेली के प्रथम विजेता के बारे मे कुछ जानकारी और विजेता के आशिर्वचन इस अंक से हम प्रकाशित करेंगे. जैसे अंक ६ की प्रथम विजेता सु.सीमाजी के बारे मे हम इस अंक ७ की पहेली प्रकाशन मे बता रहे हैं. और अंक ७ के प्रथम विजेता का साक्षात्कार अंक ८ मे प्रकाशित करेंगे. हमारे पुर्व के ५ अंको के विजेताओं के बारे मे हम आपको बतायेंगे "ताऊ साप्ताहिक पत्रिका" के अंको मे. यानि रिज्ल्ट के साथ. हमने हमारे सभी सम्मानित विजेताओं से सम्पर्क करने की कोशीश की, पर माननिय विजेताओं की कुछ व्यस्तता की वजह से उनका साक्षात्कार हमारे संवाद दाता नही ले पाये. कुछ ने हमे मेल करके सूचित किया है कि वो अति शीघ्र हमको इंटर्व्यु के लिये समय देंगे. इसी बीच हमारे पहेली अंक -३ के प्रथम विजेता श्री विवेक सिंह जी ने अपने व्यस्त समय मे से समय निकाल कर अपना साक्षात्कार हमे दे दिया है जो हम सोमवार यानि २ फ़रवरी २००९ के ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के अंक ७ मे प्रकाशित करेंगे. |
एक मुलाकात सुश्री सीमा गुप्ता जी से:-
हमने सु. सीमाजी से मुलाकात की . जैसा कि आप जानते हैं वाणिज्य में परास्नातक सीमा गुप्ता नव शिखा पोली पैक इंडस्ट्रीज, गुड़गाँव में महाप्रबंधक की हैसियत से काम कर रही हैं और साथ ही दो प्यारे से बच्चों की मां भी हैं. जाहिर है उनके पास समय की काफ़ी कमी है. उन्होने अपने व्यवसाय और घर को बहुत व्यवस्थित तरिके से सम्भाल रखा है. आज ब्लाग जगत मे उनके नाम से सभी वाकिफ़ हैं. पत्र पत्रिकाओं मे भी उनकी रचनाए छपती रहती हैं.
और सबसे खास बात कि उनकी शायरी, मृदुल स्वभाव और खुसमिजाजी के चलते आज वो ब्लाग जगत मे अति लोकप्रिय हैं.
साहित्य से अलग इनकी दो पुस्तकें 'गाइड लाइन्स इंटरनल ऑडटिंग फॉर क्वालिटी सिस्टम' और 'गाइड लाइन्स फॉर क्वालिटी सिस्टम एण्ड मैनेज़मेंट रीप्रीजेंटेटीव' प्रकाशित हो चुकी हैं।
वो हमको उतनी ही खुशमिजाज और शालीन महिला लगी, जैसी वो अपनी टिपणियों मे लगती हैं. उन्होने हमें कहीं से भी यह एहसास नही होने दिया कि उनके पास ज्यादा समय नही हैं. और ना सिर्फ़ उन्होने हमें साक्षात्कार के लिये समय दिया बल्कि शानदार लंच भी कराया. बहुत धन्यवाद सीमा जी.
तो आइये आपको रुबरु करवाते हैं हमारी ताऊ पहेली - ६ की सम्माननिय विजेता सु. सीमा गुप्ता से.
तालियां........तालिया.......तालियां!!!
सवाल - कविता का शौक आपको कब से है?
जवाब : " सच कहूँ तो याद नही कब और कैसे कविता लिखने की प्रेरणा मिली.....चोथी कक्षा में पहली कविता लिखी थी "लहरों की भाषा" जिसे बहुत सराहा गया था उसके बाद स्कूल लाइफ मे कुछ प्रतियोगिताओं के लिए छोटी मोटी कविता लिखती रही...
सवाल : हमारे पाठकों को थोडा अपने कैरियर के बारे बतायें तो बहुत अच्छा लगेगा.
उत्तर : मैने जीवन को हमेशा ही सकारात्मक रुप में लिया. बल्कि कहें तो " जीवन से मुझे बहुत प्यार रहा और कुछ कर गुजरने की प्रबल इच्छा के साथ जीवन के कुछ आरम्भिक वर्ष बहुत संघर्ष पूर्ण रहे परिवारिक जिम्मेदारी , पढाई , नौकरी, बच्चे ... और कुछ बंनने की आकांक्षा के बीच काफी मानसिक तनाव से गुजर होता रहा ....परिवार और अपने कैरियर के बीच BALANCE बनाने के लिए अपनी पढाई के साथ नाइंसाफी करनी पडी.
बहुत इच्छा थी की business management में P.H.D कर पाती मगर हालत के आगे नही कर सकी... ऐसे ही संघर्ष के दौरान कविता लिखने का शौक ज्यादा व्यग्र हो गया और ऐसे शब्दों ने जन्म लिया जो ज्यादा दुःख और पीडा को प्रदर्शित करते रहे...."
सवाल :- जी हमने सुना है कि आपने कुछ किताबे भी लिखी हैं?
जी आपने ठीक सुना है. असल मे और पढने की अदम्य इच्छाशक्ति को मैने लेखन मे पूरा करने की कोशीश की. और "QUALITY SYSTEM," पर दो किताबे प्रकाशित हुई उनसे ही संतुष्ट होना पडा. ...इन पुस्तकों ने नाम और यश को बुलंदियों तक पहुंचा दिया भारत की बहुत सी बडी उत्पादक कंपनियों ने इन पुस्तकों को अपने पुस्तकालय और गुणवत्ता सुधार के लिए इस्तमाल किया.....
सवाल :- इन किताबों के बारे मे कुछ हमारे पाठकों को विस्तार से बताये तो हमारे पाठक भी लाभान्वित हो सकेंगे.
जवाब :- देखिये, ये अपने विषय की बहुत ही उत्कृष्ट किताबें हैं. इस विषय से संबधित लोग इनको पढ कर लाभान्वित हो सकते हैं. वैसे इ हमारे आदरणीय लाल स्वेटर वाले फुरसतिया जी हैं ना उन्होंने भी इन पुस्तकों को पढा है ...तो हमसे ज्यादा शायद वो इस बारे मे कुछ कह पाएंगे...तो फुरसतिया जी आप का कहेंगे इस बारे मे हा हा हा हा हा ...
[ हमारी भी जिज्ञासा इन किताबों मे हो उठी तो हमने वहीं से फ़ुरसतिया जी को फ़ोन लगा कर पूछ डाला तो फ़ुरसतिया जी ने कहा कि-
सीमाजी ने बहुत ही सहज सरल भाषा में आई.एस.ओ.-9000 सीरीज के बारे में किताब में बताया है। आई.एस.ओ. में किस नियम का क्या मतलब है और कैसे आडिट करना/कराना चाहिये इसकी जानकारी बहुत अच्छी तरह से दी गयी है।
इसके बाद हमने फ़ुरसतिया जी से पूछा कि आपने तो इन किताबों को पढा है, कोई और विशेषता बताईये इन किताबों की ?
इस बात पर फ़ुरसतिया जी ने कहा कि ताऊ, सीमा जी से मजाक की अनुमति लेते हुये कहना चाहूंगा कि उनकी किताब उनकी कविताओं से ज्यादा सरल है।]
हमने फ़ुरसतिया जी को धन्यवाद दिया और अपने इंटर्व्यु को आगे बढाया.
सवाल है : लोग आपको लेडी गालिब कहते हैं. कैसा लगता है आपको लेडी गालिब कहलाना?
जवाब : इस पर सीमाजी ने बडी विनम्रता पुर्वक कहा- मै तो सपने मे भी ऐसा नही सोच सकती.......इतनी महान हस्ती की पावँ की धूल बराबर भी नही हूँ मै....न ही इस जीवन में कभी हो पाउंगी....इतनी योग्यता और काबलियत नही है मुझमे ....ये मै जानती हूँ....."
सवाल -२ . आपकी रचनाओ मे दर्द ही क्युं झलकता है? कोई खास वजह?
उत्तर : हम्म, ताऊ जी आपका ये सवाल कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो गया है .....कहते हैं न हालत और experience इंसान को बहुत मजबूत बना देते हैं.......देखा जाए तो मेरी निजी जिन्दगी मे इन कविताओं से सम्बधित ऐसा तो कुछ भी नही है....भगवान की कृपा है ....फ़िर भी जिन्दगी मे बहुत बनते बिगड़ते टूटते रिश्तों को करीब से देखा है मैंने ....
और उसके दर्द को महसूस भी किया है...कुछ वर्ष (in-lawsके साथ )परिवार और कैरियर को संतुलन करने के दौरान रिश्तों की कड़वाहट को भी कुछ ज्यादा महसूस किया है मैंने .....और उस समय ने मुझे ये सोचने पर मजबूर किया की अगर दुःख है दर्द है आंसू भी जिन्दगी का एक हिस्सा है तो हम इससे दूर क्यूँ भाग रहे हैं.....खुशियाँ जब आएँगी तब आएँगी...जिसको देखो सब सिर्फ़ प्यार खुशी अपनापन ही चाहते हैं ....किसी को भी दुःख दर्द से प्यार नही आंसू से प्यार नही .....ये दर्द हमेशा अकेला ही रह जाता है हम इसको बस दुत्कार देते हैं .....जबकि यही हमारे साथ ज्यादा रहता है, और उस वक्त तो मुझे जरा जरा सी बता पर ही रोना आ जाता था हा हा हा हा हा ...और यही बात मेरे दिल मे बैठ गयी ....और ऐसी कविताओं ने जन्म लिया जो दर्द आंसू विरह विछोह तन्हाई रिश्तो की कड़वाहट से लबरेज रही...
सवाल :- पर आपकी रचनाएं दिल को छू जाती हैं पाठकों के?
उत्तर :- मुझे अपने आप को बहुत ज्यादा तो अभिव्यक्त करना नही आता बस इतना जानती हूँ " ना सुर है ना ताल है बस भाव हैं और जूनून है " लिखने का . और फ़िर आप सभी (ब्लागजगत ) के माननीय जनों के आशीर्वाद और प्रोत्साहन ने कुछ हट कर भी लिखने को प्रेरित किया जैसे " बंजारा मन" "मन की अभिलाषा " "खाबो के आँगन" "मायाजाल" "फ़िर उसी शाख पर", "शब्दों की वादियाँ" ये कुछ ऐसे रचनाएँ है जो दुःख दर्द से परे खुले आसमान मे उड़ते निश्च्छल बेपरवाह पक्षी के जैसी हैं....जिनका जन्म आप सब की प्रेरणा से ही हुआ....बस और क्या कहूँ...."
सवाल - . कोई ऐसा संदेश जो आप ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के पाठकों कहना चाहे?
उत्तर - " पहेलियों का सिलसिला खेल खेल मे यहाँ तक पहुंच जाएगा और ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के इस रूप मे अपना विस्तार करेगा ये शायद किसी ने नही सोचा होगा....इसमे कोई शक नही की ताऊ जी की अपनी एक अलग ही शैली है जो सबको लोटपोट कर देती है....और एक उत्सुकता बनाये रखती है की अब ताऊ जी के पिटारे मे से कौन सी गोटी निकलेगी हा हा हा हा हा हा हा .....
अपने देश मे कितने ही वनस्पति फल फ़ूल पक्षी जानवर एतिहासिक इमारते ,महल और ना जाने क्या क्या है जिनसे हम अंजान हैं......इन पहेलियों के जरिये जो मानसिक विकास और general knowledge बढ़ रही है उस विषय मे माननीय अरविन्द जी , राज भाटिया जी और ताऊ जी का सफल प्रयास एक बेहद प्रसंशनिय काम है ...
इनकी मेहनत और कोशिशों की वजह से घर बेठे हम ऐसी दुनिया से रूबरू हो रहे हैं जिसमे उत्सुकता है ज्ञान है. सबसे बडी बात ये है की पहेली के उतर खोजने से लेकर अन्तिम परिणाम तक जो वातावरण बना रहता है उसमे एक अजीब सा एहसास है...
हँसी मजाक, खिंचाई, सही उतर देने की होड़, और प्रथम आने की कशमकश ...ऐसा माहोल जो अपने परिवार मे उस वक्त होता है जब कोई पारिवारिक function होता है और सुब मिलजुल कर बैठते हैं....जो कभी कभी कभार ही होता है. मगर यहाँ तो ऐसा माहोल रोज ही मिलता है एक तनाव रहित माहोल....व्यक्तिगत रूप से सबको ना जानते हुए भी जो अपनापन स्नेह प्रोत्साहन मुझ यहाँ मिला है उसका अनुभव शायद निजी जिन्दगी मे मुझे नही मिला.
मुझे यहां पहेली हल करने मे ऐसा लगता है जैसे तनाव दूर होगया हो. हार जीत अलग बात है.
सवाल :- अपने ब्लाग जगत के भाई बहनों से कुछ कहना चाहेंगी?
उत्तर :- जी जरुर.....सभी आदरणीय व्यक्तियों ने मुझे यहाँ बहुत कुछ सिखाया है...और ऐसा लगता है की अगर मै इस परिवार से नही जुड़ती तो कितना कुछ खो देती....ब्लॉगजगत से जुड़ने के बाद जैसे मै अपना बचपन जी रही हूँ और मै ये सोचती हूँ क्या "दुनिया इतनी हंसीन भी होती है " जहाँ कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नही है......फ़िर भी एक दुसरे को प्रोत्साहन करने की हौसला देने की होड़ लगी रहती है.......अगर यही छोटी सी दुनिया इतनी खुशी से भरी है तो मुझे इसी परिवार के साथ इसी दुनिया मे रहना है और इस दुआ के साथ की ब्लागजगत का ये परिवार दिन बा दिन अपना विस्तार करता रहे और यूँही खुशियों के मोती बिखेरता रहे ......
अपने से बडो को आदर और छोटो को स्नेह के साथ मै अपना आभार व्यक्त करना चाहूंगी और ताऊ जी आपकी इस पत्रिका के जरिये मुझे जो मौका मिला है दो शब्द माननीय ब्लागरो के साथ बांटने का उसके लिए मै आपकी सदा आभारी रहूंगी....क्यूंकि कविता वो (भी दुःख भरी ) हा हा हा के इलावा कभी कुछ तो बांटा नही मैंने आप सब के साथ ....लकिन आज मै खुश हूँ....ये जान कर की मै कुछ दो शब्द ठीक ठाक भी कह सकती हूँ...पहेलियों के प्रति अपनी उत्सुकता और जिज्ञासा यूँ ही बनाये रखें .....और इसी जज्बे के साथ हिस्सा लेते रहें.....और इनके अथक और सराहनीय प्रयासों को बुलंदियों पर पहुँचाने में अपना योगदान दे ...With Regards
( यह with regards सु. सीमाजी के कहने पर हमने लगाया है कि उनके साक्षात्कार के अंत मे trade mark के रुप मे यह जरुर लगादें.:) सो हमने आप लोगो के लिये सु. सीमाजी की तरफ़ से यह सम्मानसूचक शब्द यहां लगा दिया है.जैसा उनकी टिपणियों के अंत मे लगा रहता है.)
सवाल :- आप पर भी शक किया जाता है कि आप भी ताऊ के नाम से लेखन करने वालों में हो सकती हैं? यानि ताऊ होने का शक.........
हमारी बात को बीच मे ही काट कर सीमाजी ने एक रहस्य पुर्ण मुस्कराहट के साथ कहा कि, ताऊ जी लंच का समय हो गया है, चलिये.
और हमारा यह प्रश्न उन्होने अनुतरित ही छोड दिया. इसका क्या मतलब हो सकता है? ? आप ही सोचिये.
हमारा सु,सीमा जी के साक्षात्कार के दौरान उनके साथ बिताये यादगार पलों को याद करते हुये उनसे विदा ली. उन्होने वादा किया कि जब भी वो अगली बार पहेली जीतेंगी तब एक लम्बे से साक्षात्कार के लिये समय निकालेंगी. और आपके लिये यह कविता उन्होने कही है.
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"तुम्हारा है " यह दर्द कसक दीवानापन ... यह दुनिया से उकताया हुआ मन... तनहाई में मचलना और तड़पन .......... सीने की दुखन आँखों की जलन , सब कुछ तो मेरे जीने का सहारा है ........ |
और विदा लेते समय सु. सीमाजी ने उनकी प्रकाशित किताबों का एक सेट हमें भेंट स्वरुप दिया. इस साक्षात्कार के लिये बहुत आभार आपका सीमा जी.
और अब परसों यानि सोमवार को हम आपको हमारे पहेली ३ के सम्मान्निय विजेता श्री विवेक सिंह जी से रुबरु करवायेंगे.
आपको यह साक्षात्कार कैसा लगा? कृपया अवश्य अवगत करायें. और अब आज की पहेली पर नीचे चलते हैं.
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ताऊ पहेली न.७ ये रही !!!
माननिय भाईयों , बहणों, भतीजे और भतीजियों ये नीचे देखिये और पहचानिये ये कौन सी जगह है ? तो जरा फ़टाफ़ट जवाब दिजिये और जीत लिजिये ये पहेली प्रतियोगिता, जिससे हम आपका इंटर्व्यु लेने तुरन्त आपके पास पहुंच सकें.
यह कौन सी जगह है?
बिल्कुल सीधी सी पहेली है अबकि बार. सारे नियम कायदे सब पहले की तरह ही हैं. बस आप तो फ़टाफ़ट जवाब देते जाईये. चाहे जितने जवाब दे कोई प्रतिबंध नही है. ध्यान रखिये आपका आखिरी जवाब पिछले जवाब को स्वत: ही केन्सिल कर देगा.


![रंजना [रंजू भाटिया]](https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjuT1w5_FKNmklv0nVEzv2Di8Q_3SLwGgTWm3UDmAODk_n8t5Kv-bJxOy7fEocwjAZy9ZieHBJ4hJUB-Qj5YHurywqIyV8xMVjF7Oywl1LxTjnbw2k2sNKxwxvMmd7giQgJDpGOeIy5m6b/s220/kerHSSw_-3_kkPlI-U4lMaZFGJ_ZmKWaGRg7oiEO__qm-oArXQpiBh9pkellIe3_.jpeg)



