ताऊ की शनीचरी पहेली - ७



प्रिय भाईयो, बहणों और बेटियों, सबनै शनीवार सबेरे की घणी रामराम. शनीचरी पहेली न.७ मे आपका हार्दिक स्वागत है. संपादक मण्डल ने कुछ मित्रों की सलाह पर यह तय किया है कि ताऊ पहेली के प्रथम विजेता के बारे मे कुछ जानकारी और विजेता के आशिर्वचन इस अंक से हम प्रकाशित करेंगे. जैसे अंक ६ की प्रथम विजेता सु.सीमाजी के बारे मे हम इस अंक ७ की पहेली प्रकाशन मे बता रहे हैं. और अंक ७ के प्रथम विजेता का साक्षात्कार अंक ८ मे प्रकाशित करेंगे.

हमारे पुर्व के ५ अंको के विजेताओं के बारे मे हम आपको बतायेंगे "ताऊ साप्ताहिक पत्रिका"  के अंको मे. यानि रिज्ल्ट के साथ. हमने हमारे सभी सम्मानित विजेताओं से
सम्पर्क करने की कोशीश की, पर माननिय विजेताओं की कुछ व्यस्तता की वजह से उनका साक्षात्कार हमारे संवाद दाता नही ले पाये. कुछ ने हमे मेल करके सूचित किया है कि वो अति शीघ्र हमको इंटर्व्यु के लिये समय देंगे.

इसी बीच हमारे पहेली अंक -३ के प्रथम विजेता श्री विवेक सिंह जी ने अपने व्यस्त समय मे से समय निकाल कर अपना साक्षात्कार हमे दे दिया है जो हम सोमवार यानि २ फ़रवरी २००९ के ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के अंक ७ मे प्रकाशित करेंगे.
    

 

एक मुलाकात सुश्री सीमा गुप्ता जी से:-

 

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हमने सु. सीमाजी से मुलाकात की . जैसा कि आप जानते हैं वाणिज्य में परास्नातक  सीमा गुप्ता नव शिखा पोली पैक इंडस्ट्रीज, गुड़गाँव में महाप्रबंधक की हैसियत से काम कर रही हैं और साथ ही दो प्यारे से बच्चों की मां भी हैं. जाहिर है उनके पास समय की काफ़ी कमी है. उन्होने अपने व्यवसाय और घर को बहुत व्यवस्थित तरिके से सम्भाल रखा है. आज ब्लाग जगत मे उनके नाम से सभी वाकिफ़ हैं. पत्र पत्रिकाओं मे भी उनकी रचनाए छपती रहती हैं.

 

 

 

 

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और सबसे खास बात कि उनकी शायरी,  मृदुल स्वभाव और खुसमिजाजी के चलते आज वो ब्लाग जगत मे अति  लोकप्रिय हैं.

 

साहित्य से अलग इनकी दो पुस्तकें 'गाइड लाइन्स  इंटरनल ऑडटिंग फॉर क्वालिटी सिस्टम' और 'गाइड लाइन्स फॉर क्वालिटी सिस्टम एण्ड मैनेज़मेंट रीप्रीजेंटेटीव' प्रकाशित हो चुकी हैं।

 

 

 

 

 

वो हमको उतनी ही खुशमिजाज और शालीन महिला लगी, जैसी वो अपनी टिपणियों  मे लगती हैं.  उन्होने हमें कहीं से भी यह एहसास नही होने दिया कि उनके पास ज्यादा समय नही हैं. और ना सिर्फ़ उन्होने हमें साक्षात्कार के लिये समय दिया बल्कि शानदार लंच भी कराया. बहुत धन्यवाद सीमा जी.

 

तो आइये आपको रुबरु करवाते हैं हमारी ताऊ पहेली - ६ की सम्माननिय विजेता सु. सीमा गुप्ता से.

 

तालियां........तालिया.......तालियां!!!

 

सवाल - कविता का शौक आपको कब से है?

 

जवाब : " सच कहूँ तो याद नही कब और कैसे कविता लिखने की प्रेरणा मिली.....चोथी कक्षा में पहली कविता लिखी थी "लहरों की भाषा" जिसे बहुत सराहा गया था उसके बाद स्कूल लाइफ मे कुछ प्रतियोगिताओं के लिए छोटी मोटी कविता लिखती रही...

 

सवाल : हमारे पाठकों को थोडा अपने कैरियर के बारे बतायें तो बहुत अच्छा लगेगा.

 

उत्तर : मैने जीवन को हमेशा ही सकारात्मक रुप में लिया. बल्कि कहें तो " जीवन से मुझे बहुत प्यार रहा और कुछ कर गुजरने की प्रबल इच्छा के साथ  जीवन के कुछ आरम्भिक वर्ष बहुत संघर्ष पूर्ण रहे परिवारिक जिम्मेदारी , पढाई , नौकरी, बच्चे ... और कुछ बंनने की आकांक्षा के बीच काफी मानसिक तनाव से गुजर होता रहा ....परिवार और अपने कैरियर के बीच BALANCE बनाने के लिए अपनी पढाई के साथ नाइंसाफी करनी पडी.

 

बहुत इच्छा थी की business management में  P.H.D कर पाती मगर हालत के आगे नही कर सकी... ऐसे ही संघर्ष  के  दौरान कविता लिखने का शौक ज्यादा व्यग्र हो गया और ऐसे शब्दों ने जन्म लिया जो ज्यादा दुःख और पीडा को प्रदर्शित करते रहे...."

 

सवाल :- जी हमने सुना है कि आपने कुछ किताबे भी लिखी हैं?

 

जी आपने ठीक सुना है. असल मे और पढने की अदम्य इच्छाशक्ति को मैने लेखन मे पूरा करने की कोशीश की.  और "QUALITY SYSTEM," पर दो किताबे प्रकाशित हुई उनसे ही संतुष्ट होना पडा. ...इन पुस्तकों ने नाम और यश को बुलंदियों तक पहुंचा दिया भारत की बहुत सी बडी उत्पादक कंपनियों ने इन पुस्तकों को अपने पुस्तकालय और गुणवत्ता सुधार के लिए इस्तमाल किया.....

 

सवाल :- इन किताबों के बारे मे कुछ हमारे पाठकों को विस्तार से बताये तो हमारे पाठक भी लाभान्वित हो सकेंगे.

 

जवाब :-  देखिये, ये अपने विषय की बहुत ही उत्कृष्ट  किताबें हैं. इस विषय से संबधित लोग इनको पढ कर लाभान्वित हो सकते हैं. वैसे  इ हमारे आदरणीय लाल स्वेटर वाले फुरसतिया जी हैं ना उन्होंने भी इन पुस्तकों को पढा है ...तो हमसे ज्यादा शायद वो इस बारे मे कुछ कह पाएंगे...तो फुरसतिया जी आप का कहेंगे इस बारे मे हा हा हा हा हा ...


[ हमारी भी जिज्ञासा इन किताबों मे हो उठी तो हमने वहीं से फ़ुरसतिया जी को फ़ोन लगा कर पूछ डाला तो फ़ुरसतिया जी ने कहा कि-

 

सीमाजी ने बहुत ही सहज सरल भाषा में आई.एस.ओ.-9000 सीरीज के बारे में किताब में बताया है। आई.एस.ओ. में किस नियम का क्या मतलब है और कैसे आडिट करना/कराना चाहिये इसकी जानकारी बहुत अच्छी तरह से दी गयी है।

 

इसके बाद हमने फ़ुरसतिया जी से पूछा कि आपने तो इन किताबों को पढा है, कोई और विशेषता बताईये इन किताबों की ?

 

इस बात पर फ़ुरसतिया जी ने कहा कि ताऊ, सीमा जी से मजाक की अनुमति लेते हुये कहना चाहूंगा कि उनकी किताब उनकी कविताओं से ज्यादा सरल है।]

 

हमने फ़ुरसतिया जी को धन्यवाद दिया और अपने इंटर्व्यु को आगे बढाया.

 

सवाल है  : लोग आपको लेडी गालिब कहते हैं. कैसा लगता है आपको लेडी गालिब कहलाना?


जवाब :  इस पर सीमाजी ने बडी विनम्रता पुर्वक कहा-   मै तो सपने मे भी ऐसा नही सोच सकती.......इतनी महान हस्ती की पावँ की धूल बराबर भी नही हूँ मै....न ही इस जीवन में कभी हो पाउंगी....इतनी योग्यता और काबलियत नही है मुझमे ....ये मै जानती हूँ....."

 

 

सवाल -२ . आपकी रचनाओ मे दर्द ही क्युं झलकता है? कोई खास वजह?

 

उत्तर :   हम्म, ताऊ जी आपका ये सवाल कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो गया है .....कहते हैं न हालत और experience  इंसान को बहुत मजबूत बना देते हैं.......देखा जाए तो मेरी निजी जिन्दगी मे इन कविताओं से सम्बधित ऐसा तो कुछ भी नही है....भगवान की कृपा है ....फ़िर भी जिन्दगी मे बहुत बनते बिगड़ते टूटते रिश्तों को करीब से देखा है मैंने ....

 

और उसके दर्द को महसूस भी किया है...कुछ वर्ष (in-lawsके साथ )परिवार और कैरियर को संतुलन करने के दौरान रिश्तों की कड़वाहट को भी कुछ ज्यादा  महसूस किया है मैंने .....और  उस समय ने मुझे ये सोचने पर मजबूर किया की अगर दुःख है दर्द है आंसू भी जिन्दगी का एक हिस्सा है तो हम इससे दूर क्यूँ भाग रहे हैं.....खुशियाँ जब आएँगी तब आएँगी...जिसको देखो सब सिर्फ़ प्यार खुशी अपनापन ही चाहते हैं ....किसी को भी दुःख दर्द से प्यार नही आंसू से प्यार नही .....ये दर्द हमेशा अकेला ही रह जाता है हम इसको बस दुत्कार देते हैं .....जबकि यही हमारे साथ ज्यादा रहता है, और उस वक्त तो मुझे जरा जरा सी बता पर ही रोना आ जाता था हा हा हा हा हा  ...और यही बात मेरे दिल मे बैठ  गयी  ....और ऐसी  कविताओं ने जन्म लिया जो दर्द आंसू  विरह विछोह तन्हाई रिश्तो की  कड़वाहट से लबरेज रही...

 

 

सवाल :- पर आपकी रचनाएं दिल को छू जाती हैं पाठकों के?

 

उत्तर :- मुझे अपने आप को बहुत ज्यादा तो अभिव्यक्त करना नही आता बस इतना जानती हूँ " ना सुर है ना ताल है बस भाव हैं और जूनून है " लिखने का . और फ़िर आप सभी (ब्लागजगत ) के  माननीय जनों के आशीर्वाद और प्रोत्साहन ने कुछ हट कर भी लिखने को प्रेरित किया जैसे " बंजारा मन" "मन की अभिलाषा " "खाबो के आँगन" "मायाजाल" "फ़िर उसी शाख पर", "शब्दों की वादियाँ" ये कुछ ऐसे रचनाएँ है जो दुःख दर्द से परे खुले आसमान मे उड़ते निश्च्छल बेपरवाह पक्षी के जैसी हैं....जिनका जन्म आप सब की प्रेरणा से ही हुआ....बस और क्या कहूँ...."

 

 

सवाल - . कोई ऐसा संदेश जो  आप ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के पाठकों कहना चाहे?

 

उत्तर - " पहेलियों का सिलसिला खेल खेल मे यहाँ तक पहुंच जाएगा और ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के  इस रूप मे अपना विस्तार करेगा ये शायद किसी ने नही सोचा होगा....इसमे कोई शक नही की ताऊ जी की अपनी एक अलग ही शैली है जो सबको लोटपोट कर देती है....और एक उत्सुकता बनाये रखती है की अब ताऊ जी के पिटारे मे से कौन सी गोटी निकलेगी हा हा हा हा हा हा हा ..... 

 

अपने देश मे कितने ही वनस्पति फल फ़ूल पक्षी जानवर एतिहासिक इमारते ,महल और ना जाने  क्या क्या है जिनसे हम अंजान हैं......इन पहेलियों के जरिये जो मानसिक विकास और general knowledge बढ़ रही है उस विषय मे माननीय अरविन्द जी , राज भाटिया जी और ताऊ जी का सफल प्रयास  एक बेहद प्रसंशनिय काम है ...

 

इनकी मेहनत और कोशिशों की वजह से घर  बेठे हम ऐसी दुनिया से रूबरू हो रहे हैं जिसमे उत्सुकता है ज्ञान है. सबसे बडी बात ये है की पहेली के उतर खोजने से लेकर अन्तिम परिणाम तक जो वातावरण बना रहता है उसमे एक अजीब सा एहसास है...

 

हँसी मजाक, खिंचाई, सही उतर देने की होड़, और प्रथम आने की कशमकश ...ऐसा माहोल जो अपने परिवार मे उस वक्त होता है जब कोई पारिवारिक function  होता है और सुब मिलजुल कर बैठते हैं....जो कभी कभी कभार  ही होता है. मगर यहाँ तो ऐसा माहोल रोज ही मिलता है एक तनाव रहित माहोल....व्यक्तिगत रूप से सबको  ना जानते हुए भी जो अपनापन स्नेह प्रोत्साहन मुझ यहाँ मिला है उसका अनुभव शायद निजी जिन्दगी मे मुझे नही मिला.

 

मुझे यहां पहेली हल करने मे ऐसा लगता है जैसे तनाव दूर होगया हो. हार जीत अलग बात है.

 

 

सवाल :- अपने ब्लाग जगत के भाई बहनों से कुछ कहना चाहेंगी?

 

उत्तर :- जी जरुर.....सभी आदरणीय व्यक्तियों ने मुझे यहाँ बहुत कुछ  सिखाया है...और ऐसा लगता है की अगर मै इस परिवार से नही जुड़ती तो कितना कुछ खो देती....ब्लॉगजगत  से जुड़ने के   बाद जैसे मै अपना बचपन जी रही हूँ और मै ये सोचती हूँ क्या "दुनिया इतनी हंसीन भी होती है " जहाँ कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नही है......फ़िर भी एक दुसरे को प्रोत्साहन करने की हौसला देने की होड़ लगी रहती है.......अगर यही छोटी सी दुनिया इतनी खुशी से भरी  है तो मुझे इसी परिवार के साथ इसी दुनिया मे रहना है और इस दुआ के साथ की ब्लागजगत का ये परिवार दिन बा दिन अपना विस्तार करता रहे और यूँही खुशियों के मोती बिखेरता रहे ......

 

अपने से बडो को आदर और छोटो को स्नेह के साथ मै अपना आभार व्यक्त करना चाहूंगी और ताऊ जी आपकी इस पत्रिका के जरिये  मुझे जो मौका मिला है दो शब्द माननीय ब्लागरो के साथ बांटने का उसके लिए मै आपकी सदा आभारी रहूंगी....क्यूंकि कविता वो (भी दुःख भरी ) हा हा हा के इलावा कभी कुछ तो बांटा नही मैंने आप सब के साथ ....लकिन आज मै खुश हूँ....ये  जान कर की मै कुछ दो शब्द ठीक ठाक  भी कह सकती हूँ...पहेलियों के प्रति अपनी उत्सुकता और जिज्ञासा यूँ ही बनाये रखें .....और इसी जज्बे के साथ हिस्सा लेते रहें.....और इनके अथक और सराहनीय प्रयासों को बुलंदियों पर पहुँचाने में अपना योगदान दे ...With Regards

 

( यह with regards सु. सीमाजी के कहने पर हमने लगाया है कि उनके साक्षात्कार के अंत मे trade mark के रुप मे यह जरुर लगादें.:)  सो हमने आप लोगो के लिये सु. सीमाजी की तरफ़ से यह सम्मानसूचक शब्द यहां लगा दिया है.जैसा उनकी टिपणियों के अंत मे लगा रहता है.)

 

 

सवाल :- आप पर भी शक किया जाता है कि आप भी ताऊ के नाम से लेखन करने वालों में हो सकती हैं? यानि ताऊ होने का शक.........

 

हमारी बात को बीच मे ही काट कर  सीमाजी ने एक रहस्य पुर्ण मुस्कराहट के साथ कहा कि, ताऊ जी लंच का समय हो गया है, चलिये.

 

और हमारा यह प्रश्न उन्होने अनुतरित ही छोड दिया. इसका क्या मतलब हो सकता है? ? आप ही सोचिये.

हमारा  सु,सीमा जी के साक्षात्कार के दौरान उनके साथ बिताये यादगार पलों को याद करते हुये उनसे विदा ली. उन्होने वादा किया कि जब भी वो अगली बार पहेली जीतेंगी तब एक लम्बे से साक्षात्कार के लिये समय निकालेंगी. और आपके लिये यह कविता उन्होने कही है.

 

 

  

 "तुम्हारा है "


     जो भी है वो तुम्हारा ...

     यह दर्द कसक दीवानापन ...
     यह रोज़ की बेचैनी उलझन ,

     यह दुनिया से उकताया हुआ मन...
     यह जागती आँखें रातों में,

     तनहाई में मचलना और तड़पन ..........
     ये आंसू और बेचैन सा तन ,

    सीने की दुखन आँखों की जलन ,
    विरह के गीत ग़ज़ल यह भजन,

    सब कुछ तो मेरे जीने का सहारा है ........
    जो भी है वो तुम्हारा है


-सीमा गुप्ता

   

 

और विदा लेते समय सु. सीमाजी ने उनकी प्रकाशित किताबों का एक सेट हमें भेंट स्वरुप दिया. इस साक्षात्कार के लिये बहुत आभार आपका सीमा जी.

 

और अब परसों यानि सोमवार को हम आपको हमारे पहेली ३ के  सम्मान्निय विजेता  श्री विवेक सिंह जी से रुबरु करवायेंगे.

 

 

आपको यह साक्षात्कार कैसा लगा? कृपया अवश्य अवगत करायें. और अब आज की पहेली पर नीचे चलते हैं. 

 

 

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                                      ताऊ पहेली न.७ ये रही !!!

 

माननिय भाईयों , बहणों, भतीजे और भतीजियों ये  नीचे देखिये और पहचानिये ये कौन सी जगह है ? तो जरा फ़टाफ़ट जवाब दिजिये और जीत लिजिये ये पहेली प्रतियोगिता, जिससे हम आपका इंटर्व्यु लेने तुरन्त आपके पास पहुंच सकें.

 

 

 

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                    यह कौन सी जगह  है?

 

 

बिल्कुल सीधी सी पहेली है अबकि बार. सारे नियम कायदे सब पहले की तरह ही हैं. बस आप तो फ़टाफ़ट जवाब देते जाईये. चाहे जितने जवाब दे कोई प्रतिबंध नही है. ध्यान रखिये आपका आखिरी जवाब पिछले जवाब को स्वत: ही केन्सिल कर देगा.

सैम और बीनू फ़िरंगी की पोस्ट

सैम और बीनू फ़िरंगी आज फ़िर ब्लाग-पोस्ट लिखने की जोगाड मे अखबारों का कचूमर निकाले जारहे हैं कि इतनी देर मे बीनू फ़िरंगी  की नजर एक समाचार पर पडी और वो फ़िर अपनी आदत मुताबिक चहक ऊठा. और बोला - अरे यार सैम भाई देखो यार,  देखो जरा... क्या मजेदार खबर है. कसम से मेरी तो हंसी ही नही रुक रही है.

 

सैम - अबे इतनी जोर से क्यों दांत फ़ाड रहा है? कहीं बाहर निकल कर गिर गये तो तेरी पोल पट्टी खुल जायेगी.

 

बीनू फ़िरंगी - अरे यार सैम भाई, तुम भी ना, हर समय टांग खींचते रहते हो? कभी तो समझ की बात किया करो.

 

सैम - अच्छा चल बता, क्या बात है.

 

बीनू फ़िरंगी - ये देखो, राजस्थान के सांपनाथ पार्टी के सी.एम. क्या कह रहे हैं?

 

सैम -  अबे सी.एम. हैं, और वो भी ५ साल बाद बने हैं दुबारा,  तो कुछ ना कुछ तो कहेंगे ही ना. अब क्या घोषणा कर दी इन कसोक बहलोत साहब ने?

 

बीनू फ़िरंगी - बहलोत साहब ने मंगलोर की घटना पर, .. वो क्या कहते हैं...हां प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुये कहा कि - मैं अब राज्य से "पब कल्चर"  ही खत्म कर दुंगा. हर गांव गली और और शहर कस्बे में बडी बडी शराब की दुकाने और साईन बोर्ड लगे हैं. कहीं २ तो स्कूल और धार्मिक स्थलों के पास ही खोल दी गई हैं.

 

सैम - तो इसमे दांत फ़ाडने वाली कौन सी बात है? बिना मतलब मेरा दिमाग हटा दिया ब्लाग पोस्ट लिखने से.... खैरी का खूंट  कहीं का... सैम ने आंखे तरेरते हुये कहा.

 

बीनू फ़िरंगी - अरे यार सैम भाई ..बस तुम्हारे अंदर वही ताऊ वाली आदत..दुसरों की पूरी सुनते नही हो और अपने मन से ही सब आईडिये लगा लेते हो? पूरी बात सुनो.

 

सैम - चल भाई तू भी सुना दे कि बहलोत साहब ने कौनसी नई रागनी गाई है?

 

बीनू फ़िरंगी - अरे सैम भाई ये तो तगडी रागनी है. बहलोत साहब कहते हैं कि ये शराब के पब कल्चर में,  सांपनाथों की रानी  सरकार ने ही युवकों को पीना सिखाया है और वो इसे खत्म कर देंगे.

 

सैम - अरे यार बीनू भाई. तुम भी इनको जानते नही हो. ये सब इन सांपनाथों और नागनाथों की नूरा कुश्ती है. इनके बाद जब रानी गद्दी नशीं हुई थी तब वो भी ऐसा ही कहती थी. चल ब्लाग पोस्ट की तैयारी कर.. इन बातों मे ज्यादा ध्यान मत दिया कर. हमारे पास वैसे ही दिमाग की कमी है.

 

बीनू फ़िरंगी - अरे सैम भाई ये खबर देखो. लिखा है कि  गधे गुलाब जामुन खा रहे हैं....

 

उसको बीच मे ही टोककर सैम बोला - अरे कूटांट..तेरे को सिवाय गुलाब जामुन और कुछ नही सूझता के? तेरे को मालूम है मुझे गुलाब जामुन बहुत पसंद हैं, और तू उनकी ही मेरे को याद दिला दिया कर हमेशा....साला उल्लू का प्यो कहीं का....

 

बीनू फ़िरंगी - इसमे मैने क्या गलत कह दिया यार...अब नाराज हो के गालियां क्यों दे रहा है?

 

सैम - अरे यार बीनू भाई. वो क्या है ना कि ..मुझे गुलाब जामुन खाने का बडा शौक है, पर आज तक मिले नही. सो सोचता हूं अबकी बार चुनाव लड ही लूं.

 

बीनू फ़िरंगी - अरे यार सैम भाई, अब चुनाव लड के गुलाब जामुन कैसे खाओगे? और कुत्तों को तो मिठाई खाने से ताऊ भी मना करता है.

 

सैम - अबे जब गधे गुलाब जामुन खा सकते हैं तो कुत्ते क्यों नही? अब तू देखता जा. मैं भी तुझे चुनाव लड कर और जीत कर दिखाता हूं.

 

 

 


इब खूंटे पै पढो :-

बात युद्ध के दिनो की है. अमेरिकी राष्ट्रपति रुजवेल्ट साहब को एक सभा मे भाषण करना था. और वहां पर आये अखबार के पत्रकारों को आशा के विपरीत राष्ट्रपति महोदय के बिल्कुल नजदीक बैठने की व्यवस्था की गई थी.

कार्यक्रम बिल्कुल शांतिपुर्ण ढंग से निपट गया और तब ताऊ ने अपने साथी पत्रकारों
से कहा - भाईयो और बहणों..आज तक हमको राष्ट्रपति महोदय के इतने नजदीक बैठने का सौभाग्य नही मिला और मैं इस सम्मान से गदगदायमान हूं. हमको जाकर राष्ट्रपति
महोदय के सचिव को धन्यवाद कहना चाहिये.

और सारे पत्रकार भाई ताऊ की अगुआई मे राष्ट्रपति महोदय के सचिव के पास गये.

ताऊ ने कहा - सचिव साहब, आपने महामहिम के इतना नजदीक बैठा कर हमको जो सम्मान दिया उसके लिये हम आपको धन्यवाद देते हैं और आभार व्यक्त करते हैं.

अब मुस्कुराते हुये सचिव महोदय बोले - ताऊ, इसमे धन्यवाद देने और आभार व्यक्त करने सरीखी कोई बात नहीं है.

दर असल आप लोगों को राष्ट्रपति महोदय के इर्द गिर्द इस तरह से बैठाया गया था कि दर्शकों मे से कोई राष्ट्रपति महोदय पर गोली चलाता तो वो गोली आप लोगो मे से ही किसी को लगती. 

 

 

 

 


एक जरुरी सूचना :-

कृपया ध्यान देवे, ताऊ की शनीचरी पहेली-७ कल शनीवार सूबह ७.०० AM पर पुर्व वत
प्रकाशित होगी. कल की पहेली के साथ हमारी पहेली - ६ की प्रथम विजेता सु सीमा गुप्ता जी का साक्षात्कार भी प्रकाशित होगा, पढना ना भुलियेगा.

पहेली से संबन्धित क्ल्यु अगर जरुरी हुआ तो ब्लाग के दाहिंने साईड मे प्रकाशित किया  जायेगा, जहां अभी एक महिला और बालक का चित्र लगा है.

गोटू सुनार चढा ताऊ के हत्थे

पिछली पोस्ट म्ह थम पढ राखे हो कि गोटू सुनार ताऊ को चूना लगा कर, राज भाटिया जी को भी दस लाख का चूना लगा गया. और ताऊ उसको ढुंढ्ता हुआ चांद पर जाकै यमराज तैं भी उलझ गया था. वहां से गोटू सुनार को ढुंढता २ वापस धरती पर उसी जगह आ गया जहां से गोटू गायब हुआ था.

 

अब ताऊ ने पूरे प्लान का नक्शा अपने दिमाग में बनाया और उस पर अमल करने के लिये जूतियों की महंगी दुकान पर पहुंच गया.

 

ताऊ ने अब एक जोडी बढिया चमडे की देशी  जूती खरीदी . और उस जगह से ऊंट के पांवो के निशान देखते हुये गोटू का पीछा करने लगा.

 

अब ताऊ ऐसे रास्ते पर पहुंच गया जहां से आजू बाजू मे घणी झाडियां थी. यानि आप सीधे तो देख सकते हो पर आजू बाजू देखना बडा मुश्किल. निर्जन रास्ता था.

 

CamelLoaded अब थोडी दूर पर ताऊ को दिखा कि गोटू आराम से चला जारहा है और ऊंट उसके आगे आगे चल रहा है. गोटू माल मिलने की खुशी मे बिल्कुल झूमता हुआ और रागनी गाते हुये चला जा रहा था.

 

अब आप तो जानते ही हैं कि ताऊ का दिमाग इन कामों मे कम्प्युटर से भी तेज चलने लगता है. सो ताऊ चुपचाप बगल की झाडियों से साईड म्ह निकल गया और तेजी से दोडते हुये गोटू के काफ़ी आगे जाकर बीच रास्ते मे एक जूती डाल दी. और साईड मे छुपकर गोटू का इन्तजार करने लगा.

 

गोटू सुनार ने शानदार जूती रास्ते मे पडी देखी तो उसने ऊठा कर उसे देखा और मन ही मन बोला - जूती तो घणी ही सौवणी (सुन्दर) सै, पर सै एक ही, अपणे किस काम की?

 

और जूती को वहीं रास्ते म्ह पटक कर आगे बढने लगा. इधर ताऊ उसको छुपकर देख ही रहा था. अब ताऊ ने साईड  से छुपते हुये और घणी जोर तैं दौड लगा दी और आगे जाकर दूसरी जूती भी रास्ते मे गिरा दी. और चुपचाप झाडियों मे  छुप कर बैठ गया.

 

अब जैसे ही गोटू सुनार आया और उसने वहां पडी हुई दुसरी जूती भी देखी. उसने उस जूती को ऊठाकर देखा और कुछ सोचने लगा. फ़िर उसको याद आया की अरे यह तो अभी एक दो किलोमीटर पीछे जो एक नई जूती पडी थी उसी की साथ वाली दुसरी जूती है.

 

गोटु ने मन ही मन सोचा कि - वाह यार, इतने दिन से चलते हुये जुतीयां भी फ़ट गई हैं और इतनी शानदार जूतीयां मुफ़्त मे मिल रही हैं. सो क्युं ना पीछे से वो पहली वाली जूती भी ऊठा लाऊं? यहां कौन आता है जंगल मे? तब तक ऊंट भी थोडा आराम कर लेगा.

 

और गोटू सुनार ने वहीं पर ऊंट को एक झाडी की मोटी सी टहनी से बांधा और खुद पीछे की तरफ़ लपका जूती लेने.

 

इब ताऊ की स्कीम सफ़ल हो चुकी थी. ताऊ ने फ़टाफ़ट ऊंट को टटोला, सेठ के यहां का सारा सोना चांदी और भाटीया जी के दस लाख सब कुछ ऊंट पर लदे हुये थे.

 

ताऊ ने फ़टाफ़ट ऊंट को खोला और उसको दौडाता हुआ खुद के घर आगया. घर आकर उसने सारे नोट , सोना, चांदी  यानि जो भी ठगी का माल था वो सबका सब घर.. आंगन..

रसोई घर कमरे आदि मे खोद खाद कर दबा दिया.

 

और ऊंट को दूर कहीं लेजाकर डंडे मार कर भगा कर घर आया और अपनी घरवाली से बोला - देख गोटु सुनार आयेगा जरुर और वो मेरे लिये पूछे तो बताना मत. सिर्फ़ यही कहना कि मैं तो कई दिन से बाहर गया हूं और कब लौटूंगा ये भी बता कर नही गया.

 

और मैं पास के ही बिना पानी वाले अंधे कुयें मे छुपा रहूंगा. तू चुपचाप आकर मुझे दोनो समय रोटी एक बाल्टी मे लटका कर देते रहना. जब ये सुनार थक कर चला जायेगा तब बाहर निकल आऊंगा.

 

ताई भी पक्की थी, बोली- जी थम धेला  माशा भी चिंता मतना करो. मैं सब समझ गई. और ताऊ वहां से जाकर कुये मे छुप गया.

 

 


इब खूंटे पै पढो :-

बात यो किम्मै घणी पुराणी सै, पर इब सुन ही ल्यो.

ताऊ को एक दिन उसके बाबू नै किम्मै घणा ही इनिशियल एडवांटेज देते हुये गालियां देणा शुरु कर दिया और बोला-  अरे कूंगर, बावलीबूच, तैं इतणा बड्डा होगया पहाड के बरगा और चार पिस्से भी कमांदा कोनी. इब के तेरे उपर बड पिपला उंगेंगे तब कमाकर ल्यावैगा?  और फ़िर से दो चार कान तलै बजाकै इनिशियल एडवांटेज दे दिया.

Rickshaw इब इतना ज्यादा इनिशियल एडवांटेज  ताऊ पचा नही पाया और  कुछ शर्म सी भी  आण लाग गी सो किम्मै छोह (गुस्सा) खाकै , घर छोडकै पास के ही शहर म्ह चल्या गया और वहां रिक्शा चलावण लाग ग्या.

एक दिन ताऊ खड्या खड्या बीडी फ़ुंकण लाग रया था . इतनी देर म्ह एक किम्मै
पढ्या लिख्या सा शहरी बाबू ताऊ क धौरै आकै बोल्या - अर छोरे , पुराणे गाडी अड्डे
जावैगा के?

ताऊ बोल्या - भई , जाऊंगा क्युं कोनी? इत के मैं मेरी ऐसी तैसी कराण धूप म्ह खड्या सूं?  पडल्यो थम तो रिक्शे म्ह.  थमनै भी पटक आऊंगा गाड्डी अड्डे पै.

शहरी बाबूजी : तो या बता किन्नै पिस्से लेवेगा गाडी अड्डे पहुंचाण के?

ताऊ : जी बाबूजी, उडै अड्डै पै पहुचाण के ले ल्युंगा १०० रुपये..५० रुपये...२५ रुपये, यानि तीन किराये सैं म्हारै धौरै.

शहरी बाबू किम्मै अचरज म्ह पड गया और बोल्या - तीन किराये? ये क्युं कर हुये भई? थारा रिक्शा सै कि रेलगाडी?

ताऊ बोल्या - बात या सै जी अक यदि थम १०० रुपये आले किराये म्ह चालोगे तो मैं सीट पै कपडा  मारकर घणी साफ़ सुथरी करके बैठाऊंगा और थमनै साहब जी..साहब जी..कहकै बुलाऊंगा और FM  रेडियो पै फ़िल्मी गाणा सुणाता हुआ ले चलुंगा. बिल्कुल राजधानी के वातानुकुलित प्रथम श्रेणी शयन यान की तरियां.

और यदि ५० रुपये  आले किराये मे चलोगे तो इनमे से कोई भी काम नही करुंगा..
सिर्फ़ नु कहूंगा..अरे पडले रिक्शा म्ह और तन्नै ले जाकै गाड्डी अड्डे पै पटक आऊंगा. रोहतक मेल की जनरल बोगी की तरियां.

अब शहरी बाबू ने पुछा - और यदि मैं २५ रुपये वाले किराये में जाना चाहूं तो?

इब ताऊ बोल्या - भाई तेरी मर्जी. इस किराये मे तो मैं पीछे बैठूंगा और तू रिक्शा 
खींच  कै गाड्डी अड्डै ले जावैगा. 

क्षणिकाएं

pyar-mohabbat     प्यार  मोहब्ब्त

    विवाह से पहले
    आर्ट
    विवाह के बाद
    कामर्स
    और बच्चों के बाद

    हिस्ट्री....
    समझ ना आए ऐसी है
    मिस्ट्री....


                "यादें"yade2

               उनकी याद 
               खामोशी को नही बहलाती
               उनकी याद
               जुदाई को नही सहलाती 
               उनकी याद

               भीड़ को बस तन्हा कर जाती हैं.

              bichhoh

                                    "बिछोह"

                                वो जब रुबरु थे
                                बात तक करने का
                                होश नही रहा
                                जब बिछुड गये
                                तो
                                नींद मे भी बुदबुदाया करते हैं

                                   ( रचना सुधार हेतु आभार : सुश्री सीमा गुप्ता जी )

"ताऊ" साप्ताहिक पत्रिका (अंक-६)

माननिय भाईयों, बहणों और बेटियो सबनै ताऊ की तरफ़ तैं २६ जनवरी गणतन्त्र दिवस की घणी बधाई और रामराम. ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के अंक ६ में आपका हार्दिक स्वागत है.
गणतन्त्र दिवस के बारे में आप खुद ही ताऊ से ज्यादा जानते हो, तो हम क्या बतायें?
वैसे बालकों के काम की बात यानि बताशे खाने बचाने की बात मुसाफ़िर जाट ने बिल्कुल सही बताई हैं.

आज के दिन हमे जो मौलिक अधिकार मिले, उसी की कृपा है कि आज हम ऐसी ऐसी बाते भी कर लेते हैं. शुक्र है इन्दिरा गांधी और आपातकाल नही है. :) वर्ना तो ....

पढिये अनूप शुक्ल "फ़ुरसतिया जी" की ये पोस्ट.

 

 

                                     प्रथम भाग पर्यटन खंड :- 

 

 

साप्ताहिक पत्रिका के इस खंड मे आपको पहेली-६ मे पूछे गये सवाल यनि रणथम्भोर दुर्ग की कुछ जानकारी देते हैं.

 

 

paheli-6r

 

 

आइये रणथम्भोर दुर्ग की कुछ तस्वीरे देखते हैं. इस तस्वीर मे आप साफ़ दुसरी पहाडी यानि रण नामक पहाडी देख पा रहे हैं और इस तस्वीर को पहेली मे लगाने के पीछे ये भी एक क्ल्यू था.

 

 

 

 

 

Ranthambore National Park - Ranthambore Fort main gate stairs with Jeep 3008x2000

 

 

इस तस्वीर मे आप जो कुआं देख रहे हैं उसके ठीक सामने रणथम्भोर पार्क मे एन्ट्री वाला गेट है. और किले मे चढने का गेट तो साफ़ दिखाई दे ही रहा है.

 

 

 

 

 

paheli6.6

 

 

 

 

 

 

दुर्ग मे चढते समय रास्ते मे पदने वाला एक और गेट.

 

 

 

 

 

 

 

 

paheli6-7

 

 

पहाडी की चोटी पर काफ़ी समतल मैदान है. जहां की सब महलों इत्यादि का निर्माण है. यहां पर लंगूर बडि संख्या मे पाये जाते हैं. नजर चूकते ही आपके हाथ का खाने पीने का सामान इनके हाथों मे हो सकता है. हमारे साथ दो बार ऐसा हो चुका है.

 

 

 

 

ganesh ji1

 

ये हैं इस दुर्ग पर बने त्रिनेत्र भगवान गणेश जी के मन्दिर की मुर्ती. जन जन की आस्था का ये प्रतीक हैं. निजी रुप से हमारे यहां इन भगवान गणेश जी को शादी ब्याह, होली दिवाली का सबसे पहला पत्र इनको ही लिखा जाता है. रोज तो जाना नही होता और जाकर भी बुढौती मे दुर्ग पर अब चढा नही जाता, सो दुख सुख की सब बाते हम तो एक पत्र लिख कर डाक मे डाल देते हैं.

 

अगर आपको भी श्रद्धा हो और गणेश जी को निमंत्रण देना हो तो पता बिल्कुल सीधा साधा है. श्री गणेश जी महाराज, पोस्ट - रणथम्भोर. यकिन किजिये इतने से पते से ही आपका पत्र इन विघ्न विनाशक तक पहुंच जायेगा. और पुजारी जी बाकायदा इनको पढ कर सुना भी देगा. कभी आप वहां जायें तो देखेंगे कि पुजारी जी बाकायदा इनको डाक से आये पत्र पढ कर सुना रहे हैं.

 

tigers

 

 

ये हैं रणथम्भोर पार्क के दो मतवाले टाईगर. हमको एक बार तो बहुत नजदीक से देखने का मौका मिला जब ये हमारी जीप के सामने ही आकर हमसे नाम पता पूछने लगे- कहां से और क्यों आये हो ताऊ? 

 

 

 

 

ranthambhor park sunset

 

 

पार्क के अंदर का ये सनसेट आपको बार बार इस पार्क मे आने का निमंत्रण सा देता लगता है. आप सब कुछ भूल कर इस प्रकृति के नजारे में खो से जाते हैं.

 

 

अगर मौका लगे तो आप भी एक बार अवश्य जाये> भाई आप तो यहीं रहते हो. पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिन्टन साहब तो यहां छुट्टियां बिता कर गये हैं. यकीन किजिये आपको यहां आकर बहुत मजा आयेगा.

 

 

 

delhi_agra_ranthambhor_jaipur_delhi

 

 

 

अब आपको यहां आना ही है तो ये नक्शा देख लिजिये. यहां रहने ठहरने के लिये हर स्तर के लाज, रिसोर्ट्स और होटल्स हैं. और नजदीकी रेल्वे स्टेशन है सवाई माधोपुर, और हवाई अड्डा है जयपुर.

 

हमारे वरिष्ठ मा. दिनेशराय जी द्विवेदी  तो इस जगह के बिल्कुल नजदीक ही विराजते हैं.

 

 

(यहां कुछ चित्र गूगल सर्च से लिये गये हैं, किसी को आपति हो तो हटा दिये जायेंगे)

 

                  द्वितिय भाग  - पहेली विजेता खंड :-

 

 

 

"ताऊ की शनीचरी पहेली-६": के कुल १८ सही जवाब मिले. पहेली शुरु मे लग रहा था कि काफ़ी मुश्किल हो रही है. पर उम्मीद के विपरीत काफ़ी सही जवाब आये. हमने शनीवार रात १२ बजे के बाद ही सही जवाब वाली टीपणियां पबलिश की. और डिटेल वाली टिपणीयां रविवार सुबह १० बजे बाद.  उसके बाद जो जवाब आये, उनकी कहानी खुद उन्ही की जबानी सुनेंगे.

 

 

आईये इस पहेली के सही विजेताओ से आपको मिलवाते हैं.

 

 

आज की प्रथम विजेता  seema gupta said...

मुझे तो ये रणथम्भोर फोर्ट लग रहा है......
Regards  - January 24, 2009 10:14 AM

 

घणी बधाई प्रथम स्थान के लिये. सर्वाधिक अंक प्रात किये १०१.

तालियां..... तालियां.....  तालियां..... जोरदार तालियां.....

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२.  Parul said...

ranthambore.fort  January 24, 2009 11:10 AM  अंक १००

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३.  शुभम आर्य said...

मिल गया जवाब, पहले वाला जवाब बदल दे |
यह तो रणथम्भोर का किला अर्थार्त Ranthambhor फोर्ट है |
जो सवाई माधोपुर शहर , राजस्थान में है |

January 24, 2009 12:15 PM                               अंक ९९

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४. वरुण जायसवाल said...

रणथम्भोर फोर्ट. सवाई माधोपुर के निकट, राजस्थान

January 24, 2009 12:39 PM                                         अंक ९८

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५. दीपक "तिवारी साहब" said...

ताऊ, ये तो रण्थम्भोर का किला है. मुझे तो तुम्हारे ब्लाग पर दाहिनी तरफ़ की गनेश जी की फ़ोटू देख कर समझ आरहा है.


यहां पर गणेश जी को लोग बाकायदा शादी ब्याह का निम्न्त्रण भेजते हैं डाक द्वारा और डाकिया इस किले जाकर सब डाक गनेश जी को देता है.


गनेश जी ने एक पुजारी भी इस काम के लिये रखा हुआ है जो उनको सारी चिठ्ठियां पढ कर सुनाता है.


आप तो लोक करो जी. क्युंकी रणथम्भोर के शेर भी दिख रहे हैं और वो की वो जगह है जी. हम गये हैं वहां पर.

January 24, 2009 1:19 PM                                                 अंक ९७

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६. अल्पना वर्मा said...

राजस्थान का 'रन्थम्बोर का किला है..जहाँ यह त्रिनेत्र गणेश जी हैं.और tiger खुले में घुमते हैं--यह जगह मेरी देखी हुई है --वहीँ ऐसे waterfall भी बरसात के मौसम में दिखते हैं... अब यह जवाब ही अन्तिम है.

January 24, 2009 1:45 PM                                                   अंक ९६

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७. राज भाटिय़ा said...

ताऊ जी यह तो मुर्ती है गणेश मंदिर माधोपुर की, बाकी समान भी यही होना चाहिये...
Ranthambhore
National Park
बाकी पता कर के लिखता हुं...:) January 24, 2009 2:25 PM      अंक ९५

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८. makrand said...

ताऊजी, पिछले साल हम एक शादी मे गये थे भरतपुर। वहां से रणथम्भोर का बाघ क्षेत्र देखने गये थे। बाघ तो नही दिखे पर हिरण और लंगूर वहां खूब दिखे.


आपने जो साईड मे फ़ोटो लगाये हैं वो बाघ और जो कुये का फ़ोटो है, यह उसी के मेन गेट का है जहां से सफ़ारी मे ले जाने के लिये जीप मे बैठाया जाता है।


समयाभाव मे इस किले पर तो नही चढ पाये , पर है ये वो ही रणथम्भोर का किला।
लोक करो जी आप तो. आज पहला विजेता शायद मैं ही बनूंगा। :)

January 24, 2009 3:49 PM                                              अंक ९४

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९. नितिन व्यास said...

ताऊ जी, आज तो मेरा जवाब पहला होना चाहिये
ये फोटो है रणथंभौर के किले का!
जानकारी विस्तार से दूसरी टिप्पणी में

January 24, 2009 4:38 PM                                              अंक ९३

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१०. My Photoआशीष खण्डेलवाल said...

वाह ताऊ... खूब घुमाया... माथा पच्ची की इंतेहा गई.. पर तकनीकी ब्लॉगर हूं इसलिए तकनीक से तोड़ निकाला है...


जी यह जगह है रणथम्भौर ... हा हा हा...


पहली बार पहेली में भाग ले रहा हूं और सच मानो आपका सबसे पक्का भतीजा बनने की जुगत में हूं.. चापलूसी करूं तो मेरे नंबर बढ़ सकते हैं क्या??? ताऊ आप वाकई महान हो...

January 24, 2009 4:44 PM                                     अंक ९२

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११. प्रवीण त्रिवेदी...प्राइमरी का मास्टर said...

Ranthambore fort

January 24, 2009 6:34 PM                                               अंक ९१

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१२. रंजना [रंजू भाटिया] said...

Ranthambhore...रणथम्भौर है..याद आ गया ताऊ जी ..यहाँ जो मन्दिर है वह गणेश जी का है और यहाँ कभी कभी टाइगर देवता भी दिख जाते हैं ....यह कुछ दिन पहले डिस्कवरी चेनल पर भी आया था ..और बिल किलंटन ताऊ जी भी यहाँ गए थे ..

January 24, 2009 7:29 PM                                               अंक ९०

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१३. दिलीप कवठेकर said...

पहली नज़र में ये औरंगाबाद का किला लगा. बिलकुल इसी तरह के चित्र है.
मगर टाईगर, और मंदिर नें फ़िर भरमा दिया.अब तस्वीर स्पष्ट है.


ये रणथंभोर का किला है.सवाई माधोपुर से करीब है. रणथंभोर का नेशनल टाईगर पार्क में प्रोजेक्ट टाईगर पर १९७२ से कार्य किया गया. यहां मंदिर भी है, मगर इसके बारे में पूरी जानकारी नही है.

 

असीरगढ के किले में मंदिर और टाईगर नहीं है. बांधवगढ में सफ़ेद टाईगर है, और किला नहीं.


अरावली और विंध्य पर्वत श्रेणी के बीच फ़ैले पर्वतों के बीच एक पर्वत के चोटी पर दसवीं शताब्दि में ये किला बनाया गया. राजपूत शैली के आर्किटेक्चर में बनें इस किले में मंदिर भी है. औरंगाबाद के किले में मंदिर नहीं या टाईगर भी नही.


राजस्थान और मालवा (म.प्र.) के बीच इस संरक्षित वन का नाम है Sawai Madhopur wildlife sanctury (1955). ये शायद वही गणेश मंदिर है, जहां एक पोस्ट ऒफ़िस भी है. यहां हर शादी पर पहला invitation भगवान को दिया जाता है.

January 25, 2009 12:19 AM                                              अंक ८९

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१४. रंजन said...

ताऊ, आज तो मेरा जबाब भी बदल दो.. पता नहीं क्यों गच्चा खा गया.. पर आज बाकी जबाब पढ़ फिर से (री) सर्च मारी.. दायी और की सारी फोटो तो रणथम्बोर की है.. और पहेली वाली फोटो भी किसी जंगी किले की है... ्लॉक करो.."रणथम्बोर किला"..पर ये खुद का खोजा नहीं है... नकल से..
राम राम

January 25, 2009 9:02 AM                                                           अंक ८८

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१५. Pt.डी.के.शर्मा"वत्स" said...

लो जी एक बार ओर पलटी मार लेते हैं.
म्हारा भी नया जवाब "रणथम्बौर".
नोट कर लियो ताऊ..........
पोस्ट में दाहिने तरफ जो तस्वीरें लगा रखी हैं. ,उसमे सीढियों वाली तस्वीर, जिसमें दिवारों पर कुछ नाम वगैरह लिख रखे हैं, उस तस्वीर में दरवाजे के पास एक दिशा सूचक बोर्ड लगा हुआ है. जिस पर 'अंधेरी गेट' लिखा है.
बस उसी बोर्ड नें दिमाग में जगह बना ली.ओर मन महाराष्ट्र ओर मध्यप्रदेश में ही घूमता रहा.

January 25, 2009 10:37 AM                                                          अंक ८७

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१६. Udan Tashtari said...

ताऊ, इब क्या कहें..समय ही निकल गया १२ बजे का..तब जा कर पसीना बहाते ढ़ूंढ़ पाये कि यह तो रणथम्बौर है जी..हमारे दिनेश राय द्विवेदी जी घर के पास. सोच रखा है कि जब द्विवेदी जी के पास जायेंगे तो रणथम्बौर भी जायेंगे. मगर अभी तो फिस्स हो गये १२ बजे के समय के चक्कर में. १ या २ पाईंट मिल सकते हैं क्या साफ सफाई के. :)
बहुत मस्त पहेली रही भई.

January 25, 2009 2:25 PM     गुरुजी एक दो क्यों ? पूरे लो जी.     अंक ८६

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१७. purnima said...

ताऊ यह तो १- रणथम्भोर का किला हे राजस्थान में हे . २- इसमे त्रिनेत्र गणेश जी बिराजमान हे.


यह किला बहुत प्रसिद्ध हे. गणेश जी भगवन के मन्दिर में जो हमारी मुराद होती हे वह पुरी हो जाती हे


३- रणथम्भोर में ही sanctuary he.
जहा सभी शेर वगेरह देखने आते हे .

January 25, 2009 2:54 PM                                                         अंक ८५

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१८. प्रकाश गोविन्द said...my correct answer is :
Ranthambore fort  January 25, 2009 5:29 PM                           अंक ८४

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निम्न भाइ बहणों ने भी इस पहेली अंक-५  मे किसी न किसी रुप मे टिपणी करके सहभागिता करके हमारा उत्साह वर्धन किया.  आप सबका सादर हार्दिक आभार !

 

 

 Arvind Mishra , विवेक सिंह , दिनेशराय द्विवेदी DINESHRAI DWIVED ,

SMART INDIAN - स्मार्ट इंडियन , GYAN DUTT PANDEY , TARUN ,

संजय बेंगाणी , ANIL PUSADKAR , P.N. SUBRAMANIAN , सुशील कुमार छौक्कर , विनय , डॉ .अनुराग , मुसाफिर जाट , BHAIRAV , आपका ताऊ मैं हूं , MEHEK , विजयशंकर चतुर्वेदी , मोहन वशिष्‍ठ , DILIP GOUR , VIDHU ,

अनूप शुक्ल , प्रकाश गोविन्द , गौतम राजरिशी , विक्रांत बेशर्मा , दिगम्बर नासवा , Shastri , योगेन्द्र मौदगिल  आकांक्षा~Akanksha

 

 

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                      तृतिय भाग - पाठकों द्वारा दी गई विविध जानकारी

 

 

 seema gupta said...

"ताऊ जी ने आज ब्लॉग पर सुभाष चन्द्र जी की तस्वीर बदल कर सिहं की फोटो क्यूँ लगाई...ये सोचने वाली बात है....फ़िर रंजना जी की बात पर कुछ ध्यान दिया तो समझ आ रहा है की है तो ये राजस्थान ही का कोई मन्दिर या किला.....सिंह का चित्र और राजस्थान ये दोनों हिंट हैं इस पहेली के .... अब तो ये पक्का है मेरा जवाब लाक किया जाए ये रणथम्भोर फोर्ट ही है......बाकि जानकारी बाद में देती हूँ ...."

 

 seema gupta said...

रणथम्भोर fort का निर्माण चौहान राजपूत शासको द्वारा सवाई माधोपुर शहर के पास  राजस्थान सीमा पर ९४४ मे किया गया था . ७ किलोमीटर लम्बी दीवारों और घने जंगलों से घिरे ७०० फिट ऊँची पहाडी पर बने इस किले का नाम दो पहाडियों के नाम को जोड़ कर बना है, जिस पहाडी पर ये बना है उसका नाम है थम्भोर और साथ वाली पहाडी का नाम है रण...जिससे इसका नाम रणथम्भोर पडा.

 

इस किले के अंदर बहुत सारी इमारते हैं hammirs court, badal mahal, dhula mahal, and phansi ghar... जिनमे अधिकतर युद्ध और समय के साथ विध्वंस हो चुकी हैं...इस किले के अंदर एक बहुत पुराना भगवान् गणेश जी का मन्दिर है जहाँ बहुत से तीर्थ यात्री आतें हैं...इस मन्दिर के बारे मे ये कहा जाता है की आज भी लोग गणेश जी के नाम पत्र लिखते हैं और अपनी परेशानी और व्यथा उन तक पहुंचाते हैं और डाकिया आज भी उस मन्दिर तक ये पत्र पहुंचता है और मन्दिर का पुजारी कर पत्र को भगवन गणेश के सामने पढ़ कर सुनाता है....इस मन्दिर और रणथम्भोर नेशनल पार्क की वजह से जगह बहुत मशूहर है...


 

 अल्पना वर्मा said...

पहली बार देखा था तो लगा था कि यह जगह रणथम्भोर तो नहीं [मन की आवाज़ को सुन लेना चाहिये]लेकिन ऐसा लगा Tau जी तो मध्य प्रदेश के बारे में ही पूछते हैं हमेशा -तो वहीँ ढूंढा जाए!


स्मार्ट इंडियन जी के जवाब और ताऊ के हिंट कि 'जवाब में कहीं clue है 'तो लगा शिवाजी का किला ही है.और कहीं मार्क्स कम न रह जायें तो अंदाजे के जवाब भी एक के बाद एक पोस्ट करती रही.महाराष्ट्र घूम कर --


अन्ततः पहुँची..वहीँ..रणथम्भोर --कॉलेज के समय में बनस्थली से पिकनिक के लिए हम सब यहीं गए थे.बाघ भी देखे थे---विवरण अगली पोस्ट में देती हूँ..

 

 अल्पना वर्मा said...

राजस्थान --महान और वीर प्रतापी महाराजाओं और राजाओं का राज्य!
इस राज्य के सवाई माधोपुर शहर में है रण थम्भोर --रण थम्भोर दो पहडियाँ हैं..
रणथम्भोर का किला 'थम्भोर ' पहाडी पर है दूसरी जी चित्र में पड़ी दिख रही है वह 'रण' कहलाती है.


किले कि दीवारें ७ किलोमीटर,और ४ वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र घेरे हुए है.मुख्य द्वार एक घटी से है.किले के चार प्रवेश द्वार हैं. हैं.मिस्राधरा गेट अभी तक खड़ा है.हमीर का दरबार हॉल , बादल महल ,धुला महल और फँसी घर ,मुख्य आकर्षण हैं.

त्रिनेत्र गणेश जी का मन्दिर यहीं है.वह मुख्य प्रवेश द्वार के पास है.इस मन्दिर की बहुत मान्यता है.गणेश चतुर्थी पर यहाँ बाघ खुले में घूमते भी देखे जा सकते हैं[?]ऐसा मैं ने वहां के लोगों से सुना था--ये बाघ कभी किसी को नुक्सान नहीं पहुंचते.किले के पूर्वी भाग में काफी जंगल है .प्रय्तकों को सलाह दी जाती है की वे किले के उस भाग में न जायें.

यह किला कब बना--यह एक विवाद है.-माना जाता है की ८ वीं शताब्दी में चौहान राजपूत राजा सपलदक्ष नें ९४४ AD में बनवाना शुरू किया था.
कुछ मानते हैं चौहान राजपूत राजा जयंत ने १११० ने बनवाना शुरू किया था और सालों तक यह बनता रहा.

अन्तिम चौहान राजपूत राजा राव हमीर थे.अलाउद्दीन खिलजी ने १३०१ में इस पर कब्ज़ा कर लिया.१७६५ में यह सवाई मान सिंह के हाथोंमें वापस आई.

--रणथम्भोर को बाघों की भूमि भी कहा जाता है.'रणथम्भोर राष्ट्रीय बाघ पार्क 'यहीं है.

-कहा जाता है कि राजा हमीर और खिलजी के साथ चले [कई वर्षों तक हुए] युद्ध के समय राजा को सपने में भगवान गणेश जी ने दर्शन दिए और सुबह त्रिनेत्र वाले गणेश जी कि मूर्त किले कि एक दिवार पर छपी पाई गयी.

सभी गोदाम भर गए..चमत्कार हुआ!वहीँ बना उनका मन्दिर--साथ में रिद्धि -सिद्धि [उनकी पत्नी]और पुत्र-शुभ और लाभ कि भी मूर्ति रखी गयी साथ में मूषक जी भी विराजे!

रणथम्भोर बेहद खूबसूरत जगह है..बरसात के मौसम में जरुर dekhne जायें...जगह जगह गिरते जल प्रपात आज भी याद हैं मुझे..

 

 अल्पना वर्मा said...

आज सच में बहुत घूमी लेकिन नागपुर के रामटेक के बारे में काफी जानकारी मिली-शिवाजी के किले भी देखे--जय हो ताऊ जी की पहेलियाँ !! कितना कुछ है हमारे भारत में!


गणेश जी के मन्दिर की बारे में बात और मैं बाँटना चाहूंगी जो राजस्थान में लगभग सभी जानते हैं ,मैं ने भी वहीँ सुनी थी-आप भी जानिए--यह अन्धविश्वास नहीं है--यह मानी हुई बात है--मानो या न मानो--


जैसा मैं ने बताया की इस किले में त्रिनेत्र गणेश जी का मंदिर भी है. यहां आस पास के लोग अपने पुत्र और पुत्रियों की शादी का निमंत्रण गणेश जी को देकर जाते हैं, आजकल तो निमंत्रण कार्ड छपते है तो वो दे जाते हैं.


पहले के जमाने में उस समय के चलन के मुताबिक पीले चावल देते थे, वो भी किले की इतनी दुर्गम चढाई चढ कर. आज भी यह क्रम बदस्तुर जारी है.


यहां के गणेश जी के भक्त जो कि राजस्थान -हरियाणा क्षेत्र से ज्यादा हैं, वो दुनियां मे कहीं भी रहते हों अपने यहां परिवार मे होने वाली शादी का पहला निमंत्रण पत्र इन गणेश जी को ही भिजवाते हैं.[ओमान में रहने वाले ऐसे दो राजस्थानी परिवार को तो मैं ही जानती हूँ.]


और मजे की बात यह है कि इन पत्रों को जो कि सैकडों की संख्या मे होते हैं, पोस्ट्मैन (डाकिया)  इस दुर्गम किले की ऊंचाई पर जंगली रास्तों से होता हुआ नित्य पहुंचाता है.और वहां पर एक पुजारी इन सभी पत्रों को गणेश जी को बाकायदा पढ कर सुनाता है.

 

कई लोग पत्रों द्वारा ही अपनी व्यथा भगवान को लिख भेजते हैं, और कहते हैं कि गणेश जी उनकी व्यथा पत्र द्वारा सुनकर दूर कर देते हैं. लोगो मे ऐसी मान्यता है.


एक टी.वी. सिरियल : "ऐसा भी होता है" मे यहां गणेश जी के बारे में एक पूरा एपिसोड ही दिखाया गया था.

 

 नितिन व्यास said...

राजस्थान में रणथंभौर का किला चौहान राजपूतों ने 944 ई. उस स्‍थान पर जहां रण और थंभौर नामक पर्वत मिलते है, बनवाया था।


कुछ वर्षों को छोडकर, ११९२ ई से १७वीं शताब्दी तक मुगलों ने इस पर कव्जा रखा।
ऐसा कहा जाता है कि यहां ११३८१ में हजारों राजपूत महिलाओं ने मुगलों से बचने के लिये जौहर किया था।


१७वीं शताब्दी में जयपुर के कछवाहा महाराजों के आधिपत्य में यह किला आया तब से लेकर स्वतंत्रता के समय तक रणथंभौर जयपुर स्टेट के आधीन था।

इस किले की परिधि करीब ७ किमी है इस किले के अंदर रामलला जी , गणेशजी, और शिव जी के मंदिर है

इस किले के नाम पर ही राष्‍ट्रीय उद्यान का नाम रणथंभौर राष्‍ट्रीय उद्यान रखा गया।

 

 राज भाटिय़ा said...

लो ताऊ जी हम दोवारा से भेज देते है इस का जबाब. Ranthambor Fort :- The history of Sawai Madhopur revolves around the Ramthambhor fort. Surrounded by Vindhyas and Aravalis, amidst vast and arid denuded tracts of Rajasthan, lies the oasis of biomass in an ecological desert, the Great Ranthambhor . No one knows when this fort was built.


The strength and inaccessibility of the fort was a challenge to the ambitions of the rulers of the ancient and medieval India, particularly those of Delhi and Agra. The eminent ruler of the fort was Rao Hamir who ruled around 1296 AD.
History relates that none of the rulers had a peaceful spell in spite of its strong geographical strength. Remnants of marvelous architectural monuments, ponds and lakes enlighten avid lover of the subject. The soul of this great fort inspires patriotism, valour and love. Every part reflects the ancient character of Indian culture and philosophy.

There are various places of historical interest inside the fort namely Toran Dwar, Mahadeo Chhatri, Sameton Ki Haveli, 32 pillared Chhatri, Mosque and the Ganesh Temple.

 

 प्रवीण त्रिवेदी...प्राइमरी का मास्टर said...

‘रणथम्भौर’’ शब्द की व्युत्पत्ति ‘‘रण’’ व ‘‘थम्भौर’’ इन दो शब्दों के मेल से हुई है। ‘‘रण’’ व ‘‘थम्भौर’’ दो पहाडियां है। थम्भौर वह पहाडी है जिस पर रणथम्भौर का विश्व प्रसिद्घ किला स्थित है और ‘‘रण’’ उसके पास ही स्थित दूसरी पहाडी है। रणथम्भौर का किला लगभग सात किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है, जहां से रणथम्भौर राष्ट्रीय पार्क का विहंगावलोकन किया जा सकता है।

उन्होनें बताया कि रणथम्भौर दुर्ग भारत के सबसे पुराने किलों में से एक माना जाता है। इस किले का निर्माण सन् 944 ए.डी. में चौहान वंश के राजा ने करवाया था।

 

इस दुर्ग पर अल्लाउदीन खिजली, कुतुबुद्दीन ऐबक, फिरोजशाह तुगलक और गुजरात के बहादुरशाह जैसे अनेक शासकों ने आक्रमण किये। यह मान्यता रही है कि लगभग 1000 महिलाओं ने इस किले में ‘जौहर’ किया था। ‘‘जौहर’’ (जिसके अंतर्गत किलों को अन्य शासक द्वारा जीत लेने पर वहां की निवासी राजपूत महिलाएं अपने ‘शील’ की रक्षा के लिए जलती आग में कूद कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर लिया करती थी।)

उन्होंने तथ्यों का हवाला देते हुए बताया कि ग्यारहवीं शताब्दी में राजा हमीर ने और सन् 1558-59 में मुगल बादशाह अकबर ने इस दुर्ग पर अपना अधिकार जमाया था। अंततः यह दुर्ग जयपुर के राजाओं को लौटा दिया गया था, जिन्होंन दुर्ग के आस पास के जंगल को शिकार के लिए सुरक्षित रखा।

 

जंगल के संरक्षण की यही प्रवृत्ति बाद में रणथम्भौर राष्ट्रीय पार्क के अभ्युदय का कारण बनी और आज देश-विदेश से सैलानी यहां बाघ और अन्य वन्य प्राणियों को देखने आते हैं।

 

 प्रवीण त्रिवेदी...प्राइमरी का मास्टर said...

रणथम्भौर- सवाई माधोपुर जिला मुख्यालय से 13 किमी. की दूरी पर स्थित रणथम्भौर का दूर्ग राजस्थान के महत्वपूर्ण दुर्गों में से एक हैं। ऊंची पहाडी पर स्थित इस दुर्ग में त्रिनेत्र गणेशजी का भव्य मंदिर स्थित हैं।

 

यहाँ देश के कौने-कौने से श्रृद्धालु आकर शादी-विवाह, फसल की बुवाई एवं अन्य मांगलिक अवसरों पर गणेशजी को प्रथम आमंत्रण देते हैं। गणेशजी के इस पवित्र स्थान पर वर्ष भर यात्रियों का तांता लगा रहता हैं तथा प्रत्येक बुधवार को यहाँ आने वाले यात्रियों की भीड लघु मेले का रूप ले लेती है।

 

रणथम्भौर दुर्ग अपनी प्राकृतिक बनावट तथा सुरक्षात्मक दृष्टि से भी अद्वितीय स्थान रखता हैं। ऐसा सुरक्षित, अभेद्य दुर्ग विश्व में अनूठा हैं।

 

दुर्ग क्षेत्र में गुप्त गंगा, बारहदरी महल, हम्मीर कचहरी, चौहानों के महल, बत्तीस खंभों की छतरी, देवालय एवं सरोवर ऐतिहासिक दृष्टि से महत्पवूर्ण हैं।

 

दुर्ग में स्थित हम्मीर महल में पुरातात्विक महत्व के हथियार जिरह बख्तर एवं अन्य महत्वपूर्ण सामग्री उपलब्ध हैं।

 

                                     चतुर्थ भाग : मौज मस्ती

 


कुछ मजेदार टिपणियां : -

 

 Arvind Mishra said...

अजन्ता एलोरा ! पहला जवाब ,दूसरा जवाब पचमढी ,तीसरा जवाब नहीं मालूम !जो लाक करना है कर ले ताऊ !

मिश्राजी तीसरा जवाब लाक कर लिया जी. पूरा एक नम्बर आपका जमा. :)

 

 शुभम आर्य said...

ताऊ इस स्मारक के बारे में कुछ हिंट तो दीजिये | अब मैं संपूर्ण भारत भ्रमण तो नही किया हूँ |
वैसे फिलहाल चीन की दिवार पर भारत की और से चढ़ने के लिए जो सीढियां बनाई गई थी वही लग रही है | :)

देखना कही बिना वीजा पासपोर्ट चीन मे मत घुस जाना. साम्यवादी हैं वहां. :)

 

 Tarun said...

देख भई ताऊ ऐसा है कि मध्य प्रदेश का "म" तक तो हमने देखा नही है और तू हमें ये टूटी सीढ़िया दिखा रहा है वो भी इतनी दूर से कि टेलिस्कोप से भी कुछ ना नजर आये। छुटपन में ऐसी एक ही जगह देखी थी, रामटेक मंदिर लेकिन वो नागपुर के पास है यानि महाराष्ट्र और तू ताऊ ना मध्य प्रदेश छोड़ेगा ना राज भाटिया (जी)।

 

इसलिये ये होना तो शायद मध्य प्रदेश में ही चाहिये, कुछ भी हो सकता है - ओरछा के चतु्र्भुजी मंदिर को जाने का रास्ता, या खजुराओ जाने का कोई पीछे का रास्ता जहाँ से ताऊ या उसकी भैंस ही जा सकती हो, दूसरा अमरकंटक भी तो कोई जगह है ना ताऊ हो सकता है वहीं का कुछ हो।

ताऊ एक काम और कर ले थोड़ा पहले फोटु खींचना सीख आ, फोटु फोकस करके खींची जावे है ऐसे नही कि मध्य प्रदेश की फोटु खींचनी हो और ऐसा लगे कि दिल्ली पर बैठ के खींची है।

(ऊपर के कमेंट के लिये इज्जत वाले suffix यहाँ से ले लेवें - नाम के पीछे जी, तू की जगह आप, तेरे की जगह आपकी)

देख भाई तरुण जी, मध्यप्रदेश म्हारी कर्मभूमि और राज भाटिया म्हारा बड्डा भाई सै.
तो इन दोनुआं नै क्युंकर छोडूंगा? :)

इब थमनै यो खजुराओ दिखरया सै त म्ह के करूं?:)

इब रही फ़ोटू खींचने वाली बात तो भाई सुण - इब थम एक रिटर्न टिकट थारै पास आणे
का भेज दे और मन्नै ट्रेनिंग दिलवा दे उडै. इब ताऊ तो बुढौती म्ह ऐसी ही फ़ोटु खींचेगा.

वैसे बतादूं कि मैने जिस हेलिकोप्टर से ये फ़ोटू लिया था तब उसका पायलेट थोडा
अनाडी और सिखतोड था सो वो घणा हालण लाग रया था, और मन्नै रण और थम्भोर
दोनू पहाडियां की फ़ोटू खींचणी थी. इस वजह से खराब आई. और हां भाई एक अच्छा
सा हेलीकोप्टर भी दिलवा देना मेरे को. फ़िर बढिया फ़ोटू खींच के दिखाऊंगा. :)

और इब सफ़िक्स लगाण आली बात. तो भाई सुण ले म्हारै आडै तो सफ़िक्स नाम की
चिडिया होती कोनी. पर आडै तो किसी के नाम के आगे श्री नही लगाने पर ही लोग
टांग खींच लेते हैं.:)  और आपने तो यहां ५ / ६ किलो वजन के सफ़िक्स नही लगाये हैं.

वैसे भाई ताऊ तो गोल और चिकना पत्थर सै. कोई धीरे २ सहलायेगा तो चिकना चिकना
ठंडा २ आराम देगा. और कोई आकर खुद का सर ही दे मारेगा तो सर उसी का फ़ूटेगा.
इसमे ताऊ का अपना कोई स्वभाव  नही है. सो जिसको जैसा व्यवहार रखना हो रख ले.
अपने को तो सफ़िक्स की कोई जरुरत नही सै. किसी को हो तो लगाले.

 

 

 संजय बेंगाणी said...

किस मूँह से कहें कि पता नहीं, अतः मान लें हम यहाँ आए ही नहीं. :(

ऐसे कैसे मान लें जी? आपको यहां आने का एक नम्बर भी दिया है. आप तो बस ऐसे
आकर बच्चों का हौसला बढाते रहिये. आज मा. शाश्त्री जी भी आगये हैं.

 

 Anil Pusadkar said...

फ़िर से कर देना ताऊजी।
अपना तो हाल ही बुरा है,
आगे पाठ है,पीछे सपाट है,
गुरूजी ने बोला सोलह दुनी आठ है।

गलत जी, सोलह दुणी ४ होगा. :) (square root) . देखा,  ताऊ भी पढा लिखा है. :)

 

 अल्पना वर्मा said...

आज नहीं मिलता हल..कई जगह देख लिया..थोडी देर में फिर खोज करती हूँ--क्या होता है--जब एक नई जगह के बारे में मालूम होता है तो उसी के बारे में जानने में समय लग जाता है-जैसे रामधाम के बारे में नयी जानकारी मिली---दिमाग को कहीं बंद कर के -सोचूंगी थोडी देर बाद--पहले के सारे जवाब कैंसल कर दिए जायें---

अरे राम राम..आप दिमाग को कहीं बंद मत कर देना जी. वर्ना ये पहेली तो बैठ ही जायेगी. और आप जो जानकारी मुहैया कराती हैं उसका बोझ भी हमको ही ऊठाना
पड जायेगा जी. :)

 

 Ashish Khandelwal said...

रै ताऊ.. म्हारा कमेंट रो काईं हुयो.. मैं तन्ने लिख्यो कि यो रणथम्भौर है.. सवाई माधोपुर माय.. और ई जगह पर गणेशजी को मंदिर है और टाइगर को अभयारण्य भी है.. पर म्हारो कमेंट तो नजर ही कोनी आयो...

रै भाई, थारा कमेंट अभयारण्य म्ह टाईगर धौरै चढ गया था, मुश्किल तैं बचा के ल्याया सूं. जा, जरा जल्दी तैं ताऊ की तरफ़ तैं इस खुशी म्ह रावत की मिश्री मावा खिलाकै मुंह मीठा करवादे सबका. :) और तैं भी खा लिये.

 

 Dilip Gour said...

ताऊ,
शायद ये तस्वीर मध्यप्रदेश के ही किसी स्थल कि हैं, क्योंकि दीवार पर एक नाम लिखा हैं जिसके पीछे गुर्जर भी लिखा हैं, अब गुर्जर या तो राजस्थान में है या फिर मध्यप्रदेश और हरियाणा में हैं, तो मेरे ख्याल से ये स्थल मध्यप्रदेश के ही किसी जगह का हैं और मै कभी मध्यप्रदेश तक घुमा हुआ नही हूँ.
बाकी आपको पता हैं कि मै सही हु या ग़लत!
दिलीप गौड़
गांधीधाम

इब घुमण आले तो सारी दुनियां तैं आया करै सैं. कोई भी लिख कै जा सकै सै. पर थम
आये जवाब दिया ये भी घणा चोखा काम सै. अगली शनीवार फ़ेर आजाईयो जी.

 

 Vidhu said...

orchaa madhyprdesh lag rahaa hai

नही जी, ये रणथम्भोर है जी. आपके पधारने का धन्यवाद.

 

 प्रकाश गोविन्द said...

ताऊ आपने ये क्या किया ?
इतनी कठिन पहेली ,,,तौबा,,,तौबा !
मुझ जैसे नास्तिक को सारे मंदिरों की
सैर करा दी !
ऊपर वाला भी मुझसे कितना नाराज
होगा कि " नालायक वैसे तो कभी नहीं
आया मेरे पास और अब आया भी है तो
पहेली के चक्कर में ?"
देखते-देखते आँखें दर्द करने लगीं !
मदहोशी छा गई ......
अब तो मुझे सारे मन्दिर-मस्जिद-चर्च
एक जैसे नजर आ रहे हैं ...
मेरे लिए सब फर्क ख़तम हो गए !
बहुत मुश्किल हो गई मेरे लिए ......
"न खुदा ही मिला न विशाले सनम,
न इधर के रहे न उधर के रहे"

अरे राम राम हमसे तो घोर पाप होग्या दिखै भाई. कोई बात ना जी, थम म्हारी तरफ़ तैं एक डुबकी गंगा जी म्ह लगा लियो जी. :)

वैसे किसी को बताना मत, आपका ये
कमेण्ट देख कर ही हमने असली कमेंट पबलिश किये थे आपको जितवाने के लिये. :)

 

Anonymous रंजन said...

ताऊ ये तो सबसे मुश्किल पहेली थी.. न ही गुगल बाबा काम आये न हि विकी बहना..उपर से आपके हिटं.. एक को पकडे तो एक छोर और दुसरा ले जाये दुसरी और.. और तो और आपने मरवाने वाले काम भी करे.. "एक वरिष्ठ ब्लागर के घर से यह जगह ज्यादा से ज्यादा १०० किलोमीटर दूर है.".. अब यहां कितने वरिष्ठ है.. एक के घर के बगल ्वाली जगह बात दि तो दुसरा समझेगा.. अच्छा ये मुझे वरिष्ठ नहीं सम्झाता... मेरे घर के बगल में भी तो किला है..:)


और आप आज रात सोने भी नहीं दोगे.. अरे आपने मेरा कमेंट छाप दिया.. अब मेरा आत्मविश्वास तो डोल गया.. अगर सही होता तो ताऊ नहीं छापता रोक के रखता... कह्ता अब २३ कमेंट सभालें पडें है.. ताऊ मैने फिर ढुढा.. कहां कहां नहीं गया.. पर निराशा ही हाथ लगी.. कोई नहीं अभी तो जबाब बदलेगें नहीं.. सुबह एक ट्राई और करेंगें.. मिला तो ठीक नही तो.. भाग लेने का १ नम्बर तो देते ही हो न.. बाकी हिसाब नम्बर सात से कर लेगें..
राम राम..

भाई मुश्किल म्ह भाई बहन कोई भी काम ना आया करैं. और भाई ताऊ ओ सिर्फ़ और सिर्फ़ लिखा पढी म्ह ये काम करै सै.:) इब तो थम जीतगे ना?

 

 गौतम राजरिशी said...

ये सिंहगढ़ किला तो नहीं ताऊ
सोचा एक पहेली का जवाब तो ट्राय मार ही लूं

इब तो आपके पसंद की पहेली का ही जुगाड करणा पडैगा. बताओ जी कहां की पूछें?
आपने भाग लेकर हम सबका उत्साह बढाया ये भी जीत ही है जी.

 

 Udan Tashtari said...

१२ बजे के पहले बता दे रहे हैं-ताऊ, जुगाड़ लगा देना भाई..तैं तो म्हारा अपणा है. :)

देखो गुरुजी, आपको जितवा दिया है चेले ने. पर किसी को कानोंकान खबर ना होने पाये. जरा ध्यान रखियेगा. आपतो बस एक जवाब खिसका दिया करो. :)

 

 दिगम्बर नासवा said...

ताऊ..............मन्ने तो टाइम काड दिया सोचते सोचते..........इब देखीथारी टिप्पणी १२. बजे जवाब भेजण की, हम तो फ़ैल हो गए

भाई कोई ये बात थोडी थी जी. आप जवाब देते तो हम तो रात को १२ बजे भी जितवा
देते आपको.:) आगे से ख्याल रखना जी कि अंक तो कभी भी आने से दिये ही जायेंगे.

 

 Shastri said...

चताऊजी, आज पता चला कि "दांतों तले पसीना आना" किसे कहते हैं. सौभाग्य से मुजसे पहले कई लोग पसीना कर खडे हैं.


बाघ को देख कर सब गडबड हो गया क्योंकि यह कान्हा एवं मंडला के आसपास के चित्र हो सकते हैं. यदि हैं तो मजा आ गया. इनाम मुझे दें. उत्तर गलत है तो आप मान कर चलें कि यह टिप्पणी मैं ने नहीं, बल्कि मेरे नाम से किसी और व्यक्ति ने की है. उसने मेरा चित्र भी पार कर लिया है जिसे इस टिप्पणी के साथ चेप दिया है.


आप की पहेलियों द्वारा जो ज्ञानवर्धन हो रहा है उसके लिये साधुवाद. हां, एक डर जरूर है कि कहीं अब "सारथी" को पाठकों के लाले न पड जायें.
सेम को बेचने के बदले किराये पर देते तो बेहतर रहता. हम सबके काम आ जाता !!


सस्नेह -- शास्त्री

पुनश्च: ब्लागेरिया से एवं कर्नाटका के जंगलों से मुक्त होकर अब कोच्चि में वापस आ गया हूँ.

आप आज की टिपणियों मे देखले कि ऐसा काम करने वालों मे हमारे गुरुजी आज अग्रणी हैं कहीं उन्होने आपके नाम से भी नही कर दी हो टिपणि.

आप वापस आगये, बडी खुशी हुई. हमको भी इलाज करवाने जाना है. :)

सैम से हमारा समझौता फ़िलहाल हो गया है. आगे के लिये ध्यान रखेंगे. :)

 

 

                                पत्रिका का  अंतिम भाग

 

 

 Smart Indian - स्मार्ट इंडियन said...

ताऊ मन्नै तो यो शिवाजी महाराज का रायगढ़ का किल्ला दीखै सै! म्हारा इनाम कित सै इब?

मित्र पित्सबर्गिया ने आज समयाभाव मे भी तीन प्रयत्न किये.

आपके द्वारा की गई होसला अफ़्जाई से ही यह पहेली आयोजन सफ़लता की और बढ रहा है. मित्र इस आयोजन की सफ़लता ही आपका ईनाम हैं.

आप पुर्ववत हमारी होसला अफ़्जाई करते रहें , आपसे यही उम्मीद है.

 

 अल्पना वर्मा said...

आज नहीं मिलता हल..कई जगह देख लिया..थोडी देर में फिर खोज करती हूँ--क्या होता है--जब एक नई जगह के बारे में मालूम होता है तो उसी के बारे में जानने में समय लग जाता है-जैसे रामधाम के बारे में नयी जानकारी मिली---दिमाग को कहीं बंद कर के -सोचूंगी थोडी देर बाद--पहले के सारे जवाब कैंसल कर दिए जायें---

आज सू. अल्पना जी ने ५ गलत जवाब दिये और छठी बार सही जवाब के
साथ विजेता बनी. आपके गलत जवाबॊं के चक्कर मे कई जवाब आज गलत
हो गये. क्योंकी आपका असली जवाब हमने अंत तक छुपा कर रखा था.
सब जगह पहेली मे लोग आपको निर्विवाद रुप से फ़ोलो करते हैं.

लेकिन आज लोगों को मालूम पडा होगा कि आप कितने डेडीकेशन से पहेली
का हल ढूंढती हैं. आपकी जितनी तारीफ़ की जाये कम हैं.

आपका जितना सहयोग मिल रहा है. उससे हमको बहुत आसानी हो जाती है.
ताऊ पहेली आपके द्वारा दिये सहयोग के लिये आपकी आभारी है. और हमारे
इन दर्शनिय स्थलों के बारे मे लोगो को जागृत करने के काम मे आप जो सहयोग दे रही हैं, वो हमेशा याद किया जायेगा.

आपसे भविष्य मे भी इसी सहयोग की अपेक्षा है.

 

 Udan Tashtari said...

मुझे तो ओरछा मध्य प्रदेश ही लग रहा है. बाकी तो पचमढ़ी मैं अभी तक गया नहीं, इतना नजदीक है कि कभी जा ही नहीं पाये.

गुरुदेव समीर जी, आपको नमन है. मान बढाने के लिये आपने ६ प्रयत्न करके ये पहेली जीती. आपका अमुल्य सहयोग इन धरोहरों के प्रति जन चेतना
बढाने मे बहुत सहायक होगा.

आपसे निवेदन है कि आपका सहयोग और मार्ग दर्शन मिलता रहेगा.

 

 

 और निम्न टिपणि कर्ताओं ने भी आकर हमारी खुंटे की और सैम को पसंद कर  होसला अफ़्जाई की. आपका बहुत बहुत आभार और भविष्य मे भी हमारा होसला बढाते रहें. यही निवेदन है.

 

 

 विवेक सिंह said...

ताऊ जी आपका फाइव किक फॉर्मूलाजबरदस्त है !

 दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...

आज की पहेली का चित्र हमारी समझ में नहीं आया। कहानी अच्छी है। सैम को बेचने का इरादा ही गलत था। सिक्का तो सिक्का होता है काम आता है, भले ही खोटा हो।

 Gyan Dutt Pandey said...

यह तो साफ हो गया कि सैम बड़ा स्ट्रेटेजिस्ट और नेगोशियेटर है। इस इमेज को कायम रखियेगा।

 सुशील कुमार छौक्कर said...

देखा हमने कहा था कि इस सैम को मत बेचो कभी भी काम आ जाऐगा देखा आज काम आ गया। अजी फाइव किक वाला फॉर्मूला बड़ा ही तगड़ा है। इस किक से कुछ याद आ गया पर फिर कभी। और हाँ पहेली, तो जी अपन नही जानते। हिंट तो लगता है काफी है। पर कोई भला मानस घुमा हो तब ना। वैसे जी आपको एक सलाह दे रहा हूँ जब ये पहेलियाँ खत्म हो जाए तो जिस जिस ने पहेलियों के जवाब गलत या नही दिये है उन्हें आपको घूमाने ले जाना चाहिए पहेली वाली जगहों पर। है ना अच्छी सलाह। हा हा हा ....।

 डॉ .अनुराग said...

हम तो जी खूंटा पकड़ने के लिए आए थे ..

furasatia ji  अनूप शुक्ल said...

हम तो खूंटे पर ही मगन हैं ताऊ!

 विक्रांत बेशर्मा said...

ताऊ जी आपका "फाइव किक रुल" बड़ा ही शानदार लगा

 मोहन वशिष्‍ठ said...

आप सभी को 59वें गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं...

जय हिंद जय भारत

 योगेन्द्र मौदगिल said...

खूंटा ईबकै घणा लांबा होग्या पर किक कमाल की मारी ताऊ....... जै हो सैम बहादुर की..

और अंत मे आप सबका आभार. आपको इस साप्ताहिक पत्रिका का स्वरुप कैसा
लगा? आपके सुझाव सर आंखों पर. कृपया अपने अमुल्य सुझाव जरुर देने की
कृपा करे. धन्यावाद.

 

 छपते छपते :-

 

 

अभी हमने रविवार रात १० बजे यह पोस्ट पूरी करके मेरिट लिस्ट बनाने का जुगाड लगा रहे थे कि श्री प्रकाश गोविंद जी की निम्न टिपणि आगई है. उसको भी छाप रहे है.


Blogger प्रकाश गोविन्द said...

दास्ताँ - ए - ताऊ पहेली :--
पिछली बार जैसे-तैसे बड़ी मुश्किलों से बाघ वाली गुफा तक गए थे ! पूरे दिन के "टाईम टेबल" की ऐसी-तैसी हो गई थी ! अब इन्तजार था अगली पहेली का ,,,,,,, प्रतीक्षा ख़त्म हुयी ,,,,


आया शनिवार ! करीब 2.30 बजे कंप्यूटर ऑन करता हूँ ! सोच रहा था कि अब तक कम से कम 20-25 सही जवाब आ चुके होंगे, बस जल्दी से किसी का जवाब टीप लेंगे फिर अपने कई काम निपटायेंगे !


ताऊ का ब्लॉग खोलता हूँ !


प्रस्तावना पढता हूँ ..."बिल्कुल ही आसान
पहेली है !" पढ़कर मेरा आत्म-विश्वास चौगुना
हो जाता है !


चित्र देखा - जंगल और पहाडों में स्थित ऊँचाईयों को जाती सीढियां..... दूर कहीं
खंडहर और मन्दिर का गुम्बद जैसा कुछ दिखायी देता हुआ ! चित्र पहचाना सा लगता है !


फुर्ती से प्रतिक्रियाओं को देखने लगता हूँ ! कुछ समझ में नहीं आता ! गूगल के "इमेज सर्च ऑप्शन" पर जाता हूँ .....


"मध्य प्रदेश के ऐतिहासिक स्थल" लिख कर इंटर करता हूँ ......छः - सात पेज देखा , कुछ पल्ले नहीं पड़ा......


फिर गूगल पर छतीसगढ़ के प्रसिद्द जगहों की तलाश ......
फिर महाराष्ट्र जाता हूँ .......
फिर उत्तरांचल की सैर पर निकल जाता हूँ .....
फिर राजस्थान ........
फिर कर्नाटक .....
गूगल में सबके 6-7 पेज देखे !


तेजी से समय बीतता जा रहा है ......
दिल की धड़कन तेज हो गई .....
फिर ताऊ के ब्लॉग पर लौटता हूँ और पेज
रिफ्रेश करता हूँ कि शायद सही जवाब आ गया हो .....


लेकिन ताऊ ने मानो कसम खा रखी थी कि
आज सबको कसरत करा के दम लेंगे !
फिर से लौटता हूँ गूगल पर ......


अबकी बार अलग-अलग शहर में जाकर तलाश करता हूँ ......
लगातार अंतहीन तलाश..........
थक-हार कर फिर ताऊ के ब्लॉग पर ....


अबकी बार "क्ल्यू" को बार-बार आँखें फाड़कर पढता हूँ ......
"क्ल्यू" भी जलेबी की तरह सीधा और सरल ? अब वरिष्ठ ब्लागर को ढूँढने बैठूं तो
यहाँ 636 वरिष्ठ ब्लागर मिलेंगे !


दायें-बाएँ देखने को बोला है .... लेकिन यहाँ तो कुछ नहीं है ,,,,,,अब क्या करूँ ?
यकायक स्क्राल करने पर नीचे चार फोटो नजर आती हैं - बाघ,,,,किले और लंगूर वाली ......... अब क्या था शर्लाक होम्स
की तरह मैग्निफाइन्ग ग्लास लेकर जुट जाता हूँ ,,,,,,,, बारीकी से एक-एक चीज देखता हूँ खड़ी हुयी जीप के एक-एक हिस्से पर, लेकिन उसके अन्दर से कोई नहीं निकला.......
दीवार और गेट पर आँखें गड़ाकर देखता हूँ कि शायद कोई "नेमप्लेट" ही लगी हो कहीं .....

 

दीवारों पर लिखे अनेक नामों के
साथ एक जगह "कोटा राम" लिखा देखा तो फिर भागा गूगल कि शायद कोटा में कहीं ये जगह न हो .........नतीजा सिफर ......फिर चित्र देखता हूँ लंगूर वाली ..... कुछ समझ नहीं पाता,,,,,सोच रहा था कि लंगूर है कौन - मै या वो ?


चाय पीकर फिर कोशिश करता हूँ ....देवी पर नजर टिकाता हूँ ........
गहरी साँस लेकर फिर निकल पड़ता हूँ - "देवी-देवता खोज" अभियान पर !
बेशुमार देवी-देवता मिलते हैं ......एक-एक की "फेस मैचिंग" करता हूँ ........
केसरिया रंग देखते ही गौर से मिलान करने का काम ब-दस्तूर चलता रहता है ........ नाकामयाबी का सिलसिला ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा ........ अब झुंझलाहट के साथ जिद सी सवार हो जाती है कि कैसे नहीं मिलेगा ...........


गूगल और याहू के साथ विकिपीडिया सब को साथ लेकर निकल पड़ता हूँ .......जो मन में आता है वो लिखकर सर्च करता हूँ .........यहाँ तक कि "लेटर वाले देवी-देवता" लिखकर भी सर्च करता हूँ जवाब में ऐसी-ऐसी साईट्स खुल के आती है कि सर के बाल नोचने का मन करता है ..........
समय का कोई होश नहीं.........
क्या काम करने हैं आज .......
किसी बात की याद नहीं आती .......
बीच-बीच में कई फोन आते हैं तो
यथा सम्भव शीघ्र ही बात ख़त्म करके
खोज का काम चलता रहता है .......
इलेक्ट्रीशियन आता है ... उसे जल्दी से
काम समझाकर जुटा रहता हूँ ....
जाकर देखता भी नहीं कि वो काम सही कर
रहा है या नहीं .........


इसी तरह अन्य कार्य चलते रहते हैं लेकिन
मेरा खोज करने वाला काम जारी रहता है .............
थककर फिर ब्लॉग पर आता हूँ ,,,,
कुछ नए जवाब आए हैं उनको पढता हूँ ,,,,,,,,उन्हें चेक करता हूँ ......
सब ग़लत..........


अब मुझे अल्पना जी पर गुस्सा आता है कि
इस बार इतनी स्वार्थी हो गयीं कि कोई 'हिंट'
भी नहीं दिया ! अवतारी पुरूष शुभम जी का
भी कोई जवाब नहीं आया ........


समझ जाता हूँ कि सब ताऊ का किया-धरा है ...........
सही जवाब अपने पास दबाये बैठे हैं ......
अरे कम से कम भारत का "स्टेट" तो बता देते ..........
अब इतने बड़े भारत देश में कहाँ-कहाँ भागूं ? ...............
थक-गया हूँ ....
पक गया हूँ ......
"दिमाग का दही होना" का सही अभिप्राय
आज समझ पाया हूँ ...............


कोई बात नहीं ताऊ जी थका हूँ लेकिन
हारा नहीं हूँ ........
हौसले वैसे ही है ..........
अगली बार फिर लगूंगा अभियान पर ......
मंजिल पर पहुँचने वालों का अभिनन्दन !


चलते-चलते :--


"पहेली पूछने वाले , तूने कमी न की
अब किसने दिया जवाब , मुक्कदर की बात है"!

January 25, 2009 8:51 PM

 

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इस साप्ताहिक अंक के, संपादक,प्रकाशक, मुद्रक यानि सब कुछ : ताऊ रामपुरिया

 

इब रामराम. कल मंगलवार को कविता के साथ मिलेंगे.