प्रिय भाईयो, बहणों और बेटियों, सबनै शनीवार सबेरे की घणी रामराम. शनीचरी पहेली न.७ मे आपका हार्दिक स्वागत है. संपादक मण्डल ने कुछ मित्रों की सलाह पर यह तय किया है कि ताऊ पहेली के प्रथम विजेता के बारे मे कुछ जानकारी और विजेता के आशिर्वचन इस अंक से हम प्रकाशित करेंगे. जैसे अंक ६ की प्रथम विजेता सु.सीमाजी के बारे मे हम इस अंक ७ की पहेली प्रकाशन मे बता रहे हैं. और अंक ७ के प्रथम विजेता का साक्षात्कार अंक ८ मे प्रकाशित करेंगे. हमारे पुर्व के ५ अंको के विजेताओं के बारे मे हम आपको बतायेंगे "ताऊ साप्ताहिक पत्रिका" के अंको मे. यानि रिज्ल्ट के साथ. हमने हमारे सभी सम्मानित विजेताओं से सम्पर्क करने की कोशीश की, पर माननिय विजेताओं की कुछ व्यस्तता की वजह से उनका साक्षात्कार हमारे संवाद दाता नही ले पाये. कुछ ने हमे मेल करके सूचित किया है कि वो अति शीघ्र हमको इंटर्व्यु के लिये समय देंगे. इसी बीच हमारे पहेली अंक -३ के प्रथम विजेता श्री विवेक सिंह जी ने अपने व्यस्त समय मे से समय निकाल कर अपना साक्षात्कार हमे दे दिया है जो हम सोमवार यानि २ फ़रवरी २००९ के ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के अंक ७ मे प्रकाशित करेंगे. |
एक मुलाकात सुश्री सीमा गुप्ता जी से:-
हमने सु. सीमाजी से मुलाकात की . जैसा कि आप जानते हैं वाणिज्य में परास्नातक सीमा गुप्ता नव शिखा पोली पैक इंडस्ट्रीज, गुड़गाँव में महाप्रबंधक की हैसियत से काम कर रही हैं और साथ ही दो प्यारे से बच्चों की मां भी हैं. जाहिर है उनके पास समय की काफ़ी कमी है. उन्होने अपने व्यवसाय और घर को बहुत व्यवस्थित तरिके से सम्भाल रखा है. आज ब्लाग जगत मे उनके नाम से सभी वाकिफ़ हैं. पत्र पत्रिकाओं मे भी उनकी रचनाए छपती रहती हैं.
और सबसे खास बात कि उनकी शायरी, मृदुल स्वभाव और खुसमिजाजी के चलते आज वो ब्लाग जगत मे अति लोकप्रिय हैं.
साहित्य से अलग इनकी दो पुस्तकें 'गाइड लाइन्स इंटरनल ऑडटिंग फॉर क्वालिटी सिस्टम' और 'गाइड लाइन्स फॉर क्वालिटी सिस्टम एण्ड मैनेज़मेंट रीप्रीजेंटेटीव' प्रकाशित हो चुकी हैं।
वो हमको उतनी ही खुशमिजाज और शालीन महिला लगी, जैसी वो अपनी टिपणियों मे लगती हैं. उन्होने हमें कहीं से भी यह एहसास नही होने दिया कि उनके पास ज्यादा समय नही हैं. और ना सिर्फ़ उन्होने हमें साक्षात्कार के लिये समय दिया बल्कि शानदार लंच भी कराया. बहुत धन्यवाद सीमा जी.
तो आइये आपको रुबरु करवाते हैं हमारी ताऊ पहेली - ६ की सम्माननिय विजेता सु. सीमा गुप्ता से.
तालियां........तालिया.......तालियां!!!
सवाल - कविता का शौक आपको कब से है?
जवाब : " सच कहूँ तो याद नही कब और कैसे कविता लिखने की प्रेरणा मिली.....चोथी कक्षा में पहली कविता लिखी थी "लहरों की भाषा" जिसे बहुत सराहा गया था उसके बाद स्कूल लाइफ मे कुछ प्रतियोगिताओं के लिए छोटी मोटी कविता लिखती रही...
सवाल : हमारे पाठकों को थोडा अपने कैरियर के बारे बतायें तो बहुत अच्छा लगेगा.
उत्तर : मैने जीवन को हमेशा ही सकारात्मक रुप में लिया. बल्कि कहें तो " जीवन से मुझे बहुत प्यार रहा और कुछ कर गुजरने की प्रबल इच्छा के साथ जीवन के कुछ आरम्भिक वर्ष बहुत संघर्ष पूर्ण रहे परिवारिक जिम्मेदारी , पढाई , नौकरी, बच्चे ... और कुछ बंनने की आकांक्षा के बीच काफी मानसिक तनाव से गुजर होता रहा ....परिवार और अपने कैरियर के बीच BALANCE बनाने के लिए अपनी पढाई के साथ नाइंसाफी करनी पडी.
बहुत इच्छा थी की business management में P.H.D कर पाती मगर हालत के आगे नही कर सकी... ऐसे ही संघर्ष के दौरान कविता लिखने का शौक ज्यादा व्यग्र हो गया और ऐसे शब्दों ने जन्म लिया जो ज्यादा दुःख और पीडा को प्रदर्शित करते रहे...."
सवाल :- जी हमने सुना है कि आपने कुछ किताबे भी लिखी हैं?
जी आपने ठीक सुना है. असल मे और पढने की अदम्य इच्छाशक्ति को मैने लेखन मे पूरा करने की कोशीश की. और "QUALITY SYSTEM," पर दो किताबे प्रकाशित हुई उनसे ही संतुष्ट होना पडा. ...इन पुस्तकों ने नाम और यश को बुलंदियों तक पहुंचा दिया भारत की बहुत सी बडी उत्पादक कंपनियों ने इन पुस्तकों को अपने पुस्तकालय और गुणवत्ता सुधार के लिए इस्तमाल किया.....
सवाल :- इन किताबों के बारे मे कुछ हमारे पाठकों को विस्तार से बताये तो हमारे पाठक भी लाभान्वित हो सकेंगे.
जवाब :- देखिये, ये अपने विषय की बहुत ही उत्कृष्ट किताबें हैं. इस विषय से संबधित लोग इनको पढ कर लाभान्वित हो सकते हैं. वैसे इ हमारे आदरणीय लाल स्वेटर वाले फुरसतिया जी हैं ना उन्होंने भी इन पुस्तकों को पढा है ...तो हमसे ज्यादा शायद वो इस बारे मे कुछ कह पाएंगे...तो फुरसतिया जी आप का कहेंगे इस बारे मे हा हा हा हा हा ...
[ हमारी भी जिज्ञासा इन किताबों मे हो उठी तो हमने वहीं से फ़ुरसतिया जी को फ़ोन लगा कर पूछ डाला तो फ़ुरसतिया जी ने कहा कि-
सीमाजी ने बहुत ही सहज सरल भाषा में आई.एस.ओ.-9000 सीरीज के बारे में किताब में बताया है। आई.एस.ओ. में किस नियम का क्या मतलब है और कैसे आडिट करना/कराना चाहिये इसकी जानकारी बहुत अच्छी तरह से दी गयी है।
इसके बाद हमने फ़ुरसतिया जी से पूछा कि आपने तो इन किताबों को पढा है, कोई और विशेषता बताईये इन किताबों की ?
इस बात पर फ़ुरसतिया जी ने कहा कि ताऊ, सीमा जी से मजाक की अनुमति लेते हुये कहना चाहूंगा कि उनकी किताब उनकी कविताओं से ज्यादा सरल है।]
हमने फ़ुरसतिया जी को धन्यवाद दिया और अपने इंटर्व्यु को आगे बढाया.
सवाल है : लोग आपको लेडी गालिब कहते हैं. कैसा लगता है आपको लेडी गालिब कहलाना?
जवाब : इस पर सीमाजी ने बडी विनम्रता पुर्वक कहा- मै तो सपने मे भी ऐसा नही सोच सकती.......इतनी महान हस्ती की पावँ की धूल बराबर भी नही हूँ मै....न ही इस जीवन में कभी हो पाउंगी....इतनी योग्यता और काबलियत नही है मुझमे ....ये मै जानती हूँ....."
सवाल -२ . आपकी रचनाओ मे दर्द ही क्युं झलकता है? कोई खास वजह?
उत्तर : हम्म, ताऊ जी आपका ये सवाल कुछ ज्यादा ही मुश्किल हो गया है .....कहते हैं न हालत और experience इंसान को बहुत मजबूत बना देते हैं.......देखा जाए तो मेरी निजी जिन्दगी मे इन कविताओं से सम्बधित ऐसा तो कुछ भी नही है....भगवान की कृपा है ....फ़िर भी जिन्दगी मे बहुत बनते बिगड़ते टूटते रिश्तों को करीब से देखा है मैंने ....
और उसके दर्द को महसूस भी किया है...कुछ वर्ष (in-lawsके साथ )परिवार और कैरियर को संतुलन करने के दौरान रिश्तों की कड़वाहट को भी कुछ ज्यादा महसूस किया है मैंने .....और उस समय ने मुझे ये सोचने पर मजबूर किया की अगर दुःख है दर्द है आंसू भी जिन्दगी का एक हिस्सा है तो हम इससे दूर क्यूँ भाग रहे हैं.....खुशियाँ जब आएँगी तब आएँगी...जिसको देखो सब सिर्फ़ प्यार खुशी अपनापन ही चाहते हैं ....किसी को भी दुःख दर्द से प्यार नही आंसू से प्यार नही .....ये दर्द हमेशा अकेला ही रह जाता है हम इसको बस दुत्कार देते हैं .....जबकि यही हमारे साथ ज्यादा रहता है, और उस वक्त तो मुझे जरा जरा सी बता पर ही रोना आ जाता था हा हा हा हा हा ...और यही बात मेरे दिल मे बैठ गयी ....और ऐसी कविताओं ने जन्म लिया जो दर्द आंसू विरह विछोह तन्हाई रिश्तो की कड़वाहट से लबरेज रही...
सवाल :- पर आपकी रचनाएं दिल को छू जाती हैं पाठकों के?
उत्तर :- मुझे अपने आप को बहुत ज्यादा तो अभिव्यक्त करना नही आता बस इतना जानती हूँ " ना सुर है ना ताल है बस भाव हैं और जूनून है " लिखने का . और फ़िर आप सभी (ब्लागजगत ) के माननीय जनों के आशीर्वाद और प्रोत्साहन ने कुछ हट कर भी लिखने को प्रेरित किया जैसे " बंजारा मन" "मन की अभिलाषा " "खाबो के आँगन" "मायाजाल" "फ़िर उसी शाख पर", "शब्दों की वादियाँ" ये कुछ ऐसे रचनाएँ है जो दुःख दर्द से परे खुले आसमान मे उड़ते निश्च्छल बेपरवाह पक्षी के जैसी हैं....जिनका जन्म आप सब की प्रेरणा से ही हुआ....बस और क्या कहूँ...."
सवाल - . कोई ऐसा संदेश जो आप ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के पाठकों कहना चाहे?
उत्तर - " पहेलियों का सिलसिला खेल खेल मे यहाँ तक पहुंच जाएगा और ताऊ साप्ताहिक पत्रिका के इस रूप मे अपना विस्तार करेगा ये शायद किसी ने नही सोचा होगा....इसमे कोई शक नही की ताऊ जी की अपनी एक अलग ही शैली है जो सबको लोटपोट कर देती है....और एक उत्सुकता बनाये रखती है की अब ताऊ जी के पिटारे मे से कौन सी गोटी निकलेगी हा हा हा हा हा हा हा .....
अपने देश मे कितने ही वनस्पति फल फ़ूल पक्षी जानवर एतिहासिक इमारते ,महल और ना जाने क्या क्या है जिनसे हम अंजान हैं......इन पहेलियों के जरिये जो मानसिक विकास और general knowledge बढ़ रही है उस विषय मे माननीय अरविन्द जी , राज भाटिया जी और ताऊ जी का सफल प्रयास एक बेहद प्रसंशनिय काम है ...
इनकी मेहनत और कोशिशों की वजह से घर बेठे हम ऐसी दुनिया से रूबरू हो रहे हैं जिसमे उत्सुकता है ज्ञान है. सबसे बडी बात ये है की पहेली के उतर खोजने से लेकर अन्तिम परिणाम तक जो वातावरण बना रहता है उसमे एक अजीब सा एहसास है...
हँसी मजाक, खिंचाई, सही उतर देने की होड़, और प्रथम आने की कशमकश ...ऐसा माहोल जो अपने परिवार मे उस वक्त होता है जब कोई पारिवारिक function होता है और सुब मिलजुल कर बैठते हैं....जो कभी कभी कभार ही होता है. मगर यहाँ तो ऐसा माहोल रोज ही मिलता है एक तनाव रहित माहोल....व्यक्तिगत रूप से सबको ना जानते हुए भी जो अपनापन स्नेह प्रोत्साहन मुझ यहाँ मिला है उसका अनुभव शायद निजी जिन्दगी मे मुझे नही मिला.
मुझे यहां पहेली हल करने मे ऐसा लगता है जैसे तनाव दूर होगया हो. हार जीत अलग बात है.
सवाल :- अपने ब्लाग जगत के भाई बहनों से कुछ कहना चाहेंगी?
उत्तर :- जी जरुर.....सभी आदरणीय व्यक्तियों ने मुझे यहाँ बहुत कुछ सिखाया है...और ऐसा लगता है की अगर मै इस परिवार से नही जुड़ती तो कितना कुछ खो देती....ब्लॉगजगत से जुड़ने के बाद जैसे मै अपना बचपन जी रही हूँ और मै ये सोचती हूँ क्या "दुनिया इतनी हंसीन भी होती है " जहाँ कोई व्यक्तिगत स्वार्थ नही है......फ़िर भी एक दुसरे को प्रोत्साहन करने की हौसला देने की होड़ लगी रहती है.......अगर यही छोटी सी दुनिया इतनी खुशी से भरी है तो मुझे इसी परिवार के साथ इसी दुनिया मे रहना है और इस दुआ के साथ की ब्लागजगत का ये परिवार दिन बा दिन अपना विस्तार करता रहे और यूँही खुशियों के मोती बिखेरता रहे ......
अपने से बडो को आदर और छोटो को स्नेह के साथ मै अपना आभार व्यक्त करना चाहूंगी और ताऊ जी आपकी इस पत्रिका के जरिये मुझे जो मौका मिला है दो शब्द माननीय ब्लागरो के साथ बांटने का उसके लिए मै आपकी सदा आभारी रहूंगी....क्यूंकि कविता वो (भी दुःख भरी ) हा हा हा के इलावा कभी कुछ तो बांटा नही मैंने आप सब के साथ ....लकिन आज मै खुश हूँ....ये जान कर की मै कुछ दो शब्द ठीक ठाक भी कह सकती हूँ...पहेलियों के प्रति अपनी उत्सुकता और जिज्ञासा यूँ ही बनाये रखें .....और इसी जज्बे के साथ हिस्सा लेते रहें.....और इनके अथक और सराहनीय प्रयासों को बुलंदियों पर पहुँचाने में अपना योगदान दे ...With Regards
( यह with regards सु. सीमाजी के कहने पर हमने लगाया है कि उनके साक्षात्कार के अंत मे trade mark के रुप मे यह जरुर लगादें.:) सो हमने आप लोगो के लिये सु. सीमाजी की तरफ़ से यह सम्मानसूचक शब्द यहां लगा दिया है.जैसा उनकी टिपणियों के अंत मे लगा रहता है.)
सवाल :- आप पर भी शक किया जाता है कि आप भी ताऊ के नाम से लेखन करने वालों में हो सकती हैं? यानि ताऊ होने का शक.........
हमारी बात को बीच मे ही काट कर सीमाजी ने एक रहस्य पुर्ण मुस्कराहट के साथ कहा कि, ताऊ जी लंच का समय हो गया है, चलिये.
और हमारा यह प्रश्न उन्होने अनुतरित ही छोड दिया. इसका क्या मतलब हो सकता है? ? आप ही सोचिये.
हमारा सु,सीमा जी के साक्षात्कार के दौरान उनके साथ बिताये यादगार पलों को याद करते हुये उनसे विदा ली. उन्होने वादा किया कि जब भी वो अगली बार पहेली जीतेंगी तब एक लम्बे से साक्षात्कार के लिये समय निकालेंगी. और आपके लिये यह कविता उन्होने कही है.
"तुम्हारा है " यह दर्द कसक दीवानापन ... यह दुनिया से उकताया हुआ मन... तनहाई में मचलना और तड़पन .......... सीने की दुखन आँखों की जलन , सब कुछ तो मेरे जीने का सहारा है ........ |
और विदा लेते समय सु. सीमाजी ने उनकी प्रकाशित किताबों का एक सेट हमें भेंट स्वरुप दिया. इस साक्षात्कार के लिये बहुत आभार आपका सीमा जी.
और अब परसों यानि सोमवार को हम आपको हमारे पहेली ३ के सम्मान्निय विजेता श्री विवेक सिंह जी से रुबरु करवायेंगे.
आपको यह साक्षात्कार कैसा लगा? कृपया अवश्य अवगत करायें. और अब आज की पहेली पर नीचे चलते हैं.
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ताऊ पहेली न.७ ये रही !!!
माननिय भाईयों , बहणों, भतीजे और भतीजियों ये नीचे देखिये और पहचानिये ये कौन सी जगह है ? तो जरा फ़टाफ़ट जवाब दिजिये और जीत लिजिये ये पहेली प्रतियोगिता, जिससे हम आपका इंटर्व्यु लेने तुरन्त आपके पास पहुंच सकें.
यह कौन सी जगह है?
बिल्कुल सीधी सी पहेली है अबकि बार. सारे नियम कायदे सब पहले की तरह ही हैं. बस आप तो फ़टाफ़ट जवाब देते जाईये. चाहे जितने जवाब दे कोई प्रतिबंध नही है. ध्यान रखिये आपका आखिरी जवाब पिछले जवाब को स्वत: ही केन्सिल कर देगा.
ताऊ मुझे तो अभी भी ये ईमारत कहाँ है पल्ले नही पड़ी ! सोमवार को परिणाम देखकर ही अपना ज्ञान बढाऊंगा ! आपकी पहेलियाँ अच्छा ज्ञान वर्धन कर रही है !
ReplyDeleteसीमा जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा ! अब विवेक जी के साक्षात्कार का इंतजार रहेगा !
गोलकुण्डा का किला...
ReplyDeleteअर से भी बतादूं कैसे... कयोंकि इसका कोना ही गोल-गोल है...
बाकि भाई ताऊ की माया ताऊ जाणै...
पता नी कित-कित तै फोटू ठा ल्यावै....
अपणे to पर्स म्हं ब्याह तै पहलां मौसमी चटर्जी की अर आजकल अपणी घरआली की फोटौ रहवै...
मधुबाला जी भी अच्छी लगती थी पर उसकी फोटू म्हारे पिताजी के पास थी...
बाकि ताऊ श्री, सीमा ji का साक्षात्कार सै तो बढिया अर आइडिया एकदम मौलिक..
आप दोनुआं नै घणी बधाई....
सीमाजी का साक्षात्कार पढ़कर अच्छा लगा। सीमाजी के बहुत संवेदनशील मन वाली हैं। उनकी कविताओं में घणे दुख की अभिव्यक्ति है। लगता है कि दुख और पीड़ा का खूब बड़ा गोदाम है। जहां हर रंग के दुख मिलते हैं। दुख ही दुख , पीड़ा ही पीड़ा। दूसरी तरफ़ सीमाजी का बिंदास व्यक्तित्त्व है। हा,हा,हा,हा वाला। हमेशा उत्फ़ुल्ल सा दिखने वाला। सहज, स्वाभाविक। with regards का टैग इनका कापी राइट है। सीमाजी के इंटरव्यू की खास बात है कि उन्होंने ईमानदारी से अपनी बात कही!
ReplyDeleteसीमाजी अपनी मनचाही पढ़ाई कर सकें इसके लिये शुभकामनायें!
इंटरव्यू पढ़वाने का शुक्रिया।
सुश्री सीमा गुप्ता जी का साक्षात्कार -मेरे चिट्ठाकार चर्चा स्तम्भ के एक भावी हस्ताक्षर से मिलना बहुत अच्छा लगा -और ताऊ पहली बार तुम थोडा रकीब से लगे ! मुझे लिखना था ना पहले सीमा जी पर ! इतनी खूबसूरत मुअम्मा को बूझने के बाद कौन तुम्हारी उजाड़ पहेली की और रुख करेगा ! राम राम !
ReplyDelete" ye to kisi fort ka pichla bhaag lg rha hai...dundty hain abhi"
ReplyDeleteRegards
ये तो कोई रेस्टोरेन्ट है. रिवाल्विन्ग रेस्तोरेन्ट है.
ReplyDeleteबस इतना ही कहना चाहता हूँ सीमा जी की कविताओं के बारे में---
ReplyDeleteवियोगी होगा पहला कवि
आह से उपजा होगा गान
निकलकर आंखों से चुपचाप
बही होगी कविता अनजान
सीमा गुप्ता जी के बारे में जानकर अच्छा लगा . अपने बारे में जानने की उत्सुकता है :)
ReplyDeleteसीमा जी का स्सक्षय्कार बढ़िया लगा. उनके एक और ट्रेड मार्क हुआ करती थी "हा हा हा हा हा". यह जो पहेली है कठिन लगती है. हमने तो शायद हैदराबाद में देखा था. भले ही आप को कहीं और दिखी हो.
ReplyDeleteसौ. सीमा जी से हुई बातचीत
ReplyDeleteबहुत अच्छी लगी -
शुक्रिया ताऊ जी ,
उनसे मिलवाने का -
स्नेह,
- लावण्या
सीमा जी के बारे में जान कर बहुत अच्छा लगा ..उनकी लिखी गई बुक्स के बारे जान कर बेहद खुशी हुई ..शुक्रिया
ReplyDeleteपहेली के लिए कुछ तो क्लू दे ..अभी गौर से देख कर बताते हैं यदि बुझ पाये तो :)
सीमा जी से मुलाकात करवाई, अच्छा लगा. इस तरह अपने चिट्ठापरिवार के अन्य मित्रों से भी मुलाकात हो जायगी और घनिष्ठता बढेगी. आप एक अच्छा काम कर रहे हैं, लेकिन इसके साथ साथ आपका भार बढता जा रहा है. जरा अपना भी ख्याल रखें, कहीं ऐसा न हो कि दोचार महीने के बाद ताई एक पोस्ट छाप दें:
ReplyDelete"आप लोगों के प्रिय ताऊ अब उन खंडहरों में ही कहीं हैं जिनका चित्र वे छापा करते थे. पता नहीं क्या हुआ, कुछ दिनों से समय की कमी को रोते हुए उन्होंने बाल नोचना शुरू कर दिया था. उनको ढूढ निकालने वाले हर बडे बच्चे को उचित इनाम दिया जायगा. वापसी पर उनको काऊंसलिंग के लिये पहले शास्त्री जी के पास, और उसके बाद पुन: चिट्ठा-ट्रेनिंग के लिये एक उडखटोले पर अनूप शुक्ल के पास भेज दिया जायगा जिससे कि उनकी मानसिक हलचल सही हो जाये"
हां यह चित्र देख कर मूत्रशंका होने लगी है अत: कुछ पल के लिये क्षमा चाहता हूँ!!
सस्नेह -- शास्त्री
"Tau ji mujhe to ye Jhansi fort lag rha hai..........kuch to clu dejeye plsssss"
ReplyDeleteRegards
फोटो तो अबल्कुल ही पहचान में नहीं आ रही ... सीमा गुप्ताजी का साक्षात्कार पढकर बहुत अच्छा लगा....विवेक जी के साक्षात्कार का इंतजार रहेगा !
ReplyDeleteनिवेदन :- क्ल्यु के लिये हमेशा ब्लाग के दाहिने तरफ़ की फ़ोटो देखें.
ReplyDeleteसूचना समाप्त.
रामराम.
ताऊ,
ReplyDeleteसीमा जी से मिलकर घनी खुशी हुई. यो थारी पहेली तो दिन-पै-दिन कठिन ही होती जावे साईं. मन्नै तो यो इमारत कोई "विवादित ढांचा" दीखै सै. विवादित नू कर कै की कोई इसने रावण का किला बतावेगा और कोई बतावेगा कैकेयी का कोपभवन. करा दिया न विवाद इब बैठे-बिठाए. मैं तो भाई, इस विवाद मैं पड़ता कोन्नी!
मेरा जवाब है :
ReplyDeleteदौलताबाद किला का मुग़ल पैवेलियन दौलताबाद
दौलताबाद महाराष्ट्र का एक शहर है । यह अहमदनगर जिले में स्थित है ।
क्ल्यू के लिए धन्यवाद
ReplyDelete---उत्तर प्रारंभ ---
ताऊ, यह झांसी का वह किला है जो रानी लक्ष्मी बाई की वीरता के कारण अमर हो गया.
---उत्तर समाप्त ---
सीम गुप्त जी के बारे में बताने का धन्यवाद। ब्लॉग क्षेत्र में अपने अपने क्षेत्र में सशक्त उपलब्धि रखने वाले लोग उड़े हैं, यह फख्र का विषय है।
ReplyDeleteताऊ जी लाक कर लो जी
ReplyDeleteDaulatabad Fort, nr Aurangabad
Regards
ताऊ जी इब तो शाबाशी दे ही दो अभी तो दिन ढला नही और हम कामयाब हो गये हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा वैसे ये क्लू बढा ही चोखा लगाया आपने.....बाद मे आती हूँ कुछ छानबीन कर डिटेल के साथ......
ReplyDeleteregards
मैं विस्तृत जवाब देना चाहता हूँ लेकिन पता नहीं कि मेरा जवाब सही है या ग़लत ! अगर ग़लत हुआ तो सारी मेहनत बेकार हो जायेगी ! वैसे भी विस्तृत वर्णन तो अल्पना जी ही देंगी क्योंकि मैं कितनी भी कोशिश कर लूँ उनसे अच्छी जानकारी दे पाना बहुत मुश्किल है ! फिलहाल मैं इन्तजार कर रहा हूँ अगर अल्पना जी ने जवाब नहीं दिया (हालांकि यह नामुमकिन क्या असंभव सा है) तो मैं डिटेल देने की कोशिश करूंगा ! ताऊ जी यह तो बता दीजिये कि मेरा जवाब सही है कि नहीं ?
ReplyDeleteसीमा जी से मिलवाने का शुक्रिया। ये तो झांसी का किला लग रहा है।अब तो पास कर दो ताऊ इस भतीजे का कुछ तो खयाल रखो।
ReplyDeleteताउजी | आपकी पहेली का यह किला गोलकुंडा का ही लग रहा है|... हम जब हैदराबाद गए थे; तब देखा था|... ९९% तो यही है|
ReplyDeleteसीमा गुप्ता एक प्रतिभावान लेखिका और कवियित्री है|... उनकी रचनाएँ ही इस बात की गवाही देती है|... इंटरव्यू पढ़ कर मजा आया ताउजी|
ताऊ ये तो देवगिरी फोर्ट है दौलताबाद में |
ReplyDeleteDaulatabad fort just 13 km. from Aurangabad. Maharastra
ताऊ ये तो देवगिरी फोर्ट है दौलताबाद में |
ReplyDeleteDaulatabad fort just 13 km. from Aurangabad. Maharastra
नमस्कार ताऊ जी,
ReplyDeleteमेरी एक सलाह हैं कि विजेता का साक्षात्कार सोमवार या मंगलवार को प्रसारित किया जावे क्योंकि शनिवार को तो सिर्फ़ पहेली का इन्तजार रहता हैं, अगर आप को यह सलाह ठीक लगे तो मुझे लगता हैं कि सभी पाठक भाई पहेली और शक्शात्कार का समुचित रूप से आनंद उठा सकेंगे! बाकी आप हाम ताऊ हैं, भतीजे कि बात मानना या ना मानना ताऊ के ऊपर निर्भर करता हैं......
मुझे तो यह चित्तौदागढ़ का किला लग रहा हैं, बाकी आप जाने,
ऐसी पहेलिया प्रकाशित करने कि कोशिश करें जो बहुत प्रसिद्द हों, जिसका हम ब्लॉग भाई थोडी कम माथापच्ची से उत्तर दे सकें!
अगर सुझाव से आपके सम्मान को ठेस पहुंचे तो क्षमाप्रार्थी हूँ!
धन्यवाद!
सस्नेह!
दिलीप गौड़
गांधीधाम
ताऊ सीमाजी के बारे में जानकर अच्छा लगा. आपको साधूवाद व सीमाजी को शुभकामनाएं.
ReplyDeleteपहेली का हमारा उत्तर वही है. नहीं पता. आप ये फोटो लाते कहाँ से हो?
दौलताबाद किला |औरंगाबाद के निकट , महाराष्ट्र |
ReplyDeleteदौलताबाद किला है भाई औरंगाबाद के निकट , महाराष्ट्र |
ReplyDeleteDaulatabad Fort
ReplyDeleteदौलताबाद औरंगाबाद से 13 km की दुरी पर स्तिथ है. देवागिरी नाम से जाना जाने वाला १२ century का ये शोभायमान किला एक ऊँची पहाडी की चोटी पर स्तिथ है. delhi के सुलतान मोहम्मद बिन तुगलक ने इस किले को दौलताबाद 'The city of fortune' का नामा दिया था . गुप्त सुरंगों और सेना की छुपने की गुप्त रास्तों की सामूहिक श्रंखला इस किले की विशेषताएँ हैं. प्रसिद्ध स्मारक जैसे Jami Masjid, Bharatmata Mandir, the Chand Minar, Elephant Tank and 'Chini Mahal' or Chinese Palace किले के अंदर मोजूद हैं."
Regards
ताऊ ये जो चित्र है वो दौलताबाद के किले का मुग़ल पैवेलियन का चित्र है |
ReplyDeleteदौलताबाद , औरंगाबाद (महाराष्ट्र) से १३ कि.मी. की दुरी पर है |
इसको देवगिरी भी कहते है |
ये मुग़ल पवेलियन का चित्र है | दौलताबाद (देवगिरी का किला), औरंगाबाद के निकट, महाराष्ट्र |
ReplyDeleteवैसे तो एक कवियत्री के तौर पर इस ब्लागजगत मे सीमा जी से सभी परिचित हैं. किन्तु साक्षात्कार के जरिए उनके बारे में विस्तार से जानने का आपने अवसर उपलब्ध करवाया.इस प्रकार के उत्तम प्रयास हेतु आप बधाई के पात्र हैं.
ReplyDelete..................................
लो जी इब पहेली की बात कर ली जावै.
मेरे ख्याल से यो "जयगढ का किला" है. अभी तो इसे ही पक्का समझो. अगर जवाब बदलना होगा तो दोबारा से फिर सूचित किया जाएगा.
ताऊ.. भतीजे का प्रणाम स्वीकार करो.. .ये दौलताबाद का किला है, जो औरंगाबाद के नज़दीक है। ज्यादा जानकारी अगली टिप्पणी में दे रहा हूं।
ReplyDeleteजयगढ़ का किला-राजस्थान.
ReplyDelete[यह एक अंदाजा है,पक्का जवाब मिलने तक कृपया यही जवाब माना जाए]
ताऊ...दौलताबाद (देवगिरी) दुर्ग की ज्यादा जानकारी कुछ यूं है-
ReplyDeleteदौलताबाद महाराष्ट्र का एक शहर है। देवगिरी नाम से भी प्रसिद्ध। मुहम्म्द बिन तुगलक़ की राजधानी। यह अहमदनगर जिले में स्थित है। दुर्ग 200 मीटर की ऊंचाई पर एक पहाड़ी पर है और यहां तक पहुंचने का रास्ता दुर्गम है। एक जगह पर तो रास्ता इतना संकरा है कि दो लोग से ज्यादा एक साथ नहीं जा सकते। इसके शिखर पर एक पुरानी तोप है, जिसकी दिशा शहर की ओर है।
मैं .यहां कभी गया नहीं हूं, इसलिए यह जानकारी इंटरनेट से ही जुटाई है। अब इतनी खोजबीन करने के बाद यहां जाने की इच्छा कुलबुलाने लगी है।
सीमा जी के बारे में जानकर अच्छा लगा.अभी तक उन की कविताओं और चित्र संकलन से ही उन की पहचान थी.
ReplyDeleteएक प्रतिभाशाली व्यक्तित्व है.इन से रूबरू आप ने करा दिया आप का आभार.
आप के इस यह नए आयोजन से 'कुश की कोफी 'को एक प्रतियोगी मिल गया!-
ब्लॉग जगत के ब्लोग्गेर्स को जानने का एक बहुत ही अच्छा मौका ब्लॉग जगत वासियों को मिल रहा है.
धन्यवाद.
अतिरिक्त जानकारी
ReplyDelete-दुर्ग का निर्माण- 11वीं सदी
- अलाउद्दीन खिलजी ने इस पर आक्रमण किया था
- मुहम्मद बिन तुगलक का तुगलकी फरमान (राजधानी को दिल्ली से दौलतबाद ले जाना) इसी किले से जुड़ा है
- पहाड़ी की ऊंचाई- 200 मीटर
- मीनार की ऊंचाई- 210 फीट
- मीनार का नाम- चांद मीनार
- तोप की लंबाई- 6.1 मीटर
- यहां एक पानी का टांका भी है
एक सवेदनशील इन्सान ही कवि हो सकता है ..उनकी प्रतिभा शायद ज्यादा है .खास तौर से हिन्दी -उर्दू शब्दों पर उनकी पकड़ . मुझे लगता है वे अगर ओर ज्यादा समय दे तो पूर्ण लेखक बन सकती है .आपका आभार .
ReplyDeleteDaulatabad Fort, near Aurangabad
ReplyDeletedetails agle comments mein
सींमा जी से मिलवाये दिये, बहुत आभार. आपके थ्रू पहचान हो गई.. :)
ReplyDeleteरही बात पहेली की तो मन्ने तो सैम या बीनू फिरंगी का घर लग रहा है..और तो कुछ समझ में आ नहीं रहा है.,
यह चित्र औरंगाबाद से १३ km दूर 'दौलताबाद किले के मुख्य महल 'का है.
ReplyDeleteताऊ पुराना जवाब कैसिल कर दियो.
ReplyDeleteनया जवाब है "दौलताबाद का किला"
रण थम्बोर का किला दूसरी तरफ से देखने पर. :)
ReplyDeleteवैसे भी मेरा घर तो है नहीं कि एड्रेस पक्का मालूम रहे तभी काम बनेगा. :)
इसकी एक खास विशेषता है कि तस्वीर में ये जो तोप दिखाई दे रही है ये पंचधातु से बनी हुई है.(सोना,चांदी,तांबा,लोहा,रांगा)
ReplyDeleteताऊ राम राम
ReplyDeleteसीमा जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा
यह!!!!!!!!!
फाईनल जबाब:
ReplyDeleteदौलताबाद किले का मुख्य महल, औरंगाबाद.
Daulatabad fort. Situated 13 kms from Aurangabad, it is the strongest fort in Deccan. Known originally as Devagiri by the Yadavs it was built in 11 century AD and was captured by Alah-ud-din Kilji by treachery. This fort was made famous when Muhammud-ibn-tughlaq tried to move his capital here from Delhi. It was this insane migration that brought islam to the south and changed the demography of the Deccan. The fort houses a palace situated on top of a 200m hill and 210 ft minar (Chand minar, in height second only to the more famous Qutub), a 6.1m long cannon and a large water tank.
ReplyDeleteबसंत पंचमी की आप को हार्दिक शुभकामना
ReplyDeleteनमस्कार ताऊ,
ReplyDeleteसीमा जी से बातचीत अच्छी थी|
यह दौलताबाद किले की तस्वीर है जो औरंगाबाद में है| इसे देवगिरी भी कहते हैं|जो फोटो आपने लगाई है वो मुग़ल pavilion है|
साक्षातकार बहुत अच्छा लगा..........समा जी की शक्शियत के बारे में जान कर अच्छा लगा.
ReplyDeleteऔर मुझे भी ये गोलकुंडा का किला लग रहा है..........आप हमारा नॉन भी लाक कर दें
बसंत पंचमी की बहुत बहुत बधाई
ताऊ, बहुत confusion है.. पहेली में हरियाली दिखा रहे हो.. लेकिन हिन्ट में रेगिस्तान.. लग राजस्थान रहा है.. पर समझ नही आ रहा क्या? जोधपुर है नहीं, जयपुर है नहीं... न ही उदयपुर, जैसलमेर, कुम्भल्गढ़ है..प्रयास जारी है.. कुछ मिला तो फिर आयेगें..
ReplyDeleteहाँ सीमा जी के बारे में एक बात.. वो भी समीर भाई की तरह हर ब्लोगर का हौसला बढाती है... बहुत सारे ब्लोग्स पढती है और टिप्पणी भी करती है.. काफी़ हौसला मिलता है.. उनका भी धन्यवाद..
अच्छी पोस्ट है\अच्छी जानकारीयां मिल रही है।आभार।
ReplyDeleteताऊ जी राम राम
ReplyDeleteआज मैं पतंग उडाने में इतना मशगूल हो गया कि पता ही नहीं चला कि आज पहेली का भी विजेता बनना है तो आज देरी के कारण अब तक विजेता कई बन चुके होंगे
आदरणीय सीमा जी का इंटरव्यू बहुत अच्छा लगा ऐसा लगा कि आदरणीय श्रीमाऩ श्रीमति ताऊ के साथ मैं भी गया था सीमा जी का इंटरव्यू करने के लिए
बहुत अच्छा बोले हैं सीमा जी लेकिन मेरा नाम भूल गये क्योंकि कभी किसी जमाने में पहेली हम भी पूछते थे लेकिन किसी कारण से हमें बंद करनी पडी शायद इसीलिए बंद की है कि सीमा जी हमारा नाम लेना भी उचित ना समझें
खैर बडे बडे शहरों में छोटी छोटी बातें तो होती ही रहती हैं
जवाब दूसरे बार में आएगा
ताउ यह है दौलताबाद महाराष्ट्र, मुहम्म्द बिन तुगलक़ , अहमदनगर, Daulatabad Fort. यह लो जबाब
ReplyDeleteताऊ जल्दी से मेरा जवाब लिख लो वरना मैं भूल जाउंगा
ReplyDeleteयह है
Mughal Pavilion, high up the fort.
मुगल पवेलियन
ताऊ थोडा मात्रा की गलती हो सकती है तो नंबर मत काटना
ताऊ, ये ले जवाब संभाल. ये ओरंगाबाद से एल्लोरा जाते समय रास्ते में पङता है, दोलताबाद, वहां का किला है. और इसके पास ही खुलताबाद है जहां ओरंगजेब साहब को उनकी बीबी की कब्र के पास ही दफनाया गया है. कहते हैं इस मजार पर जो कोई बेटा-बेटी होने की मन्नत मांगता है वो पुरी होती है.
ReplyDeleteऔर सुनले इसी किले के गेट पे चंद मीनार है. और ये करीब ७० मीटर उंची है, मैं जवानी में इस पर चढ़ चुका हूँ
. और इस किले की चोटी पर भी तिन बार चढ़ा हूं. वहां एक भूलभुलैया है . वहां बड़ा मजा आता है.
मोहाम्मद तुगलक यानी जिनके नाम पर ये कहावत पड़ी है की ये क्या तुगलकी फरमान हैं. उन्होंने यहां राजधानी शिफ्ट कर ली थी. वैसे ये बहुत ही सुरक्षित दुर्ग था. पर वो हमारे कहने से वापस चले गए थे. ये अंदर की बात है.:)
अब फोकट में इससे ज्यादा जानकारी नही दे सकता. कुछ इनाम विनाम देवे तो और बता दूंगा.
एल्लोरा से दस किलोमीटर आगे ग्रुश्नेश्वर महादेव का ज्योतिर्लिंग है, हम वहां हर साल पूजा करने जाते हैं अगस्त में. तब ये सब कुछ रास्ते में पङता है.
दौलताबाद किला,ताउ साथ मै अता पता भी लेलो.
ReplyDeletehttps://www.blogger.com/comment.g?blogID=9012783706385676563&postID=1918374609519911197&page=1
सीमा जी के बारे पढा बहुत अच्छा लगा, अब तारीफ़ तो सब ने कर दी है, जो बच गई हो मेरी तरफ़ से, क्योकि सीमा जी की शायरी , कविता , गजल किसी तारीफ़ से भी बढ कर है हम उन की तारीफ़ क्रे तो लगता है, सुरज को दीपक दिखा रहि दो, बहुत खुशी हुयी सीमा जी के बारे पढ कर.
धन्यवाद
एक जरुरी सूचना :- एक सदस्यीय निर्णायक मंडल कुल २२ तिपनियो को सही पाये जाने के जुर्म में रोक कर बैठा है. और उनका गहन परिक्षण चल रहा है.
ReplyDeleteसूचना समाप्त.
'दौलताबाद किला'-एक उपेक्षित किला!न शोधकर्ताओं की नज़र पड़ती है न ही इसे संरक्षित रखने के प्रयाप्त उपाय किए जा रहे हैं.कमजोर दीवारें गिर रही हैं..एक प्राचीन धरोहर भारत खोता जा रहा है.इतिहास गवाह है -यही एक मात्र एक ऐसा किला है जिसे कभी कोई जीत नहीं सका.
ReplyDeleteकई राजाओं की तरह अकबर महान ने भी इस पर चार बार चढाई की थी मगर सफल नहीं हुआ.इस के अविजित होने में इस की सरंचना को श्रेय जाता है.
यह किला महाराष्ट्र राज्य में औरंगाबाद से १३ किलोमीटर पर पहाडी की चोटी पर स्थित है.
यह किला कब बना?
इस में कई मत हैं-
१-स्टुअर्ट piggat के अनुसार यह शाहजहाँ के लिए १६३६ में बनवाया गया था.Maharashtra राज्य के गजेट के अनुसार शाहजहाँ और उस का बेटा औरंगजेब गर्मियों में यहाँ घूमने आते रहते थे.
२-M. S. मेट के अनुसार यह किला १७वि शताब्दी में बनवाया गया था.
३-अधिकतर यही मानते हैं की औरंगजेब ने यह किला १६४४ में बनवाया होगा क्योंकि उसी ने दो बार डेक्कन पर जीत हासिल की थी-[१६३६-१६४४ और १६५२-१६५७].
दौलताबाद को देवगिरि के नाम से भी जाना जाता है। यह शहर हमेशा शक्ितशाली बादशाहों के लिए आकर्षण का केंद्र साबित हुआ है। दौलताबाद की सामरिक स्थिति बहुत ही महत्वपूर्ण थी। यह उत्तर और दक्षिण्ा भारत के मध्य में पड़ता था। यहां से पूरे भारत पर शासन किया जा सकता था। इसी कारणवश बादशाह मुहम्मद बिन तुगलक ने इसे अपनी राजधानी बनाया था।
उसने दिल्ली की समस्त जनता को दौलताबाद चलने का आदेश दिया था। लेकिन वहां की खराब स्थिति तथा आम लोगों की तकलीफों के कारण उसे कुछ वर्षों बाद राजधानी पुन: दिल्ली लाना पड़ा।
-यह भारत के सबसे मजबूत किलों में एक मजबूत किला है.यह तीन मजिला है.
- hilltop महल के भीतर पहुँचने के लिए एक खाई और एक पुल को पार करते हुए एक संकरी सुरंग में दाखिल होना पड़ेगा,कई सौ फीट चलने के बाद सपाट सीधी सीढियां इस रास्ते को जटिल बनाती हैं.इस की बनावट पर मुग़ल शैली का प्रभाव है.
-hilltop महल की बनावट में इस्तमाल खांचे और ग्रिड प्लान का हुबहू प्रयोग शाहजहाँ के बनवाए 'दौलत खाना 'में भी मिलता है. - इस में कुछ कमरे सोने के लिए , कुछ मनोरंजन के लिए और कुछ दर्शक हॉल के रूप में. इस्तमाल होते थे.
यह शाही निवास जैसा ही था. हालांकि, यहाँ मस्जिद और स्नान जैसी सुविधाओं तक पहुँचने में कठिनाई है,
-यह प्राथमिक मुगल निवास नहीं था ,न ही यह एक स्थायी आधार पर एक घर था बल्कि अपने दूरस्थ और दर्शनीय स्थान को सुझाता यह स्थान /किला शाही परिवार और दरबारी सदस्यों द्वारा कभी-कभी उपयोग के लिए था.
दौलताबाद में बहुत सी ऐतिहासिक इमारतें हैं जिन्हें जरुर देखना चाहिए। इन इमारतों में जामा मस्जिद, चांद मीनार तथा चीनी महल शामिल है। औरंगाबाद से दौलताबाद जाने के लिए प्राइवेट तथा सरकारी बसें मिल जाती हैं।
प्रवेश शुल्क: भारतीयों के लिए 5 रु. [?]तथा विदेशियों के लिए 5 डालर। समय: सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक।'डेक्कन ऑडिसी ट्रेन' ले सकते हैं जो प्रत्येक बुधवार 16.40 बजे मुंबई के छत्रपति शिवाजी टर्मिनस से चलती है.[confirm it] पर्यटकों के लिए ख़ास हिदायत है की इस किले में जा रहे हैं तो पानी की बोतल जरुर साथ रखें क्योंकि वहां ऊपर कहीं भी पीने के पानी की व्यवस्था नहीं है.
अब इस में कोई जानकारी ज्यादा लगे तो कांट-छाँट कर लिजीयेगा.
[सही जवाब एंव सूचना देने में आज समयाभाव के कारण देर हो गई इस के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ.]
ताऊ जल्दी से मेरा जवाब लिख लो वरना मैं भूल जाउंगा
ReplyDeleteयह है
Mughal Pavilion daulatabad
मुगल पवेलियन दौलताबाद
ताऊ थोडा मात्रा की गलती हो सकती है तो नंबर मत काटना
देख ताऊ, तुझसे कुछ छिपा तो है नहीं और न हीं पहेली का पहला ईनाम मिल जाने से तू ओ भाटिया जी वाले १० लाख मेरे थ्रू भिजवाणे वाला है, तो भी सच तो तुझको बता ही देना जरुरी समझता हूँ.
ReplyDeleteआज की पहेली का जबाब तो मन्ने पहले से मालूम था मगर अब जब पहेली ७ बजे छपी तो जबलपुर में बिजली नहीं रहती ७ से ९ बजे. ९ बजे बिजली आई तो इन्टरनेट कनेक्शन गायब जो २ बजे लौटा और २.३० बजे मैने सही जबाब डाल दिया. बिजली गायब और फिर इन्टरनेट गायब का सर्टिफेकट भी लेता आया हूँ ताकि लफड़ा बढ़े तो काम आये.
अब थारा गणित का तो भगवान मालिक है मगर ताई से पूछ कर देखना तो मेरा जबाब ७.३० बजे सुबह का माना जाना चाहिये. अगर उसके पहले किसी ने जबाब दिया हो तो वो फर्स्ट वरना मैं.
देख लेना कल जबाब छापने के पहले वरना विवाद निवारण का क्षेत्र जबलपुर कहलायेगा. इसी बहाने तेरा घूमना भी हो जायेगा और अपना मिलना भी. कानून के हाथ कितने लम्बे होते हैं कि इतनी जल्दी मिलन कराने का इन्तजाम करा दिया. :)
ताऊ जल्दी से मेरा जवाब लिख लो वरना मैं भूल जाउंगा
ReplyDeleteयह है
Mughal Pavilion daulatabad Aurangabaad
मुगल पवेलियन दौलताबाद औरंगाबाद
ताऊ थोडा मात्रा की गलती हो सकती है तो नंबर मत काटना
amber fort jaipur rajasthan
ReplyDelete(hindi translation kaam nahi kr rhaa)
ReplyDeleteThe most magnificent attraction in Aurangabad is the fort of Daulatabad , around 20 miles from the city. The fort stands on a conical hill about 200 m high, it was originally called Devagiri and founded by the Yadavas in 1187 . It was later captured by Allaudin Khilji and Malik Kafur . In 1327 it became famous as the place where Mohd Bin Tughlaq shifted the entire capital from Delhi . He renamed it as Daulatabad , and marched the entire population of Delhi to Daulatabad , and when he found it was not suitable, again abandoned the city and marched back to Delhi. Many people had to pay a heavy price for this foolish misadventure. Till 1526, this fort was under the Bahmani Sultans of Gulbarga . Later it changed hands between the Mughals and the Nizam Shahi dynasty of Ahmednagar . After Aurangzeb’s death it became part of the Nizam of Hyderabad’s kingdom.
One of the more prominent landmarks in the fort is the Chand Minar a 210ft high tower covered with Persian tiles and erected by Alauddin Bahmani to commemorate the capture of the fort. But what is fascinating about the fort is it’s security system. With multiple layers of defence and a number of booby traps, the fort has one of the most advanced security mechanism.
Regards
ये औरन्गाबाद का किला है.
ReplyDeleteसीमाजी का इंटर्व्यू बढिया रहा.
दौलताबाद फोर्ट..औरंगाबाद
ReplyDeleteदौलताबाद औरंगाबाद से 13 किमी की दूरी पर स्थित है. जो देवागिरी के रूप में जाना जाता था यह फोर्ट, एक पहाड़ी के ऊपर एक शानदार 12 वीं सदी के किले खड़ा है.,यह एक उत्कृष्ट वास्तुकला का नमूना है , महाराष्ट्र में कुछ अजेय किलों में से एक है.
जामा मस्जिद, भारतमाता मंदिर है, चांद मीनार, हाथी टैंक और 'चीनी महल' या चीनी पैलेस किले के अंदर महत्वपूर्ण स्मारक हैं...
कहाँ-कहाँ से लाते हैं आप भी ताऊ ये किले ढ़ूंढ़ कर...
ReplyDeleteबुहूहूहूहूहू~~~~~~
और सीमा जी का साक्षत्कार बहुत भाया...साप्ताहिक पत्रिका का ये कलेवर अच्छा छा रहा,वैसे इस लिहाज से अपना इंटर्व्यु का नंबर तो आने से रहा...
वाह वाह ताऊजी, क्या बेहतरीन रूबरू कराया है आपने एक अज़ीम हस्ती से ब्ला॓गजगत की। सीमाजी का वाक़ई कोई जवाब नहीं है। आपका बहुत बहुत आभार इस साक्षातकार के लिए। और निश्चित तौर पर आप ब्ला॓ग पर एक बहुत ही सार्थक प्रयास कर रहे हैं।
ReplyDeleteरही बात चित्र पहेली की तो हम दावे के साथ इसे कुछ यूँ बूझे देते हैं कि--
यह हमारे मुल्क की उन्हीं गिनी चुनी ऐतिहासिक धरोहरों में एक है, जिन्हें हम सवा अरब लोग मिलकर भी संभाल नहीं पा रहे हैं। शर्म, शर्म हमें हमपर शर्म है, ताऊजी ।
ताऊ पहले वो जो हैडिंग में दिया है, यानि पहेली का उत्तर ये है दौलताबाद फोर्ट जो कि औरंगाबाद के पास है।
ReplyDeleteसाक्षात्कार के बारे में, सीमाजी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा, बहुत सी नयी बातें पता चली, ये उनका ही कमाल है कि वो इन सब चीजों के लिये कहाँ से वक्त निकाल लाती हैं।
मानना ना मानना तो लट्ठ और भैंस वाले ताऊ के हाथ में है जैसा पिछली टिप्पणी के जवाब में इंगित भी किया था लेकिन फिर भी कह रहे हैं कि इन दोनों बातों की खिचड़ी ना खिलाओ। शनिवार को पहेली, रविवार को साक्षात्कार या सोमवार को पहेली के उत्तर के साथ।
tauji ham tochardivarike ander rehne vale nalayak hain aapki paheli boojhna hamare bas ki baat nahi seemaji ka interveu bahut achha laga
ReplyDeleteयो गोल गोल सा संसद भवन सा दिख रया सै मन्नै तो. और नही तो गोल्कुण्डा का किला हो सकै है।
ReplyDeleteलो जी लाक करो ये अजमेर का ढाई दिन का झोंपडा है.
ReplyDeleteये झांसी का किला तो नही है, पर ये जयपुर का या जोधपुर के किले का कोई हिस्सा हो सकता है. ये जो भी है, काफ़ी ऊंचाई पर है.
ReplyDeleteअब मिल गया जी इसका पक्का ठीकाना. ये ओरंगाबाद से एल्लोरा के बीच दोलताबाद का किला है. और इसके प्रवेश द्वार पर एक बहुत उंची सी मीनार है.
ReplyDeleteताऊ..
ReplyDeleteफिर नकल मार रहा हूँ.. क्या करुं आपने रिस्लट से पहले ही पेपर आउट कर दिया..
सब कह रहे है तो मैं भी कह देता हूँ.. ये है "दौलताबाद का किला" ओरंगाबाद के निकट..
और detail ये रही.. वहीं से जंहा से आपने फोटो ली है
"Situated 13 kms from Aurangabad, this is the strongest fort in Deccan. Known originally as Devagiri by the Yadavs it was built in 11 century AD and was captured by Alah-ud-din Kilji by treachery. This fort was made famous when Muhammud-ibn-tughlaq tried to move his capital here from Delhi. It was this insane migration that brought islam to the south and changed the demography of the Deccan."
ताऊ ये जबाब भी केंसल कर दो.. नकल में मजा नहीं आया.. वैसे ताऊ अगली बार उत्तर रिस्लट के साथ ही देना.. थोडी देर और ढुढता.. शायद मिल ही जाता..:(.
सीमा जी के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा ! फोटो तो दौलताबाद के किले का ही लगता है
ReplyDeleteये तोप तो दुगनी स्पीड की हो गई होंगी ऐसी सवारी लाद कर ताऊ. :)
ReplyDeleteताऊजी, एक शिकायत/सवाल है पहेली के साथ ही आपने दांयी ओर गणगौर करती सुंदर महिला और बालक का चित्र देकर कन्फूज क्यों किया था?
ReplyDeleteक्या उसका इस किले से कोई लेना-देना है?
@नितिन व्यासजी,
ReplyDeleteआप जिस चित्र की बात कर रहे हैं वो चित्र कनफ़्युज करने के लिये नही लगाया जाता. बल्कि वो चित्र एक दिन पहले यानि शुक्रवार को ही लगा दिया जाता है. यानि शनिवार को पहेली प्रकाशित होने के पहले का होता है. उस चित्र का पहेली से कोई लेना देना नही होता, एक सामान्य सा चित्र होता है.
जब शनीवार को काफ़ी देर तक पहेली का जवाब सही नही आता तब उस चित्र को हटाकर उसकी जगह पहेली का चित्र लगा दिया जाता है.
वहां से पुराने चित्र का हटकर नया चित्र आजाने का मतलब कि नया चित्र पहेली का क्ल्यु है.
आज भी ऐसा ही हुआ है.
ताऊ जी, अभी अभी छत्तीसगढ़ से लौटा हूँ। पर पहेली देखने का लालच था सो यहाँ आ गया।
ReplyDeleteयह दौलताबाद का मुख्य महल है जी।
जवाब तो सीमा जी ने दे ही दिया है। दूसरे अभ्यर्थी भी वही जवाब दुहरा चुके हैं। इसलिए अब मेरी ओर से भी यही लॉक किया जाय।
ReplyDeleteसीमा जी के हम तो पहले से ही प्रशंसक हैं। बातचीत पढ़कर और गाढ़ा रंग चढ़ गया है। शायद दीवानगी की हद तक :)
मुहम्मद बिन तुगलक की राजधानी दौलताबाद (देवागिरी) का मुख्य किला.
ReplyDeleteपहले तो जी सीमा जी से मुलाकात अच्छी लगी। वो बहुत अच्छा लिखती है। और जी हम कह रहे थे कि इस बार हम जवाब सही देगे तो जी हमें तो इस बार का जवाब भी नही पता। बाकी फोटो अच्छे है लगता है जगह भी अच्छी होगी घूमने के लिए। मैं तो इन सब जगह की लिस्ट बना रहा हूँ। जब लिस्ट पूरी हो जाऐगी तो घूमने जाऊँगा।
ReplyDeleteये मुहम्मद बिन तुगलक की राजधानी दौलताबाद का मुख्य किला है, जिसे तुगलक नें १३ वीं शताब्दी में देवगिरी से नाम बदल कर दौलताबाद किया.
ReplyDeleteपिछले साल ही हम वहां गये थे. यहां गुप्त सुरंगों का जाल बिछा हुआ था, और दो नहीं तीन तीन दीवारों के रक्षा कवच से घिरा हुआ है. कहते है, इसे कोई जीत नहीं सकता, सिवाय विश्वासघात के.
अच्छी तरह से संरक्षित स्मारकों में इसका शुमार होता है.यहां ३० मीटर ऊंची चांद मीनार है चार मंज़िल की, और एक ज़ामा मस्जिद है जिसे दिली के कुतुबुद्दिन खिलजी नें बनवाया था.
ताऊ रामराम,
ReplyDeleteअजी पहेली का जवाब तो कल नहीं दे पाया. वैसे मुझे जबाब पता भी नहीं है.
और अब साक्षात्कार से पहेली और भी ज्यादा आकर्षक हो गयी है.
विवेक का साक्षात्कार लो, फिर कभी मेरे बारे में भी सोचना.
और हाँ एक ख़ास बात. अब हम हरिद्वार वाले नहीं रहे. दिल्ली वाले हो गए हैं. खैर मेरठ वाले तो हैं ही....
आज तक तो आग बुझाई न कभी.....तो पहेली कैसे बुझाउं ताउ :)
ReplyDeleteकम्बख्त पता ही नहीं चल रहा कौण सी जगह है....सब लोग दौलताबाद फौलताबाद तो बता रहे हैं....तो मेरी भी वही सही।
सीमा जी का साक्षात्कार चंगा लगा।
सूचना : -
ReplyDeleteमाननिय पाठक गण, ताऊ साप्ताहिक पत्रिका - ७ का अंक कम्पलीट होकर प्रेस मे प्रिंटिंग के लिये जा चुका है. पत्रिका का प्रकाशन कल सूबह सोमवार ४.४४ AM पर होगा.
आपसे निवेदन है कि अभी तक की टिपणियां हमने शामिल कर ली हैं. अब इसके बाद प्रकाशन तक आप जो भी टीपणी इस पहेली पर करेंगे उसमे पत्रिका मे आपका नाम शामिल नही किया जा सकेगा. पर आपके नम्बर आपके खाते में दे दिये जायेंगे.
सूचना समाप्त.
रामराम.
ये तो बड़ी अच्छी शुरुआत की आपने, धन्यवाद !
ReplyDeleteसीमाजी का साक्षात्कार बड़ा अच्छा लगा. सीमाजी कैसे मैनेज कर लेती हैं इतना कुछ? उन्हें तो टाइम मैनेजमेंट पर भी एक किताब लिखनी चाहिए.
शुरुआत में लगा की चलो अब ये तो साफ़ हो गया की ताऊ कौन है. यही पूछने वाला था की आपने अंत में फिर सस्पेंस ठोक दिया ! अब विवेक सिंहजी से कुछ आस है वो अगर ताऊ को पकड़ पाये तो ....
sima ji ka sakshatkar achchha laga.jab maine post dekhi tab tak to paheli ka hal samne aa hi gaya tha. aglbaar.
ReplyDeleteits is very Nice fort in India .
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