एक आदमी बोला
मैं बहुत खुश हूं
ये दुनियां बडी खूबसुरत है
मैने कहा बिल्कुल ठीक
वाकई जन्नत है
दुसरा आदमी आया और बोला
मैं बहुत दुखी हूं
परमात्मा ने इतनी
दुख भरी दुनियां
आखिर क्यों बनाई
मैं जीना नही चाहता
मैने कहा तू भी बिल्कुल सही
वाकई साक्षात नर्क है ये दुनियां
एक तीसरा आदमी खडा था
उसने पूछा
आप तो बडे अजीब इन्सान हो
दिलासा देने की बजाये
दोनों की हां मे हां
मिलाते हो
मैने कहा
तू तो उन दोनो से भी सही
सारा वार्तालाप एक य क्ष
सुन रहा था
वो बोला - ये हां मे हां नही मिलाते
बल्कि तुम तीनो से भी
ज्यादा सही कहते हैं
परमात्मा ना दुख:, ना सुख
और ना ही निर्णय है
परमात्मा तो तुम जैसा भी
देखना चाहो, वही
यानि तुम्हारा ही प्रतिरुप है
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
परमात्मा तो तुम जैसा भी
ReplyDeleteदेखना चाहो, वही
यानि तुम्हारा ही प्रतिरुप है
लाजवाब! बहुत अच्छी रचना है ताऊ, फुल क्रेडिट दिया.
तस्वीरें कहां से चुनते हैं आप। तस्वीरों के साथ संदेश भी सुंदर है। पर कई बातें हैं जो समझकर भी समझी नहीं जा सकती।
ReplyDeleteअरे परमात्मा ना दुख:, ना सुख
ReplyDeleteऔर ना ही निर्णय है
परमात्मा तो तुम जैसा भी
देखना चाहो, वही
यानि तुम्हारा ही प्रतिरुप है
आज बहुत तगड़ी ज्ञान की बात बता दी ताऊ !
एक मित्र का यह फर्ज बनता है की वह मित्र को सद्विचार देता रहे -अब तुम आध्यात्म की ओर पेंगें बढ़ा रहे हो गुरू ..सारी ताऊ गीरी धरी रह जायेगी ! वॉर्न कर दे रहा हूँ -कविता को अच्छा कहूंगा तो तुम उत्साहित हो -नारद मोह से तुम्हे बचाना मेरा परम कर्तव्य है -सीमा जी को भी टोकता हूँ काहें हमारे प्यारे ताऊ को ताऊपना से अनजाने ही वंचित कर रही हैं !
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा भाई. यह अपना दृष्टिकोण ही है.
ReplyDeleteमस्त ताऊ ...बहुत अच्छी कविता है..... जीवन के फलसफे को बहुत अच्छे से दर्शाता है.......
ReplyDeletebahut gahri baat kahi hai taau, wakai parmatma ham sab ka pratiroop hi to hain. bahut badhai aapko.
ReplyDeleteताऊ रामराम,
ReplyDeleteएक बात बताऊँ?
एकदम मस्त कविता.
अरे परमात्मा ना दुख:, ना सुख
ReplyDeleteऔर ना ही निर्णय है
परमात्मा तो तुम जैसा भी
देखना चाहो, वही
यानि तुम्हारा ही प्रतिरुप है
" परमात्मा सर्वव्यापी है , हर जगह हर वस्तु में है, सच कहा हम परमात्मा को जहाँ जैसा देखना चाहते हैं, वैसे ही देखते हैं और पूजते हैं, पथरों मे भी तालाश कर लेतें हैं....हर प्राणी का प्रतिरूप भगवान् है..सुंदर भाव "
regards
सही कहा, हम जैसे होते हैं, दुनिया वैसे ही नजर आती है।
ReplyDeleteजैसी दृष्टि वैसी सृष्टि
ReplyDeleteपरमात्मा तो तुम जैसा भी
ReplyDeleteदेखना चाहो, वही
यानि तुम्हारा ही प्रतिरुप है
सजीव लिखा है ताऊ, संवेदन-शील रचना
ReplyDeleteसही कहा, ताऊ !
आहा हा ! आज तो ज्ञान की वारिश हो रही है . तृप्त हो गए . आहा हा !
ReplyDeleteएक आदमी बोला
ReplyDeleteमैं बहुत खुश हूं
ये दुनियां बडी खूबसुरत है
मैने कहा बिल्कुल ठीक
वाकई जन्नत है
Bahut Achhi Line
अरे परमात्मा ना दुख:, ना सुख
ReplyDeleteऔर ना ही निर्णय है
परमात्मा तो तुम जैसा भी
देखना चाहो, वही
यानि तुम्हारा ही प्रतिरुप है
जी बिलकुल सही कहा ताऊ, परमात्मा तो हमारे अन्दर ही हैम हमारा ही प्रतिरुप.....
ताऊ जी आप अर्विंद मिश्रा जी की बात पर भी जरुर गोर करे, बातो बातो मे उन्होने बहुत काम की बात कह दी है.
धन्यवाद
वेसे ताऊ कवि से तो लोग भागते है, इस लिये यह कविता सविता मत करो आप का तो लठ्ठ ही ठीक है,
बहुत बढ़िया ! जैसे आप वैसी दुनिया.
ReplyDeleteताउजी! ...ये सहीराम तो ऐसा है कि' पानी रे पानी तेरा रंग कैसा....'...बहुत सुंदर रचना से परिचय कराया आपने, धन्यवाद!
ReplyDeleteहमारा भी आभार स्वीकार कीजिएगा..
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को पढकर दो लाईन याद आ गई एक ब्लोगर की लिखी। ब्लोगर शायद पवन जी हैं।
ReplyDeleteऐलान उसका देखिए कि वो मजे में हैं
या तो वो फकीर हैं या फिर वो नशे में हैं।
अरे आज ताऊ !!! क्या हो गया!!!
ReplyDeleteवैसे एक बेहतर कवितामयी विचार
ताऊ के साथ सीमा जी को बधाई!!!
और अब चलिए !! मेरी मदद करने .....
ताऊ.. आपकी पसंद का जवाब नहीं आपकी इस प्रस्तुति को प्रणाम... सीमा जी को भी यथायोग्य..
ReplyDeleteबेहतरीन आपको सीमा जी और ताऊ जी का आभार इतनी अच्छी रचना के लिए
ReplyDeletesach satya,behtarin
ReplyDeleteजिसकी रही भावना जैसी, प्रभू मुरत तिन देखी वैसी
ReplyDeleteपरमात्मा तो तुम जैसा भी
ReplyDeleteदेखना चाहो, वही
यानि तुम्हारा ही प्रतिरुप है
सच लिखा है.आध्यात्म की ओर ले जाती कविता...गहरी सोच लिए हुए--
ताऊ जी आप का कवि रूप भी बेहद प्रभावशाली है.
परमात्मा तो तुम जैसा भी
ReplyDeleteदेखना चाहो, वही
यानि तुम्हारा ही प्रतिरुप है
एकदम सही...
नाभावो विद्यते सत्!
ReplyDeleteकविता जीवन एक गहन याथार्थ्य को बहुत ही कम एवं सुंदर शब्दों में व्यक्त करती है.
ReplyDeleteसस्नेह -- शास्त्री