ईश्वर की अदालत मे
अंधेरी रात की दरखास्त
माई बाप न्याय कीजिये
इस लफ़ंगें सूरज का प्रकाश
आवारा दीवाना हुआ
मेरा पीछा कर परेशान
मुझे है करता ....
शर्म हया से मुह छुपा
भागना मुझे है पड़ता ...
एक अबला की सुन पुकार
अदालत की तुरंत हरकत
नियत पेशी पर
प्रकाश हाजिर हुआ
पर रात गैर हाजिर
अदालत मे प्रकाश का बयान
मै क्या जानु कौन है कैसी
वो सुंदर सलोनी अंधेरी रात
देखी ना तस्वीर अभी तक
हुई ना कोई प्यार की भी बात
युगों से अदालत की यही बस एक आस
हाजिर हो जाए दोनों एक साथ
परमात्मा की परेशानी कोई समझ ना पाया
उसकी अदालत मे, इतना संगीन मुकदमा
आज तक दुसरा कभी ना आया
कौन किसका पीछा कर रहा है
ये राज सुलझ ना पाया
आखिर मे परमात्मा भी पछताया
क्या सोच कर उसने
दिन ओर रात को बनाया ?
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
ताऊ आधी रात को आप की सुंदर सी कविता पढी, मजा आ गया, आप का ओर सीमा जी का धन्यवाद, अभी आप की इस कविता को शायद ६ मिन्ट ही हुये है.
ReplyDeleteशुभ दिन
परमात्मा ने क्या क्या सोअ कर क्या क्या बनाया कौन जाने मगर रचना उम्दा प्रस्तुत कर गये. सीमा जी को बधाई और आपका आभार.
ReplyDeleteवाह ताऊ वाह! गज़ब किस्सा सुनाया - आनंद हमको आया! कविता बहुत पसंद आयी. बाय द वे, अब जब आप कवि बन ही गए हैं तो आपकी आतंरिक सोच की भाषा में भी एकाधा रागणी वगैरह हो जाए तो कैसा रहे?
ReplyDeleteपहले सोचा - ताऊ ने कविता लिखी. खुश हो गया.
ReplyDeleteबाद में देखा -आभार सुश्री सीमा गुप्ताजी. समझ गया, संतुष्ट हुआ.
सन्तुष्टि दो बातों की थी - एक यह कविता आपने नहीं लिखी. दूसरी सीमा गुप्ता जी की कलम ने इतनी खूबसूरत कविता लिखी.
आप दोनों का आभार.
हर प्रकाश स्रोत अंधेरे को नहीं देखने को अभिशप्त है।
ReplyDeleteमै भी सोचूं के ताऊ कवि कब बनो. अदालत का बार बार जिक्र देखा तो लगा द्विवेदी जी का टीपो है. दस्तखत सीमा जी का देखा तो मामला समझा में आयो.सीमा जी दा जवाब नहीं.आभार.
ReplyDeleteवाह ताऊ, लाजवाब लिखा आपने तो. वाकई प्रकाश और अंधेरे की तो कभी मुलाकात ही नही होती. तो यह मुकदमा तो कभी निपटेगा ही नही.
ReplyDeleteआपके भाव लाजवाब हैं और सु. सीमाजी ने इस रचना को पुर्णता की और बखूबी पहुंचाया है.
बढिया है जी. आप दोनो का आभार.
@अल्पना वर्मा जी,
ReplyDeleteपता नही मेरा इ-मेल आई. डी. आपको क्युं नही मिला? आपकी भेजी हुई लिंक मुझे टिपणी मे मिल गई है. वो दोनो टिपणियां मं पब्लिश नही कर रहा हूं.
आप कृपया अपना ई-मेल आई-डी यहां छोड दिजिये, यहां कमेन्ट मोडरेशन लगा है, मैं उसे पब्लिश नही करुंगा.
बहुत सुन्दर कविता है,
ReplyDeleteआपका सहयोग चाहूँगा कि मेरे नये ब्लाग के बारे में आपके मित्र भी जाने,
ब्लागिंग या अंतरजाल तकनीक से सम्बंधित कोई प्रश्न है अवश्य अवगत करायें
तकनीक दृष्टा/Tech Prevue
ताऊ.. आपका खूंटा कहाँ गया??
ReplyDeleteआखिर मे परमात्मा भी पछताया
ReplyDeleteक्या सोच कर उसने
दिन ओर रात को बनाया ?
" ताऊ जी ने तो बहुत कोशिश की थी इस राज को सुलझाने की , की परमात्मा ने दिन और रात क्युं बनाये मगर जब परमात्मा ख़ुद ही नही समझ पाया आज तक तो ये राज अनसुलझा ही रह गया...." मगर एक राज की बात हमारे पास है जो आप सभी से हम यहाँ बांटना चाहते हैं ...वो राज ये है की... मुल रूप से भाव कल्पना और शब्द सब ही ताऊ जी के हैं...हमने तो सिर्फ़ कापी जाँच कर हस्ताक्षर कर दिए हैं"
regards
अँधेरे के बिना प्रकाश का क्या मोल?
ReplyDeleteक्या बात है ताऊ...भई वाह!अद्भुत रचना...
ReplyDelete"मै क्या जानु कौन है कैसी
वो सुंदर सलोनी अंधेरी रात
देखी ना तस्वीर अभी तक
हुई ना कोई प्यार की भी बात "
हट कर के बिम्ब...
समझ नहीं आ रहा सीमा जी ने कविता लिखी है या कविता संशोधित की हैं??
ReplyDeleteजहाँ तक समझ kahti है..यह ताऊ जी की लिखी है.
कविता में ...अंधेरे और उजाले का झगडा है...अब यही तो होता है न!
विरोधी गुटों में झगडा!
मज़ाक से हट कर--
-कविता में भाव अच्छे हैं.कविता भी अच्छी बन पड़ी है...
वाह अच्छा लगा पढकर। बधाई और शुक्रिया। आप दोनो का।
ReplyDeletemast taaoo....maza aa gaya padh kar......
ReplyDeleteवाह ताऊ जी वाह, बात से बेहतर भाव लगे, आभार सीमा जी का भी, पर असल में ये कृति है किसकी?
ReplyDeleteसूरज और रात की ओरिजिनल कविता !
ReplyDeleteझगडे में कनफ्यूज हो गए परमपिता !
कॉपी जँचवाने का अच्छा है कायदा !
सीमा जी का प्रचार आपका फायदा !
धाँसू कविता ! स्वाहा !
भाव भी अच्छे और हस्ताक्षर भी :)
ReplyDeleteभाव भी अच्छे और हस्ताक्षर भी :)
ReplyDeleteप्रकाश और अन्धकार का शाश्वत द्वन्द्व!
ReplyDeleteअपने अपने हिस्से की बधाई दोनों को।
achchhi kavita hai
ReplyDeleteताउ राम राम तनिसा हमरि नगरी मे भी आयी
ReplyDeleteकविता बहुत खूब लिखी है ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
कौन किसका पीछा कर रहा है
ReplyDeleteये राज सुलझ ना पाया
-
वाह, यह तो कुछ वैसा है कि कातिल मेरा आगे है और मैं पीछा कर रहा हूं!
फिलोसोफिकल कविता लगी मुझे तो. ताऊ और सीमाजी को धन्यवाद.
ReplyDeleteअसली ताऊ का पता चला क्या? :-)
बड़ी सुन्दर कविता लिखी ताऊ साहब आपने. क्या कहना शब्द, शब्द बात करता हुआ राज़ की.
ReplyDeleteआदरणीय सीमा जी का बहुत बहुत आभार जो का॓पी की अलंकृत जाँच की.
आपका शुभचिंतक.
वो सुंदर सलोनी अंधेरी रात
ReplyDeleteदेखी ना तस्वीर अभी तक
सुंदर लिखा है सीमा जी ने
पढ़ना शुरू किया तो समझ नही आया कि आज ताऊ को क्या हो गया????
ReplyDeleteहस्ताक्षर देखा तो समझ आया.......यह तो कविता है और वो भी गंभीर.......
बढ़िया है.सीमा जी को बधाई और आपका आभार.
ईश्वर की उलझन को बढ़िया से समझाया ताऊ जी आपने.
ReplyDeleteताऊ राम राम
ReplyDeleteइतनी संवेदन-शील रचना है, इतना सच लिखा है, कोई शब्द नहीं हैं इसकी तारीफ़ के लिए...........बस एक बेहतरीन कविता, सुंदर lekhan
कविता किसी ने भी लिखी हो लेकिन बेहद चमत्कारिक रचना है. ऐसी रचनायें बार बार पढ़ने को मिलें- यही कामना है.
ReplyDeleteकिसकी तारीफ़ करूँ ?आपकी या सीमा जी की ?
ReplyDeleteसीमा जी की ये कविता उनकी शैली में एक और आयाम जोड़ती है, उनको शुक्रिया और इस आयाम से रूबरू कराने के लिए ताऊ जी को भी शुक्रिया।
ReplyDeleteकौन किसका पीछा कर रहा है
ReplyDeleteये राज सुलझ ना पाया
आखिर मे परमात्मा भी पछताया
क्या सोच कर उसने
दिन ओर रात को बनाया ?
Bahut achhi kavita Tauji
कौन किसका पीछा कर रहा है
ReplyDeleteये राज सुलझ ना पाया
आखिर मे परमात्मा भी पछताया
क्या सोच कर उसने
दिन ओर रात को बनाया ?
Bahut Achhi Kavita tauji
शानदार है। दिन-रात एक दूसरे के पीछे लगे रहें हमेशा।
ReplyDeleteसुंदर कविता
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