सत्यम के कर्ता धर्ता राजू के बाद एक और राजू का करीब १०० करोड का घोटाला पकडा गया. शुक्रवार को ही DLF के शेयर में कम्पनी की खस्ता हालत की सच या झूंठ खबर आने से खतरनाक हद तक यानि १४५ रुपये तक कम्पनी का शेयर नीचे आगया. बाद मे कुछ स्प्ष्टीकरण आने से सुधर गया.
अभी पता नही और क्या क्या निकल कर आना बाकी है. किसी भी ताऊ आदमी के दिमाग मे कुछ सवाल अब नये सिरे से कुलबुलाने शुरु होगये हैं. अभी तक यह समझ से बाहर की बात है कि २००८ की तेजी मे जो सत्यम ६०० रुपये की ऊंचाई पर था वो ९ जनवरी २००९ को सिर्फ़ ६.३० का न्युनतम भाव यानि शुद्ध रुप से उसकी कीमत १ प्रतिशत रह गई.
यों तो ऐसा अमेरिकी कम्पनियों मे भी पिछले दिनों हो चुका है, पर जिन परिस्थितियों मे ये खेल सत्यम मे किया गया है वो कई सवालों को जन्म देता है. ये सवाल आज मेरे मन मे हैं कल स्वाभाविक रुप से सभी के मन में ऊठेंगे. और मुझे तो ऐसा लगता है कि हमारे जमीर ने हमारा साथ छोड दिया है. आज सिर्फ़ पैसा और भ्रष्टाचार यानि बेईमानी तेरा आसरा.
मुझे समझ नही आता कि जैंटलमैन राजू ने किस तरह इस काम को अंजाम दिया होगा. जैसा कि आप सभी जानते हैं कि ताऊ भी कडका है, इस वजह से ऐसे केस स्टडी करता ही रहता है. और फ़िर फ़्राड का कौन सा गलियारा है जो ताऊ नही जानता? पर ये गुथ्थी तो ताऊ से भी नही सुलझ रही है. इसी लिये आपसे पूछ रहा है, वर्ना तो ताऊ माल बनाने की स्कीम आपको थोडी बताता?
मुझे ताज्जुब तो इस बात का है कि सत्यम जैसी कम्पनी जिसका अकाऊंटिन्ग यूएसगाप (USGAAP) तरीके से होता हो, अन्तरराष्ट्रिय स्तर के आडीटर हो, टेक्स रिटर्न्स, पब्लिक लिमिटेड कम्पनी की फ़ार्मिलिटिज पुरी करते हुये, उसमे अकेले राजू किस तरह यह खेल कर गये?
कोई छोटी मोटी रकम नही बल्कि ५०४० करोड का केश रिजर्व, उसको किस तरह आडीटरो ने वरीफ़ाई किया? वो केश जो किसी भी रुप मे नही था. बैंकरो ने क्या देखा?
और सबसे मजेदार बात तो ये कि इतने बडे केश रिजर्व का आयकर रिटर्न भी गया है.
आयकर विभाग ने क्या देखा? सारा मामला साफ़ है. बिना उच्च राजनैतिक गलियारों की शह के ये संभव नही है.
एक साधारण सा टेक्स पेयर भी अगर वर्षांत मे लाख डेढ लाख की केश इन हैंड केरी करता है तो आयकर अधिकारी की त्योरीयां चढ जाती हैं. मैं स्वयम भुक्त भोगी हूं, इस तरह के कारनामों के लिये क्लेरिफ़िकेशन तुरंत मांग लिया जाता है जैसे इतना नगद और वो भी खुद का, रख लिया तो गुनाह कर दिया. जैसे चरस अफ़ीम रख लिया हो.
अभी तक हम ये मानकर चलते हैं कि आयकर विभाग तो जरुर ऐसे केश रिजर्वस
को वेरीफ़ाई करता होगा? सत्यम कांड के बाद आज मुझे लगता है कि भारत मे सिर्फ़ इमानदार और कानून का पालन करने वाला आदमी ही इन लोगो द्वारा तंग किया जाता है.
मुझे याद आता है १९८८ का साल. इसी साल मैं हृदय रोग से पीडीत हुआ. एस्कोर्ट्स हास्पीटल दिल्ली का शुभारम्भ, और उसी दिन मुझे वहां एन्जियोग्राफ़ी के लिये भर्ती किया गया. एन्जियोग्राफ़ी की उस समय पेकेज डील ७५०० रुपये थी. तीन दिन मैं वहां एड्मिट रहा. मेरा ससुराल भी दिल्ली के नजदीक ही है, और मेरे दो साले साहब भी दिल्ली मे ही पोस्टेड थे उन दिनो. अत: स्वाभाविक रुप से मेरे ससुर साहब भी वहीं थे.
उन दिनो मे हार्ट सर्जरी इतनी आसान नही थी और हृदय रोग भी बडी बीमारी समझा जाता था. सो काफ़ी डरा हुआ माहोल था सभी के लिये.
इस घटना के कोई साल डेढ साल बाद आयकर विभाग से एक नोटिस आया कि आप अमुक अमुक दिन एस्कार्ट्स होस्पिटल दिल्ली मे एड्मिट होकर इलाज करवा कर आये हैं, आपको निर्देश दिया जाता है कि वहां किये गये खर्चों का विवरण फ़ला फ़लां तारीख को पेश किया जाये. जैसा कि आप जानते हैं कि इनके नोटिसों मे इतनी वाहियात और डराऊ भाषा होती है कि साधारण आदमी को हार्ट अटेक हो जाये, फ़िर मैं तो था ही हृदय रोगी.
मैने मेरी अकाऊंट्स बुक चेक करवाई तो इस मद मे कोई खर्चा उस साल मे नही दिखाया गया था. फ़िर मैने तलाश किया तो मालूम पडा कि चुकी मेरे ससुर साहब वहां थे और वो काफ़ी सक्षम थे, उन्होने सारा खर्चा खुद ही वहन किया था. मेरी पत्नि ने अब बताया कि दिल्ली मे उसके पिताजी यानि मेरे ससुर जी ने हम लोगो को एक भी पैसा खर्च करने नही दिया.
अब देखिये ये हुई छोटी सी बात. हमारे भारतीय परिवेश मे हम आज भी अगर बेटी दामाद हमारे शहर मे हैं तो उनका एक पैसा भी खर्च नही होने देते. हमारे संसकार ऐसे हैं कि हम इसे पुण्य से जोड कर देखते है और इसमे एक पिता की अपनी बेटी के प्रति चाहत भी दिखाई देती है.
पर आप यकीन मानिये कि इस मामले मे मुझे इतना तंग किया गया जैसे मैने कोई गांजे अफ़ीम की तस्करी कर ली हो. मैं भी अडा रहा. ये किस्सा फ़िर कभी. पर इतना समझ लिजिये कि जितना कुल रुपया का झगडा था उससे ज्यादा मेरा पैसा वकिलों की फ़ीस मे खर्च हो गया और मेरे ससुर जी तक को नोटिसबाजी विभाग द्वारा की गई.
अन्तत: जीत मेरी हुई. पर किस कीमत पर?
ऐसा सतर्क हमारा आयकर विभाग, जो ७५०० रुपये का जमा खर्च नही पाये जाने पर इतना हंगामा खडा कर दे और एक तरफ़ राजू का ५०४० करोड का केश.
सवाल ये है कि हुआ कैसे ? और क्या कभी ये हकीकत मालूम भी पडेगी ?
आप क्या सोचते हैं? बिना किसी सरकारी मिलिभगत के ये कारनामा संभव है? शायद नही. ३०० करोड की जमीन का आवंटन १ करोड मे हो गया. तो २९९ करोड का हिसाब कहां हैं? जाहिर है रिश्वत मे मे.
मैं अब ज्यादा फ़ुटेज नही खाकर अपने मन की बात कह रहा हूं कि मुझे तो इस पूरे कांड मे उच्च स्तर के मंत्रियों संत्रियों की मिलीभगत नजर आ रही है. मैने अपने स्तर पर विचार कर के देख लिया है कि अकेले जैंटलमैन राजू का कारनामा नही है. और इसी वजह से शायद ही कभी सच बाहर आ पाये.
दोस्तो, जिस पेड को दीमक लग जाती है उसको आप चाहे जितना खाद पानी दे दिजिये, वो कभी पनप नही पाता. उसी तरह हमारे देश को भी भ्रष्टाचार और रिश्वत की दीमक लग चुकी है. हम कैसे विश्व के नम्बर वन बनने के सपने देख रहे है? क्या चंद राजू और मंत्री संत्रीयों के मालामाल हो जाने से पूरा भारत मालामाल हो जायेगा? और अभी क्या क्या घोटाले सामने आते हैं ? देखते रहिये.
आप सही कह रहे हैं ताऊ. जो आदमी भी पिछले बीस-तीस साल में धन कुबेर बने हैं उन सब की एक विशेष जांच होनी चाहिए.
ReplyDeleteअरे वाह ताऊ इस तरह ज्ञान दिया की मेरे ज्ञान चक्षु खुल गए!!!!
ReplyDeleteबहुत गहरा उतर कर अवलोकन कर रहे हैं?? अभी विस्तार से जानकारी तो आना बाकी ही है पर अवलोकन की दिशा सही पकड़ी है. शुभकामनाऐं.
ReplyDeleteबिना गठबंधन के आजकल सरकारें कहां बनती हैं। सब मिले रहते हैं इस तरह के घोटालों में। कम से कम सबको पता तो रहता ही है कि कुछ गड़बड़ है।
ReplyDeleteताऊ, बिल्कुल सच लिखा है बिना सरकारी विभागों के इतना बड़ा घोटाला सम्भव ही नही है आय कर विभाग वाले तो छोटे आदमी को ही तंग करता है इसीलिए तो कम आय वाला आयकर रिटर्न चाहकर भी भर नही पाता ! ये जितने भी टेक्स के वकील और सी.ऐ है वे सब के सब आयकर विभाग वालों के दलाल है जिस तरह से ये घोटाले सामने आ रहे है आम आदमी का इन कम्पनियों से विश्वास ही उठता जा रहा है और ये अविश्वास हमारी अर्थव्यवस्था के लिए बहुत ही खतरनाक साबित होगा |
ReplyDeleteतो ताऊ का यह भी अंदाजे बयां है -बिकुल सहमत ! इनकम टैक्स विभाग का तो मत ही कहिये कुछ -हम भी बड़ी कठिन स्थिति से गुजरे हैं -छोटे करदाताओं का तो सब कुछ उन्हें बड़ा बड़ा दिख जाता है पर सत्यम कांड पर आँखों पर परदा पडा रहता है !
ReplyDeleteसही कहा क्या सचमुच इस देश का कोई भविष्य है ?
सही कहा ताऊ आपने, सरकार अब तंत्र से तांत्रिक बन गई है, जो आम जनता को ही चपेटे में ले रही है।
ReplyDeleteमेरा जैसा आम आदमी कंपनी की आठ दस साल की बैलेंस शीटें देख कर बता सकता है कि कंपनी कहाँ घोटाला कर रही है? और कहाँ जा रही है?
ReplyDeleteइन की शिकायतें भी की जाती हैं। देश का वित्त मंत्री घोटाले की जाँच के लिए अफसर नियुक्त करता है। तभी सरकार बदल जाती है और अफसर कभी जांच के लिए आता ही नहीं। वित्तमंत्री द्वारा आदेशित जाँच का क्या हुआ? पूछते पूछते भी पता नहीं लगता इस बीच कंपनी खुद को बीमार प्रमाणित करवा कर बीआईएफआर में चली जाती है। बैंकों, अन्य उद्योगों और कर्मचारियों का हजारों करोड़ रुपया हजम कर डकार भी नहीं लेते कंपनी के कर्ताधर्ता।
कंपनी कानून इतना पोचा है कि हर कोई साफ बच जाता है। राजू का घोटाला कोई बहुत बड़ा नहीं लोग तो 1500 करोड़ की कंपनी पूरी ही हजम कर गए। कोई सुनने वाला तक नहीं था।
राजू तो बहुत ईमानदार निकला जो उस ने स्वीकार किया कि घोटाला किया गया है।
ऐसा लगता है भारत में क्या लगभग हर जगह ज्यादातर कानून सिर्फ़ आम आदमी के लिए बने हैं.
ReplyDeleteआप का अनुभव एक आम नागरीक का अनुभव ही है.पहली बार जब मैं भारत से बाहर देश में जा रही थी.मुझ से income टैक्स clearance certificate माँगा गया.जब मैं नौकरी नहीं करती थी और मेरे पति देव ने विदेश से टिकिट भेजी थी ,मैं ने नहीं ख़रीदी थी.फिर भी! आखिर किसी तरह I.T. clearance certificate मिला तब जा कर मैं यात्रा कर पाई.ऐसा अनुभव बहुतों के साथ हुआ होगा.
सत्यम का घोटाला कैसे इतने बडे पैमाने पर हुआ है ??यह सरकारी -गैर सरकारी व्यवस्था में फैला 'भ्रष्टाचार 'ही बता सकता है.अभी केस शुरू हुआ है..देखीये किस किस राज़ से परदा फाश होता है. शुक्र है आज भी ईमानदार लोग भी इसी चरमराती व्यवस्था में हैं इस लिए ऐसे केस सब के सामने आ पाते हैं.
यही खैर मना रहे हैं कि और घोटाले न हुए हों !
ReplyDeleteकही सुना था कि सब समान है पर कुछ ज्यादा ही समान हैं। कभी कभी तो सोचता हूँ वैसे यह भी सोचना ठीक नही पर सोचता हूँ। कि ज्यादा पढा लिखा होना भी ठीक नही। जो जितना ज्यादा पढा लिखा उतना ज्यादा बेईमान। मुझे तो ये भी नही समझ आता कि एक हजारपति नेता कैसे पाँच साल में करोड़पति हो जाता हैं। और सब आँखे मूँदे रहते। दुख इस बात का होता है कि एक ईमानदार इंसान पीसता रहता दो जून की रोटी के लिए।
ReplyDeleteताऊ मन की नहीं चटपटी बातें करता है, हा-हा!
ReplyDelete---मेरा पृष्ठ
चाँद, बादल और शाम
मैंने कहीं किसी की डेस्क पर एक कविता पढी थी जिसके शब्द थे - मैं अपने बच्चों को बेईमान बना रहा हूँ...बस यूँ समझों कि उनपर एहसान ढा रहा हूँ। उस वक्त कविता का मर्म मैं कुछ उलटा समझा था कि शायद जिस शख्स की डेस्क पर ये है वह कुछ उल्टी खोपडी वाला है( लाईब्रेरियन जी हैं हमारे :) - लेकिन आज उस कविता का मतलब धीरे-धीरे समझ आ रहा है - आज के जमाने में सीधे सरल इंसान का जीना मुश्किल है। कम्बख्त, जब दिल की बीमारी में भी ये विभाग परेशान करने लग जांय तो सोचिये इस विभाग के मन में कितना काला है, मुझे तो लगता है कि अगर आप कोई बडे अपराधी या नामी चोर होते तो कम्बख्त यही विभाग आपको नोटिस देने से पहले दस बार खुद को वेरिफाई करता कि कहीं इसके बडे लोगों से तो तार नहीं जुडे हैं।
ReplyDeleteजितना बड़ी CA फर्म उतना ही बड़ा घोटाला. आर्थर अंडरसन की घपलेबाजी के बाद, ५ में से ४ बड़ी CA फर्म बची थीं .... हो सकता है कि अब ३ ही बचें. यह बात अलग है कि विपदा के बाद इनमें काम करने वाले लोग खूंटा बदल कर दूसरी फर्मों जा घुसते हैं.
ReplyDeleteइनकी ऊंची फीस हर कोई नहीं दे सकता. यह फर्में ऑडिट की जाने वाली कम्पनी की विस्तार शाखा के रूप में कार्य करती हैं. इन फर्मों के लिए क्न्स्ल्तंसी, ऑडिट से ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है. ध्यान रहे, इनके यहाँ क्न्स्ल्तंसी का अर्थ साम-दाम-दंड- भेद होता है. ग़लत काम को रिपोर्ट करने के बजाय, ग़लत काम क़ानून की पकड़ से बाहर रह कर कैसे किया जाए यही इनका ध्येय होता है. ये अक्सर बड़े घपले से ध्यान बंटाने के लिए यह कुछ छोटी-मोटी गलतियों का पकड़ा जाना अपनी रिपोर्टों में दिखाने की एक्टिंग भी करते हैं. अपनी क्लाइंट नुमा दुधारू गाय पर पकड़ बनाये रखने के लिए ये हर तरह के हथकंडे अपनाते हैं जैसे:- सुंदर सी दिखने वाली पेंट पहनी लड़कियों को साथ लेकर चलना, अंग्रेज़ीमय दिखना, टाई सूट का रॉब गांठना , बोल-चाल के बजाय तथाकथित प्रबंधन-विज्ञान की भाषा का प्रयोग करना, ५ सितारा संस्कृति और विदेश की बातों का रॉब झाड़ना इत्यादि ...... यह सब किस GAAP के अंतर्गत आता है, यह मुझे आज तक समझ नहीं आया.
इन फर्मों में दायां हाथ बाएं हाथ के बारे में नहीं जानता. सब अपना-अपना गिना-चुना काम ही देखते हैं इसलिए पूरी तस्वीर केवल ऊपर बैठे कुछ घाघ लोग ही जानते हैं. ऐसे में चारों तरफ़ राजू ही राजू फैले पड़े हैं और जब तक ये पकड़े न जाएँ बस तभी तक जेंटलमेन्न हैं ... और हाँ, आखरी बात.. स्टॉक एक्सचेंज केवल सरकार की सहमति से चलाये जाने वाले चकले का नाम है....जहाँ आम आदमी केवल HIV पोसिटिव होने ही जाता है...
जो कुछ पता चला है वह आइसबर्ग का टिप ही है। आइसबर्ग का पता भी चलेगा? कह नहीं सकते।
ReplyDeleteराजु बन गया जेंटलमन, जो उसने ये फ़्रॊड मन की So Called आवाज़ पर यह स्वीकार किया. असल में ताउ ने मन से या दिले से जो बात कही उसका निचोड ये है, कि जब इससे ज़्यादा फ़्रॊड नहींकर पाया , और फ़ुग्गा फ़ूट्नें ही वाला था तो बिल्ली हज को निकल पडी.
ReplyDeleteइन्कम टेक्स के जवान(?) फ़ाईनेंस की सडक पर बच्चों के स्कूटर का चालान बनाते रह जाते है, और राजु जैसे ट्रक वाले सत्ता के गलियारे से रांग साईड एंट्री कर के ट्रक हांक ले जाते है.
मंत्री, संत्री और राजु कलंत्री..
एक और बात,
ReplyDeleteमेरे एक NRI मित्र नें अमेरीका से जब लौटने का मन बनाया तो किसी कारणवश Income Tax Clearance Formality आखरी दिन तक रह गई. दोपहर को फ़्लाईट पकडने से दो घंटे पहले उन्होने विभाग को सविनय आग्रह किया, और कहा कि सेर्टिफ़िकेट उन्हे एयरपोर्ट पर फ़ॆक्स कर दें तो मेहरबानी होगी.
एक घंटे के बाद एयरपोर्ट पर फ़ेक्स आ गया!!
अब वे भारत में दो साल रहने के बाद, बसने की बजाय वापिस चले गये है, क्योंकि इन्कम टेक्स वालों ने उनके छोटे से पुश्तैनी मकान की बिक्री पर बडे बडे objection लगा दिये.
जै भारत...
साले ने राजू का नाम ख़राब कर दिया. ये जो सी.ऐ लोग हैं क्या भाद झोंक रहे थे. साले सब के सब हरामखोर हो गए हैं.
ReplyDeleteसही कह रहे हो ताऊ, न सिर्फ़ हमारे बल्कि पूरे विश्व में ऐसी कंपनियों की भरमार है जो लोगों को बेवकूफ बनाते हैं, पर अच्छी बात तो ये है की अब ऐसी बातें सामने आने लगी हैं
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर खयालात हैं...
ReplyDeleteबेहद खूबसुरत अल्फ़ाज. शुभकामनाएं.
बिल्कुल सही कहा आपने.........
ReplyDeleteये जो पाँच से पचीस वर्षों के अन्दर खाकपति से खरबपति बन जाते हैं,ऐसे ही बन जाते हैं,चाहे उद्योगपति हों,राजनेता हों या सरकारी अधिकारी ????????
और देखियेगा कुछ नही होगा राजू जी को.......तेलगी जी ,लालू जी या इन जैसे असंख्यों का कुछ हुआ क्या??????
इनकम टेक्स वाले हज़ार, लाख की औकात वालों पर ही अपना रौब झाड़कर या इनसे वसूली करके अपनी अहमियत दिखाने में सिद्ध हस्त है.
देखा जाए तो आज देश मध्यमवर्गीय नौकरीपेशा या उद्योग वालों से ही चल रहा है.नीचे वाले भी बचा जाते हैं और ऊपर वालों को कौन पकडेगा.कोई बड़ी बात नही की आज जो राजू जी की असलियत खुली उसके पीछे किसी बड़े आदमी की असंतोष का ही हाथ हो.वरना इनके जैसे धांधलीबाज़ उद्योगपतियों की अपने देश में कमी नही.
अरे ज़ाऊ यह राजू तो मेरे जेसा सीधा साधा आदमी लगता है, लेकिन लालच मे यह इन सब राक्षको (शेतानॊ) के हाथ लग गया , इस का राज कभी भी नही खुलेगा... जेसा कि आप के इलाज के बारे तो इस सरकार ने इतना पुछा, क्या माया ओर लालू से भी पुछती है......
ReplyDeleteमेरे भारत को***दोस्तो, जिस पेड को दीमक लग जाती है उसको आप चाहे जितना खाद पानी दे दिजिये, वो कभी पनप नही पाता. उसी तरह हमारे देश को भी भ्रष्टाचार और रिश्वत की दीमक लग चुकी है. हम कैसे विश्व के नम्बर वन बनने के सपने देख रहे है? क्या चंद राजू और मंत्री संत्रीयों के मालामाल हो जाने से पूरा भारत मालामाल हो जायेगा? और अभी क्या क्या घोटाले सामने आते हैं ? देखते रहिये.
इस दीमक का इलाज है, इन सब चोरो पर लगाम कसने के लिये भारत मै भी एक नेता ऎसा आये जो हिटलर की तरह हो, कही कोई अदालत नही बस हां ओर हां वरना *****
फ़िर देखो केसे यह सब सुधरते है.
दिलीप कवठेकर जी की बात बिलकुल सही है.
धन्यवाद
ताऊ जी, बात तो सोलह आने सही कही आपने । गलती कहां हुई कि आज इस देश में घोटाले पर घोटाला हुआ जा रहा है, मुकदमों की इस फेहरिस्त में बस इजाफा ही हो रहा है। न किसी को सजा हो रही है और न ही कोई जेल की हवा खा रहा है । आम आदमी है कि वह मकान और दुकान के बीच की खडडेदार सडकों में बडा सा झोला और छोटी सी जेब के साथ पिसा जा रहा है । ताऊ जी, कोई ऐसी दवा बनाओ कि हमारे नेताओं, नौकरशाहों और दलालों को अकल आए, कम से कम हिंदुस्तानियों को न्यूनतम चूना लगाएं और हो सके तो यह लोग अपनी दुकान कहीं विदेशों में चमकाएं । नहीं तो ले आइए अपनी कोई जादू की छडी जिससे अगर यह गायब न हो पाएं तो कम से कम तडातड मार तो खा जाएं ।
ReplyDeleteवाह ताऊजी, बहुत सही विश्लेषण है, आपके दीमक वाले पेड वाली बात अच्छी लगी।
ReplyDeleteताऊ जी, किस सोच मेँ डूब गये आप ?
ReplyDeleteगोड फाधर पुस्तक के लेखक
"मारीयो Puzo" ने एक वाक्य शुरु मेँ लिखा है,
"बीहाइन्ड एवरी Fortune इस a क्राइम"-
that इस १००% ट्रु !!
-लावण्या
बहुत बढिया कहानी है राजू कि.
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