लोमड जी की पूंछ

प्यारे भतिजों और भतिजियों आप सबको घणी रामराम.

एक बार एक लोमड जी, छुट्टी के दिन, दोपहर मे चकाचक खा पीकर सोये. शाम को ५ बजे ऊठे और तभी उनकी अर्द्धांगिनी श्रीमती चंपा देवी लोमडी चाय ले कर आगयी. वैसे रोज शाम को दोनों पति पत्नि चाय पीने के बाद शाम की सैर पर जाया करते थे. लोमड जी की अच्छी तगडी कमाई वाली यानि मलाईदार सरकारी नौकरी थी. दोनो पति पत्नि घणे मजे मे चकाचक दिन काट रहे थे.

आज शाम को कूछ मेहमान आने वाले थे सो लोमड जी के साथ चंपा लोमडी नही गई. वो घर पर ही मेहमानवाजी की तैयारियों के लिये रुक गई और लोमड जी बन ठन कर शाम की सैर को निकल गये. कई दिनों से लोमड जी पर जंगली कुत्तों की नजर थी. बडे हट्टे कट्टे थे सो कुत्ते भी उनको चखने की ताक मे थे. आज अकेले दिख गये सो जंगली कुत्तों ने घेर लिया. और अपने को घिरा देखकर घंमंड मे डूबे लोमड जी भाग लिये. आगे आगे लोमडजी और पीछे २ जंगली कुत्ते.

सामने एक छोटी सी गुफ़ा नजर आई , लोमडजी जान बचाने को उसमे घुस गये. वहां जैसे तैसे उनकी जान मे जान आई तो उन्होने अपने आप को चेक किया कि कहीं कोई सा अंग कुत्ते चबा तो नही गये? अपने पूरे शरीर को सुरक्षित पाकर लोमड जी खुश हो गये. अब उनकी दिलचस्पी इस बात मे बढ गई कि उनके शरीर के किस अंग ने उनको जान बचाने मे सहायता की और किसने उनको इस आफ़त मे फ़ंसाया? यानि लोमड जी अपने शरीर से ही कुंठित और लुंठित हो गये.

सबसे पहले लोमड जी ने अपने पैरो को पूछा - ऐ मेरे पैरों, ये बताओ कि मेरी जान बचाने मे तुम्हारा क्या योगदान है?

चारों पैर जानते थे कि लोमड जी ठहरे सरकारी सांड. क्या पता क्या फ़रमान सुना डालें? कहीं पैर कटवाने का ही फ़रमान ना दे डालें? सो चारो पैरों ने एक साथ गुहार लगाई - माई बाप, नदी नाले और चट्टानों को पार करते कराते आपको इस सुरक्षित जगह पर हम ही लाये हैं हुजुर.

लोमड जी : शाबाश मेरे शेरों. जियो और इसी तरह हमारी सेवा करते रहो. और अब उनका धयान अपने कानों की तरफ़ गया. उन्होने अपने कानों से पूछा : ऐ मेरे कानों , बताओ, तुमने भी कुछ किया या युं ही मेरे सर पर भार बन कर बैठे हो?

कान बेचारे घबरा गये. क्या पता यह सनकी सिलेंडर लोमडजी उनको कटवाने का ही फ़रमान ना दे डाले? सो वो बोले - हुजुर, सबसे पहले खतरे को भांप कर हमने ही पैरों को भाग निकलने का इशारा दिया और बाद मे किस दिशा से खतरे की आवाजे आ रही हैं? उनको सुनकर उनसे बचाते हुये हम ही आपको यहां ले आये हैं माई बाप.

लोमड जी : अच्छा अच्छा वैरी गुड..वैरी गुड. तुमने बहुत अच्छा काम किया है. और अब उन्होने अपनी आंखों से यही सवाल किया. अरे मेरी बटन जैसी आंखों तुमने मेरी जान बचाने को कुछ किया या खतरा देखकर आंखे बंद कर बैठ गई थी?

दोनों आंखे भी इस पागल से डर गई कि कहीं हमको निकलवा कर फ़ेंकने का ही हुक्म ना दे डाले. सो वो हाथ जोडकर बोली : सरकार, हमने ही चारों तरफ़ देख कर रास्ता सुझाया और इस सुरक्षित गुफ़ा तक हम ही आपको लाई हैं सरकार.

लोमडजी ने आंखों की भी प्रसंशा की.

अब लोमड जी किसी मे भी दोष नही निकाल पाये और ये उनकी शान के भी खिलाफ़ था. हर बात का दोष मातहतों पर डालने की आदत जो थी. अपने सभी अंगों की प्रसंशा करने के लिहाज से वो अपनी पीठ थपथपाया चाहते थे कि उनकी नजर अपनी पूंछ पर पडी.

बस लोमड जी को अपना गुस्सा निकालने का बहाना मिल गया. बडे व्यंग से से बोले - क्यों प्यारी पूंछ रानी? तुमने क्या किया? तुम तो बोझ बनकर मेरी पीठ से चिपकी रही? अरे तुम्हारा बस चलता तो तुमने तो मुझे कुत्तों से पकडवा ही दिया होता ? और लोमड जी ने बेचारी पूंछ को इतनी जली कटी सुनाई जैसी नई बहु को उसके सास और ससुर सुनाया करते हैं.

अब क्या था? पूंछ रानी भी नई बहु की तरह आखिर कब तक गालियां खाती? वो भी नई बहु समान अपनी औकात मे आगई. ठीक है इतनी गालियां खाने के बाद और इतनी जलालत ऊठाने के बाद तो नई बहु भी अपनी जान की परवाह छोड देती है. सो उसी तरह पूंछ भी बोली - हां... हां... मैने ही कुत्तों को कहा था कि तुझे आकर खा डालें. अब करले क्या कर लेगा मेरा?

बस सास ससुर की तरह लोमड जी के तन बदन मे आग लग गई और जैसे नई बहु को धक्के दे के बाहर निकाला जाता है वैसे ही लोमड जी ने अपनी पूंछ को हुक्म सुनाया : दफ़ा हो जाओ मेरी नजरों से. चलो बाहर निकलो यहां से अभी.

और जैसे नई बहु को धक्के देकर बाहर निकाला जाता है उसी तरह से लोमड जी ने अपनी पूंछ को धक्के मार कर गुफ़ा से बाहर दिया.

बाहर तो कुत्ते घात लगाये तैयार ही बैठे थे. उनको मालूम था कि आखिर इस छोटी सी गुफ़ा मे लोमड जी कितने देर रुक सकेंगे? पूंछ के बाहर दिखाई देते ही तुरंत कुत्तों ने पूंछ को पकड कर लोमड जी को बाहर खींच लिया और उनको देखते ही देखते चट कर गये.



इब खुंटे पै पढो :-

एक सीधे साधे आदमी को एक नेताजी ने कुछ ज्यादा ही तंग किया तो उस आदमी ने गुस्से मे
आकर नेताजी को उल्लू का पठ्ठा कह दिया. नेताजी गुस्से मे लाल पीले होगये और उस आदमी
को सबक सिखाने की ठान ली.

लिहाजा नेताजी ने श्री दिनेश राय द्विवेदी जी को वकील बना लिया और उस आदमी पर अदालत
में मुकदमा ठोक दिया. वकील साहब ने नेताजी को कहा कि गवाह पक्का होना चाहिये.

नेताजी बोले - वकील साहब, आप फ़िक्र ही मत करो. उस समय ताऊ वहां मौजूद था, और उसके
सामने ही उसने मुझे उल्लू का पठ्ठा कहा था. और ताऊ तो युं भी मेरा ही आदमी है उसके सारे
उल्टे सीधे धंधे मेरी कृपा से ही चलते हैं.

वकील साहब ने तसल्ली के लिये ताऊ से पूछा तो ताऊ बोला - सच को सच कहने मे क्या दिक्कत है? उस आदमी ने नेताजी को सरे आम उल्लू का पठ्ठा कहा था, मैं पक्की गवाही दूंगा.

अदालत मे मुकदमा शुरु हुआ. बचाव पक्ष के वकील ने जिरह शुरु की. उसका तर्क था कि मेरे
मुव्वकिल ने उल्लू का पठ्ठा शब्द अवश्य इस्तेमाल किया था पर वो नेताजी के लिये नही था.

वहां पर सैकडों लोग और भी थे और उसने हाथ वगैरह का कोई इशारा भी नही किया था.

द्विवेदी जी को बस इसी मौके की तलाश थी. उन्होने ताऊ को बतौर गवाह पेश किया और उससे पूछने लगे कि क्या माजरा हुआ था?

ताऊ : हुजुर जज साहब, मैं कसम ऊठाकर कहता हुं कि इस आदमी ने सरे आम नेताजी को
उल्लू का पठ्ठा कहा था.

उस आदमी का वकील बोला कि - ताऊ, क्या इस आदमी ने कोई हाथ से इशारा किया था?

ताऊ बोला - बिल्कुल नही.

वकील साहब - वहां और भी सैकडों लोग थे तो तुम कैसे कह सकते हो कि इसने नेताजी को ही उल्लू का पठ्ठा कहा था?

ताऊ - क्योंकि वहां नेताजी को छोडकर दुसरा कोई उल्लू का पठ्ठा था ही नही.


कल गुरुवार को पढिये डा. रुपचन्द्र शाश्त्री " मयंक" से ताऊ की अंतरंग

बातचीत

गुरुवार 4 जून 2009 को सुबह 5:55 AM पर

Comments

  1. ताऊ शरीर के हर अंग की तरह घर के हर सदस्य की अपनी महत्ता होती है जिस घर में लडाई झगडे चलते रहते है वे चाहे सास बहु के हो ,पति पत्नी के हो,या अन्य सदस्यों के साथ , वहां बाहर वाले ठीक उसी तरह फायदा उठाते है जैसे जंगली कुत्तों ने लोमड जी और उनकी पूंछ के बीच विवाद के चलते फायदा उठाया और लोमड जी को चट कर गए |
    खूंटे का तो कोई मुकाबला ही नहीं |
    ताऊ लगता है आज ताउनामा पर गूगल बाबा ज्यादा ही मेहरबान है पोस्ट के निचे गूगल बाबा के बहुत अच्छे विज्ञापन दिखाई दे रहे है सो उन पर चटका लगाने से अपने आप को रोक नहीं पाए |

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  2. "लोमड़ जी की पूंछ"
    की कथा मेरे बच्चों के बच्चों को बहुत अच्छी लगी।
    "नेताजी को उल्लू का पठ्ठा कह दिया"
    यह व्यंग्य आजकल के नेताजी पर सटीक रहा।
    ताऊ को घणी बधाई।

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  3. बढियां है खूटे के बाहर और खूटे पर भी ! बाकी उल्लू और नेता जी उल्लू के पट्ठे ! हे हे हे !
    जैसी नई बहु को उसके सास और ससुर सुनाया करते हैं-संशोधन की जरूरत है यह नेक काम अमूमन केवल सासू जी करती हैं -ब्लॉग जगत की दहशत साफ़ दिखे है ताऊ तोपर !

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  4. waah tau...kamaal rahi yo...lomad ne apnee poonch ne fanswaa diyo..ke angle nikaalo hai bhaayaa....aur the ullu ke patthe kee ghani pakki pehchaan karwaa dee taine..manne te ghana maja aayaa...yo lomad aur ulluan ne samarpit post padh kar is insaan ka man...kasam se ..khush ho gaya...

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  5. जब नेताजी ताऊ को गवाही के लिए लाए तभी हमने नेताजी को कह दिया था कि ये गवाह नहीं चलेगा। नेताजी फिर भी ना माने। कहने लगे पक्का गवाह है। हमने कहा यह गवाह बाद में पहले ताऊ है। नेताजी न माने और ताऊ को ले आए।
    ताऊ ने अदालत के सामने यह साबित कर दिया कि नेताजी जन्मना ही उल्लू के पट्ठे हैं।

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  6. बढ़िया कहानी है। ताऊ की गवाही भी पसंद आई।

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  7. @Arvind Mishra said...

    आप सही कह रहे हैं पर कुछ सासों के गुलाम टाईप ससुर भी होते हैं यह शायद उनके लिये है. वो आंख मींचकर सास की हां मे हां मिलाते हैं और इसीलिये नौबत यहां तक पहुंचती है.:)

    ताऊ बहुत गजब लिखा आज तो.

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  8. आहा ताऊ...खूंटा पढ़ के दिल खुश हो गया...क्या सुनाया है नेता जी को :) वाकई नेताजी के अलावा कोई उल्लू का पठ्ठा था ही कहाँ :)

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  9. कसम से आज आपने बहुत हंसाया है....
    शुक्रिया बहुत कम लोग हैं जो दूसरो की हसाते हैं मुझे भी सभी को हसना बहुत अच्छा लगता है...
    मीत

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  10. इब खूंटा गज़ब का है भाई......... mazaa आ गया

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  11. हा...हा...हा..हा,,,,,,,,,,,,
    जबरदस्त .......झक्कास

    अर्ज है :

    एक नेता भीड़ में खो गया है
    कहीं वो आदमी तो नहीं हो गया है !!!

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  12. शिक्षाप्रद कहानी.
    जरुरत से ज्यादा समझदारी भी खतरनाक होती है...और शरीर का हर अंग किसी न किसी काम का होता है...लोमड मरने के बाद ही--यह समझ तो गया होगा.

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  13. लोमडजी ने पूंछ को भाव ना दिया और इधर नेताजी ताऊ को ना समझ पाए... दोनों मस्त :) ताऊ ने बिलकुल सही गवाही दी.

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  14. तो अब बताइये, कौन उल्लू का पट्ठा कहता है कि लोमडी सयानी होती है?:)

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  15. जीवन मे हम किसी भी वस्तु/जीव के महत्व को कम कर के नही आक सकते,चाहे उसकी प्रकृ्ति कैसी भी हो.....लेकिन लोमड महाराज्! इतनी सी बात नही समझ सके और अपनी मूर्खतावश कुत्तो की उदरपूर्ती का साधन बन गए।

    ओर ताऊ आज खूटा तो घणी कस के बाध दिया......

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  16. मजेदार रही यह लोमड की कहानी। आभार।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  17. netao ki dhulai to aap humesha hi bahut achhi karte hai...

    Khunta bahut achha tha...

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  18. कथा से ज्ञान प्राप्त कर लिया जी, हम कोई उल्लू के पट्ठे थोड़ेय है :) खूंटा जोरदार रहा.

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  19. ताऊ जी
    आप प्राणी सँसार के पात्रोँ के जो प्यारे प्यारे नाम देते हैँ, वे सभी रजिस्टर्ड करवा लेँ :)

    डीज़्नी (Walt Disney world )वाले
    कहीँ चुरा ना लेँ ...........

    बहुत अच्छी लगी कहानी और खूँटा भी !
    - लावण्या

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  20. लोमड की कहानी के जरिये अच्छा निशाना साधा है आपने .और आज खूंटा भी गज़ब का है

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  21. अजी ताऊ जी वो लोमड तो गया काम से, लेकिन वो नेता आप को ढुढ रहा है,

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  22. सही है ताऊ सही पहचाना उल्लू के रिश्तेदारों को। लोमड का किस्सा भी मस्त है :)

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