कलयुगी श्रवण

" कलयुगी श्रवण "













वृद्धाश्रम मे शाम के सत्संग मे
श्रवण कुमार की कथा सुनाई गयी
श्रवण के करुण अंत ने
सभी बूढे आश्रम वासियों का
दिल दिमाग दहला दिया

एक वृद्ध दम्पति अपने कमरे मे लौट कर

निढाल होके बिस्तर पर लेट गया
आँखों मे नमी और शून्य चेहरा
एक अजीब सा मौन छा गया.

आखिर वृद सज्जन ने मौन तोडा

और पूछा, क्या सोच रही हो?
मौन क्यों हो? कुछ बोलो ना.
क्या अपने श्रवण की यादों मे खो गई?

वृद्धा बोली - शुभ शुभ बोलो जी
हमारे श्रवण को क्या हुआ है
वो तो बहुत सुख मे है.
ऊंचा अफ़सर, अंगरेजी बोलने वाली बहु
गाडी, मकान, धन दौलत
सब तो है हमारे श्रवण के पास

वृद्ध बोला - तो अब और कितना सुख चाहिये?

हमे इस जीवन को विदा देने के लिये?


(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)







 
परसों गुरुवार को पढिये डा. रुपचन्द्र शाश्त्री “ मयंक”  से ताऊ की अंतरंग
 बातचीत  
गुरुवार 4 जून  2009 को सुबह 5:55 AM पर

Comments

  1. सुश्री सीमा गुप्ता जी को उनकी व्यंग्य रचना
    " कलयुगी श्रवण " के निए बधाई।
    ताऊ को धन्यवाद।

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  2. ताऊ आज तो कविता के बहाने बहुत ही संवेदनशील मुद्दा उठा दिया है ! हमारे देश में वृद्धाआश्रम की संख्या बहुत कम है और आने वाले समय में इनकी जरुरत बहुत बढ़ जायेगी |

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  3. आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया!
    बहुत ही सुंदर लिखा है आपने और बिल्कुल सही फ़रमाया है! आजकल तो बच्चे अपने माँ पिताजी को अकेला छोर देते हैं! बुडापे में बच्चों के लिए तो माँ पिताजी बोझ बन जाते हैं पर ये बात क्यूँ भूल जाते हैं बच्चे की एक दिन उनका भी समय आयेगा तब एहसास होगा !

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  4. माता पिता के आशीर्वाद से ही सारे सुख मिलते हैँ
    -- लावण्या

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  5. श्रवण.. कहाँ है वो.. कोई बुलाये जरा..

    राम राम

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  6. सही चित्र उकेरती हुई रचना .

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  7. सुबह-सुबह इतनी मार्मिक कविता पढ़ ली है....दिन भर की उदासी?

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  8. बदलते समाज की तस्वीर है आप की कविता.

    यही हाल है आज कल,

    इस लिए हर किसी को अपनी वृद्धावस्था में अकेले रहने के लिएपहले से ही आर्थिक ,शारीरिक ,-दिल-और दिमागी तौर पर तैयार रहना चाहिये.

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  9. दिल चीरती हुई रचना...कैसे कैसे श्रवण कुमार हैं अब..
    नीरज

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  10. यह तो युगो से चला आ रहा है, वरना श्रवण कुमार को महत्त्व ही कहाँ मिलता. अतः केवल इस युग को कोसना गलत होगा.

    संवेदना जगाती कविता है.

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  11. आज के सामाजिक हालात का स्पष्ट चित्र उकेरती हुई रचना........सुश्री सीमा जी सहित आपका भी बहुत धन्यवाद।

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  12. बहुत मार्मिक और सटीक बात.

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  13. आज के आधुनिक समाज, आज के वातावरण पर लिखी अच्छी रचना है............ सोचने को विवश करती है

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  14. अति दुखद बात है पर आजकल यह बहुतायत से होने लगा है. हमारे यहां भी जब से एकल परिवारों का चलन फ़ैशन बना है तब से यह समस्या खडी हो गई है.

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  15. बहुत अफ़्सोस जनक बात है. हम किधर जा रहे हैं? ये हमारी तो सभ्यता नही है. दुखद बात है.

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  16. बहुत मार्मिक रचना.

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  17. बहुत अच्छी लगी ये रचना...
    मीत

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  18. बिल्कुल दुखती रग है आज हमारे समाज की.

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  19. आज के कलयुगी श्रवणों को सोचना चाहिये कि कल वो भी वृद्धाश्रम मे होंगे.

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  20. बड़ी दयनीय स्थिति है जी आजकल के वृद्धों की. पत्नियों को चाहिए कि कुछ संवेदनशील बनें.और अपने पति को अपने माँ बाप से विमुख न करें. हमें मालूम है कि इस बात पर भी बहुत शोर मचाया जाएगा.

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  21. सीमा जी आपके शब्‍दों का बाण सीधा दिल को बेंधता हुआ पार हो गया बहुत ही अच्‍छी रचना के लिए आपको और ताऊ को बधाई

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  22. कलयुगी श्रवण ही चाहे हो लेकिन मां बाप फ़िर भी उस नलायक को प्यार ही करते है, कभी उस का बुरा नही सोचते,बहुत ही सुंदर रचना. रधे श्याम

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  23. माँ बाप आखिर माँ बाप ही रहते हैं..
    चाहे बच्चे कैसे भी रहें.

    धन्य हैं वो.

    और ऐसे श्रवन भूल जाते हैं,
    कि कभी वो भी इस दौर से गुजरेंगे...

    ~जयंत

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  24. बिल्कुल कटु सत्य बयां करती रचना.

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  25. अरे ताऊजी आज क्या और कहाँ बात पहुँचा दी भाई। बहुत बहुत संजीदा बात। दिल को छू लेने वाली। सीमाजी का हमारी ओर से भी आभार। फिर मिलेंगे।

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  26. अच्छी रचना। वैसे आजकल श्रवण कहाँ है।

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  27. हमारा दुःख यही है कि हमने श्रवण पैदा न किए। इस में नयी पीढ़ी का क्या दोष? हमारी उन से आकांक्षाएँ जैसी रहीं वैसा उन ने बन के दिखा दिया। उपनिषद कहते हैं संन्तान माता-पिता का पुनर्जन्म होती है, पर हम ने ऐसा कब समझा?

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  28. वृद्धा बोली - शुभ शुभ बोलो जी
    हमारे श्रवण को क्या हुआ है
    वो तो बहुत सुख मे है.
    ऊंचा अफ़सर, अंगरेजी बोलने वाली बहु
    गाडी, मकान, धन दौलत
    सब तो है हमारे श्रवण के

    aaj ke Sharwan ki achhi tasvir banayi hai apne Seema ji...

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  29. तब के श्रवण कुमार के माता पिता भी पुत्र की याद में मरे और अब के भी... कितना फर्क है दोनों में !

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  30. बहुत बढिया कविता प्रेषित की है।बधाई।

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  31. मन में एक टीस उठाती कविता !

    हर बेटा चाहे राम न हो , हर माँ कौशल्या होती है .

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  32. sb ugliya baraba nhi hoti .sabhi klygi shrvan nhi hote .
    vrdhashramo ki sankhya abhi apne desh me kam hai .iska karn hai abhi bhi mata pita ke prti bachhe apna krtvy ache se nibahte hai .

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  33. सार्थक कविता.....वृद्ध माँ-बाप को वृद्धाश्रम में छोड़कर अपने कर्त्तव्य की इतिश्री करने वाली संतानों से मैं एक कहानी के माध्यम से रूबरू होना चाहूंगा......

    जापानी कहानी है, ठीक से याद नहीं पर भाव समझिएगा...जापान में बहुत समय पहले वृद्ध माँ-बाप को पीठ पर लादकर एक पहाड़ी पर छोड़ने का रिवाज था. साथ ही उनके खाने के लिए मिट्टी के बर्तन रख देते थे. शायद कभी-कभी ही मिलने जाते थे उन वृद्ध माँ-बाप से. एक ऐसे ही परिवार में जब बेटे ने पिताजी को इस तरह छोड़ा तो उसका बेटा यानी वृद्ध का पौत्र मिट्टी के बर्तन जमा करने लगा. उसके पिता ने पूछा तो वह बोला पिताजी, जब आप भी दादाजी की तरह बूढ़े हो जाओगे तब मैं आपको इन बर्तनों में खाना दूंगा....यह देखकर उसके पिता को अपनी भूल का एहसास हुआ..

    ठीक यही बात आप पर भी लागू हो सकती है....कैसा लगेगा आपको??

    साभार
    हमसफ़र यादों का.......

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