एक युरोपिय शोधकर्ता गार्ड वास्सन की माने तो उन्होने वेदों पर शोध के बाद लिखा है कि प्राचीन भारतिय साहित्य
मे जिस सोमरस का उल्लेख है वो और कुछ नही एक खास किस्म का सोम नामक मशरूम का जूस ही था. उनका
निष्कर्ष है कि मशरुम मे पाया जाने वाला हैलिसोजेनिक तत्व मष्तिष्क के रिग्वेद मे उल्लिखित परमोल्लास का
कारक था. पुस्तक का नाम है "सोम डिवाईन मशरुम आफ़ इमार्टिलिटी"
अब यह तो काफ़ी कुछ स्पष्ट हो चुका है कि मशरूम मे फ़ैटी एसिड की कमी होती है और इसके सेवन से प्रतिरोधक क्षमता बढती है. पर अभी भी हम कतिपय कारणों से इसका उपयोग नही के बराबर ही करते हैं. आज सबसे बडी समस्या मोटापा है. और आज हमको सुश्री प्रेमलता एम. सेमलानी उनके स्तम्भ "नारीलोक" मे बिना तेल घी की स्वादिष्ट भोजन बनाने की विधि बता रही हैं. और आगे भी आप नियमित रुप से उनसे विविध विषयों पर जानकारी पाते रहेंगे.
ब्लाग जगत का बीता सप्ताह मुख्य रुप से राहु-केतुओं के नाम रहा यानि अनाम और अनामिकाओं के. ईश्वर उनको सदबुद्धि दे और वो कुछ रचनात्मक करें. याद रखें कि सृजन बडा शुकुन देता है पर समय लेता है और विद्धवंश एक तात्कालिक खुशी देकर हमेशा के लिये अंधेरे के गर्त मे धकेल देता है. आगे सब अपनी मर्जी के मालिक हैं. आईये अब आज की पत्रिका समीर जी के दोहों से शुरु करते हैं.
-ताऊ रामपुरिया
अक्सर ब्लॉग लेखन के बारे में सलाह लिखते हुए मुझे लगने लगता है कि मात्र ब्लॉगलेखन में ही क्यूँ? अधिकतर सलाहें जो सफल जीवन के लिए जरुरी हैं, वहीं तो इस ब्लॉगजगत मे सफल जीवन या यूँ कहें कि सफल लेखन के लिए भी जरुरी है. अतः जो कुछ भी और जिस तरह की बातें आप अपने आम जीवन में सार्वजनिक रुप से करना उचित और सही समझते हैं, वही लेखन करते वक्त भी पालन करें. इसी बात को विचार में रखते हुए यह दोहे मैने बहुत पहले कहे थे किन्तु आज भी जरुरी लगते हैं. अन्य टिप्स को आगे बढ़ाने के पहले, मुझे लगता है कि इन्हें एक बार फिर ध्यान से पढ़ना और समझना होगा. फिर आगे की बात करते हैं. मतभेदों की बात पर, बस उतना लड़िये आप लाठी भी साबूत रहे, और मारा जाये साँप. पुस्तक ऐसी बाँचिये, जिससे मिलता ज्ञान कितना भी हो पढ़ चुके, नया हमेशा जान. उल्टी सीधी लेखनी, एक दिन का है नाम बदनामी बस पाओगे, नहीं मिले सम्मान. कविता में लिख डालिये, अपने मन के भाव जो खुद को अच्छा लगे, जग के भर दे घाव. समीरा इस संसार का, बड़ा ही अद्भूत ढंग वैसी ही दुनिया दिखी, जैसा चश्में का रंग. कौन मिला है आपसे और कितना लेंगे जान जो कुछ भी हो लिख रहे, उसी से है पहचान सब साथी हैं आपके, कोई न तुमसे दूर अपनापन दिखालाईये, प्यार मिले भरपूर. -शुभकामनाऐं समीर लाल 'समीर' |
नंदी हिल्स [कर्णाटक] गर्मियों के इस मौसम में लिए चलते हैं एक ठंडे पहाडी स्थान पर,जिसे नंदी हिल्स के नाम से ख्याति प्राप्त है. यह स्थान कर्नाटक राज्य में है और यह कर्णाटक राज्य भारत के दक्षिण राज्यों में से एक है . इस राज्य की स्थापना १९५६ में हुई थी,इस का नाम मैसूर स्टेट था जिसे बदल कर १९७३ में कर्णाटक कर दिया गया. इस के पश्चिम तट को अरब सागर छूता है .गोवा,तमिलनाडु,केरला,आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र इस के पडोसी राज्य हैं.क्षेत्रफल के हिसाब से यह भारत का ८ वां बड़ा राज्य है.कन्नड़ यहाँ की मुख्य भाषा है.इस राज्य में 27 जिले हैं और यहाँ के कर्णाटक संगीत के बारे में कौन नहीं जानता? कर्नाटक को अगरबत्ती, सुपारी, रेशम, कॉफी और चंदन की लकडी की राजधानी भी कहा जाता है.इसके अलावा यहां पर शिक्षित और प्रशिक्षित तकनीकी जनशाक्ति विशेष रूप से इंजीनियरिंग, प्रबंधन और आधारभूत विज्ञान के क्षेत्रों में, प्रचुर संख्या में उपलब्ध हैं.कुल जनसंख्या में से 60 प्रतिशत लोग ग्रामीण क्षेत्रों में रहते है और उनका मुख्य व्यवसाय कृषि है.. कर्नाटक में पर्यटन आकर्षण के कुछ ख़ास स्थान इस प्रकार हैं-: पूर्व की महाराजाओं की राजधानी मैसूर, वृन्दावन गार्डन और नजदीक स्थित श्री रंगापट्टनम श्रावण बेलगोला स्थित गोमातेश्वर की प्रसिद्ध एकाश्म मूर्ति (59 फीट ऊँची), बेलूर, हेलबिड, और सोमनाथपुर जहाँ प्रसिद्ध होयसाला इमारतें हैं, बादामी, एहोल और पट्टकल जहाँ 1300 वर्ष पुराने चट्टानों से बनाए गए पुराने ढाँचागत मंदिर है, हम्पी, प्रसिद्ध ओपन एयर मयूजियम (प्राचीन विजयनगर), गुलबर्ग बदिर और बीजापुर जो इण्डो-सारासेनिक इमारतों के लिए प्रसिद्ध है , दक्षिण कन्नड, उडूपी और उत्तरी कन्नड जिला [जहां खूबसूरत तट है.]--पत्तनों के लिए मंगलौर और कारवार, आकर्षक किलों के लिए चित्रदुर्ग, बीयर, बासाव कल्याण और गुलबर्ग; बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान, बानघटा नेशनल पार्क; रंगनथितु; कोक्करे बेलूर; मंडागडे, गुदावी, अट्टीवेरी (प्रसिद्ध पक्षी अभ्यारण्य); जोग, सथोडी, शिवनासमुद्र, मोगोड, गोकक, अब्बे, उन्चाली, इरूपु, हेब्बे, कलहटी (खूबसूरत झरने); मादीकेरी, केम्मानुगुन्डी, बी.आर.हिल्स, नंदी हिल्स, कुदरेमुख, कोदाचदरी [गर्मियों में ठंडे और मनोरम पहाडी स्थान हैं.] इसके अतिरिक्त, दशहरा, हम्पी, चालुक्य, कदम्ब, होयसाला, कोदागु और करागा त्यौहार कर्नाटक की कला और संस्कृति से परिचय कराते हैं. बंगलोर या कहिये बंगलुरु यहाँ की राजधानी है. कर्णाटक के बारे में लिखने को बहुत कुछ है ,और देखने को भी बहुत ही सुन्दर और मनोरम स्थल हैं मगर फिर कभी इस के समृद्ध इतिहास और संस्कृति के बारे में जानेंगे . आज हम आप को बताएँगे नंदी हिल्स या नंदी पर्वतमाला के बारे में- बंगलुरु से ६० किलोमीटर की दूरी पर और समुद्र से १४७८ मीटर की ऊँचाई पर ,चिक्बालापुर जिले में स्थित इस स्थान को बहुत कम लोग जानते हैं. इस लिए यहाँ पर्यटकों की भीड़ भी बहुत कम होती है. यह एक पिकनिक स्पॉट के रूप में ज्यादा जाना जाता है. यहाँ पर्यटकों के लिए सुन्दर पार्क हैं.यहाँ हरियाली तो है ही ,बहुत ही सुन्दर पक्षी भी यहाँ देखने को मिल जायेंगे.गर्मियों में ठंडी हवाओं का आनंद लेते हुए, फुर्सत से सुबह से शाम तक का समय प्रकृति की गोद में भीड़ भाड़ से दूर गुजारने के लिए यह बेहद रोचक स्थान है . यूँ तो सरकारी रेस्तरां -'मोर्या' है मगर आप अपने साथ खाने पीने का सामान भी ले जा सकते हैं.. और हाँ, बंदरों से अपना सामान बचा कर रखीये. आप के हाथ से सामान छीन कर ले जा सकते हैं. जानते हैं यहाँ के इतिहास के बारे में- चोला राजाओं के शासन के समय इस पर्वत को आनंद गिरी कहा जाता था.नंदी पर्वतमाला को पहले नंदी दुर्ग के नाम से भी पुकारते थे.नंदी पर्वतमाला का नाम यहाँ स्थित प्राचीन नंदी मंदिर से पड़ा है.किले का द्वार आप को मुख्य पहेली में दिखाया गया था वह टीपू सुलतान के गर्मियों के आवास स्थान का प्रवेश द्वार था.हैदर अली[टीपू सुलतान के पिताजी ]और टीपू सुलतान ने पहले से बने किले को विस्तार दिया ,उनके पश्चात् ब्रिटिश सरकार ने यहाँ के ठंडे मौसम के कारण यहाँ पर सरकारी बंगले और बागीचे बनवा दिए और इस जगह को एक हिल स्टेशन के रूप में विकसित किया.जनरल कब्बन के निवास स्थान को अब होटल की तरह इस्तमाल किया जाता है. नंदी हिल्स में देखने की प्रमुख जगहें-: 1-यहीं पुराना मंदिर जिसमें नंदी बैल की हज़ार साल पुरानी मूर्ति है,और शिवजी -पार्वती के प्राचीन मंदिर भी हैं. [आप को रामप्यारी के क्लू में इस पहाडी की मैदान से ली गयी तस्वीर और इन्हीं नंदी की प्राचीन मूर्ति की तस्वीर दिखाई गयी थी.] 2-किला- गंगा काल में यह किला चिक्काबल्लापुर के मुखिया ने बनवाया था ,जिसका हैदर अली और टीपू सुलतान ने मरम्मत और विस्तार किया. यह किला टीपू सुलतान की गर्मियों में रहने की जगह थी जिसे वह तश्क -ऐ -जन्नत कहते थे. इस किले में ऐसी व्यवस्था थी की एक सैनिक छुप कर एक समय पर चार दिशाओं में शूट कर सकता था. दिवार और छत पर बनी पेंटिंग बुरी हालत में हैं.यह महल आम जनता के देखने के लिए बंद है. 3-यहाँ पश्चिम में एक गुप्त सुरंग भी है. 4-किले के उत्तर पूर्व में टिप्पू के सैनिकों के घोडों की चढाई के लिए एक मार्ग है. 5-टिप्पू ड्राप- यह एक ऐसी जगह जहाँ से टीपू सुलतान के आदेश पर उनके दुश्मनों को गिराया जाता था. यहाँ से गिर कर मौत निश्चित है.क्योंकि यह एक सपाट चट्टान है और कहीं भी कोई पेड़ पौधा नहीं है. इस जगह से कई लोगों ने आत्महत्या की हैं.ऐसा वहां के स्थानीय लोगों का कहना है. एक बार कर्णाटक के शिवमोगा जिले के एक प्रेमी जोड़े रावी और वेद ने यहाँ से कूद कर अपनी जान दे दी थी ,उस घटना के बाद सरकार ने इस जगह की फेंसिंग करवा दी. 6-अमूर्त सरोवर- पहाडियों से गिरता पानी यह सरोवर बनाता है यह सरोवर कभी सूखता नहीं है. 7-फ़ुट हिल्स में पुरातत्व महत्व के भगवान् नरसिंह के मंदिर भी हैं. 8-गाँधी निलय,और नेहरु हाउस संग्रहालय और सरकारी गेस्ट हाउस हैं. 9-नंदी हिल्स में ब्रह्मश्रम नामक एक गुफा है जिसे संत रामकृष्ण परमहंस का साधना स्थल बताया जाताहै. 10-श्री एम् .विस्वेस्वराया जिन्हें आधुनिक कर्नाटका का निर्माता कहा जाता है ,उनका घर जिसे अब म्यूज़ियम बना दिया गया है, नंदी हिल्स से कुछ दूरी पर स्थित मुद्देनाहाली में है. ** **ज्ञात हो ,पेन्नर,अरकावती ,पलार,पोनियार -नंदी हिल्स से निकलने वाली नदियाँ हैं. कैसे जाएँ- -नंदिदुर्ग तक जाने के लिए- KSRTC [कर्णाटक पर्यटन विभाग ]की हर रोज़ बस सेवाएं उपलब्ध हैं. -कार /जीप किराए पर या ड्राईवर के साथ ले सकते हैं. -अपनी बाईक पर लम्बी राईड पर जाना हो तो यह रास्ता बहुत ही अच्छा है. कब जाएँ- वर्ष पर्यंत -खबरों में- [इंडो-एशियन न्यूज सर्विस-अप्रिल२००९] दुनिया की जानीमानी कंपनी मैरियट इंटरनेशनल ने बंगलौर के प्रमुख भवन निर्माता प्रेस्टीज समूह के साथ मिलकर नंदी हिल्स के पास 275 एकड़ भूमि पर 300 कमरों का ,18 होल वाले गोल्फ कोर्स से युक्त एक पांच सितारा रिसोर्ट होटल बनाने का फैसला किया है. प्रेस्टीज समूह के मुखिया इरफान रजक के अनुसार यह होटल 2010 तक चालू हो जाएगा। |
बीते हफ्ते दिल उदास रहा। कारण था पॉप सितारे माइकल जैक्सन का देहांत। व्यक्तिगत तौर पर सबसे पहले जिस हस्ती ने मेरे दिलोदिमाग पर राज किया वे माइकल जैक्सन ही थे। बचपन में हम उन्हें "माई का लाल जय किशन" पुकारा करते थे। वर्ष 1996 में घरवालों से छिपकर दोस्तों के साथ मुंबई जाकर उनकी लाइव कंसर्ट देखने का प्रोग्राम भी बनाया था, लेकिन सभी दोस्त स्टेशन पर ही धर लिए गए। इसके बाद सबने तय किया था कि जैक्सन जब भी हिंदुस्तान आएंगे, उन्हें देखने हम जरूर जाएंगे। वक्त की चाल देखिए। तेरह साल के सफर में हम तेरह दोस्त तेरह अलग-अलग शहरों में हैं। संपर्क केवल ई-मेल और फोन के जरिए है। जैक्सन के निधन की खबर सुनते ही एक दोस्त का ई-मेल आया, जिसमें उसने जैक्सन का वह संदेश भेजा, जो उन्होंने 1996 में भारत यात्रा के दौरान दिया था- 'भारत, काफी अर्से से मैं तुम्हे देखना चाहता था। मैं तुमसे मिला, तुम्हारे लोगों से मिला और मुझे तुमसे प्यार हो गया। अब मैं तुमसे दूर जा रहा हूं, इसलिए मेरा दिल बहुत उदास है, लेकिन मैं वापस आऊंगा, क्योंकि मुझे तुमसे प्यार है और मैं तुम्हारी परवाह करता हूं। तुम्हारी उदारता से मैं अभिभूत हूं, तुम्हारी आध्यात्मिक जाग्रति ने मुझे हिला दिया है और तुम्हारे बच्चों ने मेरे दिल को छू लिया है। वे ईश्वर की मूरत हैं। मेरा भविष्य उनमें चमकता है। भारत, तुम मेरा खास प्यार हो.. ईश्वर हमेशा तुम पर अपनी कृपा बनाए रखे।' काश उन्हें लाइव देख पाने का मेरा सपना सच हो पाता.. अगले हफ्ते फिर मिलेंगे.. नमस्कार |
आदमी कैसे मुसीबत में पड़ता है..... एक दिन, जब एक लकड़हारा एक नदी के ऊपर एक पेड़ की एक टहनी काट रहा था, उसकी कुल्हाड़ी नदी में गिर गयी और वो रोने लगा. तभी भगवन ने दर्शन दिए और पूछा "तुम क्यों रो रहे हो? लकड़हारा बोला कि उसकी कुल्हाड़ी पानी में गिर गयी है , और उसे अपने जीविका चलाने के लिए कुल्हाड़ी की ज़रूरत है. भगवान् पानी में नीचे गये और सोने की कुल्हाडी के साथ दुबारा प्रकट हुए. यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?" भगवान ने पुछा लकड़हारे ने कहा, "नहीं" भगवान् फिर से नीचे पानी में गये और एक चांदी की कुल्हाड़ी के साथ वापस आये. और पूछा "यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?" लकड़हारे ने फिर कहा, "नहीं" भगवान् फिर से नीचे गये और एक लोहे की कुल्हाड़ी के साथ आये. और पूछा - "यह तुम्हारी कुल्हाड़ी है?" इस बार लकड़हारे ने "हाँ कहा." भगवान उस आदमी की ईमानदारी से खुश हुये और उसे तीनों ही कुल्हाडीयां दे दी. और लकड़हारा खुश होता हुआ घर चला गया. कुछ समय बाद लकड़हारा अपनी पत्नी, के साथ नदी के किनारे टहल रहा था की अचानक पैर फिसला और उसकी पत्नी नदी में गिर गई, और वह रोने लगा. भगवान फिर से प्रकट हुए और पूछा, "तुम क्यों रो रहे हो?" हे भगवन मेरी पत्नी नदी में गिर गयी है.. भगवान् पानी में नीचे चला गया और जेनिफर लोपेज के साथ आया. और पुछा "क्या ये तु्म्हारी पत्नी है"??? हाँ, "इस लकड़हारा चिल्लाया " भगवान क्रोधित होगये और बोले - "तुम झूठ बोल रहे हो ! यह झूंठ है!" इस पर लकड़हारा,बोला "ओह, मेरे भगवान मुझे माफ कर दीजिए .. मुझे गलतफहमी हो गयी थी." अब अगर मैं जेनिफर लोपेज के लिए नहीं कहता तो आप कैथरीन जोंसन के साथ आते. तो अगर मैं उसे भी 'नहीं' कहता तो फिर आप मेरी पत्नी के साथ आते और तब मैं 'हां,' कहता और आप मुझे ये तीनो ही दे देते. प्रभु, मैं एक गरीब आदमी हूँ , और तीन पत्नियों की देखभाल नहीं कर सकता , इसलिए मैंने जेनिफर लोपेज के लिए हाँ कहा था . इसलिए कहते हैं लालच बहुत बुरी बला है......कब लेने के देने पड जाएँ कोई नहीं जानता.... |
कुमाऊँ की बारादोली है शहीद स्थल खुमाड़ देश को स्वतंत्र कराने के लिये जहां पूरे देश ने अपना सब कुछ न्यौछावर कर दिया वहीं कुमाऊं में अल्मोड़ा जिले के समीपवर्ती गांव खुमाड़ के लोगों की भी इस आंदोलन में महत्वपूर्ण भागीदारी रही है। 5 सितम्बर 1942 को खुमाड़ में स्वतंत्रता सेनानियों की भीड़ में, उस समय के एस.डी.एम. जॉनसन ने अंधाधुंध गोली चलाकर चार लोगों को मार दिया और कई लोगों को घायल कर दिया। इस हादसे के बाद महात्मा गांधी जी ने स्वयं खुमाड़ को `कुमाऊँ की बारादोली´ का नाम दिया। गांधी जी के नेतृत्व में जहां भी जो भी आंदोलन हुए खुमाड़ के लोग कभी भी इन आंदोलनों से दूर नहीं रहे। चाहे वह सविनय अवज्ञा आंदोलन, नमक सत्याग्रह आंदोलन, कुली-बेगार आंदोलन, विदेशी बहिष्कार तथा अंग्रेजों भारत छोड़ों आंदोलन हों या फिर कोई और आंदोलन। खुमाड़ के लोगों ने हमेशा ही तन, मन धन से इन आंदोलनों में भरपूर भागीदारी की। खुमाड़ में आजादी का बिगुल 1920 के दशक में युवा क्रांतिकारी पुरूषोत्तम उपाध्याय ने बजा दिया था। 1922 में जब गांधी जी को गिरफ्तार किया गया तो इन्होंने यहां के लोगों को एकजुट कर इस गिरफ्तारी का जबरदस्त प्रतिकार किया। सन् 1930 में जब इस इलाके में आजादी के लिये लोगों का जज्बा अपनी चरम सीमा पर था तब अंग्रेजों ने इस जज्बे को दबाने के लिये यहां के लोगों की सम्पत्ति कुर्क कर दी, फसलें उजाड़ दी और आंदोलनकारियों की जम कर पिटाई की। अप्रेल 1930 में ही नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान लोगों द्वारा चमकना, उभरा तथा हटुली में नमक बनाया गया। इस दौरान माल गुजारों ने भी सामुहिक इस्तीफा दे दिया जिससे अंग्रेज और ज्यादा भड़क गये। 1 सितम्बर 1942 को जब आंदोलनकारियों ने स्वतंत्रता आंदोलन को और भी तेज करने की सोची तो अंग्रेजों से ये बरदास्त न हुआ और 5 सितम्बर 1942 को जॉनसन खुमाड़ पहुंच गया। खुमाड़ सभा में पहुंचने पर गोविन्द ध्यानी ने जॉनसन का रास्ता रोकने की कोशिश की तो जॉनसन ने गोलियां चलानी शुरू कर दी। जब क्रान्तिकारी नैनमणि ने उसका हाथ पकड़ लिया तो जॉनसन ने गोलियां चलाने के आदेश दे दिये। इस गोलाबारी में गंगा राम, खीमानन्द, चूणमणि एवं बहादुर सिंह मेहरा शहीद हो गये जबकि गंगा दत्त शास्त्री, मधूसूदन, गोपाल सिंह, बचे सिंह, नारायण सिंह समेत कई अन्य क्रान्तिकारी घायल हो गये। इस घटना से महात्मा गांधी बेहद दु:खी हुए और उन्होंने खुमाड़ को `कुमाऊँ की बारादोली´ का नाम दिया। और खुमाड़ को लोगों से अहिंसक आंदोलन जारी रखने को कहा। इन शहीदों की याद में खुमाड़ में आज भी 5 सितम्बर को शहीद स्मृति दिवस मनाया जाता है। |
सहायक संपादक हीरामन मनोरंजक टिपणियां के साथ.
अरे हीरु.. बोल भई पीरु..बोल क्या हुआ? अरे यार देखो..ये अपने अनिल पूसदकर अंकल को कितने कठिन सवाल लग रहे हैं? हां यार पहेली तो बहुत कठिन थी…बता जरा क्या लिखा है? Anil Pusadkar said...कभी तो सरल सवाल भी पूछ लिया करो ताऊ।कठीन-कठीन सवाल पूछ कर काहे भतीजों के जनरल नालेज को सेल पर लटका देते हो। June 27, 2009 10:04 AM
अरे हीरु..देख देख ये आशीष अंकल चढ गये रामप्यारी के चक्कर में.. अरे कैसे ..कैसे ..पीरू क्या हुआ? देख ..देख..जैसे रामप्यारी सच मे ही कोई गर्मी मे गई हो और थक गई हो? अरे यार ये रामप्यारी भी खूब ऊंची नीची देने मे माहिर है. आशीष खण्डेलवाल (Ashish Khandelwal) said...रामप्यारी यात्रा तो 12 दिन की है.. अब चले कितना ये खुद जोड़ लो.. अब इतने सफर में बहुत थक गई होगी न.. मुझे तो यह सोचकर ही तुम पर तरस आ रहा है.. June 27, 2009 1:02 PM
पर यार पीरू ..देख यार ..ये वकील साहब ने तो रामप्यारी की सारी पोल पट्टी ही खो दी? अच्छा…कैसे ..कैसे? बता जरा…अरे ले खुद ही पढ ले दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...ये राम प्यारी बहुत चक्कर देती है। June 27, 2009 1:57 P
अच्छा तो यार हीरू ..आज तो दो घंटे जोरदार बरसात हो गई? हां यार चल जल्दी चल अब पानी मे भीगने चलते हैं.. हां चल यार इस मौसम की पहली बरसात का मजा लेते हैं. |
ट्रेलर : - पढिये : श्री अमित गुप्ता (अंतर सोहिल) से अंतरंग बातचीत
ताऊ की खास बातचीत श्री अंतर सोहिल से. ताऊ - हां तो अमित आपके ब्लाग का नाम है अंतर सोहिल और आप टिपणियां भी इसी नाम से करते हैं. इसका कुछ मतलब हमे बतायेंगे? अमित : ताऊ जी, अब इस शब्द का मतलब तो आपको मालूम ही होगा कि अंदर की खूबसूरती से ताल्लुक है इसका. ताऊ : अपने जीवन की कोई अविस्मरणीय घटना? अमित : एक बार अपने थैले में एक सांप डाल कर कक्षा में ले गया था। और भी बहुत कुछ अंतरंग बातें…..पहली बार..खुद श्री अमित गुप्ता की जबानी…इंतजार की घडियां खत्म….. गुरुवार को मिलिये हमारे चहेते मेहमान से. |
अब ताऊ साप्ताहिक पत्रिका का यह अंक यहीं समाप्त करने की इजाजत चाहते हैं. अगले सप्ताह फ़िर आपसे मुलाकात होगी. संपादक मंडल के सभी सदस्यों की और से आपके सहयोग के लिये आभार.
संपादक मंडल :-
मुख्य संपादक : ताऊ रामपुरिया
वरिष्ठ संपादक : समीर लाल "समीर"
विशेष संपादक : अल्पना वर्मा
संपादक (तकनीकी) : आशीष खण्डेलवाल
संपादक (प्रबंधन) : Seema Gupta
संस्कृति संपादक : विनीता यशश्वी
सहायक संपादक : मिस. रामप्यारी, बीनू फ़िरंगी एवम हीरामन
स्तम्भकार :-
"नारीलोक" - प्रेमलता एम. सेमलानी
अरे वाह !! ताऊ पत्रिका में एक और स्तंभ जुड़ गया.
ReplyDelete....जानकारी बांटने का शुक्रिया.
बहुत जोरदार रहा यह साप्ताहिक अंक।
ReplyDeleteऔर आई पी एड्रेस का कच्चा नहीं
बिल्कुल पक्का चिट्ठा है यह
गांठ बांध लेना
अनामियों/बेनामियों और सुनामियों
कहीं कच्चा समझ कर
टक टक टक टक टक टकाटक करते रहो
और धर लिए जाओ
चलो इसे देख लिया है
अब न उलजुलूल बोल लिखकर
मन को बहलाओ
ब्लॉगस्वामियों को दहलाओ
जाओ खुद नहाओ और अपने कंप्यूटर को नहलाओ
फिर नाम से टिप्पणी देने आओ।
ताऊ जी ये क्या गडबड कर दी नारीलोक मे भी समीर जी हि देखे हैं हम तो तेल रहित भोजन देखने गयी थे कि पतले हो जायें वहाँ समीर जी को देख कर सिर पर पैर रख कर भागे समझ गयी ना हा हा हा
ReplyDeleteवाह ताऊ जी बहुत ही बढ़िया रहा इस बार की पत्रिका का अंक। दूसरा बहुत ही बढ़िया कि ये जो बेनामियों के मुंह पर ताला लगा दिया मजा आगया। पर एक बात से मीठी शिकायत है और ये शिकायत है समीर जी से जो यहां पर लिखते हैं कि
ReplyDeleteकविता में लिख डालिये, अपने मन के भाव
जो खुद को अच्छा लगे, जग के भर दे घाव.
जब कविता लिखो तो कह देते हैं कि कौमा लगा कर गद्य को पद्य बनाने की कोशिश की गई लगती है और ठेल देते हैं एक पोस्ट। ये तो गलत है, है ना ताऊ जी। एडिटर की शिकायत मालिक से।
अरे वाह! एक नया स्तम्भ ऑर जुड़ गया.. वैसे माइकल जैक्शन के जाने से दुःख तो इधर भी हुआ था.. बचपन में उन्ही के डांस की कोपी किया करता था मैं..
ReplyDeleteसीमा जी ने हर बार की तरह इस बार भी मस्त कथा दी है..
--
आपकी पत्रिका दिन दूनी रात चौगुनी गति से विस्तृत हो रही है, देख कर प्रसन्नता होती है।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
नारीलोक स्तंभ के जुड़ जाने से पत्रिका में निःसंदेह निखार आया है. बधाई एवं शुभकामनाऐं. हर कॉलम अपने आप में पूरा है.
ReplyDeleteसमीरा तेरी झोपडी गल कटेओ के पास.
ReplyDeleteकरेगा सो भरेगा, तु क्यो होत उदास.
ताऊ जी मजा आ गया.
समीर जी आप की कविता वक्या ही बहुत सुंदर लगी.आज के बाद जासुसी बन्द
शानदार अंक.. और अगली कड़ी में "नरलोक" की उम्मिद के साथ..:)
ReplyDeleteराम राम
@ Nirmla Kapila
ReplyDeleteध्यान दिलाने के लिये आभार आपका. गलती सुधार दी गई है.
आभार सहित.
ताऊ जी, लगता है कि अब चार चाँद वाली कहावत बदल कर छ चाँद, सात चाँद,आठ चाँद इत्यादि इत्यादि कोई नयी कहावत बनाई जाएगी......आपकी पत्रिका के साथ दिन प्रतिदिन जितने भी चाँद(समीर जी, अल्पना जी, आशीष जी, सुश्री सीमा जी,वन्दना जी एवं प्रेमलता जी) जुड रहे हैं, सब के सब अपनी प्रतिभा द्वारा इस ब्लागजगत को रौशन कर रहे हैं।
ReplyDeleteएक और शानदार अंक के सफल संपादन के लिए मुख्य संपादक जी का आभार..
ReplyDeleteवाह ताऊ जी आज तो आपनें ""नारी लोक ""भी जोड़ दिया , पत्रिका का नया कलेवर बहुत सुंदर बन गया है जिसके लिए पूरे सम्पादक मंडल को बधाई . समीर जी की सलाह और लेखनी को प्रणाम - उल्टी सीधी लेखनी, एक दिन का है नाम
ReplyDeleteबदनामी बस पाओगे, नहीं मिले सम्मान......
waa tau, ghanaa majaa aaya.
ReplyDeleteपुस्तक ऐसी बाँचिये, जिससे मिलता ज्ञान
ReplyDeleteकितना भी हो पढ़ चुके, नया हमेशा जान.
उल्टी सीधी लेखनी, एक दिन का है नाम
बदनामी बस पाओगे, नहीं मिले सम्मान.
समीरजी, आपने तो सभी को नेक सलाह दे ही डाली है तो अब हमे अमल भी करना पडेगा। बहुत ही सुन्दर बाते है जो उपयोग मे लाई जानी चाहिए। आपका अभिन्दन!!!!!
आभार!
मुम्बई टाईगर,
हे प्रभु यह तेरापन्थ
अल्पनाजी वर्मा
ReplyDeleteहमेसा की तरह आज भी नंदी हिल्स [कर्णाटक] के पर्यटन स्थल की जानकारी अच्छी लगी, ताऊ के समस्त पाठको के प्रवास मे उपयोगी बनेगी इसी भावना के साथ नमस्ते।
आभार!
मुम्बई टाईगर,
हे प्रभु यह तेरापन्थ
आशीषजी खण्डेलवाल
ReplyDeleteदुनिया मेरी नजर से” - मे "माई का लाल जय किशन" माइकल जैक्सन को लेकर आप़की इच्छाओ को जाना वास्तव मे हर व्यक्ति की खव्हीस रही होगी कि एक बार लाईव उन्हे देखे,पर दुख इस बातका है आज वो सख्सियत इस दुनिया से अलविदा कर गया।
आभार!
मुम्बई टाईगर,
हे प्रभु यह तेरापन्थ
Seemaजी Gupta,
ReplyDeleteसुश्री विनीताजी यशश्वी ,
हीरामन" भाई
की बाते भी शिक्षाप्रद व मजेदार लगी आभार।
........................
अब आते है ताऊ पत्रिका पर, जिस तरह इन्द्रधनुष सात रगो से महकता है उसी तर्ज पर ताऊ पत्रिका ने आज सातवॉ रन्ग के रुप मे
सुश्री प्रेमलता सेमलानी को जोडकर पत्रिका और महक उठी है। चारो और ताऊ पत्रिका एवम ताऊ की चर्चा चल पडी है।
मेरी हार्दिक शुभकामनाऍ ताऊ पत्रिका को।
आभार!
मुम्बई टाईगर,
हे प्रभु यह तेरापन्थ
पत्रिका का यह अंक बहुत सुंदर है और बहुत सारी उपयोगी जानकारियाँ इस में सहज रुप में दे दी गई हैं। वसाहीन सब्जी डिश बनाने की विधियाँ इस अंक की विशेषता हैं। अब देखते हैं इन सब्जियों को ठीक से पका सकते हैं या नहीं।
ReplyDeleteताऊ जी पत्रिका के जरिये ज्ञान बांटने की ये योजना हम जैसे कूप मंडूकों के लिए सोने पे सुहागा ही समझो...पूरी की पूरी टीम इत्ती बढ़िया बढ़िया बातें बताती है की पढ़ कर जीवन धन्य सा होने लगता है...
ReplyDeleteनीरज
ताऊ मग्जिन्वा तो हमेसा की तरह सानदार है...मुदा हमको कोण कह दिहिस था की ई बार आप दिनेश जी मिलवाने वाले हैं..कतना कनफुजिया दे रहा है लोग..राम राम बताइये ता...चलिए अंतर बाबु से मिल लेंगे...
ReplyDeleteपत्रिका हर बार की तरह मजेदार रही. खाने का सेक्शन जोड़ देने से स्वाद और बढ़ गया है.
ReplyDeleteकाला चश्मा पहिन के, समीर देते ज्ञान
कैसी दिखी दुनिया, हमें बताओ श्रीमान :)
मस्त है जी. मजा आया. दोहे भी शानदार रहे.
ताऊ जी। बधाई हो।।
ReplyDeleteपोस्ट बहुत बढ़िया रही।
समीर लाल जी शिक्षाप्रद दोहे,
सुश्री अल्पना वर्मा का पन्ना,
आशीष खण्डेलवाल की नजर से दुनिया,
सीमा गुप्ता की कलम से,
सुश्री विनीता यशश्वी का "हमारा अनोखा भारत"
प्रेमलता एम. सेमलानी का "नारीलोक"
और सहायक संपादक हीरामन की मनोरंजक टिप्पणियाँ।
सभी ने भरपूर आनन्द प्रदान किया।
एक लाजवाब अंक के लिये सभी को बधाई.
ReplyDeletebahut badhiya gyanvardhak janakari ke liye abhar
ReplyDeleteहमको तो आज जीरो आयल का खाना ट्राई करना है. ये तो वाकई कमाल की विधि है. बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteहमको तो आज जीरो आयल का खाना ट्राई करना है. ये तो वाकई कमाल की विधि है. बहुत शुक्रिया
ReplyDeleteताऊ आज तो राहु-केतुओं की आत्मा की शांति के लिये हम भी प्रार्थना करते हैं. बहुत आभार सभी संपादकों और स्तंभकारों का. बहुत मन से तैयार किया है यह अंक.
ReplyDeleteरामराम.
बहुत उपयोगी अंक. आभार.
ReplyDeleteबहुत उपयोगी अंक. आभार.
ReplyDeleteबहुत उपयोगी अंक. आभार.
ReplyDeleteआप सभी का तेह दिल से शुक्रिया!
ReplyDeleteप्रेमलता बी सेमलानी
अद्भुत अनूठा रहा यह अंक भी शुक्रिया इतनी सारी जानकारी के लिए
ReplyDeleteदिन दिन निखरती पत्रिका -नारी जग का स्वागत है ! और हाँ सोम मशरूम ही था और वह मशरूम जिसे सूअर खोद कर निकालते हैं -जब यह विवरण मैंने अथर्ववेद में पढ़ा तो दंग रह गया !
ReplyDelete॒ नितिश भाई
ReplyDeleteअरे, ऐसा मैं कब कह गया मेरे भाई..लगता है कभी दिल दुखा दिया आपका अनजाने में. क्षमाप्रार्थी...शुद्ध रुप से बिना वाकया जाने..आप कह रहे हैं तो जरुर कह गुजरा होऊँगा.
॒ संजय बैंगाणी
अगली बार आऊँगा तो हमारा चश्मा पहन कर देखना..हा हा!! मस्त दुनिया दिखेगी!!
वाह ताऊ , महिलाओं की इतनी अच्छी पत्रिका ....बहुत खूब लगी ....सीमा जी भी स्वस्थ लाभ कर वापस आ गयी अच्छा लगा .....पर समीर जी के इस दोहे ने तो बहुत कुछ कह दिया .....
ReplyDeleteमतभेदों की बात पर, बस उतना लड़िये आप
लाठी भी साबूत रहे, और मारा जाये साँप.
समीर जी आपकी बात का ध्यान रखा जायेगा ....!!
एक और बहुत अच्छा अंक. सीमाजी की कहानी और समीरजी के सलाह... कमाल के हैं.
ReplyDeleteइतने सारे ज्ञान वर्धक स्तम्भ | ताऊ पत्रिका तो मनोरंजन के साथ साथ ज्ञान का पिटारा बन है |
ReplyDeleteवाह ताऊ ! मनोरंजन के साथ ज्ञान का अदभुत पिटारा परोसने के लिए आभार |
ReplyDeleteताऊ, आजकी इन्द्रधनुषी पत्रिका में तो सारे रंग ही निखर आये हैं मगर समीर लाल जी के उड़न-दोहे तो बस छा ही गए! बधाई!
ReplyDeleteआपका आभार ताऊ जी , इस सुँदर ज्ञानवर्धक पत्रिका को,
ReplyDeleteहम सब तक पहुँचाने के लिये
देरी से आने के लिये माफी चाहती हूँ ..
बहुत अच्छी बातेँ ,
बाँध कर रख लीँ हैँ
- लावण्या
बहुत दिन के बाद आ पाया आपके पास ताऊ, क्षमा प्रार्थी हूँ ! पत्रिका पढ़ कर आनंद आगया, आपका प्रशंसक हमेशा से ही हूँ, आशा है आपका स्नेह मिलता रहेगा ! !
ReplyDeleteवाह ताऊ जी क्या बात है! बहुत बहुत बधाइयाँ और शुभकामनायें सभी को!
ReplyDeleteबहुत अच्छा अंक ..सभी का योगदान सराहनीय है.
ReplyDeleteख़ासकर नए स्तम्भ में प्रेमलता जी की जीरो आयल रेसिपी पसंद आई...
पत्रिका पढने का चस्का लगवा दिया है आपने तो...
ReplyDeleteमीत
कुछ दिनों से अनुपस्थित रहा हूँ...पूरी तरह छुट्टी में रमा हुआ।
ReplyDeleteपत्रिका के नये स्तंभ ने श्रीमति जी को खूब लुभाया और समीर लाल जी के दोहों ने हमें...
अहा!
नंदी हिल्स [कर्णाटक] के पर्यटन स्थल की जानकारी अच्छी लगी,
ReplyDeleteउल्टी सीधी लेखनी, एक दिन का है नाम
बदनामी बस पाओगे, नहीं मिले सम्मान.
sameer जी alpanaa जी........... बहुत बहुत aabhaar आपका............. patrikaa chaati जा रही है
वास्तव में हमें लगा की हम कोई पत्रिका ही पढ़ रहे हैं. बहुत अच्छा लगा. सभी स्तम्भ अच्छे हैं.
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