जैसा कि आप जानते हैं ताऊ पहेली - ८ के विजेता श्री रंजन थे. हमने उनका साक्षात्कार उनके दिल्ली स्थित निवास पर लिया, वेलेंटाईन दिवस वाले दिन. . जहां हम सबके लाडले आदित्य भी यानि ताऊ के पल्टू ने भी साक्षात्कार देने की कोशिश की. पर सिर्फ़ अपनी मस्ती दिखा कर.
हम जैसे ही उनके यहां पहुंचे. हमारा स्वागत किया श्रीमती और श्री रंजन ने और साथ ही पल्टू जी भी उनकी गोद मे विराजमान थे. जो हमसे भी जल्दी ही घुल मिल गये.
हमने सवालों का सिलसिला शुरु किया और बिल्कुल खुले अंदाज मे हमको रंजन जी ने जवाब देने शुरु किये.
ताऊ : रंजन जी आज वेलेंटाईन डे है. हमको अभी याद आया आपके घर मे ये लाल गुलाबों का गुलदस्ता देख कर. क्या आप इस दिवस से संबंधित कोई वाकया आपके जीवन मे हुआ है?
रंजन : ताऊ जी आपने आज बहुत पते की बात पूछी है. और उन्होने श्रीमती रंजन की और देखते हुये पूछा - बता दू क्या?
और श्रीमती रंजन मुस्करा कर शरमा गई.
ताऊ : भई क्या बात है? आप दोनो ये क्या बाते कर रहे हो? कुछ राज की बात हमारे पाठकों को भी बतलाईये.
रंजन : ताऊ जी ये घटना बडी मजेदार है. हम दोनो का जीवन इसी घटना से शुरु हुआ.
ताऊ : कैसे?
रंजन : ताऊ जी, बात १४ फरवरी १९९८ की है.. वेलनटाईन डे की..मैं उस समय M.Sc. में पढ़्ता था.. और अपनी कक्षा में ही पढ़ने वाली एक लड़की "अंजु" से दोस्ती करना चाहता था..
ताऊ : हां हां आगे बताईये . रुक क्यों गये?
रंजन : असल मे जोधपुर में वेलनटाइन का ज्यादा चलन नहीं था.. और लदके लड़कियों में दोस्ती भी काफ़ी सीमित थी...तो मैं उस दिन सवेरे ही कॉलेज पहुचा, हालाकि उस दिन कोई क्लास नहीं थी, कॉलेज लगभग बंद हो गये थे.. परीक्षा कि तैयारी के लिये..
लेकिन मैं अंजु के लिये एक कार्ड हाथ में लेकर पहुँच गया.. थोड़ी देर इधर उधर घूमता रहा..
ताऊ : फ़िर आगे क्या हुआ? आपकी कहानी तो कुछ इंटरेस्टेड लग रही है. बिल्कुल फ़िल्मों वाली सिच्युएशन?
रंजन : जी आपने बिल्कुल सही कहा ताऊ जी. अंजु कहीं दिखाई नहीं दी.. और हिम्मत भी नहीं हो रही थी.. अपने विभाग में गया.. थोड़ी बहुत नेतागिरी कर लेता था कालेज में तो स्टाफ़ काफी सहयोग करता था ..वहां जाकर कार्ड पर नाम लिख कर छोड़ आया.. सोचा अंजु तक पहुच जायेगा.
ताऊ : हां तो फ़िर पहुंचा या कोई गडबड हो गई?
रंजन : नही गडबड कुछ नही हुई. आप जरा पूरी बात तो सुनिये. मैं फ़िर विभाग से निकला तो अंजु सामने से आती दिखी.
पास आने पर वह बोली "रंजन, तुमसे जरूरी बात करनी है".. मैंने सोचा अभी तो कार्ड पहुचा ही नहीं पता नहीं क्या कहना है? फिर हम दोनों विभाग कि प्रयोगशाला में पहुचे. तो वहां अंजु ने कहा "रंजन, क्या तुम मेरे दोस्त बनोगे?"
मुझे तो जैसे मूंह मांगी मुराद ही मिल गई थी. मैने तुरंत कहा "हाँ".. तो उसने अपने बैग से कार्ड और एक गुलाब निकाला और मुझे दे दिया
ये तो मेरी कल्पना के बाहर मेरा सपना पूरा हो गया था. मैं सोच भी नहीं सकता था की अंजु भी ऐसा चाहती थी. फिर मैंने भी विभाग से कार्ड लाकर अंजु को दे दिया.. और हम सदा के लिये दोस्त हो गये.."friends forever".. ऐसा ही कहते थे हम..
ताऊ : वाह भई ये तो बहुत अच्छी बात हुई. खैर अब ये बताईये कि अब तो आपकी शादी भी हो गई और आदि भी आपके जीवन मे आ गया. क्या आपकी वो दोस्त अब भी आपको गुलाब भेजती है क्या? यानि आज वेलेंटाईन डे को भी उसके फ़ूल आये क्या?
हमारी इस बात पर रंजन जी ने मुस्करा कर श्रीमती रंजन की तरफ़ देखा और हमको लग गया कि कुछ मामला तो जरुर है.
रंजन ने मुस्कराते हुये जवाब दिया : अब क्या बताऊं? आप जिसे श्रीमती रंजन समझ रहे हैं असल मे ये ही अंजू हैं. हुआ यों था कि उसके बाद कब ये दोस्ती धीरे-धीरे प्यार में बदल गई? पता ही नही चला. मामला अंतरजातीय था. फ़िर थोडी ना नुकुर के बाद दोनों परिवारों की आपसी सहमति से सन २००५ में हमने विवाह कर लिया.
ताऊ : अच्छा तो ये बात है. अब समझ मे आई यहां रखे लाल गुलाबों के गुल्दस्ते की बात. बहुत बधाई जी आप दोनो को इस वेलेंटाईन डे की. अच्छा अब आपके परिवार के बारे मे कुछ बताईये.
रंजन : ताऊ जी, परिवार काफी बड़ा है. पापा मम्मी और हम चार भाई है, तीन भाई विवाहित है.. मैं सबसे बडा हूँ.. मेरे दो छोटे भाई पेशे से "चार्टड एकाउंटेंट" है और मुम्बई में रहते है.
और आप देख ही रहे हैं कि मैं, अंजु और आदि दिल्ली में रहते हैं. पापा मम्मी और एक छोटा भाई जोधपुर में रहते है
ताऊ : आपके पिताजी क्या करते हैं?
रंजन : पापा राजस्थान उच्च न्यायालय में डिप्टी रजिस्ट्रार है और माता जी सरकारी स्कूल में अध्यापिका. छोटा भाई निजी व्यवसाय करता है.
ताऊ : आपका तो पूरा परिवार ही काफ़ी पढा लिखा है. अब आपकी शिक्षा के बारे मे भी हमारे पाठकों को कुछ बतायें.
रंजन : ताऊजी, मैनें एम एस सी सांख्यकी से किया और तब से ही आंकडो़ से खेलना मेरा पेशा भी रहा और शौक भी.
ताऊ : हमने सुना है आपको सामाजिक कार्यों मे भी बहुत रुचि रही है?
रंजन : हां ताऊ जी. आपने ठीक सुना है. असल में सामाजिक कार्यों में रुचि कोलेज के दिनों से रही. कोलेज में कई वर्ष NSS से जुड़ा रहा.
और B.Sc. के बाद दोस्तो के साथ मिलकर एक संस्था "युगान्तर" बना दी.
कुछ मित्रों के सहयोग से कुछ जेब से खर्च कर काफी सामाजिक कार्य किये.
रक्त दान और HIV जागरुकरता मुख्य कार्य क्षेत्र रहे. इस दौरान HIV जागरुकता हेतु एक पुस्तिका का संपादन भी किया.
ताऊ : फ़िर आपने नौकरी करना कब से शुरु किया?
रंजन : ताऊ जी ये कार्य भी चलता रहा. और साथ ही M.Sc. पास करते ही नौकरी भी करने लग गया. पहले जोधपुर के चौपासनी स्कूल में, फिर काजरी (CAZRI) में.
और उसके बाद गैर सरकारी संगठनों से जुड़ गये.. जोधपुर में ही एक HIV क्लिनिक (FXB) में नौकरी की.
और फिर बेहतर रोजगार या यूं कहे कि रोजगार कि तलाश करते करते 2003 में "Apollo Tyres" जोइन किया. चार महिनें मे ही कॉरपोरेट में रह कर मन भर गया और फिर से गैर सरकारी संगठन केयर के भोपाल ऑफिस में चला गया. एक सवा साल वहां रहा फिर केयर के ही दिल्ली ऑफिस में आ गया.
ताऊ : यानि आप अब केयर के दिल्ली आफ़िस मे ही काम करते हैं?
रंजन : अजी ताऊ जी, अब केयर में नही हूं बल्कि अभी हाल में दिल्ली में ही अमेरीकन रेड क्रास में निगरानी एंव मुल्यांकन (Monitoring & Evaluation), निदेशक पद पर काम कर रहा हूँ. मेरा प्रोफेशनल प्रोफाईल विस्तार से आप यहां http://www.linkedin.com/in/ranjanmohnot ) देख सकते हैं.
ताऊ - ताऊ पहेली के बारे में क्या कहना चाहेंगे?
रंजन : ताऊ की पहेली लाजबाब..हर शनिवार सुबह इन्तजार रहता है, ताऊ आप बहुत मेहनत और लगन से ये काम करते है और नये नये प्रयोग कर हम सभी को बांधे रहते है. और तो और सभी प्रतिभागी दोस्त जैसे लगने लगे है. आपने सभी को एक मंच पर ला दिया. इस सफलता के लिये आपको बधाई.
ताऊ : अच्छा रंजन जी अब आपके शौक क्या हैं ? उनके बारे मे कुछ बताईये.
रंजन : मेरे शौक वक्त के साथ बदलते भी रहे है. कभी ओशो को पढ़ता था, कभी रंगमंच में दिलचस्पी हुई.
ताऊ : हमने सुना है कि आपको सिक्के इकठ्ठे करने का भी शौक है?
रंजन : हां ताऊ जी, देश विदेश के सिक्कों का संग्रह काफी वर्षो से कर रहा हूँ, करीब दो सौ देशों के १५०० सिक्के है मेरे संग्रह में, पुराने भारतीय सिक्के और नोट भी मेरे संग्रह में है, फिलहाल तो आदि के लालन पालन में व्यस्त हूँ, सारा समय आदि और आदि के बारे में लिखने को दे रहा हूँ.
ताऊ : ब्लागिंग मे कब से हैं ? और इस अनुभव के बारे में क्या कहना चाहेंगे
रंजन : अप्रेल २००७ में नवभारत टाइम्स में हिन्दी ब्लोग के बारें में पढा. कुछ कुछ अनियमित रुप से 'युगान्तर http://yugaantar.blogspot.com पर लिखता रहा, समसमयिक विषयों पर अपने विचार रखने की इच्छा थी पर वो ज्यादा कर नहीं पाया. जब लिखने को होता तो समय नहीं मिलता और जब समय मिलता तो मुद्दे बासी हो जाते.
अब आदित्य के जन्म के बाद जुलाई २००८ से आदित्य के बारे http://aadityaranjan.blogspot.com में नियमित रूप से लिख रहा हूँ. या कहें तो अपना बचपन फिर से जी रहा हूँ.
मेरा अनुभव बहुत अच्छा रहा, बहुत सीखने को मिला और आदि के जरिये आप सभी लोगों से परिचय हुआ.. निरंतर लिखने के लिये हौसला मिलता रहता है.. सभी का आभार..
ताऊ : अब ये बताईये कि ताऊ कौन? ब्लाग जगत मे सब पूछते हैं? क्या आप जानते हैं?
रंजन : ताऊ कौन ये मायने नहीं रखता, पर ताऊ जो भी है, है बहुत प्यारा.. सबका ख्याल रखता है और मस्त खूंटे लिखता है.... जब कभी मिलेगा तो सबको जरुर बताउगां.
फ़िल्हाल तो मैं भी जानना चाहता हुं कि आखिर ये ताऊ हैं कौन. खैर कभी ना कभी तो भेद खुलेगा ही.
और इसी के साथ हमने वहां से विदा ली.
तो ये था श्री रंजन परिवार के साथ हमारी मुलाकात का विवरण. आपको कैसी लगी यह मुलाकात? अवश्य बतायें.
और अगले सप्ताह ताऊ पहेली के किसी अन्य विजेता से आपकी भेंट करवायेंगें तब तक के लिये अलविदा.