सैम आजकल चुनाव जीतने की रणनीति बनाने मे जुटा हुआ है. बीनू फ़िरंगी उसका चुनाव संचालक है, चुनाव क्षेत्र मे एक पठ्ठे का लंबा चोडा हालनुमा आफ़िस खाली पडा है. वहां चुनाव कार्यालय खोल दिया गया है.
कार्यकर्ताओं को ट्रेनिंग का काम शुरु हो चुका है. सबको अपनी २ ड्युटी कैसे निभानी है, इसकी भी तैयारियां चल रही हैं. सभी कार्यकर्ताओं के लिये नाश्ते पानी से लेकर वाहन आदि की व्यवस्थाएं कर दी गई हैं.
अभी तो कार्यकर्ता जुटाने की मुहीम इस तरह चल रही है जैसे महाभारत के युद्ध के समय कौरव और पाण्डव अपने २ समर्थन मे राजाओ को जुटा रहे थे. आज के हालात मे तो कार्यकर्ता भी राजा ही हैं चुनाव होने तक.
पहले कार्यकर्ता जो प्रबंधकिय कार्य संभालेंगे और दुसरे वो कार्यकर्ता जो मैदानी जंग को फ़तेह करेंगे.
इन मैदानी कार्यकर्ताओं के भरोसे ही सारा दारोमदार चुनाव जीतने हारने का रहता है. एवम उसी अनुरुप इनकी बहुत ही कठोर ट्रेंनिग होती है. इनको मानसिक और शारिरिक रुप से बिल्कुल चुस्त दुरुस्त होना होता है.
आज कार्यकर्ताओं की बहुत ही गुप्त मीटींग चल रही है. मीटींग समाप्ति के बाद सब गपशप मे लगे हैं कि बीनू फ़िरंगी आकर सैम को पूछता है कि यार सैम भाई आपने वो टिकट वाली बात तो बताई ही नही कि आपको ताऊ ने कैसे टिकट दिलवाई?
सैम आसपास देखता है. वहां सब उसके विश्वासपात्र ही बैठे हैं. अब वो कहता है, अरे यारों अब तुमसे क्या छुपाना? मैं बता ही देता हूं कि असल बात क्या हुई? अगर ताऊ जैसा शातिर दिमाग साथ मे नही हो तो चुनाव जीतना तो दूर बल्कि टिकट ही नही मिल सकता.
अब हुआ यों कि मेरा टिकट भीतरघातियों ने कटवा दिया और कुजागर सिंह को दिलवा दिया. अब तुम तो जानते ही हो कि कुजागर सिंह टिकट बांटने वाले किद्या कुक्ला जी का खासमखास है. बस फ़िर क्या होना था? वो तो ताऊ ही था जिसने आखिरी दम तक मेरे लिये फ़ंदा फ़ेंक रखा था.
बीनू फ़िरंगी - अरे यार सैम भाई असली बात बताओ अब आप तो.
सैम - अरे यार बडा मजेदार किस्सा है. तुम सुनोगे तो यकीन भी नही करोगे और इतना हंसोगे कि तुम्हारे पेट मे बल पड जायेंगे.
जब मैने ताऊ को आत्महत्या की झूंठी धमकी दे दी तब ताऊ ने प्लान बनाया. किद्या कुक्लाजी हमारे शहर मे दो घंटे के लिये आने वाले थे. पिछले सप्ताह वो आये थे, यह तो तुमको मालूम है ना?
बीनू फ़िरंगी - अरे यार सैम हमको मालूम है कि किद्या भैया आये थे और उनके कपडे भी कार्यकर्ताओं ने फ़ाड डाले थे. ये खबर तो अखबारों मे भी आ चुकी है. अब आगे की बात बताओ?
सैम - अबे साले फ़िरंगी कहीं के. सुन उनके कपडे कार्यकर्ताओं ने नही फ़ाडे थे. उनके कपडे तो ताऊ के बाहुबलियों ने फ़ाडे थे.
बीनू फ़िरंगी आश्चर्य से बोला - अरे नही यार सैम भाई, क्या बात कर रहे हो? किसी को कानो कान भी खबर नही है इस बात की तो? पर ताऊ को क्या जरुरत पड गई थी इतने बडे नेता के कपडे इस तरह फ़डवाने की?
सैम - अरे यार पूरी बात सुन. जैसे ही हवाई अड्डे से किद्या कुक्लाजी बाहर निकले और सडक पार लगे मंच पर भाषण देने चढे, वैसे ही ताऊ के आदमियों ने पहले तो किद्या भैया जिंदाबाद के खूब नारे लगाये.
इतने नारे सुनकर किद्या भैया खुश होगये. वहीं पर कुजागर सिंह भी खडा था. किद्या भैया समझे कि ये सब कार्यकर्ता कुजागर सिंह के हैं और किद्या भैया का जयकारा जब खूब जोर से लगा तब कुजागर सिंह को भी फ़ोकट की वाहवाही लेने की सूझी. वो भी पहुंच गया किद्या भैया से शाबासी लेने. किद्या कुक्लाजी ने उसकी पीठ थपथपाई इस शानदार स्वागत के लिये. और कहा कि टिकट तो तुम्हारा पक्का होचुका है जाकर तैयारी करो.
बीनू फ़िरंगी - फ़िर आगे क्या हुआ?
सैम - अरे होना क्या था? ताऊ के पठ्ठे तो इसी क्षण के इन्तजार मे थे कि किद्या भैया ये जान ले कि ये इकठ्ठा हुये कार्यकर्ता कुजागर सिंह के हैं और जैसे ही जयघोष से लग गया कि ये कार्यकर्ता कुजागर भैया के हैं उन्ही कार्यकर्ताओं मे से दो पांच सात बाहुबलि मंच पर चढ कर झुमा झटकी कर बैठे किद्या भैया से. और अब जयकारा लगा ..कुजागर सिंह ..जिंदाबाद...कुजागर सिंह ..जिंदाबाद...
बस अब क्या था? किद्या कुक्लाजी तो कुजागर सिंह पर निकल लिये इस अपमान के लिये और गुस्सा हो गये. अब वहां से जैसे ही भागने लगे..ताऊ के बाहुबलियों ने किद्या कुक्ला जी के बचे खुचे कपडे भी फ़ाड डाले.. और इस तरह कुजागर सिंह का टिकट कैंसिल होकर मुझे मिला.
बीनू फ़िरंगी - यानि कुल मिलाकर कुजागर सिंह को इस बात की सजा मिली कि उसके आदमियों ने किद्या कुक्ला जी के कपडे फ़ाड डाले और ताऊ पर शक भी नही गया.
सैम - और क्या? अब किद्या कुक्ला जी के ताऊ खासमखास हो गये हैं.
इब खूंटे पै पढो :- बात किम्मै घणी पुराणी सै. एक बार ताऊ ने एक साहुकार से कुछ पिस्से उधार ले लिये. पिस्से वापस करण का तो सवाल ही कोनी उठदा. ताऊ के पास थे ही नही तो लौटाता कहां से? साहुकार ने पहले तो घणा तगडा ब्याज लगा लगा कै रकम घणी बडी कर दी. और इब दिन रात का तगादा कर शुरु कर दिया. ताऊ का ऊठना बैठना मुश्किल हो गया. एक दिन साहुकार आया और कडक तगादा किया और बोला अब तो मुझे कडक कार्यवाही करनी पडेगी ताऊ तेरे खिलाफ़. ताऊ बोला - ओ जी सेठ साहब. इब इतने दिन निकाल दिये तो इब तो रात भर की बात रह गी सै. आप तो कल दोपहर म्ह आजाओ और ब्याज सहित अपने पूरे पिस्से गिन के लेजाना. साहुकार तो बडा खुश हो गया. और सोचने लगा कि डुबी रकम वापस आ रही है और वो भी ब्याज के साथ. सो घर जाकर गणेश जी को सवा आठ आने का परसाद का भोग लगाया और सारे मोहल्ले मे भी बांट दिया. इधर दुसरे दिन ताऊ ने एक ढोळ बजाने आला ढोली बुलवा लिया और अपने घर के बाहर खडा कर दिया और उसको समझा दिया कि जैसे ही सेठ मेरे घर के अंदर दाखिल हो जाये, तू जोर जोर से ढोळ बजाना शुरु कर देना. ढोली ने पूछा - वो किस लिये? क्या शादी है आपके छोरे की? ताऊ बोला - अरे बावली बूच, तेरे को क्या लेना? मुझे सेठ जी का हिसाब करना है जरा ढोल ढमाके के साथ. अब जैसे ही साहुकार आया और ताऊ के घर मे घुसा, ढोळ वाले ने जोर जोर से ढोल बजाना शुरु कर दिया. उधर ताऊ तो किम्मै घणे छोह (गुस्से) म्ह था ही सो उसने साहुकार को बजाना शुरु कर दिया. साहुकार चिल्लाने लगा तो ताऊ बोला - इब बाहर कोई सुनने वाला नही है चाहे जितनी जोर से चिल्ला ले तू. फ़िर साहुकार बोला - ताऊ तू मन्नै इबकी बार छोइ दे मैं आईंदा तेरे से तगादा नही करुंगा. तेरी मर्जी हो तब दे देना मेरे पिस्से. और गाम म्ह किसी को ये मत बताना कि तूने मेरी पिटाई की थी. ताऊ बोला - फ़िर तो बैल और गुड. ( well and good). नही बताऊंगा किसी को. इस तरह साहुकार कुटपिट कर वहां से चला गया. और गाम में किसी को भी ये पता नही लगा कि साहुकार पिट कर गया है. और इब जब भी ढोल बजने कि आवाज आती उसको ताऊ का हिसाब याद आ जाता. कुछ दिन बाद गांव मे जोर जोर से ढोल बजने की आवाज आने लग रही थी. साहुकार का छोरा उससे बोला - बापू आज तो लगता है कि गाम म्ह कुश्ती का दंगल होण आल्ला सै. घणे ढोल बाज रे सैं. साहुकार बोला - अरे मेरी सुसरी के, चुप रह. यो कोई कुश्ती वुश्ती का ढोल नही बज रहा है. ये तो लगता है कि ताऊ फ़िर किसी साहुकार का हिसाब कर रहा है.
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किद्या कुक्ला जी को तो अब पूछता कौन है-शायद ताऊ का खास हो लिया है तो अगले चुनाव में पूछ परख बन जाये.
ReplyDeleteअब तो ढोल सुनके हमें भी ताऊ का हिसाब याद आयेगा. :)
ताऊ खूंटे पर तो आज बहुत बढ़िया किस्सा लिखा कोई भी प्रतिष्टित व्यक्ति अकेले में पीटने के बाद किसी को भी नही बताता कि वो पिट कर आया है | आज खूंटे पर यह किस्सा पढने के बाद कॉलेज समय की घटना याद आ गई तब किसी बात को लेकर मैंने अपने दो साथियों के साथ जिला उद्दोग केन्द्र में जिला उद्दोग अधिकारी की पिटाई कर दी थी वो भी सबके सामने | और बात जिला कलेक्टर तक जा पहुँची,तत्कालीन जिला कलेक्टर ने हमारा पक्ष लेते हुए हमारे ऊपर कोई मुकदमा दर्ज नही होने दिया लेकिन हम तीनो को अपने आवास पर बुला कर समझाते हुए बताया कि कभी किसी अधिकारी की पिटाई करनी हो तो सार्वजनिक नही किसी अँधेरी जगह या फ़िर सुनसान जगह पर किया करो ताकि वो अपनी इज्जत बचाने के चक्कर में किसी को भी नही बताएगा (ये जिला कलेक्टर महोदय हमारे होस्टल के छात्रों के रचनात्मक कार्यों से बड़ा प्रभावित थे इसलिए ऐसे छोटे मोटे झगडों पर हमारा बचाव कर दिया करते थे ) और ताऊ ने भी सेठ के साथ ऐसा ही किया |
ReplyDeleteसाहुकार बोला - अरे मेरी सुसरी के, चुप रह. यो कोई कुश्ती वुश्ती का ढोल नही
ReplyDeleteबज रहा है. ये तो लगता है कि ताऊ फ़िर किसी साहुकार का हिसाब कर रहा है.
" हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा ताऊ जी ये तरीका चोखा बताया आपने.....काम आन आला तरीका से या तो.......बैंक आले भी घणा तकाजा करण लाग रे से आजकाल .......खुटे का पता बताना पडेगा उनते.....हा हा हा "
Regards
आपकी पोस्ट पर शेखावत जी की टिप्पणी पढ़ कर तो हम सकते में आ गये ताऊ !
ReplyDeleteबढिया किस्स्सा रहा ताऊजी खूँटेवाला ..
ReplyDeleteअब देखेँ चुनाव मेँ जनता क्या करती है जी !!
- लावण्या
ताऊ के दोनों किस्सों में ही मजा आ गया भाई...खूब जोर की कही...
ReplyDeleteनीरज
mast taaoo..dono kisse padh kar maza aa gaya....
ReplyDeleteताऊ गलत बात है,आप हमारे किद्या भैया के साथ वही कर रहे हो जो भैया ने आप की डिग्गी राजा,सुलाम रबी और अजीब सुरेषी के साथ किया था। खूंटे पर भी ऐसा लगा कि ताऊ किग्गी राजा से हिसाब चुकता कर रहा है।मज़ा आ गया ताऊ जी।
ReplyDeleteरचना पढ़ कर जितना मज़ा आया उससे अधिक लोकतंत्र की अवधारणा की ऐसी तैसी होते देख , दुखद अहसास हुआ.
ReplyDeleteजो इतने दम-ख़म से टिकट का बंदोबस्त करवा सकता है वो चुनाव तो जितवा ही देगा
जनता क्या करे उसके पास तो "इनमे से कोई नही" पर ठप्पा मरने का विकल्प है ही नही.
चन्द्र मोहन गुप्त
क्या खूब पटखनी दी है चुनावी दंगल में ताऊ! और आज तो खूंटे में कमाल का आईडिया दिया है...किसी को पीटना हो तो ऐसे पीटो की और किसी को पता न चले, वो अपनी इज्ज़त बचने के लिए किसी को कहेगा भी नहीं :D
ReplyDeleteTau mast story!!
ReplyDeleteइब तो ढोल-नगाडे का इंतजाम करना पड़ेगा कुछ हिसाब करना बाकी हैं :-)
ReplyDeleteयह भी खूब रही!
ReplyDeleteताऊ से बड़ा अधिकारी भी कोई है??
लेकिन ध्यान रहे--
सचमुच के बडे अधिकारी भी आप की पोस्ट पढ़ते हैं...वैसे ..उन के लिए भी सबक है कि जब कहीं तकाज़ा करने जायें और उस घर के बाहर 'ढोल बाजे ' वाले को देख लें तो खिसक लेवें...उस में ही भलाई है..
अब यह तरीका जग जाहिर हो गया है..और शेखावत जी का तरीका भी तो --
जिस से सब चौकन्ने हो गए हैं.
डेमोक्रेसी में क्या नहीं होता!~
Tauji Khute ko par ke to maza hi aa gaya...
ReplyDeleteshekhwat ji ka commant bhi aankhe khole wala hai...
sam ne to chunaw jitna hi hai...
ई एलेक्सन जो न कराबे कम हा:)
ReplyDeleteखूंटे से सभी पाठकों को बांध दिया। बधाई।:)
वाह ताऊ, क्या खूब हिसाब चुकता किया है साहुकार से...गजब का किस्सा सुनाया.बस एक बात समझ नहीं आई कि इस महंगाई के जमाने में गणेश जी महाराज ने सवा आठ आने का प्रसाद कैसे कबूल कर लिया .
ReplyDeleteअच्छी तरकीब बताई ताऊ ने बदला लेने की। अजी घणा ही मजा आ गया।
ReplyDeleteहा हा मज़ा आ गया ताऊ। क्या बेहतरीन मारा है भाई। अरे ताऊ से कौन जीत सकता है भला ? वाह वाह!
ReplyDeleteकई दिनों से एक विचार उठ रहा था मन में और आज आपका ये जबरदस्त खूं टा पढ़ कर हजार-हजार वाट के जाने कितने बल्ब जल उठे हैं...वाह वाह और शुक्रिया भी
ReplyDeleteवाह जी , अब तो आप से पेसे मांगने मै भी डर लगता है, बहुत सूंदर लगा आप का खूंटा.
ReplyDeleteधन्यवाद
प्रणाम ताऊ, यह इंदौर का लालबाग पैलेस है।
ReplyDeleteबोनस पहली का जवाब १२ & १२ है
ReplyDeleteवाह वाह - खालिस बैलगुडीय पोस्ट! :)
ReplyDeleteबहुत बढिया लगा यह पोस्ट मे किद्द्या कुक्ला जि का चरित्र
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