जैसा कि आप जानते हैं श्री शुभम आर्य ताऊ पहेली दो और पांच के विजेता हैं. अभी तक प्रथम राऊंड
के कुल अंकों मे से दो बार के विजेता. हमने समझा था कि कोई बहुत ही उम्रदराज शख्स होगा. हमने
बातचीत का समय तय किया और पहुंच गये शुभम से मिलने.
( काशी विश्वनाथ वाराणसी )
हमारे सामने एक बहुत ही चंचल बालक बैठा था. जो बाबा काशी विश्वनाथ
का परम भक्त है. उस समय तो बडा सीधा साधा लगा पर जैसे जैसे
साक्षात्कार आगे बढा.. उसने हमारे सवालों के जवाब बिल्कुल
उन्मुकतता से दिये. हमारे साक्षात्कार की शुरुआत कुछ ऐसे सवाल
जवाबों से हुई.
ताऊ - आपके बारे कुछ बताये, और आप कहा से हैं ?
शुभम - अब अपने बारे में तो यही कह सकता हूँ मैं घुम्मकड़ स्वभाव का एक नटखट बच्चा हूँ ,
रोचकता और रोमांच मुझे बहुत पसंद हैं मूल रूप से मैं उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले का रहने
वाला हूँ | भगवान शिव की प्राचीन नगरी अब इसके बारे में तो आप सभी बहुत कुछ जानते ही होंगे |
ताऊ - आप अभी क्याकर रहे है ?
शुभम - क्या करता हूँ अब इस बारे में तो क्या बताऊँ.. करता तो बहुत कुछ हूँ उनमे से एक हैं
आप की पहेलियों में नियमित भाग लेना, अरे-अरे इसे केवल मनोरंजन के रूप में लें |
अब आते है असली प्रश्न पर अभी तो मै पुणे यूनिवर्सिटी से बी. कॉम. प्रथम वर्ष की पढ़ाई पूरी कर रहा हूँ साथ ही साथ हिन्दी चिट्ठाकारी नामक एक बहुत बड़े परिवार से भी जुडा हुआ हूँ बस अभी तो इतना ही है आगे जहाँ जिन्दगी ले जाए .......
(शुभम का कालेज पुणे)
ताऊ - आप पहेली सुलझाने मे कब से रुचि रखते हैं?
शुभम् - पहेलियों के बारे में क्या बताऊ मेरी जिन्दगी ही एक पहेली है, बचपन से ही मुझे हर
वस्तु एक पहेली जान पड़ती है वैसे ही जैसे छोटे बच्चो की हर वस्तु को जानने की इच्छा होती है
वैसे ही बचपन से मुझमे यह इच्छा भरी हुई है, जब तक किसी भी चीज़ के बारे में पूरी जानकारी
न ले लूँ चैन नही पड़ता है |
ताऊ - कुछ अपने परिवार के बारे में बतायेंगे?
शुभम् - मेरे परिवार के बारे में क्या पूछना मै तो सभी को अपने परिवार का ही हिस्सा मानते
आया हूँ | वैसे हम दो भाई है एक मै और एक बड़े भाई जो अभी इस वक्त पुणे में ही है, और माँ और पापा है
ताऊ : आपको क्या क्या शौक हैं?
शुभम् - ताऊ जी, शौक तो मेरे बहुत सारे है पर मुख्यतया भ्रमण करना, खेलना कूदना, और
पूरी दुनिया को जानना ही मेरे शौक है और थोडी बहुत पढ़ाई भी कर लेता हूँ , आख़िर वो भी तो
जरूरी है ना.
वैसे मुझे किताबें पढने का शौक है. घर पर तो सब मुझे किताबी कीडा कहते हैं, जब किसी
किताब को हाथो में ले लूँ, तब दुनिया से, तब तक के लिये, कट जाता हूँ जब तक कि किताब
ख़त्म नही हो जाती |
ताऊ - पत्रिका के लिये आपका कोई संदेश?
शुभम् - हाँ हाँ क्यों नही मेरे ख़्याल से ताऊ पहेली एक साप्ताहिक मंच बनती जा रही है जहाँ
पर हर ब्लोगर से मिलना जुलना हो जाता है,तथा इसी बहाने भारत के प्रमुख स्थलों की सैर
भी हो जाती है इसकी लोकप्रियता को देखते हुए इसका भविष्य अत्यंत उज्जवल दिखाई पड़ता है |
ताऊ - आपकी नजरो में ताऊ कौन हो सकते है ? :)
शुभम् - अब ये तो बहुत ही उलझता हुआ मामला बन गया है भारत की सर्वोच्च गुप्तचर संस्था
की नाकामी के बाद सारे देश मिल कर इस विषय पर कार्य कर रहे है, तब मैं क्यों पीछे रहूँ ?
मैंने तो इस विषय पर p.h.d. करने की ठान ली है |
अब हमने इतनी देर की बातचीत के बाद काफ़ी का आर्डर किया और शुभम को आगे के
साक्षात्कार मे कुछ और रोचक सवाल पूछने का तय किया. यह तो अब तक जाहिर हो ही
चुका था कि बालक बडा जहीन और होशियार है.
ताऊ : आप पूना होस्टल मे ही रहते हैं?
शुभम - जी ताऊ जी मै इस समय पुणे के होस्टल में रह रहा हूँ
ताऊ : आपको खेल कौन से अच्छे लगते हैं? क्रिकेट तो खूब खेलते होगे?
शुभम - हा हा.., इस मामले में तो मै अपवाद साबित हो सकता हूँ | क्योंकि जहाँ पुरे भारत
के बच्चो को क्रिकेट से लगाव है मुझे उतनी ही कम दिलचस्पी है क्योंकि मुझे अधिकतर
रोचकता और रोमांच वाले खेल ही पसंद हैं.
ताऊ : अब ये क्रिकेट नही तो फ़िर क्या खेलते हो भाई?
शुभम - ताऊ जी मैं फ़ुटबाल, रेसिंग और शतरंज मे ज्यादा दिलचस्पी रखता हूं.
ताऊ - फ़िल्म देखते हो? और हां तो कौन सी अच्छी लगी?
शुभम : फ़िल्म तो मै बहुत कम ही देखता हूँ फिर भी कुछ फ़िल्म है जो अच्छी लगी जैसे
लगान, गुरु और gladiator and Jurassic park आदि.
ताऊ : पूना अच्छा लगता है या वाराणसी?
शुभम - सच कहूं तो दोनों ही क्योंकि जहाँ पूना अपने साफ़ -सुथरे और पढ़ाई के माहोल के
लिए अच्छा लगता है वहीँ पर वाराणसी अपनी धार्मिक और पुरानी संस्कृति के लिए अच्छा
लगता है | वाराणसी सुबह के तो क्या कहने?
(वाराणसी के घाट पर एक सूबह)
वैसे मुझे दुनिया का हर एक शहर अच्छा लगता है क्योंकि हर जगह की अपनी एक खूबी होती है |
ताऊ : दोस्तों से क्या अपेक्षा है?
शुभम - दुःख के साथ कहना पड़ता है की आजकल अच्छे दोस्त नही मिलते | वैसे मै अपने
ऐसे दोस्त बनाना कहूंगा जिससे मै अपनी हर बात कह सकूं | ना ही कोई दिखावा हो बस
दोस्ती यानि कि सिर्फ़ और सिर्फ़ दोस्ती.
ताऊ : हमने मुस्कराते हुये पूछा- कोई गर्ल फ़्रेण्ड बनाई क्या?
शुभम - हा हा ...अब आपसे झूठ क्यों बोलूँ, है एक दो friends परन्तु अभी मेरी पढ़ाई करने की
उम्र है इस लिए इन सब बातो पर कम ही ध्यान जाता है |
ताऊ : लडकियों से डर लगता है आपको या लडकियां आपसे डरती हैं?
शुभम - अरे ताऊ जी, ये कैसा प्रश्न पूछ लिया?
ताऊ - भाई जब सब जवाब फ़र्राटेदार दे रहे हो तो इसका भी दे ही डालो.
शुभम - चलिए बता ही देता हूँ मेरे ख्याल से दुनिया में ऐसा कोई मनुष्य नही होगा जो लड़कियों या
महिलाओं से न डरता हो | उन्ही में मै भी हूँ |
ताऊ : तुम वाराणसी मे ऐसी क्या खुराफ़ात करते थे कि पापा मम्मी ने तुमको पढने यहां पूना
भेज दिया?
शुभम - पूना तो मै अपनी मर्जी से आया हूँ बड़े भाई यहाँ पहले से थे तो इस वजह से वाराणसी के
बाद पूना ही पहली पसंद थी |
ताऊ : यानि आप यह कहना चाहते हैं कि आप बहुत शरीफ़ बच्चे हैं अपने घर के?
शुभम - शरीफ़ तो क्या ताऊ जी? खुराफ़ात करने में देखा जाए तो मेरा परिवार संयुक्त होने के नाते हमारे
परिवार में ११ खुराफ़ाती भाई बहन थे. सभी एक से बढकर एक.
और मुझे उन सभी में सरताज का खिताब मिला हुआ था अब तक तो आप समझ ही गए होंगे की मै
बचपन से ही शैतान रहा हूँ |
ताऊ : हां ये बात तो हम अब तक आसानी से समझ ही चुके हैं. बडा भाई भी पूना मे साथ ही रह
कर पढता है?
शुभम - हाँ बड़े भाई भी पुणे में साथ ही में रहकर C.A. की पढ़ाई करने के साथ साथ एक multinational company में कार्य कर रहे है |
ताऊ : क्या नाम है बडे भाई का?
शुभम - बड़े भाई को तो आप जानते होंगे उनका नाम वरुण जायसवाल है |
ताऊ : हां बिल्कुल वो भी पहेलियों को बडे शौक से हल करते हैं. अब ये बताईये कि यहां
पापा - मम्मी मे ज्यादा याद किसकी आती है?
शुभम - सच कहूं तो दोनों की जितनी मम्मी की उतनी ही पापा की | मेरे नजरिये से दोनों समान
है जितनी माँ महत्वपूर्ण है उतने ही पापा भी |
ताऊ : आखिरी बार वाराणसी कब गये?
शुभम - आखिरी बार वाराणसी दिवाली में गया था | परन्तु आने के बाद बहुत दिनों तक शायद खाना
तथा सोना ठीक से न हो पाया था |
ताऊ : ब्लागींग का शौक कैसे चढा?
शुभम - ब्लोगिंग का शौक तो ऐसे ही चढ़ गया, मुझे बहुत पहले से ही कम्पूटर में रुचि रही है ,
पूना आने के बाद ब्लॉग्गिंग को जाना | शुरू शुरू में तो बस सभी के ब्लॉग ही पड़ता था पर थोड़े
दिनों बाद ऐसे ही अपना ब्लॉग बनाया जो थोड़ा अलग था उस समय मैंने यह नही सोचा था की
ये इतना प्रसिद्ध हो जाएगा |
ताऊ : अभी तक के जीवन की सबसे यादगार घटना?
शुभम - जैसा की आप जानते है बचपन से ही खुराफ़ाती रहने के कारण मेरा जीवन ही एक यादगार
घटना बन गया है परन्तु एक घटना मै आप सभी से बताना चाहूँगा.
उस दिन मेरी बोर्ड की परीक्षा का अन्तिम दिन था और रात में देरी से पढ़ाई करने के कारण मै बहुत ही
देर से सोया | चूँकि घर के सभी सदस्य बाहर गए थे इस वजह से सुबह जगाने वाला भी कोई नही था।
अलार्म भी सुबह ६ बजे का लगाया था पर घङी को भी ५ मिनट पहले ही बंद होना था यानी ५.५५ पर |
खैर मैंने वक्त देखा तो परीक्षा शुरू होने में अभी १ घंटा बाकी था. मैंने सोचा की आराम से पहुच जाऊँगा
पर शायद किस्मत को ये भी नही मंजूर था साइकिल भी ख़राब निकली और बस भी निकल चुकी थी |
मैंने सोचा आज तो तू गया शुभम, पर उम्मीद बाकी थी. एक मोटरसाइकिल सवार ने आधे रास्ते की
लिफ्ट दी और बाकि आधे रास्ते दौड़ता हुआ १० मिनट की देरी से पहुच गया पर इतनी देर से दौड़ते
रहने के कारण लिखना आधे घंटे के बाद शुरू कर पाया | हैरत की बात यह थी की उसमे ही सबसे
अच्छे नम्बर आए |
ताऊ : वाह भई वाह. इस परिक्षा में सबसे अच्छे नम्बर? यानि भगवान ने भी मेहनत और लगन
का पुरुस्कार दे दिया आपको. अब ये बताईये कि अगर पिछली जिंदगी मे से एक कोई सा दिन
वापस जीने के लिये दिया जाये तो कौन सा दिन दुबारा जीना चाहोगे?
शुभम - अगर जिन्दगी ऐसा सचमुच में हो तो मै अपने बचपन के दिनों में से कोई भी दिन जी
सकता हूँ क्योंकि आप कितने ही बड़े हो जाए बचपन के दिनों को कभी भुला नही सकते |
ताऊ : स्कूल मे शिक्षक कैसे लगते थे?
शुभम - - इस बात में तो मै स्कूल के शिक्षकों का प्रिय था भले ही थोडी शैतानी कर लेता था परन्तु
क्लास मोनिटर होने के नाते सभी शिक्षकों से जान पहचान थी |
स्कूल के शिक्षक मुझे सबसे अच्छे लगे क्यों की उन्होंने पढ़ाई तो करवाई ही साथ ही साथ अच्छे
संस्कार भी दिए जो माता - पिता के बाद वो ही दे सकते थे |
ताऊ : अब एक अंतिम सवाल बताईये. आप पढ लिखकर जिंदगी मे आगे क्या बनना चाहते हैं?
शुभम - ताऊ जी, मुझे IIM से MBA करना है और मैं करके ही रहुंगा.
ताऊ : बहुत बधाई और शुभकामना आपको. इतना दृढ निश्चय है तो आप अवश्य अपने इरादों
मे कामयाब होंगे.
शाम को हम शुभम के बडे भाई वरुण जयसवाल से भी मिले. वरुण भी निहायत ही जहीन और सुलझे
हुये विचारों का युवक है. दोनों ही भाई बहुत सज्जन, कर्मठ और कुछ कर गुजरने वाले लगे.
इस उम्र के बालकों का यह जज्बा हमे तो बहुत ही प्रभावित कर गया. आपको कैसा लगा यह साक्षात्कार,
अवश्य बताईयेगा.
ताऊ, शुभम से बातचीत बहुत पसंद आई. ईश्वर उनके सभी सपने पूरे करे, यही मंगलकामना है.
ReplyDeleteशुभम आर्य से मुलाक़ात अच्छी रही ,धन्यवाद ! उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं !
ReplyDeleteताऊ शुभम् के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा | शुभम् की IIM और MBA बहुत जल्दी हो इसी शुभकामनाओं के साथ |
ReplyDeleteशुभम्` का परिचय ताऊजी की विशिष्ट शैली मेँ बहुत पसँद आया -उसे आशिष भेज रही हूँ खूब पढे और सारे सपने पूरे करे
ReplyDeleteस स्नेह,
- लावण्या
शुभम आर्य से ताऊ का साक्षात्कार
ReplyDeleteपढकर अच्छा लगा। आपने भी सवाल पुछे तो शुभम ने ताऊगिरी करते हुये सुन्दर जवाब दिये। लाजवाब। वहा! क्या ताऊ है और क्या शुभम !
शुभम को बधाई और बेटे मन लगाकर पढो ताकि आपका जिवन उज्जवल हो सुन्दर हो,
जय जिनेद्र!
बहुत अच्छा लगा....शुभम आर्य से मिलकर...उन्हे मेरी ओर से बहुत बहुत शुभकामनाएं।
ReplyDeleteचंचल बालक से मिलकर अच्छा लगा
ReplyDeleteअच्छा लगा शुभम को जानकर, इश्वर उसकी हर मनोकामना पूरी करे।
ReplyDeleteShubham ji ke saath ye mulakaat achhi rahi...
ReplyDeleteunke ujawal bhawishya ke liye meri shubhkaamnaye...
शुभम से मिलना बहुत अच्छा लगा. ऐसे लगन वाले बच्चे अपने मकसद में ज़रूर कामयाब होते हैं. ताऊ आपको भी बहुत-बहुत धन्यवाद, यह मुलाक़ात कराने का!
ReplyDeleteशुभम आर्य से मुलाक़ात बहुत रोचक और अच्छी रही ,! उनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं !
ReplyDeleteशुभम् - पहेलियों के बारे में क्या बताऊ मेरी जिन्दगी ही एक पहेली है, बचपन से ही मुझे हर वस्तु एक पहेली जान पड़ती है
"शुभाम् की ये बात मुझे सबसे ज्यादा अच्छी लगी...."
" good luck shubham"
Regards
शुभम् जरूर अपना लक्ष्य प्राप्त करेंगे।
ReplyDeleteजीवन को इस उम्र में ही पहेली समझने वाले गंगा किनारे वाले इस 'नटखट बच्चे 'का इंटरव्यू तो बहुत ही रोचक रहा.
ReplyDeleteबधाई.
शुभम आप को भविष्य के लिए ढेर सारी शुभकामनायें.
[शायद सागर नाहर जी के बेटे के बाद आप उम्र में सब से छोटे ब्लॉगर हैं ].
बनारस के गंगा घाट की तस्वीर बहुत अच्छी लगी.
शुभम के बारे में पढ़ कर बहुत अच्छा लगा वह अपने लक्ष्य को पाये यही शुभकामना है
ReplyDeleteहमें भी आश्चर्य हुआ ताऊ...इनकी समझदारी देख कर उम्र का तो पता ही नहीं चलता :)
ReplyDeleteशुक्रिया इन खुराफाती इंसान से मिलवाने का.
इस ज़हीन बच्चे को मेरी शुभकामनाए...
ReplyDeleteअरे शुभम बाबु पुणे में हैं... मुझे तो ये पता ही नहीं था. मिलने का प्रोग्राम बनाना पड़ेगा अब तो !
ReplyDeleteउनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाएं !
ReplyDeleteताऊ खूंटा, पहेली और अब यह ताऊ पत्रिका! अगले साल तक ताऊ ब्लॉगलॉजी विश्वविद्यालय खुल लेगा - इस रफ्तार से!
ReplyDeletebaatchit bahut achhi rahi,unke aanewale dino ke liye hamari shubhecha
ReplyDeleteशुभम आर्य के बारे में जानकार बहुत अच्छा लगा.
ReplyDeleteउनके उज्जवल भविष्य की शुभकामनाऎं.......
शुभम से मिलकर खुशी हुई। उसे ढेरों शुभकामनाएं और आपका आभार।
ReplyDeleteबातचीत बहुत पसंद आई...मंगलकामना..
ReplyDeleteसिटीजन: दया और प्रेम की प्रतिमूर्ति स्वामी दयानंद सरस्वती जयंती अवसर : समाज सुधारक ही नही वरन आजादी के भी दीवाने थे ?
अपने बारे में जान कर प्रशन्नता हुई | :)
ReplyDeleteआप सभी का प्यार तथा आशीर्वाद मिला इसके लिए आप को धन्यवाद |
इन किताबी ... से मिलकर बहुत ही अच्छा लगा। नटखट से। इनकी IIM से MBA की दिली इच्छा पूरी हो। और भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएं।
ReplyDeleteपिता-श्री से बढ़कर होता है, ताऊ-श्री का दर्जा।
ReplyDeleteलिख कर लेख उतार रहे हो,कलम-श्री का कर्जा।।
अनन्त शुभकामनाएं शुभम जी आप को
ReplyDeleteबधाई ताऊ के इस ब्लागरी प्रताप को
जय हो भोलेनाथ की
आदरणीय ताऊ,
ReplyDeleteआपके इस इंटरव्यू से और कुछ सामने आया हो या नहीं मगर एक बात सामने आई ज़रूर है और वो ये के पूना अब हमारे देश के हर एक शहर का एक मोहल्ला टाइप हो गया है। जिसे देखो वही पूना में। जब हम यहाँ आए थे तब इक्का दुक्का कोई मिला करता था। और आपको बताता हूँ के हमारी और बवालिन की शादी ने पूरे उत्तर भारत में एक हंगाम मचा दिया था उन दिनों। मगर अब देखिए जो पूना आया वो डबल आबाद और कोई कुछ कहता भी नहीं। वैरी बैड ना ? मे बी वैरी गुड! सपने पूरे हों उन सबके जो पूना आया करते हैं।
अरे शुभम तो अपने बच्चो की तरह से है, बहुत अच्छा लग इस के बारे जान कर, जिन्दगी के हर कदम पर सफ़लता प्राप्त करे, हमारी तर्फ़ से आशिर्वाद है इसे.
ReplyDeleteआप का धन्यवाद