सु्रमई एक सांझ का नजारा
नीड को लौटते पंछियों का झुंड
उड़ने का मंजर नही
हवा मे तैरने का आभास
नीड पर पक्षियों का कलरव
मीठा सहगान और परिहास
सुकून सा बिखरा लगे
हर नीड़ के आस पास
और एक तरफ़ इन्सान
जो भूल चुका हर सहगान
दो कदम भी साथ ना चले,
न करे अपनों की भी पहचान
(इस रचना के दुरूस्तीकरण के लिये सुश्री सीमा गुप्ता का हार्दिक आभार!)
और एक तरफ़ इन्सान
ReplyDeleteजो भूल चुका हर सहगान
दो कदम भी साथ ना चले,
न करे अपनों की भी पहचान
-सही आंकलन! बहुत बढ़िया रचना. बधाई सीमा जी को.
सीमा जी की हर कविता में एक कशिश होती है, भावों और शब्दों के चुनाव में ऐसा आकर्षण है जो पाठक को
ReplyDeleteरचना को बार बार पढ़ने में बाध्य कर देता है। उनकी अन्य रचनाओं की भांति यह भी बहुत सुंदर रचना है।
महावीर शर्मा
रोचक महीन पोस्ट।
ReplyDeleteसुबह हुई नहीं शाम दिखा दिये। जय हो,जय हो!
ReplyDeleteचित्र भी सुंदर हैं और कविता भी। पर चित्रों की बहुतायत ने कविता को कैप्शन बना दिया। रिक्त स्थान का भी कोई महत्व है?
ReplyDeleteसीमा जी के तो हम शुरुआती पैरवी हैं
ReplyDeleteसुंदर चित्रों के साथ सुंदर रचना....बहुत अच्छा लगा।
ReplyDeleteसुंदर चित्रों के साथ सुंदर रचना...बहुत अच्छा लगा।
ReplyDelete"और एक तरफ़ इन्सान
ReplyDeleteजो भूल चुका हर सहगान
दो कदम भी साथ ना चले,
न करे अपनों की भी पहचान
" पक्षियों की एकता का सुंदर चित्रण करती ये पंक्तियाँ कितना गूढ़ संदेश देती हैं आज की मानवता पर.....ताऊ जी आपके ये विचार बेहद सराहनीय हैं.."
regards
जोरदार !अभी तो ब्रह्म मूहूर्त में जगे लूलिन के दीदार में दीदे फोड़ रहे थे -चलिए अब करते हैं शाम का इन्तजार ! जय हो !!
ReplyDeleteबहुत सुंदर कविता और चित्र भी.
ReplyDeleteकृपया यह स्पष्ट करें कि कविता लिखी किस ने है??
आप ने या सीमा जी ने?
[मेरे ख्याल से आप ने लिखी है और संशोधन सीमा जी ने किया है???]
सुंदर प्रस्तुति हेतु बधाई
waah bahut khubsurat chitra aur bahut sundar kavita badhai
ReplyDeleteआज का सच कह दिया जी आपने। बहुत सुन्दर लिखी यह रचना भी।
ReplyDeleteऔर एक तरफ़ इन्सान
जो भूल चुका हर सहगान
दो कदम भी साथ ना चले,
न करे अपनों की भी पहचान
बहुत उम्दा।
सु्रमई एक सांझ का नजारा
ReplyDeleteनीड को लौटते पंछियों का झुंड
sundar ---shukriyaa
इंसान का क्या कहें, बस वह इंसान है...साथ चले तो चले भी खूब अन्यथा तुम कौन और मैं कौन. अक्कल ने अक्कल का दुश्मन बना दिया है उसे.
ReplyDeletesunder prastuti...
ReplyDeleteजय हो. लेकिन किसकी? सीमाजी की.
ReplyDeleteसीमा जी निसंदेह आप मुझे कई बार चकित कर देती है...अद्भुत
ReplyDeleteनहीं जी! ऐसा तो नहीं है कि इन्सानों में यह सहगान नहीं है। आपने शायद शाम को जाते मानवों को नीड़ की ओर जाते नहीं देखा है या देखा भी है तो महसूस नहीं किया है। ज़रा शाम में निकलिए और उस ट्राफिक जाम को देखिए जहां हारनों का कलरव उन इन्सानों को नीड़ पहुंचने की बेचैनी को इंगित करता है॥
ReplyDeleteजय हो.....जय हो.......जय हो.......
ReplyDeleteसुरमई सांझ! यह शब्द ही मोहक हैं। शायद कोई फिल्मी गीत भी है इन शब्दों से युक्त।
ReplyDeleteसीमा जी धन्यवाद इस सुंदर कविता का,
ReplyDeleteकभी ताऊ की भेंस पर भी एक कविता लिख दे...
काली काली
बहुत प्यारी
मेरी भेंस
बच्चो का
पेट है भरती
ताऊ की बोतल
भी भरती
दुध तो
देती शुद्ध
ताऊ मिलऎ पानी
भेंस देखे
कर्म तऊ के
लेकिन बंधी
खूंटे से
लाचार बेचारी
ताऊ कहे
मेरी
राम प्यारी
जिन्दगी की पहली कविता, ताऊ की भेंस के नाम
राम राम जी
बहुत सुन्दर कविता है, ताऊ! आपको बधाई और सीमा जी का आभार.
ReplyDelete[भाटिया जी की कविता भी कोई कम नहीं है]
बहुत सुंदर। आनंद आया।
ReplyDelete@ दिनेशराय द्विवेदी Dineshrai Dwivedi said...चित्र भी सुंदर हैं और कविता भी। पर चित्रों की बहुतायत ने कविता को कैप्शन बना दिया। रिक्त स्थान का भी कोई महत्व है?
ReplyDeleteआपकी बात सही है. पर आप जरा देखें कि यहां पर हमने वर्णन नीड पर लौटते पक्षियों का किया है. और इसको नीड की अभिव्यक्ति देने की दृष्टि से खाली स्थान को जान बूझकर चित्रों से भरा गया है. सिर्फ़ एक तरफ़ खाली छोडा गया है.
अब यह तो अपनी २ दृष्टि है. अगर चित्र लगाना है तो उस चित्र के कंटेंट के अलावा उसका प्लसमैंट भी देखना पडता है.
आशा है आप हमारी बात को समझेंगे कि हम लोगों ने कितने प्रयत्न पूर्वक इस पोस्ट का डिजाईन तैयार किया है. इन डिजाइंस को तैयार करने में बहुत समय और मेहनत लगती है.तब कहीं जाकर
मन की संतुष्टि लायक काम हो पाता है.
सपाट पोस्ट की बजाये हमारा मन होता है कि उसको सुंदर दिखना भी चाहिये. आपको पसंद नही आया इसके लिये खेद है.
रामराम
बहुत खूबसूरत और दिलचस्प पोस्ट...वाह.
ReplyDeleteनीरज
और एक तरफ़ इन्सान
ReplyDeleteजो भूल चुका हर सहगान
दो कदम भी साथ ना चले,
न करे अपनों की भी पहचान
क्या बात है ताऊ ..........मन में उतर गयी सीधी
इंसान को बहुत कुछ सीखना बाकी है अभी
शुक्रिया आपका और सीमा जी का इतनी सुंदर कल्पना के लिए
सीमा जी, यह कविता बढ़िया है मगर आप की टिप्पणी ने कन्फ्यूज़ कर दिया,,, वास्तव में ये पंक्तियां किसकी है.... क्योंकि नीचे (कविता के) आभार आपके नाम है वह लेखकीय आभार है या प्रेरणा के प्रति.....
ReplyDeleteपिछली पोस्ट में मेरापन्ना (अल्पना जी) और आपका प्रबंधन दृश्टांत बहुत पसंद आया आप को बधाई....
ताई को प्रणाम पर यह पहली बार है
ताऊ को छत्तीसवें साल की अग्रिम शुभकामनाएं...
ताऊ को नमन......मोहक तस्वीरों के संग इतने मोहक शब्दों की माला
ReplyDeleteवाह !!!
keep it uo. good post
ReplyDeletepictures are also fantastic
ReplyDeleteसुंदर चित्र और कविता.
ReplyDeleteपरिंदो से इन्सान की तुलना,
ReplyDeleteपरिंदो से इन्सान की तुलना,
ReplyDeleteलाजवाब कविता.
ReplyDeleteलाजवाब कविता
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