कल सारी दुनिया के शेयर बाजारों में फ़िर एक खूनी जंग लडी गई ! चंद लोग इसमे जीत गए ! ज्यादातर हारने के लिए ही पैदा होते हैं वो हार गए ! कल तो घबराहट में वो लोग भी माल बेचते देखे गए जिन्हें शायद बेचने की जरुरत नही थी ! खैर साहब ये सारी घटनाएं और विश्लेषण तो आप सभी अखबारों और टी.वी. न्यूज चैनलों पर देख ही चुके होंगे ! आज आदरणीय ज्ञान जी ने अर्थ प्रबंधंको के लिए एक नए शब्द की रचना की है "सैन्य प्रबंधक" ! और मुझे बड़ा उचित और सुंदर लग रहा है ! और अब समझ आ रहा है की उनके द्वारा त्वरित रूप से वाक्य विन्यास की कला ही उनकी माईक्रो पोस्ट को भी एक विशाल आयाम देती है ! आज भी उनकी ये माईक्रो पोस्ट ही है !
आज उनसे प्रेरित हो के ही यह लिखने बैठ गया ! वरना आज अपना छुट्टी दिवस और घर गृहस्थी के काम निपटाने का इरादा था ! मैंने इस सम्बन्ध में १४ अक्तूबर को एक पोस्ट लिखी थी "बाजार की वर्तमान तेजी के सन्दर्भ में " जिस दिन दुनिया के बाजार जोरदार तेजी दिखा रहे थे ! और मेरा अनुमान सही निकला ! नतीजा सामने है ! असल में मैं वहाँ इशारा करना चाह रहा था "पुट आप्शन" खरीदने का ! जिन लोगो ने भी ऐसा किया वो आज बेहतर क्या ? बल्कि चकाचक तरीके से दीपावली मनाएंगे ! मतलब उस दिन पुट आप्शन लेने वालो की तो चांदी हो गई ! मेरे सहित कुछ मित्रो ने इसका आनंद उठा लिया है ! जीवन में ऐसे अवसर दशकों में आते हैं ! इस हथियार का उपयोग भी कोई योद्धा ही कर पाते हैं ! ये मिनिमम रिस्क में बड़ी कुशलता और समझ का कार्य है अपने आपको बचाने और कमाने का !
हाँ तो अब जो फिरंगियों का निवेश ९० बिलियन डालर के आस पास का था उस दिन , वो अब अनुमानतः ६० बिलियन डालर का है ! यह आंकडा उनके स्टोक के बिकने से नही आया है ! बल्कि बिकवाली के साथ साथ इसकी वेल्युएशन भी गिर गई है ! और फिरंगियों को भी तगडी मार लगी है ! फिलहाल और आंकड़े आना बाकी हैं ! अब इस बाजार की शक्ल क्या रूप लेगी ? ये सवाल खडा हो गया है !
लोग सवाल पूछ रहे हैं की पैसा तो है ही नही तो बाजार में तेजी कहाँ से आयेगी ?
ये बड़ा बचकाना सवाल है ! पैसा कहीं नही गया , यही हैं , कुछ हाथो में सिमट गया है ! बाजार में उनका विश्वास खत्म होने से पैसा नही आ रहा है ! विश्वास लौटते ही पैसा वापस यही आयेगा ! समय मत पूछिये ! विश्वास बनते और बिगड़ते देर नही लगती ! मेरी निजी राय में तमाम तरह की मुश्किलों के बावजूद मैं भारतीय अर्थव्यवस्था को आने वाले समय में मजबूत मान कर चल रहा हूँ और इसके पीछे वर्त्तमान भारतीय जन संख्या का युवा होना भी है जो जापान से ठीक उलटा है !
कुछ लोग सेंसेक्स को ५००० बताने लग गए हैं ! लेकिन अभी कुछ नही कहा जा सकता ! क्योंकि २१००० के समय ३५००० ये ही लोग बताने लग गए थे ! इनकी बातो में ना जाए ! यकीन कीजिये यही फिरंगी भारत में डालर लेकर फ़िर लौटेंगे ! फ़िर बुलबुल यहाँ चहचहायेगी ! और फ़िर पुराना मंजर दिखेगा ! कब ? यह कहना मुश्किल है अभी तो ! पर इस बात के सिगनल सैन्य प्रबन्धनकार बहुत पहले भांप लेंगे ! लेकिन उस वक्त भी उनकी बात नही सुनी जायेगी ! दोस्तों , दीपावली मुबारक हो ! और अंत में कहना चाहूँगा की आप भारतीय अर्थ व्यवस्था को कमतर आंक कर मत चलिए ! अभी के हालत अलग हैं ! उन पर बहस का आज यहाँ मुद्दा नही है ! इस अर्थ व्यवस्था की बहुत जोरदार वापसी होगी ! फ़िर मत कहना की ताऊ ने बताया नही था !
आपको दीपावली की हार्दिक बधाईयाँ और शुभकामनाये !
सर आपकी तो हर क्षैत्र में पैठ हैं। लिखा आपने बिल्कुल ठीक है। और उस दिन का इंतजार हमें भी है।
ReplyDeleteयकीन कीजिये यही फिरंगी भारत में डालर लेकर फ़िर लौटेंगे ! फ़िर बुलबुल यहाँ चहचहायेगी ! और फ़िर पुराना मंजर दिखेगा ! कब ? यह कहना मुश्किल है अभी तो !
ReplyDelete"shayad sach keh rhen hain aap, lakin ye ub kub hoga ptta nahee, yhee sval subko preshan kiye hai...humne bhee kuch bevkufeyan kee hain ab bhugt rhen hain h ha ha any way sdda ek se din nahee rehte yhee hope hai..."
इस अर्थ व्यवस्था की बहुत जोरदार वापसी होगी ! फ़िर मत कहना की ताऊ ने बताया नही था !
" ha ha ha app ne to btaa diya or umeed bhee kayam kr dee hai, or isee umeed ke sharey.....kee ek din ye arthvyvstha theek ho jayege.."
Regrds
सबसे पहले -दीपावली मुबारक हो।
ReplyDeleteताऊ आपने जों बताया सब ध्यान से समझ रहा हूँ। इसलिए मैं तो नहीं कहूँगा कि ताऊ ने बताया नही था !
बहुतेरों को हताशा के भँवर में डूबने से बचा लेगा आपका आलेख। साधुवाद।
ReplyDeleteकल तो घबराहट में वो लोग भी माल बेचते देखे गए जिन्हें शायद बेचने की जरुरत नही थी ! उन्हें कुछ इंतजार करना चाहिए था , कुछ ही दिनों में स्थिति अच्छी हो सकती है ,बहुत बुरा हो रहा है भोलेभाले निवेशकों के साथ
ReplyDeleteताऊ जी की बात सोलह आने सच . धन्यवाद .
ReplyDeleteताऊ के भी बुद्धि शए भाई. धन्यवाद
ReplyDeleteआपको को स्वपरिवार दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
खूबसूरत रचना
ReplyDeleteदीपावली की हार्दिक शुबकामनाएं
चलिए ताऊ मान लिया ! हमें तो इन्वेस्ट करने की परमीसन ही नहीं है... वरना हम भी करते :-)
ReplyDeleteउम्मीद है दीवाली इस सेंसेक्स में कुछ उछाल लायेगी
ReplyDeleteआपको स्वपरिवार दीपावली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
सैन्य प्रबन्धन एक बड़ा स्पॉण्टेनियस शब्द था - शायद लॉजिस्टिक मैनेजमेण्ट के अनुवाद स्वरूप। आपने उसे वर्तमान सन्दर्भ मेँ बहुत सुन्दर अर्थ से नवाज दिया। यह आपकी कल्पनाशीलता का सुन्दर परिणाम है।
ReplyDeleteकई बार मैने देखा है - ब्लॉगर्स की सोचने की सिनर्जी बड़े नये-नये अर्थ/रचनात्मकतायें निकाल लाती है।
जमाये रहिये!
सबसे पहले तो दिवाली की शुभकामनाये | और अच्छी पोस्ट के लिए आभार
ReplyDeleteभाई आप की दीपावली अच्छी मनेगी। हम तो बस इतना जानकर ही खुश हैं। हालांकि अर्थ अपने लिए व्यर्थ का विषय रहा है, लेकिन बीच-बीच में आप इसी तरह बाजार और व्यापार की जानकारी देते रहेंगे तो ऐसा लगता है कि अपनी भी रुचि इस विषय में जाग जाएगी। अन्यथा हम तो शब्दों के व्यापारी हैं। और अपने व्यापार में मुनाफा भले कम हो लेकिन घाटा होने का सवाल ही नहीं है। दीपावली पर बच्चों को, भौजाई को शुभकामनाएं। आपको नहीं। आपको तो देने वाले ढेरों हैं। और वैसे भी आप चांदी कूट चुके हैं।
ReplyDeleteआपकी बात और सलाह बहुत सटीक होट है. आपकी सलाह के ख़िलाफ़ भूत जोलोकिया खाई तो मुंह जलाया. आपकी ही सलाह के विपरीत बाज़ार को उथल-पुथल के बीच छुआ तो हाथ जलाए. आइन्दा के लिए आपकी निम्न सलाह बहुत लोगों को फायदा करायेगी -
ReplyDelete"इस अर्थ व्यवस्था की बहुत जोरदार वापसी होगी! फ़िर मत कहना कि ताऊ ने बताया नही था!"
ताऊ! ये पोस्ट सुबह से देख रहे हैं। बार बार देख रहे हैं। कुछ समझ आई, कुछ समझ नहीं आई।
ReplyDeleteहम इस बाजार के व्यापारी नहीं हैं। इसलिए खिलाड़ी तो हैं ही नहीं। पास में कोई शेयर नहीं इस लिए बेचने को कुछ नहीं है।
पूरी पोस्ट में बस एक बात समझ में आई ...
पैसा कहीं नही गया , यही हैं , कुछ हाथो में सिमट गया है !
यह एक बात है जो बिलकुल सच्ची है। पर यह बी सोचो कि ये हाथ कौन से हैं जहाँ यह पूंजी सिमटी है? और क्यों सिमटी है?
क्यों ये मंदियाँ हर आठ दस साल में आती हैं? करोड़ों को बरबाद कर देती हैं।
क्यों सरकारों को बाजार से दूर रहने को कहा जाता है?
तब फिर जब बाजार दुर्दशा को प्राप्त होने लगता है तो क्यों सरकार से मदद की आशा की जाती है?