Monday, October 06, 2008 को "कुश की कलम" पर "शहर की बदनाम गलियो में कोई दरवाजा खटखटा रहा है." एक पोस्ट .पढी थी ! उस पोस्ट की सटीकता उस वक्त नही समझ पाया था ! कुश भाई ने २०८० का टाइम फ्रेम देकर कुछ भरमा दिया था ! उनकी बात के लिए इतनी दूर जाने की जरुरत ही नही पड़ेगी ! शायद मेरे और उनके विषय-वस्तु में कोई फर्क नही है ! मुद्दा एक ही है ! और प्रत्यक्षत: मुझे उसकी अनुभूती तीसरे ही दिन दुर्गा नवमी को हो गई ! और ये तो गनीमत थी की इस कार्य का जिम्मा ताई का था ! सो कमी रह गई तो भुनभुना कर रह गई ! कहीं ये काम हमारे जिम्मे होता तो भाटिया जी वाला लट्ठ रूपी प्रसाद हमको मिलना ही था !
अब क्या था ? ताई का आदेश एलेवंथ आवर पर आया की कन्याओं का इंतजाम करो ! हम अपना काम काज छोड़ कर भाग लिए और ताई के डर से हमने अपनी पूरी स्किल लगाकर नौ कन्याओं का इंतजाम कर दिया , वरना क्या होता ? ये बताने की जरुरत ही नही है ! इस ब्लॉग के माननीय पाठक ताई के लट्ठ का मतलब अच्छी तरह जानते है ! खैर. . अब असल चिंता पढिये !
नवरात्र के दिनों में और खासकर आज नवमी के दिन कन्याओं को घर बुला कर बड़ी श्रद्धा और उत्साह से उनका पूजन किया जाता है ! उनको नाना पकवान का सुस्वादु भोजन कराकर , उनके पैर पूज कर माँ. से आशीर्वाद की कामना की जाती है !
तत्पश्चात उनको यथा-शक्ति चूडी बिंदी , वस्त्र दे कर विदा करने की परिपाटी रही है !
अब इन कुछ सालों में यह बात यथेष्ठ रूप से नोटिस में आई है की - इसकी जगह निम्न सीन देखे जा रहे हैं !-
कुछ महिलाएं कार में मिष्ठान्न आदि लेकर , झौपड-पट्टी में जाती हैं - वहाँ गरीब बच्चियों में इस दिन उनका पूजन करके मिष्ठान्न दक्षिणा देकर चली आती हैं !
कई बार कोई घर में आकर पूछता है , आपके यहाँ कोई लड़की है क्या ? हमको दुर्गा पूजन करना है ! उनको कन्या भोज में शामिल करना है !
पर इस बार दुर्गा-पूजन पर यह सोचने के लिए विवश होना पड़ रहा है की आख़िर ऎसी स्थिति आई क्यों ? हमारे बचपन में या कुछ समय पहले तक ये स्थिति नही थी ! बल्कि इतनी कन्याए अपने घर , आस-पडौस या मित्रो के यहाँ होती थी की तय संख्या से ज्यादा ही पूजन के लिए उपलब्ध रहती थी ! और उन बालिकाओं के पैर धोकर भोजन कराना एक आनंद-दायक कार्य रहता था ! और आज तो ये भी एक बड़ा कार्य हो गया की लड़किया कहाँ मिलेगी या कितनी कहाँ मिलेंगी ? अगर नही तो फ़िर चलो झौपड-पट्टी ! क्या इस तरह झौपड पट्टी में खाना बाँट कर माँ का पूजन संपन्न माना जायेगा ? मुझे तो बड़ी दुःख-दाई स्थिति लग रही है !
सोचने वाली बात है की ऐसा हुवा क्यों ? शायद पेट में ही कन्या भ्रूण को ख़त्म कर देने का परिणाम है की आज पूजन के लिए कन्याए नही मिल रही हैं ! और मुझे तो ऐसा लग रहा है की अगर हालात नही बदले या हमारी मानसिकता में कन्या भ्रूण के प्रति रवैया नही बदला तो वो दिन दूर नही जब हम कन्या पूजन भूल कर जैसे पूजन में माँ की प्रतिमा रखते हैं वैसे ही नौ कन्याओं की भी प्रतिमा रख देंगे ! और उन कन्या प्रतिमाओं का पूजन करके संतुष्ट हो लेंगे !
मुझे इस बार के नवरात्र-महोत्सव के दौरान कुश भाई की पोस्ट पढ़ने के बाद ये बात कचोट रही है ! और मैं वाकई बहुत व्यथित हूँ इस बात को लेकर ! ( ये पोस्ट दुर्गा-नवमी को कन्याओं की कमी साक्षात अनुभव करने के बाद लिखी थी )
व्यथित मैं भी आपके साथ हूँ बस अभिव्यक्त नहीं कर पा रहा हूँ और आपने कर दिया. बहुत आभार मुझे शब्द देने को. सादर नमस्कार१!
ReplyDeleteभविष्य चुनौती पूर्ण है। कलरफ़ुल है। विविधता पूर्ण है। एक तरफ़ लड़कियों को लड़के जैसा मानने की लहर चली है। मां-बाप खुश होते हैं लक्ष्मी आई। दूसरी तरफ़ हर इंतजाम किये जाते हैं कि लड़कियां पैदा ही न हो पायें। यह हमारे-आपके ऊपर है कि हम क्या चाहते हैं!
ReplyDeleteसाधु चिन्तन . व्यथित न हों भरोसा रखें राम सब भली करेंगे.
ReplyDeleteलिंगानुपात में अन्तर गंभीर चिंता का विषय है |
ReplyDeleteआपकी चिंता जायज़ है. प्राकृतिक रूप से लड़कियों की संख्या लड़कों से अधिक होती है और जब तक प्रकृति के संतुलन में जबरन गडबडी न की जाए तो लड़कियों की कमी का कोई कारण नहीं है.
ReplyDeleteसटीक ताऊ,बहुत गंभीर मुद्दा उठाया है। हमारे घर में भी यही नज़ारा था,जिस कामवाली से सीधे मुंह बात नही की जाती है,उसे प्यार से कन्याओं के इंतजाम की जिम्मेदारी दी गई,झोपडपट्टी से कन्याओं को लाने पर कल उन्हे विषेश छूट के तहत डांट-डपट नही की गई और आज सुबह से ही कट-कट शुरु है।इस इक दिन के कन्या पूजन को साल भर याद रखने की ज़रुरत है वर्ना अनुपात तो अभी से गड्बडा रहा है। अचछा मुद्दा उठाया।
ReplyDeleteताऊ ! आप जिस क्षेत्र से आते हो शायद वहाँ बहुत बुरी स्थिति है .पर कैसे सुधरेगी यह स्थति ?
ReplyDeleteलोग सुधरेंगे तो अनुपात भी सुधरेगा जी।
ReplyDelete.
ReplyDeleteताऊ यार, बहुत ज़ल्दी परेशान हो जाते हो !
कुछ भी अनर्थ न होगा, द्रोपदीयुग दरवाज़े खड़ा है ।
हमारे ग्रंथ इसकी इज़ाज़त दे ही चुके हैं ।
नवरात्रों में श्रद्धालु गोबर की कन्या बनाकर पूज
लिया करेंगे । तुम तीन चार भैंस और ख़रीद लो,
गोबर पालिथीन पाउच में बिका करेंगी ।
सुनहरा भविष्य देखा करो... क्या तुम भी ?
मुझे इस बार के नवरात्र-महोत्सव के दौरान कुश भाई की पोस्ट पढ़ने के बाद ये बात कचोट रही है ! और मैं वाकई बहुत व्यथित हूँ इस बात को लेकर
ReplyDelete" jis baat ko laiker aap ka dil vytheth hua hai, usko laiker bhut se log preshan honge, or hume bhee bhut dukh hua hai, aap ke blog pr aaker hmesha hans hans kr humara bura haal ho jata tha, magar aaj pehle baar ek udasee see feel kee hai, aaj kee aapke post bilkul alag or ek aise subject pr hai jo sach mey hee chinta ka vishye hai, wish ke halat sudhrenge.."
Regards
samasya gambhir hai. logo ko ye samajhne ki jaroorat hai ki agar sex ratio jyada gadbad hua to samaj me kai staron par bhari uthal puthal ho sakti hai.
ReplyDeleteदुखद है .ओर दुःख की बात है की कई बार स्त्रिया ही इसमे सहयोग देती है. २१ वो सदी में ऐसा अब तक होना चिंता का विषय है
ReplyDeleteकन्या भ्रूण ?? यह है हमारे इस समाज का दोगला पन, एक तरफ़ तो मां दुर्गा को पुजते है, फ़िर इसी मां दुर्गा को जन्म लेने से पहले ही मारते है,इन झोपडपट्टी की क्न्याओ को पुरा साल तो दुतकारते है, ओर फ़िर अपनी महंगी कार मे जा कर दिखावे के रुप मे इन की पुजा करते है, वो भी अकड कर की मां देख हम तुझे भी पुजते है, ओर फ़िर घर आ कर जलदी जलदी कपडे बदलते है कही उस मां (झोपडपट्टी वाली कन्याओ)का गन्द ना लग गया हो.
ReplyDeleteलेकिन इतना जरुर है जो लोग कन्या भ्रूण करवाते है, ओर करते है,एक दिन इन्हे ही इस का फ़ल भुगतना पडेगा, जेसे रावण भी पुजा पाठ तो बहुत करता था, लेकिन अहंकारी इन कन्या भ्रूण की हत्या करने वालो जेसा ही था, कल भी समाने आने वाला है,
ताऊ धन्यवाद
ताऊ जी को सादर प्रणाम.
ReplyDeleteप्रणाम इस लिए कि पहली बार ब्लॉग पर आया.
अफ़सोस भी कि देर से आया.
लेख में वाकई एक सामायिक मुद्दे पर ध्यान दिलाया है आपने.
वाकई संवेदी मुद्दा
ReplyDeleteकुश जी की पोस्ट परसों पढ़ ली थी
आपकी आज
दोनों पोस्टों पर सभी टिप्पणियों को कुछ पंक्तिया बन रहीं है
अभी दर्द प्रारंभ हुआ है
प्रसव होते ही नवजात कविता ब्लाग पर डाल दूंगा
शायद कल तक
इस होंसला देती पोस्ट के लिये आभारी हूं
ताऊ, ई-मेल ना मिल्यो थारो। तीसरा खंबा पै आबा को आभार कहाँ मांडूँ। हाँ, या पोस्ट अंग्रेजी में भी हैगी। वहाँ फैसलाँ की साइटेशन भी हैगी।
ReplyDeleteताऊ आपने बहुत जरूरी मसला उठाया है। कन्या भ्रूण हत्या ही नहीं हो रही है, कई बार तो लोग नवजात बच्चियों को ईश्वर के भरोसे कूड़े पर फेंक देते हैं। इस दारुण स्थिति के प्रति समाज और मीडिया की संवेदनशीलता इतनी कम होती जा रही है कि अखबारों में इस तरह की खबरों को अंदर के किसी लोकल पेज पर संक्षिप्त खबर के रूप में जगह दी जाती है। सती प्रथा लगभग समाप्त हो चुकी है, लेकिन उससे संबंधित मुद्दों को अभी भी प्रमुखता दी जाती है..और मासूमों की हत्या जैसी जो जघन्य बुराई समाज में कोढ़ की तरह फैली हुई है, उससे मीडिया बेपरवाह है। इन हालातों में ब्लॉगजगत में इन मुद्दों का उठाया जाना अत्यंत सकारात्मक कदम है।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा आपने।
ReplyDeleteमैं भी इस विषय पर लिखना चाह रहा था दुबारा से पर समय अभाव की वजह आजकल पोस्ट नही लिख पा रहा। मेरी बेटी का जन्मदिन था उसी दिन सुबह एक खबर सुनी थी कि किसी ने एक लडकी दो एक दिन की बाहर झाडियों में फेंक दी हैं और एक कुता उसकी एक आँख खा गया। तब सोचा था कि एक पोस्ट फिर करुँगा पर समय अभाव...।
यही समाज की दो मुखौटो की मानसीकता है !कन्या ्लडको के बराबर भी है और कन्या चाहिये भी नही!!
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