जब से तुमको देखा था सनम,मयखाने में जाना छोड़ दिया !
वो सुरूर चढ़ा इन आँखों में , साकी से मिलना छोड़ दिया !
मेरा हाल हुआ बेहाल सनम, मंजिल न नज़र आती मुझको
साहिल से अलग मंझधार पहुंच , पतवार चलाना छोड दिया
मैं खुश हूं कि जलती दुनिया में , इस मरघट के सन्नाटे में !
मजहब ने बनाया था पागल,मजहब का ही दामन छोड दिया
तेरी याद की ठंडक है ऐसी, तपती गरमी में हो , मेघ झड़ी !
तू आये, न आये, तेरी मर्जी , उम्मीद ही रखना छोड दिया !
दीवाना हुआ तेरी यादों का , तेरा जादू सर चढ़ कर बोला !
दिले-ए-ताऊ,का हाल देख उसने इस गली ही आना छोड़ दिया !
तेरी याद की ठंडक है ऐसी, तपती गरमी में हो , मेघ झड़ी !
ReplyDeleteतू आये, न आये, तेरी मर्जी , उम्मीद ही रखना छोड दिया !
वाह-वाह ताऊ जी आज तो अपने कमाल ही कर दिया। मगर नाउम्मीदी इतनी अच्छी नहीं , ताऊ , उम्मीद पर तो दुनिया कायम है :)
बहुत सुंदर ग़ज़ल की अभिव्यक्ति .....!!
ReplyDeleteउम्मीद पर तो दुनिया कायम है,बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुती आभार।
ReplyDeleteआपकी यह रचना कल मंगलवार (02-07-2013) को ब्लॉग प्रसारण पर लिंक की गई है कृपया पधारें.
ReplyDeleteसुन्दर !!
ReplyDeletesahi hi kiya . .
ReplyDelete.बहुत सुन्दर भावनात्मक .रोचक प्रस्तुति आभार मुसलमान हिन्दू से कभी अलग नहीं #
आप भी जानें संपत्ति का अधिकार -४.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN
छोड़ छोड़, रणछोड़दास हम।
ReplyDelete
ReplyDeleteवाह ताऊ सा एक दम से नया प्रतीक विधान .....आँखों की खुमारी बनी माया की लत लती बने ताऊ खुदा खैर करे .
मैं खुश हूं कि जलती दुनिया में , इस मरघट के सन्नाटे में !
ReplyDeleteमजहब ने बनाया था पागल,मजहब का ही दामन छोड दिया
खूब कही ......
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार८ /१ /१३ को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां स्वागत है।
ReplyDeleteताऊ ,आप तो अब मजे हुए शायर बन गए -बहुत खुबसूरत शेर हैं
ReplyDeletelatest post झुमझुम कर तू बरस जा बादल।।(बाल कविता )
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteमैं खुश हूं कि जलती दुनिया में , इस मरघट के सन्नाटे में !
ReplyDeleteमजहब ने बनाया था पागल,मजहब का ही दामन छोड दिया
गजब ! सभी भाव उठेल दिये आपने इस खूबसूरत रचना मे ।
बहुत खूब .... बढ़िया गज़ल
ReplyDeleteताऊजी आपके ब्लॉग पर पहली बार आई ।
ReplyDeleteखूबसूरत गजल से मुलाकात हई ।
मैं खुश हूं कि जलती दुनिया में , इस मरघट के सन्नाटे में !
मजहब ने बनाया था पागल,मजहब का ही दामन छोड दिया
वाह मजहब आजकल भी बहुतों को पागल बना रहा है ।
कहीं ये 'तलब ए दीदार' तो नहीं होना चाहिए !
ReplyDeleteकाजल जी सही बात स्वीकारूं तो मुझे ए, ऐ, और ये में क्या प्रयोग करूं? यह समझ नही आता. सबसे पहले मैने इसमें "ये" लिखा था फ़िर वाणी शर्मा जी का मेल मिला कि शायद "ए" होना चाहिये, इसके बाद मैने इसे सुधारा तो "ऐ" हो गया.
Deleteमोटी बुद्धि से ऐसा ही होता है.:)
अब पुन: सुधार दिया है. गलती सुझाने के लिये धन्यवाद.
रामराम.
ताऊ ...
Deleteहोश में !!
ग़ज़ल लिखने बैठो तो नोटों से दिमाग हटा लिया करो :)
भविष्य में भी काजल कुमार से सावधान !!
:)
Deleteमैं खुश हूं कि जलती दुनिया में , इस मरघट के सन्नाटे में !
ReplyDeleteमजहब ने बनाया था पागल,मजहब का ही दामन छोड दिया
धर्म की दुनिया में प्रेम यही एक मजहब है और जो भी प्रेमी
अपने प्रियतम तक पहुंचे है इसी के सहारे पहुंचे है ..बाकी सारे मजहब
सिर्फ पागल बनाने के ही काबिल है ....अच्छा हुआ जो छोड़ दिया !
वाह !
ReplyDeleteतेरी याद की ठंडक है ऐसी, तपती गरमी में हो , मेघ झड़ी !
ReplyDeleteतू आये, न आये, तेरी मर्जी , उम्मीद ही रखना छोड दिया !
उम्मीद रखे या मत रखे ,लेकिन उसे आना ही पड़ेगा एक दिन !
बहुत बढ़िया गजल ...
तेरी याद की ठंडक है ऐसी, तपती गरमी में हो , मेघ झड़ी !
ReplyDeleteतू आये, न आये, तेरी मर्जी , उम्मीद ही रखना छोड दिया !
दीवाना हुआ तेरी यादों का , तेरा जादू सर चढ़ कर बोला !
दिले-ए-ताऊ,का हाल देख उसने इस गली ही आना छोड़ दिया !
क्या बात है ताउजी सीधी लगी जा के दिलपे कटरिया ओ सांवरिया ..
दीवाना हुआ तेरी यादों का , तेरा जादू सर चढ़ कर बोला !
ReplyDeleteदिले-ए-ताऊ,का हाल देख उसने इस गली ही आना छोड़ दिया !
बाकी सभी गिले शिकवे अपनी जगह ये आना जाना छोड़ना तो ज्यादती और दिल तोड़ने की बात है
आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी आपने दामन छुड़ाना भी सिख लिया **** बेहतरीन अल्फाज़
नये प्रयोगों से ही तो साहित्य आगे बढ़ता है -अच्छी रही !
ReplyDeleteजब से लगी तलब-ए -दीदार , मयखाने में जाना छोड दिया
ReplyDeleteजो सुरूर चढ़ा, साकी से हमने, आँख मिलाना छोड़ दिया !
ये लो ताऊ , अब काफिया और रदीफ़ , दोनों सही हो गए। हालाँकि मात्रिक क्रम अब भी सही नहीं है। शे'र में विरोधाभास भी है। लेकिन हिम्मत नहीं हारना , बढ़िया प्रयास है। :)
हा हा हा....डाक्टर साहब काफ़िया और रदीफ़ तो जो ताऊ मिला दे उसी को सही होना पडेगा.:)
ReplyDeleteऔर हमने साकी से मिलने की तौबा की है, आंख ना मिलाने की शर्त नही थी.:)
बहुत आभार आपका.
रामराम.
मान ज्या ताऊ मान ज्या -- तलब -ए -दीदार कर दे , वर्ना सारे शायर लट्ठ लेकर पीछे पड़ जायेंगे।
Deleteग़ज़ब करते हो ताऊ। बिना मयखाने जाये ही सरूर में आ गए।
Deleteडाक्टर साहब, आप ताऊ को शयारों से पिटवाने का खतरा बता रहे हैं तो दुरूस्त किये देते हैं क्योंकि हमको ताई के लठ्ठ के अलावा किसी और पिटना गवारा नही.:)
Deleteरामराम.
ऐसे तो ना वो बेदर्दी थे, न डर था बेरहम ज़माने का,
ReplyDeleteताई के लट्ठ से डरकर उसने,साथ निभाना छोड़ दिया।:)
कैसा कालेज, कैसी क्लासें
ReplyDeleteताऊ और शिक्षा,गज़ब डाक्टर
मुन्नाभाई बना, ब्लॉग का
इसकी लीला , गज़ब डाक्टर
अच्छे अच्छे समझ न पाए
बुद्धि इसकी गज़ब डाक्टर
किसको कलम दवात दिलाते
करते कैसी बात, डाक्टर
ताई ताऊ घर और माया
इसको कोई समझ न पाया
अच्छे भलों की रेल बनायी
फर्जीवाडा , दिखे डाक्टर !
ताऊ ज़रा देखियो , सतीश जी ने ताई का लट्ठ चुरा लिया के ? :)
Deleteलगता है चाबी चुराने के चक्कर में उनके हाथ लठ्ठ लग गया.:)
Deleteरामराम.
अच्छी ग़ज़ल , कुछ शेर लाज़वाब ..
ReplyDeleteसुंदर सृजन,बहुत उम्दा गजल ,,,वाह वाह,,क्या बात है ताऊ ,,,
ReplyDeleteRECENT POST: जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें.
क्या कहने, बहुत सुंदर
ReplyDeleteउत्तराखंड त्रासदी : TVस्टेशन ब्लाग पर जरूर पढ़िए " जल समाधि दो ऐसे मुख्यमंत्री को"
http://tvstationlive.blogspot.in/2013/07/blog-post_1.html?showComment=1372748900818#c4686152787921745134
@ दीवाना हुआ तेरी यादों का , तेरा जादू सर चढ़ कर बोला !
ReplyDeleteदिले-ए-ताऊ,का हाल देख उसने इस गली ही आना छोड़ दिया
- क्या खूब कही है, उस्ताद-ए-शायरी पुरस्कार आपको दिया, साथ मे "शेर" "गढ़" की पूरी जागीरदारी भी।
दीवाना हुआ तेरी यादों का , तेरा जादू सर चढ़ कर बोला !
ReplyDeleteदिले-ए-ताऊ,का हाल देख उसने इस गली ही आना छोड़ दिया....वाह.;बहुत खूब
अति सुन्दर .
ReplyDeleteॐ शान्ति .कल पीस मार्च के लिए न्युयोर्क के लिए प्रस्थान है ४ - ७ जुलाई पीस विलेज में कटेगी .ॐ शान्ति .शुक्रिया आपकी टिपण्णी के लिए .
मैं खुश हूं कि जलती दुनिया में , इस मरघट के सन्नाटे में !
मजहब ने बनाया था पागल,मजहब का ही दामन छोड दिया
दीवाना हुआ तेरी यादों का , तेरा जादू सर चढ़ कर बोला !
दिले-ए-ताऊ,का हाल देख उसने इस गली ही आना छोड़ दिया !
मैं खुश हूं कि जलती दुनिया में , इस मरघट के सन्नाटे में !
ReplyDeleteमजहब ने बनाया था पागल,मजहब का ही दामन छोड दिया ..
जब इन्सान मलंग वाली स्थिति में पहुँच जाता है तो सब कुछ अपने आप ही छूट जाता है ... फकीराना अंदाज़ है इस शेर का ...
मैं खुश हूं कि जलती दुनिया में , इस मरघट के सन्नाटे में !
ReplyDeleteमजहब ने बनाया था पागल,मजहब का ही दामन छोड दिया
...वाह! बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति....
बहुत बढ़िया ताऊ जी...!
ReplyDelete~मैं खुश हूं कि जलती दुनिया में , इस मरघट के सन्नाटे में !
मजहब ने बनाया था पागल, मजहब का ही दामन छोड दिया ~ अगर सभी इंसानियत का दामन थाम लें....तो दुनिया ही बदल जाए!
(क्षमाप्रार्थी हूँ.... महीने भर से ज़्यादा हो गया...हम छुट्टियों में बाहर जाने की वजह से नेट से दूर थे! अब धीरे-धीरे गाड़ी ट्रैक पर लाने की कोशिश कर रहे हैं..)
:-)
~सादर
ख़ूबसूरत प्रस्तुति ताऊ जी...
ReplyDeletehttp://rajkumarchuhan.blogspot.in/
मजहब ने बनाया था पागल,मजहब का ही दामन छोड दिया
ReplyDeleteखूब कही ...... ताऊ जी.
सच है ताऊ दुखती रग को छू लिया -कभी कभी आप कितना अपने सा लगते हो ताऊ!
ReplyDeleteमैं खुश हूं कि जलती दुनिया में , इस मरघट के सन्नाटे में !
ReplyDeleteमजहब ने बनाया था पागल,मजहब का ही दामन छोड दिया
..
बहुत खूब !
वह ताऊ ,अब तो ट्रेक बदल लिया है,कुछ दिन बाद फिर नए रंग में दिखेंगे,उम्मीद करता हूँ.
ReplyDelete