जो बिखर के चकनाचूर हुए, वो सपने हमने देखे हैं !




जो बिखर के चकनाचूर हुए, वे स्वप्न उमड़ते देखें हैं
इन नजरों ने, प्रभु के सम्मुख ,तूफ़ान उमड़ते देखे हैं.


मैं सुबह कहूं,  इसको कैसे, जलप्रलय में सूरज उगने को
जिस रात अनगिनत आफ़ताब मैंने आग उगलते देखे हैं.

ये इश्क मोहब्बत की गज़लें  दुनियां में तमाशा  करती हैं

मैंने तो यहाँ   लैलाओं  से , कई  मजनू लुटते हुये देखे हैं.

सारी रात गुजर गई यादों में,लगता है कि वे आने से रहे

पूरी रात करवटें , बदल बदल, अफ़साने  हज़ारों  देखे हैं.

लुटा यहाँ सब प्रभु के सम्मुख, बर्वादी के आँगन में     
फिर भी ताऊ ने भूखे प्यासे, काफ़िले चलते  देखे हैं. 

Comments

  1. मैं सुबह कहूं, इसको कैसे, जलप्रलय में सूरज उगने को
    जिस रात अनगिनत आफ़ताब मैंने आग उगलते देखे हैं.

    लाजबाब ताऊ जी, सुन्दर गजल !

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  2. वाह: बहुत सुन्दर प्रस्तुति....

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  3. लुटा यहाँ सब प्रभु के सम्मुख, बर्वादी के आँगन में
    फिर भी ताऊ ने भूखे प्यासे, काफ़िले चलते देखे हैं.
    एक से एक लाजवाब शेर है ताऊ, बहुत सुन्दर गजल है !

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  4. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ....!!

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  5. लाजवाब अभिव्यक्ति! ताओ के कृतित्व का एक रूप यह भी है।

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  6. बहुत बढ़िया शेर....
    लाजवाब!!!!

    सादर
    अनु

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  7. सच कहा ताऊ , काफले नहीं रुकते...

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  8. ये इश्क मोहब्बत की गज़लें दुनियां में तमाशा करती हैं
    मैंने तो यहाँ लैलाओं से , कई मजनू लुटते हुये देखे हैं.

    गजब ताऊ।

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  9. बहुत उम्दा,सुंदर गजल ,,,वाह ताऊ !!! क्या बात है,,

    RECENT POST : अभी भी आशा है,

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  10. सच कहा भाई जी ...काफिले लुटते रहते हैं
    जिन्दगी चलती रहती है .....

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  11. बहुत खूब! आपकी रचना का ये रूप भी बहुत अच्छा लगा...
    ~सादर

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  12. गजब ताऊ......
    जैसे मुस्कानो के झरने से कराह बहती हुई.....

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  13. प्रभु के मन की क्या कहें हम तो इन्सनों का मन बी कहां समझ पाते हैं ।
    पर शिकायत करने का हक तो रखते ही हैं हम ।

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  14. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज शुक्रवार (19-07-2013) को स्वर्ग पिता को भेज, लिया पति से छुटकारा -चर्चा मंच 1311 पर "मयंक का कोना" में भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  15. लुटा यहाँ सब प्रभु के सम्मुख, बर्वादी के आँगन में ,फिर भी ताऊ ने भूखे प्यासे, काफ़िले चलते देखे हैं
    सुन्दर लिखा है ताऊ !!

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  16. मैं सुबह कहूं, इसको कैसे, जलप्रलय में सूरज उगने को
    जिस रात अनगिनत आफ़ताब मैंने आग उगलते देखे हैं.

    लाजवाब गज़ल......

    आसमान का आफताब तो उगल सकता है आग भी
    गरीबी में धरती के चंदाओं को मैंने बुझते देखे ।

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  17. ये इश्क मोहब्बत की गज़लें दुनियां में तमाशा करती हैं
    मैंने तो यहाँ लैलाओं से , कई मजनू लुटते हुये देखे हैं.

    बहुत उम्दा गजल....वाह !!!

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  18. बहुत सुन्दर प्रस्तुति.

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  19. बहुत सुन्दर प्रस्तुति..

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  20. ये इश्क मोहब्बत की गज़लें दुनियां में तमाशा करती हैं...वाह ! आह निकाल दिया..

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  21. ये इश्क मोहब्बत की गज़लें दुनियां में तमाशा करती हैं
    मैंने तो यहाँ लैलाओं से , कई मजनू लुटते हुये देखे हैं.
    लुटा यहाँ सब प्रभु के सम्मुख, बर्वादी के आँगन में
    फिर भी ताऊ ने भूखे प्यासे, काफ़िले चलते देखे हैं.
    ताऊ, अभी तो और बहुत कुछ देखना बाक़ी है ,देखते रहिये, अपना हिया जलाते रहिये.

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  22. ये इश्क मोहब्बत की गज़लें दुनियां में तमाशा करती हैं
    मैंने तो यहाँ लैलाओं से , कई मजनू लुटते हुये देखे हैं.
    लुटा यहाँ सब प्रभु के सम्मुख, बर्वादी के आँगन में
    फिर भी ताऊ ने भूखे प्यासे, काफ़िले चलते देखे हैं.
    ताऊ, अभी तो और बहुत कुछ देखना बाक़ी है ,देखते रहिये, अपना हिया जलाते रहिये.

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  23. वाह शायर ताऊ !
    आने लगा है निखार धीरे धीरे।

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  24. व्यंग्य लेखन में तो आप माहिर है ही ...और अब उस के साथ साथ ...खूबसूरत गज़ल भी

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  25. बहुत बढ़िया ....अर्थपूर्ण पंक्तियाँ

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  26. ये इश्क मोहब्बत की गज़लें दुनियां में तमाशा करती हैं
    मैंने तो यहाँ लैलाओं से , कई मजनू लुटते हुये देखे हैं.

    .वाह ......................बहुत उम्दा गजल !!!

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  27. एक दौर है निराशा का , गुजर ही जायेगा!
    अच्छी कही मगर ग़ज़ल !

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  28. मैं सुबह कहूं, इसको कैसे, जलप्रलय में सूरज उगने को
    जिस रात अनगिनत आफ़ताब मैंने आग उगलते देखे हैं.

    सुन्दर बिम्ब भाव और व्यंजना

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  29. जो बिखर के चकनाचूर हुए, वे स्वप्न उमड़ते देखें हैं
    इन नजरों ने, प्रभु के सम्मुख ,तूफ़ान उमड़ते देखे हैं.

    ताऊ सा का ज़वाब नहीं :


    जो बिखर के चकनाचूर हुए, वे स्वप्न उमड़ते देखें हैं
    इन नजरों ने, प्रभु के सम्मुख ,तूफ़ान उमड़ते देखे हैं.

    इबतिदा -ए-इश्क है रोता है क्या ,

    आगे आगे देखिये होता है क्या

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  30. वाह क्या नये अंदाज में नयी बात कही है
    बहुत खूब भाई जी
    सादर

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  31. ये इश्क मोहब्बत की गज़लें दुनियां में तमाशा करती हैं
    मैंने तो यहाँ लैलाओं से , कई मजनू लुटते हुये देखे हैं...

    बहुत ही लाजवाब ... सुभान अल्ला ... हर शेर कई कई कहानियां समेटे ...
    हकीकत की ज़मीन पे बैठ के लिखे शेर ... आज तो तेवर कुछ नए ही हैं ताऊ ...

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  32. लुटा यहाँ सब प्रभु के सम्मुख, बर्वादी के आँगन में
    फिर भी ताऊ ने भूखे प्यासे, काफ़िले चलते देखे हैं.
    ....................बहुत सुन्दर गजल है ताऊ


    राज चौहान
    http://rajkumarchuhan.blogspot.in

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