Skip to main content
कैसे गुजरी तमाम रात, बताऊं कैसे ?
कैसे गुजरी तमाम रात, बताऊं कैसे ?
रात भर करवटें बदलीं , सुनाऊं कैसे ?
"
बेचैनी का बुरा आलम,
दर्दे दिल तुझको, दिखाऊं कैसे ?
लग रहा भोर हो चुकी अबतो,
रात के जख्म, छुपाऊं कैसे ?
जीने की कोई तमन्ना ही नही,
जिंदगी का बोझ, उठाऊं कैसे ?
तन्हाई मुझको पुकारे यारो
सजदे में सर अब, झुकाऊं कैसे ?
बहुत खुबसूरत ग़ज़ल ताऊ
ReplyDeletelatest post क्या अर्पण करूँ !
latest post सुख -दुःख
~बेचैनी के इस आलम में....
ReplyDeleteदिल ढूँढे किसको... बताऊँ कैसे... ~
ऐसे ही! आपकी शायरी पढ़कर ये पंक्तियाँ पढ़कर दिमाग़ में आ गयीं.... :)
~सादर!!!
आजकल गज़लें बहुत लिखी जा रही हैं ताऊ ...
ReplyDeleteबधाई !
और हाँ , धंधा कैसा चला रहा है ??
यह गज़लें ताई को सुनाने का दिल है यार ...
Deleteमन उहापोह की सुंदर अभिव्यक्ति .........
ReplyDeleteज़िंदगी का बोझ तो उठाना ही पड़ेगा .... भले ही जीने की तमन्ना हो या नहीं .... तो हंस कर ही उठाया जाए ... उदासी लिए हुये खूबसूरत गज़ल
ReplyDelete
ReplyDeleteबहुत सुंदर गजल
यहाँ भी पधारे ,
हसरते नादानी में
http://sagarlamhe.blogspot.in/2013/07/blog-post.html
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (22-07-2013) को गुज़ारिश प्रभु से : चर्चा मंच 1314 पर "मयंक का कोना" में भी है!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हास्य के साथ ग़ज़ल में भी आपका दिल और दिमाग करतब दिखाता है !
ReplyDeleteलाजवाब !
जीने की कोई तमन्ना ही नही,
ReplyDeleteजिंदगी का बोझ, उठाऊं कैसे ?
जीवन की इन राहों पर
पता नहीं कब तक है चलना
थके कदम कहते है रुक जाना
समय कहता है चलते रहना
भले ही सांसों का अंत आया
पर सफर का अंत कब आया ?
बहुत बढ़िया रचना, रचना की उदासी मन को गहरे तक
छू गई ताऊ, व्यंग्य के साथ आपकी हर रचनाओं में
एक गहराई होती है !
मन बेढंगा है, किससे खुसफुसाऊँ..
ReplyDeleteकाव्यमयी रूमानी मूढ़ में लग रहे है ताऊ जी,:) बहुत बढ़िया !
ReplyDeleteसुन्दर !!
ReplyDeleteमन की उलझनों को दर्शाती सुंदर भावभिव्यक्ति...
ReplyDeleteवाह ! बहुत खूब !!
ReplyDelete
ReplyDeleteतन्हाई मुझको पुकारे यारो
सजदे में सर अब, झुकाऊं कैसे
बेहतरीन ग़ज़ल| मकता कमाल का है .......दिल से मुबारकबाद|
ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन जानिए क्या कहती है आप की प्रोफ़ाइल फोटो - ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteजीने की कोई तमन्ना ही नही,
ReplyDeleteजिंदगी का बोझ, उठाऊं कैसे ?
जिंदगी का दिल तोडा है आज,
ये बात आपको समझाऊं कैसे !
ऐसी उदासीन ग़ज़ल क्यों ?
बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...
ReplyDeleteएक पोस्ट में 6 सवाल..
ReplyDelete:-)
बढ़िया ग़ज़ल ..
सादर
अनु
ग़ज़ल में उदासियाँ हैं परन्तु अच्छी कही गयी है.
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर, मैंने भी एक कोशिश की है गजल लिखने की,पहली गजल लिखी है, आप भी यहाँ पधारे
ReplyDeleteयहाँ भी पधारे
गुरु को समर्पित
http://shoryamalik.blogspot.in/2013/07/blog-post_22.html
... किसने तोड़ा दिल हमारा, ये कहानी फिर सही ...
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत ग़ज़ल ...आभार
ReplyDelete
ReplyDeleteकैसे गुजरी तमाम रात, बताऊं कैसे ?
रात भर करवटें बदलीं , सुनाऊं कैसे ?
सुन्दर है अति सुन्दर प्रस्तुति .
बाप (शिव बाबा )को गुड नाईट कहके सोवो गुड मोर्निंग कहके उठो ,घोड़े बेचके सोवो
बात हमदम से करें
ReplyDeleteबात हम-कदम से करें
दर्द कम होगा जरूर
जिंदगी पे होगा गुरूर ।
उदासी आपको सूट नही करती । हंसते हंसाते रहें ।
तन्हाई मुझको पुकारे यारो
ReplyDeleteसजदे में सर अब, झुकाऊं कैसे ?
- लेखन भी वाणी की वंदना है ,माने 'सजदा'!
वाह बहुत खूब
ReplyDeleteराम राम
waah bahut badhiya aise sawal iske abav khood hi dhundhna hoga ....
ReplyDeletekya baat hai taauji! behad khubsurat :)
ReplyDelete