ताऊ और रामप्यारे बैठे हैं, कुछ धंधे पानी का गंभीर रूप से हिसाब किताब चल रहा है. लगता है ताऊ रामप्यारे से धंधे का एक एक पाई पाई का हिसाब लेता है.
ताऊ ने पूछा - रामप्यारे, ये बता कि हमने जो उतराखंड त्रासदी के लिये चंदा इकठ्ठा किया था वो रूपया कहां है? आखिर लोगों ने दिल खोलकर चंदा दिया था वो रूपया कहां गया?
रामप्यारे बोला - ताऊ, जो भी चंदा आया था उसे मैने इमानदारी से सहायता के लिये भिजवा दिया था, इसमें कम और ज्यादा बचने का सवाल कहां आता है?
ताऊ बोला - अरे बेवकूफ़, तुझसे मैने सिर्फ़ उतराखंड के नाम पर चंदा इकठ्ठा करने को कहा था, भिजवाने के लिये नही. यदि चंदा उगाकर भिजवा दिया तो फ़िर हम क्या खायेंगे?
रामप्यारे बोला - ताऊ, कुछ तो शर्म करो, उतराखंड त्रासदी एक ना भूलने वाला लम्हा है. कईयों ने अपने प्रियजन खो दिये, कई ऐसे हैं जिनको प्रियजनों की आज तक कोई खबर ही नही मिली. उन सभी के दर्द को आसानी से कोई भी समझ सकता है.... और तुम हो कि उनके नाम पर किये गये चंदे को डकारने की सोच रहे हो?
ताऊ बोला - रामप्यारे, मेरी इच्छा हो रही है कि तेरी गर्दन मरोड दूं...गधा कहीं का....हाथ आये रूपये तूने स्वाहा कर दिये....मुझे नही मालूम, जावो, अपने दो चार पहलवान साथ लेकर त्रासदी के नाम पर दुबारा चंदा उगावो और लाकर मुझे जमा करावो.
अब रामप्यारे ताऊ के लठ्ठ और दबंगई के सामने क्या करे...बेचारे ने ताऊ के चार पांच छटे छटाये और इस काम में माहिर पहलवानों को साथ लिया और लग गया काम पर.
बाजार में पहुंचकर उसने चंदा मांगना शुरू कर दिया. कुछ लोगों ने उसके साथ पहलवानों को देखकर डर के मारे मजबूरी में जेब ढीली कर दी. कुछ ने विरोध शुरू कर दिया.
विरोध करने वाले ने कहा - भाई, हम तीन तीन चार चार बार विभिन्न संगठनों को चंदा अपनी राजी मर्जी से दे चुके और अब तो वहां राहत कार्य भी खत्म हो चुका फ़िर ये किस बात का चंदा मांग रहे हो? और तुम कौन से संगठन की तरफ़ से चंदा मांगने आये हो? आखिर हम चंदा क्यों दें?
रामप्यारे के साथ गये पहलवानों ने उसकी गर्दन पकड कर पिटाई शुरू कर दी और बोले - तेरी हिम्मत कैसे हुई हमसे इतने सवाल जवाब करने की? तेरे को बोला ना कि चंदा दे और छुट्टी पा....
इस विरोध करने वाले को पिटता देख कर दूसरे दुकानदारों ने भी चंदा देने में ही अपनी भलाई समझी और शाम तक खचाखच नोटों का थैला भर कर ताऊ की टीम वापस आ गई. नोटों का थैला पकडते हुये ताऊ ने उन सबको शाबाशी दी और साथ में थैले से कुछ नोट निकाल कर उनकी मजदूरी भी पकडा दी.
ताऊ ने पूछा - रामप्यारे, ये बता कि हमने जो उतराखंड त्रासदी के लिये चंदा इकठ्ठा किया था वो रूपया कहां है? आखिर लोगों ने दिल खोलकर चंदा दिया था वो रूपया कहां गया?
ताऊ और रामप्यारे चंदे की रकम गिनते हुये
रामप्यारे बोला - ताऊ, जो भी चंदा आया था उसे मैने इमानदारी से सहायता के लिये भिजवा दिया था, इसमें कम और ज्यादा बचने का सवाल कहां आता है?
ताऊ बोला - अरे बेवकूफ़, तुझसे मैने सिर्फ़ उतराखंड के नाम पर चंदा इकठ्ठा करने को कहा था, भिजवाने के लिये नही. यदि चंदा उगाकर भिजवा दिया तो फ़िर हम क्या खायेंगे?
रामप्यारे बोला - ताऊ, कुछ तो शर्म करो, उतराखंड त्रासदी एक ना भूलने वाला लम्हा है. कईयों ने अपने प्रियजन खो दिये, कई ऐसे हैं जिनको प्रियजनों की आज तक कोई खबर ही नही मिली. उन सभी के दर्द को आसानी से कोई भी समझ सकता है.... और तुम हो कि उनके नाम पर किये गये चंदे को डकारने की सोच रहे हो?
ताऊ बोला - रामप्यारे, मेरी इच्छा हो रही है कि तेरी गर्दन मरोड दूं...गधा कहीं का....हाथ आये रूपये तूने स्वाहा कर दिये....मुझे नही मालूम, जावो, अपने दो चार पहलवान साथ लेकर त्रासदी के नाम पर दुबारा चंदा उगावो और लाकर मुझे जमा करावो.
अब रामप्यारे ताऊ के लठ्ठ और दबंगई के सामने क्या करे...बेचारे ने ताऊ के चार पांच छटे छटाये और इस काम में माहिर पहलवानों को साथ लिया और लग गया काम पर.
बाजार में पहुंचकर उसने चंदा मांगना शुरू कर दिया. कुछ लोगों ने उसके साथ पहलवानों को देखकर डर के मारे मजबूरी में जेब ढीली कर दी. कुछ ने विरोध शुरू कर दिया.
विरोध करने वाले ने कहा - भाई, हम तीन तीन चार चार बार विभिन्न संगठनों को चंदा अपनी राजी मर्जी से दे चुके और अब तो वहां राहत कार्य भी खत्म हो चुका फ़िर ये किस बात का चंदा मांग रहे हो? और तुम कौन से संगठन की तरफ़ से चंदा मांगने आये हो? आखिर हम चंदा क्यों दें?
रामप्यारे के साथ गये पहलवानों ने उसकी गर्दन पकड कर पिटाई शुरू कर दी और बोले - तेरी हिम्मत कैसे हुई हमसे इतने सवाल जवाब करने की? तेरे को बोला ना कि चंदा दे और छुट्टी पा....
इस विरोध करने वाले को पिटता देख कर दूसरे दुकानदारों ने भी चंदा देने में ही अपनी भलाई समझी और शाम तक खचाखच नोटों का थैला भर कर ताऊ की टीम वापस आ गई. नोटों का थैला पकडते हुये ताऊ ने उन सबको शाबाशी दी और साथ में थैले से कुछ नोट निकाल कर उनकी मजदूरी भी पकडा दी.
आजकल चन्दा लेना धंधा बन गया है,,,,
ReplyDeleteRECENT POST: गुजारिश,
हर त्रासदी पे चंदा मांग
ReplyDeleteमरे कोई भी, चंदा मांग
ईद मांग बकरीद पे मांग
होली मांग दिवाली मांग
चार रिटायर और छः लौंडे, पकड़ मोहल्ले से दो चेले !
कहीं पान सौ कहीं से दो सौ, भर जायेंगे अपने थैले !
अवसरवादियों की कमी नहीं....
ReplyDeleteहमारे यहाँ तो एक १८ साल की लड़की माँ बाप के मरने की खबर लेकर वहां पहुँची ,हमारे मुख्यमंत्री जी बेचारे उसको वापस लाये...नौकरी और मदद के वायदे किये...फिर पता चला कि कि ये उसका पुराना शगल है..कुम्भ की भगदड़ में भी वो २ लाख कमा चुकी है...
गजब अजब लोगों से भरा है संसार....
सादर
अनु
ओह ..कैसे -कैसे लोग हैं!
DeleteExtreme Kalyuga is on Tau :)
ReplyDeleteआज के सच की कहानी, गन्दा है पर धंधा है, बहुत खूबसूरती से लिखा है ताऊ,
ReplyDeletevakai chanda to tau ka muh bharne ke hi kam aayega ...विचारणीय प्रस्तुति .आभार क्या ये जनता भोली कही जाएगी ? #
ReplyDeleteआप भी जानें संपत्ति का अधिकार -5.नारी ब्लोगर्स के लिए एक नयी शुरुआत आप भी जुड़ें WOMAN ABOUT MAN हर दौर पर उम्र में कैसर हैं मर्द सारे ,
त्रासदी और विपदा पर भी लोग अपना धंधा करते हैं .... सटीक व्यंग्य
ReplyDeleteगणेश के लिए चंदा
ReplyDeleteआपदा,विपदाओं के
लिए चंदा,बाढ़,भूकंप
पीड़ितों के लिए चंदा
ये चंदा वो चंदा,चंदा चंदा
ताउओं के ताऊ महा ताऊ
चंदा वसूले बिना मानता
है कहाँ ?
सटीक व्यंग्य :)
जनता भी कम नहीं है मंदिरों में जा कर अपने स्वार्थो को की पूर्ति के लिए जो भरभर कर पैसा चढाती है कई बार ऐसे इमानदार कामो के लिए उसकी एंटी से एक पैसा नहीं निकालता है कई बार :(
ReplyDeleteआपदा के समय में ऐसे लोग संवेदनहीनता की पराकाष्ठा का उदहारण बन रहे हैं, खरी खरी कही
ReplyDeleteऐसे ही उगाहते रहो चन्दा।
ReplyDeleteताऊ भी पीसे फस गिये
ReplyDeleteताऊ हमाए भी फस गिये पीसे
ReplyDeleteइस धंधे में तो बहुत बड़े बड़े लोग आ गए अब ... राजा, युवराज से लेकर कर कोई ...
ReplyDeletedhandha achchha hai.
ReplyDeleteab inko baudh gya ki trf bhej do.
चन्दा इकठ्ठा करना व्यापार हो गया है
ReplyDeleteपता ही नहीं चलता कौन सही है और कौन गलत
किस पर कौन भरोसा करे अब यहाँ..... :(
ReplyDelete~सादर!!!
लेख में उठायी गयी यह एक बेहद गंभीर बात है कि लोग किस तरह असीम दुःख -दर्द की घडी को भी भुनाने में कसर नहीं रखते.
ReplyDeleteसमाजशास्त्रियों के लिए शोध का विषय है कि ऐसे लोगों में आखिर संवेदनाएं खतम क्यूँ हैं ?
विसंगतियों को निशाने पे लेती बढ़िया पोस्ट .
ReplyDeleteक्या खूब लिखते हो.
ॐ शान्ति .लाज़वाब लिखते हो बिंदास लिखते हो हथेली सरकार और बे -असर सरकार के लठैत और चंदा बनाम त्रासदी .
ॐ शान्ति .
सच ही कहा आजकल लोग बहुत ही अवसरवादी हो गए हैं सहानभूति के साथ भी उनका लोभ छिपा रहता है.... अच्छी रचना...
ReplyDeleteइस तरह की आपदा सिर्फ पीड़ितों के लिए ही नहीं, सरकार सहित कई औरों के लिए भी राहत लेकर आती है !!
ReplyDeleteहैरानी भी हैरान है..
ReplyDeleteहैरानी भी हैरान है..
ReplyDeleteआपदाओं में बहुत अदिक धन की आवश्यकता पड़ती है, जब तक धन इकठ्ठा होगा, पीड़ित रहेंगे ही नहीं। प्रशासन को त्वरित धन उपलब्ध कराना चाहिये, वह भी तो जनता का ही पैसा है।
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