बाबाश्री ताऊ महाराज आश्रम में उदास से बैठे हुये थे कि इतने में परम भक्त सतीश सक्सेना जी प्रकट हुये. ताऊ महाराज को उदास देखकर वो बडे चिंतित हुये और स्वाभाविक रूप से जिज्ञासा प्रकट करना चाहकर भी कुछ बोल नही पाये, क्योंकि ताऊश्री उस समय बेहद गंभीर चिंतन की मुद्रा में थे. सतीश जी ने इससे पहले बाबाश्री को इस तरह गंभीर मुद्रा में कभी नही देखा था सो चुपचाप अपना आसन ग्रहण कर किया.
कुछ देर बाद बाबाश्री से सतीश जी ने पूछा - ताऊ श्री आज आप उदास से क्यों हैं? क्या परेशानी खडी हो गयी?
ताऊ महाराज बोले - भक्त, हमारे साथ बहुत बडा छल हुआ है. त्रेता युग में माता सीता ने हमे जबरन ताऊ बना दिया था. आज पता चला कि ताऊ बनने में कोई फ़ायदा नही हुआ. इतने युगों से हम बस फ़ोकट के ताऊ बने घूमते हैं और मिला क्या? छोटी मोटी चोरी चकोरी के अलावा? कोई बडा हाथ नही मार पाये आज तक. और ना ही हमारे भतीजों के लिये कुछ कर पाये. काश हम मामा होते तो हम और हमारे भांजे आज मलाई मार रहे होते. काश हम मामा होते तो अपने भांजो को मौज करवाते..अपनी जेब से ना सही जनता की जेब ही करवाते. हाय...हम मामा क्यों ना हुये......
सतीश जी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा - महाराज श्री आपको कहीं सन्निपात तो नही हो गया है? आप क्या बोल रहे हैं यह आपको मालूम भी है?
ताऊ महाराज तैश में आते हुये बोले - भक्त हम पूरे होशोहवाश में हैं. माता सीता ने हमें ताऊ होने का वरदान देकर वैसे ही छला है जैसे भोलेनाथ ने भस्मासुर को छला था. हमें ताऊ बनकर क्या मिला? बस दस बीस टिप्पणियां? या कोई भला ब्लागर हो तो ताऊ के साथ बस जी लगा देता है.......
सतीश सक्सेना - पर ताऊश्री, आप इतना उबाल क्यों खा रहे हैं? हुआ क्या है आखिर?
ताऊ श्री बोले - सतीश जी, यदि माता सीता हमें ताऊ की जगह मामा बनने का वरदान दे देती तो आज हम भी क्या बडी बडी कोठियों में ना रहते? हमारे पास भी निजी जेट-प्लेन ना होता? इतने युगों बाद भी हमारे पास क्या है? सिर्फ़ ये टूटा फ़ूटा झौंपडेनुमा आश्रम? और थोडे बहुत ब्लागर भक्त....जो ताऊ समझकर दस बीस रूपये (टिप्पणियां) की भेंट दक्षिणा चढा देते हैं और हमें उनसे ही गुजारा करना पडता है?
सतीश जी - तो ताऊ श्री, आपको अच्छी इज्जत मान मर्यादा मिली हुई है...अब और क्या चाहिये?
ताऊ श्री तैश में आते हुये बोले - भाड में गयी ऐसी इज्जत और मान मर्यादा....आपको मालूम है मामा बनने के कितने फ़ायदे है? पौराणिक काल से मामा भांजों की जुगलबंदी चलती है...कभी ताऊ भतीजे की जुगलबंदी सुनी आपने? काश माता सीता ने हमें मामा बना दिया होता.
सतीश जी बोले - ताऊ श्री, लगता है आज आपका दिमाग सटक गया है.....आपको मालूम भी है हमारे दिल्ली के पास शाहपुर जट इलाके में तो मामा शब्द को गाली समझा जाता है और आप हैं कि मामा बनने पर तुले हुये हैं?
बाबाश्री बोले - सतीश जी, हमें ताऊ बनकर माया मिली ना राम वाली कहावत याद आ रही है. त्रेता में रावण का मामा मारीच था ना, कितने मजे किये मामा ने भांजे के साथ मिलकर? इतिहास में अमर हो गया? राम रावण युद्ध का श्रेय भी मामा मारीच को मिला...हमें क्या मिला?
सतीश जी कुछ बोलते इसके पूर्व ही ताऊ श्री ने उनको रूकने का इशारा करते हुये बोलना चालू रखा - हां तो, त्रेता के बाद द्वापर में मामा कंस को देख लिजीये. मामा कंस ने ही भांजे कृष्ण को अवतारी कृष्ण बनवा दिया, ना मामा कंस होता और ना साधारण सा ग्वालिया अवतारी कृष्ण होता. यहां भी मामा कंस को ही सारा श्रेय जाता है. यहां भी मामा भांजे की जुगलबंदी ने दोनों को इतिहास पुरूष बना दिया.
सतीश जी बोले - ताऊश्री, आप को मामा कंस की स्वयं से तुलना नही करनी चाहिये, आप आदरणीय ताऊ हैं और कंस एक अत्याचारी.....
बीच में ही बात काटते हुये ताऊश्री बोले - सतीश जी, आप दुनियादारी और इतिहास की बात समझते नही हैं. इतिहास मामा गाथाओं से भरा पडा है. आप मामा शकुनि और भांजे दुर्योधन को ही देख लिजीये, मामा के सहयोग के बिना क्या दुर्योधन की ताकत थी कि पांडवों को जुए में हरा देता? महाभारत युद्ध में मामा शल्य और उनके भांजे कर्ण की जुगलबंदी देख लिजीये.....
सतीश जी का सर चकराने लगा सो सर पकड कर टुकुर टुकुर ताऊ श्री की तरफ़ देखते रहे और ताऊश्री का भाषण चालू रहा - सतीश जी, सारे इतिहास को छान लिजीये, सभी कामों का श्रेय कहीं ना कहीं मामा भांजों की जुगलबंदी को ही जाता है, ताऊ भतीजों को नही. महाभारत युद्ध के पश्चात मामा कृपाचार्य ने भांजे अश्वत्थामा द्वारा ही द्रौपदी के पांच पुत्रों का सर कलम करवा दिया था......मामा माहिल के कारण ही आल्हा-ऊदल जैसे भाई एक दूसरे के बैरी होकर जंग करने लगे......
सतीश जी बीच में ही बोले - पर ताऊश्री, ये तो सब निगेटिव करेक्टर माने जाते हैं...फ़िर आप मामा बनने के लिये इतने व्यग्र क्यों हो रहे हैं?
बाबा ताऊश्री बोले - करेक्टर कैसा भी हो, माल और मलाई तो मामा भांजे की जुगल बंदी में ही आती है. नाम भी बडा होता है, कहीं मामा-भांजे की कब्र पर झाड फ़ूंक होती है, कहीं मामा - भांजे के मंदिर बनते हैं पर ताऊ भतीजों के आज तक सुनने में नहीं आये.
सतीश जी बोले - ताऊश्री यदि नाम और माल का इतना ही शौक है तो किसी भतीजे को साथ लेकर आप भी जुगलबंदी कर लो, इसमें कौन सी बडी बात है? आप कहें तो मैं किसी भतीजे से आपकी सेटिंग बैठवा देता हूं....
ताऊश्री बोले - सतीश जी, आप यही बात तो समझ नही रहे हैं.......ताऊ भतीजे की जुगलबंदी बैठ ही नही सकती, क्योंकि दोनों का एक ही सरनेम होता है. मान लिजिये मामा बंसल अपने किसी बेटे भतीजे के साथ जुगलबंदी करता तो वो भतीजा भी बंसल ही होता ना. मामा बंसल ने असली मामा होने का परिचय दिया और भांजे सिंगला के साथ जुगलबंदी करके माल ऐसे ही कूटा, जैसे रोड कूटते हैं.... ये तो बुरा हो इन सत्यानाशी सरकारी एजेंसियों का जिन्होने मामा बंसल और भांजे सिंगला का रिश्ता पकड लिया वर्ना हिंदुस्थान में सिंगला नाम की कोई प्रजाति रहती है यह भी कोई नही जान पाता, और मामा भांजों की यह जुगलबंदी इस सरकार के रहने तक तो चलती ही रहती......
सतीश जी भी ताऊश्री की बातों के आगे निरूत्तर होगये और इधर बाबाश्री का संध्या भजन का समय हो चला था सो वो अपनी मौज में भजन गाने लगे......
कसम खुदा की हमने कैसे देश को लूट के खाया है !!
मामू तेरे राज
में हमको
कुछ बेनिफिट
आया है !
आज रात ही
मुझको
चेयरमैन का
सपना आया है !
एक नौकरी में
ही मामू एक
करोड़ कमाया है !
मगर कसम से
मामू मेरा, पेट न
इससे भरता है
जब तक तू हैं
मंत्री पद पर
घर तो हमारा
भरता है !
प्लाट ख़रीदे
फ्लैट ख़रीदे
मज़ा न मुझको आता है
बड़े बड़े है पैसे वाले
हमको मज़ा न आता है
कोई ऐसा काम बताओ
जो धन का अम्बार लगे
बरसों खाएं खूब लुटाएं
घर में धन का पेड़ लगे ,
कुछ देर बाद बाबाश्री से सतीश जी ने पूछा - ताऊ श्री आज आप उदास से क्यों हैं? क्या परेशानी खडी हो गयी?
ताऊ महाराज बोले - भक्त, हमारे साथ बहुत बडा छल हुआ है. त्रेता युग में माता सीता ने हमे जबरन ताऊ बना दिया था. आज पता चला कि ताऊ बनने में कोई फ़ायदा नही हुआ. इतने युगों से हम बस फ़ोकट के ताऊ बने घूमते हैं और मिला क्या? छोटी मोटी चोरी चकोरी के अलावा? कोई बडा हाथ नही मार पाये आज तक. और ना ही हमारे भतीजों के लिये कुछ कर पाये. काश हम मामा होते तो हम और हमारे भांजे आज मलाई मार रहे होते. काश हम मामा होते तो अपने भांजो को मौज करवाते..अपनी जेब से ना सही जनता की जेब ही करवाते. हाय...हम मामा क्यों ना हुये......
सतीश जी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा - महाराज श्री आपको कहीं सन्निपात तो नही हो गया है? आप क्या बोल रहे हैं यह आपको मालूम भी है?
ताऊ महाराज तैश में आते हुये बोले - भक्त हम पूरे होशोहवाश में हैं. माता सीता ने हमें ताऊ होने का वरदान देकर वैसे ही छला है जैसे भोलेनाथ ने भस्मासुर को छला था. हमें ताऊ बनकर क्या मिला? बस दस बीस टिप्पणियां? या कोई भला ब्लागर हो तो ताऊ के साथ बस जी लगा देता है.......
सतीश सक्सेना - पर ताऊश्री, आप इतना उबाल क्यों खा रहे हैं? हुआ क्या है आखिर?
ताऊ श्री बोले - सतीश जी, यदि माता सीता हमें ताऊ की जगह मामा बनने का वरदान दे देती तो आज हम भी क्या बडी बडी कोठियों में ना रहते? हमारे पास भी निजी जेट-प्लेन ना होता? इतने युगों बाद भी हमारे पास क्या है? सिर्फ़ ये टूटा फ़ूटा झौंपडेनुमा आश्रम? और थोडे बहुत ब्लागर भक्त....जो ताऊ समझकर दस बीस रूपये (टिप्पणियां) की भेंट दक्षिणा चढा देते हैं और हमें उनसे ही गुजारा करना पडता है?
सतीश जी - तो ताऊ श्री, आपको अच्छी इज्जत मान मर्यादा मिली हुई है...अब और क्या चाहिये?
ताऊ श्री तैश में आते हुये बोले - भाड में गयी ऐसी इज्जत और मान मर्यादा....आपको मालूम है मामा बनने के कितने फ़ायदे है? पौराणिक काल से मामा भांजों की जुगलबंदी चलती है...कभी ताऊ भतीजे की जुगलबंदी सुनी आपने? काश माता सीता ने हमें मामा बना दिया होता.
सतीश जी बोले - ताऊ श्री, लगता है आज आपका दिमाग सटक गया है.....आपको मालूम भी है हमारे दिल्ली के पास शाहपुर जट इलाके में तो मामा शब्द को गाली समझा जाता है और आप हैं कि मामा बनने पर तुले हुये हैं?
बाबाश्री बोले - सतीश जी, हमें ताऊ बनकर माया मिली ना राम वाली कहावत याद आ रही है. त्रेता में रावण का मामा मारीच था ना, कितने मजे किये मामा ने भांजे के साथ मिलकर? इतिहास में अमर हो गया? राम रावण युद्ध का श्रेय भी मामा मारीच को मिला...हमें क्या मिला?
सतीश जी कुछ बोलते इसके पूर्व ही ताऊ श्री ने उनको रूकने का इशारा करते हुये बोलना चालू रखा - हां तो, त्रेता के बाद द्वापर में मामा कंस को देख लिजीये. मामा कंस ने ही भांजे कृष्ण को अवतारी कृष्ण बनवा दिया, ना मामा कंस होता और ना साधारण सा ग्वालिया अवतारी कृष्ण होता. यहां भी मामा कंस को ही सारा श्रेय जाता है. यहां भी मामा भांजे की जुगलबंदी ने दोनों को इतिहास पुरूष बना दिया.
सतीश जी बोले - ताऊश्री, आप को मामा कंस की स्वयं से तुलना नही करनी चाहिये, आप आदरणीय ताऊ हैं और कंस एक अत्याचारी.....
बीच में ही बात काटते हुये ताऊश्री बोले - सतीश जी, आप दुनियादारी और इतिहास की बात समझते नही हैं. इतिहास मामा गाथाओं से भरा पडा है. आप मामा शकुनि और भांजे दुर्योधन को ही देख लिजीये, मामा के सहयोग के बिना क्या दुर्योधन की ताकत थी कि पांडवों को जुए में हरा देता? महाभारत युद्ध में मामा शल्य और उनके भांजे कर्ण की जुगलबंदी देख लिजीये.....
सतीश जी का सर चकराने लगा सो सर पकड कर टुकुर टुकुर ताऊ श्री की तरफ़ देखते रहे और ताऊश्री का भाषण चालू रहा - सतीश जी, सारे इतिहास को छान लिजीये, सभी कामों का श्रेय कहीं ना कहीं मामा भांजों की जुगलबंदी को ही जाता है, ताऊ भतीजों को नही. महाभारत युद्ध के पश्चात मामा कृपाचार्य ने भांजे अश्वत्थामा द्वारा ही द्रौपदी के पांच पुत्रों का सर कलम करवा दिया था......मामा माहिल के कारण ही आल्हा-ऊदल जैसे भाई एक दूसरे के बैरी होकर जंग करने लगे......
सतीश जी बीच में ही बोले - पर ताऊश्री, ये तो सब निगेटिव करेक्टर माने जाते हैं...फ़िर आप मामा बनने के लिये इतने व्यग्र क्यों हो रहे हैं?
बाबा ताऊश्री बोले - करेक्टर कैसा भी हो, माल और मलाई तो मामा भांजे की जुगल बंदी में ही आती है. नाम भी बडा होता है, कहीं मामा-भांजे की कब्र पर झाड फ़ूंक होती है, कहीं मामा - भांजे के मंदिर बनते हैं पर ताऊ भतीजों के आज तक सुनने में नहीं आये.
सतीश जी बोले - ताऊश्री यदि नाम और माल का इतना ही शौक है तो किसी भतीजे को साथ लेकर आप भी जुगलबंदी कर लो, इसमें कौन सी बडी बात है? आप कहें तो मैं किसी भतीजे से आपकी सेटिंग बैठवा देता हूं....
ताऊश्री बोले - सतीश जी, आप यही बात तो समझ नही रहे हैं.......ताऊ भतीजे की जुगलबंदी बैठ ही नही सकती, क्योंकि दोनों का एक ही सरनेम होता है. मान लिजिये मामा बंसल अपने किसी बेटे भतीजे के साथ जुगलबंदी करता तो वो भतीजा भी बंसल ही होता ना. मामा बंसल ने असली मामा होने का परिचय दिया और भांजे सिंगला के साथ जुगलबंदी करके माल ऐसे ही कूटा, जैसे रोड कूटते हैं.... ये तो बुरा हो इन सत्यानाशी सरकारी एजेंसियों का जिन्होने मामा बंसल और भांजे सिंगला का रिश्ता पकड लिया वर्ना हिंदुस्थान में सिंगला नाम की कोई प्रजाति रहती है यह भी कोई नही जान पाता, और मामा भांजों की यह जुगलबंदी इस सरकार के रहने तक तो चलती ही रहती......
सतीश जी भी ताऊश्री की बातों के आगे निरूत्तर होगये और इधर बाबाश्री का संध्या भजन का समय हो चला था सो वो अपनी मौज में भजन गाने लगे......
कसम खुदा की हमने कैसे देश को लूट के खाया है !!
मामू तेरे राज
में हमको
कुछ बेनिफिट
आया है !
आज रात ही
मुझको
चेयरमैन का
सपना आया है !
एक नौकरी में
ही मामू एक
करोड़ कमाया है !
मगर कसम से
मामू मेरा, पेट न
इससे भरता है
जब तक तू हैं
मंत्री पद पर
घर तो हमारा
भरता है !
प्लाट ख़रीदे
फ्लैट ख़रीदे
मज़ा न मुझको आता है
बड़े बड़े है पैसे वाले
हमको मज़ा न आता है
कोई ऐसा काम बताओ
जो धन का अम्बार लगे
बरसों खाएं खूब लुटाएं
घर में धन का पेड़ लगे ,
बाकियों का तो पता नहीं हम आज से आपको मामा मानते हैं...वैसे मामा-भांजियों का कोई क़िस्सा मशहूर नहीं है क्या???
ReplyDelete:-)
सादर
अनु
बहुत सुन्दर ताऊ !!
ReplyDeleteसुन्दर ताऊ
ReplyDeleteफोटोशोप सीखें हिंदी में (cs5 ,cs6 )
Wah tau ji ..kya baat kahi hai
ReplyDeleteवाह वाह क्या बात है!!!
ReplyDeleteमामा-भांजे का कारोबारी रिश्ते के साथ-साथ
ReplyDeleteतुकबंदी का भी नाता है :)
संध्या भजन मस्त है :)
ReplyDeleteवाह,बहुत सुन्दर तरीके से आपने बिचारो को व्यक्त किया है,
ReplyDeleteबहुत रोचक और सटीक व्यंग...
ReplyDeleteअब ताऊ से दुखी हो गए मामा देखकर ...
ReplyDeleteवाह ताऊ !!
कुछ नया धंधा लाओ मामा से आगे का !
बहुत सुन्दर भजन :)
ReplyDeleteसाभार !
लेकिन मामा बनने के चक्कर में कहीं मामू बन गए तो न ताऊ रहेंगे, न मामा ! :)
ReplyDeleteबहुत बेहतरीव व्यंग्य लेख.... वैसे मामा - भांजे ने दुनियां को कुछ नहीं दिया बल्कि लिया है वो भी बद्ददुआएं वो भी थोक भाव में .... आप से हम कमसे कम व्यंग्य तो मिलते है...और आप को गुरुदक्षिणा.... टिप्पणीयां....
ReplyDeleteकाश आप ताऊ न होकर मामा होते तो निश्चित ही म.प्र.के मुख्यमंत्री होते,,,जय हो,,,
ReplyDeleteआज आप जगत ताऊ हैं ..तब आप जगत मामा होते ..और काम तो आज का ही होता :-))
ReplyDeleteशुभकामनायें!
क्या क्या न दिन देखे तुमने हिन्दुस्तान..
ReplyDeleteपोस्ट पढ़कर कुछ लिखूंगी...वैसे आप ने अवश्य ही कोई गंभीर मुद्दा उठाया होगा.
ReplyDeleteसही लिखा ताऊ श्री !
ReplyDeleteकाश आप ताऊ की जगह मामा होते और हम भतीजों की जगह भांजे ! भांजे होते तो आज टिप्णियों की जगह नोटों के खोखे कुछ घर रखते कुछ आपके आश्रम में आपके चारणों में ला समर्पित करते :) और मौज लेते !
मामा भांजों के ऐतिहासिक , पौराणिक आउर आज के भी रिश्तों पर करारा व्यंग्य ... आप तो ताऊ ही ठीक हो ....घर के बड़े .... सब डरते हैं ताऊ से । भजन तो अब भजना ही पड़ेगा । :):)
ReplyDeleteरोचकता जीवन्तता से भरपूर ताऊ पुर की ताउपुरिया प्रस्तुति .ॐ शान्ति .
ReplyDeleteबात तो है , मामा भांजे की , चाचा भतीजे में वो जुगाड़ कहाँ !
ReplyDeleteदुर्योधन का साथ ,लग जाये दाँव पर ठेठ हरियाणा का भी ठाठ!
ReplyDeleteहास्य के पुट के साथ जबदरस्त गदा-प्रहार किया है ताऊ आपने. बहुत बढ़िया लिखते हैं आप.
ReplyDeleteताऊ ! चाचा बनो या मामा बनो या फिर ससुर बनो .जरा मामा ससुर जैसे हातात ना हो जय फिर पछताओगे ,अरे ताऊ ही अच्छे थे .वैसे लेख के साथ कविता भी अच्छी लगी.
ReplyDeletelatest post पिता
LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !
l
बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर आने के लिए क्षमा मांगता हूँ .
ReplyDeleteमामा जी कमाल कर दिया आपने इतनी शोध पूर्ण लाजवाब रचना लिख कर ---बधाई ।
ताऊ ... इब मामा बनने के फायदे तो हैं ...
ReplyDeleteपर अब तो बन गए सो बन गए ... काहे दिल खराब करते हो इतने फायदे सुना सुना के ...
हा-हा … कल सतीस सक्सेना जी के ब्लॉग पर एक टिपण्णी की थी उनका जबाब आया ताऊ से निपटो ! अब समझ आया उन्होंने ऐसा क्यों लिखा था ! :)
ReplyDeleteमामा क्वात्रोची को शतश :प्रणाम ताऊ के सौजन्य से .....शिलांग में टेक्सी ड्राइवर को मामा बोलते हैं बड़े रौब दाब वाले होते हैं क्वात्रोची से ....बढ़िया व्यंग्य विनोद ताऊ का ....
ReplyDelete:) बढ़िया खाक खिंचा है ..... यहाँ सब संभव है
ReplyDelete*खाका
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteप्रणाम
'मामी' के लिए भी ऐसा ही आरक्षण होना चाहिए.
ReplyDelete