पिछले भाग "क्या है ताऊ का अस्तित्व और हकीकत" में आपने पढा कि ताऊ कैसे अस्तित्व में आया. माता सीता ताऊ को अरावली पर्वत श्रंखला के शेखावाटी व हरियाणा प्रदेश के मनोरम भू भाग पर आशीर्वाद देकर छोड गयी थी. पिछले भाग में अनेक भक्तगणों ने यह जिज्ञासा प्रकट की थी कि ताई कैसे आगई जीवन में?.. ताई के हाथ में लठ्ठ कैसे आगया?.... रामप्यारी कहां से आ गयी?... काला चश्मा कहां से आया.... इत्यादि इत्यादि विभिन्न बातें.
भक्त गणों, आप निराश ना हों. उपरोक्त सभी प्रश्न एक दूसरे के सापेक्ष हैं. बाबाश्री ताऊ महाराज आप सब पर अति प्रसन्न हैं इसलिये आपकी समस्त जिज्ञासाओं का शमन क्रमश: अपने प्रवचनों में करते चलेंगे. बस आप धर्यपूर्वक श्रवण करते रहें.
भक्त गणों, आप निराश ना हों. उपरोक्त सभी प्रश्न एक दूसरे के सापेक्ष हैं. बाबाश्री ताऊ महाराज आप सब पर अति प्रसन्न हैं इसलिये आपकी समस्त जिज्ञासाओं का शमन क्रमश: अपने प्रवचनों में करते चलेंगे. बस आप धर्यपूर्वक श्रवण करते रहें.
ढोसी के पहाडों में तपस्या लीन बाबाश्री ताऊ महाराज
माता सीता और भगवान राम तो हनुमान जी सहित ताऊ को छोडकर अयोध्या के लिये प्रस्थान कर गये. माता के वियोग में ताऊ कुछ काल तक तो शोक मग्न रहा. यह माता सीता के सानिंध्य का ही प्रभाव था कि ताऊ का मन भक्ति में रम गया. अनेक काल तक यानि कई हजार वर्ष तक ताऊ तपस्या करता रहा. निर्जन वन और पहाड, निर्मल पानी के बहते चश्में, आसपास खतरनाक शेर चीते जैसे जंगली जीवों के साथ रहते रहते ताऊ जानवरों की भाषा भी सीख गया. इसी वजह से आज भी शेरू महाराज, रमलू सियार, रामप्यारी जैसी बिल्ली और ताई जैसी बंदरिया के साथ रहते हुये बाबाश्री ताऊ महाराज को कोई परेशानी नही आई. समस्त त्रेता युग खत्म होने तक ताऊ तपस्या में लीन रहा.
यह वह समय आ पहुंचा था जब भगवान श्रीराम इस लोक से विदा लेने वाले थे. एक दिन अचानक भगवान श्रीराम स्वयं आये और बोले ताऊ अब मेरा रामलीला से विदा लेने का समय आ गया है. तुम मेरे अनन्य भक्त हो इसीलिये तुमको एक काम सोंप रहा हूं. द्वापर युग में जब यह धरती पापियों से आक्रांत हो जायेगी तब मैं पुन: कृष्ण के रूप में जन्म लूंगा. मुझे इस काम में तुम्हारी सहायता चाहिये.
ताऊ बोला - प्रभो, आप तो आदेश करें.
भगवान राम बोले - ताऊ, आने वाले समय में महाभारत का युद्ध करवाना जरूरी होगा, मुझे उसका प्रारूप तैयार करना है. इस युद्ध की धुरी तुम्हें ही बनना है. यानि तुम्हें हस्तिनापुर के कौरव राजवंश में महाराज धृतराष्ट्र के रूप में जन्म लेना होगा और उसमे यह साबित कर देना होगा कि तुमसे बडा अंधा, स्वार्थी, अनीतिवान व पुत्रमोही अन्य कोई भी नही है और यही महाभारत युद्ध का बहाना बनेगा.
ताऊ बोला - प्रभु जैसी आपकी आज्ञा. आपके लिये तो मैं जो कहें वह कर सकता हूं.
प्रसन्न होकर प्रभु श्रीराम ने ताऊ को अपने हाथों से एक काला चश्मा पहनाते हुये कहा - हे भक्त शिरोमणी ताऊ, अब से अपनी आंखों पर यह काला चश्मा पहन लो. तुम्हें आने वाले समय में अंधे धृतराष्ट्र के रूप में जन्म लेना होगा, तुम दुनियां के लिये अंधे रहोगे पर तुम्हें इस चश्में की मदद से सब कुछ दिखाई देता रहेगा. मैं तुमसे अति प्रसन्न हूं, तुमको जो वरदान मांगना हो वह मांग लो.
ताऊ बोला - प्रभु मैं क्या मांगू? मुझे तो आप बैठे बिठाये ही सब कुछ दे देते हैं. पहले पगडी और लठ्ठ दे दिया था अब यह दिव्य काला चश्मा दे दिया.
ताऊ के इस कथन पर प्रभु श्रीराम ने कहा - हे ताऊ, तुम बहुत ही विनम्र पर अति चालाक भक्त हो. मैं जानता हूं तुम्हें अपना यह बंदर मुख अति प्रिय है, इसलिये मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम्हारा यह शरीर इस सृष्टि के अंत तक युं ही रहेगा पर तुम जब चाहो जिस रूप में चाहो, इस शरीर के अलावा भी जन्म ले सकोगे, कलयुग में जब ब्लागिंग शुरू होगी तब अनामी बेनामी लेखक व टिप्पणी बाज बन सकोगे. तुम अन्यत्र जन्म लेकर भी इसी शरीर में इसी मनोरम आश्रम में रहते हुये प्रवचन करते रहोगे. जो भी तुम्हारे प्रवचन सुनेगा, तुम्हारे गुणगान गायेगा वो अति सुख पायेगा. कलियुग में तुम्हारे अनुसरण से ही सबके पाप ताप कट जायेंगे. यह कहकर प्रभु श्रीराम चले गये.
देखते देखते त्रेता युग समाप्त होने को आया. प्रभु श्रीराम ने अपनी लीलाएं समेट ली. उनके वियोग से दुखी आत्माओं ने आकर बाबाश्री ताऊ महाराज के आश्रम में शांति पाई, वहीं पर बाबाश्री के प्रवचन सुनते हुये ज्ञान प्राप्त किया और परम भक्त बने जिनके बल से आगे एक भक्तिकालीन युग का भी सुत्रपात हुआ.
द्वापर युग ने अपने आने की दस्तक देनी शुरू कर दी....अपने आने वाले रोल को ध्यान में रखते हुये बाबाश्री ताऊ महाराज ने ढोसी के पहाड पर एक मनोरम आश्रम स्थापित कर लिया. जिससे आने वाले समय में आसानी रहे. समय आने पर प्रभु श्रीराम की आज्ञानुसार बाबाश्री ताऊ महाराज ने अपने योगबल से कौरव राजवंश के होनहार चिराग धृतराष्ट्र के रूप में जन्म ले लिया. लेकिन इस आश्रम पर भी यथावत विराजमान रह कर भक्त गणों मार्ग दर्शन और उनको उपदेश करते रहे.
इसी परम पावन पवित्र आश्रम से बाबाश्री ने अपनी तपस्या के बल पर सारी कृष्ण लीला देखी. कृष्ण जन्म से लेकर कृष्ण के रणछोड बनने तक.
एक दिन अचानक योगेश्वर कृष्ण बाबाश्री ताऊ महाराज के आश्रम आ पहुंचे. बाबाश्री ताऊ महाराज तो सब पहले से ही जानते थे. अपने आराध्य श्री राम को इस रूप में देखकर बाबाश्री कृतार्थ हो गये. भगवान रणछोड कर मथुरा से भाग रहे थे तब इसी ढोसी के परम पवित्र पहाड पर बाबाश्री ताऊ आश्रम में कुछ दिन फ़रारी काट कर बाद में ताऊ महाराज द्वारा सुझाये गये अनुसार नाथद्वारा प्रस्थान किया था.
बाबाश्री ने श्रीकृष्ण से इस तरह युद्ध से भागने का कारण पूछा तो श्री कृष्ण ने कहा - हे ताऊ महाराज, मैं आगे की योजना तुम से डिस्कस करने ही छुपते छुपाते यहां तक आया हूं. अब तुम मेरे लिये माखन रोटी का इंतजाम करो, बडी भूख लगी है. उसके बाद में आगे की योजना तुम्हें बताता हूं.
यह सुनकर बाबाश्री ताऊ महाराज ने उनके लिये उचित प्रबंध करने के लिये भक्तों को निर्देश दिये.
(क्रमश:)
यह वह समय आ पहुंचा था जब भगवान श्रीराम इस लोक से विदा लेने वाले थे. एक दिन अचानक भगवान श्रीराम स्वयं आये और बोले ताऊ अब मेरा रामलीला से विदा लेने का समय आ गया है. तुम मेरे अनन्य भक्त हो इसीलिये तुमको एक काम सोंप रहा हूं. द्वापर युग में जब यह धरती पापियों से आक्रांत हो जायेगी तब मैं पुन: कृष्ण के रूप में जन्म लूंगा. मुझे इस काम में तुम्हारी सहायता चाहिये.
ताऊ बोला - प्रभो, आप तो आदेश करें.
भगवान राम बोले - ताऊ, आने वाले समय में महाभारत का युद्ध करवाना जरूरी होगा, मुझे उसका प्रारूप तैयार करना है. इस युद्ध की धुरी तुम्हें ही बनना है. यानि तुम्हें हस्तिनापुर के कौरव राजवंश में महाराज धृतराष्ट्र के रूप में जन्म लेना होगा और उसमे यह साबित कर देना होगा कि तुमसे बडा अंधा, स्वार्थी, अनीतिवान व पुत्रमोही अन्य कोई भी नही है और यही महाभारत युद्ध का बहाना बनेगा.
ताऊ बोला - प्रभु जैसी आपकी आज्ञा. आपके लिये तो मैं जो कहें वह कर सकता हूं.
प्रसन्न होकर प्रभु श्रीराम ने ताऊ को अपने हाथों से एक काला चश्मा पहनाते हुये कहा - हे भक्त शिरोमणी ताऊ, अब से अपनी आंखों पर यह काला चश्मा पहन लो. तुम्हें आने वाले समय में अंधे धृतराष्ट्र के रूप में जन्म लेना होगा, तुम दुनियां के लिये अंधे रहोगे पर तुम्हें इस चश्में की मदद से सब कुछ दिखाई देता रहेगा. मैं तुमसे अति प्रसन्न हूं, तुमको जो वरदान मांगना हो वह मांग लो.
ताऊ बोला - प्रभु मैं क्या मांगू? मुझे तो आप बैठे बिठाये ही सब कुछ दे देते हैं. पहले पगडी और लठ्ठ दे दिया था अब यह दिव्य काला चश्मा दे दिया.
ताऊ के इस कथन पर प्रभु श्रीराम ने कहा - हे ताऊ, तुम बहुत ही विनम्र पर अति चालाक भक्त हो. मैं जानता हूं तुम्हें अपना यह बंदर मुख अति प्रिय है, इसलिये मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि तुम्हारा यह शरीर इस सृष्टि के अंत तक युं ही रहेगा पर तुम जब चाहो जिस रूप में चाहो, इस शरीर के अलावा भी जन्म ले सकोगे, कलयुग में जब ब्लागिंग शुरू होगी तब अनामी बेनामी लेखक व टिप्पणी बाज बन सकोगे. तुम अन्यत्र जन्म लेकर भी इसी शरीर में इसी मनोरम आश्रम में रहते हुये प्रवचन करते रहोगे. जो भी तुम्हारे प्रवचन सुनेगा, तुम्हारे गुणगान गायेगा वो अति सुख पायेगा. कलियुग में तुम्हारे अनुसरण से ही सबके पाप ताप कट जायेंगे. यह कहकर प्रभु श्रीराम चले गये.
देखते देखते त्रेता युग समाप्त होने को आया. प्रभु श्रीराम ने अपनी लीलाएं समेट ली. उनके वियोग से दुखी आत्माओं ने आकर बाबाश्री ताऊ महाराज के आश्रम में शांति पाई, वहीं पर बाबाश्री के प्रवचन सुनते हुये ज्ञान प्राप्त किया और परम भक्त बने जिनके बल से आगे एक भक्तिकालीन युग का भी सुत्रपात हुआ.
द्वापर युग ने अपने आने की दस्तक देनी शुरू कर दी....अपने आने वाले रोल को ध्यान में रखते हुये बाबाश्री ताऊ महाराज ने ढोसी के पहाड पर एक मनोरम आश्रम स्थापित कर लिया. जिससे आने वाले समय में आसानी रहे. समय आने पर प्रभु श्रीराम की आज्ञानुसार बाबाश्री ताऊ महाराज ने अपने योगबल से कौरव राजवंश के होनहार चिराग धृतराष्ट्र के रूप में जन्म ले लिया. लेकिन इस आश्रम पर भी यथावत विराजमान रह कर भक्त गणों मार्ग दर्शन और उनको उपदेश करते रहे.
इसी परम पावन पवित्र आश्रम से बाबाश्री ने अपनी तपस्या के बल पर सारी कृष्ण लीला देखी. कृष्ण जन्म से लेकर कृष्ण के रणछोड बनने तक.
एक दिन अचानक योगेश्वर कृष्ण बाबाश्री ताऊ महाराज के आश्रम आ पहुंचे. बाबाश्री ताऊ महाराज तो सब पहले से ही जानते थे. अपने आराध्य श्री राम को इस रूप में देखकर बाबाश्री कृतार्थ हो गये. भगवान रणछोड कर मथुरा से भाग रहे थे तब इसी ढोसी के परम पवित्र पहाड पर बाबाश्री ताऊ आश्रम में कुछ दिन फ़रारी काट कर बाद में ताऊ महाराज द्वारा सुझाये गये अनुसार नाथद्वारा प्रस्थान किया था.
बाबाश्री ने श्रीकृष्ण से इस तरह युद्ध से भागने का कारण पूछा तो श्री कृष्ण ने कहा - हे ताऊ महाराज, मैं आगे की योजना तुम से डिस्कस करने ही छुपते छुपाते यहां तक आया हूं. अब तुम मेरे लिये माखन रोटी का इंतजाम करो, बडी भूख लगी है. उसके बाद में आगे की योजना तुम्हें बताता हूं.
यह सुनकर बाबाश्री ताऊ महाराज ने उनके लिये उचित प्रबंध करने के लिये भक्तों को निर्देश दिये.
(क्रमश:)
तुम अन्यत्र जन्म लेकर भी इसी शरीर में इसी मनोरम आश्रम में रहते हुये प्रवचन करते रहोगे. जो भी तुम्हारे प्रवचन सुनेगा, तुम्हारे गुणगान गायेगा वो अति सुख पायेगा. कलियुग में तुम्हारे अनुसरण से ही सबके पाप ताप कट जायेंगे
ReplyDeleteगंगा में पाप धुलें न धुलें यहाँ तो कट ही गए :):) रोचक कथा ।
कलियुग में सब पाप ताप ताऊओं की मेहरवानी से ही कटते हैं, अगर सर पर किसी ताऊ (नेता-अधिकारी) का हाथ ना हो तो जीवन संघर्ष में ही गुजर जाता है.:) आभार.
Deleteरामराम.
धैर्यपूर्वक श्रवण कर रहे है ....आगे की कड़ी का इंतजार है !
ReplyDeleteधैर्य का फ़ल मीठा होता है. अंत में ज्ञानामृत अवश्य हाथ लगेगा, जो जानते हैं वो कुछ नही जान पायेंगे.:)
Deleteरामराम.
सही चल रहा है माहात्म्य, जारी रहे।
ReplyDeleteआभार.
Deleteरामराम.
अच्छा चल रहा है माहात्म्य, जारी रहे।
ReplyDeleteवाह! बहुत ही आनंद दायक एवं रोचक.
ReplyDeleteवाह ! बहुत ही रोचक और आनंद दयक।
ReplyDeleteआभार नीरज कुमार जी.
Deleteरामराम.
"कलियुग में तुम्हारे अनुसरण से ही सबके पाप ताप कट जायेंगे."
ReplyDeleteजय हो ताऊ महाराज की!!
कलियुग सिर्फ़ ताऊमय लोगों के लिये ही आता है.:)
Deleteरामराम.
हम तो मनोयोग से कथा सुनने में लगे भी है।
ReplyDeleteकथामृत सेवन का पुण्य अवश्य प्राप्त होता है.:)\
Deleteरामराम.
ताऊ पुराण पढकर हम तो धन्य हो गए और अगला भाग भी जल्द ही पढ़ा देना ताऊ !!
ReplyDeleteराम राम,आभार !!
भक्तों को धन्य करने के लिये प्रवचन होते हैं.:)
Deleteरामराम.
हे ताऊ महाराज, आपका आभार!
ReplyDeleteघणा आभार तात.
Deleteरामराम.
हे भगवान् ...
ReplyDeleteअब ताऊ , ताऊ रूप को अवतार बनाने के चक्कर में है !!!!
शायद हम ब्लोगर नितांत बेवकूफ हैं !
हा हा हा....अवतार? ये क्या होता है? कलियुग में ताऊ लोग ही स्वयं अवतारी होते हैं.:)
Deleteचहुं और ताऊओं का ही बोलबाला है.
रामराम
बाबा श्री ताऊ महाराज के दर्शन कर व प्रवचन पढ़ हम तो धन्य हो गये !!
ReplyDeleteदर्शन प्रवचन का पुण्य अवश्य प्राप्त होगा, सतत जारी रखिये.:)
Deleteरामराम.
सचमुच... ताऊ जी के बारे में जानकर मन अति-प्रसन्न हुआ.......
ReplyDeleteआपकी प्रसन्नता के लिये आभार.
Deleteरामराम.
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ४ /६/१३ को चर्चामंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आप का वहां हार्दिक स्वागत है ।
ReplyDeleteआभार राजेशकुमारी जी.
Deleteरामराम.
ताऊ जी की सुंदर रोचक कथा सुनकर मन प्रसन्न हो गया,,
ReplyDeleterecent post : ऐसी गजल गाता नही,
आपका मन प्रसन्न तो ताऊ प्रसन्न, आभार.
Deleteरामराम.
धन्य हो गए ताऊ हम तो।
ReplyDeleteकलियुग में सतसंग प्रवचन का प्रताप है कि सुनकर इंसान धन्य हो ही जाता है.:) आभार आपका.
Deleteरामराम.
रोचक कथा सुनकर धन्य हुए ...
ReplyDeleteआभार मिश्र जी.
Deleteरामराम.
अत्यंत सुन्दर कथा
ReplyDeleteअत्यंत सुन्दर कथा ताऊ बाबा
ReplyDeleteकल्याण हो वत्स बवाल, आजकल ब्लागाश्रम से गायब क्यों हैं? बाबाश्री आपको बहुत मिस करते हैं.
Deleteरामराम.
जो भी इस अमरकथा का श्रवण और वाचन करेगा, उसे अखंड ब्लॉगिंग का लाभ प्राप्त होगा और असीमित टिप्पणियां आजीवन मिलती रहेंगी।
ReplyDeleteजय ताऊ महाराज की
कल्याण हो वत्स, सतसंग में लगे रहो.
Deleteरामराम.
हम पढ़ रहें है ...आप जारी रखे
ReplyDeleteदेर से भले ही आयें ...पर आएँगे जरुर ......राम राम
ताऊ कथा तो सतत चलती ही रहती है.:) आभार,
Deleteरामराम.