जा रामप्यारी जल्दी जाकर इसका कैट-स्केन करवा !

एक ही जगह यानि रसोई घर में दूध और शक्कर  रहते थे. पर दोनों में वहा भी भेदभाव था. दूध अधिकतर समय ठंडे फ़्रीज में ही रहता था थोडी देर को बाहर आता, काम होते ही वापस फ़्रीज में...अपना लेखन कर्म करने लगता.   वहीं शक्कर बेचारी तपते रसोई घर में भी बाहर ही पडी पडी अपनी व्यंग रचनाएं लिखती  रहती.

दूध को अपनी इस स्थिति पर बेहद घमंड  था. वो जब भी थोडी देर के लिये फ़्रीज से बाहर निकलता उस समय अपने आसपास रखी चीजों को....देशी लेखकों को   उसी तरह हिकारत से देखता जैसे एक अंग्रेजी  लेखक हिंदी लेखकों को  देखता है...बिल्कुल स्तर हीन और देशी लोग..... उन पर  तरह तरह के कटाक्ष करता. पर कोई भी उसकी बात का जवाब नही देता था क्योंकि दूध का हमेशा ठंडक में रहना, बच्चों का जरूरी पेय, किसी भी मिठाई का महत्वपूर्ण अंग और वैद्य डाक्टरों द्वारा दूध के गाये गये महत्व और उसके आभिजात्य लेखन के कारण  सब उसकी इज्जत करते थे.

किसी भी चीज का हम अति गुण गान करें तो स्वाभाविक रूप से अभिमान हो ही जाता है. जैसे कि  विभिन्न  पुरस्कार प्राप्त लेखक, बिना पुरस्कार पाये लेखक को दीन हीन समझकर हेयता से देखते हैं. इसमे कोई बडी बात नही है. बस दूध महाराज की भी यही हालत थी

एक दिन  रामप्यारी ने आकर बताया कि ताऊ आज तो दूध भैया और शक्कर दीदी  में जम कर झगडा हो रहा है तुम भी चलकर देखो. अब ताऊ को झगडे की खबर लगे और फ़टे में पांव ना फ़ंसाये यह कैसे हो सकता है? ताऊ तुरंत उठकर झगडा स्थल पर हाजिर हो गया.

हुआ यूं था कि ताई बाहर गयी थी और  रामप्यारी को मौका हाथ लग गया था कि आज तो दूध की मलाई पर हाथ साफ़ कर ही ले.  आजकल रामप्यारी का वजन भी कुछ ज्यादा ही बढा हुआ है, फ़िर आगे जाकर कहीं उसके ब्याह शादी में दिक्कत ना आये इसलिये  ताई उसे मलाई हटाकर दूध देती थी और उससे डाईटिंग भी करवाती थी. और आप जानते ही हैं कि रामप्यारी को मलाई कितनी पसंद है.

रामप्यारी ने  ताई के पीछे से चोरी छिपे  दूध की मलाई पर हाथ साफ़ करने  के लिये दूध को फ़्रीज से  बाहर निकाला, वैसे ही  उससे वजन संभल नही पाया और दूध बेचारा औंधे मुंह गिर पडा. दूध बांयी  टांग के बल गिरा था सो उसकी बांयी  टांग भी टूट गई. इस वाकये से  वहां मौजूद बाकी सब चीजों की तो सांसे रूक गई  पर अनायास ही शक्कर  के मुंह से जोरदार हंसी निकल गई.

अब दूध को अपनी खीज मिटाने का इससे ज्यादा अच्छा बहाना क्या मिलता? सो वो जमकर शक्कर पर बरसने लगा - शक्कर...तू मुझे समझती क्या है? तेरी हिम्मत कैसे हुई...मुझ पर हंसने की? तू जानती है ना मैं कौन हूं? मेरे नाम से नीर क्षीर निर्णय होते हैं, मुझसे ज्यादा शुद्ध और पवित्र कोई नही है, इसीलिये मैं आलीशान स्थान फ़्रीज की ठंडक में  रहता हुआ गंभीर लेखन कर्म करता हूं ...तुम दो टके की शक्कर जैसे देशी और अनकल्चर्ड लेखकों  जैसा    बाहर 48 डिग्री में  बैठकर नही लिखता हूं.... तुम लिखती भी हो तो क्या...सिर्फ़ हा.. हा.. ही..ही.. ठी... ठी...और वो भी दूसरों पर कडवे कसैले व्यंग......सिर्फ़ लोगों की खिल्ली उडाना.... कभी गंभीर लेखन करो तो तुम्हारे समझ आये कि गंभीर लेखन क्या होता है?   मैं गंभीर हूं, कोमल हूं, बच्चे बूढे सबके काम आता हूं......हंस के जैसा सफ़ेद हूं....सब मेरी उपमाएं देते हैं.  समाज में मेरी इज्जत है. कई जगहों पर समारोहों कि अध्यक्षता के लिये बुलाया जाता हूं...लोग मेरा सम्मान करते हैं.

उसकी बात सुनकर शक्कर और जोर से हंसने लगी. अब तो दूध बिल्कुल उफ़न पडा और हिंदी से अंग्रेजी पर आ गया.... बोला - यू ब्लडी किरकिरी....अनसिवीलाईज्ड...विदाऊट एनी यूनीफ़ार्म शेप गर्ल...तुम लोगों को शूगर रोग का मरीज बनाने वाली....बच्चों के दांतो को कीडा लगाने वाली जाहिल....लेखकों में दूसरों पर कटाक्ष करने वाली व्यंगिणी...... इसी तरह दूध आंय बांय बकने लगा....और शक्कर को मारने के लिये उठने लगा कि टूटी टांग के दर्द ने हिलने नही दिया और  दर्द के मारे कराहने लगा.

अब शक्कर अपनी मिठास भरी वाणी में बोली - अरे दूध भैया माना कि तुम अंगरेजी के लेखकों और हिंदी के पुरस्कार प्राप्त लेखकों जैसे हो पर तुम्हारा दंभ बिल्कुल गलत है.  तुम फ़्रीज की ठंडक  में बैठकर गम्भीर लेखन  करते हो...तुम्हारा आदर सत्कार सब करते हैं. पर देखो...तुम को जरा सा ज्यादा गर्म करते ही तुम उफ़न पडते हो...सीधे भगौने से बाहर...किसी काम के नही. ठीक है हम कडवे कसैले  व्यंग लिखते हैं... पर उनमें तुम्हारी तरह दंभ नही होता...जरा मेरे कडवे कसैले व्यंग मुंह में डालकर तो देखो...कठोर और खुरदरे होने के बावजूद तुम्हारे  मूंह में मिठास और हंसी ना आ जाये तो मुझसे कहना.

शक्कर की यह बात सुनते ही ताऊ बोला - वाह शक्कर वाह, क्या बात कही है तुमने? सच में तुम्हारे व्यंग यदि समझ लिये जायें तो जबान पर मिठास और हंसी ही आयेगी. और ये दूध जबरन अभिमान करता है. जरा सा ज्यादा गर्म करते ही यानि गंभीरता को चुनौती मिलते ही उबाल खा कर बाहर आ जाता है. किस काम की इसकी गंभीरता? एक तरफ़ तुमको (व्यंग और हास्य) जितना ही ज्यादा उबालों तुम और ज्यादा चाशनी सी मीठी हो जाती हो और  गुलाब जामुन, जलेबी और इमरती जैसी मिठाईयां में जान डाल देती हो.

इतना कहकर ताऊ चुप हुआ ही था कि रामप्यारी बोल पडी - अरे दूध भैया, चलो अब तुम्हें ताऊ हास्पीटल में ले जाकर तुम्हारा कैट-स्केन करवा देती हूं फ़िर प्लास्टर भी चढवाना पडेगा.

इस पर ताऊ बोला - हां हां रामप्यारी, अब तो तु भी समझदार हो गई है...बिना कहे ही इसका कैट-स्केन करवाने ले जा रही है. और हां सुन,  इस दूध को जब दूध पिलाना हो,   तब उस दूध में दो चम्मच शक्कर (व्यंग) मिला देना वर्ना ये गंभीर महाराज दूसरों को भले ही दूध (गंभीरता) पिलाते हों पर खुद बिना शक्कर नही पी पायेंगे.

रामप्यारी ने पूछा - ताऊ इस दूध को शक्कर मिला कर दूध पिलाना है? ये तो शक्कर दीदी से झगडता रहता है ये कैसे  पीयेगा शक्कर (व्यंग) वाला दूध.

ताऊ बोला - रामप्यारी अब मेरी जबान मत खुलवा ...मैने कई बार देखा है ये गंभीर लेखन वाले दूध महाराज जब भी दूध पीते है तब चोरी छिपे उसमे शक्कर (व्यंग) मिलाकर ही पीते है....सिर्फ़ दूसरों को गंभीरता का पाठ पढाते  हैं....जा जल्दी जाकर इसका कैट-स्केन करवा कर इसकी मरहम पट्टी करवा.  

बैट बाल मैच फ़िक्स तेल बाजार में उपलब्ध

पिछले ही दिनों बाबाश्री ताऊ महाराज साहब ने अपनी अपार कृपा दिखाते हुये भावी पीढी के मार्गदर्शन और कल्याण हेतु अनेको कोर्स ताऊ कालेज में इंट्रोड्यूस किये. इन कोर्सेस की सीटे 24 घंटे में ही फ़ुल हो गयी और अनेकों लोगों को पछताना पडा.

जिन लोगों को एडमिशन नही मिल पाया उन लोगों के कल्याण और भलाई के लिये  बाबाश्री ताऊ महाराज साहब ने ताऊ औषधालय के अंतर्गत अति परम कल्याण कारक तेलों का निर्माण करवाया है. इन तेलों के फ़ार्मुले अचूक और अति गोपनीय हैं जिन्हें सिर्फ़ बाबाश्री ताऊ महाराज ही जानते हैं. इनकी निर्माण विधी अत्यंत दुष्कर और गोपनीय है. 

जिन्हें भी लाभ उठाना हो वो तुरंत आकर अपने उपयोग का तेल खरीद लेवे, इन तेलों का निर्माण एक विशेष नक्षत्र के मुहुर्त में ही संभव है अत: बहुत ही सीमित मात्रा में उपलब्ध है. पहले आयें पहले पायें के फ़ार्मुले से ये तेल बेचे जाते हैं.

बाबाश्री के कर कमलों से तेल खरीदते श्री सतीश सक्सेना


मैच फ़िक्स तेल:- इस तेल की नित्य मालिश करने से तीन सप्ताह में मैच फ़िक्स करने की अपार शक्ति प्राप्त होती है. बुद्धि अति निर्मल होकर एक अदृष्य शक्ति से साक्षात्कार होता है. वही शक्ति आपको बताती है कि कौन सा मैच फ़िक्स करना है? किस मैच में सफ़लता मिल सकती है? किस मैच को संतान सुख उत्तम रहेगा? किस मैच का भावी जीवन सुखपूर्ण रहेगा. शादी से पहले अपने ज्ञान चक्षु खोलने के लिये अवश्य वापरें.
मूल्य रू. 2240/- प्रति शीशी मात्र
चेतावनी :- सटोरिये भाई, इसे क्रिकेट मैच फ़िक्स करने वाला तेल ना समझें. 
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सर्वकष्ट-हर तेल:- यह अति गुणकारी और सभी कष्टों को दूर करने वाला तेल है. बहुत ही शुभ नक्षत्रों और योग में इसे निर्मित किया गया है. यदि आप पर कोई पुलिस वारंट निकला है? यदि आप मैच या कुछ और फ़िक्स करने में वांछित है? यदि आपने बैट या बाल का कोई खेल खेला हुआ है? किसी भी तरह की परेशानी हो, बस एक माह तक इस तेल का उपयोग करके देखें, आपके समस्त कष्ट दूर हो जायेंगे. बैट बाल करने से पहले ही इस्तेमाल करने  वाले, इस चमत्कारी तेल की बदौलत हमेशा सुरक्षित रहेंगे. कभी भी पकडे नही जायेंगे.
मूल्य रू. 2770/- प्रति शीशी मात्र  
                                   चेतावनी :- इस तेल का क्रिकेट के बैट बाल से कोई संबंध नही है.
                                                                            *****

घुटना तोड तेल:- यह अति चमत्कारी तेल है. इस तेल की मालिश से घुटनों की सभी खराबियां दूर होती हैं. बैट बाल से यदि घुटने जवाब दे गये हों तो यह तुरंत ठीक करता है. एक सप्ताह के उपयोग से ही आप वापस स्टेडियम में जाने के काबिल हो जाते हैं. तिहाड कालेज में खराब हुये घुटनों को तुरंत आराम मिलने की गारंटी दी जाती है. प्रयोग करके देखें.
मूल्य रू. 3140/- प्रति शीशी मात्र
                                                चेतावनी :- इसे कृपया क्रिकेट से जोडकर ना देखें.
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फ़रारी काटू तेल:- सब तेलों का सरताज तेल...फ़रारी काटू तेल....बाबाश्री की नितांत गोपनीय विधियों के परिणाम स्वरूप इस अदभुत परम चमत्कारी तेल का निर्माण संभव हो पाया है.  आपको ब्लाग से फ़रारी काटनी हो, फ़ेसबुक से फ़रारी काटनी हो, तिहाड कालेज से फ़रारी काटनी हो, स्टेडियम से फ़रारी काटनी हो, बस एक बार यह तेल इस्तेमाल करके देखिये. इस तेल में बाबाश्री ने वो शक्ति और चमत्कार भर दिया है कि आप इसे प्रयोग करने के बाद ही महसूस कर पायेंगे. इस तेल के प्रयोग से आप बिना फ़रारी काटे भी फ़रार हो सकते हैं. आप पूछेंगे यह कैसे संभव हो सकता है? तो दोस्तों...इस तेल की मालिश करते ही आप अदृष्य हो जायेंगे. आप सब कुछ देख सकेंगे पर आपको कोई नही देख पायेगा. तो अब डरना किस बात का? बैट करिये, बाल करिये और मस्त बेफ़िक्र होकर माल कूटिये. 
मूल्य रू. 4450/- मात्र प्रति शीशी
                                   चेतावनी :-  क्रिकेट से संबंध रखने वालों को यह तेल नहीं बेचा जाता.
                                                                                   *****

नोट:-  पूरा कोर्स यानि चारों शीशी एक साथ खरीदने पर डाक खर्च नही वसूला जायेगा. शीघ्रता करें वर्ना यह मौका दुबारा नही मिलेगा. इसके बाद अगला लाट एक साल बाद ही बनेगा. 

ताऊ कालेज आफ़ लेटेस्ट फ़ंडा कोर्सेस...प्रवेश शुरू!

प्रिय पालक गण, जैसा की आप जानते हैं ताऊ कालेज हमेशा ही अपने छात्रों को रोजगारोन्मुख शिक्षा कोर्सेस उपलब्ध करवाता आया है. हमारे यहां से पास आऊट छात्रों ने जीवन में इतनी अधिक उन्नति की है कि वो आज शिखर पर हैं. हमारे पुरातन छात्र इतना माल बटोर चुके है कि उनके स्विस अकाऊंट भी फ़ुल हो चुके हैं. ताऊ कालेज का TMBC यानि  "ताऊ माल बटोरो कोर्स"  अत्यंत ही सफ़ल रहा है.

हमारी कालेज के छात्रों को इस तरह शिक्षा दी जाती है कि उनमें से अधिकतर छात्र अपने जीवन के उतरार्ध में  हायर एजूकेशन के लिये  प्रसिद्ध  तिहाड कालेज में एडमिशन लेते रहे हैं. तिहाड कालेज जाना अपने आप में बहुत ही गौरव मय क्षण होता है. सीना गर्व से तन जाता है.  आप भी यदि हमारे कालेज के इन कोर्सेस में  बच्चों को ट्रेंड करवाते हैं तो आपको यह ग्यारंटी दी जाती है कि भविष्य में वो तिहाड कालेज में  अवश्य एडमिशन लेंगे. ऊपर से मुनाफ़ा यह कि आपको भी उनसे मिलने के लिये तिहाड कालेज जाना पडेगा तो आपकी भी तिहाड कालेज घूमने की व्यवस्था मुफ़्त हो जायेगी. यानि आम के आम और गुठलियों के दाम.  

हमारे छात्रों की इस उन्नति के लिये हमारे कालेज के आजीवन अध्यक्ष बाबाश्री ताऊ महाराज तो हमारे लिये प्रेरणा श्रोत रहे ही हैं परंतु छात्रों को ट्रेंड करने में हमारे कालेज के डायरेक्टर प्रोफ़ेसर रामप्यारे ने अपना महती योगदान दिया है. 


आज का फ़ाईनेंशियल मार्केट काफ़ी रिस्की हो गया है, सोने का भाव गिरता जा रहा है, शेयर मार्केट से जनता इस तरह दूर हो गयी है जैसे आजकल कौव्वे शहरों से गायब हो गये हैं. पालक अपने बच्चों के भविष्य को लेकर अति चिंतित हो रहे हैं. परंतु हमारे दयालू बाबाश्री ताऊ महाराज से पालकों की यह परेशानी नही देखी जाती.

हम बाबाश्री के मार्गदर्शन में 100 प्रतिशत मुनाफ़े और ग्यारंटेड रोजगार के निम्न तीन कोर्सेस शुरू करने जा रहे हैं. यह कोर्सेस प्रोफ़ेसर रामप्यारे की   देखरेख में चलेंगे. इन कोर्सेज में एडमिशन के लिये कालेज समय में आप कालेज के डायरेक्टर प्रो. रामप्यारे से संपर्क कर सकते हैं. इन कोर्सेस की सीमित सीटे ही बची हैं क्योंकि बडे नेताओ, अफ़सरों, अध्यक्षों  की मांग पर उनके बच्चों को एडमिशन प्राथमिकता से दिया गया है.  

Course No. 1 --  How to bat (2 year), 
                   (Fees Rs. 15 lakh only, full course) 

Course No. 2  -- How to ball (2 year),
                  (Fees Rs. 15 lakh only, full course)

Course No. 3 --  How to fix (5 year),
                  (Fees Rs. 25 lakh only, full course)

होनहार और टेलेंटेड बच्चों के लिये  यदि वो चाहें तो आधी फ़ीस माफ़ की जा सकती है.  जो बालक  आधी फ़ीस माफ़ करवाना चाहते हों उन्हें  अपनी कमाई से जीवन भर 25 प्रतिशत रकम बाबाश्री ताऊ महाराज निजार्थिक ट्रस्ट में देना होगी. इस स्कीम में प्रवेश लेने के इच्छुक प्रार्थी इंटर्व्यू देने हेतु डायरेक्ट बाबाश्री ताऊ महाराज से संपर्क करें.
   
पालक गण कृपया ध्यान देवे :-  
1. हमारे कालेज में क्रिकेट खेलना नही सिखाया जाता. 
2. क्रिकेट के शौकीन कहीं और एडमिशन लेवें. 
3. यह शुद्ध रूप से प्रोफ़ेशनल कोर्सेस हैं.
4. फ़ुल कोर्स की फ़ीस एक साथ देनी होगी.
5. आर्थिक रूप से सक्षम पालक गण ही संपर्क करें. 
6. मिलते जुलते नाम के दूसरी कालेजों के कोर्सेस से भ्रमित ना हों, क्योंकि बाबाश्री ताऊ महाराज की असली      और पुरातन दुकान यही है.

क्या ब्लाग मठ ब्लाग देवता के श्राप से ध्वस्त हुये?


पौराणिक काल की बात है. उस समय में ब्लागिंग अपनी चरम बुलंदियों पर थी. हर ब्लागर "ब्लाग देवता" को नमन व उसकी पूजा करके अपनी पोस्ट लिखा करता था.  ब्लाग देवता से अपने ब्लाग, ब्लाग मठाधीष की उन्नति कि दुआ मांगा करता था और विरोधी मठों के विनाश की प्रार्थना किया करता था.

चारों तरफ़ अनेकों छोटे बडे मठाधीषों का साम्राज्य हुआ करता था.  दो बहुत ही बडे टीवी चैनल (एग्रीगेटर) हुआ करते थे जो 24 घंटे लाईव  प्रसारण किया करते थे. जैसा कि अपना साम्राज्य बढाने के लिये  पुराने समय में राजे रजवाडे आपस में निरंतर लडते रहते थे उसी प्रकार ब्लाग मठाधीषों में अपना अपना प्रभाव बढाने के लिये निरंतर युद्ध होता रहता था.

जहां तक दोनों बडे टीवी चैनलों का सवाल है. वो थे तो निष्पक्ष ही, पर उन पर भी पक्षपात के आरोप लगते रहे और स्थिति यहां तक आयी कि दोनो चैनल ही इन  आरोप प्रत्यारोपों के चलते  बाद में बंद हो गये. यह एक अलग कहानी है.

एक तरह से कहा जाये तो वो  समय ब्लागिंग का स्वर्णिम काल था. 24 घंटे हर मठाधीष स्वयं और अपने सेनापतियों के माध्यम से अपने साम्राज्य के विस्तार में लगा रहता था. राष्ट्रीय/अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इमेल, चैट  व  टेलीफ़ोन द्वारा दुश्मन मठ की स्थिति की जानकारी ली जाती थी.

जिस तरह राज्य चलाने के लिये पुलिस, जासूस भेदिये और एक पूरा तंत्र होता है उसी तरह का तंत्र हर मठ के पास था. मकसद सिर्फ़ इतना कि हमारा मठ तुम्हारे मठ से बडा.

मठ का विस्तार करने के लिये सबसे ज्यादा जरूरत होती थी नये आने वाले ब्लागरों को अपने खेमे में यानि अपने मठ में शामिल करना. बडे मठ की पहचान यही थी कि किस मठ के सदस्य की पोस्ट पर कितनी टिप्पणी आई?  टिप्पणियों के लिये इमेल व चैट तो स्वाभाविक थी पर जब तक टिप्पणी नही आये तब तक सामने वाले का टेलीफ़ोन बजता ही रहता था. जैसे BCCI  के चुनाव में एक एक वोट का हिसाब रहता है वैसे ही हर ब्लागर की एक एक टिप्पणी का हिसाब किताब अकाऊंटेंट रखता था.

क्राईसिस मेनेजमैंट के लिये हर मठ की अपनी एक टीम होती थी जिसकी कमान  सलेक्टेड और अनुभवी ब्लागर  संभालते थे. वो ऐसा समय था कि हर ब्लागर चौबीसों घंटे अपना मोबाईल चालू  ही रखता था कि पता नहीं  कब मठाधीष को जरूरत पड जाये. और सेवा का मौका मिल जाये.

लोग झूंठ कहते हैं कि सेवफ़ल का गिरना देखकर  दद्दा न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण का नियम बनाया पर हमारा मानना है कि  दद्दा न्यूटन  ने "गुरुत्वाकर्षण का  नियम" (Law of Gravitation)  शायद ब्लागिंग की नियति भांपकर बनाया होगा, गजब के ज्योतिषी थे दद्दा न्यूटन, उनकी भविष्यवाणी आज सौ प्रतिशत सच हो रही है. जितनी ऊंचाईयों पर ब्लागिंग थी आज उतनी ही जमीन पर आ चुकी है.

जब ब्लागिंग स्वर्णिम काल में अपने चरम पर थी  तब एक स्थिति ऐसी थी,   जैसे महाभारत युद्ध  में  शरीक होने आने वाले योद्धाओं का स्वागत करके उनसे अपने अपने खेमे में शामिल होने का अनुरोध और अनुनय विनय की जाती थी, उसी तरह का हाल ब्लागजगत में था.

नये आने वाले योद्धा (ब्लागर) का स्वागत होता और अपने खेमे में शामिल करने के लिये डोरे डाले जाते. सभी मठाधीष और उनके सेनापति टिप्पणी रूपी हथियार लेकर नवागंतुक ब्लागर पर टूट पडते.   कई तो इस बात के विशेषज्ञ भी थे. यदि कोई योद्धा हठी होता तो उससे डायरेक्ट मठाधीष ही रूबरू होकर उसे कानून कायदे और मठ में शामिल होने के फ़ायदे   समझाते, यानि यह घटना उस समय की है जब पोप की तरह से सारा शासन मठों और उनके मठाधीषों के हवाले हो चुका था. किसी भी ब्लागर की इतनी हिम्मत नही थी कि वो स्वतंत्र रूप से ब्लागिंग कर सके. उसे येन केन प्रकारेण कोई ना कोई मठ अवश्य ज्वाईन करना पडता.

इसी समय में एक निहायत ही शरीफ़, कुशाग्र बुद्धि और होनहार ब्लागर इस ब्लाग जगत में आया. उसको नियम कायदे कानून भी नही मालूम थे, यहां तक की उसे ब्लाग देवता की पूजा प्रार्थना विधि का भी ज्ञान नही था.  इस ब्लागर को अपने मठ में शरीक करने के लिये  सभी मठाधीषों के संचालक व सेनापति,   मठ की सदस्यता लेने के लिये जी तोड कोशीश करने लगा.  लेकिन यह ब्लागर कुछ जरूरत से ज्यादा शरीफ़ था सो यह इशारे ही नही समझ पाया.

महा मठाधीष ताऊ को जब इसके बारे में बताया गया तो ताऊ स्वयं उस मठाधीष के पास पहुंच गया. जब ताऊ वहां पहुंचा तो देखा कि ब्लागर आसन बिछाकर अगरबत्ती दीपक जलाकर ब्लाग देवता की पूजा अर्चना में व्यस्त था.

वह  ब्लागर प्रार्थना कर रहा था कि हे ब्लाग देवता, सब ब्लागों का भला कर, सब अच्छा लिखें, अच्छा पढें, और हे ब्लाग देवता तू भी अपना एक ब्लाग बनाले, तेरे को फ़ुरसत ना हो तो तेरे ब्लाग की पोस्ट मैं लिख दिया करूंगा, तू मुझे भी तेरी सेवा करने का मौका तो दे....

ताऊ ने जब उसकी प्रार्थना सुनी तो ताऊ गुस्से से पगला गया और बोला - अरे मूर्ख, ये तू कौन सी प्रार्थना कर रहा है? इस तरह कोई ब्लाग देवता प्रसन्न होंगे तुझसे? मूर्ख कहीं का....

ब्लागर अचानक चौंका और सामने ताऊ मठाधीश को हाथ में लठ्ठ लिये खडा देखा तो डर गया और समझा कि शायद यही ब्लाग देवता है सो चरण पकडकर बोला - प्रभु मुझे तो यही प्रार्थना आती है कि सबका भला हो, अब आप बतादें कि किस तरह की प्रार्थना करनी है?

ताऊ ने खुश होकर उसको आशीर्वाद देते हुये कहा - बालक तुम्हारा कल्याण हो, अपनी प्रार्थना में यह मांगा करो कि हे ब्लाग देवता - मेरे ब्लाग और मेरे ताऊ मठाधीष का इकबाल बुलंद रहे बाकी सबके ब्लाग और ब्लाग मठ  ध्वस्त हो जायें.

ब्लागर ने ताऊ के बताये अनुसार धूप दीपक लगाकर ब्लाग देवता से प्रार्थना करना शुरू कर दिया और वह
महा मठाधीश  ताऊ का चेला बन गया.

यह सब देखकर ब्लाग देवता ने आकाशवाणी की - हे महा दुष्ट ताऊ, तूने एक निहायत ही शरीफ़ और नेक बंदे को गलत रास्ते चला दिया है. इसे अपनी पुरानी प्रार्थना ही करने दे वर्ना तुझे दंड मिलेगा.

ताऊ ने अहंकार  से भरकर ब्लाग देवता की इस तरह अटटहास पूर्वक खिल्ली उडाई  जैसे दुर्योधन ने चीरहरण के समय भीष्म पितामह की खिल्ली उडाई थी और बोला - सुनो ब्लाग देवता, तुमको देवता बने रहना है तो बने रहो, पर अब इस ब्लाग जगत का एक मात्र महा देवता मैं हूं....जावो अपना काम करो.

उसी समय ब्लाग देवता ने मठाधीष को श्राप दिया कि जावो अब तुम सब मठाधीषों का  पतन शुरू होगा. ताउ ने खिल्ली उडाते हुये कंधे झटके और मुस्कराते हुये विजयी भाव से मठ को लौट आया.

कहते हैं उसी ब्लाग देवता के श्राप से चारों तरफ़ अनामी सनामी, बेनामी ब्लागर पैदा हो गये और मठों का पतन शुरू हो गया. कहने वाले तो यहां तक कहते हैं कि ये अनामी सनामी बेनामी सब ब्लाग देवता के अंश से पैदा हुये थे जिन्होंने देखते देखते मठों के मठ ध्वस्त कर डाले और अनेकों की ब्लागिंग छूडवा दी.


दगाबाज तोरी बतियाँ कह दूंगी..हाय राम कह दूंगी !


ताऊ डाट इन की यह   शुरूआती पोस्ट्स (अक्टूबर-2008) में थी जो  राष्ट्रीय समाचार पत्र हमारा मैट्रो में 20 मई 2013 को प्रकाशित हुई है. जिसकी सूचना श्री रतन सिंह जी शेखावत द्वारा फ़ेसबुक पर   मिली. मूल पोस्ट में हरयाणवी शब्दों का इस्तेमाल ज्यादा हुआ था. हरयाणवी शब्दों के साथ पढने की इच्छा हो तो यहां पर मूल पोस्ट उपलब्ध है.  यहां शब्दों को थोडा बदल दिया गया है   जिससे सभी समझ सकें तो थोडे हेर फ़ेर के साथ  इस गर्मी के मौसम में यह पोस्ट आपको असली हरयाणवी फ़्लेवर की कुल्फ़ी फ़ालूदा विद रूहाफ़्जा  का आनंद देगी, लीजिये नोश फ़रमाईये.



अक्सर ऐसा हो जाता है की हम अपने बारे में किसी दुसरे द्वारा कही बात को, अपने  मनघडंत डर से अपने बारे में ग़लत तरीके से समझ लेते हैं.  भले ही वो बात  हमारे बारे में नही कही गई हो,  और परिणाम स्वरुप हम बिना बात दुःख पाते हैं.   ताऊ ने इसी बेवकूफी में अपना पैसा भी गंवाया और ख़ुद अपनी ही बेवकूफी से इस भरी गर्मी में   इज्जत का कुल्फ़ी  फालूदा बनवा लिया.

ये घटना काफ़ी ज्यादा पुरानी है.  बात उन दिनों की है जब हम खेती बाडी किया करते थे.  और म्हारै बाबू (पिताजी)  के डर से हम खेत पै जाकै दोपहर में छुपकर  ताश पत्ते वाला जुआ 5/7 जने मिलकै खेल्या करते थे. म्हारा खेत भी बिल्कुल रोड के किनारे पर  ही था पर गांव  से थोडा दूर. उन दिनों   गांव में हमसे   ज्यादा पढा लिखा भी कोई और  नही था,   इसलिये गांव में  सब हमारी बहुत ज्यादा  इज्जत भी करते  थे.   हर अच्छे बुरे काम में हमारी सलाह आखरी सलाह हुआ करती थी गांव  वालों के लिए.
                                         
उस समय में खेती बाडी करने वाले लोगों को जेठ वैशाख के गर्मी भरे दिनों में कोई काम नही होता था.  भारत खेती प्रधान देश था  (अब कौन सा है? भगवान जाने), खेत खाली रहते थे. इसी वजह से इस खाली समय का उपयोग शादी ब्याह जैसे जरूरी काम निपटाने में होता था या खाली बैठे समय काटने के लिये ताश-पत्ती चौपड वाले खेल खेलते हुये बीतता था.

नब्बे फ़ीसदी शादी विवाह के काम इसी समय में निपटाये जाते थे क्योंकि बारात के परिवहन का साधन उस समय ऊंट, घोडे,  बैलगाडी या रथ हुआ करते थे जो गर्मी में कोई काम नही होने की वजह से खाली मिल जाते थे. खेत भी खाली रहते थे जहां बारात के सोने के लिये रात में गांव से मांगकर लायी हुयी खटियाएं डाल दी जाती थी. दूल्हे और दूल्हन के लिये विशेष रूप से रथ का इंतजाम किया जाता था.

उन दिनों  हमारे गाँवों में सांग, भजनी और मंडली बहुत लोक प्रिय थे. मनोरंजन के उन दिनों में यही साधन हुआ करते थे.  कई लोगो का तो अब भी इनमें   नाम चलता है.  पर अब वो बात नही रही. ये सारी लोक संगीत की परंपराएं अब विलोप होने के कगार पर पहुंच चुकी हैं.

उन दिनों  मंडली में स्त्री पात्रों को  भी पुरूषों द्वारा निभाया जाता था.  पर हम जिस समय की बात कर रहे हैं उस समय स्त्री पात्र करने  के लिए कुछ मंडली वालों  ने स्त्री पात्रों के लिये  लड़कियां रखनी शुरू कर दी थी. इस आकर्षण के कारण  उन मंडलियों की काफी डिमांड रहती थी.  शादी ब्याह में बारात के साथ यह भी रुतबे के लिए जरुरी था. जो मंडली का खर्च नही उठा सकता था वो भजन मंडली ले जाता था. और ज्यादा  कुछ ना हो तो   ग्रामोफोन रिकार्ड बजाने वाले को ही ले जाता था.  आदरणीय सतीश सक्सेना व डा. दराल जैसे बुढे  बुजुर्ग लोगो ने ऐसे ही मौको पर "काली छींट को घाघरों निजारा मारै रे" खूब सूना होगा. जो चाबी वाले ग्रामोफ़ोन से बजाया जाता था और    इसका स्पीकर किसी ऊँचे से पेड़ पर लगा दिया जाता था.  यानी सब अपनी  अपनी हैसियत के हिसाब से बारात के मनोरंजन का इंतजाम रखते थे.  उन दिनों बारात भी 3 से 5  दिन तो ठहरती ही थी.  ज्यादा जिसकी जैसी श्रद्धा हो.

एक दिन, गर्मी भरी  दोपहर काटने के लिये   हम कुछ दोस्त लोग  खेत के  कुँए पर  बैठ कर  ताश पत्ते वाला जुआ  खेल रहे थे. तभी उधर से मंडली करने वाले जा रहे  थे. उसके साथ भी दो लड़कियां नाच गाने के लिए थी.    वो मंडली हमारे ही गांव  में जा रही थी.  गरमी ज्यादा थी.  उनका सामान ऊँटो पर लदा  था और साथ में  एक बैलों से जुता हुआ  रथ भी  था.  छाया और पानी का इंतजाम देखकर वो  आकर हमारे कुएं पर   रुक गये. हमने भी उनको  पानी वानी पिलवाया.  उनके ऊँटो और बैलों ने भी पानी पीया. वो लोग सुस्ताने लगे और हम अपने दोस्तों के साथ अपनी ताश की अधूरी छूटी बाजी पूरी करने में लग गये.

थोडी ही देर बाद  उस रथ में से दो सुंदर सी लड़कियां भी उतर के बाहर  आई और उन्होंने  हमारी तरफ़ एक अजीब सी नजर डालते हुये कुएं पर   पानी पीकर  वापस रथ में जा कर बैठ गई. हमारे ही  गांव में  रात को  उनका प्रोग्राम था. पहले ही बता चुके हैं कि हम गांव के अति गणमान्य और सबसे ज्यादा पढे लिखे थे सो  हम भी आमंत्रित थे उस जगह.

रात को हम सबसे अगली लाइन में बैठे थे  बिल्कुल स्टेज के  सामने.  और चुंकी लड़कियां मंडली में  आई थी नाचने के लिए,  तो आसपास के गाँवों के लोगो की जबरदस्त भीड़ टूट पडी   थी. कहीं पांव रखने की  भी जगह नही मिल पा रही  थी.  जहां तक मुझे याद पडता है यह नेकीराम की मंडली थी जिसे गांवों में नेकीडा की मंडली कह कर बुलाया जाता था और उस समय की यह  बहुत प्रसिद्ध मंडली  थी. शायद महिला पात्रों को महिलाएं ही निभायें, की शुरूआत इसने ही की थी.

जैसे ही वो नर्तकियां स्टेज पर आई , चारों तरफ़ सीटियाँ बजने लगी और लोग सिक्के नोट फेंकने लगे.  उस जमाने का इससे बढिया मनोरंजन नही था.  सक्सेना जी व  दराल साहब जैसे  पुराने लोग तो इसको याद कर कर के अभी भी  रोमांचित हो रहे होंगे और नए शायद महसूस कर पाये.  मतलब मंडली में  महिला नर्तकी का होना भी उस समय आश्चर्य था.  सो भीड़ ऐसी मंडलियों में जुटती ही थी और जनता से कमाई भी तगडी होती थी.
                                                                     
जैसे ही नर्तकी स्टेज पर आई उसने ताऊ की तरफ़ झुक कर सलाम पेश किया.  ताऊ बड़ा हैरान परेशान.  फ़िर ताऊ ने सोचा की दोपहर ये अपने कुए पर पानी पीने रुकी थी सो शायद पहचान गई है अपने को. इसलिये सलाम किया होगा.

अब सारंगिये ने जैसे ही सारंगी पर गज फेरा और नर्तकी  ने  घुंघरू बंधे बाएँ पाँव की जो ठोकर स्टेज पर मारी तो पब्लिक वाह वाह कर उठी.  सब झुमने  लग गये.  नर्तकी ने नृत्य के दो चार तोडे दिखाये और इतराते हुये गाना शुरू किया ...दगाबाज तोरी बतियाँ कह दूंगी ... हाय राम .. कह दूंगी .... दगाबाज.....   



उधर तबलची ने तबले पर तिताला मारा और नर्तकी लहरा गई.   ताऊ का कलेजा धक् धक करने लगा.... अरे ये क्या गजब कर रही है ? बड़ी दुष्ट है ये तो.   ताऊ ने समझा की कुएं पर दोपहर में इसने पानी पीते समय ताऊ को  ताश पती से जुआ खेलते  देख लिया था..... और अब  सबके  सामने  पोल खोल कर  इज्जत ख़राब करेगी.

ताऊ को  अपनी इज्जत बचाने का और कोई तरीका नही सूझा सो  डर के   मारे जल्दी से सौ रूपये का नोट नर्तकी को न्योछावर कर दिया....चलो...सौ का नोट गया कोई बात नही...इज्जत बची तो सब कुछ बच जायेगा.
ताऊ ने यह नोट बतौर राज को राज ही रहने देने के लिये दिया था. वर्ना उस जमाने में सौ का नोट.... अरे भाई कोई  किस्मत वाला ही उसके दर्शन कर पाता था.  पर ताऊ को इज्जत बडी प्यारी थी.

इधर  नर्तकी ने  सोचा कि   ताऊ को यह  गाना बहुत पसंद आया है और मालदार आसामी लग रहा है तो वह   और लहरा लहरा कर गाने लग गई... दगाबाज... तेरी...बतियाँ  कह दूंगी ! ताऊ ने समझा की अब तो  ये  सीधे सीधे ब्लेक्मेकिंग पर  उतर आई है और इज्जत का बचना जरूरी है सो एक एक करके  जेब के सारे नोट देने के बाद  आखिर में अंगुली में पहनी सोने की अंगूठी भी रिश्वत में दे आया.  पर ससुरी इज्जत को नही बचना था सो कुछ नोट और अंगूंठी से कैसे बचती? इज्जत इतनी सस्ती भी नही होती.

जब ताऊ ने इतने सारे नोट और सोने की अंगूठी भी दे दी तो नर्तकी ने समझा कि आज तो ताऊ बडा प्रसन्न हो गया है, माल पर  माल लुटाये जा रहा है. लगता है गाना बहुत ही पसंद आ गया है....उधर तबलची ने फ़िर तबले पर हाथ मारा और नर्तकी ने फ़िर से आलाप लेते हुये    झुमकर  गाना शुरू कर दिया ..दगाबाज तोरी...बतियाँ... कह दूंगी ! अब ताऊ क्या करे ?  घबरा गया बिचारा. कहीं हार्ट अटेक ना आ जाये....क्या करे अब? और उधर तो आलाप पूरे शबाब पर था ... बतिया. कह दूंगी... हाय राम ...कह दूंगी .... जी कह दूंगी ! 

इधर ताऊ का सारा ध्यान अपनी इज्जत बचाने पर टिका था....   ताऊ ने  सोचा की शायद इसकी नजर अब मेरे  गले में पडी  सोने की आखिरी बची चैन पर है...अंगूठी तो पहले ही दे चुका था...नोटों से भरी जेब भी खाली हो चुकी थी..... सो इज्जत बचाने की आखिरी कोशीश में  उठकर वो सोने की चैन भी उस को दे आया.

अब क्या था ? अब तो मंडली का  मास्टर जो हारमोनियम बजा रहा था.    वो भी जम गया वहीं पर और हारमोनियम पर झूम उठा.   तबलची ने  जो एक रपटता हुआ टुकडा फ़िर  बजाया तो पब्लिक  झूम उठी. चारों तरफ़ सीटियां ही सीटियां.... और नर्तकी  बेसुध होकर  गाये जा रही थी .. दगाबाज   तोरी बतियाँ कह दूंगी.. !   हाय..हाय..राम  बतियाँ ..कह दूंगी...दगाबाज..तोरी...  तबलची  उसे जरा भी सांस लेने का मौका नही देना चाहता था ...क्या पता ताऊ जैसा दिलदार आसामी फ़िर कब फ़ंसे? नर्तकी जी जान लगाकर   बेसुध सी  नाचे जा रही थी... पता नही अब वो  ताऊ से और क्या महले दुमहल्ले लेना चाहती थी? अब तो ताऊ के शरीर पर सिर्फ़  कोरे  लत्ते ही बचे थे.

इधर  ताऊ बिचारा परेशान हो गया और उधर जोर शोर से  बतियाँ कह देने की धमकी मिले जा रही थी.  ताऊ की  हालत सांप छछूंदर जैसी देखने लायक हो रही  थी. आखिर कब तक धमकियां बर्दाश्त करता?

ताऊ   खडा होकर  जोर से चिल्ला कर बोला  -- अरे इब के म्हारै प्राण लेगी ? जेब खाली कर दी , गात ( शरीर)  नंगा कर दिया ! बतियाँ बता दूंगी... बतियाँ बता दूंगी....  तो ले इब तू के बतावैगी ? मैं ही बता देता हूँ की हम कुँए पै बैठ कै जुआ खेल्या करते हैं ! इब तो हो गई तेरी मर्जी पूरी ?  

क्या है ताऊ का अस्तित्व और हकीकत?


श्री ज्ञानदत्त जी पांडे  जो कि ब्लागजगत के सम्माननिय और प्रथम पीढी के ब्लागरों में से एक हैं,  और जो अपनी नियमित और सारगर्भित पोस्ट्स के लिये जाने जाते हैं, ने शायद  सबसे पहले 3 dec. 2008 को  अपनी पोस्ट यह ताऊ कौन है  के द्वारा जिज्ञासा प्रकट की.



इसके पश्चात सभी ब्लागर्स में ताऊ शब्द एक पहेली बना रहा. मेरे ही शहर के सम्माननीय ब्लागर श्री दिलीप कवठेकर तो एक कदम और आगे जाते हुये हमारे शहर की उस पान की दूकान तक भी पहुंच गये जहां  "कृपया यहां ज्ञान ना बांटे, यहां सभी ज्ञानी हैं" की तख्ती लगी है. वहां पूछताछ करने पर पान वाले ने ताऊ के विषय में अनभिज्ञता ही जताई. यदि कोई ताऊ होता  तो वह बता पाता.

इस दरम्यान कुछ ब्लागर्स ने ताऊ से उसके आफ़िस/घर में मुलाकात का दावा किया पर अंतर सोहिल ने अपनी पोस्ट क्या हम असली ताऊ से मिले थे  लिख कर वापस उन दावों को शक के घेरे में ला दिया. 

ऐसा ही एक दावा डा. टी.सी. दराल ने अपनी पोस्ट    "ताऊगिरी का इस्तेमाल करते हुये तनाव हटायें"   में किया है कि वो ताऊ से एक बार मिले हैं लेकिन जिस ताऊ से मिले हैं उसकी शक्लो सूरत बिल्कुल जुदा थी. यानि बात यहां भी और उलझती नजर आ रही है.  

इसी पोस्ट पर की गई अपनी टिप्पणी में सुश्री   अल्पना वर्मा  ने निम्न टिप्पणी करते हुये मामला कुछ सुलझाने की कोशीश की है.

बहुत सही लिखा है आप ने.
यूँ तो बहुत से लोग आज तक नहीं जान पाए हैं कि आखिर ये ताऊ कौन है?
फिर भी काफी लोग अब उनकी सही पहचान जानते हैं.
शुरू में तो लोग अंदाज़ा लगाते थे कि शायद कोई महिला है ,
या कोई जाना माना ब्लोगर छद्म नाम से लिख रहा है.
लेकिन सभी के अनुमानों पर पानी फेरते हुए उन्होंने अपना एक मुकाम बना लिया है.
अब यहाँ एक सशक्त पहचान हैं.उनका साक्षात्कार का कार्यक्रम भी बहुतों से परिचय करने में सक्षम रहा.
ताऊ पहेली तो यादगार है ही !
उन्हें ढेरों शुभकामनाएँ कि ऐसे ही सब को हँसाते -गुदगुदाते रहें.

वैसे स्वयं  ताऊ ने  आज तक  किसी भी दावे का समर्थन या खंडन नही किया है.  जैसा कि सभी जानते हैं  ताऊ को फ़ेसबुक के फ़ंडों का अभी कोई विशेष ज्ञान नही है,  लेकिन आज अचानक फ़ेसबुक पर Like का चटका लगाते लगाते गलती से खुद के  मेसेज बाक्स पर तगडा चटका लग गया और निम्न मेसेज दिखा.


  • Conversation started March 27

    i have never seen such a human face

इस मेसेज को पढकर ताऊ विवश हो गया है कि भक्तों की जिज्ञासा का शमन करना अति अनिवार्य है वर्ना मुश्किलें और बढ सकती हैं.

वैसे  ताऊ का मुख व ताऊ  शब्द कौन से तत्व और कौन सी धातु से बना है? तकनीकी रूप से  यह तो शब्दों का सफ़र वाले श्री  अजित बडनेरकर ही बता सकते हैं या सिर्फ़ ताऊ ही, क्योंकि इस  शब्द की  पौराणिक कहानी कोई नही जानता. यह शब्द आज तक रहस्य ही बना हुआ है.

श्री राबिन दत्ता साहब के मेसेज द्वारा अभिव्यक्त जिज्ञासा  का जवाब  फ़ेसबुक पर देने की बजाये यहां ब्लाग पर देना उचित जान पड रहा है.   आशा है ताऊ के बारे में फ़ैली  सभी भ्रांतियां और कल्पनाएं दूर हो सकेंगी.

जहां तक ताऊ की उत्पत्ति का सवाल है यह त्रेता युग की   रामायण कालीन बात है. जब माता सीता का अपहरण दादा लंकेश्वर ने कर लिया था और उन्हें लंका की अशोक वाटिका में सख्त  पहरे में रखा गया था. पहरेदारों में अनेकों राक्षस/राक्षसनियां ऐसे भी थे जो माता सीता के प्रति सहानुभुति व स्नेह  रखते थे.  और उनका हर प्रकार से मनोबल बढाकर  ध्यान रखते थे.

सेवक/सेविकाओं द्वारा लाख यत्न किये जाने पर भी माता सीता हमेशा  उदास व गुमशुम सी प्रभु श्रीराम की याद में खोयी रहती थी. ऐसे में वहां एक काले मुंह का बंदर फ़ल फ़ूल खाने  आया करता था. वो तरह तरह की आवाजे निकालता और अजीब सी हरकते करता था. बंदर का यह नित्य का कार्य था पर एक दिन उस बंदर की कलाबाजियां देखकर माता सीता के चेहरे पर एक मुस्कान सी दौड गयी. सभी सेवक यह देखकर आश्चर्यचकित रह गये.

बंदर का तो यह नित्य कर्म था, जैसे ही बंदर आता, माता सीता सब वेदनाएं भूलकर उसकी कारगुजारियां देखती रहती,  कभी मुस्करा उठती. धीरे धीरे उस बंदर से उन्हें पुत्रवत स्नेह हो गया. वह बंदर उनके आसपास ही रहता और दोनों में अक्सर बात चीत होती रहती.

जब हनुमान जी सीता माता की खोज में उस क्षेत्र में भटक रहे थे तब इसी काले मुंह के बंदर ने अपनी सांकेतिक भाषा में उन्हें माता सीता के अशोक वाटिका में होने की सूचना दी थी वर्ना इतने राक्षसों की पहरेदारी में  हनुमान जी का वहां पहुंचना असंभव ही था.

समय बीतने के साथ राम रावण युद्ध समाप्त हुआ. भगवान श्रीराम के साथ  माता सीता पुष्पक विमान पर सवार होकर अयोध्या प्रस्थान की तैयारी कर रही थी. माता सीता ने उनकी सेवा में रहे सभी सेवक सेविकाओं को उनकी इच्छा के मुताबिक वरदान दिये. लेकिन उस समय यह काले मुंह का बंदर कहीं दिखाई नही दे रहा था. माता सीता उस बंदर से मिले बिना जाना नही चाहती थी.

भगवान श्रीराम अयोध्या गमन को उतावले हो रहे थे. उन्होनें माता सीता से पूछा कि उस बंदर में ऐसा क्या है जो तुम फ़ालतू में विलंब कर रही हो? माता सीता ने बताया कि नजरबंदी की अवधि में एक वही बंदर था जो मुझे हंसाया करता था वर्ना मैं तो हंसना ही भूल चुकी थी. आप भी मिलोगे तो वो आपको भी हंसा देगा, उसकी शक्ल ही ऐसी है.

भगवान राम भी उस से मिलने को आतुर होगये.  उस बंदर की खोज करायी गई  तो मालूम हुआ कि माता सीता के अशोक वाटिका से जाने की बात पर वह उदास होकर एक कंदरा में पडा है. उसे समझा बुझाकर अशोक वाटिका में लाया गया. बंदर की बातों से भगवान श्रीराम भी चौदह वर्षों  मे जितना नही हंसे थे उससे भी ज्यादा हंसे और युद्ध की सारी थकान भूल गये. बंदर को अपने साथ ले जाने के लिये  उन्होंने विभीषण को आग्रह किया. विभिषण को भला क्या आपत्ति हो सकती थी? यह काले मुंह का बंदर भी उनके साथ पुष्पक विमान में सवार हो गया.

हवाई यात्रा के दौरान  रास्ते में वह सबका मनोरंजन करता रहा. अचानक माता सीता को ख्याल आया कि यह जंगल का जीव है और मैं इसे अपने स्वार्थ वश राजमहल ले जा रही हूं. यह इसके साथ अन्याय होगा. उन्होंने बंदर से पूछा कि क्या वो बंदर से मनुष्य बनना चाहेगा? बंदर ने चूहिया वाली कहानी सुन रखी थी सो विनम्रता पूर्वक बंदर ही बने रहने का कहा.

अब तक विमान अयोध्या के पहले आज के शेखावाटी व  हरियाणा क्षेत्र के ऊपर से गुजर रहा था. अचानक माता सीता के आदेश पर विमान को वहां जंगल में उतार दिया गया. विमान के उतरते समय उस बंदर ने कुछ अजीब सी हरकत और आवाजें की जिससे माता सीता खुलकर हंस पडी, हंसते हंसते उनके पेट में बल पडने लगे, किसी तरह अपनी हंसी काबू में करते हुये वो बंदर से कहना चाह रही थी कि हे तात....और हंसी आने के कारण उनके मुंह से निकला हे ता..ऊऊऊ.... बंदर ने जब अपना ताऊ नाम सुना तो अति प्रसन्न हो गया और माता के चरण स्पर्श करते हुये बोला - माता आपने आज मेरा सही नामकरण कर दिया.

माता सीता ने उसको आशीर्वाद देते हुये कहा - हे ताऊ, तुमने मेरे दुखों के दिनों में हंसा हंसाकर मुझे जीवन दान दिया है. मैं तुम्हारी आभारी हूं और बदले में तुम्हें ऐसा कुछ देना चाहती हूं जिससे  युगों तक तुमको दुनियां याद रखेगी. बंदर बोला - माते,  जो आपकी इच्छा हो मेरे लिये वही आज्ञा है.

माता सीता ने कहा - हे वानर, अब से तुम  ताऊ नाम से पुकारे जावोगे, आज से   इस सुरम्य शेखावाटी व  हरियाणा प्रदेश का समस्त क्षेत्र मैं  तुम्हारे लिये आरक्षित करवा रही हूं, अब से इस प्रदेश पर तुम्हारा यानि ताऊओं का ही राज रहेगा.  अब से इस प्रदेश में घर घर में ताऊ पैदा होंगे जो दुखी इंसानों के चेहरे पर खुशियां बिखरने का काम करेंगे. घर में छोटे बडे सभी उनको तात की जगह ताऊ से संबोधित करते हुये  आदर और सम्मान देंगे. तुम्हें और तुम्हारी ताऊ प्रजाति को कभी  भी दुख नही व्याप्त होगा, तुम अनंतकाल तक  इस धरा पर सुखपूर्वक आनंद लेते रहोगे.

यह कहते हुये माता सीता ने बंदर ताऊ के सर पर स्नेह वश हाथ फ़िराया, हाथ फ़िराते ही बंदर का शरीर तो मनुष्य का हो गया और मुंह उस काले बंदर जैसा ही रहा क्योंकि बंदर पूर्ण रूप से मनुष्य नही बनना चाहता था.

प्रभु श्रीराम ने बंदर ताऊ पर सीता जी का इतना स्नेह देखा तो उन्होनें कृपा पूर्वक बंदर ताऊ को सम्मान स्वरूप एक पगडी (साफ़ा) अपने हाथों से  पहनायी साथ ही एक  लठ्ठ भी भेंट में देते हुये कहा -   जब तक यह संसार रहेगा ताऊ,  तब तक तेरा नाम रहेगा. इस लठ्ठ से अपनी व दीन दुखियों की रक्षा करना. कलियुग में घोर गमों का दौर आयेगा जब इंसान हंसना ही भूल जायेगा. तब  भी तुम  सारे जगत को हंसाते रहना, इससे बडा पुण्य नही है. तुमने देवी सीता को इतने गहरे गम में भी हंसाया है तो बाकी लोग तो तुम्हारे नाम और शक्ल देखकर ही खुशी पूर्वक प्रसन्न होंगे. तुम्हारे नाम और दर्शन से,  कलियुग के प्रभाव से संतप्त और दुखी मनुष्य,  हर्ष का अनुभव करेंगें. यह मेरा वरदान है जो मिथ्या नही हो सकता.

इतना सब होने के बाद हनुमान जी क्यों पीछे रहते सो उन्होंने  ताऊ को गले लगाते हुये कहा - हे भाई, तुमने   तात से ताऊ बनकर हमारी जाति का गौरव बढाया है. मैं तुम्हें वरदान देता हूं कि जो भी दुखी सुखी तुम्हारी शरण में आयेगा मैं उसके सारे कष्ट दूर करूंगा. और कलियुग मे जब ब्लागिंग शुरू होगी तब तुम्हारे ब्लाग पर जो भक्त आकर श्रर्द्धा पूर्वक तुम्हें टिप्पणी रूपी फ़ल फ़ूल अर्पण करेगा उसके समस्त कष्ट विकार मेरे द्वारा दूर किये जायेंगे.

इसके बाद पुष्पक विमान उड चला और तभी से ताऊ ताऊत्व  के प्रचार प्रसार  में लगा हुआ है.

(आगे पढिये)


अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन के छठे सत्र में पुस्तक विमोचन एवम बाबाश्री दर्शन



अंतर्राष्ट्रीय  ब्लागर सम्मेलन पर चतुर्थ पोस्ट

अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन पर पंचम पोस्ट



अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर सम्मेलन के छठे  सत्र में आपका स्वागत है. आज के सत्र में   ताऊ सद साहित्य प्रकाशन  की आठ   पुस्तकों का विमोचन किया जायेगा. तदुपरांत समानुपाति भाव से   आपका कल्याण करने हेतु आपको  यथा शक्ति ज्यादा से ज्यादा चढावा बाबा जी के श्री चरणों में अर्पित करने का मौका दिया जायेगा. चढावे के समानुपाति भाव से   आप सभी भक्तजनों को बाबाजी से आशीर्वाद लेने का अवसर भी  दिया जायेगा.  

निष्णांत ब्लागर्स  द्वारा लिखित नई पुस्तकों का मूल्य एवम संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है :-

1. ब्लाग टिप्पणी उपनिषद : महाराज खुरपेचिया विरचित इस ग्रंथ को बहुत ही सहज और सरल भाषा में लिखा गया है. टिप्पणी तंत्र की कोई ऐसी विधा नही है जो इस अनुपम और परम पावन ग्रंथ में ना लिखी गई हो. यों तो खुरपेंचिया महाराज द्वारा विरचित अनेकों ग्रंथों का विभिन्न विद्वानों ने अपने अपने विवेक अनुसार टीका लिखी है लेकिन यह पुस्तक सार रूप में लिखी गई है इसलिये इसका नाम भी ब्लाग टिप्पणी उपनिषद रखा गया है. टिप्पणियों के मूल्यांकन से लेकर उनके प्रकार व धाराओं पर प्रयाप्त खोज बीन के बाद यह ग्रंथ इस रूप में आपके सामने है. जो कोई भक्त सुबह शाम इस परम पावन उपनिषद का सुबह शाम पठन पाठन और श्रवण मनन करेगा उसकी समस्त टिप्पणी विषयक एवम सांसारिक बाधायें दूर होने की ग्यारंटी दी जाती है. सीमित मात्रा में उपलब्ध, शीघ्रता पूर्वक अपना आर्डर बुक करें. 


लेखिका : डा. श्रीमती अजीत गुप्ता
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2. सफ़ल चर्चाकार कैसे बनें? : खुरपेचिया महाराज ने चर्चाकार कैसे बनें, इस विषय  पर कहीं भी विस्तृत रोशनी नही डाली है पर विद्वान लेखिका ने अपने अंतर्ज्ञान से चर्चाकार विषय की बारीकियां खोजी और फ़लस्वरूप यह अनमोल ग्रंथ आपके हाथ में है. सफ़ल चर्चाकार बनने के क्या फ़ायदे हैं? कैसे बने सफ़ल चर्चाकार? यह सब गूढ बातें इस ग्रंथ की विषय वस्तु हैं.  ब्लाग जगत में आज तक जितने भी सफ़ल चर्चाकार हुये हैं उन सबका यह अति परम पावन और पूज्य ग्रंथ है. सभी चर्चाकार सुबह शाम इस ग्रंथ का पठन पाठन और पूजा आरती करते हैं, उसी के बदौलत आज वे चर्चाकार के रूप में ब्लागजगत में स्थापित होकर नाम और दाम कमा रहे हैं. आप भी यह मौका मत चूकिये, सीमित पुस्तके हीं शेष हैं, शीघ्रतापूर्वक अपना आर्डर बुक करवाएं. 


लेखिका : डा. संध्या शर्मा
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3.प्रकाशक से पुस्तक छपवाने के 243 अचूक नुस्खे : यह इस पुस्तक की द्वितीय आवृति है, पहले यह पुस्तक जब छपी थी तब यह जन सामान्य को उपलब्ध नही हो सकी थी. क्योंकि प्रकाशकों के कार्टेल ने इस पुस्तक की सभी कापियां बाजार से खरीदवा कर उन्हें भूमिगत कर दिया  था. इस पुस्तक में विद्वान लेखिका ने सभी लेखकों को सफ़लता पूर्वक  यह समझाने की कोशीश की है कि लेखकगण अपने आपको प्रकाशकों के शोषण से कैसे बचाएं? अपनी रायल्टी की उचित राशि किस तरीके से प्राप्त करें? किन्हीं भी विवादों की स्थिति में कानून का सहारा कैसे लें? प्रकाशकों की मनमानी से कैसे बचें? शीघ्रता करें, यह पुस्तक हमने यों तो यथेष्ठ मात्रा में छपावायी है पर हमें लगता है कि प्रकाशक गण अपने निज धर्म  का पालन करते हुये पूर्नुवासार इस पुस्तक को गायब करवा सकते हैं. तुरंत आर्डर करके इस पुस्तक को अभी प्राप्त करें, वैसे हम भी प्रकाशक हैं और अपने धर्म का पालन करना शाश्त्र सम्मत है.   


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4. श्री ब्लाग - भारत पुराण : यह पुस्तक अपने आप में एक अनुपम ग्रंथ हैं. खुरपेंचिया महाराज विरचित सूत्रों को सुलझाते हुये विद्वान लेखिका ने इस पुराण को बहुत ही सहज और जन भाषा में लिखा है. यह पुराण पाषानयुगीन ब्लाग यात्रा से आधुनिककालीन ब्लाग यात्रा  तक का एक अदभुत समन्वय करते हुये  आपको सीधे शिखर की ऊंचाईयों का बोध करवाता है.  आपने अभी तक तो महाराज खुरपेचिया का नाम ही सुना होगा. इस श्री ब्लागपुराण में आप उनकी आत्मा से सीधे संवाद स्थापित कर सकते हैं. ब्लाग पुराण का एक एक अध्याय कल्याणमय है. इस पुराण के पठन पाठन और मनन श्रवण से समस्त भय विकार पीडा दूर होकर ब्लागोन्नति के शिखर पर पहुंचने की पक्की ग्यारंटी दी जाती है.  शीघ्रता करें वर्ना इस परम पावन ग्रंथ से आपको वंचित होना पड सकता है. मात्र कुछ ही प्रतियां उपलब्ध हैं.


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5. ब्लागर भविष्य चिंतामणी : अपने आपमें अदभुत और परम  मनोहारी ग्रंथ का नाम है "ब्लागर भविष्य चिंतामणी". ब्लाग संसार की आने वाली तमाम परेशानियों का हल मय उपाय के बताया गया है. आपको इस क्षेत्र की ऐसी अनोखी पुस्तक कहीं नही मिलेगी. सभी को भविष्य जानने की जिज्ञासा होती है. ब्लाग का भविष्य क्या था? क्या है? और क्या होगा? यह तीनों कालों की जिज्ञासा शांत करने वाला अदभुत ग्रंथ है. इस पुस्तक की एक और विशेषता है कि यह सिर्फ़ तीनों कालों की भविष्यवाणी ही नही करती बल्कि उनके सफ़ल  उपाय इलाज टोने टोटके सहित बताती है. विद्वान लेखिका ने   पुस्तक में समस्त ब्लाग पूजा मंत्रों का सार व उपाय बताते हुये इसे बहुत ही सरल गम्य बना दिया है. आज ही तुरंत आर्डर करें, एक बार चूके कि फ़िर मौका नहीं मिलेगा.


लेखिका : प्रोफ़ेसर अंशुमाला
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6. ब्लाग पीडा शमन गुटिका : यह  एक बहुत ही  अनुपम और लोक कल्याणकारी ग्रंथ है जिसे आपको अपने घर में अवश्य स्थापित करना चाहिये. हर प्रकार की पीडा भय ताप का निवारण करने वाला एक अदभुत ग्रंथ, जो परम विद्वान लेखिका ने लोक परोपकारी भावना से लिखकर सहज सुलभ बना दिया है. महाराज खुरपेचिया के गूढ श्लोकों का सटीक भावार्थ करके यह अदभुत ग्रंथ लिखा गया है. किसी भी तरह ब्लागिक व सांसारिक भय ताप पीडा अनुभव करने पर इस ग्रंथ का केवल पठन पाठन ही मुक्ति कारक है.  विशेष परिस्थितियों मे जरूरत अनुसार झाड फ़ूंक के समस्त मंत्र और उनके तरीके भी बता दिये हैं. ऐसा पहली बार हुआ है कि इतने गूढ ज्ञान का भेद जनता के कल्याणार्थ खोल दिया गया है बिना किसी निजी स्वार्थ के. इस परम मनोहारी ग्रंथ को खरीदने के लिये तुरंत आर्डर करें, सिर्फ़ गिनी चुनी प्रतियां शेष हैं.


लेखिका : डा. हरकीरत ’हीर’
कीमत : 4,155/- मात्र
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7. इदं न त्वम ब्लागर : हे ब्लागर, ये तुम  नही हो...क्यों बेकार की चिंता करते हो? तुम्हारे आने से पहले बःई यह ब्लाग संसार यहीं था और तुम्हारे जाने के बाद भी यहीं रहेगा. बेकार की चिंता ना कर, टिप्पणी का भय लालच मोह मद छोड...और ब्लाग पोस्ट लिखता रह, तेरा कल्याण होगा. यह इस पुस्तक का एक वाक्यांश भर है. इस पुस्तक को ब्लाग संसार में महागीता की उपाधि प्राप्त है. सभी ब्लागरों को यह अनुपम ग्रंथ परम वंदनीय है. इस ग्रंथ के घर में होने मात्र से समस्त पीडा दूर होती है.  जो भी इस ग्रंथ का पठन पाठन करेगा उसकी समस्त पीडा विकार, भय ताप दूर होने की ग्यारंटी दी जाती है. बस कुछ ही प्रतियां बची हैं, अभी की अभी आर्डर करें जिससे पछताना ना पडे.

लेखिका : प्रोफ़ेसर अंजू (अनु) चौधरी
कीमत : 3,955/- मात्र
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8. ब्लागिंग में छायावाद का प्रभाव : यह एक बहुत ही गहन खोज बीन के बाद लिखा गया ग्रंथ है. ब्लागिंग में छायावाद का प्रभाव कब आया? क्यूं आया? और कब तक रहेगा? इन समस्त विषयों पर विद्वान लेखिका ने गहन खोजबीन के बाद यह पुस्तक लिखी है. पुस्तक अपने आपमें छायावाद पर एक डाक्यूमैंट है जिसे आप अवश्य पढना चाहेंगे. ब्लागिंग में छायावाद के प्रभाव से मलिनता छा गई है, ब्लाग संसार के  सभी वाशिंदे निष्प्राण से हो गये हैं, क्या यह छायावाद का प्रभाव है? कैसे दूर होगा छायावाद का प्रभाव? किसने फ़ैलाया ब्लागजगत में यह छायावाद? क्या छायावादी युग से निकलकर ब्लाग संसार अब भक्तिकाल की  ओर बढेगा या रीतिकाल की ओर? अति महत्व पूर्ण और पठनीय ग्रंथ. इस ग्रंथ के पठन पाठन और मनन श्रवण से आपकी समस्त इच्छाओं की पुर्ति की ग्यारंटी दी जाती है. पुस्तक खरीदने हेतु तुरंत आर्डर करें क्योंकि इस पुस्तक की अधिकतम प्रतियां  विश्वविद्यालयों और स्कूल कालेजों ने अग्रिम बुक करवा ली हैं. हाथ आया मौका जाने ना दें वर्ना पछताना पडेगा. 


लेखिका : डा. वंदना गुप्ता
कीमत : 3,444/- मात्र
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आज की सभी किताबों का संपूर्ण सेट एक साथ खरीदने वाले भक्तों को बाबाश्री विशेष दर्शन देकर आने वाली पूर्णमासी पर  एक विशेष साधना करवायेंगे जिससे आपके समस्त कष्ट दूर होकर धन धान्य की विशेष प्राप्ति होने की ग्यारंटी दी जाती है.

 ॐ हास्यम हास्यम हास्यम.



ताऊ सद साहित्य की पुस्तकें खरीदने के पहले यह डिस्कलेमर अवश्य पढ लें.

डिस्क्लेमर : हमारी कोई ब्रांच नही है.
पुस्तके संपूर्ण अग्रिम पर ही भेजी जाती हैं.
इन पुस्तकों को किसी भी रुप मे कापी करने की सख्त मनाही है.
बिका हुआ माल किसी भी कीमत पर वापस नही होगा.
इन पुस्तकों में दिये गये फ़ार्मुले अपनी रिस्क पर ट्राई करें,  प्रकाशक या लेखक इसके लिये जिम्मेदार नही होंगे.

यह पोस्ट शुद्ध मनोरंजन के लिये लिखी गई है. कोई भी सज्जन दिल-दिमाग, कलेजे-जिगर पर ना ले  क्योंकि आजकल लू चल रही है. ताऊ प्रकाशन की पुस्तकों  को  पढने की वजह से कोई बीमार पड गया तो  हमारी किसी भी तरह की कॊई जिम्मेदारी नही होगी. 

ह पोस्ट किसी को किसी भी रूप मे छोटा या बडा  दिखाने के लिये नही लिखी गई है सिर्फ़ मनोरंजन,  मनोरंजन और सिर्फ़ मनोरंजन के लिये लिखी गई है. फ़िर भी किसी को ऐतराज हो तो उसका नाम हटा दिया जायेगा.

डा. संगीता स्वरूप (गीत) की पुस्तक "ब्लाग टिप्पणी प्रबोधिनी" की समालोचना


मुझे नितांत खुशी हो रही है कि  ताऊ सद साहित्य प्रकाशन की पुस्तक ब्लाग टिप्पणी प्रबोधिनी की मुझे  समीक्षा करने को कहा गया है.  

समीक्षा से पहले बताना चाहुंगा कि पुस्तक की प्रिंटिंग और पेपर बहुत ही उच्च क्वालिटी का है, जिल्द और मुख पृष्ठ बहुत आकर्षक और मनमोहक है. पुस्तक की साज सज्जा के अलावा  इस पुस्तक का कंटेंट बहुत ही उच्च गुणवता वाला है. जो इसे पठनीय व संग्रहणीय बनाता है.



विद्वान लेखिका डा. संगीता स्वरूप (गीत) ने ब्लाग टिप्पणी प्रबोधिनी पुस्तक को लिखने से पहले शायद महाभारत कालीन महाराज खुरपेंचिया  रचित सूत्रों का गहन अध्ययन किया है और वर्तमान कालखंड की  ब्लाग टिप्पणियों का भी यथेष्ठ अध्ययन किया है. उनके लेखन से साफ़ झलकता है कि यह ग्रंथ  उन्होंने दिल की गहराईयों से लिखा है.

विद्वान लेखिका एक जगह लिखती हैं कि टिप्पणियां तो बेटी की तरह होती  हैं जिन्हें एक बार घर से विदा कर दिया तो वो हमेशा के लिये पराई हो जाती हैं. विवाह के समय विदा की हुई बेटी से तुलना बहुत यथार्थ परक लगी. सही भी है कि टिप्पणियां भी कभी लौट कर नही आती.

आगे लेखिका ने लिखा है कि जिस तरह बेटी का विवाह करते समय योग्य वर और घर तलाशा जाता है उसी तरह टिप्पणी भी योग्य पोस्ट पर करनी चाहिये, यानि जैसी पोस्ट हो वैसी ही टिप्पणी करनी चाहिये. जैसे लडकी ज्यादा पढी लिखी है तो उसके समकक्ष वर ढूंढा जाता है किसी अयोग्य के गले उसे नहीं बांधा जाता. उसी प्रकार टिप्पणी दान भी यथेष्ठ और योग्य पोस्ट के अनुरूप ही करना चाहिये. यदि आप किसी सांसारिकता में फ़ंसकर अपने निजी जान पहचान वाले ब्लाग पर झूंठी प्रसंशा करने वाली टिप्पणी करेंगे तो पाप के भागी बन सकते हैं, और इस पाप से मुक्ति पाने के लिये बाबाश्री  ताऊ महाराज के आश्रम जाना पड सकता है. अत: इस प्रकार अयोग्य पोस्ट को महंगी वाली  टिप्पणी दान नहीं करें.

आगे विद्वान लेखिका ने लिखा है कि जैसे सामाजिक व्यवहार में कन्यादान का रूपया वापस किया जाता है उसी प्रकार टिप्पणी दान भी आवश्यक रूप से किया जाना चाहिये. जैसे यदि कोई आपके यहां सामाजिक रूप से शादी विवाह में 1100/- रूपये का लिफ़ाफ़ा देता है तो आपको भी कम से कम 1100/- रूपये या अधिक लौटाना चाहिये.

यहां पाठक टिप्पणी दान और कन्यादान के बीच आकर उलझन सी महसूस करता है. पाठक को लगता है कि यहां लेखिका विषय से कुछ हट गयी हैं. पर यही इस पुस्तक का कमाल है कि इसके बाद के बीस पेज पढते ही आप लेखिका की भूरी भूरी प्रसंशा करने लगते हैं. गजब का ट्विस्ट है इस जगह पर,   जो कोई मंजा हुआ लेखक ही दे सकता है.

लेखिका ने यही से आगे बढते हुये टिप्पणी दान का महत्व और लोक व्यवहार का समन्वय बैठाया है और टिप्पणी के प्रकारों की विस्तारित  चर्चा की है. जैसे टिप्पणियों के प्रकार से उसके लेखक को पकडना. यानि टिप्पणी पढकर ही आप समझ सकते हैं कि यह टिप्पणी यानि लिफ़ाफ़ा किसके यहां से आया. 

लिफ़ाफ़ों के मुख्य प्रकार कितने हैं?  टिप्पणी के शब्दों से लिफ़ाफ़े के अंदर कितने रूपये के जज्बात रखे हैं?  यह भी बताया गया है. यानि आपकी पोस्ट पर आई टिप्पणी देने वाले ने कितने रूपये लौटाये हैं यह जानने के लिये लेखिका ने विस्तारित टिप्पणी मूल्य का भी आकलन किया है. उनमें कुछ को नीचे लिख रहा हूं बाकी आप पुस्तक पढकर विस्तारित रूप से जान ही लेंगे.

बहुत सुंदर. ( 11रूपये  )
अति सुंदर. (21 रूपये)
जय हो. (5 रूपये)
अति सशक्त. (10 रूपये)
दिल को छू गई आपकी रचना (15रूपये
बहुत मार्मिक. (21रूपये)
अच्छी रचना. (5 रूपये)
Nice (5 रूपये)
Like in  Face Book style - ( 0.20 पैसे यानि 1 रूपये की पांच )
बहुत बढिया. (10 रूपये)
सार्थक पोस्ट (5 रूपये)
बधाई (10 रूपये)
मार्मिक रचना. (11 रूपये)
सुंदर लगी रचना. (15 रूपये)
वाह वाह. (5 रूपये)
वाह वाह क्या बात है. (10 रूपये)
गंभीर रचना. (5 रूपये)
  
कुल मिलाकर एक टिप्पणी लिफ़ाफ़े का मूल्य 0.20  पैसे  से शुरू होकर 5100 रूपये तक का हो सकता है. ऊपर तो 0.20 पैसे  से लेकर  21 रूपये तक की कीमत वाली टिप्पणियों का ही सिर्फ़ नमूने के तौर पर जिक्र किया गया है.  

पुस्तक की एक विशेषता है जो बताती  है कि टिप्पणी लिफ़ाफ़े के शब्दों का मूल्य कैसे निर्धारित करें?   टिप्पणी के  अंदाज से  पता  लगाना  कि आपकी पोस्ट किस तरह पढी गयी? या नही पढी गयी सिर्फ़ टिप्पणी दान का  व्यवहार निभाया गया? इसके अलावा विस्तारित रूप से पढने के लिये पुस्तक खरीदें.

अंत में यही कहूंगा कि  पुस्तक अपने आप में विषय की अनुपम और अनोखी है. ब्लाग जीवन की व्यवहारिकता समझने हेतु पुस्तक पढना अति अनिवार्य है. 

 पुस्तक का मूल्य Rs. 3,955/- रखा गया है जो पुस्तक की गुणवत्ता  और उपयोग  के सामने कम ही पडता है. पुस्तक की लोकप्रियता का इसी से अंदाज लगाया जा सकता है कि  ब्लाग टिप्पणी प्रबोधिनी का प्रथम संस्करण  आऊट आफ़ स्टाक है और द्वितीय संस्करण की प्रिंटिंग चालू है जो शीघ्र ही बाजार में प्राप्य होगा.

  अंतर्राष्ट्रीय समालोचक
-प्रोफ़ेसर ताऊ रामपुरिया लठ्ठ वाले