ताऊ पहले लूटमार, चोरी उठाईगिरी करके अपना काम चलाता था. फ़िर कुछ समय
बाद डकैतियां डालने लगा. फ़िर एक ऐसा दौर आया कि उसको डाकूगिरी से सरेंडर
करना पडा क्योंकि एक अच्छी डील मिल गयी थी.
सरेंडर के बाद खुली जेल में रहा जहां कुछ ब्लागरों से दोस्ती हो गई. जेल में रहने के दौरान ही वो ब्लागिंग के गुर सीख चुका था. सजा काटने के बाद उसने धमाकेदार ब्लागरी शुरू कर दी. जैसे कोई नशे का आदी हो जाता है उसी तरह ताऊ भी ब्लागरी का आदी हो गया.
ताऊ की पत्नी यानि ताई बिना पढी लिखी महिला थी सो कुछ दिन तो वो समझती रही कि ये मशीन (कंप्यूटर) पर कोई बहुत बडा काम करता है. कुछ दिन तो यह सब चला लेकिन आखिर कब तक चलता? ब्लागरी से घर खर्चा थोडी चलने वाला था? एक खेत था ताऊ के पास वो भी बिना जुता पडा था. आखिर ताई को समझ आगया कि माजरा क्या है? उसने लठ्ठ मार मार कर ताऊ की मशीन यानि कंप्य़ूटर तोड डाला...और गुस्से गुस्से में दो चार लठ्ठ ताऊ को भी चिपका दिये. और तबसे ताऊ अपने खेत में मेहनत मजदूरी करके परिवार का पेट पालने लगा.
जेठ की भरी दोपहर का समय. ब्लागरी के नशे से मुक्त होकर ताऊ अपने खेत मे हल के बाद मेज लगा रहा था. और मन ही मन परमात्मा को गालियां भी देता जा रहा था. उसकी परमात्मा से शिकायत यह थी कि मैं अच्छी भली डकैतियां डालता था...मुझसे सरेंडर की गलती क्यूं करवा दी? आज सारे बडे लोग घूस रिश्वत, घोटाले कर करके सफ़ेदपोश बने हुये हैं और मुझे इस लू वाली गर्म हवा में मेहनत करनी पड रही है....तेरा बुरा हो परमात्मा.....
कुछ देर बाद ताई कलेवा लेकर आगयी और ताऊ छाछ और मुक्का प्याज के साथ रोट तोडने पेड की छांव में बैठ गया. कुछ देर बाद हकीम समीरलाल वहां आये और ताऊ को रामराम करके पेड की छांव में सुस्ताने लगे. दोनों में बातचीत होने लगी.
हकीम समीरलाल घुटे हुये खिलाडी थे और ताऊ ठहरा बेवकूफ़ किस्म का इंसान...यदि बेवकूफ़ ना होता तो इतना बडा डकैत होने के बाद भी हल क्यों जोत रहा होता? समझदार होता तो चुनाव लड लेता...कहीं सफ़ेदपोश डकैती के काम कर रहा होता. वैसे तो चोरी डकैती के जितने भी धंधे ताऊ ने किये वो सब बहुत ही इमानदारी से किये पर ताऊ के सारे धंधे सिर्फ़ और सिर्फ़ लोभी होने की वजह से फ़ेल हुये थे....ताऊ का यही दुर्गुण था कि उसको कोई कुछ भी स्कीम समझा दे वो अपने लोभी स्वभाव की वजह से तुरंत तैयार हो जाता था. ताऊ के जैसे लोभी लालची आदमी की यही गति होनी थी.
ताऊ का यह खेत अब महानगर की हद में आने वाला था. हकीम साहब जैसे लोग भविष्य दृष्टा होते हैं. इसीलिये वो ताऊ से यह खेत खरीदना चाहते थे. ताऊ तो यह कभी का बेच देता पर ताई थोडी समझदार महिला थी सो पुरखों की यह निशानी बाल बच्चे पालने के काम आ रही थी.
हकीम साहब ने मीठी मीठी बातें शुरू करके ताऊ को यह समझा दिया कि ताऊ यदि खेती ही करनी है तो इस एक खेत को बेचकर जो रकम मिले उसे लेकर तुम दक्षिण पश्चिम दिशा में चले जावो उधर एक ब्लाग गढ नाम का गांव आयेगा, वहां ब्लाग गढ में पानी वाली और ऊपजाऊ जमीन बहुत सस्ती मिल जायेगी.
ताऊ ने पूछा - हकीम साहब क्यों मुझे बेवकूफ़ बनाने पर तुले हो? आजकल जमीने कहां सस्ती रह गयी हैं? सारी जमीनें तो पूंजीपतियों, नेताओं, अफ़सरो और दामादों ने हथिया ली हैं....जावो किसी और को बेवकूफ़ बनाओ.
हकीम साहब बोले- ताऊ तुम समझते नही हो. ब्लाग गढ के लोग सिर्फ़ ब्लागिंग करते हैं या ताश पत्ती खेलते हैं इसके अलावा कुछ नही करते. खेती बाडी मेहनत का काम है जो ब्लागर्स कर नही सकते, सो घर खर्चा चलाने के लिये वो अपनी जमीने बेचते रहते हैं आप एक बार मेरी बात आजमा कर तो देखो.
ताऊ के खरपट दिमाग में हकीम साहब की यह बात गोली की तरह घर कर गयी क्योंकि ब्लागिंग के नफ़े नुक्सान उसे भलि भांति मालूम थे. ताई खेत बेचने के लिये राजी नही थी पर किसी तरह ताई को मनाकर, अपना खेत बेचकर, रकम खीसे में रखकर, हकीम साहब के बताये ब्लाग गढ गांव की तरफ़ ताऊ ने कूच कर दिया.
दो तीन दिन ताऊ भूखा प्यासा चलता रहा पर हकीम साहब द्वारा बताया गया ब्लाग गढ नही आया. ताऊ ने सोच लिया कि ऐसा कोई गांव हो ही नही सकता. वापस लौटने का विचार कर ही रहा था कि सामने उसे एक गांव सा दिखलाई पडा. वो यह सोचकर उस तरफ़ बढ गया कि अब शाम होने में है आज की रात इस गांव में बिताकर कल सुबह वापस लौट जायेगा.
गांव की चौपाल पर सतीश सक्सेना, डा. टी. सी. दराल, खुशदीप सहगल, दीपक बाबा , सुज्ञ, गिरीश बिल्लोरे, अली सैयद, अरविंद मिश्र , अजय कुमार झा, जैसे अनेकों अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर चौपाल पर बैठे ताश पत्ती खेल रहे थे. एक तरफ़ राजीव तनेजा बैठे लोगों को शायरी सुना रहे थे. कई अपने आई-फ़ोन से ब्लागिंग कर रहे थे. ललित शर्मा अपनी यायावरी के किस्से सुना रहे थे. एक जगह एक लेपटोप पर सामुहिक रूप से ब्लागिंग हो रही थी. सब अपने में मस्त...कोई हुक्का गुडगुडा रहा था तो कोई चिलम.
इस तरह के अलमस्त लोगों को देखकर ताऊ चकित रह गया. उसने सोचा कि यह कोई ठगों का गांव तो नही है? कोई कुछ काम नही कर रहा, सब मटरगश्ती में लगे हैं जबकि यह समय तो खेतों में काम करने का होता है. ज्यादा डर इस बात से था कि ताऊ के खीसे (जेब) में अपने पुरखों की निशानी रहे खेत को बेचकर आई जमा पूंजी भी थी. ताऊ का मन किसी अनहोनी से धडकने लगा.
डरते डरते ताऊ ने उनसे रामराम की, अपना नाम बताया और उस ब्लाग गढ गांव का पता पूछा जहां पानी वाली जमीन बहुत सस्ती मिलती है.
पान का इक्का पत्ता फ़ेंकते हुये फ़क्कड से अंदाज में जवाब दिया सतीश सक्सेना ने. वो बोले - ताऊ महाराज, आप बिल्कुल सही जगह आ गये हो, जिस ब्लाग गढ गांव का पता आप पूछ रहे हैं वो यही गांव है. ताऊ की उत्सुकता बढी और एक सांस में पूछ डाला...कौन से खेत बिकाऊ हैं? भाव क्या है? इत्यादि इत्यादि.
सतीश सक्सेना ने कोई जवाब नही दिया वो ताश की गड्डी फ़ेंटने लगे और तभी दराल साहब बोले - ताऊ, जल्दी क्या है? अभी रात होने वाली है, कल सुबह जमीन देख लेना. भाव भी बता देंगे अभी घर चलो, रोटी खा कर आराम कर लो, काफ़ी थके हुये लग रहे हो. जमीन का सौदा कल सुबह कर लेंगे.
अरविंद मिश्र और अजय कुमार झा जो अब तक ब्लाग चौपाल पर बैठे किसी की मौज ले रहे थे, उनका ध्यान भी ताऊ की तरफ़ गया. ताऊ की बेचैनी देखकर मिश्र जी ने कहा - ताऊ देखो.. इस पुरे ब्लाग गढ गांव की जमीने बिकाऊ हैं, और आप पूरे ब्लाग गढ के खेतों का सौदा किसी से भी कर लो , सबको आपस मे मंजूर है. सबके भाव भी एक ही हैं. हम ब्लाग गढ के लोग आपस में भले ही कभी कभी दिखावटी जूतमपैजार कर लेते हैं पर अंदर से हम सब एक हैं. जो काम एक ब्लागर करदे वही सारे ब्लाग गढ की मर्जी. और हम ब्लाग गढ के लोगों का मुख्य काम ये जमीने और खेत बेचने का ही है, पर बेचते अपनी शर्तों पर ही हैं. बाकी तो सब ब्लागिंग करते और ताश पत्ती खेलकर, समय मजे में कट ही रहा है.
अब ताऊ चक्कर में पड गया और पूछ बैठा कि आपकी शर्तें क्या है? रूपये तो मैं नगद जेब में रखकर लाया हूं. जमीन दिखावो, कब्जा दो और रूपये गिन लो.
तभी अजयकुमार झा ने फ़ेसबुक पर किसी की पोस्ट पर Like का चटका लगाते हुये कहा - ताऊ, देख हम हैं ब्लाग गढ के सीधे साधे लोग, ज्यादा मगजपच्ची हम करते नही हैं. शांतिपूर्वक बलागिंग और फ़ेसबुकी करते हुये हम मस्ती से जीवन गुजारते हैं. अब सुन ले खेत जमीन बेचने का हमारा कायदा कानून, वो यह है कि यहां जो भी खेत खरीदने आते है उन सबके लिये हम एक ही भाव रखते है.....
अजय कुमार झा अपनी बात खत्म करते उसके पहले ही ताऊ ने व्यग्र होकर पूछा - एक ही भाव रखते हैं का क्या मतलब?
झा साहब कुछ जवाब देते इसके पहले ही रतन सिंह शेखावत अपनी पगडी को ठीक से जचाते हुये बोले - ताऊ, ब्लाग गढ में जमीन खरीदना एक दम आसान और किफ़ायती है, तेरा दम हो तो खरीद ले, हमारा कायदा यह है कि दिन उगने से लेकर दिन छिपने तक जितनी जमीन का चक्कर खरीद दार काट लेगा वो जमीन खरीदने वाले की हो जाती है बदले मे खरीददार की जेब मे जितने पैसे हों वो हम गांव वाले लेकर आपस में बांट लेते हैं. हम सीधे साधे लोग हैं और सीधी साधी बात करते हैं. बोलो हो मन्जूर तो कर लो सौदा पक्का.... !
ताऊ को कहां चैन था ? रात को ही सौदा पक्का करके खूंटा गडवा लिया , यानी जिस जगह से भागना शुरू करना था. खूंटा गाडने में सुबह का समय क्यों खराब करना? कही देर हो जाये तो जमीन का चक्कर कम हो सकता था.
दिन छिप चुका था. चलते समय प्रवीण पाण्डे आये और बोले -- ताऊ, ये इधर ब्लाग गढ का गेस्ट रूम है, रात को यहां आराम करो और खाना खाकर सो जावो. आपके जेब में रखे पैसों को ब्लाग गढ में कोई हाथ नही लगायेगा, यहां सब ईमानदार हैं. बेखटके आराम करो.
ताऊ को इसी पैसे वाली बात का खटका था सो अब चैन पड गया और बोला -- अब जब सौदा हो ही गया है तो ये पैसे आप संभालों, मैं क्यों रखूं? यह कहते हुये ताऊ ने रुफ्यों की थैली अपने खीसे से निकाल कर आगे बढा दी.
चलते चलते काजलकुमार बोले - देख ताऊ, सुबह सुबह हम सभी ब्लागरों को मार्निंग ब्लागिंग की पोस्ट लिखनी रहती है सो सुबह सुबह हम में से कोई आये या नही आये , आप पर हमको पूरा यकीन है, कारण ग्राहक तो भगवान होता है, आप तो यहां खूंटे से दौडना शुरु कर देना, जितने खेतों का चक्कर लगा आवोगे वो सारे खेत आपके हो जायेंगे. पर एक बात का ध्यान रखना कि सूरज डूबने से पहले इस खूंटे तक वापिस लौट आना, यदि नही आये तो तेरे सारे पैसे हम ब्लाग गढ वासी हजम कर लेंगे. और आपस में बांट लेंगे.
यह सुनकर ताऊ मन ही मन बोला -- अरे ब्लाग गढ वालो, तुम आज तक किसी ताऊ के चक्कर में नही चढे हो? तुम क्या मेरे पैसे हजम करोगे? कल शाम तक देखना ताऊ तुम्हारा पूरा गांव ही हजम कर लेगा.
ब्लाग गढ वाले तो ताऊ को सोने का कह कर अपने घर चले गये पर ताऊ की आंखों मे नींद कहां? किसी तरह दिन उगा और ताऊ ने तो पहली किरण फ़ूटने के साथ ही 100 मीटर फ़र्राटा धावक की तरह दौड लगाना शुरू कर दिया.
दोपहर होते होते तो गांव से बहुत दूर निकल गया. फ़िर सोचा अब पलट लेना चाहिये क्यों की शर्त के अनुसार दिन डूबने के पहले वापस खूंटे पर पहुंचना है. तभी ताऊ को अपने सामने ही एक लबालब पानी से भरा बडा सा तालाब दिख गया , ताऊ ने सोचा इसको भी अपनी हद मे कर लो , जिससे आगे सिंचाई मे दिक्कत नही होगी.
इसी तरह ताऊ को कभी गन्ने के, कभी केशर के और कभी सब्जियों के खेत दिखाई देते रहे और ताऊ का लोभी लालची स्वभाव उसे आगे की तरफ़ दौडाता रहा....जबकि उसे बहुत पहले ही खूंटे की तरफ़ वापसी शुरू कर देनी चाहिये थी.
सरेंडर के बाद खुली जेल में रहा जहां कुछ ब्लागरों से दोस्ती हो गई. जेल में रहने के दौरान ही वो ब्लागिंग के गुर सीख चुका था. सजा काटने के बाद उसने धमाकेदार ब्लागरी शुरू कर दी. जैसे कोई नशे का आदी हो जाता है उसी तरह ताऊ भी ब्लागरी का आदी हो गया.
ताऊ की पत्नी यानि ताई बिना पढी लिखी महिला थी सो कुछ दिन तो वो समझती रही कि ये मशीन (कंप्यूटर) पर कोई बहुत बडा काम करता है. कुछ दिन तो यह सब चला लेकिन आखिर कब तक चलता? ब्लागरी से घर खर्चा थोडी चलने वाला था? एक खेत था ताऊ के पास वो भी बिना जुता पडा था. आखिर ताई को समझ आगया कि माजरा क्या है? उसने लठ्ठ मार मार कर ताऊ की मशीन यानि कंप्य़ूटर तोड डाला...और गुस्से गुस्से में दो चार लठ्ठ ताऊ को भी चिपका दिये. और तबसे ताऊ अपने खेत में मेहनत मजदूरी करके परिवार का पेट पालने लगा.
दोपहर की धूप में हल के बाद मेज लगाता ताऊ
जेठ की भरी दोपहर का समय. ब्लागरी के नशे से मुक्त होकर ताऊ अपने खेत मे हल के बाद मेज लगा रहा था. और मन ही मन परमात्मा को गालियां भी देता जा रहा था. उसकी परमात्मा से शिकायत यह थी कि मैं अच्छी भली डकैतियां डालता था...मुझसे सरेंडर की गलती क्यूं करवा दी? आज सारे बडे लोग घूस रिश्वत, घोटाले कर करके सफ़ेदपोश बने हुये हैं और मुझे इस लू वाली गर्म हवा में मेहनत करनी पड रही है....तेरा बुरा हो परमात्मा.....
कुछ देर बाद ताई कलेवा लेकर आगयी और ताऊ छाछ और मुक्का प्याज के साथ रोट तोडने पेड की छांव में बैठ गया. कुछ देर बाद हकीम समीरलाल वहां आये और ताऊ को रामराम करके पेड की छांव में सुस्ताने लगे. दोनों में बातचीत होने लगी.
हकीम समीरलाल घुटे हुये खिलाडी थे और ताऊ ठहरा बेवकूफ़ किस्म का इंसान...यदि बेवकूफ़ ना होता तो इतना बडा डकैत होने के बाद भी हल क्यों जोत रहा होता? समझदार होता तो चुनाव लड लेता...कहीं सफ़ेदपोश डकैती के काम कर रहा होता. वैसे तो चोरी डकैती के जितने भी धंधे ताऊ ने किये वो सब बहुत ही इमानदारी से किये पर ताऊ के सारे धंधे सिर्फ़ और सिर्फ़ लोभी होने की वजह से फ़ेल हुये थे....ताऊ का यही दुर्गुण था कि उसको कोई कुछ भी स्कीम समझा दे वो अपने लोभी स्वभाव की वजह से तुरंत तैयार हो जाता था. ताऊ के जैसे लोभी लालची आदमी की यही गति होनी थी.
ताऊ का यह खेत अब महानगर की हद में आने वाला था. हकीम साहब जैसे लोग भविष्य दृष्टा होते हैं. इसीलिये वो ताऊ से यह खेत खरीदना चाहते थे. ताऊ तो यह कभी का बेच देता पर ताई थोडी समझदार महिला थी सो पुरखों की यह निशानी बाल बच्चे पालने के काम आ रही थी.
हकीम साहब ने मीठी मीठी बातें शुरू करके ताऊ को यह समझा दिया कि ताऊ यदि खेती ही करनी है तो इस एक खेत को बेचकर जो रकम मिले उसे लेकर तुम दक्षिण पश्चिम दिशा में चले जावो उधर एक ब्लाग गढ नाम का गांव आयेगा, वहां ब्लाग गढ में पानी वाली और ऊपजाऊ जमीन बहुत सस्ती मिल जायेगी.
ताऊ ने पूछा - हकीम साहब क्यों मुझे बेवकूफ़ बनाने पर तुले हो? आजकल जमीने कहां सस्ती रह गयी हैं? सारी जमीनें तो पूंजीपतियों, नेताओं, अफ़सरो और दामादों ने हथिया ली हैं....जावो किसी और को बेवकूफ़ बनाओ.
हकीम साहब बोले- ताऊ तुम समझते नही हो. ब्लाग गढ के लोग सिर्फ़ ब्लागिंग करते हैं या ताश पत्ती खेलते हैं इसके अलावा कुछ नही करते. खेती बाडी मेहनत का काम है जो ब्लागर्स कर नही सकते, सो घर खर्चा चलाने के लिये वो अपनी जमीने बेचते रहते हैं आप एक बार मेरी बात आजमा कर तो देखो.
ताऊ के खरपट दिमाग में हकीम साहब की यह बात गोली की तरह घर कर गयी क्योंकि ब्लागिंग के नफ़े नुक्सान उसे भलि भांति मालूम थे. ताई खेत बेचने के लिये राजी नही थी पर किसी तरह ताई को मनाकर, अपना खेत बेचकर, रकम खीसे में रखकर, हकीम साहब के बताये ब्लाग गढ गांव की तरफ़ ताऊ ने कूच कर दिया.
दो तीन दिन ताऊ भूखा प्यासा चलता रहा पर हकीम साहब द्वारा बताया गया ब्लाग गढ नही आया. ताऊ ने सोच लिया कि ऐसा कोई गांव हो ही नही सकता. वापस लौटने का विचार कर ही रहा था कि सामने उसे एक गांव सा दिखलाई पडा. वो यह सोचकर उस तरफ़ बढ गया कि अब शाम होने में है आज की रात इस गांव में बिताकर कल सुबह वापस लौट जायेगा.
गांव की चौपाल पर सतीश सक्सेना, डा. टी. सी. दराल, खुशदीप सहगल, दीपक बाबा , सुज्ञ, गिरीश बिल्लोरे, अली सैयद, अरविंद मिश्र , अजय कुमार झा, जैसे अनेकों अंतर्राष्ट्रीय ब्लागर चौपाल पर बैठे ताश पत्ती खेल रहे थे. एक तरफ़ राजीव तनेजा बैठे लोगों को शायरी सुना रहे थे. कई अपने आई-फ़ोन से ब्लागिंग कर रहे थे. ललित शर्मा अपनी यायावरी के किस्से सुना रहे थे. एक जगह एक लेपटोप पर सामुहिक रूप से ब्लागिंग हो रही थी. सब अपने में मस्त...कोई हुक्का गुडगुडा रहा था तो कोई चिलम.
इस तरह के अलमस्त लोगों को देखकर ताऊ चकित रह गया. उसने सोचा कि यह कोई ठगों का गांव तो नही है? कोई कुछ काम नही कर रहा, सब मटरगश्ती में लगे हैं जबकि यह समय तो खेतों में काम करने का होता है. ज्यादा डर इस बात से था कि ताऊ के खीसे (जेब) में अपने पुरखों की निशानी रहे खेत को बेचकर आई जमा पूंजी भी थी. ताऊ का मन किसी अनहोनी से धडकने लगा.
डरते डरते ताऊ ने उनसे रामराम की, अपना नाम बताया और उस ब्लाग गढ गांव का पता पूछा जहां पानी वाली जमीन बहुत सस्ती मिलती है.
पान का इक्का पत्ता फ़ेंकते हुये फ़क्कड से अंदाज में जवाब दिया सतीश सक्सेना ने. वो बोले - ताऊ महाराज, आप बिल्कुल सही जगह आ गये हो, जिस ब्लाग गढ गांव का पता आप पूछ रहे हैं वो यही गांव है. ताऊ की उत्सुकता बढी और एक सांस में पूछ डाला...कौन से खेत बिकाऊ हैं? भाव क्या है? इत्यादि इत्यादि.
सतीश सक्सेना ने कोई जवाब नही दिया वो ताश की गड्डी फ़ेंटने लगे और तभी दराल साहब बोले - ताऊ, जल्दी क्या है? अभी रात होने वाली है, कल सुबह जमीन देख लेना. भाव भी बता देंगे अभी घर चलो, रोटी खा कर आराम कर लो, काफ़ी थके हुये लग रहे हो. जमीन का सौदा कल सुबह कर लेंगे.
अरविंद मिश्र और अजय कुमार झा जो अब तक ब्लाग चौपाल पर बैठे किसी की मौज ले रहे थे, उनका ध्यान भी ताऊ की तरफ़ गया. ताऊ की बेचैनी देखकर मिश्र जी ने कहा - ताऊ देखो.. इस पुरे ब्लाग गढ गांव की जमीने बिकाऊ हैं, और आप पूरे ब्लाग गढ के खेतों का सौदा किसी से भी कर लो , सबको आपस मे मंजूर है. सबके भाव भी एक ही हैं. हम ब्लाग गढ के लोग आपस में भले ही कभी कभी दिखावटी जूतमपैजार कर लेते हैं पर अंदर से हम सब एक हैं. जो काम एक ब्लागर करदे वही सारे ब्लाग गढ की मर्जी. और हम ब्लाग गढ के लोगों का मुख्य काम ये जमीने और खेत बेचने का ही है, पर बेचते अपनी शर्तों पर ही हैं. बाकी तो सब ब्लागिंग करते और ताश पत्ती खेलकर, समय मजे में कट ही रहा है.
अब ताऊ चक्कर में पड गया और पूछ बैठा कि आपकी शर्तें क्या है? रूपये तो मैं नगद जेब में रखकर लाया हूं. जमीन दिखावो, कब्जा दो और रूपये गिन लो.
तभी अजयकुमार झा ने फ़ेसबुक पर किसी की पोस्ट पर Like का चटका लगाते हुये कहा - ताऊ, देख हम हैं ब्लाग गढ के सीधे साधे लोग, ज्यादा मगजपच्ची हम करते नही हैं. शांतिपूर्वक बलागिंग और फ़ेसबुकी करते हुये हम मस्ती से जीवन गुजारते हैं. अब सुन ले खेत जमीन बेचने का हमारा कायदा कानून, वो यह है कि यहां जो भी खेत खरीदने आते है उन सबके लिये हम एक ही भाव रखते है.....
अजय कुमार झा अपनी बात खत्म करते उसके पहले ही ताऊ ने व्यग्र होकर पूछा - एक ही भाव रखते हैं का क्या मतलब?
झा साहब कुछ जवाब देते इसके पहले ही रतन सिंह शेखावत अपनी पगडी को ठीक से जचाते हुये बोले - ताऊ, ब्लाग गढ में जमीन खरीदना एक दम आसान और किफ़ायती है, तेरा दम हो तो खरीद ले, हमारा कायदा यह है कि दिन उगने से लेकर दिन छिपने तक जितनी जमीन का चक्कर खरीद दार काट लेगा वो जमीन खरीदने वाले की हो जाती है बदले मे खरीददार की जेब मे जितने पैसे हों वो हम गांव वाले लेकर आपस में बांट लेते हैं. हम सीधे साधे लोग हैं और सीधी साधी बात करते हैं. बोलो हो मन्जूर तो कर लो सौदा पक्का.... !
ताऊ को कहां चैन था ? रात को ही सौदा पक्का करके खूंटा गडवा लिया , यानी जिस जगह से भागना शुरू करना था. खूंटा गाडने में सुबह का समय क्यों खराब करना? कही देर हो जाये तो जमीन का चक्कर कम हो सकता था.
दिन छिप चुका था. चलते समय प्रवीण पाण्डे आये और बोले -- ताऊ, ये इधर ब्लाग गढ का गेस्ट रूम है, रात को यहां आराम करो और खाना खाकर सो जावो. आपके जेब में रखे पैसों को ब्लाग गढ में कोई हाथ नही लगायेगा, यहां सब ईमानदार हैं. बेखटके आराम करो.
ताऊ को इसी पैसे वाली बात का खटका था सो अब चैन पड गया और बोला -- अब जब सौदा हो ही गया है तो ये पैसे आप संभालों, मैं क्यों रखूं? यह कहते हुये ताऊ ने रुफ्यों की थैली अपने खीसे से निकाल कर आगे बढा दी.
चलते चलते काजलकुमार बोले - देख ताऊ, सुबह सुबह हम सभी ब्लागरों को मार्निंग ब्लागिंग की पोस्ट लिखनी रहती है सो सुबह सुबह हम में से कोई आये या नही आये , आप पर हमको पूरा यकीन है, कारण ग्राहक तो भगवान होता है, आप तो यहां खूंटे से दौडना शुरु कर देना, जितने खेतों का चक्कर लगा आवोगे वो सारे खेत आपके हो जायेंगे. पर एक बात का ध्यान रखना कि सूरज डूबने से पहले इस खूंटे तक वापिस लौट आना, यदि नही आये तो तेरे सारे पैसे हम ब्लाग गढ वासी हजम कर लेंगे. और आपस में बांट लेंगे.
यह सुनकर ताऊ मन ही मन बोला -- अरे ब्लाग गढ वालो, तुम आज तक किसी ताऊ के चक्कर में नही चढे हो? तुम क्या मेरे पैसे हजम करोगे? कल शाम तक देखना ताऊ तुम्हारा पूरा गांव ही हजम कर लेगा.
ब्लाग गढ वाले तो ताऊ को सोने का कह कर अपने घर चले गये पर ताऊ की आंखों मे नींद कहां? किसी तरह दिन उगा और ताऊ ने तो पहली किरण फ़ूटने के साथ ही 100 मीटर फ़र्राटा धावक की तरह दौड लगाना शुरू कर दिया.
दोपहर होते होते तो गांव से बहुत दूर निकल गया. फ़िर सोचा अब पलट लेना चाहिये क्यों की शर्त के अनुसार दिन डूबने के पहले वापस खूंटे पर पहुंचना है. तभी ताऊ को अपने सामने ही एक लबालब पानी से भरा बडा सा तालाब दिख गया , ताऊ ने सोचा इसको भी अपनी हद मे कर लो , जिससे आगे सिंचाई मे दिक्कत नही होगी.
इसी तरह ताऊ को कभी गन्ने के, कभी केशर के और कभी सब्जियों के खेत दिखाई देते रहे और ताऊ का लोभी लालची स्वभाव उसे आगे की तरफ़ दौडाता रहा....जबकि उसे बहुत पहले ही खूंटे की तरफ़ वापसी शुरू कर देनी चाहिये थी.
आखिर
ताऊ ने तीन बजे के आसपास खूंटे की तरफ़ वापसी शुरू की. भूखा प्यासा बदहवाश
सा ताऊ वापस दौड रहा था. सही भी है अब तो सारी उम्र बैठ कर ही खाना है,
इतनी सारी जमीन का मालिक बनने में अब सिर्फ़ खूंटे तक ही तो वापस पहुंचना
है..... दिन भर की दौड, गर्मी, भूखा प्यासा... थका हारा ताऊ बिल्कुल सरपट
हिरण की तरह दोडे जा रहा था.... आखिर जीवन मरण का सवाल जो है...कितनी
बडी जमीन का मालिक जो बनने जा रहा था.
उधर ब्लाग गढ वाले मस्ती से चबुतरे पर मजे से ताश पत्ती खेल रहे हैं, हुक्का चिलम पी रहे हैं, कोई गजल गा रहा है, कोई शायरी....कोई ब्लागिंग की खिट पिट करके मजे ले रहा है...कोई पोस्ट ठेल रहा है...कोई बेनामी टिप्पणी कर रहा है. मठाधीश लोग अपने चेलों को ज्ञान बांटकर आनंद ले रहे हैं. अजीब से हैं ये ब्लाग गढ वाले? इनको इस बात की भी चिंता नही है कि आज एक हरयानवी ताऊ उनकी सारी जमीनों पर कब्जा कर लेने वाला है. कितने सस्ते में इन्होंने अपनी जमीनें बेच दी हैं ताऊ के हाथ?
पर शायद ब्लाग गढ वाले इसलिये बडे बेफ़िकर हैं क्योंकि उनको मालूम है, आज तक अनेकों खरीददार आये पर उनकी जमीन आज तक कोई नही खरीद पाया बल्कि अपने जेब की पूंजी भी इनको दे गया... तो इस ताऊ की तो औकात ही क्या ?
दिन बस डूबने ही वाला है और ताऊ कहीं दूर तक भी ब्लाग गढ वालों को आता हुआ दिखाई नही दे रहा है. सारे गांव वाले उस खूंटे के पास जमा हो चुके हैं जहां से ताऊ ने दौडना शुरू किया था. इतनी ही देर मे ताऊ लस्त पस्त सा आता हुआ दिखाई देने लगा है.... जैसे उसमे जान ही नही हो. फ़िर भी ताऊ ने पूरी ताकत झोंक रखी है उस खूंटे तक पहुंचने के लिये. ब्लाग गढ वाले उसका उत्साह वर्धन कर रहे हैं खूंटे तक पहुंचने के लिये.
ब्लाग गढ वालों को मालूम है कि ताऊ खूंटे तक नही पहुंचेगा. ताऊ तो क्या आज तक कोई वापस नही पहुंच पाया इस खूंटे तक. और इसी की कमाई ब्लाग गढ वाले खा रहे हैं, सदियों से उनके दादा परदादा तक यही जमीनों को बेचने का धंधा करते आये हैं जो आज तक नहीं बिकी. और बिके भी कैसे? जब तक बुद्धिमान के सामने लोभी लालची आता रहेगा तब तक बुद्धिमान जीतता रहेगा और लोभी हारता रहेगा. क्योंकि लोभ और लालच मनुष्य की बुद्धि का हरण कर लेते है और बिना बुद्धि का मनुष्य पशु समान होता है. ब्लाग गढ वाले बुद्धिमान प्राणी हैं.
ताऊ की आंखों के आगे अन्धेरा सा छाने लगा है, हलक सुख चुका है, दिन डुबने मे है और टांगे जबाव दे चुकी हैं... थोडी दूरी शेष है..... पर लगता है जैसे ये चंद कदम भी मीलों की दूरी बन गई है.... ताऊ उस खूंटे से दस बारह फ़ुट दूर..... , जमीन पर गिर गया है.... अब उठने की भी ताकत नही है....हालत यह हो गयी है जैसे जिन्दगी के वन डे मैच की आखिरी बाल...!
सारे ब्लाग गढ वाले ताऊ की हौंसला अफ़्जाई में जुटे हैं.... आवाजे लग रही हैं... .. उठो ताऊ .. उठो .. सिर्फ़ दस फ़िट बचे हैं ...! इधर ताऊ के प्राण गले मे अटक चुके हैं... फ़िर भी घिसटने की कोशीश.... और दो तीन फ़िट तक घिसटने मे कामयाब .... और अचानक ताऊ की आंखों के आगे अंधेरा छा गया और उसके प्राण पखेरू उड गये. खूंटे और ताऊ के बीच सिर्फ़ उतनी ही दूरी शेष बची थी जितनी एक कब्र को चाहिये यानी छ: या सात फ़ुट ... और कुल मिलाकर यही शायद टाल्सटाय का सन्देश था.
क्या आपको नही लगता कि आज के दौर मे हर आदमी ताऊ हो गया है ? सिर्फ़ और सिर्फ़ माल बनाने के चक्कर मे भाग रहा है. जीवन के आनंद से महरूम हो गया है? ब्लाग गढ वाली वो मस्ती, वो मासूमियत, और इन्सानियत हम कहीं बहुत पीछे छोड आये हैं....??
उधर ब्लाग गढ वाले मस्ती से चबुतरे पर मजे से ताश पत्ती खेल रहे हैं, हुक्का चिलम पी रहे हैं, कोई गजल गा रहा है, कोई शायरी....कोई ब्लागिंग की खिट पिट करके मजे ले रहा है...कोई पोस्ट ठेल रहा है...कोई बेनामी टिप्पणी कर रहा है. मठाधीश लोग अपने चेलों को ज्ञान बांटकर आनंद ले रहे हैं. अजीब से हैं ये ब्लाग गढ वाले? इनको इस बात की भी चिंता नही है कि आज एक हरयानवी ताऊ उनकी सारी जमीनों पर कब्जा कर लेने वाला है. कितने सस्ते में इन्होंने अपनी जमीनें बेच दी हैं ताऊ के हाथ?
पर शायद ब्लाग गढ वाले इसलिये बडे बेफ़िकर हैं क्योंकि उनको मालूम है, आज तक अनेकों खरीददार आये पर उनकी जमीन आज तक कोई नही खरीद पाया बल्कि अपने जेब की पूंजी भी इनको दे गया... तो इस ताऊ की तो औकात ही क्या ?
दिन बस डूबने ही वाला है और ताऊ कहीं दूर तक भी ब्लाग गढ वालों को आता हुआ दिखाई नही दे रहा है. सारे गांव वाले उस खूंटे के पास जमा हो चुके हैं जहां से ताऊ ने दौडना शुरू किया था. इतनी ही देर मे ताऊ लस्त पस्त सा आता हुआ दिखाई देने लगा है.... जैसे उसमे जान ही नही हो. फ़िर भी ताऊ ने पूरी ताकत झोंक रखी है उस खूंटे तक पहुंचने के लिये. ब्लाग गढ वाले उसका उत्साह वर्धन कर रहे हैं खूंटे तक पहुंचने के लिये.
ब्लाग गढ वालों को मालूम है कि ताऊ खूंटे तक नही पहुंचेगा. ताऊ तो क्या आज तक कोई वापस नही पहुंच पाया इस खूंटे तक. और इसी की कमाई ब्लाग गढ वाले खा रहे हैं, सदियों से उनके दादा परदादा तक यही जमीनों को बेचने का धंधा करते आये हैं जो आज तक नहीं बिकी. और बिके भी कैसे? जब तक बुद्धिमान के सामने लोभी लालची आता रहेगा तब तक बुद्धिमान जीतता रहेगा और लोभी हारता रहेगा. क्योंकि लोभ और लालच मनुष्य की बुद्धि का हरण कर लेते है और बिना बुद्धि का मनुष्य पशु समान होता है. ब्लाग गढ वाले बुद्धिमान प्राणी हैं.
ताऊ की आंखों के आगे अन्धेरा सा छाने लगा है, हलक सुख चुका है, दिन डुबने मे है और टांगे जबाव दे चुकी हैं... थोडी दूरी शेष है..... पर लगता है जैसे ये चंद कदम भी मीलों की दूरी बन गई है.... ताऊ उस खूंटे से दस बारह फ़ुट दूर..... , जमीन पर गिर गया है.... अब उठने की भी ताकत नही है....हालत यह हो गयी है जैसे जिन्दगी के वन डे मैच की आखिरी बाल...!
सारे ब्लाग गढ वाले ताऊ की हौंसला अफ़्जाई में जुटे हैं.... आवाजे लग रही हैं... .. उठो ताऊ .. उठो .. सिर्फ़ दस फ़िट बचे हैं ...! इधर ताऊ के प्राण गले मे अटक चुके हैं... फ़िर भी घिसटने की कोशीश.... और दो तीन फ़िट तक घिसटने मे कामयाब .... और अचानक ताऊ की आंखों के आगे अंधेरा छा गया और उसके प्राण पखेरू उड गये. खूंटे और ताऊ के बीच सिर्फ़ उतनी ही दूरी शेष बची थी जितनी एक कब्र को चाहिये यानी छ: या सात फ़ुट ... और कुल मिलाकर यही शायद टाल्सटाय का सन्देश था.
क्या आपको नही लगता कि आज के दौर मे हर आदमी ताऊ हो गया है ? सिर्फ़ और सिर्फ़ माल बनाने के चक्कर मे भाग रहा है. जीवन के आनंद से महरूम हो गया है? ब्लाग गढ वाली वो मस्ती, वो मासूमियत, और इन्सानियत हम कहीं बहुत पीछे छोड आये हैं....??
ताऊ लालच बुरी बला है !!
ReplyDeleteभाई थोडा लालच भी जीवन के लिये टानिक का काम करता है पर पूरी तरह से शहद में पंख लिपटाने से यही हाल होता है.
Deleteरामराम.
क्या आपको नही लगता कि आज के दौर मे हर आदमी ताऊ हो गया है ? सिर्फ़ और सिर्फ़ माल बनाने के चक्कर मे भाग रहा है. जीवन के आनंद से महरूम हो गया है? ब्लाग गढ वाली वो मस्ती, वो मासूमियत, और इन्सानियत हम कहीं बहुत पीछे छोड आये हैं....??
ReplyDeleteबिल्कुल यही लगता है ताऊ
ताऊ जी... ये तो सच्ची में बहुत सीरीयस बात लिख गये आज आप ! बात काफ़ी हद तक सही है! ज़्यादातर लोग भागे जा रहे हैं... ज़िंदगी जीने के खातिर कमाने के लिए...मगर उन्हें ये याद ही नहीं रहता...कि इस भाग-दौड़ में ज़िंदगी ही उनसे दूर भागती जा रही है... :(
ReplyDelete[मगर ये टाइटल अच्छा नहीं लगा ... ऐसे मत लिखिए, दुख होता है... ( बुरा मत मानियेगा, Please..)]
~सादर!!!
अनिता जी, हास्य में गंभीरता और गंभीरता में हास्य के बीच एक झीना सा पर्दा होता है, या कहले कि ये एक दूसरे के पूरक हैं.
Deleteटाईटल की वजह से दुखी मत होईये, ताऊ सदा यहीं थे, और हर युग में रहेंगे, बस शक्ल और्र नाम भर बदल जायेगा.:)
रामराम.
''हास्य में गंभीरता और गंभीरता में हास्य के बीच एक झीना सा पर्दा होता है''
Deleteसही कह आपने ताऊ जी .....और इसकी मर्यादा आप हमेशा कायम रखते है बहुत ही समझदारी से
बहुत खूब ,बहुत खूब ....लोभी ,कामी ,लालची .........
ReplyDeleteब्लॉग धन संतोष धन ..........इससे बड़ा न कोय ..
सही सलाह दी आपने, आभार.
Deleteरामराम.
हैट्स ऑफ़ टू ताऊ !
ReplyDeleteएक पुराणी कहानी को आधुनिक जामा पहनाकर जीने का फ़लसफ़ा सिखा दिया।
अब कोई न सीखे तो इसमें ताऊ का क्या कसूर।
आभार डाक्टर साहब, अबकि बार कुछ ज्यादा ही ताऊगिरी सूझ गयी थी हमको.:)
Deleteरामराम.
जिंदगी ताउदिली का नाम है,
ReplyDeleteचचादिल क्या खाक जीया करते हैं !
चचादिल....हा..हा..हा. बहुत खूब नाम दिया चचादिल.:)
Deleteरामराम.
बोध कथा का परफेक्ट मेच!! गजब का बोध!! ताऊ!!
ReplyDeleteताऊ का लोभ तो खैर है ही पर पूरा दिन भगा भगा कर जान लेने वाले ये ब्लॉगगढ वासी?
नए नए ग्राहक घेरते हाक़िम साहब? और उस मुजावर का क्या जो लोभियों की मजारों पर मेले लगाते है?
सुज्ञ जी आभार, ताऊ सहित हर तरह के लोग सदा रहेंगे और इसी से संसार बनता है. हमें कैसे रहना है सिर्फ़ यही सोचने वाली बात है.
Deleteरामराम.
हा हा हा
ReplyDeleteक्या ताज़गी भरी पोस्ट है, एेसा लगा कि मानो सड़क किनारे किसी छायादार पेड़ के नीचे कोई कच्चे घड़े से एकदम ठंडा पुदीने वाला चटपटा मसालेदार बड़ा सा गिलास भर के थमा दे :-)
सच कहा आपने ...
Deleteकाजल जी, आप पांच गिलास पी गये और बिना पैसे चुकाये चल दिये? फ़टाफ़ट 100 रूपया गिलास से पेमेंट भेज दिजिये.:)
Deleteसाथ में आपके खाते में तीन गिलास सतीश जी भी पी गये हैं.:) वो भी जोड कर भिजवा दिजियेगा.
रामराम
ताऊ,
ReplyDeleteकभी अपने भक्तों को हंसाते हो, कभी जिबरिश करवाते हो, कभी चिन्तन करवाते हो,
काश हर मनुष्य इस कहानी के मर्म को समझे तो लालच के पीछे भागना नहीं जागना न होता क्या ?
इस भाग दौड़ में जीवन का सारा आनन्द न जाने कहाँ खो सा गया है किसी के पास इतनी फुरसत ही कहाँ है सोचने के लिए ...इस अंधी दौड़ में जीवन की शाम कब हो गई पता ही न चला सार्थक चिंतन है ....कहानी समझाने का तरीका बढ़िया लगा !
जीवन में थोडा सा बोध आजाये तो सब कुछ सहज लगने लगता है. जैसे पानी को हम रोक नही सकते वो अपने हिसाब से बहता है लेकिन रूकते ही सडता है, वैसे ही जीवन भी है. लोभ लालच ये सब जीवन को रोकने बांधने का काम करते हैं और इसी वजह से जीवन भी सडांध मारने लगता है. थोडी तो बेफ़िकरी हो जीने में. बहुत आभार.
Deleteरामराम.
छक्का लग गया!
ReplyDeleteलग गया या लग जायेगा कभी.:)
Deleteरामराम.
वाह ताऊ ताऊ !
ReplyDeleteहँसते हुए क्या बढ़िया सन्देश दे डाला |
लोग माल बनाने में सब कुछ भूल रहे है उनका बनाया माल स्विस वाले डकारने शांति से बैठे है !!
यही होता है बुद्धिमानों के साथ भी, यानि ताऊओं के भी ताऊ होते हैं. ये यहां देश का माल डकारते हैं और इनका माल स्विस वाले डकार जाते हैं.:)
Deleteरामराम
वाह! हमारा-आपका ताऊ जिंदाबाद ....
ReplyDeleteशुभकामनायें!
हास्य के साथ साथ सार्थक चिंतन की डोज़ .... बहुत बढ़िया
ReplyDeleteडोज (पोस्ट) कुछ ज्यादा लंबी हो गयी अबकी बार.:) ब्लागिंग में इतना लंबा डोज कोई पढता नही है.:)
Deleteरामराम.
लेकिन यह सबने पढ़ी होगी , ऐसा विश्वास है। :)
Deleteटाइटिल पसंद नहीं आया मेरी आपत्ति नोट करिए ..
ReplyDeleteपूरे ब्लॉग जगत में कौन ऐसा आदमी है जो लोगों को बिना अपना परिचय दिए केवल हंसाता ही नहीं है बल्कि यह सन्देश भी देता है कि ताऊ जैसों से सावधान रहें..
हम इस ताऊ को प्यार करते हैं, भाई ..
सतीश जी आप के प्यार और सम्मान के लिये अभिभूत हूं. आपको जो चोट पहुंची उसको भी समझ रहा हूं. पर इस कहानी का इससे बढिया टाईटल मुझे नही सूझा.
Deleteआप चिंता मत किजीयेगा ताऊ मरने के बाद भूत बनकर भी आप लोगों के बीच रहेगा.:)
रामराम.
कभी कभी रचना से ज्यादा टाईटल में उस रचना का संपूर्ण सार होता है इस नाते सटीक टाईटल दिया है, ताऊ के मरने की बात इंगित है किसी और बात के लिए ....ताऊ जैसे लोग कभी मर नहीं सकते सतीश जी, चिंता न करे !
Delete@ क्या आपको नही लगता कि आज के दौर मे हर आदमी ताऊ हो गया है ? सिर्फ़ और सिर्फ़ माल बनाने के चक्कर मे भाग रहा है. जीवन के आनंद से महरूम हो गया है? ब्लाग गढ वाली वो मस्ती, वो मासूमियत, और इन्सानियत हम कहीं बहुत पीछे छोड आये हैं....??
ReplyDeleteआखिरी पैरा में आप काफी गंभीर हो गए हैं, मार्मिक तो है ही ..
अजीब सा संक्रमण काल है,जहाँ हम अपने खून तक को, अपनी बेईमानी से नहीं बख्शते ! हालत इतनी खराब है कि पति पत्नी की बात छोडिये अपनी औलादों अथवा बड़ों पर भी भरोसे खंडित होने की ख़बरें नित्य मिल रही हैं !
हंसी ख़ुशी, साथ मिल बैठना और मासूमियत न जाने कहाँ चली गयी .
ब्लॉग जगत का चित्रण जैसा आपने दिया है उसे पढता हुआ मैं सोंच रहा था कि काश आभासी जगत के रिश्ते इतने ही मधुर होते तो शायद हम सबकी उम्र बढाने में यह प्यार, बड़ी भूमिका अदा करता !
धन वही है, जिसका उपभोग हम अपने परिवार के साथ मिलकर कर सकें, फलस्वरूप अपनों की आंख में एक चमक महसूस कर, अंतिम सांस लें ..
एक संतुष्टि का बोध हो कि अब हमारे अपने, कष्ट में नहीं हैं ...
शायद हम सब , म्रत्यु के समय पछ्ताएं, कि हमने अपने साथ लाये हुए गिनती के दिन, कितनी बेवकूफी के साथ, एक दूसरे को नीचा दिखने और ताऊ बनने में बर्वाद किये !!
अंत में ताऊ , आशा का साथ नहीं छोड़ेंगे ..शायद कुछ बदलाव आये और हमारे सामने आये
चाहें दिन हों या युग बीतें ,
मैं आशा के गीत लिखूंगा !
जिसे गुनगुनाते, चेहरे पर
आभा छाये, गीत लिखूंगा !
बरसों से जो लिख लिख भेजा,कैसे भुला सकेंगे गीत,
क्या जाने किस घडी तुम्हारी,झलक दिखाएँ मेरे गीत !
जीवन ऐसे ही बेफ़िक्री और हंसते हुये बीत जाये तो यहीं स्वर्ग है. आपकी सार्थक टिप्पणी के लिये आभार.
Deleteरामराम.
मुझे कल मेरा एक साथी मिला
ReplyDeleteजिस ने यह राज़ खोला
के अब जज़्बा-ओ-शौक़ की
वहशतों के ज़माने गये
फिर वो आहिस्ता-आहिस्ता
चारों तरफ देखता
मुझ से कहने लगा
अब बिसात-ए-मुहब्बत लपेटो
जहां से भी मिल जाये,
दौलत समेटो
गर्ज़ कुछ तो तहज़ीब सीखो।
(~ फिराक़ गोरखपुरी)
बिल्कुल यही वक्त आ गया है.
Deleteरामराम
वाह बहुत सुंदर सार्थक प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST: नूतनता और उर्वरा,
Bilkul sahi kaha taau........
ReplyDeleteRam Ram
हम सब ताऊ है ताऊ...किस की कहें..
ReplyDeleteसही कहा है, हम सब ताऊ बन गये हैं और ऐसे ही रहेंगे.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया व्यंग्य!
ReplyDeleteसभी नामी-गिरामी लोगों को लपेट लिया आपने तो!
राम-राम...!
बढिया व्यंग्य -आँखों में नमी और होंठों पर हँसी !
ReplyDeleteताऊ बहुत दुबले पतले हो गये हो और शीर्षक ने तो होश ही उड़ा दिए , सही सलामत तो हैं न !
ReplyDeleteहर आदमी भाग रहा है निन्यानवे के चक्कर में , ब्लॉगगढ़ वालों को मासूम ना समझो ,टिप्पणी और फोलोवर बढ़ने के लिए क्या नहीं करते :) :)
ताई के लठ्ठ खा खा कर दुबले हो गये हैं.:)
Deleteचिंता मत किजीये, ताऊ तो काक्रोच प्रजाति के प्राणी होते हैं जो परमाणु युद्ध के बाद भी बचे रहेंगे.:)
हम भी तो ब्लाग गढ के वाशिंदे हैं.:)
रामराम.
हंसने हंसाने का दूसरा नाम ताऊ,आपक ब्लॉग पर आकर बहुत ही सकून मिलता है.
ReplyDeleteप्रणाम
ReplyDeleteसर्वोत्त्कृष्ट हास्य, बढिया
ReplyDeleteहिन्दी तकनीकी क्षेत्र की रोचक और ज्ञानवर्धक जानकारियॉ प्राप्त करने के लिये इसे एक बार अवश्य देखें,
लेख पसंद आने पर टिप्प्णी द्वारा अपनी बहुमूल्य राय से अवगत करायें, अनुसरण कर सहयोग भी प्रदान करें
MY BIG GUIDE
आखिर मिएँ सोचने को मजबूर कर दिया ताऊ ...
ReplyDeleteसच है आज मशीनी हो गया है इंसान ... महरूम हो गया है मासूम हास्य से ...
मज़ा आया ताऊ श्री ...
ताऊ ब्लोग्गगढ़ की जमीन खरीदने से पहले तहसीलदार से तो मिल आता... ब्लोग्गर लोग जमीन का मुआवजा पहले ही लेकर मस्त हो रहे हैं....
ReplyDeleteताऊ के कुछ प्राण पाखरे नहीं उड़े है सब पता है प्रकाशन खोला सभी ब्लोगरो से उनकी किताबे प्रकाशित करवाने का पेमेंट लिया , पुरुषो ने अच्छी ठुकाई की तो उनकी किताबे प्रकाशित कर दी अब महिला ब्लोगरो की बारी आई तो प्राण पाखरे उड़ने लगे | ताऊ ज़िंदा हो जाओ और हमारी किताबे प्रकाशित कर दो नहीं तो प्राण पखारू कैसे उड़ते है यो हम बताएँगे , हमारा पैसा डकारने की सोचना भी मत , ताऊ जानते हो न की लालच कितनी बुरी बला है :)
ReplyDeleteहा! हा !हा! वाह अंशुमाला जी ,आप ने क्या खूब पकड़ा है!
DeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteहम आजकल उत्साह बढ़ाने वाली पोस्ट लिखने में लगे हैं।
ReplyDeleteताऊ सा एक टिपण्णी गलत पोस्ट हो गई है .
ReplyDeleteआज का आदमी सचमुच मायारावण के कब्जे में है .ब्लागिंग उसे बचा सकती है कुछ लेना न देना मग्न रहना .
आखिर में कलेजा मुंह को आ गया गया -भाई यह ताऊ की कौन सी फैंटम पीढी है ?
ReplyDeleteबहुत ही रोचक और बहा ले जाने वाली कथा है ,ताऊ और ब्लॉग के अन्य लेक्कों के माध्यम से आप ने गंभीर बात छेड़ दी.
ReplyDeleteअंत मन को छू गया तथा तनिक विचलित भी कर गया .सतीश जी के कहने से सहमत यह शीर्षक सही नहीं लगा.
--वैसे यह सच है कि आज के समय में हर कोई ताऊ है या बनने की कोशिश करता है ..
ज्यादा से ज्यादा धन कमाना ही उद्देश्य मात्र रह गया है जबकि जीवन की डोर कब छूट जाए कुछ पता नहीं .
बहुत अच्छा लेख!
ताऊ जी
ReplyDeleteराम राम .
आपकी आज की पोस्ट ने बहुत बड़ी बात कह दी . सच में ही , हम सब कहाँ से कहाँ आ गए है .
वो प्यारे ब्लॉग्गिंग के दिन अब कहाँ ,
देखिये हो सकता है . की आपकी ये पोस्ट से ब्लॉग्गिंग में नए प्राण फूंके.
आभार
विजय
लालच की यह कहानी तो मालूम था परन्तु आपने जिस ढंगसे ताऊ के ऊपर आश्रित कर व्यंग और हास्य पैदा किया ,यह काबिले तारीफ है .सच है आज लोग लालच में सुखमय जिंदगी जीना भूल गया है ,उन्हें केवल पैसा ,,,, और पैसा ....यही एक मात्र लक्ष रह गया है ,-बहुत बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDeletelatest post'वनफूल'
latest postअनुभूति : क्षणिकाएं
असल में ताउओं का अंत ऐसे ही होता है। फिर भी लोग ताऊपना छोड़ते नहीं।
ReplyDeleteआज लिखी है ताऊ ने सार्थक पोस्ट।
ReplyDelete