एक ही जगह यानि रसोई घर में दूध और शक्कर रहते थे. पर दोनों में वहा भी भेदभाव था. दूध अधिकतर समय ठंडे फ़्रीज में ही रहता था थोडी देर को बाहर आता, काम होते ही वापस फ़्रीज में...अपना लेखन कर्म करने लगता. वहीं शक्कर बेचारी तपते रसोई घर में भी बाहर ही पडी पडी अपनी व्यंग रचनाएं लिखती रहती.
दूध को अपनी इस स्थिति पर बेहद घमंड था. वो जब भी थोडी देर के लिये फ़्रीज से बाहर निकलता उस समय अपने आसपास रखी चीजों को....देशी लेखकों को उसी तरह हिकारत से देखता जैसे एक अंग्रेजी लेखक हिंदी लेखकों को देखता है...बिल्कुल स्तर हीन और देशी लोग..... उन पर तरह तरह के कटाक्ष करता. पर कोई भी उसकी बात का जवाब नही देता था क्योंकि दूध का हमेशा ठंडक में रहना, बच्चों का जरूरी पेय, किसी भी मिठाई का महत्वपूर्ण अंग और वैद्य डाक्टरों द्वारा दूध के गाये गये महत्व और उसके आभिजात्य लेखन के कारण सब उसकी इज्जत करते थे.
किसी भी चीज का हम अति गुण गान करें तो स्वाभाविक रूप से अभिमान हो ही जाता है. जैसे कि विभिन्न पुरस्कार प्राप्त लेखक, बिना पुरस्कार पाये लेखक को दीन हीन समझकर हेयता से देखते हैं. इसमे कोई बडी बात नही है. बस दूध महाराज की भी यही हालत थी
एक दिन रामप्यारी ने आकर बताया कि ताऊ आज तो दूध भैया और शक्कर दीदी में जम कर झगडा हो रहा है तुम भी चलकर देखो. अब ताऊ को झगडे की खबर लगे और फ़टे में पांव ना फ़ंसाये यह कैसे हो सकता है? ताऊ तुरंत उठकर झगडा स्थल पर हाजिर हो गया.
हुआ यूं था कि ताई बाहर गयी थी और रामप्यारी को मौका हाथ लग गया था कि आज तो दूध की मलाई पर हाथ साफ़ कर ही ले. आजकल रामप्यारी का वजन भी कुछ ज्यादा ही बढा हुआ है, फ़िर आगे जाकर कहीं उसके ब्याह शादी में दिक्कत ना आये इसलिये ताई उसे मलाई हटाकर दूध देती थी और उससे डाईटिंग भी करवाती थी. और आप जानते ही हैं कि रामप्यारी को मलाई कितनी पसंद है.
रामप्यारी ने ताई के पीछे से चोरी छिपे दूध की मलाई पर हाथ साफ़ करने के लिये दूध को फ़्रीज से बाहर निकाला, वैसे ही उससे वजन संभल नही पाया और दूध बेचारा औंधे मुंह गिर पडा. दूध बांयी टांग के बल गिरा था सो उसकी बांयी टांग भी टूट गई. इस वाकये से वहां मौजूद बाकी सब चीजों की तो सांसे रूक गई पर अनायास ही शक्कर के मुंह से जोरदार हंसी निकल गई.
अब दूध को अपनी खीज मिटाने का इससे ज्यादा अच्छा बहाना क्या मिलता? सो वो जमकर शक्कर पर बरसने लगा - शक्कर...तू मुझे समझती क्या है? तेरी हिम्मत कैसे हुई...मुझ पर हंसने की? तू जानती है ना मैं कौन हूं? मेरे नाम से नीर क्षीर निर्णय होते हैं, मुझसे ज्यादा शुद्ध और पवित्र कोई नही है, इसीलिये मैं आलीशान स्थान फ़्रीज की ठंडक में रहता हुआ गंभीर लेखन कर्म करता हूं ...तुम दो टके की शक्कर जैसे देशी और अनकल्चर्ड लेखकों जैसा बाहर 48 डिग्री में बैठकर नही लिखता हूं.... तुम लिखती भी हो तो क्या...सिर्फ़ हा.. हा.. ही..ही.. ठी... ठी...और वो भी दूसरों पर कडवे कसैले व्यंग......सिर्फ़ लोगों की खिल्ली उडाना.... कभी गंभीर लेखन करो तो तुम्हारे समझ आये कि गंभीर लेखन क्या होता है? मैं गंभीर हूं, कोमल हूं, बच्चे बूढे सबके काम आता हूं......हंस के जैसा सफ़ेद हूं....सब मेरी उपमाएं देते हैं. समाज में मेरी इज्जत है. कई जगहों पर समारोहों कि अध्यक्षता के लिये बुलाया जाता हूं...लोग मेरा सम्मान करते हैं.
उसकी बात सुनकर शक्कर और जोर से हंसने लगी. अब तो दूध बिल्कुल उफ़न पडा और हिंदी से अंग्रेजी पर आ गया.... बोला - यू ब्लडी किरकिरी....अनसिवीलाईज्ड...विदाऊट एनी यूनीफ़ार्म शेप गर्ल...तुम लोगों को शूगर रोग का मरीज बनाने वाली....बच्चों के दांतो को कीडा लगाने वाली जाहिल....लेखकों में दूसरों पर कटाक्ष करने वाली व्यंगिणी...... इसी तरह दूध आंय बांय बकने लगा....और शक्कर को मारने के लिये उठने लगा कि टूटी टांग के दर्द ने हिलने नही दिया और दर्द के मारे कराहने लगा.
अब शक्कर अपनी मिठास भरी वाणी में बोली - अरे दूध भैया माना कि तुम अंगरेजी के लेखकों और हिंदी के पुरस्कार प्राप्त लेखकों जैसे हो पर तुम्हारा दंभ बिल्कुल गलत है. तुम फ़्रीज की ठंडक में बैठकर गम्भीर लेखन करते हो...तुम्हारा आदर सत्कार सब करते हैं. पर देखो...तुम को जरा सा ज्यादा गर्म करते ही तुम उफ़न पडते हो...सीधे भगौने से बाहर...किसी काम के नही. ठीक है हम कडवे कसैले व्यंग लिखते हैं... पर उनमें तुम्हारी तरह दंभ नही होता...जरा मेरे कडवे कसैले व्यंग मुंह में डालकर तो देखो...कठोर और खुरदरे होने के बावजूद तुम्हारे मूंह में मिठास और हंसी ना आ जाये तो मुझसे कहना.
शक्कर की यह बात सुनते ही ताऊ बोला - वाह शक्कर वाह, क्या बात कही है तुमने? सच में तुम्हारे व्यंग यदि समझ लिये जायें तो जबान पर मिठास और हंसी ही आयेगी. और ये दूध जबरन अभिमान करता है. जरा सा ज्यादा गर्म करते ही यानि गंभीरता को चुनौती मिलते ही उबाल खा कर बाहर आ जाता है. किस काम की इसकी गंभीरता? एक तरफ़ तुमको (व्यंग और हास्य) जितना ही ज्यादा उबालों तुम और ज्यादा चाशनी सी मीठी हो जाती हो और गुलाब जामुन, जलेबी और इमरती जैसी मिठाईयां में जान डाल देती हो.
इतना कहकर ताऊ चुप हुआ ही था कि रामप्यारी बोल पडी - अरे दूध भैया, चलो अब तुम्हें ताऊ हास्पीटल में ले जाकर तुम्हारा कैट-स्केन करवा देती हूं फ़िर प्लास्टर भी चढवाना पडेगा.
इस पर ताऊ बोला - हां हां रामप्यारी, अब तो तु भी समझदार हो गई है...बिना कहे ही इसका कैट-स्केन करवाने ले जा रही है. और हां सुन, इस दूध को जब दूध पिलाना हो, तब उस दूध में दो चम्मच शक्कर (व्यंग) मिला देना वर्ना ये गंभीर महाराज दूसरों को भले ही दूध (गंभीरता) पिलाते हों पर खुद बिना शक्कर नही पी पायेंगे.
रामप्यारी ने पूछा - ताऊ इस दूध को शक्कर मिला कर दूध पिलाना है? ये तो शक्कर दीदी से झगडता रहता है ये कैसे पीयेगा शक्कर (व्यंग) वाला दूध.
ताऊ बोला - रामप्यारी अब मेरी जबान मत खुलवा ...मैने कई बार देखा है ये गंभीर लेखन वाले दूध महाराज जब भी दूध पीते है तब चोरी छिपे उसमे शक्कर (व्यंग) मिलाकर ही पीते है....सिर्फ़ दूसरों को गंभीरता का पाठ पढाते हैं....जा जल्दी जाकर इसका कैट-स्केन करवा कर इसकी मरहम पट्टी करवा.
दूध को अपनी इस स्थिति पर बेहद घमंड था. वो जब भी थोडी देर के लिये फ़्रीज से बाहर निकलता उस समय अपने आसपास रखी चीजों को....देशी लेखकों को उसी तरह हिकारत से देखता जैसे एक अंग्रेजी लेखक हिंदी लेखकों को देखता है...बिल्कुल स्तर हीन और देशी लोग..... उन पर तरह तरह के कटाक्ष करता. पर कोई भी उसकी बात का जवाब नही देता था क्योंकि दूध का हमेशा ठंडक में रहना, बच्चों का जरूरी पेय, किसी भी मिठाई का महत्वपूर्ण अंग और वैद्य डाक्टरों द्वारा दूध के गाये गये महत्व और उसके आभिजात्य लेखन के कारण सब उसकी इज्जत करते थे.
किसी भी चीज का हम अति गुण गान करें तो स्वाभाविक रूप से अभिमान हो ही जाता है. जैसे कि विभिन्न पुरस्कार प्राप्त लेखक, बिना पुरस्कार पाये लेखक को दीन हीन समझकर हेयता से देखते हैं. इसमे कोई बडी बात नही है. बस दूध महाराज की भी यही हालत थी
एक दिन रामप्यारी ने आकर बताया कि ताऊ आज तो दूध भैया और शक्कर दीदी में जम कर झगडा हो रहा है तुम भी चलकर देखो. अब ताऊ को झगडे की खबर लगे और फ़टे में पांव ना फ़ंसाये यह कैसे हो सकता है? ताऊ तुरंत उठकर झगडा स्थल पर हाजिर हो गया.
हुआ यूं था कि ताई बाहर गयी थी और रामप्यारी को मौका हाथ लग गया था कि आज तो दूध की मलाई पर हाथ साफ़ कर ही ले. आजकल रामप्यारी का वजन भी कुछ ज्यादा ही बढा हुआ है, फ़िर आगे जाकर कहीं उसके ब्याह शादी में दिक्कत ना आये इसलिये ताई उसे मलाई हटाकर दूध देती थी और उससे डाईटिंग भी करवाती थी. और आप जानते ही हैं कि रामप्यारी को मलाई कितनी पसंद है.
रामप्यारी ने ताई के पीछे से चोरी छिपे दूध की मलाई पर हाथ साफ़ करने के लिये दूध को फ़्रीज से बाहर निकाला, वैसे ही उससे वजन संभल नही पाया और दूध बेचारा औंधे मुंह गिर पडा. दूध बांयी टांग के बल गिरा था सो उसकी बांयी टांग भी टूट गई. इस वाकये से वहां मौजूद बाकी सब चीजों की तो सांसे रूक गई पर अनायास ही शक्कर के मुंह से जोरदार हंसी निकल गई.
अब दूध को अपनी खीज मिटाने का इससे ज्यादा अच्छा बहाना क्या मिलता? सो वो जमकर शक्कर पर बरसने लगा - शक्कर...तू मुझे समझती क्या है? तेरी हिम्मत कैसे हुई...मुझ पर हंसने की? तू जानती है ना मैं कौन हूं? मेरे नाम से नीर क्षीर निर्णय होते हैं, मुझसे ज्यादा शुद्ध और पवित्र कोई नही है, इसीलिये मैं आलीशान स्थान फ़्रीज की ठंडक में रहता हुआ गंभीर लेखन कर्म करता हूं ...तुम दो टके की शक्कर जैसे देशी और अनकल्चर्ड लेखकों जैसा बाहर 48 डिग्री में बैठकर नही लिखता हूं.... तुम लिखती भी हो तो क्या...सिर्फ़ हा.. हा.. ही..ही.. ठी... ठी...और वो भी दूसरों पर कडवे कसैले व्यंग......सिर्फ़ लोगों की खिल्ली उडाना.... कभी गंभीर लेखन करो तो तुम्हारे समझ आये कि गंभीर लेखन क्या होता है? मैं गंभीर हूं, कोमल हूं, बच्चे बूढे सबके काम आता हूं......हंस के जैसा सफ़ेद हूं....सब मेरी उपमाएं देते हैं. समाज में मेरी इज्जत है. कई जगहों पर समारोहों कि अध्यक्षता के लिये बुलाया जाता हूं...लोग मेरा सम्मान करते हैं.
उसकी बात सुनकर शक्कर और जोर से हंसने लगी. अब तो दूध बिल्कुल उफ़न पडा और हिंदी से अंग्रेजी पर आ गया.... बोला - यू ब्लडी किरकिरी....अनसिवीलाईज्ड...विदाऊट एनी यूनीफ़ार्म शेप गर्ल...तुम लोगों को शूगर रोग का मरीज बनाने वाली....बच्चों के दांतो को कीडा लगाने वाली जाहिल....लेखकों में दूसरों पर कटाक्ष करने वाली व्यंगिणी...... इसी तरह दूध आंय बांय बकने लगा....और शक्कर को मारने के लिये उठने लगा कि टूटी टांग के दर्द ने हिलने नही दिया और दर्द के मारे कराहने लगा.
अब शक्कर अपनी मिठास भरी वाणी में बोली - अरे दूध भैया माना कि तुम अंगरेजी के लेखकों और हिंदी के पुरस्कार प्राप्त लेखकों जैसे हो पर तुम्हारा दंभ बिल्कुल गलत है. तुम फ़्रीज की ठंडक में बैठकर गम्भीर लेखन करते हो...तुम्हारा आदर सत्कार सब करते हैं. पर देखो...तुम को जरा सा ज्यादा गर्म करते ही तुम उफ़न पडते हो...सीधे भगौने से बाहर...किसी काम के नही. ठीक है हम कडवे कसैले व्यंग लिखते हैं... पर उनमें तुम्हारी तरह दंभ नही होता...जरा मेरे कडवे कसैले व्यंग मुंह में डालकर तो देखो...कठोर और खुरदरे होने के बावजूद तुम्हारे मूंह में मिठास और हंसी ना आ जाये तो मुझसे कहना.
शक्कर की यह बात सुनते ही ताऊ बोला - वाह शक्कर वाह, क्या बात कही है तुमने? सच में तुम्हारे व्यंग यदि समझ लिये जायें तो जबान पर मिठास और हंसी ही आयेगी. और ये दूध जबरन अभिमान करता है. जरा सा ज्यादा गर्म करते ही यानि गंभीरता को चुनौती मिलते ही उबाल खा कर बाहर आ जाता है. किस काम की इसकी गंभीरता? एक तरफ़ तुमको (व्यंग और हास्य) जितना ही ज्यादा उबालों तुम और ज्यादा चाशनी सी मीठी हो जाती हो और गुलाब जामुन, जलेबी और इमरती जैसी मिठाईयां में जान डाल देती हो.
इतना कहकर ताऊ चुप हुआ ही था कि रामप्यारी बोल पडी - अरे दूध भैया, चलो अब तुम्हें ताऊ हास्पीटल में ले जाकर तुम्हारा कैट-स्केन करवा देती हूं फ़िर प्लास्टर भी चढवाना पडेगा.
इस पर ताऊ बोला - हां हां रामप्यारी, अब तो तु भी समझदार हो गई है...बिना कहे ही इसका कैट-स्केन करवाने ले जा रही है. और हां सुन, इस दूध को जब दूध पिलाना हो, तब उस दूध में दो चम्मच शक्कर (व्यंग) मिला देना वर्ना ये गंभीर महाराज दूसरों को भले ही दूध (गंभीरता) पिलाते हों पर खुद बिना शक्कर नही पी पायेंगे.
रामप्यारी ने पूछा - ताऊ इस दूध को शक्कर मिला कर दूध पिलाना है? ये तो शक्कर दीदी से झगडता रहता है ये कैसे पीयेगा शक्कर (व्यंग) वाला दूध.
ताऊ बोला - रामप्यारी अब मेरी जबान मत खुलवा ...मैने कई बार देखा है ये गंभीर लेखन वाले दूध महाराज जब भी दूध पीते है तब चोरी छिपे उसमे शक्कर (व्यंग) मिलाकर ही पीते है....सिर्फ़ दूसरों को गंभीरता का पाठ पढाते हैं....जा जल्दी जाकर इसका कैट-स्केन करवा कर इसकी मरहम पट्टी करवा.
बहुत खूब ताऊ जी किसी को तो बक्शो आप | आपका अंदाज़ लाजवाब |
ReplyDeleteकभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
Tamasha-E-Zindagi
Tamashaezindagi FB Page
आभार तुषार भाई.
Deleteरामराम.
बहुत सुन्दर व्यंग्य है ताऊ, बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए !
ReplyDeleteआभार सुमन जी.
Deleteरामराम.
बस दूध और शक्कर मिल जाये और कुछ स्वादिष्ट बन जाये।
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहना है आपका.
Deleteरामराम.
हम अति गुण गान करें तो स्वाभाविक रूप से अभिमान हो ही जाता है. जैसे कि विभिन्न पुरस्कार प्राप्त लेखक, बिना पुरस्कार पाये लेखक को दीन हीन समझकर हेयता से देखते हैं.
ReplyDeleteआभार धीरेंद्र जी.
Deleteरामराम
वाह......
ReplyDeleteशुक्र है जीत मिठास की हुई :-)
आपका जवाब नहीं ताऊ जी.
सादर
अनु
शुक्रिया अनु जी.
Deleteरामराम.
अब क्या कहूं ताऊ, सब कुछ तो कह ही दिया आपने.
ReplyDeleteआभार भारतीय नागरिक जी.:)
Deleteरामराम
दूध महाराज हैं कहाँ ..??
ReplyDeleteताऊ असली मामले पर आओ यार , शक्कर तो चाहिए ही !
दूध महाराज फ़िल्हाल तो ताऊ होस्पीटल में प्लास्टर करवा कर पडे हैं. अभी उनका कैट स्केन होना है तब मालूम पडेगा.:)
Deleteरामराम.
AAPAKA APRATYAKSH KATHAN BHA GAYA CHAE KISI KO KAHA GAYA HO
ReplyDeleteSAMAJHANE WALE KE LIYE KAFI HAI CHAY TO AAPANE PILA HI DI HAI.
आभार रमाकांत जी.
Deleteरामराम.
वाह ताऊ वाह। आजकल तो गजब का लेखन हो रहा है! ठण्डे मुल्क वालों की भी उतार दी और गम्भीरता की भी। एकदम बढिया व्यंग्य।
ReplyDeleteहौंसला अफ़्जाई के लिये आभार अजीत जी.
Deleteरामराम.
@ मैने कई बार देखा है ये गंभीर लेखन वाले दूध महाराज जब भी दूध पीते है तब चोरी छिपे उसमे शक्कर (व्यंग) मिलाकर ही पीते है....सिर्फ़ दूसरों को गंभीरता का पाठ पढाते हैं....जा जल्दी जाकर इसका कैट-स्केन करवा कर इसकी मरहम पट्टी करवा.
ReplyDeleteसच कहा दूध के घायल अभिमान की मरहम पट्टी और स्केन करवाना जरुरी है !
ताऊ एक शंका है मन में कैट स्केन का मतलब CT स्केन है क्या ?
आपने पूछा है कैट स्केन का मतलब CT स्केन है क्या?
Deleteजी नही, CT स्केन तो बहुत पुरानी तकनीक है. कैट स्केन ताऊ होस्पीटल की latest technic है जो ताऊ की बिल्ली रामप्यारी करती है. यहां टेंपलेट में खराबी की वजह से लिंक नही लग पा रहे हैं.
आप यदि गूगल में "ब्लाग हिट कराऊ एवम टिप्पणी खींचू तेल" सर्च करें तो उपरोक्त नाम की पोस्ट मिलेगी, उस पोस्ट से आपको CT स्केन के बारे में शायद कुछ जानकारी मिल सकेगी.
ताऊ होस्पीटल की अन्य और भी पोस्ट हैं पर फ़िल्हाल तो यही ध्यान में आ रही है.
कैट स्केन द्वारा सारे शरीर की माइक्रो लेबल तक जांच की जा सकती है, यह तकनीक सिर्फ़ ताऊ हास्पीटल में ही उपलब्ध है और इस तकनीक की एक मात्र जानकार तकनिशियन मिस. रामप्यारी है.:)
रामराम.
अभी कल ही ये मशीन देखी थी -- यह सीटी बजाने से काम करना आरम्भ कर देती है। :)
Deleteअब तो डाक्टर दराल साह्ब ने भी मशीन की तकनीक टेस्ट कर ली, सुमन जी को अब यकीन हो गया होगा कि ऐसी सचमुच की मशीन है.:)
Deleteरामराम.
बहुत तेज़ और दूर तक दृष्टि पहुँचती है!बहुत बढ़िया कटाक्ष!
ReplyDeleteसमझने वाले समझेंगे ....रामप्यारी लौट आयी ...अच्छा लगा!
आभार अल्पना जी, रामप्यारी की स्कूल से छुट्टियां लग गई है तो अब दुबारा स्कूल शुरू होने तक उसकी बक बक चालू रहेगी.:)
Deleteरामराम.
करारा व्यंग कसा है ताऊ आज तो !!
ReplyDeleteआभार पूरण जी.
Deleteरामराम.
wah wah
ReplyDeleteआभार अंतर सोहिल जी.
Deleteरामराम.
आभार शाश्त्री जी.
ReplyDeleteरामराम.
मैने कई बार देखा है ये गंभीर लेखन वाले दूध महाराज जब भी दूध पीते है तब चोरी छिपे उसमे शक्कर (व्यंग) मिलाकर ही पीते है....सिर्फ़ दूसरों को गंभीरता का पाठ पढाते हैं....
ReplyDeleteतीक्ष्ण कटाक्ष .... वैसे कैट स्कैन से पता चल जाएगा कि दूध महाराज में क्या क्या मिला हुआ है ... यूरिया से तो वैसे भी विचार तेज़ी से उगते होंगे :):)
हा हा हा...सही कहा आपने, युरिया फ़सल पैदावार बढाता है तो विचारों की पैदावार भी अवश्य बढायेगा.:)
Deleteरामराम.
अंग्रेज़ीदां बाबुओं की तो क्या कहें यहां ता हिंदी में भी ढेरों नकचढ़े झाड़ की फुनकी पर चढ़े बैठे हैं और आंखभिचे कबूतर ही की तरह, मानने को तैयार ही नहीं कि मियां वक्त बदल रहा है, साथ चलो वर्ना कहीं बहुत पीछे छूट जाओगे...
ReplyDeleteबिल्कुल सही कहा काजल जी.
Deleteआभार.
रामराम.
ताऊ हॉस्पिटल में कैट ही नहीं , रैट , करैट , बैट आदि सभी स्कैन गारंटीशुदा रिपोर्ट के साथ किये जाते हैं। :)
ReplyDeleteताऊ हास्पीटल...यानि सब सुविधाएं एक छत के नीचे...:)
Deleteरामराम.
रामप्यारी लौट आयी ...अच्छा लगा!
ReplyDeleteजरूरी कार्यो के ब्लॉगजगत से दूर था
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ
स्वागत है आपका, आभार.
Deleteरामराम.
ReplyDeleteइसलिए ही तो हमको शक्कर इतनी प्रिय है ! व्यंग्य का मजा तब ही जब इंसान अपना अवलोकन करने को विवश हो या खिसियान हंसी हंस कर रह जाए !
ताऊ आजकल क्या खा पी रहे हैं ,गजबे गजब लिख रहे हैं !!
हा हा हा...खाने पीने की तो कुछ पूछिये ही मत.
ReplyDeleteखाने में रोजाना चार छह लठ्ठ और पीने में जौ की घाट वाली राबडी.:)
रामराम.