इस दुनियां के दस्तूर बडे निराले हैं. असल मे जो खतरनाक दिखाई देता है वो खतरनाक नही होता. और जो शरीफ़ और नेक दिल दिखाई देता है वो उतना ही शातिर बदमाश और जानलेवा सिद्ध होता है. ये अनेकों बार की आजमाई हुई बात है.
चम्पा और रूपा जंगल की तरफ़ जाते हुये
अक्सर चंपा गधेडी को ईंधन वगैरह लेने जंगल जाना पडता था. उसके श्रीमान संतूनारायण जी गधे तो कमाने के लिये परदेश में ही ज्यादा रहा करते थे. चम्पा बहुत समझदार तथा बुद्धिमान शरीफ़ खातून थी. गांव गली के शोहदे भाभीजी ..भाभीजी..कह कर उससे बात जरुर लिया करते थे..पर उनको मालूम था कि चम्पा भाभी ने एक सीमा रेखा बना रखी थी अपने और दूसरों के बीच. उसका उल्लंघन एक बार अकडू गधे ने करने की कोशीश की थी. तब उस अकडू गधे की क्या दुर्गति चम्पा भाभी ने की थी वो किस्सा हम आपको बाद मे कभी सुनायेंगे. आज तो यह कहानी सुनाने का मकसद हमारा कुछ और है.
अब चम्पा भाभी की एक कन्या भी थी रुपकला. जिसे प्यार से सभी रुपा कह कर बुलाया करते थे. कुदरत की नायाब रचना थी रूपा. मां की तरह ही रुपा भी गुणों के अलावा रुप रंग मे भी आला दर्जे की थी. धीरे धीरे बचपन विदा ले रहा था और जवानी का आगमन होने लगा था. और यही कारण था कि चम्पा भाभी उसको कभी भी अपनी नजरों से ओझल नही होने देती थी. रुपा लाख समझदार हो पर इस उम्र मे बचपना नादानी और शोखियां तो स्वाभाविक तौर पर लडकियों मे होती ही है.
रुपा गधेडी पर डोरे डालने को शेर बना किश्शू गधेडा
रोज की तरह दोनों मां बेटी एक दिन जंगल जारही थी. कुछ ही समय बाद बरसात का मौसम शुरु होने वाला था सो चूल्हे मे जलाने को लकडियां इक्कठी करने नियमित जंगल जाना पडता था. और गांव के दूसरे गधे गधेडियां और उनके बाल बच्चे भी जंगल जाया करते थे. छोटे छोटे समूह मे सब अपनी लकडियां इक्कठी करके शाम तक लौट आते थे.
रुपकला और चम्पा के आसपास भी झुंड मे दूसरे गधेडे होते थे. अक्सर रुपकला को लकडी बीनने मे मदद कर देते थे. अगर कोई कांटा वगैरह रुपा गधेडी को लग जाये तो सब आंख बिछाये तैयार खडे रहते थे. बल्कि किश्शू टाईप के गधेडे तो भगवान से प्रार्थना ही करते रहते थे कि हे भगवान कब रुपा को कांटा चुभे और कब हम उसका कांटा निकालने के बहाने उसके नर्म नर्म और नाजुक पैरो को छू सके और अगर छूने का सौभाग्य ना मिले तो जब वो आय..आय करती हुई कांटा निकलवायेगी तब एकटक उसके पांवो को निहार कर ही धन्य हो सकें.
अब अचानक रुपा के जोर से चिल्लाने की आवाज आई...अरे कोई बचाईयो रे..मर गई..मम्मी..जल्दी आवो...तुरत फ़ुरत सब उधर भागे...देखा रुपा एक गहरे अंधे कुयें मे गिरी हुई है और जोर जोर से चिल्ला रही है.
उपर रुपकला ..हाय मेरी बच्ची..अब क्या करुं..अरे कोई निकालो इसको...का विलाप कर रही थी. कुयें के चारों तरफ़ भीड लग गई...शोहदे सांतवना देने लगे..अरे भाभीजी आप चिंता मत करिये...रुपा को कुछ नही होगा...हम सब हैं ना..मिल कर निकाल लेंगे उसको..इत्यादि..इत्यादि...
अब शोहदों की तो बांछे खिली हुई थी. जाने कितने दिनों की मुराद पूरी होगी? सब के मन मे लड्डू फ़ूट रहे थे..कि हाय कैसा लगेगा जब..रुपकला का हाथ पकडकर कुयें से बाहर खींचेगे? और सब बाहर निकालने की योजना बनाने लगे...सबके मन मे लड्डू फ़ूट रहे थे कि क्या पता किस पर रुपकला रीझ जाये और उसी की जीवन संगिनी बनने का निश्चय करले?
कुयें पर चारों तरफ़ भीड लगी थी. और सब अपना अपना सर्वश्रेष्ठ मत जाहिर कर रहे थे कि अचानक शेर के दहाडने की आवाज आई. बस सारे गधे और गधेडियां दुल्लत्ती झाडते हुये भाग लिये वहां से.
शेर के डर से भागे हुये गधों ने गांव के पास आकर सांस ली!
किश्शू गधेडा जो कुंये मे झुककर अपना हाथ रुपकला की तरफ़ बढा रहा था और उसको उचक कर अपना हाथ पकडने को कह रहा था ..वो भी भागने की तैयारी करने लगा...शेर धीरे धीरे नजदीक आता जा रहा था. चम्पा भाभी ने किश्शू से रुकने की बहुत गुजारिश की..पर आज किश्शू ने सिद्ध कर दिया कि लैला मजनूं का जमाना और रहा होगा..आज के जमाने मे..जान इश्क से उपर है. और सही भी है..जान बचेगी तो इश्क लडाने वालियां और बहुत मिल जायेंगी...सो किश्शू भी भाग लिया. वाह रे इश्कबाज..!
अब रुपकला कुयें के अंदर कुछ समझ ही नही पा रही थी कि उसको बचाने के लिये जो शोहदों की भीड टुट रही थी वो क्यों और कहां भाग गई? और ऊपर चम्पा भाभी ममता की मारी भाग कर जाये भी तो कैसे? सही है आज इश्क मुश्क तो नकली होगया पर मां की ममता आज भी वही है. धीरे धीरे शेर सामने आकर खडा हो गया. चम्पा हताश निराश और किसी अनहोनी के इंतजार मे..चुपचाप खडी देख रही है.
शेर के पीछे पीछे ही उसकी शेरनी और बच्चे भी आ पहुंचे. शेर ने देखा कि आज तो अच्छी मोटी ताजी गधेडी का शिकार मिला है. सारा कुनबा आराम से पेट भरकर खायेगा.
अब शेर रुपकला की गर्दन दबाने के लिये छलांग लगाने ही वाला था कि शेरनी बोली - अरे मुन्ने के पापा, कुछ याद आया?
शेर बोला - भागवान , शिकार के समय क्या याद आयेगा भला?
शेरनी बोली - अरे मुन्ने के बापू, आप भी अब लगता है जवानी खोते जा रहे हो? अरे अभी से दिखाई देना कम होगया क्या? या चश्मा लगवाना पडेगा? अरे ये देखो ये तो वो चम्पा गधेडी है.
शेर बोला - चम्पा गधेडी? वो जिसने अपने मुन्ने को दूध पिलाया था?
शेरनी बोली - अरे अब याद आया आपको सही मे. मैने तो सोचा तुम बुढ्ढे होगये हो? पर तुम तो अभी एकदम ही जवानों की माफ़िक याद दाश्त रखते हो? और शेरनी ने चम्पा गधेडी से हाल चाल पूछे. अचानक चम्पा को याद आया कि जब शेरनी ने बच्चे को जन्म दिया था तब शेरनी भयानक रुप से बीमार पड गई थी. और तब शेर चम्पा को ऊठा लेगया था जंगल में और शेर के बच्चे को तब चम्पा ने ही दूध पिलाया था दो सप्ताह तक. इस वजह से शेर और शेरनी चम्पा के बडे एहसानमंद थे.
रुपा गधेडी को कुयें से बाहर निकालने के बाद सब वहीं आराम करते हुये!
शेर, शेरनी और चम्पा ने मिलकर रुपा को कुयें से बाहर निकाला और थोडी देर वहीं विश्राम करके उनको अपने घर ले गये. वही रुपा की मरहम पट्टी करवाई और तीन चार दिन उन दोनों मां बेटी की अच्छी तरह खातिरदारी की. स्वस्थ होने पर शेर और शेरनी अपने निजी वाहन से उनको गांव छोड गये. ये देखकर गांव मे चम्पा का रुतबा और बढ गया.
अब ये सारा माजरा एक बाज (hawk) की बीबी देख रही थी. उसे विश्वास ही नही हुआ कि एक मांसाहारी शेर एक गधेडी और उसकी बेटी को खाने के बजाये उसकी मदद करते हुये खातिरदारी करेंगे और इलाज करवा कर सकुशल उसे उनके घर पहुंचा कर आयेंगे?
उससे जब नही रहा गया तो उसने तेजी से उडान भरी और आकर ताऊ से पूछने लगी कि आज उसने ऐसा आश्चर्य देखा. ऐसे कैसे हो सकता है?
ताऊ बोला - अरे बाजणी, यही तो सच्ची सेवा है? निस्वार्थ सेवा....इसके बदले में तो सीधे स्वर्ग की सीट रिजर्व होती है. यानि अपने से सक्षम की सेवा तो सब करते हैं..पर स्वर्ग मिलता है अपने से कमजोर और असहाय की सेवा करने से.
बाजणी बोली - ताऊ मौका पडने दे ..मैं इसी तरियां स्वर्ग की सीट बुक करवा लूंगी.
थोडे दिन बाद...जंगल मे पानी बरसा ..बहुत घनघोर...और एक चूहे के जरा जरा से चार बच्चे थे..वो भी बिल मे पानी भरने से बाहर आकर बहने लगे. वहीं पेड पर अपने घोंसले मे बाजणी बैठी इनको देख रही थी पानी मे बह्ते हुये...और वो इनको अपना आहार बनाने ही वाली थी कि अचानक बाजणी को, ताऊ द्वारा बताई, स्वर्ग की सीट बुक करवाने की याद आई... उसने सोचा कि इनसे ज्यादा असहाय और कमजोर अब और कौन मिलेगा? सो यह मौका नही छोडना चाहिये.
बाजणी ने तुरंत उन चूहे के छोटे बच्चों को सावधानी से उठाया और उनको अपने घोसलें में ले आई...और अपने पंखों से उन चूहे के बच्चों को ढका और खिलाया पिलाया. चूहे के बच्चे ..उसके पंखो की गर्मी पाकर सूख गये...और सूखते ही आदतानुसार .. उनके दांत कुलबुलाने लगे....और बाजणी उनको अपने पंखों के नीचे दबाये स्वर्ग के सपने देख रही थी..चूहे के बच्चों ने रात भर मे बाजणी के दोनों पंखों को कुतर खाया...
सुबह हुई..बाजणी ने सोचा ..कि जाकर ताऊ को बतादे..कि स्वर्ग की सीट बुक अब तो हो ही गई होगी? जैसे ही उसने उडान भरने की कोशीश की...उसका कलेजा धक से रह गया....अशक्त..बिल्कुल निसहाय..मुडकर देखा तो...उसके पंख ही गायब....और चूहे के बच्चे...उसके घोंसले से बाहर निकल कर पेड की शाखाओं पर खेल रहे थे....उसको ताऊ पर बहुत गुस्सा आया...पर क्या करें...?
ताऊ बोला - देख बाजणी...मैं तो बिना बात ही बदनाम सूं...बदमाशों से बदले तो भगवान ही निकाल दिया करै सै..अपने आप... पर इसमे बदले वाली कोई बात नही सै. अरे तेरे को ये तो सोचना था कि मदद किसकी करनी चाहिये और किसकी नही? बिना सोचे समझे स्वर्ग की सीट बुक करवाने वालों की तो यही गति होती है.
अक्सर चंपा गधेडी को ईंधन वगैरह लेने जंगल जाना पडता था. उसके श्रीमान संतूनारायण जी गधे तो कमाने के लिये परदेश में ही ज्यादा रहा करते थे. चम्पा बहुत समझदार तथा बुद्धिमान शरीफ़ खातून थी. गांव गली के शोहदे भाभीजी ..भाभीजी..कह कर उससे बात जरुर लिया करते थे..पर उनको मालूम था कि चम्पा भाभी ने एक सीमा रेखा बना रखी थी अपने और दूसरों के बीच. उसका उल्लंघन एक बार अकडू गधे ने करने की कोशीश की थी. तब उस अकडू गधे की क्या दुर्गति चम्पा भाभी ने की थी वो किस्सा हम आपको बाद मे कभी सुनायेंगे. आज तो यह कहानी सुनाने का मकसद हमारा कुछ और है.
अब चम्पा भाभी की एक कन्या भी थी रुपकला. जिसे प्यार से सभी रुपा कह कर बुलाया करते थे. कुदरत की नायाब रचना थी रूपा. मां की तरह ही रुपा भी गुणों के अलावा रुप रंग मे भी आला दर्जे की थी. धीरे धीरे बचपन विदा ले रहा था और जवानी का आगमन होने लगा था. और यही कारण था कि चम्पा भाभी उसको कभी भी अपनी नजरों से ओझल नही होने देती थी. रुपा लाख समझदार हो पर इस उम्र मे बचपना नादानी और शोखियां तो स्वाभाविक तौर पर लडकियों मे होती ही है.
मोहल्ले के लौंडे लपाडे यानि किश्शू टाईप के लौंडे गधे तो घर के आसपास चक्कर काटा ही करते थे. कोई मौका ही ढूंढते रहते थे कि चम्पा भाभी उनको कोई काम बतादे और वो उसी बहाने रुपा से दो बातें ही करलें. और इनमे भी किश्शू गधे ने अपने थोबडे पर शेर का नकली चेहरा लगा रखा था.. लोगों को और खासकर जवान गधियों को आकर्षित और इंप्रेस करने के लिये..और गांव वालों मे एक दो लोग उसके जैसा जहीन किसी को नही मानते थे..क्योंकि उन मुर्खों के बीच एक दो शब्द अंग्रेजी के भी झाड लिया करता था. यानि अंधों मे काणा राजा था.. पर था निहायत और खालिश गधेडा ही.. पर चम्पा भाभी ने दुनियां देखी थी. इन लौंडो की क्या बिसात कि रुपकला की तरफ़ नजर भी उठा कर देख ले.
रोज की तरह दोनों मां बेटी एक दिन जंगल जारही थी. कुछ ही समय बाद बरसात का मौसम शुरु होने वाला था सो चूल्हे मे जलाने को लकडियां इक्कठी करने नियमित जंगल जाना पडता था. और गांव के दूसरे गधे गधेडियां और उनके बाल बच्चे भी जंगल जाया करते थे. छोटे छोटे समूह मे सब अपनी लकडियां इक्कठी करके शाम तक लौट आते थे.
रुपकला और चम्पा के आसपास भी झुंड मे दूसरे गधेडे होते थे. अक्सर रुपकला को लकडी बीनने मे मदद कर देते थे. अगर कोई कांटा वगैरह रुपा गधेडी को लग जाये तो सब आंख बिछाये तैयार खडे रहते थे. बल्कि किश्शू टाईप के गधेडे तो भगवान से प्रार्थना ही करते रहते थे कि हे भगवान कब रुपा को कांटा चुभे और कब हम उसका कांटा निकालने के बहाने उसके नर्म नर्म और नाजुक पैरो को छू सके और अगर छूने का सौभाग्य ना मिले तो जब वो आय..आय करती हुई कांटा निकलवायेगी तब एकटक उसके पांवो को निहार कर ही धन्य हो सकें.
अब अचानक रुपा के जोर से चिल्लाने की आवाज आई...अरे कोई बचाईयो रे..मर गई..मम्मी..जल्दी आवो...तुरत फ़ुरत सब उधर भागे...देखा रुपा एक गहरे अंधे कुयें मे गिरी हुई है और जोर जोर से चिल्ला रही है.
उपर रुपकला ..हाय मेरी बच्ची..अब क्या करुं..अरे कोई निकालो इसको...का विलाप कर रही थी. कुयें के चारों तरफ़ भीड लग गई...शोहदे सांतवना देने लगे..अरे भाभीजी आप चिंता मत करिये...रुपा को कुछ नही होगा...हम सब हैं ना..मिल कर निकाल लेंगे उसको..इत्यादि..इत्यादि...
अब शोहदों की तो बांछे खिली हुई थी. जाने कितने दिनों की मुराद पूरी होगी? सब के मन मे लड्डू फ़ूट रहे थे..कि हाय कैसा लगेगा जब..रुपकला का हाथ पकडकर कुयें से बाहर खींचेगे? और सब बाहर निकालने की योजना बनाने लगे...सबके मन मे लड्डू फ़ूट रहे थे कि क्या पता किस पर रुपकला रीझ जाये और उसी की जीवन संगिनी बनने का निश्चय करले?
हर लौंडा अपनी भरसक योजना बना रहा था. अब ये राज तो बाद मे जाहिर हुआ कि इस अंधे कुये पर घास फ़ूस तो किश्शू गधे ने ही डलवाया था कि किसी तरह चम्पा भाभी और रुपकला को प्रभावित कर सके. बेचारा अभी तक कुंवारा बैठा था रुपकला की आस मे. हाय रे अंधे इश्क.....जो ना करवाये वो कम....इश्क तो कहते हैं कि अच्छे भले को पपलू बनवा देता है...तो किश्शू गधेडे की क्या औकात?
कुयें पर चारों तरफ़ भीड लगी थी. और सब अपना अपना सर्वश्रेष्ठ मत जाहिर कर रहे थे कि अचानक शेर के दहाडने की आवाज आई. बस सारे गधे और गधेडियां दुल्लत्ती झाडते हुये भाग लिये वहां से.
किश्शू गधेडा जो कुंये मे झुककर अपना हाथ रुपकला की तरफ़ बढा रहा था और उसको उचक कर अपना हाथ पकडने को कह रहा था ..वो भी भागने की तैयारी करने लगा...शेर धीरे धीरे नजदीक आता जा रहा था. चम्पा भाभी ने किश्शू से रुकने की बहुत गुजारिश की..पर आज किश्शू ने सिद्ध कर दिया कि लैला मजनूं का जमाना और रहा होगा..आज के जमाने मे..जान इश्क से उपर है. और सही भी है..जान बचेगी तो इश्क लडाने वालियां और बहुत मिल जायेंगी...सो किश्शू भी भाग लिया. वाह रे इश्कबाज..!
अब रुपकला कुयें के अंदर कुछ समझ ही नही पा रही थी कि उसको बचाने के लिये जो शोहदों की भीड टुट रही थी वो क्यों और कहां भाग गई? और ऊपर चम्पा भाभी ममता की मारी भाग कर जाये भी तो कैसे? सही है आज इश्क मुश्क तो नकली होगया पर मां की ममता आज भी वही है. धीरे धीरे शेर सामने आकर खडा हो गया. चम्पा हताश निराश और किसी अनहोनी के इंतजार मे..चुपचाप खडी देख रही है.
शेर के पीछे पीछे ही उसकी शेरनी और बच्चे भी आ पहुंचे. शेर ने देखा कि आज तो अच्छी मोटी ताजी गधेडी का शिकार मिला है. सारा कुनबा आराम से पेट भरकर खायेगा.
अब शेर रुपकला की गर्दन दबाने के लिये छलांग लगाने ही वाला था कि शेरनी बोली - अरे मुन्ने के पापा, कुछ याद आया?
शेर बोला - भागवान , शिकार के समय क्या याद आयेगा भला?
शेरनी बोली - अरे मुन्ने के बापू, आप भी अब लगता है जवानी खोते जा रहे हो? अरे अभी से दिखाई देना कम होगया क्या? या चश्मा लगवाना पडेगा? अरे ये देखो ये तो वो चम्पा गधेडी है.
शेर बोला - चम्पा गधेडी? वो जिसने अपने मुन्ने को दूध पिलाया था?
शेरनी बोली - अरे अब याद आया आपको सही मे. मैने तो सोचा तुम बुढ्ढे होगये हो? पर तुम तो अभी एकदम ही जवानों की माफ़िक याद दाश्त रखते हो? और शेरनी ने चम्पा गधेडी से हाल चाल पूछे. अचानक चम्पा को याद आया कि जब शेरनी ने बच्चे को जन्म दिया था तब शेरनी भयानक रुप से बीमार पड गई थी. और तब शेर चम्पा को ऊठा लेगया था जंगल में और शेर के बच्चे को तब चम्पा ने ही दूध पिलाया था दो सप्ताह तक. इस वजह से शेर और शेरनी चम्पा के बडे एहसानमंद थे.
शेर, शेरनी और चम्पा ने मिलकर रुपा को कुयें से बाहर निकाला और थोडी देर वहीं विश्राम करके उनको अपने घर ले गये. वही रुपा की मरहम पट्टी करवाई और तीन चार दिन उन दोनों मां बेटी की अच्छी तरह खातिरदारी की. स्वस्थ होने पर शेर और शेरनी अपने निजी वाहन से उनको गांव छोड गये. ये देखकर गांव मे चम्पा का रुतबा और बढ गया.
अब ये सारा माजरा एक बाज (hawk) की बीबी देख रही थी. उसे विश्वास ही नही हुआ कि एक मांसाहारी शेर एक गधेडी और उसकी बेटी को खाने के बजाये उसकी मदद करते हुये खातिरदारी करेंगे और इलाज करवा कर सकुशल उसे उनके घर पहुंचा कर आयेंगे?
उससे जब नही रहा गया तो उसने तेजी से उडान भरी और आकर ताऊ से पूछने लगी कि आज उसने ऐसा आश्चर्य देखा. ऐसे कैसे हो सकता है?
ताऊ बोला - अरे बाजणी, यही तो सच्ची सेवा है? निस्वार्थ सेवा....इसके बदले में तो सीधे स्वर्ग की सीट रिजर्व होती है. यानि अपने से सक्षम की सेवा तो सब करते हैं..पर स्वर्ग मिलता है अपने से कमजोर और असहाय की सेवा करने से.
बाजणी बोली - ताऊ मौका पडने दे ..मैं इसी तरियां स्वर्ग की सीट बुक करवा लूंगी.
थोडे दिन बाद...जंगल मे पानी बरसा ..बहुत घनघोर...और एक चूहे के जरा जरा से चार बच्चे थे..वो भी बिल मे पानी भरने से बाहर आकर बहने लगे. वहीं पेड पर अपने घोंसले मे बाजणी बैठी इनको देख रही थी पानी मे बह्ते हुये...और वो इनको अपना आहार बनाने ही वाली थी कि अचानक बाजणी को, ताऊ द्वारा बताई, स्वर्ग की सीट बुक करवाने की याद आई... उसने सोचा कि इनसे ज्यादा असहाय और कमजोर अब और कौन मिलेगा? सो यह मौका नही छोडना चाहिये.
बाजणी ने तुरंत उन चूहे के छोटे बच्चों को सावधानी से उठाया और उनको अपने घोसलें में ले आई...और अपने पंखों से उन चूहे के बच्चों को ढका और खिलाया पिलाया. चूहे के बच्चे ..उसके पंखो की गर्मी पाकर सूख गये...और सूखते ही आदतानुसार .. उनके दांत कुलबुलाने लगे....और बाजणी उनको अपने पंखों के नीचे दबाये स्वर्ग के सपने देख रही थी..चूहे के बच्चों ने रात भर मे बाजणी के दोनों पंखों को कुतर खाया...
सुबह हुई..बाजणी ने सोचा ..कि जाकर ताऊ को बतादे..कि स्वर्ग की सीट बुक अब तो हो ही गई होगी? जैसे ही उसने उडान भरने की कोशीश की...उसका कलेजा धक से रह गया....अशक्त..बिल्कुल निसहाय..मुडकर देखा तो...उसके पंख ही गायब....और चूहे के बच्चे...उसके घोंसले से बाहर निकल कर पेड की शाखाओं पर खेल रहे थे....उसको ताऊ पर बहुत गुस्सा आया...पर क्या करें...?
इतनी ही देर मे ताऊ जंगल में आता हुआ दिखा और जैसे ही उस पेड के पास पहुंचा ...उपर से बाजणी ने आवाज लगाई..अरे सत्यानाशी ताऊ....मैने तेरा क्या बिगाडा था? मुझे ऐसी सलाह क्यों दे डाली? तेरा स्वर्ग तुझको मुबारक..मुझे मेरे पंख लौटा दे...मेरे को तो तूने जीते जी नरक मे पहुंचा दिया....तूने ये कौन से जन्म का बदला निकाला..
ताऊ बोला - देख बाजणी...मैं तो बिना बात ही बदनाम सूं...बदमाशों से बदले तो भगवान ही निकाल दिया करै सै..अपने आप... पर इसमे बदले वाली कोई बात नही सै. अरे तेरे को ये तो सोचना था कि मदद किसकी करनी चाहिये और किसकी नही? बिना सोचे समझे स्वर्ग की सीट बुक करवाने वालों की तो यही गति होती है.
बेहद रोचक और मार्मिक। रचना अच्छी लगी।
ReplyDeleteजान बचेगी तो इश्क लडाने वालियां और बहुत मिल जायेंगी...सो किश्शू भी भाग लिया. वाह रे इश्कबाज...
ReplyDeleteआज के इश्क बाजों की पोल तो खुद आपने ही खोल दी तो अब कहने को क्या बचा ...मा की ममता निस्वार्थ होती है ...मगर आजकल कुछ मिलावट भी होने लगी है ...!!
ताऊ जी !
ReplyDeleteबहुत बढ़िया शिक्षाप्रद कहानी | समझ गए " अहसान भी किसी व्यक्ति के स्वाभाव की प्रकृति व उसकी औकात समझकर ही करना चाहिए " ||
और किस्शु टाईप के लोंडे लपाटो का इलाज करने में तो तुरंत कर देना चाहिए |
बात तो ठीक सै ताऊ, यो के जुलम कर दिया थमने!
ReplyDeleteताऊ बहुत सटीक लिखा आपने, आखिर सहायता तो अपना भला बुरा सोचकर ही करनी चाहिये!
ReplyDeleteबहुत ही रोचक और मनोरंजन ढंग से आपने यह संदेश दिया, नहुत बधाई।
मेरी पिछली टिप्पणी मे नहुत को बहुत पढा जाये।
ReplyDeleteहा हा हा हा , बेहद प्रेरक प्रसंग....
ReplyDeleteregards
शेर बना किश्शू गधेडा तो कोई भी जान जाये कि बिल्कुल नकली बना खड़ा है/// बेनामी कहीं का!!
ReplyDeleteमस्त कथा रही..इसमें तो कड़ियां जुड़ धारावाहिक हो सकता है...कड़ियाँ तो शेर बना किश्शू गधेडा क्रिएट करवाता रहेगा अपनी वाहियात हरकतों से...आपको तो बस लिखना ही है और क्या!! :)
इति गधा पुराण!!!
ReplyDeleteजोरदार.
शिक्षाप्रद और मनोरजक कहानी के लिये हार्दिक धन्यवाद
ReplyDeleteप्रणाम स्वीकार करें
"अरे तेरे को ये तो सोचना था कि मदद किसकी करनी चाहिये और किसकी नही?"
ReplyDeleteदो दिन पहले ऐसी ही कहानी पर संजय बेंगाणी जी ने बहुत बढीया एकदम जोरदार यह टिप्पणी की थी। """(भारत न समझा था न समझेगा)""""
प्रणाम
-आज इश्क मुश्क तो नकली होगया पर मां की ममता आज भी वही है.
ReplyDelete**सच है आज की व्यवहारीक दुनिया में माँ की ममता वैसी ही है.
--मदद किसकी करनी चाहिये और किसकी नही!
***'होम करते हाथ जला 'कहावत शायद ऐसी किसी कहानी से बनी होगी.
** यह सीधी सादी सी लगने वाली कथा कुछ गंभीर बातें कह गयी है.
-------
चित्र बहुत बढ़िया बनाए हैं.[कथानुरूप ]
मदद देख कर की जानी चाहिए. ठीक है जी आगे से देख परख कर करेंगे. :)
ReplyDeleteबदमाशों से बदले तो भगवान ही निकाल दिया करै सै..अपने आप...
ReplyDeleteमीत
हा-हा-हा ताउजी सब गोलमाल है !
ReplyDeleteजान बचेगी तो इश्क लडाने वालियां और बहुत मिल जायेंगी...सो किश्शू भी भाग लिया. वाह रे इश्कबाज...
ReplyDeleteवाह ताऊजी ..आप भी बडे मजेदार किस्से सुनाते हैं।
जान बचेगी तो इश्क लडाने वालियां और बहुत मिल जायेंगी...सो किश्शू भी भाग लिया. वाह रे इश्कबाज...
ReplyDeleteवाह ताऊजी ..आप भी बडे मजेदार किस्से सुनाते हैं।
बहुत ही मार्मिक कहानी। बाजणी से बहुत सहानुभूति हुई।
ReplyDeleteवैसे ममता पर भी सेंध लगने क खबरें मिल रही हैं। शुद्ध कुछ भी नहीं रहा। ममता भी नहीं। सबको हानि लाभ के तराजू पर तोलने की रीत चल पड़ी है।
घुघूती बासूती
ताऊ कितनी शिक्षाप्रद कथा पढने को मिली.....
ReplyDeleteअर समीर जी का कहना दुरूस्त है कि ऎसे किश्शु टाईप के लौंडे लपाडे सुधरने वाले तो हैं नहीं...अब गधा कभी ढेँचू ढेँचू करना छोड सकता है भला । इसलिए यो तो पक्की बात है कि वो फिर से अपनी "गधागिरी" दिखाएगा तो जरूर...ओर इसी बहाने हमें भी कुछ ओर इस प्रकार की बोध कथाएँ पढने को मिल जाएंगी :)
bahut badhiya matlab..bahut hi badhiya..
ReplyDeletejiyo taau jiyo !
aanand aa gaya........
raam raam
आप एक मौलिक पंचतंत्र रच रहे हैं। बेहद रोचक और शिक्षाप्रद।
ReplyDeleteMazedar Kissa.
ReplyDelete------------------
शानदार रही लखनऊ की ब्लॉगर्स मीट
नारी मुक्ति, अंध विश्वास, धर्म और विज्ञान।
Jai ho.........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर!
ReplyDeleteपात्र देखकर ही सहायता करना चाहिये।
इस कहानी से हमें दो सीख मिलती है
ReplyDelete१-सच्चे प्यार की पहचान मुसीबत के समय होती है
२-मदद सोंच समझ कर करनी चाहिए
-- ताऊ जी,
यह कहानी तो बच्चों की पाठ्यपुस्तक में छपी होनी चाहिए।
ताऊ जी!
ReplyDeleteआज तो अपने पुराने रंग में नजर आये हो!
बढ़िया पोस्ट!
काबिले तारीफ!
बदमाशों से बदले तो भगवान ही निकाल दिया करै सै..अपने आप...
ReplyDeletebahut khub...mazak mazak mai aap gambhir baat kah gaye...
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ReplyDeleteब्लोग चर्चा मुन्नभाई की
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ताउउउउउउउउउउउउउउउउउउ
बढ़िया पोस्ट!
मंगल कामनायें
महावीर बी. सेमलानी "भारती"
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यह पढने के लिऎ यहा चटका लगाऎ
भाई वो बोल रयेला है…अरे सत्यानाशी ताऊ..मैने तेरा क्या बिगाडा था
हे प्रभु यह तेरापन्थ
मुम्बई-टाईगर
पता चल गया - कमसिन बंदरिया के चक्कर में ताऊ ने भी चोला बदला है
ReplyDeleteहल्के फुल्के अंदाज में अपनी बात रखी है आपने ............. पर सफल है आपका लेखन ............. बात सब तक पहुँच गयी ....... अच्छा संदेश दिया है आपने इस माध्यम से ....................
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