अरे ओ सांभा ! सुनता है मेरी गजल या दबाऊं घोडा?

जैसा कि आप पहले पढ चुके हैं कि ताऊ की शोले फ़िल्म बनना रुक गयी तो गब्बर और सांभा वहां से भाग कर वापस जंगल की और पलायन कर गये थे. रास्ते मे गांव के बच्चों ने सांभा को पत्थर मार दिये थे तो सांभा तुतलाने लग गया था. गब्बर ने उसका इलाज जैसे तैसे करवाया और सांभा ठीक होगया.

गब्बर और सांभा की डकैती का धंधा फ़िल्म मे काम करने की वजह से छुट गया था. पूरा गिरोह बिखर गया था. वापस आकर दोनों ने जैसे तैसे अपना गिरोह वापस संगठित किया और इन दोनो की मेहनत रंग लाई. दोनो ने अपना डकैती का धंधा वापस जमा लिया. अब ५० कोस तो क्या ५०० कोस तक बच्चे बूढ्ढे जावान सब इन दोनों के नाम से डरने लगे थे. दिन दूनी रात चोगुनी उन्नति करते जारहे थे.

साल २००९ बीतने को है. गब्बर और सांभा बैठे हैं. गब्बर को गजल सुनाने का बडा शौक हैं. अब ऐसे शातिर डाकुओं के पास गजल सुनने कौन आये? और गब्बर को सनक सवार की वो तो गजल सुनायेगा और गजल सुनायेगा तो कोई दाद खुजली देने वाला भी चाहिये. अचानक गब्बर बोल उठा.

गब्बर - अरे ओ सांभा..

सांभा - हां बोलो सरदार..

अरे सांभा...ले एक गजल अभी अभी दिमाग मे ताजा ताजा पकी है जरा सुन..

सांभा - उस्ताद ..मेरे को बहुत काम पडे हैं..मुझे समय नही है इन फ़ालतू के कामो के लिये. अभी वो नगर सेठ के यहां से लूट के लाये हुये गहने भी रस्ते लगाने हैं कि नही?



बस सांभा का इतना कहना था कि गब्बर ने पिस्तौल निकाल ली और चिल्ला कर बोला - सांभा ..सुनता है मेरी गजल या दबाऊं घोडा?

सांभा - उस्ताद, तुम कुछ भी करलो...मुझे गजल सुनने का समय नही है.....दबा ही डालो आज तुम्हारी लिबलिबी....

गब्बर - सांभा....जबान मत लडाओ...मेरे पेट मे गजल फ़डफ़डा रही है....

सांभा - उस्ताद, आज एक शर्त पर ही तुम्हारी गजल सुन सकता हूं ...

गब्बर - सांभा जल्दी बोल..मुझे तेरी सब शर्त मंजूर हैं...

सांभा - उस्ताद बदले में तुमको मेरी भी एक गजल सुनने पडेगी..

गब्बर - सांभा एक क्या तू बदले मे दो गजल सुना देना...चल अब सुन..

(सांभा मन ही मन बोलता है कि अगर मुझे गजल ही आती तो सुना सुना के तुमको पका नही डालता अभी तक...जैसे तुम मुझे पकाते हो. खैर आज तो तुमको भी बदले मे पकाये बिना नही छोडूंगा.)

सांभा - अच्छा उस्ताद..सुनावो गजल..मैं तैयार हुं...

अब गब्बर गजल सुनाना शुरु करता है...और सांभा दाद खुजली सब देता जा रहा है....

वो देखो कौन बैठा, किस्मतों को बांचता है
उसे कैसे बतायें, उसका घर भी कांच का है.

नहीं यूँ देखकर मचलो, चमक ये चांद तारों सी
जरा सा तुम संभलना, शोला इक ये आंच का है.

वो मेरा रहनुमा था, उसको मैने अपना जाना था,
बचा दी शह तो बेशक, शक मगर अब मात का है.

पता है ऐब कितने हैं, हमारी ही सियासत में
मगर कब कौन अपना ही गिरेबां झांकता है.

यूँ सहमा सा खड़ा था, कौन डरके सामने मेरे
जरा सा गौर से देखा, तो चेहरा आपका है.

चलो कुछ फैसला लेलें, अमन की फिर बहाली का
वो मेरे साथ न आये, जो डर से कांपता है.

थमाई डोर जिसको थी, अमन की और हिफाजत की
उसी को देखिये, वो देश को यूँ बांटता है.

दिखे है आसमां इक सा, इधर से उस किनारे तक
न जाने किस तरह वो अपनी सरहद नापता है.

कफ़न है आसुओं का और शहीदों की मज़ारें है
बचे है फूल कितने अब, बागबां ये आंकता है.


बिचारे सांभा को गजल की समझ कहां? वो चौबीसों घंटे लूटपाट चोरी डकैती के धंधो मे रमा रहने वाला आदमी. पर क्या करे? फ़िर भी पहचान गया कि ये समीर लाल ’समीर’ की लिखी गजल को गब्बर उस्ताद उडा लाये हैं और खुद की बता रहे हैं..

अब सांभा ने सुनाना शुरु किया....और गब्बर ने दाद देना शुरु किया.

कोई पंडित ही होगा जो किस्मतों को बांचता है
उसे तो खुद पता है, उसका ही घर कांच का है.

न दिखता चांद है न चमक तारों की दिखती है
मचलना तुम जिसे समजे, वो स्टेप नाच का है.

बड़े नादान हो तुम, जो गधे को रहनुमा समझे
बचे हो शह से अबके, वक्त अब की लात का है.

जो हो गोदाम ऐबों का, उसी का नाम सियासत है
उसी को हम गिरा डालें, हमें जो हांकता है.

उसे चुनाव लड़ना है तभी सहमा सा दिखता है
जिता कर देखा लो इक बार, कैसे डांटता है


अब गब्बर उस्ताद ने जम कर सांभा को दाद दी और कहा - सांभा तुम तो बहुत बहुत अच्छे गजलकार हो..भई लगातार लिखो..और प्रेक्टिस करो...

सांभा - उस्ताद अगर मैं गजल लिखने लग गया तो ये इतना बडा गिरोह कौन संभालेगा? गजल/कविता कहना हुनर तो है सरदार लेकिन यह रोटी नहीं देता.

गब्बर और सांभा की तरफ़ से आप सबको नव वर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं! अब अगले साल २०१० मे आपसे फ़िर मुलाकात होगी तब तक के लिये रामराम.

विशेष सूचना :-


साल २००९ की मेगा पहेली मे ताऊजी डाट काम पर हिस्सा लिजिये. और पहेली चेंपियन आफ़ २००९ बनने का सौभाग्य प्राप्त किजिये!

इस चित्र में कुल कितने चेहरे हैं? सभी के नाम बताईये!


अपना जवाब देने के लिये पधारिये ताऊजी डाट काम पर !

ताऊ पहेली - 54 : विजेता श्री मुरारी पारीक

प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम ! हम आपकी सेवा में हाजिर हैं ताऊ पहेली - 54 का जवाब लेकर. कल की ताऊ पहेली का सही उत्तर है कुंभलगढ फ़ोर्ट

और इसके बारे मे संक्षिप्त सी जानकारी दे रही हैं सु. अल्पना वर्मा.

बहनों और भाईयो नमस्कार. आईये अब आज के पहेली के स्थान के बारे में कुछ जानते हैं.

कुंम्भलगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग
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दक्षिणी राजस्थान के उदयपुर संभाग में नाथद्वारा से करीब २५ मील उत्तर की ओर अरावली की एक ऊँची श्रेणी पर कुंभलगढ़ का प्रसिद्ध किला है. समुद्रतल से इसकी ऊँचाई ३५६८ फुट है. इस किले का निर्माण सन् १४५८ (विक्रम संवत् १५१५) में महाराणा कुंभा ने कराया था अतः इसे कुंभलमेर (कुभलमरु) या कुंभलगढ़ का किला कहते हैं .

कुंभलगढ़, चित्तौड़गढ़ के बाद राजस्थान का दूसरा मुख्य गढ़ है,जो अरावली पर्वत पर स्थित है.कला और स्थापत्य की दृष्टि से विश्व के किलों में कुंभलगढ़ का किला अजेय और अप्रतिम माना जाता है.सूत्रधार मंडन ने इसकी परिकल्पना की और करीब सात सौ शिल्पियों ने दिन—रात अरावली के ख्यात शिखर पर किले को आकार दिया था.

कुंम्भलगढ़ का ऐतिहासिक दुर्ग अनेक कारणों से प्रसिद्ध है.



इसी दुर्ग में ऐतिहासिक पुरूष महाराणा प्रताप का जन्म हुआ था.

इस अजेय दुर्ग की दीवारें इतनी चौडी है कि इस पर कई घोड़े एक साथ दौड़ सकते है. चीन की दीवार (ग्रेट वॉल ऑफ चाईना) के बाद संभवत: यह दुनियाँ में दूसरी सबसे चौड़ी दीवार वाला दुर्ग है. भारत में सब से लंबी दीवार इसी दुर्ग की है.

इस दुर्ग की खासियत यह है कि यह दूर से नज़र आता है मगर नजदीक पहुंचने पर भी इसे देखना आसान नही हैं. इसी खूबी के कारण एक बार छोड़ इस दुर्ग पर कभी कोई विजय हासिल नहीं कर पाया.

सामरिक रणनीति के तहत राजस्थान के मेवाड़ एवं मारवाड़ क्षेत्र की सीमाओं पर निॢमत ११०० मीटर की ऊंचाई और १३ अन्य पहाडि़यों की चोटी से घिरा यह अनूठा दुर्ग हैं.मेवाड़ की सीमाओं की दुश्मनों से रक्षा करने के लिए मेवाड़ अंचल से बनाये गये ८४ छोटे-बड़े दुर्ग में से ३२ का निर्माण एवं डिजाईन महाराणा कुम्भा द्वारा करवाई गई थी.यह 12 किलोमीटर तक फैला हुआ है और कई मंदिर, महल व बाग इसमें स्थित है.

गणेशपोल गेट

बादल महल से आस-पास के देहातों का दृश्य दिखाई देता है. गढ़ में केवल सात द्वारों केलवाड़ा से ही पहुंचा जा सकता है.विजय पोल के पास की समतल भूमि पर हिन्दुओं तथा जैनों के कई मंदिर बने हैं.यहाँ पर नीलकंठ महादेव का बना मंदिर अपने ऊँचे-ऊँचे सुन्दर स्तम्भों वाले बरामदा के लिए जाना जाता है. इस तरह के बरामदे वाले मंदिर प्रायः नहीं मिलते. कर्नल टॉड जैसे इतिहासकार मंदिर की इस शली को ग्रीक (यूनानी) शैली बतलाते हैं. लेकिन अधिकांशतः विद्वान इससे सहमत नहीं हैं. यहाँ का दूसरा उल्लेखनीय स्थान वेदी है, जो शिल्पशास्र के ज्ञाता महाराणा कुंभा ने यज्ञादि के उद्देश्य से शास्रोक्त रीति से बनवाया था. राजपूताने में प्राचीन काल के यज्ञ-स्थानों का यही एक स्मारक शेष रह गया है. किले के सर्वोच्च भाग पर भव्य महल बने हुए हैं.

कुंभलगढ फ़ोर्ट


इस सुन्दर दुर्ग के स्मरणार्थ महाराणा कुंभा ने सिक्के भी जारी किये थे जिसपर इसका नाम अंकित हुआ करता था.

महाराणा कुंभा एक कला प्रेमी शासक थे.कला के प्रति उनके इस अनुराग को अविस्मरणीय बनाने के लिए राजस्थान पर्यटन विभाग ने वर्ष २००६ से 'कुंभलगढ़ शास्त्रीय नृत्य महोत्सव 'की शुरूआत की है.

कुंभलगढ़ में इस वर्ष यह महोत्सव २१ से २३ दिसम्बर तक चला.महोत्सव के दौरान दिन और रात में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन हुआ.इसमें तीनों दिन प्रात: ११ से अपरान्ह ३ बजे तक तीरंदाजी, पगड़ी बांधना, रस्साकस्सी, रंगोली और मांडणा बनाने की प्रतियोगिताओं के साथ ही राजस्थान के लोक कलाकारों की मनमोहक प्रस्तुतियाँ हुईं.

माननीय श्री रतन सिंह जी शेखावत द्वारा ज्ञानदर्पण पर कुम्भलगढ़ दुर्ग पर यह लेख लिखा गया था. जो आप यहां पढ सकते हैं. और youtube पर कुम्भलगढ़ किले की यह वीडियो भी उनके द्वारा लगाया गया है -देखीए-



अभी के लिये इतना ही. अगले शनिवार एक नई पहेली मे आपसे फ़िर मुलाकात होगी. तब तक के लिये नमस्कार।


आज के सम्माननिय विजेता क्रमश: इस प्रकार हैं. सभी को हार्दिक बधाई!

 

 श्री मुरारी पारीक  अंक १०१
  





 श्री रतन सिंह शेखावत अंक १००
seema-gupta-2 सुश्री सीमा गुप्ता  अंक ९९
श्री मीत अंक ९८
श्री प. डी.के. शर्मा "वत्स", अंक ९७
श्री नीरज गोस्वामी अंक ९६
  





 श्री संगीता पुरी,   अंक ९५





  सुश्री M.A.Sharma "सेहर"  अंक ९४ 

श्री  दिगम्बर नासवा  अंक ९३


निम्न महानुभावों के हम बहुत आभारी हैं जिन्होने इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह बढाया. हार्दिक आभार.

श्री स्मार्ट इंडियन
श्री दिलीप कवठेकर
डा.रुपचंद्र शाश्त्री "मयंक,
सुश्री निर्मला कपिला
श्री काजलकुमार,
सुश्री वंदना
श्री गौतम राजरिशी
श्री रजनीश परिहार
श्री मिश्रा पंकज
श्री राज भाटिया
श्री दिनेशराय द्विवेदी
श्री रामकृष्ण गौतम
डॉ टी एस दराल
सुश्री हरकीरत ’हीर’
श्री उडनतश्तरी
श्री विवेक रस्तोगी
श्री सोनू,
श्री मकरंद
श्री दीपक "तिवारी साहब"

आप सभी का बहुत आभार !

अच्छा अब नमस्ते.सभी प्रतिभागियों को इस प्रतियोगिता मे हमारा उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद. ताऊ पहेली – 54 का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और सुश्री अल्पना वर्मा ने किया. अगली पहेली मे अगले शनिवार सुबह आठ बजे आपसे फ़िर मिलेंगे तब तक के लिये नमस्कार.



महत्वपुर्ण सूचना


इस पोस्ट को तैयार करने मे हमसे भूल हो गई है. श्री संजय बेंगानी जी का जवाब ६ ठे नंबर आया था. जो त्रुटीवश शामिल नही किया जा सका. आज उनके द्वारा ध्यान दिलाये जाने पर इस पोस्ट मे यह सुधार आज दिन में ११:३० AM पर किया गया है.

उन्हे ६ ठे रैंक के हिसाब से ९६ नंबर दिये गये हैं और जो भी अन्य सम्माननिय विजेता इससे प्रभावित हुये हैं उनके अकाऊंट मे अपेक्षित सुधार किया गया है.


संजय बेंगाणी
said...
मन्ने तो कुम्भलगढ़ लाग रियो है.

Saturday, December 26, 2009 12:28:00 PM


त्रुटी के लिये खेद है!

ताऊ पहेली -54

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क्रिसमस की शुभकामनाएँ'

प्रिय बहणों और भाईयों, भतिजो और भतीजियों सबको शनीवार सबेरे की घणी राम राम.

'आप सभी को

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क्रिसमस की शुभकामनाएँ'



ताऊ पहेली अंक 54 में मैं ताऊ रामपुरिया, सह आयोजक सु. अल्पना वर्मा के साथ आपका हार्दिक स्वागत करता हूं. जैसा कि आप जानते ही हैं कि अब से रामप्यारी का हिंट सिर्फ़ एक बार ही दिया जाता है. यानि सुबह 10:00 बजे ही रामप्यारी के ब्लाग पर मिलता है. बाकी सभी नियम कानून पहले जैसे ही हैं.


यह कौन सी जगह है?


ताऊ पहेली का प्रकाशन हर शनिवार सुबह आठ बजे होगा. ताऊ पहेली के जवाब देने का समय कल रविवार दोपहर १२:०० बजे तक है. इसके बाद आने वाले सही जवाबों को अधिकतम ५० अंक ही दिये जा सकेंगे


अब आप रामप्यारी के ब्लाग पर हिंट की पोस्ट सुबह दस बजे ही पढ सकते हैं! दूसरा हिंट नही दिया जायेगा.

इस अंक के आयोजक हैं ताऊ रामपुरिया और सु,अल्पना वर्मा



नोट : यह पहेली प्रतियोगिता पुर्णत:मनोरंजन, शिक्षा और ज्ञानवर्धन के लिये है. इसमे किसी भी तरह के नगद या अन्य तरह के पुरुस्कार नही दिये जाते हैं. सिर्फ़ सोहाद्र और उत्साह वर्धन के लिये प्रमाणपत्र एवम उपाधियां दी जाती हैं. किसी भी तरह की विवादास्पद परिस्थितियों मे आयोजकों का फ़ैसला ही अंतिम फ़ैसला होगा. एवम इस पहेली प्रतियोगिता में आयोजकों के अलावा कोई भी भाग ले सकता है.


मग्गाबाबा का चिठ्ठाश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग

 

नोट : – ताऊजी डाट काम  पर हर सुबह 8:00 बजे और शाम 6:00 बजे नई पहेली प्रकाशित होती हैं. यहा से जाये।

शेर, ताऊ और न्याय सियार का

आपने पिछले अंको मे पढा कि बावलीबूच ताऊ को बातों मे फ़ंसाकर शेर ने अपने आपको पिंजरे से आजाद करवा लिया और पिंजरे से बाहर आते ही ताऊ पर खाने के लिये टूट पडा. ताऊ द्वारा न्याय की दुहाई देने पर शेर ने उससे ब्लाग मठाधीशों द्वारा न्याय करवा लिये जाने की राय दी. पर उसी समय उडनतश्तरी ने चेता दिया कि
"गलत दरवाजे ले आये ताऊ अपना केस आप...यहाँ तो मठाधीष आपको पिंजर में डाल दें शेर के साथ..छुड़वाने की बात तो छोड़ो. :)"


बस ताऊ ने तुरंत मठाधीशों से न्याय करवाने की बात टाल दी और शेर से निवेदन किया कि - हे प्रजापालक, आप तो न्याय के साक्षात अवतार हो. आप अपनी क्षुधा मुझे खाकर अवश्य शांत करिये वनराज. परंतु मैं यह नही चाहता कि आप पर यह आरोप लगे कि आपने बिना न्याय किये ही किसी का वध कर डाला. अत: आप जिससे भी चाहे न्याय करवा दें, पर ब्लाग पंचों से हरगिज नही.



शेर पर ताऊ की बातों का कुछ असर हुआ. और हो भी क्यों ना? आप किसी को जबरदस्ती चने के झाड पर चढादें और कहें कि वाह तुम तो नारियल के पेड पर चढ गये उस्ताद...आप जितना धुरंधर तो इस पूरे ब्लाग जगत में कोई नही है. ..और ऐसे पेड पर चढाने का काम तो ब्लाग जगत मे हम रोज ही करते हैं. जहां झाड छोडकर झाड का बीज भी ना हो वहां पर सौ फ़ीट का झाड बता कर उस पर चढाने मे माहिर हैं तो भला शेर की ताऊ के सामने क्या औकात? आखिर ताऊ भी खेटे खा खाकर इन चढाने उतारने के धंधों मे माहिर हो चुका था.

शेर ने आसपास देखा. वहीं एक आम का पेड खडा था. वो बोला - चल ताऊ, इस आम के पेड से न्याय करवा ले.
ताऊ ने सोचा - इस एहसान फ़रामोश शेर का दिमाग खराब होगया लगता है भूख के मारे. पर कोई उपाय नही था. ताऊ सोच रहा था कि जितना हो सके उतना समय व्यतित करना चाहिये, जिससे हो सकता है कोई मदद ही कहीं से आ जाये. क्या पता कोई नेकदिल ब्लागर ही इधर आ निकले? और फ़िर आम का पेड शेर के डर से शेर के पक्ष मे तो फ़ैसला देगा नही.

ताऊ बोला - जैसी आपकी आज्ञा वनराज. अब ताउ ने आम के पेड को अपनी दास्तां सुनाई कि कैसे ताऊ ने शेर को पिंजरे से छुडवाया और अब शेर इनाम के बदले ताऊ को ही खाना चाहता है.

आम का पेड बोला - अरे ताऊ, यही तो न्याय की बात है. इसमे कोई गलत बात नही है. वनराज तुमको अवश्य खायेंगे और यही न्याय और कायदा है. और शेर की तरफ़ देखकर बोला - शेर साहब, आपका फ़ैसला बिल्कुल सही है.

ताऊ को काटो तो खून नही. उसे उम्मीद भी नही थी कि शेर के डर से आम का पेड ऐसा फ़ैसला भी दे सकता है. उधर शेर ने जब यह फ़ैसला सुना तो ताऊ की तरफ़ ऐसे देखा जैसे परम न्याय पालक ने कोई गलत बात नही की थी.

उधर ताऊ ने आम से पूछा कि ये कहां का न्याय हुआ वृक्ष शिरोमणी? तो आम का पेड बोला - ताऊ देख, असली न्याय यही होता है. अब मुझे ही देख लो ..मैं सारी उम्र लोगो को मीठे फ़ल खिलाता हूं...गर्मी मे ठण्डी छांव देता हूं..इसके बदले मे लोग मुझे ही पत्थर मारते हैं...कुल्हाडी से काट डालते हैं..उनको मेरे उपकार और दुख दर्द की कोई चिंता नही होती. तो शेर महाराज का तुमको खाया जाना सर्वथा न्याय संगत है.

इधर शेर को पक्का होगया कि अब ताऊ के रुप मे शिकार फ़ंस ही गया है सो बडे गर्व से ताऊ की तरफ़ गर्दन उंची करके बोला - अब बोल ताऊ? और कहीं अपील करनी है क्या? चल अब तू एक काम कर..इस सडक से पूछ ले...इससे भी न्याय करवा ले.

सडक से पूछा गया. सडक बोली - ताऊ तेरे को शेर महाराज द्वारा खाया जाना न्याय संगत है. और कारण पूछने पर सडक बोली - देख ताऊ, लोग मुझपर से होकर चलते हैं. साफ़ सुथरा रास्ता मुझसे लेते हैं और बदले मे मुझे क्या मिलता है? मुझ पर ही थूक देते हैं. पेशाब मैला करके गंदी कर देते हैं.. जरुरत लगे तो मेरा सीना छलनी करके खोद भी दालते हैं. तो शेर साहब का तुमको खाया जाना बिल्कुल सही है. इसमे गलत तो कुछ भी नही है.

ताऊ ने सोचा कि यहां जंगल मे तो सारे कुंये मे ही भांग पडी हूई है. यहां किसी से न्याय की उम्मीद करनी ही बेकार है. इतनी देर मे दूर से एक सियार आता हुआ दिखाई दिया. सियार को देखकर शेर बोला - ताऊ, अब आखिरी तू चाहे तो इस सियार से न्याय करवा ले.

ताऊ बोला - मुझे न्याय की उम्मीद नही है. सियार तो तुम्हारे रहमो कर्म और टुकडों पर पलने वाला जीव है तो उससे क्या न्याय की उम्मीद करुं? आप तो मेरा भक्षण करिये और अपनी भूख मिटाईये.

पर शेर के ग्रह कुछ खराब हो चुके थे. शायद शेर के शनि मंगल बिगड गये थे, वो भूल गया था कि ये सियार अंदर ही अंदर शेर से नफ़रत करता है. अत: शेर जोश मे आता हुआ बोला - ना ताऊ, इस सियार से आखिरी फ़ैसला करवाले. मैं नही चाहता कि मुझे कोई अन्यायी वनराज कहे.

मरता क्या ना करता? ताऊ ने सियार से रोनी आवाज मे गुहार लगाई. और बोला - हे नीर क्षीर निर्णायक सियार साहब. मैने इस पिंजरे मे बंद शेर को पिंजरे से बाहर निकाला और अब ये मुझे ही खाना चाहता है. आप न्याय करिये.

ताऊ कुछ और बोलता..इसके पहले ही सियार बोला - अबे ओ ताऊ के बच्चे. तुझे कुछ थोडी बहुत शर्म भी है या नही? या सब बेच खाई? अरे नालायक ताऊ, तेरी जबान क्युं नही कट गई? ये कहते हुये कि महाराजाधिराज शेर साहब पिंजरे मे बंद थे और तूने उनको बाहर निकाला? अरे ये कैसे हो सकता है? हमारे परम वीर शूरवीर शेरू महाराज पिंजरे में बंद हो ही नही सकते. किसकी हिम्मत है जो महाराज की तरफ़ नजर ऊठाकर भी देख ले? पिंजरे मे बंद होना तो सपने मे भी संभव नही है.

इसी बीच शेर सिंह जी बोले - अरे सियार साहब, ये ताऊ वैसे तो झूंठों और लफ़ंगो का सरताज है. इसकी पूरी मंडली ही माहिर है इन कामों में. पर ये बात ये सही बोल रहा है. और मैं वाकई पिंजरे मे गलती से फ़ंस कर बंद हो गया था.

सियार चापलूसी करते हुये बोला - महाराज आपकी जबान से असत्य तो निकल ही नही सकता. आप तो साक्षात धर्मराज का अवतार हैं. पर मुझे ये बात गले नही उतर रही है कि आप इस जरा से पिंजरे मे बंद थे? अरे आप इतने विशाल डील डौल के धनी और इस पिंजरे के जरा से दरवाजे मे कैसे घुसे होंगे आप?

शेर बोला - सियार साहब, आप तो इस समय न्यायाधीश हैं. अत: न्याय के लिये मैं आपके समस्त प्रश्नों का विस्तृत उत्तर दूंगा. अब मैं आपको बताता हूं कि मैं कैसे इस पिंजरे मे घुसा था. और यह कहते हुये शेर उस पिंजरे मे वापस घुसा. और जैसे ही शेर वापस पिंजरे मे घुसा..उस सियार ने फ़ट से दरवाजा बंद करके कुंडी लगा दी.

अब वस्तु स्थिति समझ कर शेर, सियार को गालियां देता हुआ पिंजरे मे गुस्से से लाल पीला होता रहा और ताऊ सियार को धन्यवाद देता हुआ सियार के साथ उसके घर चला गया. जहां सियारनी ने दोनो को बढिया खाना खिलाया. इसके बाद सियार और ताऊ हुक्का पीते हुये बातचीत करने लगे. (क्रमश:)

क्या वो शेर पिंजरे से फ़िर कभी छूटा? क्या उसने ताऊ और सियार से अपना बदला लिया? यह सब जानिये अगले अंक मे...

ताऊ पहेली - 53 विजेता श्री प्रकाश गोविंद

प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम ! हम आपकी सेवा में हाजिर हैं ताऊ पहेली 53 का जवाब लेकर. कल की ताऊ पहेली का सही उत्तर है देवाशरीफ दरगाह, बाराबंकी

और इसके बारे मे संक्षिप्त सी जानकारी दे रही हैं सु. अल्पना वर्मा.

बहनों और भाईयो नमस्कार. आईये अब आज के पहेली के स्थान के बारे में कुछ जानते हैं.
सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की देवाशरीफ दरगाह

उत्तर प्रदेश राज्य का एक जिला है 'बाराबंकी'.यह लखनऊ से २९ किलमीटर पूरब में स्थित है.

बाराबंकी को नवाबगंज के नाम से भी जाना जाता है.यह जगह ऐतिहासिक दृष्टि से भी यह काफी महत्वपूर्ण है।

इस जगह पर कई राजाओं ने लम्बे समय तक शासन किया|

देवाशरीफ स्थित दरगाह लखनऊ से 42 किलोमीटर और बाराबंकी के जिला मुख्यालय से 12 किलोमीटर की दूरीपर स्थित है.सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की जन्मस्थली देवा है.उनका जन्म वर्ष 1823 इसवी में हुआ था

देवाशरीफ दरगाह


'जो रब वही राम 'का संदेश देने वाले सूफी संत हाजी शाह ने विश्व के सभी लोगों को प्रेम से रहने का संदेश दिया था. उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके हिन्दू और मुस्लिमों शिष्यों ने मिलकर उनकी याद में यह स्थान बनवाया था
हर साल यहाँ जुलाई के महीने में उर्स और कार्तिक माह में .सैयद कुर्बाद अली शाह के उर्स पर काफी बड़े मेले काबाराबंकी- फतेहपुर मार्ग पर आयोजन किया जाता है,जिसे देवा मेला के नाम से जाना जाता है.

कहते है की मुस्लिमो के तीन मुख्य तीर्थ स्थान ख्वाजा साहब अजमेर और निजामुद्दीन औलिया दिल्ली की यात्रादेवा के हाजी वारिस अली शाह पर माथा टेकने के बाद ही पूरी मानी जाती है। यहाँ अन्य धर्मो के लोग भी उसी संख्या में माथा टेकते हैं जितने की मुस्लिम समुदाय के लोग।

हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक भी इस दरगाह को माना जाता है.

बाराबंकी में देखने के लिए अन्य स्थल-

पारिजात वृक्ष, किन्तूर, बाराबंकी


१-पारिजात:-बाराबंकी पारिजात वृक्ष के लिए विश्व प्रसिद्ध है.
पारिजात किन्तूर गांव में है। इस जगह पर एक मंदिर है जिसकी स्थापना कुंती ने की थी. मंदिर के समीप में ही यह वृक्ष है जिसे पारिजात के नाम से जाना जाता है. माना जाता है कि यह वृक्ष लगभग 1000 से 5000 वर्ष पुरानाहै। इस वृक्ष की ऊंचाई लगभग 45 फीट है। इस वृक्ष में लगने वाले फूल काफी सुंदर होते हैं और इन फूलों का रंग सफेद होता है.इस वृक्ष के बारे में लोगों के अलग-अलग विचार है.कुछ का मानना है कि इस वृक्ष को अर्जुन स्वर्ग से लाए थे.इस वृक्ष के बारे में कहा गया है कि जो भी इस वृक्ष के नीच खड़े होकर कोई दुआ मांगता है, तो उसकी मुराद जरूर पूरी होती है।

2-महादेवा: इस जगह पर भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर लोधीश्वर मंदिर है.

3-सिद्धेश्वर मंदिर:प्रत्येक वर्ष शिवरात्रि के अवसर पर मंदिर में बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है. यहांपर सूफी संत काजी कुतुब का मकबरा भी स्थित है.काफी संख्या में लोग यहां पर आते हैं.

4-श्री त्रिलोकपुर तीर्थ: बाराबंकी जिले के त्रिलोकपुर में है.यह मंदिर भगवान नेमिनाथ को समर्पित है।

5-कोटव धाम मंदिर: इस मंदिर की स्थापना राजा द्वारा लगभग 550 पूर्व की गई थी।

6-सतरिख: यह वहीं तपोभूमि है जहां काफी संख्या में संत और योगियों ने तपस्या की थी.
यहां सैयद सलर मसूद का के पिता सलर शाह का मकबरा भी स्थित है. कहाजाता है कि इस जगह पर शेख सलाहुद्दीन के साथ सलर शाह भी आए थे और यहीं बस गए थे.

कैसे जाएं ?

वायु मार्ग: निकटतम हवाई अड्डा लखनऊ .
रेल मार्ग: नजदीकी रेलवे स्टेशन बाराबंकी रेलवे स्टेशन.
सड़क मार्ग: बाराबंकी सड़कमार्ग कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है.


अभी के लिये इतना ही. अगले शनिवार एक नई पहेली मे आपसे फ़िर मुलाकात होगी. तब तक के लिये नमस्कार।


आज के सम्माननिय विजेता क्रमश: इस प्रकार हैं. सभी को हार्दिक बधाई!

 

 

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  श्री प्रकाश गोविंद   अंक १०१

  श्री दिनेशराय द्विवेदी  अंक १००
seema-gupta-2  सु. सीमा गुप्ता अंक ९९
  श्री काजलकुमार अंक ९८
  डा. महेश सिन्हा अंक ९७

  SAMWAAD.COM अंक ९६
  प.श्री डी.के. शर्मा "वत्स" अंक ९५
  श्री रंजन अंक ९४
  श्री विवेक रस्तोगी अंक ९३
  श्री रतनसिंह शेखावत अंक ९२
  श्री उडनतश्तरी अंक ९१
  श्री संजय तिवारी ’संजू अंक ९०
 श्री स्मार्ट इंडियन अंक ८९
 श्री मकरंद अंक ८८
  श्री अविनाश वाचस्पति अंक ५०

श्री दिगम्बर नासवा   अंक ४९


निम्न महानुभावों के हम बहुत आभारी हैं जिन्होने इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह बढाया. हार्दिक आभार.

सु.M A Sharma "सेहर",

सु. निर्मला कपिला
सु. वंदना
डा.रुपचंद्र शाश्त्री "मयंक,
श्री मुरारी पारीक
श्री राज भाटिया
श्री गौतम राजरिशी

आप सभी का बहुत आभार !

अच्छा अब नमस्ते.सभी प्रतिभागियों को इस प्रतियोगिता मे हमारा उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद. ताऊ पहेली – 53 का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और सु. अल्पना वर्मा ने किया. अगली पहेली मे अगले शनिवार सुबह आठ बजे आपसे फ़िर मिलेंगे तब तक के लिये नमस्कार.

ताऊ पहेली - 53

प्रिय बहणों और भाईयों, भतिजो और भतीजियों सबको शनीवार सबेरे की घणी राम राम और सभी मुस्लिम भाई बहनो को 'इस्लामिक नव वर्ष 'की शुभकामनाएँ.

ताऊ पहेली अंक 53 में मैं ताऊ रामपुरिया, सह आयोजक सु. अल्पना वर्मा के साथ आपका हार्दिक स्वागत करता हूं. जैसा कि आप जानते ही हैं कि अब से रामप्यारी का हिंट सिर्फ़ एक बार ही दिया जाता है. यानि सुबह 10:00 बजे ही रामप्यारी के ब्लाग पर मिलता है. बाकी सभी नियम कानून पहले जैसे ही हैं.


यह कौन सी जगह है?


ताऊ पहेली का प्रकाशन हर शनिवार सुबह आठ बजे होगा. ताऊ पहेली के जवाब देने का समय कल रविवार दोपहर १२:०० बजे तक है. इसके बाद आने वाले सही जवाबों को अधिकतम ५० अंक ही दिये जा सकेंगे


अब आप रामप्यारी के ब्लाग पर हिंट की पोस्ट सुबह दस बजे ही पढ सकते हैं! दूसरा हिंट नही दिया जायेगा.


इस अंक के आयोजक हैं ताऊ रामपुरिया और सु,अल्पना वर्मा



नोट : यह पहेली प्रतियोगिता पुर्णत:मनोरंजन, शिक्षा और ज्ञानवर्धन के लिये है. इसमे किसी भी तरह के नगद या अन्य तरह के पुरुस्कार नही दिये जाते हैं. सिर्फ़ सोहाद्र और उत्साह वर्धन के लिये प्रमाणपत्र एवम उपाधियां दी जाती हैं. किसी भी तरह की विवादास्पद परिस्थितियों मे आयोजकों का फ़ैसला ही अंतिम फ़ैसला होगा. एवम इस पहेली प्रतियोगिता में आयोजकों के अलावा कोई भी भाग ले सकता है.


मग्गाबाबा का चिठ्ठाश्रम
मिस.रामप्यारी का ब्लाग

 

नोट : – ताऊजी डाट काम  पर हर सुबह 8:00 बजे और शाम 6:00 बजे नई पहेली प्रकाशित होती हैं. यहा से जाये।

"राज ब्लागर के पिछले जन्म के" खुशदीप ने उगलवाया ताऊ की शादी का राज

पिछले अंक मे आपने पढा था कि खुशदीप ने ताऊ को पिछले जन्म में लेजाकर सवाल पूछना शुरु किया. ताऊ अब अपने पिछले जन्म मे जब वो झंडू सियार था वहां पहुंच गया. अब यहां पर ताऊ को हम ताऊ झंडू नेता के नाम से जानेंगे... अब आगे पढिये.

पिछले जन्म में झंडू नेता तक पहुंचा ताऊ


खुशदीप : हां तो झंडू नेता जी, अब ये बताईये कि आपको क्या दिखाई दे रहा है?

ताऊ झंडू : जंगल मे विद्रोह...बगावत...मारकाट ..चारों तरफ़ आजादी की लडाई चल रही है.

खुशदीप : और क्या दिखाई देरहा है? आप क्या कर रहे हैं?

ताऊ झंडू : मैं...मैं...मेरे गले मे एक लेपटोप लटका हुआ है...मैं रिपोर्टिंग कर रहा हूं....

खुशदीप : हां ताऊ झंडू, आगे बता...क्या हुआ?

ताऊ झंडू : अभी अभी खबर आई है कि राजा शेरसिंह जी, जो कि महल मे घेर लिये गये थे उनको जनता ने महल मे घुसकर बंदी बना लिया है...चारो तरफ़ खुशी की तेज लहर सी दौडती दिख रही है....और अब सब तरफ़ शांति है...लोग अब अमन चैन से प्रजातंत्र मे रहने की सोच रहे हैं...अब सब तरफ़ जनता का राज होगा.

खुशदीप : हां तो ताऊ झंडू, नू बता कि अब वहां चुनाव हुये कि क्या हुआ? क्या दीख रहा है अब?

ताऊ झंडू : अब सब आजादी मे शामिल नेताओं की मिटींग चल रही है. एक मिनट...एक मिनट...

खुशदीप : हां ताऊ झंडू बोल..बोल के बोलरया था?

ताऊ झंडू : हां..अब साफ़ दिख भी रहा है और सुनाई बःई देरहा है...हमारा नेता कैसा हो? झंडू सियार जैसा हो? ये नारे तेज होते जारहे हैं. भीड सभा स्थल के आसपास इकठ्ठी हो रही है.

खुशदीप : हां और बता ताऊ झंडू..आगे क्या हो रहा है?

ताऊ : झंडू : हां तो आगे ....सभी के विरोध के बावजूद...एक रिटायर्ड और थके से स्वतंत्रता सेनानी रमलू हाथी को देख पा रहा हूं...एक मिनट...एक मिनट....

खुशदीप : हां बता ..आगे के हुआ?

ताऊ झंडू : हां अब रमलू दादा स्पीच दे रहे हैं...उन्होंने खडे होकर बोलना शुरु किया.....मेरी जंगल की प्यारी प्रजा....आप सबके सहयोग से और कुर्बानियों से हमने राजशाही को उखाड फ़ेंका है. आप मुझे सरपंच बना कर जंगल का राज सौपना चाहते हैं..पर मैं स्वेच्छा से झंडू नेताजी को सरपंच बनाना चाहता हूं..इनकी अथक रिपोर्टिंग और सूझबूझ से हम यह जंग जीतने मे कामयाब हुये हैं...मैं अब थक चुका हूं..आपकी सेवा मैं करता रहुंगा और इनको सब मार्गदर्शन भी देता रहुंगा...

खुशदीप : आगे बोल ताऊ झंडू..आगे बोल..इब के होरया सै?

ताऊ झंडू : इब आगे ...मुझको जंगल का सरपंच बना कर राजकाज सौंप दिया गया है. मैं एक उंचे से सिंहासन पर बैठा हूं...सब मेरा कहना मानते हैं..सब अमन चैन चल रहा है....

इतनी ही देर मे खुशदीप के मोबाईल की घंटी बजती है. ...वो फ़ोन उठाकर...हैल्लो..हैल्लो..अरे भाई मैं खुशदीप बोलरया सूं..थम कुण बोलरे हो?

उधर से आवाज आई - अरे खुशदीप भाई...मैं समीरलाल..बोलरया सूं कनाडे से...आवाज भी नही पीछाणते के
आजकल..

इधर से खुशदीप बोलने लगा --अरे रे समीरजी...रामराम..जी रामराम.....हुक्म करो जी मालकां..

समीरलाल जी - अरे भई हुक्म काहे का?..जरा ताऊ की पोलपट्टी अच्छी तरह खोलना..पहली बार चक्कर मे चढा है....कहां तक पूछताछ हुई?

खुशदीप : अजी पूछताछ मे तो ताऊ...कोई बहुत बडा स्वतंत्रता सेनानी लाग रया सै...इब लगता है..सीरीयल का भट्टा बैठना तय है...स्वतंत्रता सेनानी के किस्से कौन पसंद करेगा?

समीर जी - आप नू करो..जरा ताऊ के शादी विवाह के किस्से के बारे मे पूछना शुरु करो..कुछ ना कुछ उगलेगा ही..फ़िर नमक मिर्च लगा लेना.

खुशदीप : हां ये आपने बहुत सही सलाह दी..बस अब शुरु करता हूं उसी लाईन पर.....और अब पूछताछ का दौर आगे बढा.
..

खुशदीप : हां तो ताऊ झंडू..नू बता कि तेरी ताई..अरे मेरा मतलब..हमारी ताई और आपकी लुगाई कहां है इस वक्त?
ताऊ झंडू : मुझे दिख नही रही है अभी कहीं....

खुशदीप मन ही मन जाड (दांत) पीसते हुये बोला - ताऊ झंडू..तेरे से सारे राज उगलवा कर रहुंगा...और खुशदीप ने डाक्टर को इशारा किया ..और डाक्टर ने एक इंजेक्शन ताऊ के और ठोक दिया...और थोडी देर मे असर होते ही फ़िर बात चीत का सिलसिला शुरु हुआ.

खुशदीप : ताऊ झंडू..नू बता कि तेरी शादी किससे हुई?

ताऊ झंडू : अरे इब साफ़ साफ़ दिखण लाग रया सै....जब मैं सरपंच बन गया तब मेरी शादी झुनकू भेडिये की पांचवी रुपवती कन्या झुनिया से हुई?

खुशदीप : ताऊ झंडू , एक बात समझ ना आई कि तू सियार और वो भेडिया? यह बेमेल विवाह कैसे हुआ?

ताऊ झंडू : असल मे झुनकू भेडिया मुझे नीची जाति का समझ कर अपना दामाद नही बनाना चाहता था..पर जब मैं सरपंच बन गया तो..तो मैने ऐसी चाल चली की उसको अपनी कन्या कि शादी मुझसे करनी ही पडी.

खुशदीप : ताऊ झंडू...ये तो बडी रोचक बात हो गई? जरा याद करो ठीक से और बताओ...कि क्या हुआ था?

ताऊ झंडू : हुआ ये था कि जब मैं सरपंच बन गया तो पूरे जंगल की सत्ता पर मेरा अधिकार होगया. और अब मुझे सिर्फ़ झुनिया से शादी करनी थी. पर झुनकू भेडीय़ा तैयार नही था. उधर झुनिया की सगाई भी एक सुंदर और शरीफ़ पढे लिखे लडके से होगई. तो मेरी चिंता बढ गई. जबरदस्ती और अगवा करके शादी करने मे मेरी इमेज खराब होने का डर था. सो मैने एक चाल चली.

पिछले जन्म का ताऊ झंडू "सरपंच"


खुशदीप : वो क्या चाल थी ताऊ झंडू?

ताऊ झंडू : एक दिन मैं शाम को नदी किनार की उंची चट्टन पर अपने अंगरक्षकों के साथ खडा था कि वो लडका उधर आ निकला, जिसकी झुनिया के साथ सगाई हुई थी.

खुशदीप : फ़िर क्या हुआ ?

ताऊ झंडू : हुआ ये कि उसको देखते ही मेरे अंदर का नेता जाग उठा...मैने तुरंत उसको रोका और पूछा...इधर क्यों आया है?

वो बोला - सर, पानी पीने आया हूं.

मैने कहा : क्यों बे साले? गाली देता है?

वो बोला - सर गाली तो आप देरहे हैं, साफ़ साफ़ "साले" बोल रहे हैं? मैने कहां गाली दी आपको?

मैने कहा : अबे, फ़िर "सर" कहके गाली दी? हरामजादे ठहर तेरे को तो मैं बताता हूं? अबे हम नेता हैं..हम साले, हरामजादे की कुछ भी गाली दे सकते हैं..पर तू कौन? हमको सर की गाली देने वाला?

वो बोला - जबान संभालिये अपनी...आप साला हरामजादा..बोले जा रहे हैं...

मैने कहा - अबे ठहर साले ..तेरे को तो मैं बताता हूं...और मैने मेरे अंगरक्षकों को इशारा किया..उस कच्चे से बालक को पकड कर मूंडी मरोड दी गई और हम और हमारे अंगरक्षक उसको वहीं चट कर गये..

खुशदीप : इसके बाद क्या हुआ ताऊ?

ताऊ झंडू : बस नेताओं की तरह जंगल थाने मे मेरे अंगरक्षकों ने रिपोर्ट लिखवा दी कि झुनकू का होने वाला दामाद पानी पीने नदी किनारे आया था. तेज बहाव मे पैर फ़िसल गया और झंडू नेताजी और उनके अंगरक्षकों के लाख कोशीश करने पर भी वो बचाया नही जा सका....मेरे अंगरक्षकों को इस बात पर सेवा मेडल दिलवा दिये गये.

खुशदीप : आगे क्या हुआ झंडू ताऊ?

झंडू ताऊ : उधर झुनकू भेडिये के घर रोना पीटना मचा था. सब झुनिया जैसी सुंदर और रुपवती लडकी की किस्मत को कोस रहे थे. और झुनकू और उसकी बीबी इस सदमे मे थे कि अब इस लडकी से कौन शादी करेगा?

शाम को हम पहुंचे अपनी पूरी तैयारी के साथ झुनकू के यहां गम व्यक्त करने.वहां वही रोना पीटना...वही पुराना खटराग चल रहा था...अब झुनिया के हाथ कैसे पीले होंगे? कौन इसका हाथ थामेगा?

हम तुरंत खडे हुये और सबको डांट लगाई...खबरदार किसी ने झुनियां की किस्मत को कोसा तो...अरे अब हम वो लडका तो वापस नही ला सकते, पर हम मर थोडी गये?

खुशदीप : हां हां..ताऊ झंडू, बता बता और आगे चल..अब आई असली बात..जो इस सीरीयल को हिट करवायेगी...

ताऊ झंडू : अब इसके बाद हमने घोषणा कर दी कि हम करेंगे झुनिया से शादी...हमारे इतनी घोषणा करते ही हमारे चेले चमचे जो कि ट्रेंड थे, उन्होने हमारी जयजय कार के नारे बुलंद कर दिये और किसी को कुछ समझ आता उसके पहले ही पंडित चंपू बंदर जी ने झुनिया का हाथ पकडकर हमारे हाथ मे दे दिया और सात चक्कर खिलवा दिये फ़ेरों के नाम पर...बस हमारे इस कार्य कि बहुत भूरी भूरी प्रशंशा हुई. अगले दिन जंगल के सारे अखबार जो कि हमारे ही सेट किये हुये थे...उन्होने जबरदस्त कवरेज दिया और हमारी ख्याति गरीब का मसीहा के तौर पर चहुं और फ़ैल गई....... (क्रमश:)


(शेष अगले भाग मे.....)

"राज ब्लागर के पिछले जन्म के" खुशदीप ने फ़ंसाया ताऊ को

शुक्रवार को शाम को हम रतनसिंह जी शेखावत के साथ घर के बरामदे में बैठे बैठे हुक्का पी रहे थे कि भतिजे खुशदीप सहगल का फ़ोन आया . बोले - ताऊ रामराम,

मैं बोल्या - भाई घणी रामराम...और सुणा के हाल चाल सैं?

खुशदीप : बस ताऊ नू समझ ले के हाल चाल तो ठीक ठाक सैं, बस तेरे तैं मिलना है. कब आजाऊं?

मैने कहा - यार मैं कौन सा तोपचंद हूं? मैं तो फ़ोकट चंद हूं जब तेरी मर्जी हो, आजा. ये भी तेराई घर सै.

और अगले ही दिन खुशदीप आ धमका.रामराम श्याम श्याम के बाद चाय वाय पी और फ़िर बात चीत शुरु हुई.

ताऊ, रतनसिंह शेखावत और खुशदीप बात करते हुये!


खुशदीप - ताऊ बात नू है कि मैं एक सीरीयल बणा रहा हूं "राज ब्लागर के पिछले जन्म के" बस इसी सिलसिले मे तेरे पास आया सूं. ताऊ नू समझ ले कि इसमे तेरा सहयोग मांगने ही आया सूं.

मैं बोल्या - भाई या तो घणीई बढिया बात सै. तू नू कर कि समीरलाल जी पै बणाले पहला ही एपिसोड... समझ ले कि सुपरहिट हो ज्येगा तेरा सीरीयल..और उसके बाद अरविंद मिश्रा जी को पकड ले.. मन्नै पक्का यकीन सै के दोनूआं के मूंह से ऐसे राज बाहर निकलेंगे कि तहलका मच जायेगा.

खुशदीप - अरे ताऊ , उन दोनों से बात की थी पर उनके पास शूटिंग के लिये समय नही है, और तू ठहरा बधाऊ (फ़ालतू) आदमी. तो यो पहला एपिसोड तेरे उपर ही बणा लेते हैं.

मैं बोल्या - यार खुशदीप, तू मेरे से क्युं दुश्मनी निकालण लागरया सै भाई? ताऊ नै तेरा के बिगाड राख्या सै? मेरे पीछे वैसे ही भतेरे कूंगर लागरे सैं. तेरे आगे दो जोडे हाथ... मन्नै माफ़ कर यार.

खुशदीप बोल्या - अरे ताऊ..तैं समझता कोनी..तेरा के बिगड ज्येगा? नू बता कि मूसल का मेह (बरसात) म्ह के भीजेगा ? बावलापन मतन्या करै. तन्नै पिस्से भी अच्छे दिलवा दूंगा प्रोड्युसर तैं.

इब भाई जब ये पता लगा कि पिस्से भी मिलेंगे तो हमने पूछा - अच्छा तो नू कह ना की कमाई आला काम सै? बता के दिलवा देगा?

खुशदीप बोल्या - ताऊ, देख तन्नै हवाईजहाज का तो रिटर्न टिकट दिलवा दूंगा. और दिल्ली पहुंच कै एक कार मिल ज्येगी घूमण खातिर. और के चहिये तन्नै? बता?

मैं बोल्या - भाई ये तो बात तेरी पसंद आई, पर नू बता कि कार कौन सी दिलवावेगा?

खुशदीप बोल्या - अरे ताऊ, कोई सी भी हो, जो बखत पै होगी वही भिजवा दूंगा. तन्नै कौन सी घर ल्यानी सै?

मैं बोल्या - अरे इब्बी तो तैं कहण लागरया था कि कार दिलवा देगा? इब के होगया? देख भाई , मेरे को तो वो लम्बी सी मारोती दिलवाता होये तो तेरे सीरीयल म्ह काम करुंगा नही तो नही.

खुशदीप बोल्या - अरे बावली बूच ताऊ, तू नू बता, के तू लाट साहब होरया सै? ना तू के दिलिपकुमार हो राख्या सै या अमिताभ बच्चन हो राख्या सै? मैं तो नू समझ के तेरे को काम दिलवा रहा था कि ताऊ आजकल बेकार ठाली (खाली) बैठ्या सै..दो पिस्से कमा लेगा..और तू तो भाव खावण लागरया सै?

बात बिगडती देख कर रतनसिंह जी शेखावत ने हमारा हाथ दबाकर इशारा किया कि ताऊ इस मौके को मत छोडना तो हम ने पूछा कि भाई साफ़ साफ़ बता कि के करना पडेगा? और कितने पिस्से दिलवा देगा?

खुशदीप बोल्या - देख ताऊ, साफ़ और सीधी बात सुण ले. तेरे को आवण जावण का जहाज का टिकट, और वहां दिल्ली का ठहरने और खाने पीने का सारा खर्च और साथ में डेढ लाख रुपये भी दिलवा दूंगा. और रुकने के लिये बिना मच्छरों वाले कमरे का इंतजाम भी मुफ़्त मे करवा दूंगा. हो मंजूर तो बोल ..नही तो तू जाने और तेरा काम.

अब डेढ लाख हाथ मे आने की बात तो दूर हमने कभी सोचा भी नही था कि - इस फ़ोकट से काम के कोई डेढ लाख रुपये और सारा खर्च भी देदेगा. और हवाईजहाज की सैर मुफ़्त में? बस सोचके ही मन हवा मे उडने लग गया. हमने तुरंत कहा - अरे भाई खुशदीप, इब तू भी के याद करेगा कि कोई ताऊ मिल्या था. इब नू बता के मन्नै के करना पडॆगा?

खुशदीप बोल्या - अरे ताऊ तन्नै कुछ भी ना करना सै? जो भी करेगा वो तो डाक्टर ही करेगा.

मैं बोल्या - भाई, यो सीरीयल बना रया सै या ताऊ का इलाज करवा रया सै? अरे डाक्टर का के काम इसमें?

खुशदीप बोल्या - ताऊ, तेरे को टेबल पै लिटा कर डाक्टर एक इंजेक्शन ठोकेगा...और फ़िर तेरे को तेरे पिछले जन्म म्ह लेजायेगा.

मैं बोल्या - यार, यो इंजेक्शन लगा के पिछले जन्म मे कोई किस तरियां ले जा सके सै? तेरी बात समझ म्ह नही आरही सै? तू कहीं मेरा नारको वारको करवाकै मेरी पोल खोल दे और बेइज्जती खराब करवादे मेरी?

खुशदीप बोल्या - ताऊ, ज्यादा समझण की जरुरत भी कोनी. तू तो यो पकड ५० हजार की गड्डी नगद एडवांस की और ये ले हवाईजहाज का टिकट...और सोमवार को दिल्ली आजाईयो..बाकी सब हम पर छोड दे. और काम पूरा होने पर तेरे को बाकी के पिस्से और दिलवा दूंगा.

और एक कांट्रेक्ट फ़ार्म सामने रखता हुआ खुशदीप बोला - ताऊ तन्नै अगर मंजूर हो तो ...यहां साईन मार और इब मैं चलूंगा..घणी देर हो ली सै इब.

अब जैसे ही खुशदीप ने ५० हजार की करारी गर्मा गर्म गड्डी हमारी हथेली पर रखी..हमारी हथेली उस गड्डी की गर्मी से जलने लग गई..क्योंकि इससे पहले हमने कभी ५०० का सिंगल नोट नही पकडा था. और ये तो पूरे सौ की कडक गड्डी थे..सो हमने कुछ आगा पीछा सोचे बिना उस कंट्रेक्ट फ़ार्म पर साईन मार दिये. और सोमवार को दिल्ली जाने की तैयारी करने लगे. ...

सोमवार को सबेरे सबेरे ही दिल्ली पहुंच गये. वहां पर हमको एक होटल मे ठहरा दिया गया. हम तैयार होकर स्टूडियो पहूंच गये. वहां खुशदीप ने हमारा सभी से परिचय कराया. उनमे एक हिप्नोटाईज करने वाला डाक्टर सरीखा भी था.

अब हमको वो एक स्टूडियो के अंदर लेगये. चारों तरफ़ वहां उपर कैमरे लगे थे. सामने एक टेबल जैसी थी. उस पर हमको लिटा दिया गया.

ताऊ को सम्मोहित करते हुये खुशदीप


अब हमसे वो हिप्नोटाईज करने वाला बोला - ताऊ, मैं जैसे जैसे कहूं, वैसे वैसे करना...

मैं बोल्या - ठीक सै भाई. इब बोल के करना सै..

वो बोलने लगा -- ताऊ आंख बंद करले...

मैने आंखे बंद करली.

वो बोला - ताऊ थोडा पीछे की और लौटो.

मैं बोल्या - अरे बावलीबूच सै के तू? नू बता पीछे की और कित लौटू? आडे जगह दिख सै के तेरे इस जरा से स्टूडियो में...पीछे की और निरी दीवार तन्नै दिखै कोनी के?

वो बोला - अरे मेरे ताऊ...पीछे की और यानि तेरी जिंदगी मे पीछे की और..

मैं बोल्या - यार तो नू साफ़ साफ़ कह ना...ले लौट गया पीछे..और बता कितनी पीछे जाऊं...?

अब खुशदीप बीच मे ही बोला - डाक्टर साब ..ये ताऊ बावली बूच है. इसको मैं ही सम्मोहित करुंगा. ये मेरी भाषा ही समझता है. सो अब ताऊ को सम्मोहित करने का काम खुशदीप ने संभाल लिया.

खुशदीप ने आदेश देने शुरु किये ...मैं करता रहा.....आखिर वो मुझे...मेरे बचपन के एक साल की अवस्था मे लौटा लेगया....और बोला - ताऊ अब तुम अपने पिछले जन्म मे लौटो...लौटो...कहां हो तुम?

मैं बोला - भाई..ये मैं तो जंगल मे आगया....मैं ...मैं...ये कहां आगया?

खुशदीप बोला - हां अब तुम कौन हो...?

मैं बोला - मैं...मैं सियार हूं....सियार....

खुशदीप ने पूछा - कौन सियार?

मैं बोला - अरे जानते नही क्या? मैं हूं जंगल का एक्स नेता सरपंच...और ब्लागर यानि कि झंडू नेता..

खुशदीप ने पूछा - हां और पीछे की लौटो...ये बताओ कि तुम ब्लागर कैसे बने?

मैं बोला - ये बहुत दुख: भरी लंबी कहानी है...

खुशदीप ने कहा - हां थोडा और पीछे ..और पीछे लौट चलो... हां अब सुनावो..

मैं बोला - लौट गया..अब जंगल मे शेर का राज है....चारों तरफ़....आजादी की लडाई चल रही है...मैं भी आजादी की लडाई मे शामिल हूं....सब अपनी तरह से आजादी की लडाई मे योगदान दे रहे हैं...मैं ब्लागिंग द्वारा योगदान दे रहा हूं.

खुशदीप बोला - हां अब ठीक है...यहां से हम सवाल पूछेंगे...तुम जवाब देते जाना...

खुशदीप ने पूछा - हां तो झंडू नेता जी, आप कहां के रहने वाले हो? घर मे कौन कौन हैं? अपना परिचय दिजिये नेताजी.

मैं बोला - झंडापुरम जंगल का...मेरा नाम झंडू नेता...हम घर मे चार भाई बहिन हैं...पिताजी राजा शेरसिंह जी के यहां सरकारी मुलाजिम हैं...मैं बागियों के साथ मिलकर जंगल को राजशाही से मुक्ति दिलाकर प्रजातंत्र स्थापित करने के लिये लडाई लड रहा हूं.....

(क्रमश:)

नोट : अगले भाग मे पढिये ..ताऊ के पिछले जन्म के गुप्त और सनसनीखेज राज..................

ताऊ पहेली - 52 :विजेता श्री काजलकुमार

प्रिय भाईयो और बहणों, भतीजों और भतीजियों आप सबको घणी रामराम ! हम आपकी सेवा में हाजिर हैं ताऊ पहेली 52 का जवाब लेकर. कल की ताऊ पहेली का सही उत्तर है शहीद 'यू कियांग नोंगबा का स्मारक ,मेघालय.

शहीद 'यू कियांग नोंगबा का स्मारक ,मेघालय


और इसके बारे मे संक्षिप्त सी जानकारी दे रही हैं सु. अल्पना वर्मा.

बहनों और भाईयो नमस्कार. आईये अब आज के पहेली के स्थान के बारे में कुछ जानते हैं.
मेघालय अर्थात 'मेघों का घर'!
21 जनवरी, 1972 को मेघालय ,भारत देश के एक पूर्ण राज्‍य के रूप में अस्तित्‍व में आया. जनसंख्या 2,318,822 है.


खासी, गारो तथा अंग्रेजी भाषाओं वाले इस राज्य की राजधानी शिलॉंग है.इस पहाड़ी राज्य के उत्तरी और पूर्वी सीमाएं असम से और दक्षिणी तथा पश्चिमी सीमाएं बंगलादेश से मिलती हैं.लगभग ८० प्रतिशत जनसंख्‍या आजीविका के लिए मुख्‍य रूप से खेती-बाड़ी पर निर्भर है.‘का पांबलांग-नोंगक्रेम’ ,शाद सुक मिनसीम, बेहदीनखलम जयंतिया तथा वांगला प्रमुख त्योहार हैं.

इस राज्य का एक मात्र हावई अड्डा उमरोई में हैं.

मुख्य पर्यटन स्थल हैं-शिलॉंग चोटी, वार्ड लेक, लेडी हैदरी पार्क, पोलो ग्राउंड, मिनी चिडियाघर, एलीफेंट जलप्रपात.यहां का गोल्‍फ कोर्स देश के बेहतरीन गोल्‍फ कोर्सों में से एक हैं.यहाँ की प्राकृतिक खूबसूरती देखते ही बनती है.पर्यटकों के रहने के लिए प्राइवेट ही नहीं सरकार के गेस्ट हाउस भी उपलब्ध हैं.अधिक जानकारी के लिए अधिकारिक वेब साइट देखीए-
http://meghalaya.nic.in/


आईए अब शहीद 'यू कियांग नोंगाबा 'के बारे में जानते हैं-
तोगान संगमा,यू तिरोत गाओ,यू कियांग नोंगाबा -


राज्य के इन तीन वीर शहीदों के नाम भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में
सुनहरे अक्षरों में लिखे गये हैं.यू कियांग नोंगा बा ने १८५७ में अंग्रेजों के खिलाफ सिपाही विद्रोह में मेघालय के आदिवासियों का नेतृत्व किया था.

राजा राजेंद्र सिंह जयन्तीयापुर के राजा थे,ब्रिटिश सरकार ने धोके से उनका मैदानी राज्य हथिया लिया था.और उन्हे पहाड़ी इलाक़े का प्रशसन देने का विकल्प रखा जिसे राजा ने ठुकरा दिया.

१८३५ से १८५३ तक जैसे तैसे सब चलता रहा लेकिन जब १८६० में अँग्रेज़ी हुकूमत ने निवासीओं पर गृह कर लगा दिए तब उनके सब्र का बाँध टूट गया और विरोध की आवाज़ें गूंजने लगीं.उसी साल जब गृह कर के साथ साथ आयकर भी लगा दिया गया और यह भी अफवाहें घूमने लगी की पॅयन और सुपारी की बिक्री पर भी सरकार टेक्स लगाने जा रही है तब स्थानीय लोगों ने गुट बनाए और विद्रोह के आयोजन का नेतृत्व और मार्गदर्शन किया युवक यू कियांग नोंगा बा ने !

१८६२ में उठी क्रांति की लहरें इतनी तेज़ थी कि सात रेजिमेंटों और सैनिकों की टुकड़ी इनके विद्रोह को दबाने के लिए लगवाई गयी.यू कियांग नोंगा बा बेहद चतुर था वा अपना सभी कार्य बहुत सफाई से करता था जिस से वह काफ़ी समय तक गिरफ्तारी से बचता रहा.यहाँ तक की ब्रिटिश गुप्तचर भी परेशान हो गये थे.मगर उसकी पहचान ना पा सके.दूसरा विद्रोह ३ सप्ताह चला और उस में बहुत से आदिवासी मारे गये.

३० दिसंबर ,१८६२ में यू कियोंग को धोखे से पकड़ लिया गया और सरे आम फाँसी दी गयी.यू कियांग ने फाँसी लगने से पहले साफ शब्दों में लोगों से कहा था कि फाँसी लगने के बाद रस्सी पर मेरा सिर अगर पूर्व की तरफ लटकता है तो यह देश १०० साल के भीतर आज़ाद हो जाएगा.और अगर यह पश्चिम की तरफ होता है तो यह देश अँग्रेज़ों से कभी आज़ाद नहीं हो पाएगा.

कितने सच उनके शब्द थे, उनके चेहरे के लिए पूर्व की ओर हो गया और भारत के एक सौ साल के भीतर मुक्त हो गया!

ऐसे वीर शहीदों को हमें कभी भूलना नहीं चाहीए जिनके बलिदान से ही आज हम खुली हवा में जी रहे हैं साथ ही अपनी इस आज़ादी को बचाए रखना और देश को एकता में बाँधे रखना भी बेहद आवश्यक है.

अभी के लिये इतना ही. अगले शनिवार एक नई पहेली मे आपसे फ़िर मुलाकात होगी. तब तक के लिये नमस्कार।



आज के सम्माननिय विजेता क्रमश: इस प्रकार हैं. सभी को हार्दिक बधाई!

 

 

  

 
  

  श्री काजलकुमार, अंक १०१ बधाई
 श्री प्रकाश गोविंद अंक १०० बधाई
 सुश्री सीमा गुप्ता  अंक ९९ बधाई
 श्री मीत अंक ९८ बधाई
 श्री संजय बेंगाणी अंक ९७ बधाई
 सुश्री प्रेमलता पांडे अंक ९६ बधाई
 श्री उडनतश्तरी अंक ९५ बधाई
  प.श्री डी.के. शर्मा "वत्स", अंक ९४ बधाई


निम्न महानुभावों के हम बहुत आभारी हैं जिन्होने इस अंक में भाग लेकर हमारा उत्साह बढाया. हार्दिक आभार.

श्री विवेक रस्तोगी
श्री ललित शर्मा,
श्री अविनाश वाचस्पति
सुश्री निर्मला कपिला
डा.रुपचंद्र शाश्त्री "मयंक,
श्री सुशील कुमार छौक्कंर
सुश्री वंदना
श्री रतनसिंह शेखावत
ब्लाग चर्चा मुन्नाभाई की
गौतम राजरिशी
श्री दिगम्बर नासवा
श्री मुरारी पारीक
श्री सैयद
अभिशेक ओझा

आप सभी का बहुत आभार !
अच्छा अब नमस्ते.सभी प्रतिभागियों को इस प्रतियोगिता मे हमारा उत्साह वर्धन करने के लिये हार्दिक धन्यवाद. ताऊ पहेली – 52 का आयोजन एवम संचालन ताऊ रामपुरिया और सुश्री अल्पना वर्मा ने किया. अगली पहेली मे अगले शनिवार सुबह आठ बजे आपसे फ़िर मिलेंगे तब तक के लिये नमस्कार.