पिछले सप्ताह पता नही क्या हुवा कि ब्लाग व्लाग से तौबा करने
का पक्का इरादा हमनै कर लिया था ! और ये भी तय कर लिया था
कि इब यो ताऊगिरी भी छोड देनी सै ! बहुत कर ली ताऊ गिरी !
इब अपने को शरीफ़ आदमी बनके रहणा सै ! और ताई को तो
जैसे मुन्ह मान्गी मुराद मिल गई ! इस ब्लागिन्ग से सबसे
ज्यादा पीडीत प्राणी वो ही सै ! इब इसका जबाव आपको
मुझसे ज्यादा मालूम सै ! ज्यादा पोल पट्टी मत खुलवाओ !
ढकी रहण दो , तो अच्छा सै !
वैसे तो ताऊ बाप के बडे भाई नै कहवैं सैं !
पर इस दुनिया मे ताऊ को बाप का बडा भाई तो क्या
लोग खुद का छोटा भाई भी मानने को तैयार नही हैं !
और ताऊगिरी छोडने की प्रेक्टिस करते हुये जितनी
शुद्ध हिन्दी हम जानते थे उतनी शुद्ध और पवित्र
हिन्दी मे बिल साहब पर एक लेख लिख मारया !
यानि अन्तिम लेख ! और लिखण पढण की कसम ठा के
लग लिये अपनै काम धन्धे तैं !
भाई २४ घन्टे भी ना बीते होंगे की म्हारे लेख पै टिपणी आण
लाग री भतेरी ! इब जिसको ब्लागरी का चस्का पडज्या वो के
छॊड सकदा है ? भई हमनै भी इसका अफ़सोस होण लाग्या के
क्युं कर कसम खाई ? पर क्या करें ? ताई के डर के मारे चुप
चाप बैठे थे ! और म्हारा जी ललक रहया था कि कब यो ताई
जावै बाहर और हम शुरु हो जावै ! कम से कम टिपण्णी प्रकाशित
तो कर दे और देख भी ले कि कैसा रहा ? पर भाई हम भी
पक्के ऊल्लू सैं ! मन्नै मन ही मन सोची अरे ताऊ तु के बावली
बूच हो रया सै ? अरे तन्नै जब ब्लागरी छोड दी तो के करणा कमेन्ट
पब्लिश करके ? पर हमनै कहीं पढ राख्या था कि खोटा समय आवै
तै मन भी उल्टी सिधी बात समझावै सै ! भाई इतनी देर मे म्हारे बाबु
यानि म्हारे पिताजी आ गये गाम से !
म्हारे बाबु (पिताजी) सैं पुरे ८० बरस के उपर के और म्हारे बडे
भाई के साथ गाम मै ही रहण लाग गे सैं ! शहर उणको जमदा
कोनी ! आज भी खेत सम्भालते हैं ! और कम से कम १०
किलोमिटर पैदल चाल लेते हैं ! सुबह ३ बजे उठणा और रात के ८
बजे सोणा ! यो ही दिन चर्या सै बाबु की ! म्हारे बाबू नहा धोके
और सबके हाल चाल पुछण लाग रे थे ! फ़िर म्हारा नम्बर आ गया !
बाबू - तेरे के हाल चाल सैं? बम्बई दिखाण गया था ! के बोल्या डाग्दर ?
मैं बोल्या- बाबू ठीक ठाक सैं ! डाक्टर साब नै दवाई गोली लिख दी सै !
फ़िर म्हारे बाबू नै पूछी- भई तैं युं उदास सा क्यों कर बैठया सै ?
फ़िर मैने म्हारे बाबू को बताई कि इस तरिया हमनै ब्लागरी शुरु
करी और छोडने की कसम खाली ! और म्हारी घर आली कि तरफ़ देख्या !
वो ऐसे घूर रही थी जैसे बाबू के जाते ही कच्चा चबा जायेगी !
बाबू नै पुछ्या कि यो ब्लागरी के होवै सै ! मै बोल्या बाबू इसमे लोग
सुई से लेकर हवाई जहाज तक की बात करया करै सैं !
बाबू नै म्हारी तरफ़ देख्या ! बाबू को हमारी ओकात पता थी !
मैने कहा - बाबू कुछ मेरी तरह गप शप भी कर लेते हैं !
इब म्हारे बाबू बोले - बेटा देख हम जिस गाम के सैं उस गाम का
गप शप करणा तो धर्म ही सैं ! म्हारे गाम मे जब हम बच्चे थे तब
राम लीला मे एक जोकर हुया करता था मोहन भान्ड ! वो अपने
आपको भाट कवि मोहन के नाम से बुलवाना पसन्द करता था !
और वो न्युं कह्या करता था -- अपने गान्व के बारे मे ...
रामपुरा पन्च रतनानि,
कान्टा, भाटा , पर्वता
चतुर्थे राज धर्माणि च
पन्चमे गपम शपम !
रामपुरा पन्च रत्नानी यानि रामपुरा मे पान्च रतन हैं !
कौन से ? (१) कान्टा .. इस वजह से यहां के लोग चुभते हैं !
(२) भाटा (रास्ते के पत्थर) .. बिना देख कर चलने वालों को
ठोकर लग जाती है ! (३) पर्वता ..यानी यहां के पहाड.. जो लोगों
को अपनी जडी बून्टी ओषधि से दुसरों का दुख हर लेते हैं !
(४) राज धर्माणि ... यहां के राजा का राज धर्म और प्रजा वत्सलता और
पन्चमे .. गपम शपम .. अर्थात यहां के लोग गप शप करते हुये सुख
पुर्वक जीवन यापन करते हैं !
म्हारे बाबू नै समझाया कि गप शप से जीवन के दुःख और तनाव
कम हो जाते हैं और स्वस्थ रहने मे मदद मिलती है ! गप शप भी
भोजन पानी और दवाई जितनी ही जरूरी है !
और एक फ़ार्मुला स्वस्थ रहण का म्हारे बाबू ने और बताया--
खाते समय अगर एक कौर को ३२ बार चबा कर खावोगे तो पेट
सम्बन्धित कोई भी रोग नही होगा ! और अगर ६४ बार चबा कर
खाया तो हाथी का भी वजन कम हो जायेगा ! हम आश्चर्य से बाबू
का मुन्ह ताकते रहे ! तो म्हारे बाबू की स्वस्थ्ता का राज यो सै !
फ़िर म्हारा बाबू बोल्या - भई तेरी वो ब्लागरी के सै ? हमनै भी
तो दिखा ! फ़िर हमने अपना लेपटाप खोल कर उनको कुछ ब्लाग
दिखाये ! और इसके बारे मे समझाया ! बाबू सारा सब कुछ देख कर
बहुत चकित थे और बोले - अरे भई यो थारी एक छोटी सी
मशीन के कहया करैं इसनै.. हां लपटप म्हानै भी मन्गा दे !
हम भी उत खेत मैं बैठ कै ब्लागरी करेन्गे !
मैं बोल्या ठिक सै बाबू आज ही मन्गा देन्गे !
और साहब म्हारी बाप बेटे की इब तक चुप चाप बात सुन
रही म्हारी घर आली ( ताई ) इतना सुनते ही दहाड उठी--
तैं खुद तो बिगड ही रहया सै इब इस बूढे नै भी
बिगाडगा के ?
सुई से लेकर हवाई जहाज --उड़न तश्तरी का काहे नहीं बताये. भाई मेरे, ताई ठीक तो कह रही हैं..बाबू जी को बक्शो..खेती बाड़ी सैर सपाटा और सब गांव वालों से दुआ सलाम करने दो-काहे अटका रहे हो. :) यहाँ तो पोस्ट और टिप्पणी के चक्कर में ८ बार ही चबाते हैं-६४ की तो जाने दो. :)
ReplyDeleteमज़ा आ गया बाबूजी से वार्ता सुनकर. उनके सुलझे विचार जानकर दिल को अच्छा लगा.
ReplyDeleteइब थम कब से ताई के गुस्से की परवाह करने लगे? उनका गुस्सा तो बस उनके प्यार का ही दूसरा रूप है. एक पोस्ट ताई के ऊपर लिखकर उन्हें पढ़ा दो खुश हो जायेंगी.
वाह ताउ वाह | कितनी ज्ञान की बात ! हम आपके बाबू जी की
ReplyDeleteबातों का ध्यान रखेंगे ! बहुत धन्यवाद !
क्या ताउ अभी ताइ गुम थी ! कहाँ मिल गई ?
ReplyDeleteहम तो सारे बंगलोर मे ढुंढ रहे थे ! ताउ सच
बताना कि ताइ ने कभी आपको धोया है ?
हा :) हा :) हा:)
क्या वाकई 64 बार चबा कर खाने से वजन कम हो जाता है ! क्रपया अवस्य बताए !
ReplyDeleteगप शप से जीवन के दुख सुख तनाव
ReplyDeleteकम हो जाते हैं और स्वस्थ रहने मे मदद मिलती है ! गप शप भी भोजन पानी और दवाई जितनी ही जरूरी है !
क्या शानदार सलाह है | भाई आपको और आपके
बाबूजी को प्रणाम ! कुछ और भी फार्मूले पूछिये बाबूजी से |और लिख डालिए !
रामपुरा पन्च रतनानि,
ReplyDeleteकान्टा, भाटा , पर्वता
चतुर्थे राज धर्माणि च
पन्चमे गपम शपम !
ताऊ इब समझा आया की
आप बोलते हो
तब कांटे से क्यूँ लगते हैं !
औत खबरदार ताई से उलझे तो !
वाकई ताउ आप तो रामपुरा के रत्न ही हो !
ReplyDeleteबहुत उपयोगी जानकारी है !
हम तो समझते थे कि आप हंसी मजाक
ही कर सकते हो पर आज समझ आया कि
आप तो काफी समझ दार भी हो :) हा..हा..
माफ करना ताउ आपसे मजाक कर लेता हू !
बहुत उप्योगी जानकारी ! धन्य्वाद !
ताऊ दद्दाजी नै म्हारा घण्णा प्ररनाम !
ReplyDeleteम्हारा भी किम्मै वजन बढण लाग रया सै !
इब तैं हम भी ६४ बार चबाकै खाण की
कोशीश करांगे !
सही बात ये है की हमने आज सुबह ब्रेक फास्ट में
ReplyDeleteयह प्रयोग किया पर एक ब्रेड स्लाइस खाने में
पसीने आ गए ! बात जितनी सीधी दिखती है !
उतनी है नही ! ये वजन घटाने में कारगर
हो सकती है ! आप अवश्य प्रयोग करे !
ताऊ की बात समझ कर मजाक में मत लेना !
और आप सभी को बताए !
कई बार सुबह सुबह जब लप टॉप खोल कर बैठता हूँ तो बेटा जगा हो तो आ जाता है वो पूछता है "आप लेप टॉप में भी नज़्म लिखते हो ?क्यों लिखते हो ?उसकी उम्र ४ सल् कुछ महीने है ....उसके पास ढेरो सवाल है कौन पढता है ?मेरे दोस्त मै कहता हूँ ..आपके दोस्त कहाँ से पढ़ते है ?बहुत दूर से .....जानते है एक बार किसी ने मुझसे पुछा की यार ये लिखना पढ़ना सब एक ज़माने की बात थी ,अब इतना वक़्त किसके पास है ?मैंने उससे कहा 'भले आदमी ये लिखना पढ़ना है तभी मै बाकि चीजों के लिए वक़्त निकाल पाता हूँ.... "क्वालिटी वक़्त 'जिस तरह लोग योग करते है ,आश्रम में जाते है ...सत्संग में जाते है मानसिक शान्ति के लिए ,मै ब्लोगिंग में जाता हूँ.......शायद कभी मन उखड जाये पर जब तक चल रहा है चलने दो.......एक ही बात कहूँगा आपसे ...कभी मन उखड जाये तो विश्राम ले लेना पर छोड़ना मत ......हम सब जुड़ जो गये है जी
ReplyDeleteपढ कर मजा आ गया।बहुत बढिया लिखा है।बाबूजी की वार्ता बहुत ज्ञानवर्धक रही।
ReplyDeleteताऊ म तो आज पेली बार ही आयो थारा ब्लाग पर. आता ही माथो घूम ग्यो. किती किती ज्ञान री बातां हो री है अठे मेरो तो जीवन ही धन्य होग्यो.
ReplyDeleteइब तो रोजीना ही आन्यो पडसी र ताऊ.
ताऊ बड़ी ही सुंदर बात बताई आपके बाबू नै !
ReplyDeleteऔर बाबू का ये कहना की गप शप से जीवन
का दुःख और तनाव कम हो जाता है !
बिल्कुल सही सै यो बात !
थारे ब्लॉग पै भी हम इसी करके आंदे हैं !
जी हल्का हो जांदा है ! बाबू को म्हारा परनाम !
हमारे पुरातन ग्रंथों में कहा गया है की
ReplyDeleteभोजन को खाना नही बल्कि पीना चाहिए |
और आपके बाबूजी का ६४ बार चबाने से यही तात्पर्य होना चाहिए | जब हम भोजन चबा चबा कर खाते हैं तो पेट सही रहता है और ६४ बार चबाने पर वजन वाकई कम हो जायेगा |
मैंने पिछले २ सालो में करीब १५ किलो वजन बिना कुछ किए कम किया है | मैंने एक सज्जन के सलाह देने पर खाने का समय जो मेरा ५ मिनट था उसे ३५ मिनट कर लिया |
ज्यादा खाया ही नही जाता और पेट भी भरा भरा
लगता है | कृपया इसे मजाक में ना ले और हो सके तो फायदा उठाएं |
babuji ko bhi aapne isme kheench liya.
ReplyDeletebahut hi diler blogger hain aap ki taai ke baat ko bhi ansuna kar dete hain.
Bahut anand aayaa ye padhkar aur swasthya vardhan ke raaz sunkar
ज्ञानवर्धक बातों का ध्यान रखेंगे
ReplyDeleteआपकी हरयाणवी में रचना अच्छी है
राम पुरिया भाई, बाबु ने तो बक्स दे, इब ताई चीके हे, फ़िर सास बहु मिल के तेरा के हाल करेगी ,मे तो यह सोच के डरु सु,
ReplyDeleteराम पुरिया मे भी सोच रहा हु यह साली खम्खा की बिमारी गले डाल ली हे,सब से अलग, मेरे कई काम रह जाते हे,कही आने जाने से भी रह गया, बस बेठे रहो,इस बांल्ग के सामने ,ओर जब टिपण्णीयां आती हे तो जबाब भी दो सब मिला कर,हमे बेकार कर दिया इस बलांगर गिरी ने,जब भी भारत आया आप से जरुर मिलुगा, मे हु तो पंजाब से लेकिन मां अब रोहतक मे रहती हे
शहर में हुए बम धमाको की वजह से आज शाम से थोड़ा अपसेट था , आपका ब्लॉग पढ़ा ,धरम करम की बातें सुनकर थोडी उदासी दूर हुई | हमेशा की तरह एक और बढ़िया पोस्ट लिखने के लिए शुभ कामनाएं!!!!!!!!!
ReplyDeleteआज संस्कृत और फारसी के आपसी सम्बन्ध के बारे में लिखने का सोचा था मगर कुछ ऐसा घट गया कि रौ में आकर कुछ और ही लिख गया. आपसे विशेष अनुरोध है पढने का - जब भी समय मिले.
ReplyDeleteहा हा हा खुद तो बिगड गया अब मन्ने भी बिगाडेगा के !!
ReplyDeleteरै भाई बोतडू एक बात कहूं सू रे देख मका ध्यान ला के सुनीये कि बात तो तैं करे सै ठीक पर तेरी हरियाणवी में वा दम कोनी जो होना चाहै था बाकी तो मन्नै चोखा लाग्या थारे विचार भी कसूती ढाल पका राखे सैं लिखते रहो
ReplyDeleteप्रिय भाई मोहन जी !
ReplyDeleteआपका कहना एक हद तक सही है !
मैंने जान बुझकर थोड़े हिन्दी शब्दों का
प्रयोग ज्यादा किया है ! जिससे सब आसानी
से मजा ले सके ! जैसी शुद्ध हरयाणवी आप
और हम बोलते हैं ! अगर वैसी लिखूंगा तो
कमेन्ट आयेंगे ...बढिया.. बहुत खूब ....
बधाई ... लिखते रहिये ! क्यूंकि बात
किसी के समझ ही नही आयेगी !
इब तैं के चाहवै सै की तेरे इस भाई
बोतडू को इसे कमेन्ट मिलने चाहिए ?
बाक़ी माल आपको अच्छा लगा इसके
लिए आपका धन्यवाद !