"धन से मुझे ऊब हो गई है ! बीमार और भूखों को देख कर मेरा
मन दुखी हो जाता है " ये शब्द करीब एक वर्ष पहले बिल गेट्स
ने कहे थे ! और इस व्यक्ति के लक्षण मुझे उसी समय से कुछ अच्छे नही
दिखाई दे रहे थे ! और इस व्यक्ति के बारे मे मैं हर खबर पर
नजर लगाए रखता था ! मुझे उन्ही दिनों लग गया था की एक और
सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा और राजकुमार राहुल को छोड कर
वन गमन कर सकता है ।
इतना आसान भी नही है अगर आपके पास तकरीबन सौ अरब डालर
हों और आप सैकिंडो के हिसाब से धन का उत्पादन कर रहे हों ।
ऐसे मे आपका लक्ष्य दौ सो अरब डालर की तरफ़ बढने का होगा !
इस उंचाई पर अचानक आप अपना सब कुछ बिमार , भुखों के लिए
छोड देने का फ़ैसला कर ले तो इसे क्या कहेंगे ? धनवान होना
कोई गुनाह नही है लेकिन राजा से फ़कीर बन जाने का फ़ैसला
कर लेना कोई आसान खेल नही है ! और आज तक के हमारे मानव
इतिहास मे कितने धनिक ऐसा कर पायें हैं ?
एक दिन बिल गेट्स अपनी पत्नी मेलिंडा के साथ उनके दोस्त
वारेन बफ़ेट के घर पहुंचते हैं और वारेन साहब के साथ किसी समारोह
मे शामिल होने चल पडते हैं ! समारोह स्थल पर पहुंचते ही, सैकडों
बच्चों ने जिनके कि हाथ मे माइक्रोसाफ़्ट का झ्न्डा लहरा रहा था ,
उन तीनों का स्वागत किया ! और वे तीनों, बच्चों से हाथ मिलाते हुये
आगे बढने लगे ! इतने मे वारेन बफ़ेट की तरफ़ देख कर एक काला
आठ नौ साल का बच्चा हंसने लगा ! कन्जूस वारेन को उसका हंसना कुछ
अटपटा लगा और वो उस बच्चे से पूछ बैठा की वो क्युं हन्स रहा है ?
बालक ने हंसते हुये ही जबाव दिया - क्योंकि मैं बहुत खुश हूं !
वारेन साहब को उस बच्चे के इन शब्दों ने जैसे आसमान से नीचे गिरा
दिया ! उसने कभी हंसना भी नही जाना ! वो तो सिर्फ़ पैसा कमाने की
मशीन भर बन गया था ! वहीं एक तरफ़ ले जाकर, वारेन ने बिल
से कहा - बिल मेरे पास करीब ३८ अरब डालर हैं इसमे से मैं
तुम्हारे फ़ाउन्डेशन को ३४ अरब डालर देता हूं !
इस जरा से बच्चे ने मेरी आंखे खोल दी हैं ! बल्कि
मुझे हंसना सिखा दिया है ! इसने मुझे मशीन से इन्सान बना दिया है ।
आज मैं हंसना सीख गया हूं अब तुम पूरी दुनियां के बच्चों को हंसाना ।
बिल ने कुछ भी जबाव नही दिया और तत्क्षण घोषणा कर दी - मैं
माइक्रोसाफ़्ट छोड रहा हूं ! दोनों पके हुये फ़ल थे यानि पिछले जन्मों
के तपस्वी रहे होंगे ! पल भर मे क्रान्ति घट गई ! हो गये दोनो बुद्ध !
बिल ने जो किया है सन्सार मे रहते हुये , उसकी मिसाल शायद ही
मिल पायेगी ! पुरी दुनियां को एक माइक्रोचिप लेकर जिसने एक
कटोरे मे बैठा दिया वो बिल जिस आखिरी दिन माइक्रोसाफ़्ट के आफ़िस
मे पहुंचा तो उसका पूरा स्टाफ़ रो रहा था और वो सब चाहते थे
कि बिल इस तरह से वैराग्य लेकर ना जायें ! पर भला किसी सिद्धार्थ
को राजमहल त्यागने से कोई चीज रोक पाई है ?
बिल तो जीते जी अमरता को प्राप्त संत हो गये हैं ! पर इस बुद्ध के
पद चिन्हो पर चलने के लिये क्या धन का त्याग जरुरी है ?
और अगर किसी के पास धन हो ही नही तो ? हम मे से बहुतों के
पास फ़टी जेब है तो क्या करे ? सवाल बडा मार्मिक है !
पर मेरे दोस्तो ! आप ये क्यों नही सोचते कि बिल के अरबों डालर
आपके चन्द रुपियों के सामने फ़ीके हैं अगर आपने उसी के भाव
से ५०० रुपिये भी किसी अनाथ गरीब की सेवा मे दिये हों ।
इन इक्कीसवीं सदी के बुद्धों से कुछ सीखना ही है तो ये मत सोचना
की आप धन का त्याग करके ही बुद्ध बन पायेंगे ! और सच तो ये है
कि बुद्ध बना नही जाता बल्कि कर्म करते करते आदमी कब बुद्ध शुद्ध
हो गया उसे ही नही मालूम चलता !
दोस्तों किसी प्रण की जरुरत नही है ! इस दुनिया को सुखी बनाने
के लिये धन से भी जरुरी बहुत समस्याएं हैं ! आज महिलाओं पर
इतने अत्याचार हो रहे हैं क्या हम किसी मा, बहन या बेटी की
मदद नही कर सकते ? किसी एक मासूम बेसहारा के जीवन यापन
या किसी बालिका की शिक्षा का बोझ हम नही उठा सकते ? हम जिस
क्षेत्र मे भी कार्यरत हैं उसी क्षेत्र की सहायता उनकॊ नही दे सकते ?
क्या हम साप्ताहिक रूप से एक दो घन्टे किसी संस्था को नही दे सकते ।
क्या हम जल सरंक्षण के उपाय़ नही अपना सकते ?
क्या हम ट्रेफ़िक के नियम पालन नही कर सकते ?
क्या हम पेड कटने से नही रोक सकते ?
हम ये सारे काम कर सकते हैं ! आइये हम अपनी अपनी काबलियत
के अनुसार कुछ ना कुछ करने की ठान ले ! दोस्तों धन कुबेरों
मे बिल, वारेन और नारायण मूर्ति तो सदियों मे होते हैं ! बाकी धन
कुबेरो से आप भली भांति परिचित हैं ! इनके या दुसरे के सहारे
अपनी इस प्यारी सी धरा को मत छोडिये ! समाज की सताई हुई बेसहारा
मजबूर बच्चियों को मत छोडिये । ये हम सबकी सामुहिक जिम्मेदारी है ।
सिर्फ़ बहस से कूछ नही होगा ! आपका कुछ समय ही इनको दिजिये
उसकी कीमत भी अरबों डालर से कम नही होगी ।
और कुछ नही तो इस धरती पर एक पेड ही लगा कर अपना योगदान
दे सकते हैं ! हम और कुछ ना कर सके तो किसी अच्छे काम
मे अपना समर्थन तो दे सकते हैं ! फ़िर देखिए ये धरती कैसे स्वर्ग
बनती चली जायेगी ! और आप खुद अपने मे ही परम शान्ति का
अनुभव कर पायेंगे ! आज के अशान्त माहोल मे हम सुखी होने का दिखावा
भले ही कर ले पर इतनी असन्गतियों के बीच हम सुखी नही हो
सकते ! आखिर हम सबका अस्तित्व तो एक ही है !
ताऊ कर दी ना लाख टके की बात,खुश कर दिया भाई
ReplyDeleteआज के अशान्त माहोल मे हम सुखी होने का दिखावा भले ही कर ले पर इतनी असन्गतियों के बीच हम सुखी नही हो सकते ! आखिर हम सबका अस्तित्व तो एक ही है !
ReplyDelete==आज तो ताउ प्रवचन मोड में आ गये. :) वैसे कहा एकदम सही.
बेहतरीन आलेख,
ReplyDeleteचोखी बात, उम्मीद है कि कान न बहरे हों ।
सुबह सुबह आपके ब्लॉग पे ये सोच के आया था की आज ताऊ कुछ वीक एंड के फ़न्डे देगा ! और आपसे ३ दिन पहले फोन पर भी बात हुई थी !
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट ने गहराई से सोचने पर मजबूर कर दिया है ! मन बैचैन हो रहा है ! आज का आफिस निपटा कर फोन करूंगा ! धन्यवाद !
ये हम सबकी सामुहिक जिम्मेदारी है । सिर्फ़ बहस से कूछ नही होगा !
ReplyDeleteआपने सही लिखा है ! ये एक मिशन बन जाना चाहिए ! ज्ञान और शिक्षा से परिपूरण लेख ! बधाई !
आपने हरयाणवी भाषा यहाँ नही लिखी है ! पर यहाँ भी आपका अंदाज वही है ! हरयानावियों की तरह सीधी सपाट बिना लाग लपेट वाली बात् ! बहुत ही सम सामयिक लेख ! दिल को छू गया ! आत्म मंथन की जरुरत पड़ेगी !
ReplyDeleteबहस से कुछ नही होगा ! और हम इसके अलावा करते ही क्या हैं ?
दिमाग झन्ना गया है बाप !
ReplyDeleteकुछ तो करना पडेगा !
दिल की गहराइयों से आपका इस्तकबाल
करता हूँ !
आँख खोलने वाला लेख है आपका | बहुत बहुत बधाइयां |
ReplyDeleteआए थे हरी भजन को ओटन लगे कपास !
ReplyDeleteहम तो यहाँ आए थे कुछ छंद रागनी
सुनने और यहाँ मिले प्रवचन | ख़ैर....
मजाक आज नही करूंगा |
दिल को अन्दर तक हिला डाला आपके लेख ने |
सही में अगर हम अपने अपने फील्ड से ही
ReplyDeleteथोडा थोडा सामुदायीक कार्य कराने लग जाए
तो एक बड़ी क्रान्ति हो सकती है | छोटी सी
बात लगती है पर नतीजे बहुत ही बड़े होंगे !
शुभकामनाए |
गुरुदेव (समीर जी) आप कह रहे हैं तो
ReplyDeleteआज का आफिस निपटा कर मोड़ चेंज
कर लेते हैं ! वैसे आज गुरु पूर्णिमा
है तो आप को शत शत प्रणाम ! आपकी
आज्ञा है तो वापस ताऊगिरी शाम से शुरू !
गुरु पूर्णिमा पर आपका आदेश शिरोधार्य !
बहुत बढिया और सुंदर आलेख ! शायद हमको इसी तरफ़ काम करने की जरुरत है !
ReplyDeleteआपका लेख पढ़कर याद आया की हमारे दोस्त ने हमें एक sms भेजा था अंग्रेजी में था उसका तर्जुमा हिन्दी में कुछ यूँ था
ReplyDelete" निश्चित कर लो जिंदगी में पैसा ही सब कुछ नही है पर ऐसी बेवकूफी की बात कहने से पहले ये भी निश्चित कर लो की आपके पास पर्याप्त धन है...-बिल गेट्स ."सारा लेख बहुत से विचार छोड़ जाता है पर जीवन इन विचारो ओर इन फलसफो में कई बार उलझता है कई बार अपने आप से बहस करता है ..पर ये विचार कई बार आपकी आत्मा की शुद्दी के लिये भी जरुरी है
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ReplyDeleteअभिसिंचित हों स्नेह से,वंचित हैं जो मित्र
ReplyDeleteकैसे कैसे लोग हैं,दुनिया बड़ी विचित्र
दुनिया बड़ी विचित्र,पोंछिए उनके आंसू
मिल जाएगी खुशी,काम यह करिए धांसू
आज की वार्ता पढ़कर तो हमने आपको अपने श्रद्धेय की श्रेणी में रख लिया है - कहाँ हैं आपके चरण?
ReplyDeleteमजाक नहीं - बहुत अच्छी बात कही है आपने और बहुत अच्छी तरह कही है, मैं जानता हूँ कि आपके शब्दों के पीछे सिर्फ़ भावना नहीं बल्कि कर्म भी छिपा है इसीलिये वे ताक़तवर हैं. कृपया इस पोस्ट को कुछ ज्यादा देर तक यहाँ रहने दें.
ईश्वर अच्छे लोगों को और समृद्ध करे ताकि उसके पिछडे बच्चे भी संपन्न होकर ऐश्वर्य का अनुभव कर सकें.
शुभेच्छा सहित - आपका मित्र पित्स्बर्गिया.
रामपुरिया जी,
ReplyDeleteबिल गेट्स जैसे योगियों के बारे में गीता में गीता (अध्याय ६) में कृष्ण जी ने अर्जुन के बहाने से हमें बताया है -
प्राप्य पुण्यकृतां लोकानुषित्वा शाश्वतीः समाः । शुचीनां श्रीमतां गेहे योगभ्रष्टोऽभिजायते ।।
अथवा योगिनामेव कुले भवति धीमताम् । एतद्धि दुर्लभतरं लोके जन्म यदीदृशम् ॥
तत्र तं बुद्धिसंयोगं लभते पौर्वदेहिकम् । यतते च ततो भूयः संसिद्धौ कुरुनन्दन ॥ ...
प्रयत्नाद्यतमानस्तु योगी संशुद्धकिल्बिषः । अनेकजन्मसंसिद्धस्ततो याति परां गतिम् ॥
अर्थात: -
असफल (पिछले जन्म के योग के अधूरा रह जाने के स्थिति वाले) योगी सदाचारी या/व धनवान कुल में या परम बुद्धिमान या योगी कुल में दुर्लभ जन्म लेकर पूर्वजन्म की देवी चेतना को प्राप्त करता है और आगे अनायास ही उन्नति करता हुआ पूर्ण सफलता को प्राप्त करके सिद्धि-लाभ कर अपने परम गंतव्य को प्राप्त करता है.
"मुझे हंसना सिखा दिया है", कितनी सुंदर बात है. कोई किसी को हँसना सिखा दे इससे सुंदर बात और क्या हो सकती है? बहुत अच्छा लेख लिखा है आपने. वधाई.
ReplyDeleteआँख खोलने वाला लेख है
ReplyDeleteपोस्ट अच्छी लगी
आपके लेख को एक बार फिर से पढ़ा और फिर उतना ही अच्छा लगा. अगले कथन की प्रतीक्षा में!
ReplyDeleteशुभेच्छा सहित.
आपका लेख बहुत जोरदार है ! पढ़ कर काफी प्रेरणा मिली !
ReplyDeleteऐसा लगता है की कुछ ना कुछ करके मरना चाहिए !
अपुन भी ऐसा कुछ करके ही जायेगा ! बहुत बहुत धन्यवाद !
ताऊ अपने फिर से कमल कर दिया ,सुख की परिभाषा ढूंढ रहा था आपने सही रास्ता दिखा दिया | मार्गदर्शन करने के लिए धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत सुंदर पोस्ट लिखी है आपने ! बधाई , और हाँ यह जान कर अच्छा लगा की आप ताऊ नाम से मशहूर होते जा रहे हैं ! हरियाणवी पढने में थोड़ा समय जरूर लगता है , मगर जब तक पढ़ नही लेता छोड़ने का मन नही करता !
ReplyDeleteअब कुछ नया भी लिखोगे.पांच दिन से यही पढ़ा रहे हो.
ReplyDeleteसही कहा आपने। खुशी हमारे भीतर ही है, हम उसे जाने कहां कहां खोजते रहते हैं।
ReplyDeleteताउ थम कुछ लिखदे क्यु नही ? इब थारै यो प्रवचन कब तक पढते रहे ? इब कुछ हरयानवी भी आण दो !
ReplyDeleteइतनी सीधी बात आज तक नही पढी ! आपका कहना सही है ! और मेरा सोचना भी यही है की अगर हम कम से कम में राजी हो जाए तो ये दुनिया स्वर्ग हो जायेगी ! हमें बहुत कुछ
ReplyDeleteकरने की बजाय थोडा कुछ करना चाहिए ! और मैं इस बात से भी सहमत हूँ की हम कुछ ना कर सके तो ट्रेफिक के नियम ही पाल ले ! आपने सारा जोर स्व पर दिया है ! और कितनी सुंदर बात कही है ! और मैं आपसे पूरी तरह सहमत हूँ ! मैंने काफी समय से इतनी सुंदर विचार
धारा वाला लेख नही पढा ! मैं अभी तक के पढ़े लेखों में इस लेख को सर्वोपरी लेखों के सम कक्ष रखूँगा !
आपको अनेकों शुभकामनाए !