वाराणसी यात्रा के अनुभव भाग - 1

वाराणसी अभ्यास शिविर [यात्रा भाग -1]

कहते हैं जिस इंसान को भटकने की आदत लग जाये वो एक जगह टिक कर नहीं रह सकता. जबसे कोरोना महामारी शुरू हुई है तबसे तो ताऊ जैसों की लगी पडी है. घर में तो जैसे पांव जलते हैं और यही हाल “वत्स” जी का है. अभी चार पांच महिनें पहले ही दोनों गोवा जाकर आये थे उसके बाद राजस्थान की ट्रिप हो गई थी. फ़िर लोक डाऊन टू शुरू हो गया….तबसे घर में कैद होकर रह गये.

लोक डाऊन टू का असर कुछ कम होने लगा तो वत्स जी बोले, ताऊ चल, गोवा निकलते हैं….मैंने कहा अभी कोरोना चल रहा है कहीं उसने पकड लिया तो क्या होगा? वो बोले…ताऊ कोरोना तेरा क्या कर लेगा? वो तो खुद तुमसे दूर भागता है और सोचता है….कि कहीं ताऊ ने मुझे पकड लिया तो क्या होगा?

हमने कहा…. बात तो आपकी सही है पर ताई जाने नहीं देगी…. बिना बात लठ्ठ खाने पड जायेंगे… अभी कुछ दिन रूकिये. पर वत्स जी नहीं माने और बोले… ताऊ मुझे नहीं पता… तुम लठ्ठ खावो या कुछ और… मैं टिकट करवा रहा हूं अब घर में दम घुट गया है. अब हम क्या कहते… हमें तो लठ्ठ खाने की आदत हो चली है सो तैयार हो गये.

फ़िर अचानक कुछ भक्तगणों की सहमति पर वत्स जी ने गोवा की जगह वाराणसी का प्रोग्राम बना लिया और बोले श्रावण का महीना है, ताई मना नहीं कर पायेगी भोलेनाथ के दर्शन के नाम पर… और मुझे भी बापू की गालियों से प्रोटेक्ट शील्ड मिल जायेगी. इस तरह 14 अगस्त से 16 अगस्त का प्रोग्राम बन गया.

ताई को पहले से बताने का मतलब की जाने के दिन तक रोज लठ्ठ खावो सो बताने का तो कोई सवाल ही नहीं था….ताऊ भले ही कहीं मंदिर दर्शन के लिये भी शहर से बाहर जाये पर ताई को लगता है कि गोवा गया, और यही हाल वत्स जी का है….वत्स जी के शहर से बाहर निकलते ही बापू को पक्का शक हो जाता है कि गोवा गया….फ़िर जो पंजाबी शब्दों में आशीर्वाद की बौछार होती है वो कल्पनातीत है.

पर ना तो वत्स जी को इस पंजाबी आशीर्वाद से फ़र्क पडता है और ना ही ताऊ को. ताऊ को तो आप सब जानते ही हैं कि जब तक रोजाना दो चार लठ्ठ नहीं पडें तब तक रोटी हज्म नहीं होती.

आखिर वाराणसी जाने का दिन आ ही गया और ताऊ ने बताया…. सुनते ही ताई का दिमाग सातवें आसमान पर…. पास पडा लठ्ठ उठाया और फ़टकारते हुये बोली… तुमको शरम भी आती है या नहीं? लोग कोरोना के मारे घर से नहीं निकलते और तुम चले गोवा….. बीच में ही ताऊ बोला… गोवा कहां जा रहा हूं… मैं तो भोलेनाथ के दर्शन करने  वाराणसी जा रहा हूं…… बस यह सुनते ही ताई ने दो चार लठ्ठ और मारे फ़िर बोली….. अब झूंठ भी बोलने लगे? वाराणसी का बहाना बना रहे हो और जाना तुमको गोवा है. खैर जाने के दो चार घंटे पहले ही बताया था सो किसी तरह यह भूकंपमयी समय भी निकल गया और हम अपना बैग उठाकर सीधे एयरपोर्ट पहुंच गये.

दोपहर करीब 3 बजे के आसपास वाराणसी के एयरपोर्ट पर थे. वहां से सरवेश्वरी होटल, लंका जाने का साधन तलाशा तो प्रीपेड टेक्सी वालों ने 800 रुपये मांगे. हमने कुछ मोल भाव करना चाहा तो ठेठ बनारसी अंदाज का जवाब मिला…. सुनिये…. जाना है तो आठ सौ रूपये दीजिये, हम रसीद बना देते हैं वर्ना कोई और साधन खोज लीजिये. हमने पूछा और कौनसा साधन है… तो मुंह में दबाये पान की पीक गटक कर वो बोला….. ऊ सब हमें नाहीं मालूम…. बाहर जाकर खोज ना लिजीये…. बनारसी भौकाल से यह पहला सामना था.

हम अपना सा मुंह लिये विचार करने लगे तभी बेटे का फ़ोन आ गया कि पहुंच गये या नहीं. बेटे ने कहा मैं ऊबर टेक्सी बुक करवा देता हूं… हम सोच ही रहे थे कि ये चेन्नई में बैठ कर बनारस में कैसे टेक्सी बुक करवायेगा? इतनी देर में वो बोला टेक्सी बुक कर दी है…. ये टेक्सी नम्बर है, अभी फ़ोन आता होगा और पेमेंट कर दिया है 592 रूपये…. आप कहीं डबल मत कर देना. हमारा तो दिमाग ही चक्कर खाने लगा कि टेक्सी भी बुक हो गई, पेमेंट भी हो गया…. कहीं बेटा मजाक तो नहीं कर रहा? इतनी देर में टेक्सी वाले का फ़ोन आ गया….. कि सर मैं अराईवल गेट के सामने ही खडा हूं… आप आ जाईये.

हम बाहर निकले कि उसने हमारा बैग लिया और गाडी में रख कर हमें बैठा कर रवाना हो गया. करीब 30 किलोमीटर की दूरी थी सो करीब 1 घंटा लग गया. टेक्सी वाला भला बंदा था हमें शहर के बारे में बताते हुये आया. बोला सर, ये सब फ़्लाई ओवर मोदी जी की मेहरवानी से बने हैं…. और ये वाला वही फ़लाई ओवर है जो निर्माण के दौरान गिर गया था…. यह BHU परिसर है….. ये इधर संकट मोचक हनुमान जी का मंदिर पडेगा… आपके होटल के पास ही पहलवान लस्सी वाला है… वहां कचोरी और लस्सी जरूर पीना…..इत्यादि इत्यादि….

आखिर हम होटल पहुंच गये और हमने उससे कहा कि भाई तुम भले आदमी लगते हो… हमको 16 तारीख को यहीं से उठाकर एयरपोर्ट पर पटक देना…. वो बोला सर आ जाऊंगा….. आपकी टिकट मुझे व्हाटसएप्प पर भेज दिजीये… मैं सही टाईम पर आ जाऊंगा…. आप बेफ़िक्र रहिये…. और वो चला गया.

होटल बाहर से देखने में बढिया लग रहा था, करीब सात आठ मंजिल ऊंचा, हम दाखिल हुये तो रिसेप्शन काऊंटर पर एक आदमी पान या खै्नी मुंह में दबाये बैठा था. हमने कहा कि हमारी बुकिंग है और हमें कमरा दे दीजिये. वो पान दबाये हुये ही क्या गें..गें..बोल रहा था वो समझ नहीं आया और गर्मी के मारे बुरा हाल था. उस भले आदमी ने एक वाल फ़ैन सिर्फ़ अपनी तरफ़ लगा रखा था बाकी पूरे हाल में आषाढ की दुपहरिया जैसा हाल था. गर्मी के मारे प्राण निकलने को थे. शायद पांच सात मिनट हमारे पेशेंस का इम्तहान लेने के बाद उस भले आदमी को तरस आया होगा सो वो जाकर पान थूक कर आया और बोला…. देखिये जी, मैनेजर साहब अभी अभी खाना खाने गये हैं, उनके आने के बाद ही कुछ होगा…. अरे आप खडे क्यों हैं? उंहां सोफ़ा पर बैठिये ना…. हम बोले भाई बहुत गर्मी है…. कोई पंखा वंखा ही चला दो….. वो बोला इंहा तो ये एक ही फ़ैनवा है…. हम उसका मंतव्य समझ गये और काऊंटर पर कुछ ऐसी पोजीशन बनाकर खडे हो गये कि उसके ना चाहते हुये भी उसके फ़ैनवा की थोडी सी हवा झटक सकें.

करीब आधा घंटे तक काऊंटर पर खडे खडे सोना बाथ लेने के बाद हमें मैनेजर साहब के दर्शन नसीब हुये. मैनेजर साहब ने आते ही हमारी बुकिंग रसीदें देखी और उनका बनारसी भौकाल शुरू हो गया. बोले आप लोग ये आन लाईन बुकिंग काहे करवाते हैं? इतना कम दाम पर तो हम सब ये फ़ेसेलिटी पिरोवाईड नहीं ना कर पायेंगे…. काहे से कि हमको नुक्सान ना हो जाता है.

हम बोले… मैनेजर साहब आप फ़िलहाल तो हमको एक ठो एसी रूमवा दे दिजिये…. काहे से कि हमारा मगजवा भी बहुते गर्म हो गया है. रही आपकी फ़ेसेलिटी की बात तो बुकिंग करवाने वाले वत्स जी भी आ ही रहे हैं…. वो सब बाते आप उनसे कर लिजीयेगा. इतनी ही देर में राजेंद्र शर्मा जी पहुंच गये… उनकी कोई एडवांस बुकिंग थी नहीं, सो काफ़ी झकझक के बाद उनकी व्यवस्था हुई. फ़िर वत्स जी और विक्की शर्मा जी भी पधार गये. उसके बाद सब व्यवस्थाएं उस रोज के लिये सेट की गई. और अंत में मधु जी भी पधारी. फ़िर सब अपने अपने रूम में सेट हो गये. इस तरह 13 अगस्त मनाया गया.

क्रमश:


#हिन्दी_ब्लॉगिंग

Comments

  1. क्या बात है ... वाराणसी घूमना हो रहा!

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