वाराणसी अभ्यास शिविर
भाग -3
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शाम की मिटिंग के लिये
सब कान्फ़्रेंस हाल में जुटना शुरू हो गये थे. पर कहते हैं ना कुछ लोगों की दुआएं काम
बना देती हैं और कुछ नाशुक्रे लोगों की अंदरूनी बद-दुआएं विघ्न भी पैदा कर देती हैं.
हुआ यूं कि कान्फ़्रेंस के लिये सब कुर्सी टेबल और पोडियम लग चुके थे और बस बैनर लगना
बाकी रह गया था. होटल वाले लडके बैनर लगा रहे थे पर वो चिपक नहीं रहा था. दायें से
लगाते तो बांये से उखड जाता और बांये लगाते तो दांये से उखड जाता….. अजीब सी उलझन थी….
गुस्सा भी आ रहा था कि ये किसने गरूड पुराण बांच दिया जो जरा से काम में भी विघ्न आ
रहा था.
हम, वत्स जी, बी. एन. शर्मा जी, आशुतोश जी, पारीक जी आदि सभी बेबस से खडे देख रहे थे तभी राजेंद्र जी शर्मा की अगुआई में ग्रूप के कुछ लोगों ने कमान अपने हाथ में ले ली. युद्ध स्तर पर काम शुरू हो गया क्योंकि समय समाप्त होता जा रहा था. आखिर राजेंद्र जी के कुशल संचालन में इस बद्दुआ आफ़त पर काबू पा लिया गया.
तभी मधु जी बोली…. इसके आगे खडे होकर फ़ोटो खिंचवा कर देखते हैं तो उनकी सलाह पर हमने और वत्स जी ने मधु जी के साथ फ़ोटो खिंचावाई.
पर जैसे ही हम फ़ोटो खिंचवाकर हटे कि दूसरे भी खिचवा कर आजमा लेवें क्योंकि हमे संदेह हो चला था कि किसी दिलजले ने तगडी बद्दुआ लगाई है या कोई जादू टोना किया है…… पर ये क्या…? हम तीनों के हटते ही बैनर भाई साहब धडाम से पूरे के पूरे नीचे आ गिरे….. सबकी हंसी भी निकल गई पर हमने खिसियानी हंसी हंसते हुये कहा….. भई इस बैनर पर बहुत भारी वजनदार पंडित विराजमान है सो उनका वजन सहन नहीं कर पा रहा है…. सारे पंडित धडाम से गिर गये.
आखिर बैनर भाई साहब को किसी तरह रस्सियों के सहारे लटकाया गया. आखिर इतने धुरंधर पंडितों का वजन सेलो टेप तो सहन नहीं कर सकता था सो रस्सियों का सहारा लिया गया. तभी हमने वत्स जी को कहा कि महाराज आपके बैनर पर तो किसी ने गरूड पुराण बांच दिया है और ये यहां टिकने वाला नहीं है. वत्स जी बोले… फ़िर अब क्या करना? हमने कहा… आप एक काम करिये कि जब तक ये बैनर यहां टिका है तब तक सबको सर्टीफ़ेकेट इस बैनर को हाजिर नाजिर मानकर बांट दिजीये…… यह सुनते ही वत्स जी बोले…. ऐसे कैसे होगा? ना इन लोगों से कोई सवाल पूछा और ना ही कोई परीक्षा ली…. और आप कह रहे हैं कि सर्टीफ़िकेट बांट दिजीये… ? ये भी कोई बात हुई भला….. फ़िर दो तरह के सर्टीफ़िकेट भी तो इसी लिये लाये थे ना कि यदि सही जवाब देंगे तो “नक्षत्र ज्योतिष विशारद” का सर्टीफ़िकेट दे देंगे और सही जवाब नहीं दिया तो “ज्योतिष अभ्यास शिविर सहभागिता” में भाग लिया, वाला दे देंगे. अब बिना परीक्षा ही आप इन्हें कौन सा सर्टीफ़िकेट देंगे?
दो पांच मिनट इंतजार करके देखा कि बैनर भाईसाहब वजन सहन कर पाते हैं या नहीं? पर जब वो पांच मिनट टिक गये तो
यकिन हो गया कि अब नहीं गिरेंगे तब हम और वत्स जी भी विराजमान हो गये. बाकी सभी ने
भी अपना अपना स्थान ग्रहण कर लिया.
शायद आप नहीं जानते
पर वत्स जी जानते हैं कि यदि माईक दिख जाये तो फ़िर हमारा स्थान कुर्सी पर नहीं बल्कि
माईक के पीछे होता है सो हम पोडियम के पीछे खडे हो गये पर ये क्या? वहां माईक वाईक
तो कुछ था नहीं सो जोर से बोलना ही पडेगा. तब हमने वत्स जी को कहा कि इस तरह बिना माईक
तो इतना सारा बोलने में हमारे गले की बारह तो क्या तेरह बज जायेगी…. अभी आप ही बोल
लीजिये हम कल बोल लेंगे….. वत्स जी बोले…. आप शुरू किजीये, बीच बीच में आपके गले को
रेस्ट दिलवा देंगे…. कुछ सवालों के जवाब हम दे देंगे तब तक आप गले को आराम करवा लिजीयेगा.
तब हमने अपने गले को विश्वास दिलाया कि चल शुरू हो जा… भगवान सब भली करेंगे.
हमने काशी के कोतवाल
भरव जी और गुरूओं के गुरू भोलेनाथ विश्वनाथ जी का स्मरण वंदन करते हुये बोलना शुरू
किया. सभी विद्वान इतनी तन्मयता से सुन रहे थे कि बस दो मिनट में ही लय बंध गई. हमने
बडे बडे विद्वानों और बडी भीड में भी बोला है पर इतनी तन्मयता और जिज्ञासु भाव से सुनने
वाले श्रोता नहीं मिले.
अब जिज्ञासुओं के सवालों का निराकरण वत्स जी ने करना शुरू किया तब तक हमने गले को विश्राम दिया. एक बात साफ़ नजर आई कि इतने गंभीर किस्म के जिज्ञासु पहली बार मिले थे. बहुत ही तन्मयता से सुन भी रहे थे और जिज्ञासा भी प्रकट कर रहे थे. ऐसे ही जिज्ञासुओं को कुछ बताने में भी आनंद आता है.
इसके बाद हमने फ़िर मोर्चा संभाल लिया और सभी लोग गंभीरता पूर्वक सुनते रहे. जो कुछ बोला गया उसे यहां दोहराने की आवश्यकता नहीं है.
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