वाराणसी यात्रा के अनुभव भाग - 5

वाराणसी अभ्यास शिविर भाग -5

अब तक का विवरण आपने भाग -1,  भाग – 2,  भाग – 3 एवम भाग - 4 में पढा. अब आगे बढते हैं.

15 अगस्त को सभी तैयार होकर नीचे हाल में ब्रेकफ़ास्ट के लिये एकत्रित हुये. ब्रेकफ़ास्ट पर भी अनवरत विषय संबंधी चर्चा चलती रही. ब्रेकफ़ास्ट के बाद आईस्क्रीम का दौर चलता रहा और सभी प्रसन्नता पूर्वक चर्चा करते रहे. इसके बाद सबने अपने अपने हिसाब से काशी दर्शन का प्रोग्राम बना लिया. सब अपनी अपनी पसंद का प्रोग्राम बनाकर रवाना हो गये. हमने सभी को बता दिया था कि आज रात को डिनर के बाद सवाल पूछा जायेगा और सवाल की कुंडली ग्रूप में लगा दी कि कोई ग्रूप में जवाब नहीं देगा.



हमारा कोई प्रोग्राम नहीं था क्योंकि काशी में कोई भी मास्क नहीं लगाता पाया. हमने सोचा कि भीड भाड वाली जगह से बचने में ही भलाई है सो हम अपने कमरे में आराम करने चले गये.

अभी कुछ ही मिनट हुई होंगी कि वत्स जी का फ़ोन आ गया कि चलो काल भैरव जी के दर्शन करके आते हैं. हमने कहा कि आप हो आईये, हमने तो यहीं से हाथ जोड लिये. इस गर्मी में कौन अपनी कंचन काया को तकलीफ़ देगा? तो वत्स जी बोले.... कष्ट बिल्कुल नहीं होगा, आप चलो, मधुजी के पास गाडी और ड्राईवर दोनों हैं, यहां भी कमरे में क्या करेंगे? फ़टाफ़ट आ जाईये..... शायद मधु जी भी हमको कालभैरव जी के दर्शन करवाने ही कार से आई थी सो हम नीचे पहुंच गये.

अब ड्राईवर साहब ने गूगल बाबा के मैप पर काल भैरव जी की लोकेशन सेट की और चल पडे बनारस की फ़ेमस गलियों से होते हुये दर्शन करने के लिये. करीब आठ या नौ किलोमीटर चलने के बाद गूगल बाबा के हिसाब से गंतव्य आ गया पर वहां मंदिर छोडकर तो कोई चबूतरा भी नहीं था.... ये क्या हुआ? तभी वहां पास खडे एक सज्जन से पूछा कि काल भैरव जी का मंदिर किधर है? उसने हमारी तरफ़ ऐसे देखा जैसे कोई कपडे के बाजार में खडा होकर किराने की दुकान का पता पूछ रहा हो? वो बोले....  आप तो बिल्कुल ही उलटा न आ गये हैं....  आपको जाना उधर था और आ... इधर गये हैं. फ़िर उनके बताये हिसाब से हमने रास्ता पकडा. गूगल बाबा ने शायद बनारस में भांग शायद ज्यादा पी ली होगी क्योंकि उनका दिमाग काम नहीं कर पा रहा था तो रास्ता क्या दिखाते? फ़िर एक जगह एक सज्जन से रास्ता पूछा तो वो बोले.... आप सीधा जाकर बांये मुडकर सरपट गाडी दौडा दीजियेगा सीधे काल भैरव मंदिर पहुंच जाईयेगा....बनारसी भौकाल का असली आनंद आ रहा था. मन ही मन उनकी बात पर हंसे बिना नहीं रह सके.

खैर किसी तरह पूछते पाछते काल भैरव मंदिर यानि काशी के कोतवाल जी के पास पहुंच ही गये. अब संकरी सी तंग गली में कोई 400 मीटर पैदल चलने के बाद मंदिर में दर्शनों हेतु लाईन लगी थी सो बिना सोचे विचारे लाईन में लग गये. मास्क मुश्किल से 10 प्रतिशत लोगों ने पहना हुआ था, भीड आपस में गुत्थमगुत्था सी थी.... कोई पुलिस नहीं...कोई वालंटियर नहीं... संकरी गलियों से भीड आगे बढती रही और मजे की बात कि उसी लाईन के पास से जगह नहीं होते हुये भी लोग मोटर साईकिल निकाल रहे थे. कई मंदिरों का मुंह दिखाई दे रहा था जिनका अधिकतर हिस्सा लोगों ने अपने घर के अंदर दबा रखा था.

आखिर किसी तरह मंदिर के गेट तक पहुंचे और जबरदस्त भीड से सामना हुआ..... ऐसी भीड तो आजकल काबुल के एयरपोर्ट के बाहर ही दिखाई देती है. खैर साहब कुछ देर भीड में धक्के खाने के बाद कोतवाल साहब के दूर से दर्शन हुये. अंदर पुजारी जी बैठकर इत्मिनान से खैनी को मुंह में रखते नजर आये. दर्शन करके गलियों से घूमते हुये किसी तरह उस जगह आ पहूंचे जहां हम सभी ने अपनी चरण पादुकाएं उतारी थी.

हमको वाशरूम इस्तेमाल करना था सो दुकान वाले से पूछा..... वो बोला.... आप एक काम करिये, इंहां त कोई वाशरूम नहीं है....आप मेन रोड पर जाकर बांये घूम जाईयेगा, ऊहां आपको वाशरूम मिलेगा. सो हमने इन सभी को छोडकर अकेले ही दौड सी लगा दी. मेन रोड पर बांये भी घूम गये पर तसल्ली की जगह नहीं मिली. रोड पर बेतहाशा भीड....आटो वालों के मारे चलना मुश्किल....वहां फ़िर किसी से पूछा.... वो सज्जन बोले.... एक काम करिये....हमने मन में कहा....एक क्या अब तो दो भी करेंगे....बोला आप सीधे आगे जाईये, वहां आपको पोस्ट आफ़िस मिलेगा...ऊहां वाशरूम बना हुआ है....खैर हमने आखिर अपनी मंजिले मकसूद पा ही ली और वापस आकर गली के मुहाने पर खडे होकर बाकी सब का इंतजार करने लगे. थोडी देर बाद सभी आ गये तो वहां से होटल के लिये निकल गये और आकर सबसे पहले स्नान किया. फ़िर थोडा रेस्ट करके सबके साथ डिनर के लिये नीचे हाल में आ गये. 
14 अगस्त का ग्रूप फ़ोटो 





डिनर सभी ने विषय पर केंदित रहते हुये बातचीत में ही बिताया. हम और वत्स जी सभी के सवालों का जवाब देते रहे..... हम कुछ ज्यादा उचक कर जवाब दे रहे थे ताकि इनमें से आज रात के सवाल में कोई फ़ेल ना हो और सूत्र ध्यान में रखे. उधर वत्स जी तो यह मानकर ही चल रहे थे कि कल वाराणसी से सीधे गोवा ही चलना है पर हम भी दिन में भैरव जी से निवेदन कर आये थे.


   
आईस्क्रीम का मजा लेते हुये


डिनर के बाद सब हंसते मुस्कराते और परम संतुष्ट भाव से आईस्क्रीम को उदरस्थ करते रहे जब तक होटल वाले की आईस्क्रीम खत्म नही हो गई. इसके बाद तय हुआ कि ऊपर रूम में ही आज के सवाल का जवाब पूछा जायेगा. और कमरे में ही कुर्सियां लगवा दी गई. सभी वहां एकत्रित हो गये.

हमने एक एक से अलग अलग सवाल का जवाब पूछा और वत्स जी आश्चर्य चकित रह गये कि सभी का जवाब सही था. विशेषकर मधु जी ने जब कारावास शब्द को अपने जवाब में शामिल किया तो हम वत्स जी का मुंह देखें और वत्स जी हमारा..... हमने मुस्कराते हुये मन में ही कहा कि वत्स जी अब गोवा की आस छोडिये और सीधे लुधियाना पहुंचिये वहां बापू का आशिर्वाद इंतजार कर रहा है.

इसके बाद सब रात्रि विश्राम के लिये चले गये और सबके जाते ही वत्स जी ने बिना कहे ही प्रसन्नता पूर्वक हमें नगद 2100/- रूपये थमाये और बोले आज शर्त हारकर भी मैं बडा प्रसन्न हूं. हमने कहा कि औघडों से शर्त लगायेंगे तो हमेशा प्रसन्नता ही मिलेगी. फ़िर हम दोनों बहुत रात गये तक इसी पर विचार करते रहे कि कि हमने जो मिशन शुरू किया था वो कहां तक पहुंचा? आगे क्या करना है... इत्यादि...इत्यादि.

अब ये पोस्ट बडी हो गई है. 16 अगस्त के विवरण के साथ ही अगली पोस्ट में इस यात्रा का समापन कर देंगे.

क्रमश: 

#हिन्दी_ब्लॉगिंग

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