मोदी जी के नाम ताऊ का खुला खत

मोदी जी के नाम ताऊ का खुला खत
आदरणीय मोदीजी,
आज Rakesh Kumar Jain जी ने निम्न सवाल उठाया है। मैं पहले ही निवेदन कर देता हूँ कि यदि इस सवाल को लेकर कोई सजा हो तो जैन साहब को ही देना क्योंकि सवाल मेरा नही, उनका है, मैं तो पहले ही भगतों की गिनती में हूँ।😊

सभी लोगों ने गिन कर 500/- और 1000/- के पुराने नोट बैंको में जमा कराऐ, सभी बैंको ने गिन कर रुपये लिये ! सभी जमा नोटों की संख्या समेत रोज रिपोर्ट रिजर्व बैंक को दी ! बैंको ने गिन कर नोट चैस्ट में जमा कराऐ ! चैस्टों ने गिन कर रुपया लिया ! चैस्टों ने गिन कर रूपया रिजर्व बैंक में जमा कराया ! रिजर्व बैंक ने गिन कर रूपये लिऐ ! सभी बैंक कमप्यूटराइज हैं ! रोज हिसाब मिलाते हैं ! एक एक नोट का हिसाब है ! फिर भी सरकार नो महीने में भी बता नहीं पा रही है कि 500  और 1000/- के नोटों के रूप में कुल कितने रुपये जमा हुऐ हैं !

और सरकार चाहती है कि व्यापारी महीने में तीन बार अपना हिसाब और स्टॉक फिगर दे ! कैसी विडंबना है ? 🤔

अब बताइये आपका क्या कहना है? व्यापारी अपने काम धंधे में मन लगाए या सारा समय आपके टेक्स का हिसाब किताब ही करता रहे?

बहुत से व्यापारी अपने व्यापार और बही खातों का संचालन अकेले ही करते हैं, वो अकाउंटेंट रखना अफोर्ड नही कर सकते।

ताऊ का एक विनम्र सुझाव है कि आप हर व्यापारी के यहां आपका एक एक कर्मचारी नियुक्त करदें, जो दिन भर की खरीद बिक्री का हिसाब करता रहे और रोज शाम को ही आपके टेक्स का पैसा लेकर रसीद देकर चला जाये।

आपके उत्तर की प्रतीक्षा में
#ताऊ
#मोदीजी
#हिन्दी_ब्लागिंग

जिधर देखो उधर बाढ ही बाढ....



संटू भिया के कबाडखाने में मित्र मंडली जमी हुई थी पोहे जलेबी के नाश्ते वाले साप्ताहिक कार्यक्रम में, पर संटू भिया परेशान नजर आरहे थे. उनसे पूछने पर पता चला कि वो बरसात नही आने से परेशान हो रहे हैं. सारे जमाने में बाढ आई हुई है और हमारे यहां बाढ तो छोडिये वर्षा के नाम पर सरकारी नलों से टपकते पानी की तरह इंद्र देवता बरस रहे हैं…यानि इंद्र देव भी अबकि बार सरकारी तरीके से जल प्रदाय कर रहे हैं. अभी तक शहर के तालाब भी पूरे नही भर पाये हैं. यह तो शहर वासियों का इंद्र देव की तरफ़ से घोर अपमान है….वाह रे इंद्र भगवान, सबको लड्डू और हमको फ़ीकी बूंदी भी नही? पर अब इंद्र देव का क्या, उन्होंने कोई शोले फ़िल्म के जय वीरू की तरह, ठाकुर से गब्बर को मारने की सुपारी तो  ली नही है कि बरसना ही पडेगा और बाढ भी लानी ही पडेगी.

माहोल को चिंताजनक देखकर रमलू भिया चाय वाले ने कहा – यार संटू भिया क्यों परेशान हो रहे हो? ना बरसे पानी तो मत बरसने दो, अपने यहां तो नर्मदा माई की किरपा है जो बारहों महिने पानी तो पिला ही देगी. इस बात पर भिया भडक उठे – रमलू तू अपनी काली जबान को लगाम देकर रखा कर, अरे बरसात नही होगी और बाढ नही आयेगी तो अपना जलवा कहां से दिखेगा?
अब ये जलवे वाली बात सुनकर हमारे चौंकने की बारी थी सो हमने प्रश्नसूचक चक्षुओं से संटू भिया की तरफ़ देखा तो वो बोले – अमा यार तुम तो कुछ समझते ही नही हो…अरे जब बाढ आती है हर साल तो हम निचली बस्तियों में अपने पठ्ठों की टीम को लेकर जाते हैं और वहां से गरीब लोगों को निकालकर सरकारी स्कूल और धर्मशालाओं में पहुंचाते हैं…..फ़िर उनके खाने पीने के भंडारे का इंतजाम करवाते हैं…और सबसे ज्यादा मजा तो तब आता हैगा जब अगले दिन हमारा फ़ोटों और खबर सब अखबारों में छ्पती हैगी..….कसम से हमारा सीना गर्व से तन जाता है और पुण्य मिलता है वो अलग से. पर इस बार लगता है इंद्र भगवान हमको पुण्य नही कमाने देगा और ना ही अखबार में फ़ोटो छपने देगा.

हमने कहा – इतना क्यों परेशान हो रहे हो? अखबार छोडो…हम तो तुम्हें टीवी में छा जाने की स्कीम बता सकते हैं? अब संटू भिया की प्रश्नसूचक निगाहे हमारे थोबडे की तरफ़ थी सो हमने जरा रूककर थोडा भाव खाते हुये कहा – देखो भिया यदि बाढ का इतना ही शौक है तो कुछ मुकेश भिया की तरह करो. देखो उन्होने मोबाईल की बाढ ला दी की नही? पहले इंटरनेट की बाढ लाये थे तब सब अखबार और टीवी में उनकी ही बाढ थी, उनकी इस बाढ में सारी टेलीकाम कंपनिया बह गई की नही? और आज फ़ोकट के फ़ोन की बाढ ला दी, जिसमे बडी बडी मोबाईल बनाने वाली कंपनियां बहती क्या तैरती नजर आयेंगी आपको. तुम भी कुछ बडा करने की सोचो….

संटू भिया ने जलेबी का एक टुकडा मुंह में रखते हुये कहा – अमा यार तुमतो ऐसे बात कर रिये हो जैसे हम सर सेठ हुकुम चंद जी वारिश हैंगे. भिया हमारे पास तो ये एक कबाड खाना है और इसे भी लुटा देंगे तो भी किसी टीवी या अखबार वाले के कानों पर जूं नही रेंगेंगी और सबसे बडी बात तो ये कि फ़िर हम बच्चों को पालेंगे कैसे?
 
हमने कहा संटू भिया आप बस अपने बच्चे ही पालिये….ये बाढ वाढ के सपने छोडिये. अरे बाढ तो आजकल चीन और पाकिस्तान के खिलाफ़ बयान देने वाले वीर बहादुरों की आई हुई है. ये वीर बहादुर अपने बयानो की बाढ से अब की अब दोनों से सर फ़ुट्टोवल करा सकते हैं. जिधर टीवी पर देखो बस यही बाढ लाते रहते हैं.  आजकल चीन के साथ डोकलाम मुद्दे पर बाढ आई हुई है, कुछ दिन पहले जीएसटी की बाढ आई हुई थी. कल किसी और की बाढ ले आयेंगे. तुमको टीवी और अखबार में छ्पने का शौक है तो हमारे शहर में बाढ लाकर पुण्य कमाने की बजाये जाकर किसी राजनैतिक पाटी के प्रवक्ता बन जावो और रोज जमकर बाढ लावो…हमारे शहर को तो बख्शो भिया.

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चीन ठहरा पक्का बणियां, ऊ धमकी से आगे कदी नी जायेगो



रमई काका यों तो अब हमारे गांव के हारे हुये सरपंच ही है पर हारने मात्र से उनकी चिंतन मनन और ज्ञान की शक्ति कम नही हुई है. वो तो पिछले बार जब उनकी सरपंची थी तब उन्होंने अपने सिवा किसी दूसरे को नरेगा मनरेगा का माल जीमने नही दिया वर्ना तो कोई कारण नहीं था कि इस बार उनके साथ भूतपूर्व सरपंची का पुछल्ला लटक जाता. हुआ ये कि उनके समर्थकों ने अपनी पूरी खुंदक निकाली और ऊपर तक शिकायत करके जांच बैठवा डाली पर रमई के तार यानि कनेक्शन ऊपर तक भिडे थे सो साफ़ बरी हो गये. पर बरी होना अलग बात है और आने वाला चुनाव जीतना अलग बात है सो चुनाव में भीतरघाती समर्थकों ने वोटरों को समझा दिया था कि हल्वा पूडी तो रमई के टेंट में ही जीमना पर वोट उनको मत देना और वो अपनी मुहीम में कामयाब भी रहे. 

खैर…ज्ञानी लोगों का हारने या जीतने से उनका ज्ञान कम थोडी हो जाता है सो वही हाल रमई सरपंच का भी था. अंतर्राष्ट्रीय विषयों पर तो उनकी ऐसी पकड है कि मोदीजी को सुषमा स्वराज की बजाये रमई काका को विदेश मंत्री धर देना था पर किस्मत भी कोई चीज होती है. भारत पाकिस्तान के बीच कश्मीर मुद्दा  तो सरपंच जी को कोई मुद्दा ही नही लगता, इसे तो वो महज पाकिस्तान की सेना को वहां सता पर पकड बनाये रखने का साधन मानते हैं. वो तो सीधे चीन और नार्थ कोरिया के मसलों पर अपनी बेबाक राय रखते हैं. उनकी राय से कोई चले तो एक मिनट में उसका हल निकाल दें.

रमई सरपंच हमारे संटू भिया के खास जिगर थे क्योंकि रमई ने जितने भी घोटाले किये वो संटू भिया की सलाह और मार्गदर्शन में ही किये थे. आजकल हारी हुई सरपंची में कोई काम धंधा तो उनको था नही सो संटू भिया के कबाडखाने पर वो भी मंडली में शामिल रहते. आज भी सुबह सुबह की पोहे जलेबी की दावत में वो शामिल थे ही और उनकी खास पसंदीदा कचोरी थी अनंतानंद जेल रोड रोड वाले की, सो वो भी मंगाई गई थी. कसम से…..जो अनंतानंद की झन्नाट लब्बेलाली ऊसल वाली कचोरी हज्म करले वो बडे से बडे घोटाले भी करके पचा सकता है फ़िर चारा और लारा घोटाले तो कहीं नही लगते. लगता है चारा और लारा कांड के पहले लालूजी ने उस कचौरी का सेवन नहीं किया वर्ना आज तेजू बाबू को इस्तीफ़ा देने की नौबत नही आती.

रमई सरपंच कचौरी के टुकडे को लब्बेलाली में डूबोकर मुंह में रखने ही वाले थे कि  रमलू भिया ने उनको छेड दिया. रमलू भिया बोले - सरपंच जी, कल महबूबा मुफ़्ती कह रही थी कि  कश्मीर में चीन करवा रहा है सब गडबड…..बस रमलू भिया का ये कहना हुआ कि सरपंच जी ने लब्बेलाली का भीगा टुकडा मुंह में सरकाया और उनकी अंतर्राष्ट्रीय बुद्धि का कीडा कुलबुला गया.  तमक कर बोले – यार रमलू भिया ना तो तुमको कुछ पता है और ना ही महबूबा को, बस कुछ भी मुंह में आया और बक दिया? अरे चीन की अपनी कोई कम समस्या हैं जो वो काश्मीर में आयेगा? वो तो उसको CPEC के लिये पाकिस्तान की जरूरत है सो झुंझुना पकडाने के लिये शी जिन पिंग ने फ़ोन कर दिया नवाज और बाजवा को,  कह दिया कि पठ्ठों शुरू होजावो दमखम से, हम तुम्हारे पीछे खडे हैं….डरना मत तुम इधर से घेरो मोदी को और हम  डोकलाम में घेरते हैं,  वर्ना चीन भी जानता है कि भारत से युद्ध करना है या अपनी दुकान चलानी है… चीन ठहरा पक्का बणियां, ऊ धमकी से आगे कदी नी जायेगो. असल में चीन के गले में तो नार्थ कोरिया की घंटी फ़ंसी हुई हैगी……

रमलू भिया बीच में ही बोल पडे, सरपंच जी ये नार्थ कोरिया कहां से आगया यहां? बात तो चीन, भारत पाकिस्तान की हो रही थी? सरपंच जी बोले – अरे रमलू तू  चाय वाला है और चाय वाला ही रहेगा, जरा दूसरे चायवालों की तरह अपनी सोच का दायरा बढा वर्ना चाय ही बेचता रह जायेगा… तू इन अंतर्राष्ट्रीय कूटनीतिक विषयों में अपनी टांग मत अडाया कर, भले आदमी उधर नार्थ कोरिया वाला मोटू तानाशाह चीन की भी नी सुन रिया हे और चीन में आवाज उठ रई हैगी कि इन कोरियाओं को एक करो. खुदा ना खास्ता कहीं ऊंच नीच हो गई तो ये सारे शरणार्थी बनकर चीन में घुस आयेंगे और चीन खुद आबादी से त्रस्त है. उधर नार्थ कोरिया के मामले में चीन अमेरिका सहित सबकी आंख में चुभी रियो हे….तम काईं जाणों…ऊ भारत से टक्कर नी ले सके….ऊ तो बाणियों है नी अपणों सामान बेचणों है ऊ को. पाकिस्तान के हथियार बेची दे, नी भारत को इलेक्ट्रानिक सामान बेची देवे….

हम तो सरपंच जी के अंतर्राष्ट्रीय ज्ञान पर हैरान रह गये कि आजकल बणियागिरी करने के लिये भी धमकाना पडता है और चीन यही तो सबके साथ कर रहा है.
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एक गधे के इश्क की दास्ताँ

कहानी किस्से कहना सुनना ही लोग भूल चुके हैं तो आज आपको एक किस्सा सुना रहे हैं पर आप लोग ये मत  समझना कि मैं आपको ऐसे ही कोई ऐरी गैरी कहानी सुना रहा हूं. आप अब कोई बच्चे तो हो नही जो मैं आपको बहलाने के लिये कुछ भी कहानी किस्सा जोड जाडकर सुना दूं...ये कहानी बिल्कुल खरी सौ प्रतिशत सही है, तो सुनिये...
....... 

एक था गधा... और वो भी था एक धोबी का गधा..अब आप पूछोगे कि ताऊ ये कौनसे जमाने की बात है ? आज कल ना तो धोबी रहे और ना उनके पास गधे? अब जो धोबी थे उन्होंने लांड्रियां खोल ली और गधे की जगह स्कूटर ने  ले ली.......फ़िर ये धोबी और उसका गधा कहां से टपक गये आपकी कहानी मे?

बिल्कूल भाई... थारी बात भी कती सांची सै,  पर यार ये तो सोचो की सारे कुओं में ही भांग थोडेई पडगी सै ? अरे भाई थोडे बहुत परम्परावादी धोबी आज भी जिंदा सैं और उतने ही परम्परा वादी और वफ़ादार उनके गधे भी मौजूद सैं....भाई यकिन ना आरया हो तो आजाना ताऊ के धौरै (पास)... आपको मिलवा देंगे,  इस परंपरावादी  ज्ञानी धोबी और उसके गधे चन्दू से.

ये दोनों यानि ज्ञानी धोबी और  चंदू गधा, बडे मजे मे थे.  रोज सुबह धोबी अपने जवान गधे पर कपडे लाद के, छोरियां के कालेज कै सामने से होता हुया कपडे धोनै जलेबी घाट जाया करता और धोबी जब तक अपने कपडे धोता तब तक चन्दू गधा नदी किनारे की हरी हरी घास खाया करता.  फ़िर भी समय बचता तो ठंडी छांव मे लोट पोट हो लिया करता. चंदू इतना सुथरा और गबरू गधा था की , आप पूछो ही मत.....ये तो ज्ञानी धोबी ने इसका नाम चंदू रख दिया, इसकी जगह सलमान या शाहरूख भी रख देता तो सही होता क्योंकि इस गबरू गधे के सामने ये दोनों हीरो बिल्कुल जीरो ही लगेंगे आपको.

कभी चंदू गधे का मूड आजाया करता था तो नेकी राम की रागनी भी बडे उंचे सुर मे गा लिया करता था.... और भाई बडा सुथरा गाया करै था....राग खींचने में तो इसको महारत हासिल थी. अच्छे से अच्छा और बडे से बडा गवैया भी इसके सामने पानी भरता ही नजर आता. पर पता नही यो गधा कुण सी जात का था कि इतना सुन्दर, जवान और पक्के रागों का जानकार  होने के बाद भी इसने कभी किसी पराई गधी पर बुरी नजर नही डाली....और ना ही कभी किसी गधी पर लाइन मारने की सोची...किसी शरीफ़ प्रजाति से ताल्लूक रखने वाला रहा होगा.

वहां जलेबी घाट  पर दुसरे धोबियों और कुम्हारों की सुन्दर सुन्दर और जवान गधियां भी आया करती थी. कोई कोई कपडे और मटकों को लाद कर आती थी तो कई यों ही मटरगश्ती करने चली आती थी. कुछ दिनों से ये देखने में आ रहा था कि जलेबी घाट पर जवान और शोख गधेडियों की आवक जावक बहुत बढ गयी थी. जब इतनी सजी धजी गधेडियों की आवक बढ गई तो स्वभाविक ही था कि आवारा और मटरगश्ती वाले गधों की भी बाढ सी आगई थी वहां. हर कोई महंगे से महंगे मोबाईल हाथ में थामे...अपनी पसंद की गधेडी पर लाईन मारने की कोशीश में लगा रहता था. बस यूं समझिये कि ये धोबी घाट ना होकर कोई कोचिंग क्लास का अड्डा हो गया था जहां कई तो तफ़रीह बाजी करने के लिये ही एडमिशन ले लिया करते हैं.

पर मजाल जो कभी चन्दू गधे  ने सजी धजी गधियों की तरफ़ नजर उठा कर भी  देखा हो.  हालांकि ये और बात है कि चन्दू की हीरो टाईप बाडी और शराफ़त को देखते हुये,  उसको रिझाने के लिये काफ़ी सारी गधियों ने बहुत सारी कोशिशें की जो सब बेकार ही गई,  यहां तक कि उन पुरातन पन्थी गधियों ने भी टाइट जीन्स और लांडी कुर्ती भी पहनना शुरू कर दिया पर वो चन्दू का दिल नही जीत सकी. उनका लांडी कुर्ती और टाईट जींस पहनना भी बेकार साबित हुआ.

चंदू था ही इतना शरीफ़ कि, जब वो लंच करता हुवा यानि घास चरता हुवा कभी कभार भूलवश  इन गधियों के झूंड के बीच पहुंच जाता तो भी उन सुन्दर और जवान गधियों के मालिकों को कभी कोई ऐतराज नही होता था, बल्कि कोई कोई तो अपनी गधी का ध्यान रखने का जिम्मा भी चन्दू गधे को दे देता कि कहीं कोई दूसरा आवारा टाईप शोहदा गधा उनकी जवान गधी को बहला फ़ुसला कर भगा ना ले जाये. तो इतना शरीफ़ और लायक था चन्दू. 

इधर कुछ दिनों से ज्ञानी धोबी ने नोटिस किया कि आजकल कालेज के सामने से निकलते हुये चंदू  थोडा धीरे  चलने लगता था और कालेज के  सामने  वाली दुकान पर आकर  तो एकदम रुक ही जाता था. अब ज्ञानी धोबी को क्या पता कि उसके शरीफ़ और नेक चंदू को असल में एक सुन्दर, जवान और चटक मटक सी कालेज की छोरी से इश्क  हो चला था...धोबी ठहरा पुराने जमाने का सो इस जवान गधे की प्रेम लीला की तरफ़ उसका ध्यान ही नही गया.

अब गधा तो गधा... सो चढ गया इस नव यौवना बला के  चाल्हे में. सो आजकल चंदू गधा बडे रोमान्टिक मूड में रहने लगा और घर से गठरी लादने के पहले शीशे के सामने खडा होकर बाल बनाता, दाढी कटिंग सब सलमान खान टाईप करके घर से निकलता था. अब धीरे धीरे इन दोनों का इश्क परवान चढने लगा. कभी छोरी इसके तरफ़ देखकर  मुसकरा देती थी, कभी बाल झटककर अपनी अदा दिखा देती और कभी मुस्करा के गर्दन को बडी अदा से घुमाकर अपने मोबाईल में खो जाती. अब उसको क्या पता कि उसकी इन अदाओं से चंदू का दिल घायल हो चुका था.

और इधर चंदू गधा भी कभी आंख का कोना दबा कर और कभी कोइ प्रेम गीत गुन गुना कर जबाव देता था. गाने में तो चंदू माहिर था ही. चंदू की जबान पर आजकल बस यही एक गाना रहने लगा....."हम तो तेरे आशिक हैं सदियों पुराने".... जब कभी वो शोख गधी इसके पास से निकलती बस चंदू के होठों से यही गीत फ़ूटता था और बाकी भी चंदू की आत्मा में यह गाना अंतर्संगीत की तरह गुंजायमान रहने लगा.

आप ये समझ लिजिये कि  अब से पहले भी इस हसींन जवान कन्या ने कई गधों को अपने इश्क के जाल मैं उलझाया था और अबके बारी आगयी इस  चिकने और कर्म जले चन्दू गधे की जो इतनी सुन्दर और सुशील गधियों को छोडकर इस सर्राटा आफ़त के लपेटे मे आगया....ईश्वर भी सीधे लोगों को ही इन चक्करों में उलझाता है वर्ना कोइ चालू गधा होता तो फ़ंसता ही नही और फ़ंस भी जाता तो ही ही ही करके बाहर भी निकल लेता.

अब धीरे धीरे बात यहां तक आ गई कि दोनों  डेटिंग भी करने लग गये.  धोबी जब तक कपडे धोता तब तक चन्दू गधा फ़ुर्र हो लेता और वो जवान छोरी भी तडी मारके कालेज से गायब और सीधे जलेबी घाट पर चंदू के साथ....दोनों कभी माल मे जाकर  सिनेमा देखते.....कभी काफ़ी शाप में गपशप....दोनों अलग होते तो अपने मोबाईल पर व्हाटस-एप्प या अन्य किसी मेसेंजर को आबाद करते....

ये समझ लिजीये  कि चन्दू तो 24 घन्टे इसी परी के ख्वाबों और ख्यालों में डूबा रहने लग गया.  उस इश्क के अन्धे को ये भी नही दिखाई दिया कि उन दोनों को खुले आम लप्पे झप्पे करते देख कर दूसरे गधे भी उस कन्या पर डोरे डालने में  लगे हुये हैं.कुछ समय बाद चन्दू को लगा की वो कन्या उससे कुछ ढंग से बात नही करती थी  और उससे कूछ उखडी उखडी सी रहने लगी थी. अब चन्दू ठहरा सीधा बांका नौजवान और उपर से गधा , सो वो क्या जाने इन अजाबों के चाल्हे....

इस सीधे सादे गधे चंदू को क्या मालूम था कि वो बला तो उसके साथ अपना टाइम पास कर रही थी,  वर्ना तो उसके सामने क्या चन्दू और क्या चन्दू की ओकात ! और अपने लिये एक मोटे से बैंक बैलेंस वाले आसामी की तलाश में थी. चंदू तो एक खिलौना था उसके लिये....
अपनी जात से बाहर जाकर प्यार करने के यही अन्जाम हुआ करते हैं गधा होकर आदमजाद से प्यार करने चला था नाशपीटा...... गधा कहीं का....... ! हमने तो यही सुना था कि गधे ही दुल्लत्ती झाडा करते हैं पर इस बला ने तो चन्दू गधे को वो दुल्लत्ती मारी कि  चन्दू ओंधे मुंह चारों खाने चित्त हो गया.

वाह रे चन्दू गधे की किस्मत.....तूने भी क्या कमाल दिखाया बेचारे को? असल में हुआ ये की अब उस छोरी का दिल चन्दू से ऊब गया था और वो अपनी तलाश के मुताबिक उसने एक सेठ के गधे को फ़ंसा लिया या खुद  फ़ंस गई...! ये सेठ का गधा भी क्या गधा? बल्कि गधे के नाम पर कलंक,  पर चुंकि सेठ का गधा था... तो था... आप और हम इसमे क्या कर लेंगे? इसीलिये तो कहते हैं "जिसका सेठ मेहरवान उसका गधा पहलवान" ! बिल्कुल मोटा काला भुसन्ड और दो जवान बच्चों का बाप था ये गधा....

पैसे वाले सेठ का गधा था सो  मर्सडीज कार में चलता था और उसने भी इस गधी पर बहुत दिनों से डोरे डालने शुरू कर रखे थे. अब कहां ज्ञानी धोबी का गधा चन्दू और कहां सेठ किरोडीमल का गधा? चन्दू पैदल छाप और ये मर्सडिज बेन्ज मै चलने वाला गधा... सो छोरी को तो फ़सना ही था... फ़ंस ली....हो सकता है दोनों ने एक दूसरे को फ़ंसाया हो या किसी एक ने....पर एक बात पक्की है कि छोरी का फ़ंसना और फ़ंसाना ही उसके प्रिय शगल थे, तो सेठ किरोडीमल के गधे पर ही सारा दोष भी नहीं मढ सकते. किरोडीमल सेठ के गधे ने इस गधी के नखरे उठाने मे कोई कोर कसर नहीं रखी. एपल के मोबाईल से लेकर तो एक से एक ब्रांडेड कपडे, परफ़्यूम गिफ़्ट में ऐसे देता था जैसे चार रूपये की मूंगफ़ली खा ली हो. चन्दू की तो इस सेठ के गधे के सामने ओकात ही क्या ?

अब चन्दू सडक के बीचों बीच गाता जा रहा था..." वो तेरे प्यार का गम इक बहाना था सनम".......ताऊ उधर तैं निकल रह्या था ! गधे नै यो गाना गाते हुये सुण के बोल्या - अबे सुसरी के ! बेवकूफ़ गधे के बच्चे...! इब क्युं देवदास बण रह्या सै? तेरे को पहले सोचना चाहिये था कि इन बलाओं से तेरे जैसे साधारण गधे को इश्क नही करना चाहिये.  इनसे तो कोई बडे सेठ का गधा ही इश्क कर सकै सै,  फ़िर वो भले ही दो जवान बच्चों का बाप हो या काला मोटा और उम्रदराज हो ? आखिर धन माया ही तो सब कुछ है इस जमाने में...अरे उल्लू के पठ्ठे... ये कोइ लैला मजनूं वाला जमाना नही सै.... अबे गधेराम ये इक्कसवीं सदी है,  इसमे तो धन माया के पीछे भाई भाई , बाप बेटे यहां तक की मियां बीबी भी एक दुसरे की कब्र खोद देवैं सै ! तू भले कितना ही सुथरा और शरीफ़ गधा हो, पर है तो तू आखिर ज्ञानी धोबी का ही गधा.....!

और ये सुन कर चन्दू , चुपचाप, हारे जुआरी जैसा कपडे की गठरी लादे जलेबी घाट की और बढ लिय’.



#हिन्दी_ब्लॉगिंग
(सन 2008 की हरयाणवी भाषा में लिखी पोस्ट को सरल हिंदी में प्रस्तुत किया है .)

"हरियाणवी ठिलुआ संघ" द्वारा गजल संध्या

भाईयों, ताई के अलावा सभी भहणों, भतीजे, भतीजियों और काका बाबा जो भी हों, आप सबनै गुरू पूर्णिमा की घणी रामराम. 

आज इस पावन पर्व पर "हरियाणवी ठिलुआ संघ" द्वारा आयोजित गजल संध्या में आप सबका स्वागत करणै म्ह घणी खुशी का स्वाद आरया सै. ऐं मौका पै पर म्हारी यो पुराणी गजल सुणाते हुये मन्नै घणी  खुशी होरी सै. खुशी का ठिकाणा कोनी......बस नू समझ लो कि ताई के लठ्ठ खाणै तैं भी ज्यादा आनंद आरया सै. इब मैं अपणी यों पुराणी और ताजा (दोनों एक साथ) गजल आपको सुणा रह्या सूं.....जरा कसकै तालियां मारणा.... तालियां ना मारो तो कोई बात नही.....टमाटर भी मार सको हो....टमाटर घणे महंगे हो राखें सैं....घर ले जाऊंगा तो आज सब्जी बण ज्यागी. घणी महंगी सब्जी की वजह तैं घर म्ह सब्जी कई दिनां तैं बणी कोनी. तो टमाटर मारणा बिल्कुल भी नहीं भूलणा....

इब गजल का मतला अर्ज कर रह्या सूं....

खुद ही उल्टा सीधा,  फ़रेबगिरी का पाठ पढावै क्य़ूं सै
सूखी बालू पै इब यो,  चांद की तस्वीर,  बनावै क्य़ूं सै

इब आगे सुणो....

तू तो नू  कहवै थी मन्नै,  प्रीत नही सै  इब  मेरे धौरे
ऐसी तैसी करकै मेरी, कमरां म्ह फ़ूल  सजावै क्यूं सै

जिण सपना तैं नींद उड ज्यावै, ऐसे सपने देखे कौण
झूंठ  मूंठ तसल्ली पाकै, जिंदगी खराब करावै क्यूं सै

चांद निकल कर छत पै आया, घणी चांदनी बिखराता
पल दो पल की तेरी चांदनी, फ़िर घणा इतरावै क्यूं सै

इब  मकता यो रह्या....

जिन रास्तों पै तू चाल्या,  उन पर चलकर बचा है कौण
लेकिन ताऊ, आधे रस्ते तैं, इब उल्टा मुंह घुमावै क्यूं सै

आभार....रामराम.
अब अगली रचना पढने आ रहे हैं हमारे आजीवन अध्यक्ष महोदय डा. टी. एस. दराल साहब....तालियां बजाकर घणै सारे टमाटरों की बौछार किजिये.......

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"हरियाणवी ठिलुआ संघ" की सदस्यता देना चालू है. जो भी सज्जन लेना चाहे वो तुरंत संपर्क करें. इसके अलावा मंच के अन्य पद भी उचित मूल्य पर उपलब्ध हैं.

आजीवन अध्यक्ष
डा. टी. एस. दराल
आजीवन कोषाध्यक्ष
ताऊ रामपुरिया
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