ऐसा कोई दिन नही जाता जब मुझे समीर जी की कोई मेल ना मिलती हो. कभी कभी सिर्फ़ दो शब्द, ना कोई औपचारिकता ना कोई लाग लपेट, अक्सर मैं भी ऐसी ही मेल करता हूं, वैसे ही जवाब भी. शायद दोनों तरफ़ से आदत सी हो गई है कि दिन भर में दो चार मेल इस तरह की हो ही जाती है. अन्य मेल चेक करते समय समीर जी की मेल कभी भी बीच में टपक सकती है. उस दिन भी अचानक एक मेल प्रकट हुई....मैने चेक किया यह सोचकर कि दो शब्द ही तो होंगे....पर जो पढा, वो पढना पूरी जिंदगी का सफ़र था....मेल में लिखा था ताऊ, अभी अति दुखद समाचार मिला कि डॉ अमर कुमार नहीं रहे. समीर
एक पल में वो इंसान निस्पॄह भाव से विदा हो गया जो मेरे लिये गुरू और गुरू भी कबीर की श्रेणी का था, कबीर का शिष्य होना सहज नही है, क्योंकि कबीर ने अपने शिष्यों से बिना लठ्ठ उठाये कभी बात ही नही की.
मेरे भौतिक एवम आध्यात्मिक जीवन में कबीर मेरे आदर्श रहे हैं, और यहां ब्लाग जगत में भी साक्षात कबीर मिल गये. डाक्टर साहब में पूरी क्षमता से कबीर हो जाने की क्षमता थी. वही मस्तमौला फ़क्कड स्वभाव, खरी खरी कहने की क्षमता, ना कोई अपना, ना पराया. सारा जग अपना. हंसता खिलखिलाता स्वभाव...मजाक करने की आदत....जोक्स के मेसेज करना....यानि अपनी संपूर्ण क्षमता से कबीर. निर्मल सादगी लिये......
जैसा कि सभी जानते और मानते भी हैं कि हिंदी ब्लाग जगत में सबके अपने अपने मठ हैं, कमेंट्स का लेन देन भी अपने अपने मठ की सीमाओं में ही होता है वहीं पर डाक्टर अमर कुमार जी का ना कोई मठ था ना कोई सीमाएं थी. जिस तरह कबीर हाथ में लठ्ठ लिये सच कहने के लिये प्रसिद्ध थे उसी तरह डाक्टर साहब ने कभी भी ये नही देखा कि वो किस की पोस्ट पर कमेंट कर रहे हैं? उनके लिये सिर्फ़ पोस्ट का कंटेंट ही अहम था. और इसी का फ़ल है कि उनकी यत्र तत्र सर्वत्र फ़ैली हुई टिप्पणियां आज दिखाई देती हैं.
डाक्टर अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि देते हुये मैं उनसे जुडी हुई यादों को यहां क्रम बद्ध पोस्टों में लिखने का प्रयास कर रहा हुं.
मुझे याद आ रही है उस टेलीफ़ोन काल की, जो मेरा उनका प्रथम टेलिफ़ोनिक संवाद था. शायद वो रविवार का दिन था...छुट्टी का दिन...समय तकरीबन दोपहर बाद ...तीन बजे के आसपास का....
लंच के बाद साप्ताहिक नींद पूरी करने का समय.....नींद की खुमारी आना शुरू हो चुकी थी.
अचानक फ़ोन की घंटी बजी.....इच्छा हुई कि फ़ोन काट दूं.....फ़िर पता नही क्या हुआ कि फ़ोन उठा लिया.
हैल्लो ...हां जी कौन बोल रहे हैं?
उधर से अंजानी सी आवाज आई... कौन बोल रहे हैं?
मैने कहा - फ़ोन आपने लगाया है...फ़िर आपको मालूम होगा कि आपने किसको लगाया है? बोलिये क्या काम है?
उधर से आवाज आई - जनाब मैं धार (इंदौर के पास का एक शहर) पुलिस स्टेशन से इंस्पेक्टर बोल रहा हूं.
अब पुलिस इंस्पेक्टर का नाम सुन कर तो अच्छे अच्छे हेकडी भूल जाते हैं फ़िर ताऊ क्या चीज है? हमने कहा - आदेश किजिये सर.
उधर से आवाज आई - आदेश का क्या काम? आपके नाम का गिरफ़्तारी वारंट है मेरे पास....
अब हम जो आराम से पलंग पर पसरे थे, तुरंत अटेंशन की मुद्रा में बैठ गये और बोले - सर आपको कोई गलतफ़हमी हुई है...मेरे नाम से गिरफ़तारी वारंट का क्या काम? जरूर आपसे कोई भूल हुई है....
उधर से आवाज आई - आपका नाम .....(ताऊ नही कहकर हमारा असली नाम पुकारा) है?
मैने कहा - हां हुजूर, नाम तो ये मेरा ही है.
आपका फ़ोन नंबर ****3654** है?
मैने कहा - जी नंबर तो यही है.
हां तो फ़िर आपके खिलाफ़ मेरे पास नान बेलेबल वारंट है....
अब इतने वार्तालाप के पश्चात ये तो समझ आ गया कि आदमी ये इंटरेस्टिंग है....पर पुलिस का क्या काम? फ़िर जिस नंबर से फ़ोन आया था उसे देखा तो यह पक्का होगया कि ये नंबर मध्य प्रदेश का तो नही है... और ये फ़ोन करने वाला आदमी बहुत ही नजदीक का परिचित है, पर आवाज सुनी हुई नही लग रही है. अंतत: हमने कहा कि आपके पास जब नान बेलेबल वारंट ही है तो आकर गिरफ़्तार कर लिजिये....
बस हमारे इतना कहते ही उधर से हंसते हुये आवाज आई - ओये ताऊ, तेरे को कितने दिन से ढूंढ रहा था तू आज पकड में आया.....
ये शब्द सुनते ही अनायास मेरे मुंह से निकला - अरे गुरू जी प्रणाम.... धन्य भाग जो आज आपसे बात हो रही है....
फ़िर उधर से आवाज आई - कौन गुरूजी? किसका गुरू जी?
मैने कहा - डाक्टर साहब अब हम भी ऐंवई ताऊ नही हैं, आप डाक्टर अमर कुमार जी हैं....
उधर से आवाज आई - वाह ताऊ वाह.... तेरे से यही उम्मीद थी, मान गया तेरे को......
इसके बाद करीब डेढ घंटे बात हुई. घर परिवार की... बच्चों की...कलकता में रहने वाले उन परिचितों की जो बातों बातों में उनके और मेरे दोनों के परिचय में निकल आये....तमाम दुनियां जहान की बातों मे कब इतना समय बीत गया पता ही नही चला.....
(शेष अगले भागों में)
एक पल में वो इंसान निस्पॄह भाव से विदा हो गया जो मेरे लिये गुरू और गुरू भी कबीर की श्रेणी का था, कबीर का शिष्य होना सहज नही है, क्योंकि कबीर ने अपने शिष्यों से बिना लठ्ठ उठाये कभी बात ही नही की.
मेरे भौतिक एवम आध्यात्मिक जीवन में कबीर मेरे आदर्श रहे हैं, और यहां ब्लाग जगत में भी साक्षात कबीर मिल गये. डाक्टर साहब में पूरी क्षमता से कबीर हो जाने की क्षमता थी. वही मस्तमौला फ़क्कड स्वभाव, खरी खरी कहने की क्षमता, ना कोई अपना, ना पराया. सारा जग अपना. हंसता खिलखिलाता स्वभाव...मजाक करने की आदत....जोक्स के मेसेज करना....यानि अपनी संपूर्ण क्षमता से कबीर. निर्मल सादगी लिये......
जैसा कि सभी जानते और मानते भी हैं कि हिंदी ब्लाग जगत में सबके अपने अपने मठ हैं, कमेंट्स का लेन देन भी अपने अपने मठ की सीमाओं में ही होता है वहीं पर डाक्टर अमर कुमार जी का ना कोई मठ था ना कोई सीमाएं थी. जिस तरह कबीर हाथ में लठ्ठ लिये सच कहने के लिये प्रसिद्ध थे उसी तरह डाक्टर साहब ने कभी भी ये नही देखा कि वो किस की पोस्ट पर कमेंट कर रहे हैं? उनके लिये सिर्फ़ पोस्ट का कंटेंट ही अहम था. और इसी का फ़ल है कि उनकी यत्र तत्र सर्वत्र फ़ैली हुई टिप्पणियां आज दिखाई देती हैं.
डाक्टर अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि देते हुये मैं उनसे जुडी हुई यादों को यहां क्रम बद्ध पोस्टों में लिखने का प्रयास कर रहा हुं.
मुझे याद आ रही है उस टेलीफ़ोन काल की, जो मेरा उनका प्रथम टेलिफ़ोनिक संवाद था. शायद वो रविवार का दिन था...छुट्टी का दिन...समय तकरीबन दोपहर बाद ...तीन बजे के आसपास का....
लंच के बाद साप्ताहिक नींद पूरी करने का समय.....नींद की खुमारी आना शुरू हो चुकी थी.
अचानक फ़ोन की घंटी बजी.....इच्छा हुई कि फ़ोन काट दूं.....फ़िर पता नही क्या हुआ कि फ़ोन उठा लिया.
हैल्लो ...हां जी कौन बोल रहे हैं?
उधर से अंजानी सी आवाज आई... कौन बोल रहे हैं?
मैने कहा - फ़ोन आपने लगाया है...फ़िर आपको मालूम होगा कि आपने किसको लगाया है? बोलिये क्या काम है?
उधर से आवाज आई - जनाब मैं धार (इंदौर के पास का एक शहर) पुलिस स्टेशन से इंस्पेक्टर बोल रहा हूं.
अब पुलिस इंस्पेक्टर का नाम सुन कर तो अच्छे अच्छे हेकडी भूल जाते हैं फ़िर ताऊ क्या चीज है? हमने कहा - आदेश किजिये सर.
उधर से आवाज आई - आदेश का क्या काम? आपके नाम का गिरफ़्तारी वारंट है मेरे पास....
अब हम जो आराम से पलंग पर पसरे थे, तुरंत अटेंशन की मुद्रा में बैठ गये और बोले - सर आपको कोई गलतफ़हमी हुई है...मेरे नाम से गिरफ़तारी वारंट का क्या काम? जरूर आपसे कोई भूल हुई है....
उधर से आवाज आई - आपका नाम .....(ताऊ नही कहकर हमारा असली नाम पुकारा) है?
मैने कहा - हां हुजूर, नाम तो ये मेरा ही है.
आपका फ़ोन नंबर ****3654** है?
मैने कहा - जी नंबर तो यही है.
हां तो फ़िर आपके खिलाफ़ मेरे पास नान बेलेबल वारंट है....
अब इतने वार्तालाप के पश्चात ये तो समझ आ गया कि आदमी ये इंटरेस्टिंग है....पर पुलिस का क्या काम? फ़िर जिस नंबर से फ़ोन आया था उसे देखा तो यह पक्का होगया कि ये नंबर मध्य प्रदेश का तो नही है... और ये फ़ोन करने वाला आदमी बहुत ही नजदीक का परिचित है, पर आवाज सुनी हुई नही लग रही है. अंतत: हमने कहा कि आपके पास जब नान बेलेबल वारंट ही है तो आकर गिरफ़्तार कर लिजिये....
बस हमारे इतना कहते ही उधर से हंसते हुये आवाज आई - ओये ताऊ, तेरे को कितने दिन से ढूंढ रहा था तू आज पकड में आया.....
ये शब्द सुनते ही अनायास मेरे मुंह से निकला - अरे गुरू जी प्रणाम.... धन्य भाग जो आज आपसे बात हो रही है....
फ़िर उधर से आवाज आई - कौन गुरूजी? किसका गुरू जी?
मैने कहा - डाक्टर साहब अब हम भी ऐंवई ताऊ नही हैं, आप डाक्टर अमर कुमार जी हैं....
उधर से आवाज आई - वाह ताऊ वाह.... तेरे से यही उम्मीद थी, मान गया तेरे को......
इसके बाद करीब डेढ घंटे बात हुई. घर परिवार की... बच्चों की...कलकता में रहने वाले उन परिचितों की जो बातों बातों में उनके और मेरे दोनों के परिचय में निकल आये....तमाम दुनियां जहान की बातों मे कब इतना समय बीत गया पता ही नही चला.....
(शेष अगले भागों में)
डाक्टर अमर को हमारी भी विनम्र श्रधांजलि है ... अपने कमेंट्स की विशिष्ट शैली में वो हमेशा याद किये जायेंगे ..
ReplyDeleteस्व.डॉ.अमर कुमार को मैं अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ।
ReplyDeleteमेरी भी भावभीनी श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteबाकि यादे भी पढवा दीजिए।
ReplyDeleteअब सिर्फ़ यादे ही बाकि रह गयी है।
ऐसे ही थे डॉ अमर कुमार । हम से तो जब बात हुई तब तक ऑपरेशन हो चुका था ।
ReplyDeleteलेकिन उनके कमेंट्स पढ़कर हमेशा ही रोमांचित हो जाता था ।
ऐसे लोग विरले ही होते हैं ।
ताऊ आपके पावन जज्बातों को सादर सलाम.
ReplyDeleteडॉ.अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि.
कुछ कह नहीं सकता, क्योंकि शब्द चुक से गये हैं. उनकी शैली, उनकी भाषा, और चुटीले व्यंग्य बहुत य़ाद आयेंगे. सैद्धान्तिक व्यक्ति और सच्चे, खरे..
ReplyDeleteवे वाकई कबीर थे....
ReplyDeleteआभार
ये सब घटनाएं और स्मृतियाँ इसी बात का इशारा करती हैं कि वे कितने जिंदादिल इंसान थे..
ReplyDeleteपढकर अच्छा लगा। डॉ साहब की कमी सारे हिन्दी ब्लॉग जगत को कचोटती रहेगी।
ReplyDeleteअमर जी के जीवन के रोचक पहलुओं को जानना अच्छा लगा ...
ReplyDeleteविनम्र श्रद्धांजलि !
भावभीनी श्रद्धांजलि।
ReplyDeleteडाक्टर अमर को विनम्र श्रधांजलि
ReplyDeleteडाक्टर अमर को मेरी भी विनम्र श्रद्धांजलि । ,आपके माध्यम से ही उनके अद्भुत व्यक्तित्व को जानकर मन वैसे ही धन्य हो गया , जैसे आपके स्पष्ट दृष्टिकोण से भरे लेख को पढकर ।
ReplyDeleteडॉ.अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि.
ReplyDelete....चले जाने वालों की बस याद रह जाती है
ReplyDelete....चले जाने वालों की बस याद रह जाती है
ReplyDeleteइस संस्मरण में एक अनोखी ताजगी है।
ReplyDeleteडॉ अमर के चले जाने का दुःख ताउम्र रहेगा। मेरे एक वर्ष के ब्लौग सफ़र में जो सदैव मेरे साथ रहा वो डॉ साहब ही थे । उन्होंने मुझे हमेशा सही सलाह दी कठिन परिस्थियों में। एक मित्र, बड़े भाई और पिता का स्नेह दिया। हमेशा मेरी और मेरे परिवार की बहुत फ़िक्र रहती थी उन्हें। समय समय पर मेल और फोन से हाल चाल लेते रहते थे। उनका जाना हम सबके लिए अत्यंत दुखद है । भुला नहीं पा रही हूँ उस स्नेहिल व्यक्तित्व को। विनम्र श्रद्धांजलि।
ReplyDeletevinamra shraddhanjali arpit karta hoon.....
ReplyDeleteor haan....
7 sep. ko indore Jail Road par Kavi-Sammelan hai....aa raha hoon Tau.....
miloge ya mumbai rahoge......?
agar aap aae to haryanvi me sunaunga......
हिन्दी ब्लाग जगत के कण-कण में बसे डा. अमर कुमार को विनम्र श्रद्धांजलि...
ReplyDeleteजब मैंने ब्लॉगिंग शुरू भी नहीं की थी और सिर्फ़ पढ़ता था तो शुरुआती दौर में सबसे ज्यादा समय आपके ब्लॉग पर ही बीता। मैं पढ़ता भी सिर्फ़ पोस्ट था, कमेंट्स की जानकारी भी नहीं थी और तकनीक के मामले में एकदम सिफ़र। मैं शायद इकलौता आदमी होऊंगा, जिसने डाक्टर साहब के कमेंट या उनकी पोस्ट पढ़े बिना उनका प्रशंसक बना। जिसकी ताऊ इतनी तारीफ़ किया करते हैं, वो वाकई कोई चीज होंगे। बाद में तो खैर उनके कमेंट्स और ब्लॊग पढ़े।
ReplyDeleteआगे भी इन यादों को पढ़ने की प्रतीक्षा रहेगी।
राम राम।
डॉक्टर अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि !
ReplyDeleteताऊ जी
ReplyDeleteनमस्कार
स्व.डॉ.अमर कुमार को मैं अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि समर्पित करता हूँ।
विजय
डा० अमर को विनम्र श्रद्धांजलि .. रोचक वार्ता साझा की है ..
ReplyDeleteडाक्टर अमर को मेरी भी विनम्र श्रद्दांजलि...
ReplyDeleteस्व.डॉ.अमर कुमार को मैं अपनी भावभीनी श्रद्धांजलि
ReplyDeleteडाक्टर अमर को हमारी भी विनम्र श्रद्धांजलि.
ReplyDeleteताऊ,
ReplyDeleteअभी पीछे उनकी सारी मेल पढ़ रहा था (टिप्पणियों के अलावा).. एक विलक्षण व्यक्तित्वा था उनका.. बस अपना कोई बहुत अपना खो जाने सा लग रहा है!! आज भी लगता है कि कल से उसी इटैलिक्स में लिखते हुए प्रकट हो जायेंगे और कहेंगे कि देखना चाहता था कि मेरे जाने के बाद लोग क्या सोचते हैं मेरे लिए!!
डॉ.अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि !
ReplyDeleteअमर जी के अचानक चले का बेहद दुःख हुआ...उनसे अक्सर बात हुआ करती थी...उनकी इच्छा खपोली में बसने की थी और इस सिलसिले में उन्होंने मुझे एक आध फ़्लैट देख कर रखने की बात भी की थी...वो यूँ चले जायेंगे कभी सोचा भी नहीं था...मेरी उन्हें विनम्र श्रधांजलि...
ReplyDeleteनीरज
अमर जी के अचानक चले का बेहद दुःख हुआ...उनसे अक्सर बात हुआ करती थी...उनकी इच्छा खपोली में बसने की थी और इस सिलसिले में उन्होंने मुझे एक आध फ़्लैट देख कर रखने की बात भी की थी...वो यूँ चले जायेंगे कभी सोचा भी नहीं था...मेरी उन्हें विनम्र श्रधांजलि...
ReplyDeleteनीरज
डॉ.अमर कुमार जी को विनम्र श्रद्धांजलि....
ReplyDeleteपूरी पढ़कर इकट्ठा ही टिप्पणी कर दूंगा
ReplyDeleteआपको एवं आपके परिवार को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें!
ReplyDelete:( आगे ?
ReplyDeleteडाक्टर अमर को हमारी भी विनम्र श्रधांजलि ...
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