थम भी सुण ल्यो ! म्हारै स्कूल म्ह एक मास्टर जी थे ! मास्टर का नाम था
किशन लाल ! और भई म्हारै मास्टर जी थे एक दम सफ़ाचट यानी बिल्कुल
गन्जे ! और हम भी मास्टर जी को उनके पीछे से गन्जे मास्टर या गन्जे सर ही
बुलाया करै थे !
और मास्टर जी की घर आली को सारे गाम के लोग मास्टरनी कह कै बुलाया करते थे ! और इब थमनै के बताऊं ? यो मास्टरनी जी थी एक आंख तैं काणी ! मास्टर जी का रहण का कमरा भी वहीं स्कूल म्ह ही था ! इब एक बार नु हुया कि सर्दी के दिन थे ! मास्टर जी ने बाहर धूप म्ह ही क्लास लगा रखी थी ! और भई वो जनवरी फ़रवरी पढाण लाग रे थे ! |
इब मास्टर जी रामजीडा लन्गड तैं पुछण लागे - अर लन्गड नु बता की अक्टुबर म्ह
कितने दिन हुया करैं ?
लन्गड बोल्या - मास्टर जी १३ दिन हुया करैं !
गन्जा मास्टर बोल्या - अर क्युं कर ?
लन्गड बोल्या - अजी मास्टर जी , इस महिने म्ह १८ दिन तो दिवाली
और दशहरे की छुट्टी ही पड ज्यावै सैं ! तो पिटने के दिन तो १३ ही हुये ना !
इब मास्टर जी ने लन्गड को २ रैपटे बजाये और सब लडकों को
ये कविता , अन्ग्रेजी के महिनों के दिन, याद करने को दे दी !
और इस कविता को याद करने मे मास्टर नै हमको कितने ही
बार तो मुर्गा बणाया और भई रैपटे कितने बजाये होंगे ?
इसका हिसाब ही कोनी ! म्हारी हड्डी आज भी गन्जे मास्टर जी
की याद आते ही कडकडाने लगती हैं ! और न्युं समझ ल्यो कि
हमको गन्जे आदमी से ही चिढ हो गई ! जो आज तक नही गई !
याने अपने आप से भी चिढ हो गई !
अप्रैल सितम्बर नवम्बर जूना, पन्द्रह दिन के कहिये दूना, और मास इकतीसा मानूं, केवल फ़रवरी अठ्ठाइसा जानू, चौथे साल लिपियर जब आवे, दिन उन्तीस फ़रवरी कहावै, भाग ४ का जिसमै जाता, लिपियर सन वही कहलाता ! |
इब हम बालक तो ये हाड्ड तुडवाण आली कविता के रट्टे मारण लाग गे !
और मास्टर जी इबी आया हुया अखबार उठाकै बांचण लाग गे !
इतनी ही देर म्ह काणी मास्टरनी चाय ले के आगी और गन्जे मास्टर को
चाय दे के बोली - मास्टर जी कोई नई खबर आई सै के अखबार म्ह !
इब गन्जा मास्टर उसकी काणी आंख की तरफ़ देखता हुआ बोला -
हां, काणीपुर मे आग लाग गी सै !
काणी मास्टरनी भी हाजिर जवाब थी ,
मास्टर के गन्जे सर की तरफ़ देखते हुये तुरन्त जवाब दिया -
फ़ेर तो गन्ज के गन्ज जल गये होंगे !
हम बालक मन ही मन काणी मास्टरनी की बात समझ कै खूब हंसे
और गंजे मास्टर जी खिसिया कर ऊठ कर चले गये !
अच्छा भाई इब ताऊ की राम राम !
मजा आ गया। रामजीडा तो बड़ा इंटेलिजेंट निकला
ReplyDeleteगंजे मास्टर की ये मजाल :) हम तो सुनते हैं कि आप बाबू जी की लट्ठ चुराकर स्कूल लेकर जाते थे :)
ReplyDeleteवैसे मास्टरनी ने गंजे मास्टर को जैसे को तैसा जवाब दिया। कहानी पढ़कर मजा आया।
haa haa bahut khoob !
ReplyDeleteअरे ताऊ जी ,आप की महीनो वाली कविता तो कमाल की है ....वैसे गंजे मास्टर ऐसे ही होते हैं ...इनका कुछ नही कर सकते !!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत बढिया ताऊ ! कल हम पण्डताइन को लिवाने क्या गए , तुमने सारी कसर ही निकाल ली ! और मूंगफली भुट्टे बेचने वाली पोस्ट
ReplyDeleteको ही पीछे कर दिया ! इससे तुम्हारे पाप थोड़ी धुल जायेंगे ! तुमने तिवारी साहब से पंगा लिया है ! अब देखना ! तुम्हारा ठेला अगर
बैंक के सामने से मुंसीपाल्टी वालों से नही उठवा दिया तो मेरा भी नाम नही !:)
और ये तो अब समझ आया की तुन इतने ऐबले (अड़ियल) क्यों हो ? क्योंकि तुम गंजे मास्टर और काणी मास्टरनियों से पढ़े हो ! तो और
इससे ज्यादा क्या सीखोगे ! :)
हां तुम्हारा सहपाठी रामजीडा लंगड़ जरुर समझदार दीखता है ! जो बिल्कुल सही जवाब देता है ! बहुत अच्छा ताऊ ! जमाए रहो दूकान !
Bahut khub.
ReplyDeleteगन्ज के गन्ज जल गये होंगे !
ReplyDeleteमास्टरनी जी थी एक आंख तैं काणी !
ताऊ एक बात बताओ की क्या स्कुल में आप सही मुर्गा बने हो ?
और ये किशन मास्टर सही में था ! मुझे ये रामजीडा तो कुछ
जाना पहचाना दीखता है ! कहां मिला इससे , अभी याद नही
आ रहा है ! आपके किस्से एक से बढ़ कर एक होते हैं ! मजा ही
आ जाता है ! धन्यवाद !
ताऊ,
ReplyDeleteईबकै तो अपणी कहाणी ठोक राक्खी दिखै...
बाकी गंज के गंज का जवाब कोनी..
लेकिन
म्हारी दाद्दी सुणाए करै थी...
'ताऊ रै ताऊ
खाट तलै बिलाऊ
बिलाऊ नै मारया पंजा
ताऊ होग्या गंजा
बिल्ली पीगी पाणी
ताई होगी काणी
बिल्ली के दो बच्चे
म्हारे ताऊ अच्छे'
तो पिटने के दिन तो १३ ही हुये ना !
ReplyDeleteताऊ आप और आपके साथी , सारे धन्य हो ! क्या हाजिर जवाबी है ? ३१ दिन के अक्टूबर में १८ दिन की छुट्टी के बाद बचे १३ दिन ही तो मास्टर पीटेगा ना ! लंगड़ सही कह रहा है !
फ़िर गंजे मास्टर ने उसको रैपटे क्यूँ बजाए ! और आप का लट्ठ कहाँ गया था उस समय ? लंगड़ को पिटवा कर चुप क्यो रहे ?
जवाब दो !
तो पिटने के दिन तो १३ ही हुये ना !
ReplyDeleteताऊ आप और आपके साथी , सारे धन्य हो ! क्या हाजिर जवाबी है ? ३१ दिन के अक्टूबर में १८ दिन की छुट्टी के बाद बचे १३ दिन ही तो मास्टर पीटेगा ना ! लंगड़ सही कह रहा है !
फ़िर गंजे मास्टर ने उसको रैपटे क्यूँ बजाए ! और आप का लट्ठ कहाँ गया था उस समय ? लंगड़ को पिटवा कर चुप क्यो रहे ?
जवाब दो !
रे ताऊ मेने तो पहले ही बेरा था , ताऊ पहले गंजे मास्टर दे पिटया, फ़िर बाबू से पिटाया ओर इब ताई से..... लेकिन आप का लेख पढ कर मजा आ गया...
ReplyDeleteधन्यवाद
क्या बात है ताउ.....मास्टर तो वैसे भी निरीह जीव होता है...कभी जनगणना करता है..कभी पोलियो का टीका लगा रहा होता है और कुछ नहीं तो पोलिंग बुथ में बैठकर उंगली पर स्याही लगा रहा होता है.....ऐसे में मास्टर को गन्जा कहकर चिढा रहे हो.....भगवान करे तुम भी कभी मास्टर बनों और किसी जनगणना में कहना....यहाँ असल मुर्गे कितने हैं और मास्टरों के द्वारा बनाये मुर्गे कितने हैं, काणे कितने हैं...आँख वाले कितने हैं...और हाँ...आँखे होते हुए बिना आँख वाले कितने हैं।
ReplyDelete:)
अच्छी पोस्ट ।
@भाई भाटिया जी इब के बताऊँ थमनै ! न्यूँ समझ ल्यो के इस गंजे किशन मास्टर ने तो ५ वी क्लास तक खूब म्हारे हाड्ड कूट्ट कै रख दिए !
ReplyDeleteऔर फेर हम मिडल स्कुल म गए तो एक "बच्चन सिंग जी चश्मे वाला" मास्टर था ! उस बैरी नै तो नु समझ ल्यो की हमको गधो की तरह मारा ! आज भी हड्डियां कट कट बोलती हैं !
बाबू ने तो खाली लट्ठ दिखाया मारा कभी नही ! और ताई तो आपकी मेहरवानी से लट्ठ
वाली होकर दादागिरी पर आ गई सै ! :)
aanand aa gaya tau
ReplyDelete.
ReplyDeleteऒऎ ताऊ, ये भली कही तन्ने किशन मास्टर की बात ...म्हारे कलेज़े को धीर मि्ल्ली सै ।
धन्य धन्य किशन मास्टर, औ’ चस्मा वाला बच्चन सिंग... लोहारों की तरियों ताऊ को पीट पीट कै, इब न्यूँ समझ ल्यो के म्हारे ताऊ को लोहा बणा दिया ।
रामजी नां ख़ुदा से बोलके ज़रूर से दोणों शूरवीरों को ज़न्नत की अव्वल सीट एलाट करवायी के ताऊ की हाड़़ तोड़ ताड़ के पक्का ISI निड्डर बणा के दुणिया को सप्लाई करण वाल्लै शूरमा सैं दोणों !
बलिहारी ताऊ की, कितणे गधों की आई गई अपणी हड्डियां तुड़वा के इन्ने गधों का दरद अपणे उप्पर झेल ल्या।
ताऊ,
ReplyDeleteमज़ा आ गया पढ़ कर. रामजीडा, मास्टर और मास्टरानी सभी घने होशियार देखें हैं.
जब से दिल्ली देहात छूटा है यह हरयाणा वाली हाजिरजवाबी दुबारा देखने को ना मिली. आप की पोस्ट पढ़के अपने पुराने दिनों को जी लेते हैं.
धन्यवाद!
ab pata chala tau hi nahi, unke master aur masterni bhi itni hi mazedaar baate karte the.
ReplyDeleteJaise master vaise hi student. Padhkar bahut maza aaya
"ha ha ha ha bhut accha lga, pr sir kya aap sach mey murga bne thye kya....... imagine kr rhee hun ha ha ha , interesting"
ReplyDeleteRegards
मै तो ये सोचकर परेशां हूँ के जय मास्टर के सर पे बाल होते तब के होत्ता ?
ReplyDeleteहा हा...मास्टरनी ने सही जवाब दिया मास्टरजी को! मज़ा आया कहानी पढ़कर!
ReplyDeleteलिखा तो प्रभावी शैली मैं है किंतु अध्यापक के लिए इस तरह की भाषा मुझे ज्यादा अच्छी नहीं लगी. हास्य लिखा है तो लिखें किंतु अध्यापक का सम्मान करते हुए. सस्नेह
ReplyDelete@ आदरणीय शोभाजी ,
ReplyDeleteआपने लेखन की तारीफ़ की धन्यवाद ! और आपने अध्यापक के लिए उपयोग की गई भाषा पसंद नही आई ! सुझाव के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद !
मैं आपसे कुछ निवेदन करना चाहूँगा की , मैं न तो कोई लेखक हूँ ! और ना ही मुझे ऐसा कोई भ्रम है ! और एक बात की हमारे यहाँ
हरयाने के गाँवों में जैसी भाषा का प्रयोग हम करते हैं , मैं उससे भी नम्र भाषा उपयोग करने की कोशीश करता हूँ ! बल्की मेरे कुछ साथी
इस नम्रता को लेकर खुश भी नही है ! और यही बात उन्होंने अपनी टिपणीयो द्वारा व्यक्त भी की है ! उनका कहना है की आपकी हरयाणवी
में दम नही है ! आप चाहे तो पुरानी पोस्ट की टिपणीया पढ़ सकती है ! और अंतत: उन्होंने मेरे ब्लॉग पर आना ही छोड़ दिया !
अब एक और बात बताऊ की हरयाणवी भाषा में सम्मान सूचक शब्दों का उपयोग भी नही किया जाता ! आप मेरे पूर्व के लेख देखे , मैंने कहीं
भी मेरे बाबूजी के लिए भी "जी" का प्रयोग नही किया है ! उनको भी सिर्फ़ "बाबू" ही कहा है ! और आप ताज्जुब करेंगी की मेरे पिताजी भी
शिक्षक ही थे ! अब एक उदाहरण देकर मैं अपनी बात ख़त्म करुग की हमारे यहाँ "दामाद" को "छोरी का छोरा" कहते हैं ! अब ये भी कोई
सम्मानजनक नही है ! दामाद को हम ऐसे ही आज भी बुलाते हैं ! आप किसी हरयाणवी गाँव के रहने वालों से पता करे ! शायद आप संतुष्ट हो
सकेंगी !
मैं तो आपको सिर्फ़ इतनी बात कह सकता हूँ की मेरी इसके पीछे कोई दुर्भावना नही है ! सिर्फ़ जो हमारी गाँव की लोक संस्कृति है ! उसको ऐसे
का ऐसे रख देता हूँ ! मैं आज भी गाँव से जुड़ा हुवा हूँ और जिन मास्टर जी का जिक्र मैंने किया है वो दोनों ही आज तक जिंदा है ! और गाहे
बगाहे उनसे भेंट भी होती रहती है !
मेरे स्पस्टीकरण से आप संतुष्ट होंगी ! और अगर ये किसी ब्लागिंग मर्यादा का उल्लंघन है तो ठीक है ! मुझे ऎसी कोई ब्लागिंग में उत्सुकता भी नही है ! और मैं कोई कवि लेखक या साहित्यकार भी नही हूँ ! आप आदेश करिए , तुरंत ये ब्लॉग बंद कर दिया जायेगा !मेरा उद्देश्य किसी को भी दुःख: पहुंचाना नही है !
अगर मेरी किसी भी बात से किस्सी को कोई दुःख पहुंचे तो फ़िर क्या फायदा ? आपसे क्षमा याचना सहित ! वैसे आप वरिष्ठ हैं ! अत: आप जो भी सलाह देंगी ,
वह मैं शिरोधार्य करूंगा !
धन्यवाद !
ताऊ रामपुरिया
(पी.सी.रामपुरिया)
वाह, वाह, मर्यादावादी आ ही गये! अब साहित्य और संस्कृति वाले ठेलेंगे अपनी फ़ियेट(fiat)!
ReplyDeleteदेखते हैं ताऊ अपनी मानते हैं या भाषाई फतवे शिरोधार्य करते हैं!
के बिचार करो हो ताऊ!
ताऊ जी,
ReplyDeleteहम तो आपको भी जानते हैं और शोभा जी को भी और दोनों का ही खूब आदर करते हैं. हमें पता है की आपकी मंशा कभी भी किसी का दिल दुखाने की नहीं हो सकती है. अच्छा हुआ की आपने स्वयं भी यह बात स्पष्ट कर दी. अरे भई, साहित्य में व्यंग्य का भी एक स्थान है और आपकी प्रोफाइल में बने मानव के पूर्वज के चित्र और उसके डिस्क्लेमर से ही सारी बात साफ़ हो जाती है. आपको कहीं जाने की ज़रूरत नहीं है.
आप दोनों से क्षमा-प्रार्थना सहित,
अनुराग शर्मा
ताउ जी तुमने ,आपने भी कह सकता हु पर उस आप वाली मर्यादा मे अपनापन खो जाता है,इसिलिये तुमने से ही शुरु करता हु तुमने तो मास्टर जी पर लिखा है भई गुरुजी पर थोडे ही इसिलिये सब चलेगा फ़िर सच जो है वो हर जगह चलेगा मर्यादा के अंदर और मर्यादा के बाहर भी ।
ReplyDeleteताऊ , हम आपको एक बात कहते हैं की आप को इस तरह की शिक्षा देने की जरुरत नही है ! आपने न तो इस लेख में, और ना ही पिछले किसी भी लेख में, कभी भी किसी अपमान किया हो ? ऐसा मुझे नही लगता ! जिस तरह
ReplyDeleteमाननीया शोभाजी ने आपको जिस तरह ध्यान रखने की हिदायत दी है वह मेरे समझ में नही आई !
मैं आपको शुरू से पढ़ता रहा हूँ ! और मैं भी एक हरयाणवी हूँ ! आपके लेखो में कहीं भी ना तो अश्लीलता दिखी और ना ही कुछ ग़लत दिखा ! शायद एक स्वाभाविक बात चित के जैसी आपकी बात चित होती है ! और शायद जिनको हरयाणवी समझ नही आती है उनको यह अक्खड़ लगती होगी ! तो इसमे आपका क्या दोष !
आपने किसी भी तरह से किसी अध्यापक का कैसे अपमान कर दिया ! मैं आपके लेख को ४ बार पढ़ कर देख चुका ! मुझे कुछ भी अपमान जनक नही मिला ! और हमारी भाषा में इससे ज्यादा समान जनक कुछ नही है ! आपने तो फ़िर भी मास्टर
को मास्टर जी कहा है ! बताओ कौन ऐसा कहता है ? आपको मालुम नही है की हरयाणवी में आप अकेले लिख रहे हो ब्लॉग पर ! और ऐसे में आपको प्रोत्साहन मिलना चाहिए या आपकी टांग खिंचाई करनी चाहिए ?
@ शोभाजी , ये गंजे मास्टर और काणी मास्टरनी का किस्सा नेट पर आपको इतनी जगह मिलेगा की आप चोंक जायेगी ! और हमारे हरयाने के हर गाँव में ऐसे कहानी किस्से आपको मिल जायेंगे ! आपको बिना वजह मीनमेख निकालने के पहले सोचना चाहिए था ! टिपणी करना जरुरी नही है अगर हम लेखक को बिना वजह दुःख पहुंचाए !
आप जब बात को समझ ही नही रही हैं तो क्यूँ टिपणी करते हैं ? हर चीज समझना जरुरी भी नही है !
मुझे तो इसमे भी कोई साजिश लगती है ! ऐसे लोग नही चाहते की कोई प्रादेशिक भाषा जिंदा रहे !
आप कहते हो की मैं ब्लॉग बंद कर दूंगा ! तो ये क्या बात हुई ? इन लोगो के कहने में आकर आप क्यूँ ब्लॉग बंद करोगे ? ये लोग तो चाहते ही यहीं है ! आपको मालुम नही की आप को कितने लोग पढ़ रहे हैं ? आप टिपणीयो पर मत जाइए ! पुरी दुनियाँ के हरयाणवी आपको आकर पढ़ते हैं !
ज्ञान बांटने में कुछ बिगड़ता नही है ! यहाँ ज्ञान ही तो फोकट मिलता है ! और आपको ज्ञान लेने की जरुरत नही है ! आप हम हरयानावियों के लिए लिख रहे हो ! अत: आप इन ज्ञान बांटने वालो के चक्कर में मत पडो ! ऐसे अभी कई आयेंगे !
और ये ब्लॉग व्लाग का ऐसा कोई कानून नही होता ! इन ब्लागों में तो ऐसे ऐसे गंदे और शर्मनाक लेख भरे पड़े हैं कोई जाकर उन पर क्यों टीका टिपणी नही करता ? पहले जाकर उनको तो बंद करवाओ !
ताऊ हमको बहुत दुःख हूवा है की आपके ब्लॉग पर कोई इस तरह की ग़लत टिपण्णी कर जाए ! हम चुप नही रह सकते ! अत: हमने जवाब दे दिया !
अगली पोस्ट इससे भी फड़कती आनी चाहिए ताऊ !
ताऊ बहुत मजेदार पोस्ट पढी ! और मैं तो आप जानते हो टिपणी वगैरह कुछ करता नही, कभी कभार ही टिपणी करता हू ! सो कल ही पढ़ कर मजे लेचुका था ! अभी रोशन का फोन आया था सो मैंने आके आपकी पोस्ट की टिपणीया
ReplyDeleteपढी ! बहुत दुखद है ! किसी ने बिना पढ़े ही इस पर अपने मन से टिपणी कर दी है ! अगर टिपणी करता इसको पढ़ता तो शायद इसका आनंद लेता इस तरह नाक भोंह नही चढाता ! ताऊ आपको
तकलीफ निश्चित ही पहुँची होगी !
मैंने आपको पहले ही कहा था इसको सार्वजनिक मत करो ! पर ये इसी रोशन की सलाह थी की करो ! और आपने हमारी नही मानी ! अब क्या करना ?
देखो ताऊ , अपने को किसी के दवाब में नही रहना और आपको जरुरत क्या है ? क्यों इस प्रपंच में पड़ रहे हो ! इस ब्लॉग को आप बंद करो ! और सबको पास वर्ड दे दो ! इससे इन मर्यादावादियों को भी चैन पड़ जायेगा और हमको भी ! जबसे आपने ये ब्लॉग लिखना शुरू किया है आप ना तो हम लोगो के मेल के जवाब दे रहे हो और ना हम लोगो के फोन उठाते हो ! तो अच्छा है अपने पुराने ढर्रे पर लौट आवो ! आगे आपकी मर्जी !
ऐ दुनिया ऐसे ही लोगो की है ! बहुत शर्मनाक हरकत है ! उनको इस कृत्य के लिए अफ़सोस जाहिर करना चाहिए !
ताऊ आप भी कहाँ इन लोगो की बातो में आ गए ?
ReplyDeleteआपके ब्लॉग पर मनोरंजन होता था और उससे ज्यादा
मजा टिपणियो में आता था ! आपके टिपणीकारो में भाटिया जी,
मोदगिल जी की कवितामयी टिपणी, स्मार्ट इंडियन, और सबसे
धुरंदर तिवारी साहब , और फ़ण्डेबाज जी आदि सभी की टिपणिया ही
मनोरंजक होती थी ! ये क्या गमगीन माहोल बना रखा है ? ! अरे ताऊ
अपनी अपनी बुद्धि अनुसार सबको राय देने का हक़ है ! मानो ना मानो
आपकी मर्जी ! चलो अब शुरू हो जावो ! छोडो भी ताऊ !
.
ReplyDeleteक्या ताऊ यार, इस तरियों डिस्टर्ब हो रैया सै..
ते कर चुका ब्लागिंग ? बहण जी को मेरे लग्गे
रिडायरेक्ट कर दे, मैं पुच्छुँगा कि बहण जी आपके
पास रूमाल नईं सै.. नाक पर धर ले और निकल ले
इस गल्ली से बाहर !
ताई की लट्ठ जब तक ना पड़ती, बेखौफ़ बेहिचक
लिक्खा कर इसी तरियों .. उन्नें तो एतराज़ करी ना,
फेर इन्नें बतावेंगी ये बेहण जी के तू लिक्ख ?
अरे बावले, ताऊ.. मैं तो बिहारी हूँ, जहाँ लड़के को
लौंडा कह देने पर फ़ौज़दारी हो जाया करती है..
यू.पी. में सुनने की आदत क्या बोलने की आदत भी
हो गयी है, बुरा नहीं लगा.. यह इस प्रदेश के लिये
सामान्य बात है । अब तू बोल मैं लाठी लेकर किस
पर पिल पड़ता ?
राम कसम एक सच्ची घटना भी बता दूँ, मेरे भाई साहब ने बुलाया कि आकर नयी जगह भी देख जा । मैं भी चल पड़ा, रास्ते में एक जगह बस में बैठना पड़ा ( टैक्सी में बैठ कर असली भारत के दर्शन नहीं होते ) सो, बस थी.. ठस्साठस ! बस चली.. फिर गर्मी या भूख से एक दुधमुँहा बच्चा बुरी तरह चिल्लाने लग पड़ा, बल्कि चिंघाड़ने लग पड़ा । औरत तो परेशान थी, साथ में उसका बुड्ढा ससुर भी परेशान.. एकाएक बुड्ढा दहाड़ पड़ा , अरे क्यों उसको तबसे हिलाये बहलाये जा रही है.. उसके मुँह में चुच्ची क्यों ना देती, चुच्ची दे ते सो जावेगा छोरा ? सही मान.. एक भी चेहरे पर मुस्कुराहट ना आयी । मैं कायल हो गया, इस सरलता और भाषा की बेबाक सादगी पर.. और साथ ही पूरी बस में ठँसे पड़े जाटों के मन की सफ़ाई पर .. जगह थी गुलवाटी ( हापुड़ - बुलंदशहर मार्ग )
बिना माडरेट किये इसको जस का तस जाण दे, ताऊ ! फेर मैं ते कोई एतराज़ आवेगा तो इनको वहीं एक्सपोर्ट कर देण्गे ।
बागपत के किस्सों के लिये लिये अभी टैम नहीं है, फेर कभी ?
अपने गाम की भाषा और संस्कृति लेकर तू काशी विद्यापीठ कयों नहीं आ जाता.. किस किस से गाइडलाइन बटोरता फिरेगा ?
राम कसम एक सच्ची घटना भी बता दूँ, मेरे भाई साहब ने बुलाया कि आकर नयी जगह भी देख जा । मैं भी चल पड़ा, रास्ते में एक जगह बस में बैठना पड़ा ( टैक्सी में बैठ कर असली भारत के दर्शन नहीं होते ) सो, बस थी.. ठस्साठस ! बस चली.. फिर गर्मी या भूख से एक दुधमुँहा बच्चा बुरी तरह चिल्लाने लग पड़ा, बल्कि चिंघाड़ने लग पड़ा । औरत तो परेशान थी, साथ में उसका बुड्ढा ससुर भी परेशान.. एकाएक बुड्ढा दहाड़ पड़ा , अरे क्यों उसको तबसे हिलाये बहलाये जा रही है.. उसके मुँह में चुच्ची क्यों ना देती, चुच्ची दे ते सो जावेगा छोरा ? सही मान.. एक भी चेहरे पर मुस्कुराहट ना आयी । मैं कायल हो गया, इस सरलता और भाषा की बेबाक सादगी पर.. और साथ ही पूरी बस में ठँसे पड़े जाटों के मन की सफ़ाई पर .. जगह थी गुलवाटी ( हापुड़ - बुलंदशहर मार्ग )
ReplyDelete@ डा. अमरकुमार जी , गुरुदेव प्रणाम ! आपकी टिपणी का उपरोक्त भाग कोट कर रहा हूँ ! इसमे हरयाना ही नही बल्कि हमारी उत्तर भारतीय गँवई छवि के दर्शन होते है ! कितने सीधे साधे लोग ? मन में कोई खोट नही ! निर्मल मन ! लोग बस में क्यों नही हँसे ? क्योंकि मन में कपट नही है ! ये तथाकथित मर्यादावादी तो अपना अधिकार समझते हैं दूसरो को नसीहत देना ! अगर नसीहत दे रहे हो तो जवाब तो दो ! मैंने इनको मेल भी की पर आज तक जवाब नही ! अगर पोस्ट में असली
गाँव की भोली भाली बातें लिखी जाए तो कोहराम खडा हो जायेगा ! आपके मन में कोई खोट नही इसलिए आप सीधी बे लाग लपेट की बात करते हैं ! जैसे हमारे मन में साफ़ बात वैसे ही आपकी जबान पर ! पर यहाँ तो लोगो ने भाषा का शुद्धिकरण करने की ठान रखी है और वो भी सस्नेह एक लाइन का कमेन्ट करके ! इन गंवैयो को फ़िर सिखायेगा कौन ?
@शोभाजी आपने टिपणी की ! आपका स्वागत है ! पर जवाब तो आपको देना ही चाहिए था की गलत क्या था ?
आपको मैंने आफ लाइन भी मेसेज दिया पर अफ़सोस आपने कोई तवज्जो नही दी ! और मैं आपसे निवेदन करूंगा की बिना पढ़े कमेन्ट मत कीजिये ! अगर आपने पुरी पोस्ट पढी होती तो ऐसे कमेन्ट ना करती ! या अगर आप चाहती है
की ये गाँव की शैली ख़त्म ही हो जाए और सिर्फ़ आप भद्र जन ही काबिज रहे तो आपका मिशन ठीक है ! पर पुन: निवेदन है की बिना गाँव को समझे किसी गँवई पर कमेन्ट मत करना ! हम लोग दिल के सीधे हैं और जैसे आपको वेदना होती है वैसे ही हम गंवईयों को भी होती है !
आपको शुभकामनाएं !
मास्टर जी कहानी वाकई बडी मजेदार है।
ReplyDeleteताऊ जी राम राम
ReplyDeleteसच में कहानी बङे मजेदार थी। आपने भी स्कूल टाईम में बङे मजे किये हैं ।