म्हारै गाम का दर्जी मरग्या ! और सारे ही गाम आले वहाँ
पर इक्कठ्ठे हो गये अफ़्सोस प्रकट करण कै लिये !
दर्जी की घर आली को सारे गाम आले तसल्ली देण लाग रे थे !
और दर्जी की बीबी जोर जोर तैं रोये जावै थी ! इब ताऊ भी वहीं
पर बैठा था !
पर इक्कठ्ठे हो गये अफ़्सोस प्रकट करण कै लिये !
दर्जी की घर आली को सारे गाम आले तसल्ली देण लाग रे थे !
और दर्जी की बीबी जोर जोर तैं रोये जावै थी ! इब ताऊ भी वहीं
पर बैठा था !
इब ताऊ ने उसको यानी दर्जी की बीबी को पूछा - इब रोना
धोना बंद करो और बच्चों को संभालो ! अब रोने से तेरा घर
आला तो वापस आवैगा कोनी ! तो दर्जिन बोली - अर ओ ताऊ !
रोवूं क्युं ना ! अरे वो मेरा खसम था ! कोई पराया थोडे था !
अब जब तू मरेगा तब तो मैं रोवूं कोनी ! और मेरा रोने का
कारण एक दुसरा भी है !
अब सारे ही वहां मौजूद लोग चौंके कि भई यो दुसरा कारण
कुण सा सै ? इब ताऊ ने पूछा - हां तो बताओ , तू क्युं कर
रौवै सै इतनी जोर तैं ? इब वो बोली - ताऊ मैं तो न्युं करके
रौवू सुं कि इबी मरने के तीन दिन पहले ही वो मोटर साइकिल
हिरोहोन्डा आली खरीद कै ल्याया था ! इब उस मोटर साइकल
नै कुण चलावैगा ? और फ़िर दहाड मार कै रोण लाग गी !
ताऊ बोल्या - अरे तैं भी के बावली बात करै सै ? अरे मैं
गाम का सरपंच सुं ! वो जो काम बाकी छोड ग्या सै ! उनको
मैं पूरा करुंगा ! तू चिंता ही मत कर ! मोटर साइकल मैं चलाउंगा !
और तेरे दर्जी की आत्मा की तसल्ली की खातर उसमै पेट्रोल
तू भरवा दिया करणा ! तेरे जी को भी तसल्ली रहवैगी !
इब वो तो फ़िर दहाड मारके रौवण लाग गी ! ताऊ ने फ़िर पूछी की -
इब के हुया ? इब तूं क्यु रौवै सै ?
वो बोली - अरे ताऊ इब के बताऊं ! मैने उसके लिये परसों ही देशी
घी के गौन्द के लडडु बनाए थे ! इब वो लडडु कुण खावैगा ?
ताऊ बोल्या - अरे तू बावली बात मत कर ! अरे जब मैं गाम का
सरपंच सुं तो ये सारे काम भी मैं ही करुंगा ! तू फ़िकर ना कर !
वो लडडु भी मैं ही खा ल्युंगा ! पर इब तू रौवै मना !
इबकै दर्जिन नै किम्मै जोर तैं रुक्का मारया ! और रौवण लाग गी !
ताऊ -- इब के होया ?
वो बोली - अरे ताऊ इब के बताऊं ? दर्जी तो मरग्या पर मेरे माथे
पै पचास हजार रुपये का कर्जा छोडग्या ! इब मैं न्युं करकै
रौवूं सुं कि वो कर्जा कौन चुकायेगा ?
इब ताऊ गांव वालों की तरफ़ मुंह करके बोला - अरे भई गांव
वालो ! सुनो ! क्या सारा काम सरपन्च के जिम्मै ही होवै सै ?
पहले के काम सब मैने निपटाने का वादा कर लिया है ! इब ये
जो आखिरि काम है ये तुम लोग करदो ! और भाई थोडा पुन्य
कमा लो ! अकेला ताऊ ही इतना पुन्य कमाए ये अच्छी बात ना सै !
"हा हा हा हा हा इब ताऊ जी जब मोटर साइकिल थम चलोगे , गोन्द के लड्डू भी थम ही खाओगे ते फ़िर कर्जा भी तमने ही चुकाना होगा न , इब ये तो बडी नाइन्सफ़ी हो रही गावं वालों के साथ हैं ....., तो नूय करें हम भी पुन्य क्मा लेतें हैं , कर्जा उतारन में हम थारी मदद कर देतें हैं , लड्डू और मोटर साइकिल थम म्हारे साथ आधा आधा बाँट ल्यो इब न मत करयो देखो हाँ , .."
ReplyDeleteजय राम जी की
bada joradar vyangyatmak post. taau ji padhakarmujhe maja aa gaya . bahut umda taau ji dhanyawad.
ReplyDeleteऐसे ही हैं हमारे प्रतिनिधि। मजा आ गया व्यंग्य पढ़कर। मोबाइल पर पढ़कर दूसरे लोगों को भी सुनाया, सभी ठहाके लगाने लगे :)
ReplyDeleteपोस्ट की बात हम बाद में करेगे ...पहले ये बतायो ये घेर ऐसे चमचमा कैसे रहा है...पुताई करवा के चकाचक ?टेम्प्लेट कहाँ से लिया फ़ौरन मेल करो.....वैसे हम दो दिन की छुट्टी पर जा रहे है ...
ReplyDeleteबहुत ही मज़ेदार पोस्ट है ..वैसे मोटर साइकिल बेच कर ५०,००० रुपये मिल जायेंगे !!!!!!!!!
ReplyDeleteबहुत ही अच्छा
ReplyDelete:-)
ReplyDeleteभैया ताऊजी, यह बता दीजिये कि पोस्ट में अन्दर का ताऊ और पोस्ट के बाहर का ताऊ (लेखणवाळा) एक ही हैं या अलग अलग?
अन्दर वाला ताऊ तो जबरदस्त हास्य-उत्पादक है; बाहर वाला तो बड़ा पढ़ा-लिखा-संवेदनशील लगता है।
मुझ नॉन हरयाणवी को यह समझ नहीं आता!
ताऊ जी राम-राम
ReplyDeleteवाह ताऊ जी ये तीसरी मदद भी आप ही कर दो मोटर साइकल बैच कर कर्जा चुका दो तो पुण्य सारा आपको ही मिल जाएगा।
बङी ही मजेदार पोस्ट है ताऊ जी।
हा हा हा। मजा आ गया। ताऊ का पुण्य बाँटना हँसा गया। बाकई ताऊ ताऊ निकला।
ReplyDeleteताऊ जी, गजब कथा कही, मैं तो पहले ही आपकी लेखनी का कायल था। आपका देशीपन हमेशा कुछ-न-कुछ सीख दे जाती है। आपके लट्ठ पे टंगी पोटली में न जाने कैसे-कैसे और कितनी ग्राम-कथाऍ आपके अनुभव से रची-बसी है, वो लाजवाब है। आपने हरियाणवी को सही मायने में लोकप्रिय बनाने का काम किया है, साथ ही यह भाषा सीखने की मेरी साध भी यहॉं पूरी हो रही है।
ReplyDeleteऔर के कहूँ, तन्नै तै सब बेराए सै। ताऊ फेर मेल्लेंगे, जब ताईं राम-राम।
वाह ताऊ इब भागन ने करे शे, चल हम काम बांट ले , तु पेट्रोल डलवा दिया कर मे मोटर साईकल चला लिया करुगा, तो देशी घी ओर गोन्द मगांवा दिया कर मे खा लिया करुगा, भाई ओर यु कर्जातो तु अकेला दे दियो, यह पुन्य सारा तु लेले...
ReplyDeleteजय राम जी की ताऊ जी
ताउ अपणे इस भतिजे को भी थोडा पुण्य बांटना सिखा देते तो मेरा भी उद्धार हो जाता।मज़ा आ गया ताऊ अब तो आप के पदचिन्हो पर ही चलना है
ReplyDeleteअच्छा दिमाग लगाया ताऊ आपने
ReplyDeleteमोटर साईकिल पर घूम लियो तो बताना कैसी चल रही है
मन्ने भी खरीदनी है
वीनस केसरी
ताऊ, दरजी मुझसे कह रहा था कि टिप्पणी करुँगा आपकी पोस्ट पर...बहुउउउउउउउ!!! अब तो दरजी मर गया.....बहूहूहूह्ह्ह्ह्ह्ह!!! आप तो सरपंच हो..दरजी के सारे बचे काम कर रहे हो..दर्जन को संभाल रहे ह..टिप्पणी भी संभालो........बहूहूहूह्ह्ह्ह्ह्ह!!!
ReplyDeleteताऊ मन्नै तो न्यू लाग्गै अक ताई तै बचण खात्तर गाम आल्यां नै सुणा रह्या सै
ReplyDeleteचुकावेगा तो तू ही...
अर जो मेरा अंदाजा गलत हो तो फर दरजण नै लोन एप्लीकेसन दे कै भूतनाथ धौरै भेज दियो...
Priya Mitron
हरियाणवी टोटके किस्से और कविताएं
haryanaexpress.blogspot.com
साइट पर भी उपलब्ध है
समय निकाल कर आईयेगा
Welcome
किस्सा सुनकर मज़ा आ गया ताऊ!
ReplyDeleteआज पहली बार गौर से पढ़ा है आपको क्या आपको अपने ब्लोगरोल पर रख सकती हूँ?
ReplyDelete@लवली जी .. नेकी और पूछ पूछ ! :) हमारे अहोभाग्य , इसमे पूछना क्या ?
ReplyDeleteदेखिये हमने तो आपको बिना पूछे ही आपके ब्लॉग को हमारे ब्लॉग रोल में
लगा लिया !
हा हा हा !! वाह ताउ अपना काम बनता और भाड मे जाये जनता !!
ReplyDeleteघनी चोखी पोस्ट छाप दी रे ताऊ...
ReplyDeleteनेताओं पर करारा व्यंग है ! स्वार्थी हैं ! आपने स्वयं के ऊपर लेते हुए कहा है ! बहुत शुभकामनाए !
ReplyDeleteवाह ताऊ.. बस उस मोटरसाईकिल से 1-2 दिन मुझे ऑफिस छोड़ दिजियेगा.. :)
ReplyDeleteताऊ ये ग़लत बात ! लूट का माल आधा आधा ! इककल्ले नही
ReplyDeleteखाने दूँगा ! मोटर साइकल आगे की तेरी ( जहाँ पेट्रो भरवाया जाता है ),
तुम पेट्रोल भरवाया करना ! और पीछे की मेरी ! मैं चलाया करूंगा !
लडडू आधे आधे ! करजा गाँव वाले दे देंगे ! बहुत बढिया ताऊ ! जीते रहो !
क्या व्यवस्था है ताऊ ? वाकई आज कल बन्दर बांट ऐसे ही होती है !
ReplyDeleteबहुत सटीक लिखा है ! धन्यवाद!
ताउ यार सब छोटे काम तुम अपने नाम पर ले लिये और कर्जा वाला बडा काम गाववालों पर डाल रहे हो......क्या समाजसेवा करने की ठानी है :)
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट।
;-) वाह ! ताऊ
ReplyDeleteक्या चीज हो यार, मान गए !
पोस्ट पढ़ते पढ़ते घबराहट हो रही थी कि कहीं सर्पंचाई में और काम का जिमा न लेलें -पर अब जाकर साँस में साँस आयी !
ReplyDelete.
ReplyDeleteताऊ यार, तेरी बात पर 17 हज़ार तो मैंने जोड़ लिये, बाकी का हिसाब भी अभी बताता हूँ .. ध्यान से सुन ले, अच्छा छोड़ उसे... पर ये बता दे दर्ज़िन बहन की उमर क्या होवेगी ? दर्ज़ी भाई स्वाभाविक मौत मरा कि मारा गया ? अगर मारा गया, तो तैने बहैसियत सरपंच थाणे में रपट लिखायी कि नहीं ? दर्ज़िन बहन से ताई को कितनी और क्यों हमदर्दी है ? गाँव में किसी से आशनाई तो ना चल रही, उसकी ? दर्ज़िन के मायके वालों का चालचलन कैसा है ?दर्ज़िन के अलावा दर्ज़ी भाई का और कौन कौन वारिस है ? मोटरसाइकिल देने को वह तुमसे कोई इकरारनामा तो न माँग रही ? पेट्रोल वह भरवावेगी, तो पीछे की सीट पर तो बैठने की ज़िद तो ना करेगी ? रात में मोटरसाइकिल का मालिक कौन होगा और वह गाड़ी कहाँ खड़ी करेगा ? मोटरसाइकिल पर दूध के पीपे लादने को ऎतराज़ तो न करेगी ?
तू ठहरा भोला ताऊ, यह सब देखना तो मेरा दायित्व है । सो, फ़िलहाल तो इतने के ज़वाब तो लौटती मेल से लिख भेज, तबतक द्वितीय प्रश्नपत्र भी तैय्यार हो जावेगी ।
फ़िकिर ना करियो, पैसे का इंतज़ाम तो चुटकियों में हो जावेगा, पर पहले मेरे को इतमिनान दिला दे !
हिन्दी ब्लाग्स को लगातार २ घंटे पढने के बाद जब सर दर्द करने लगता है , उस समय मैं यहाँ आकर बैठना ज्यादा पसंद करता हूँ ! लगता है की सिर्फ़ यह ताऊ ही एक अच्छा कार्य कर रहा है ! आराम देने के लिए तेरा शुक्रिया ताऊ !
ReplyDeleteवाह ताऊ क्या किस्सा है, मज़ा आ गया पढ़ कर. अब तक तो लड्डू ख़त्म भी हो गए होंगे वरना थोड़ा पुण्य बाँटने हम भी आते, लड्डू खा कर. और मोटरसाइकिल कैसी चल रही है?
ReplyDeleteउम्मीद है ऐसी ही कहानियाँ आगे भी पढने को मिलेंगी. आपके लिखने का अंदाज़ मुझे बहुत अच्छा लगता है. पहले पहले थोडी दिक्कत होती थी, हरयान्वी उतने अच्छे से समझ नहीं आती थी, अब ज्यादा आसान लगने लगी, एक नई भाषा समझने लगी...शुक्रिया आपका.
dhnyawad :-)
ReplyDeleteक्या बात है ताऊ कती तोड़ पाड दिया
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