हमको गर्व है अपनी मातृ भाषा पर ! हमारे देश मे दिन की शुरुआत ही भजन आरती से होती है ! हमारी सांसो मे हिन्दी महकती है ! हमारे प्राण हिन्दी मे बसते हैं ! आज चारो तरफ़ हिन्दी दिवस की बधाईयों का ढेर लगा है ! ताऊ के मन मे अचानक एक सवाल ऊठा कि आखिर हमको रोज क्यूं
ये हिन्दी पखवाडे मनाने पड रहे हैं ? आखिर हम हिन्दी को कब महसुस कर पायेंगे ? कुछ गिने चुने लोगो की सनक मे आखिर हम कब तक अपने आपको उपेक्षित महसूस करते रहेंगे ! आज इतने साल की आजादी के बाद
भी हमको हिन्दी को बढावा देने के प्रयास करना पड रहे हैं ? क्या ये हमारे लिये गौरव की बात है जब हम कहते हैं कि हिन्दी की सेवा करो ?
आज इन सब बातो की वजह से ताऊ का दिमाग बिल्कुल ही खराब था ! ताई से भी झगडा चल ही रहा था ! आज कल ब्लाग जगत मे नया फ़ैशन चल पडा है कि इसके कपडे फ़ाडो उसको पहनावो ! कोई किसी की टांग खींच रहा है ! कोई भाई तो किसी किसी की गर्दन ही खींच रहा है ! कोई किसी...खैर जब हमने अपनी बुद्धि दौडाई तो लगा कि ये तो ठीक हो रहा है !
अरे भाई जरा सोच के देखो ये सब हिन्दी की सेवा ही तो हो रही है ! आखिर कार सब एक दुसरे के कपडे हिन्दी मे ही तो फ़ाड रहे हैं ! कोई अन्ग्रेजी मे तो फ़ाड नही रहे हैं ! बहुत सकारात्मक बात है यह तो ! बिल्कुल साहब
आप तो चालू रखिये ! हिन्दी की सेवा का इससे बेहतर तरिका नही हो सकता ! क्योन्की हिन्दी पखवाडा मना कर भुला दिया जा सकता है, पर एक दुसरे के कपडे तो हम हमेशा फ़ाडते रह सकते है !
आज हमारा बन्दर कई महिनों बाद आया था ! वो तिन्छाफ़ाल के जंगलो मे किसी कालेज मे पढता है ! अब पढता है या बंदरियों के पिछे घुमता है यह तो हमकॊ नही मालुम पर आज आकर बोला - ताऊ ! आप आज हमारी कालेज
मे चलो ! मैं लेने ही आया हूं आपको ! मैने कहा - यार बंदर , मेरा तुम लोगो के बीच क्या काम ?
बंदर बोला - ताऊ बात ये है कि हमारे कालेज मे भी आज हिन्दी दिवस मनाने की सनक किसी को सुझ गई है ! और समस्या यह है कि अब हिन्दी मे भाषण देना किसी को आता नही है ! और नेता आज के लिये सारे बुक हुये पडे हैं ! तो आप ही चल कर दो शब्द हिन्दी मे बोल दो ! और आज रविवार भी है ! आपको हम वापस भी डिनर करवा कर छोड जायेन्गे ! और हुवा तो प्रिन्सिपल से कह कर एक लिफ़ाफ़े का जोगाड भी करा देंगे !
सो साहब लिफ़ाफ़े के नाम पर हम राजी हो गये ! यहां कौन ब्लागिन्ग मे, हिन्दी सेवा का पैसा मिलता है ? अगर गूगल बाबा कुछ देते भी होंगे तो वो हम तक पहुंच नही पायेगा ! अब हम बंदर के कालेज पहुंच गये !
वहां हमारा परिचय हिन्दी के मुर्धन्य विद्वान बता कर कराया गया ! जब्की हमको मुर्ख और मुर्धन्य का भी पता नही ! वहां बहुत सारे बंदर और
बंदरियां अजीब २ कपडों मे घूम रहे थे ! हमको विद्वान समझ कर ५/७ बंदर बंदरियाओ ने घेर लिया और सवाल जवाब करने लगे ! इतने मे एक बंदरियां जो हिरोइन टाइप दिख रही थी ! आकर बोली- हे ताऊ ! आई मीन
जेन्टल्मैन .. यु आर लूकिन्ग गुड.. व्हाट अ .. ड्रेसिन्ग सैन्स ...
इतने मे एक दुसरी बंदरी आई और बोली-- सर आई वांट टू आस्क अ क्वश्चन .
मैने उसकी बात काटते हुये कहा - पूछो पर हिन्दी मे ..
इतने मे एक बंदर बोल पडा - हे टाऊ .. एक्चुली वी डोन्ट वान्ट टू लर्न हिन्डी ..
य़ू नो ? गिव यौर लेक्चर... एंड डोन्ट डिस्टर्ब अस ! और वहां से दो तीन बंदरीयो के साथ कैन्टीन की तरफ़ चला गया !
आज हिन्दी इन नौनिहालो के लिये सिर्फ़ हिन्दी दिवस होकर रह गई है ! आखिर कब हम समझेंगे अपनी भाषा का दर्द ? कोई विदेश से आता है उसको हम सर आंखों पर बिठाते हैं ! अपनो को गरियाते हैं ! हम मे आत्म सम्मान का होना जरुरी है और वो तभी होगा जब हम अपनी भाषा को सम्मान देना सीख जायेंगे !
गंभीरतम बात हो, मजाक हो अथवा गाली देना हो ! आप सोच कर देखिये क्या आप हिन्दी के अलावा किसी अन्य भाषा मे उस शिद्दत से अपने आपको व्यक्त कर सकते हैं ! यहां मैं चिठ्ठा चर्चा का जिक्र करना चाहुंगा ! क्या शुक्ल जी, तरुन जी, कुश जी , अथवा समीर जी चिठ्ठा चर्चा मे जो चुटकियां लेते हैं वो अन्गरेजी मे सम्भव है ? अगर चिठ्ठा चर्चा
अन्ग्रेजी मे की जाये तो क्या ऐसे २ टाइटल फ़ुर्सतिया जी आप दे पाओगे ?
शायद नही ! तो हम क्यूं अपनी भाषा से दूर भाग रहे हैं ? और दिवस मना रहे हैं ! हम रोज रोटी खाते हैं उसी तरह रोज हिन्दी का उपयोग करे तो इन दिवस पखवाडो की जरुरत ही नही पडेगी ! नीचे बाक्स में खूंटे पै एक पुरानी याद जेहन मे हिन्दी के नाम पर आगई ! वो लिख रहा हुं !
मर्यादा वादी कृपया सकारात्मक रुप मे ग्रहण करें !
मेरी समझ से अपने आपको अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम तो हिन्दी ही है ! पर अन्ग्रेजी के शौकीन इसको सबके सामने कबूल नही करते ! आप एक प्रयोग कर के देंखे - किन्ही अन्ग्रेजी वाले साहब को दो चार जबलपुरी या इन्दोरी गालियां बक दे ! फ़िर देखें वो आपको अन्ग्रेजी मे जवाब देते हैं या हिन्दी मे !
( आप अपनी जिम्मेवारी पर ही ये प्रयोग करें ! किसी भी अनहोनी के लिये हम जिम्मेवार नही होंगे ! :) )
ये हिन्दी पखवाडे मनाने पड रहे हैं ? आखिर हम हिन्दी को कब महसुस कर पायेंगे ? कुछ गिने चुने लोगो की सनक मे आखिर हम कब तक अपने आपको उपेक्षित महसूस करते रहेंगे ! आज इतने साल की आजादी के बाद
भी हमको हिन्दी को बढावा देने के प्रयास करना पड रहे हैं ? क्या ये हमारे लिये गौरव की बात है जब हम कहते हैं कि हिन्दी की सेवा करो ?
आज इन सब बातो की वजह से ताऊ का दिमाग बिल्कुल ही खराब था ! ताई से भी झगडा चल ही रहा था ! आज कल ब्लाग जगत मे नया फ़ैशन चल पडा है कि इसके कपडे फ़ाडो उसको पहनावो ! कोई किसी की टांग खींच रहा है ! कोई भाई तो किसी किसी की गर्दन ही खींच रहा है ! कोई किसी...खैर जब हमने अपनी बुद्धि दौडाई तो लगा कि ये तो ठीक हो रहा है !
अरे भाई जरा सोच के देखो ये सब हिन्दी की सेवा ही तो हो रही है ! आखिर कार सब एक दुसरे के कपडे हिन्दी मे ही तो फ़ाड रहे हैं ! कोई अन्ग्रेजी मे तो फ़ाड नही रहे हैं ! बहुत सकारात्मक बात है यह तो ! बिल्कुल साहब
आप तो चालू रखिये ! हिन्दी की सेवा का इससे बेहतर तरिका नही हो सकता ! क्योन्की हिन्दी पखवाडा मना कर भुला दिया जा सकता है, पर एक दुसरे के कपडे तो हम हमेशा फ़ाडते रह सकते है !
आज हमारा बन्दर कई महिनों बाद आया था ! वो तिन्छाफ़ाल के जंगलो मे किसी कालेज मे पढता है ! अब पढता है या बंदरियों के पिछे घुमता है यह तो हमकॊ नही मालुम पर आज आकर बोला - ताऊ ! आप आज हमारी कालेज
मे चलो ! मैं लेने ही आया हूं आपको ! मैने कहा - यार बंदर , मेरा तुम लोगो के बीच क्या काम ?
बंदर बोला - ताऊ बात ये है कि हमारे कालेज मे भी आज हिन्दी दिवस मनाने की सनक किसी को सुझ गई है ! और समस्या यह है कि अब हिन्दी मे भाषण देना किसी को आता नही है ! और नेता आज के लिये सारे बुक हुये पडे हैं ! तो आप ही चल कर दो शब्द हिन्दी मे बोल दो ! और आज रविवार भी है ! आपको हम वापस भी डिनर करवा कर छोड जायेन्गे ! और हुवा तो प्रिन्सिपल से कह कर एक लिफ़ाफ़े का जोगाड भी करा देंगे !
सो साहब लिफ़ाफ़े के नाम पर हम राजी हो गये ! यहां कौन ब्लागिन्ग मे, हिन्दी सेवा का पैसा मिलता है ? अगर गूगल बाबा कुछ देते भी होंगे तो वो हम तक पहुंच नही पायेगा ! अब हम बंदर के कालेज पहुंच गये !
वहां हमारा परिचय हिन्दी के मुर्धन्य विद्वान बता कर कराया गया ! जब्की हमको मुर्ख और मुर्धन्य का भी पता नही ! वहां बहुत सारे बंदर और
बंदरियां अजीब २ कपडों मे घूम रहे थे ! हमको विद्वान समझ कर ५/७ बंदर बंदरियाओ ने घेर लिया और सवाल जवाब करने लगे ! इतने मे एक बंदरियां जो हिरोइन टाइप दिख रही थी ! आकर बोली- हे ताऊ ! आई मीन
जेन्टल्मैन .. यु आर लूकिन्ग गुड.. व्हाट अ .. ड्रेसिन्ग सैन्स ...
इतने मे एक दुसरी बंदरी आई और बोली-- सर आई वांट टू आस्क अ क्वश्चन .
मैने उसकी बात काटते हुये कहा - पूछो पर हिन्दी मे ..
इतने मे एक बंदर बोल पडा - हे टाऊ .. एक्चुली वी डोन्ट वान्ट टू लर्न हिन्डी ..
य़ू नो ? गिव यौर लेक्चर... एंड डोन्ट डिस्टर्ब अस ! और वहां से दो तीन बंदरीयो के साथ कैन्टीन की तरफ़ चला गया !
आज हिन्दी इन नौनिहालो के लिये सिर्फ़ हिन्दी दिवस होकर रह गई है ! आखिर कब हम समझेंगे अपनी भाषा का दर्द ? कोई विदेश से आता है उसको हम सर आंखों पर बिठाते हैं ! अपनो को गरियाते हैं ! हम मे आत्म सम्मान का होना जरुरी है और वो तभी होगा जब हम अपनी भाषा को सम्मान देना सीख जायेंगे !
गंभीरतम बात हो, मजाक हो अथवा गाली देना हो ! आप सोच कर देखिये क्या आप हिन्दी के अलावा किसी अन्य भाषा मे उस शिद्दत से अपने आपको व्यक्त कर सकते हैं ! यहां मैं चिठ्ठा चर्चा का जिक्र करना चाहुंगा ! क्या शुक्ल जी, तरुन जी, कुश जी , अथवा समीर जी चिठ्ठा चर्चा मे जो चुटकियां लेते हैं वो अन्गरेजी मे सम्भव है ? अगर चिठ्ठा चर्चा
अन्ग्रेजी मे की जाये तो क्या ऐसे २ टाइटल फ़ुर्सतिया जी आप दे पाओगे ?
शायद नही ! तो हम क्यूं अपनी भाषा से दूर भाग रहे हैं ? और दिवस मना रहे हैं ! हम रोज रोटी खाते हैं उसी तरह रोज हिन्दी का उपयोग करे तो इन दिवस पखवाडो की जरुरत ही नही पडेगी ! नीचे बाक्स में खूंटे पै एक पुरानी याद जेहन मे हिन्दी के नाम पर आगई ! वो लिख रहा हुं !
मर्यादा वादी कृपया सकारात्मक रुप मे ग्रहण करें !
इब खूंटे पै पढो:- मरहूम अमजद खान साहब (शोले वाले गब्बर सिन्ह ) का जिक्र करना चाहुंगा ! एक दिन किसी पिक्चर की शूटिन्ग मे फ़ुर्सत के क्षणो मे हमको पकड लिया ! हम उनकी उस पिक्चर के डिस्ट्रिब्युटर थे ! और कहने लगे, यार रामपुरिया ...तेरे मजे हैं ! तू भी जिन्दगी के असली आनन्द लेता है ! मैने कहा -- सर जी क्या हो गया ? आज कोई मिला नही क्या ? वो बोले - नही यार मुझे तो तेरी भाषा सुन के मजा आजाता है ! पता नही तू जब गालियां देता है तो मुझे हंसी आती है ! ( उन दिनो मैं किसी भी बात पर मेरे मुंह से गालियां फ़टाफ़ट निकल जाया करती थी ! और मैं इस वजह से बदनाम भी था इस मामले मे ! और हमारे अन्चल मे तो आज भी आदमी दस बीस गाली, दिन भर मे खुद को और ३०/४० सामने वाले को नही दे ले ! तब तक खाया पीया हजम ही नही होता ! वैसे आप चिंता नही करें अब मैं सुधर गया हूं.:)..) एक हमको देखो ! साला अन्ग्रेजी मे गाली देता है .. ईडियट, ब्लडी..बास्टर्ड.. ! कुछ मजा ही नही आता ! और एक तुमको देखो ! गाली भी देते हो तो लगता है कि हां चलो २० / २५ किलो की कोई चीज दी है ! अन्ग्रेजी की गालियां दस बीस ग्राम की ! वो कहने लगे यार, गालियां देने का मजा तो हिन्दी मे ही है ! |
मेरी समझ से अपने आपको अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम तो हिन्दी ही है ! पर अन्ग्रेजी के शौकीन इसको सबके सामने कबूल नही करते ! आप एक प्रयोग कर के देंखे - किन्ही अन्ग्रेजी वाले साहब को दो चार जबलपुरी या इन्दोरी गालियां बक दे ! फ़िर देखें वो आपको अन्ग्रेजी मे जवाब देते हैं या हिन्दी मे !
( आप अपनी जिम्मेवारी पर ही ये प्रयोग करें ! किसी भी अनहोनी के लिये हम जिम्मेवार नही होंगे ! :) )
ताऊ अपन तो लट्ठ भांज कर ही काम चला लेंगे,
ReplyDeleteगाली का वजन अपनी जु्बान पर नहीं संभलता।
हिन्दी हमारी मात्रभाषा है हम अपने विचारों की अभिव्यक्ति हिन्दी में ही अच्छी तरह कर सकतें है यह हमारी मात्रभाषा का नही हमारा दुर्भाग्य है कि हमें अपनी भाषा को बचाने के यत्न करने पड़ रहे है | आपका लेख नई पीढी जो अंग्रेजी के पीछे भाग रही है कि आँखें खोलने वाला है |
ReplyDeleteधन्यवाद
Tau ji angrezi me likhne ke liye kshama chhahta hun.aapne sahi kahi kaha hum hindi me kisi bat ko jitni aasani se samjha sakte hain utna aur kisi bhasha me nahi.ye bhi thik kaha ki bunder-bundariya angrezi ke diwane hue jaa rahe hai magar maa ke aur baap ke dono ke hi bhai ko wo ek hi naam se bulate hai.yahi hal bua aur mausi ka bhi hai.kaun samjhaye unko.baharhal aapki ek baat se sab sahmat honge hindi ke liye divas manane ki zarurat nahi hai saal bhar hindi ka hi hota hai
ReplyDeleteताऊ बात आपने बड़ी धांसू कह दी। जे बात आपै कह सकते हो। लेकिन आप ताई से बना के रखो। वो सटक गयी तो गये काम से!
ReplyDeleteताऊ सबसे पहले तो म्हारी राम राम और के ढंग डोर सैं इब तो घणी हाण हो गई मन्ने तुम्हारे ब्लाग पर आए हुए रै ताऊ मन्नै माफ कर दिए ओढे आके मन्नै घणी तसल्ली सी मिल जावै सै बाकी रही हिंदी की थम क्यू चिंता करो सो हिंदी तो हमारी मातृभाषा थी और रहेगी बढावा तो उस ने दिया जावै जो कम होती लाग्गै सै अपणी हिंदी कदै बी कम कोनी हो सकै बाकी जय हिंद
ReplyDelete.
ReplyDeleteआज मेरा कुछ बोलने का मन नहीं है...
पर मेरे ताऊ बावले... जैसे पितृपक्ष मनाया किया वैसे ही हिंदी पखवारा ..
या फिर जैसे पितृविसर्जन .. का दिन वैसे ही हिंदी दिवस !
अब हिंदी को किससे बचाना है.. या हिंदी को अपने ही से आगे बढ़ाने की अपील क्यों करवायी जाती है.. यही तो कोई बता नहीं पारहा है...
आपने अपनी बात सही तरीके से कह दी। पर सर यह हमारा दुर्भाग्य है कि हमें अपनी माँ बोली के लिए भी एक दिवस मनाना पड़ रहा है। खैर हिंदी एक दिन अपना वो स्थान अवश्य लेगी जो उसे मिलना चाहिए।
ReplyDeleteहमने महसूस किया है कि जब भी हिन्दी की बात निकलती है, आप बहुत भावुक हो जाते हैं। आपकी भावनाओं को नमन और विचारों से सहमति। मातृभाषा से बेहतर अभिव्यक्ति किसी अन्य भाषा में हो ही नहीं सकती। यह हिन्दी दिवस तो हमें भी अजीब लगता है। किस बात का दिवस? हिन्दी को हथकड़ी-बेड़ी लगाने का दिवस? कहीं पराधीनता का भी पर्व मनाया जाता है?
ReplyDeleteताऊ राम राम , ईब तायी से राजी नामा कर ले, एक बात ओर ताऊ, मे जब भी भारत आया हवाई अड्डे पर मुझे जब कोई अंग्रेजी मे कुछ कहता हे, तो मे जबाब ही नही देता, लेकिन मेने अपनी टीशर्ट पर लिख रखा हे अगर आप ने मेरे साथ बात करनी हे ? तो हिन्दी ओर जर्मन मे ही बात करे, क्योकि मे एक आजाद आदमी हु, ओर गुलामो की भाषा मुझे नही आती, मेरी मात्र भाषा हिन्दी ओर जर्मन हे. ओर यह सब हिन्दी मे लिख रखा हे सवाल पुछने वाले की नजर जब इस जगह जाती हे तो उस का रंग देखने वाला होता हे.
ReplyDeleteमेरी हिन्दी किसी सहारे की मोहताज नही बस हम मे आत्म विश्वास चाहिये.
धन्यवाद
वाह ताऊ ! बड़ा गंभीर विषय हँसते हँसते बयान कर दिया ! मज़ा आगया !
ReplyDeleteसही कह रहे हो ताऊ-जबलपुरिया गाली का कभी धाराप्रवाह रियाज हुआ करता था..:) बिना सांस टूटे. कौन टिकता भला-अंग्रेजी हो या फ्रेन्च!!
ReplyDeleteबात सोलह आने सच कही है!!!
हे टाऊ .. एक्चुली वी डोन्ट वान्ट टू लर्न हिन्डी .. य़ू नो ? गिव यौर लेक्चर... एंड डोन्ट डिस्टर्ब अस !
ReplyDeleteताऊ बहुत अच्छा व्यंग लिखा आपने ! मजा आगया ! और गालियाँ बकने में तो मैंने आपके कारनामे देखें हैं ! जुबान बंद ही रखूंगा ! :)
The बन्दर is right, big uncle!
ReplyDeleteदो चार जबलपुरी या इन्दोरी गालियां ...,
न जी न, मगर लेख पढ़कर मज़ा आ गया!
ताऊनामा का हरयाणवी लहजा निकाल कर भी देखूं, तो यह पोस्ट उत्कृष्ट है।
ReplyDeleteमुझे यह प्रसन्नता है कि लेखन की दुनियां से बिल्कुल असंपृक्त लोग ब्लॉग की सुविधा का कितना अच्छा सृजनात्मक प्रयोग कर रहे हैं।
(इसे कोई गोल बनाने का प्रयास न माना जाये! :) )
ताऊ जी,
ReplyDeleteबात तो आपने सोलह आने खरी की है ....हिन्दी में जो टशन है वो किसी और भाषा में कहाँ ...अब अंग्रेजी में "भैंस की आँख" बोले तो क्या मतलब होगा !!!!!!!!!!!
ताऊ आपने अच्छा लेख लिखा ! पर मेरे मन में कुछ सवाल हैं ! आज की इस गला काट प्रतियोगिता में हम अगर बच्चों को अन्ग्रेज़ी स्कूलों में नही भेजेंगे ! तो इस आरक्षण के युग में कैसे टिकेंगे ? आदर्श की बात अलग है ! आप बुरा नही माने तो एक बात कहना चाहूँगा ! और बुरा मान भी जाओ तो आप की मर्जी ? यह सवाल आप सब लोगो से है !
ReplyDelete१. आप और आपके बच्चे कौन सी स्कूलों में पढ़े हैं ?
२. आप कितनी हिन्दी दिन भर में बोलते हो ?
३ . और क्या आप और आपके परिवार ने पूर्ण रूप से हिन्दी अपना ली है ?
बाकी लेखन के हिसाब से लेख उत्कृष्ट है !
और अच्छा है आप ताउगिरी छोड़ कर मुख्य धारा में आ रहे हो !
बधाई !
लोग अंग्रेजी सीखें ये बुरी बात नहीं है लेकिन हिंदी हो हेय द्रष्टि से देखना गलत है! बहुत अच्छा लिखा है आपने..
ReplyDeleteहिन्दी प्रेमी होने का रथ यह नही है कि आप अंग्रेजी के दुश्मन हो जाये !! मगर अपनी मातृ भाषा का नमन और सम्मान अवश्य होना चाहिये !! भाषा का फ़ोबीया मुझे इंडिया मे ही ज्यादा दिखाइ देता है वरना अपना भारत तो हिन्दी पथअनुगामी है॥
ReplyDeleteआज कुछ कहने का मान नही है ताऊ ...आज बस आपके दरवाजे पर हिन्दी में आये है....
ReplyDeleteटाऊ इंगलिस झाड़ कै हो रह्या इन्नोसेंट
ReplyDeleteताई थी परजैण्ट पर वो बोल्या प्रैगनैंट
वो बोल्या प्रैगनैंट बात पै झगड़ा होग्या
जरमन लट्ठ तै सीद्धा इंडियन रौला होग्या
कहे मौदगिल अगर बात हिंदी म्हं कहत्ता
रौला-झगड़ा छोड़ प्यार का दरिया बहत्ता
ये ताउ क्या कह रहे हो........हिंदी में गाली बोलने को कह रहे हो , अपने आप को बजरबट्टू समझ रहे हो ....खुद तो बिगड लिये....हमको बिगाड रहे हो..... एक लट्ठ ठीक से ताई दे दे .... सुनना चाहता हूँ...हिंदी में रोते हो या फिर अंग्रेजी में :)
ReplyDeleteअच्छी पोस्ट रही।
हे टाऊ .. एक्चुली वी डोन्ट वान्ट टू लर्न हिन्डी ..
ReplyDeleteय़ू नो ? गिव यौर लेक्चर... एंड डोन्ट डिस्टर्ब अस !
हिन्दी दिवस की हरयाणवी परम्परा ने दिल को छू लिया। इस विचारोत्तेजक लेख का शुक्रिया।
शानदार पोस्ट है ताऊ. ताऊ की जय हो.
ReplyDeleteमातृभाषा सचमुच 'मात्रभाषा' बनकर रह गई है.
ताऊ मैंने व्रत लिया था कि हिन्दी दिवस पर ना तो इस पर कुछ लिखूंगा और ना ही कहीं कोई कमेंट्स ही करूंगा -आपकी इस पोस्ट से व्रत खंडित हुआ !कारण ? वही जो आपने बताएं है और मेरा मन तो अब भी दुखी सा है ! अब आप के आगे कुछ और नहीं लिखा जाता !
ReplyDeleteHindi divas aur Hindi pakhwade ke naam par hamne bhi kai saal tak kai paakhand dekhe..aaj aapki post padhkar un sabki yaad aa gayi. Apni maa ko maa kehne ke liye kisi vishesh divas ki zaroorat hoti hai...ye Hindi divas dekhakr pata chalta hai
ReplyDelete"अगर चिठ्ठा चर्चा
ReplyDeleteअन्ग्रेजी मे की जाये तो क्या ऐसे २ टाइटल फ़ुर्सतिया जी आप दे पाओगे ?"
कभी नहीं!! किसी भी हालत में नहीं!!