गाँव में एक पहलवान जी रह्या करै थे ! और उनकी बड़ी बड़ी मूंछ , और घणे ऊँचे
तगडे डील डोल के थे पहलवान जी ! सारा गाम उनतैं घणा डरया करै था ! गाँव के किसी आदमी की मजाल की , पहलवान साहब को नमस्ते करे बगैर उनके सामने से निकल जाय ! बात आडै तक भी ठीक थी ! पर पहलवान जी का रुतबा इसतैं भी
किम्मै घणा ज्यादा था !
पहलवान जी का घर गाम के बीचों बीच पड्या करै था और रोज शाम को पहलवान
जी घर के बाहर खटिया डालकै बैठ जाया करै थे ! और वहाँ बैठ कै हुक्का पीया करै थे ! और पहलवान जी की चिलम भरण आल्ले भी घणे ही गाम के लुन्गाडे इक्कठ्ठे हो जाया करै थे ! एक बात और की पहलवान जी के सामने से कोई भी आदमी मूंछ उंची करके नही निकल सकता था ! या तो वो पहलवान जी के सामने से नही निकले ! या फ़िर अपनी मूंछ नीची करकै उनके घर के आगै तैं निकल ले ! इब घर था गाम के बीचों बीच ! और पहलवान जी भी बाहर बैठ के हुक्का गुड गुडाया करै थे ! सो कौन उनके ऊठनै का इंतजार करे ? गाम आले अपनी मूंछ नीची करकै निकल जाया करै थे ! अगर कोई मूंछ उंची करकै उनके सामने से निकल गया , ग़लती से भी , तो पहलवान साहब उसकी ऎसी हडडी पसली तोडया करै थे की वो तो क्या , उसके टाबर ( बच्चे ) भी मूंछ ही रखना छोड़ देवै थे !
और हडडी पसली भी क्या तोड़ते थे बिल्कुल ही पागल सांड की तरह करण लाग जावै था ! मतलब ये की अगर मूंछ उंची करके निकले की पहलवान साहब ने सांड पणा दिखाना ही है ! सो गाम आले उनके सामनै मूंछ नीची करकै ही निकलया करै थे !
पुरे गाम मैं पहलवान साहब का आतंक फैला हुवा था ! पर कोई पहलवान का के बिगाड़ सकै था ? इब थोडैदिनों बाद ताऊ का ट्रांसफर उसी गाम मैं हो गया ! ताऊ भी उस समय बिल्कुल गबरू जवाण था ! ताऊ भी घनी बड़ी बड़ी मुन्छ्याँ राख्या करै था , बिल्कुल नीबू मूंछ ! जब ताऊ पहली बार गाम मैं पहुंचा तो गाम आले बोले- ताऊ मूंछ कटवा ले ! ताऊ को इब घणा छोह (गुस्सा) आग्या ! ताऊ बोल्या - अरे बावली बूचो .. मैं क्यूँ कर मूंछ कटवावुन्गा ?
अब गाम आल्लो नै ताऊ को सारी बात बताई तो ताऊ भी किम्मै ज्यादा ही अकडू था !
सो गाम आल्लों को बोल्या - अरे गाम आलों .. थम चिंता ही मतन्या करो ! आज ही शाम को मैं इस पहलवान के घर के सामने से मूंछ उंची करकै ही नही बल्कि मूंछों पर ताव देता हुवा निकलूंगा ! अब शाम को वही हुवा जो होना था ! ताऊ पहलवान जी के घर के सामने से मूँछो पर ताव देता हुवा निकला ! और पहलवान जी हुक्का गुड गुडा रहे थे ! ताऊ को इस तरह निकलता देख पहलवान जी तो पागल सांड की तरह उठकर दौडे ! और जाकर ताऊ का कालर पकड़ कर उठा लिया !
पहलवान सांड की तरह भड़क कर बोला - अबे ओ ताऊ के बच्चे ! ये मेरा इलाका है ! यहाँ पर मूंछ रखनी है तो नीची करके रख और नही तो कटवा दे ! और ताऊ को गले से उठाकर कर जोर से पटक दिया ! इब ताऊ कै समझ मैं आ गया की ग़लत जगह हाथ डाल दिया ! ये पहलवान कोई छोटी मोटी चीज ना सै ! यो भोत मारैगा ! और इसतैं बचण का उपाय सिर्फ़ बुद्धि तैं ही हो सकै सै ! इब रोज इस गाम मैं रहणा और रोज इस पहलवान तैं कुण हाडड कुटवावैगा ?
सो ताऊ बोल्या - अरे पहलवान साब रुको ज़रा ! एक बात सुणो !
पहलवान सांड की तरह फुफकार बोला - बोल इब के मरना चाहवै सै ? ताऊ बोल्या- देखो पहलवान जी अब हम मूंछ तो नीची करकै रह नही सकते ! जैसे आपको मूंछों से प्यार सै उसी तरियां हम भी अपनी मूँछो तैं प्यार करै सें ! इब तो एक ही बात हो सकै सै की हम दोनों कुश्ती लड़ लेते हैं आर -पार की ! जो जिंदा बचेगा वो मूंछ रख लेगा ! बस मैं एक बार घर जाकर घर वालो का सफाया कर आता हूँ ! क्योंकि अगर आर-पार की लड़ाई में मैं हार गया तो उनका क्या होगा ! क्योंकि युद्ध आर-पार का होगा ! आप भी चाहो तो जब तक मैं आवूं आप भी अपनै घर वालों को रस्ते लगा दो ! हो सकता है की गलती से आप हार गए तो फ़िर वो भी जिंदा रह कर क्या करेंगे ? बात पहलवान को भी जम गई ! और दोनों अपने २ घर पर घरवालो को ठिकाने लगाने चल पड़े !
इधर पहलवान जी ने अपने घरवालों का सफाया कर दिया ! और गुस्से में बैठ कर ताऊ का इंतजार करने लग गया ! थोडी देर बाद उसको ताऊ आता दिखाई पडा ! पर ये क्या ? ताऊ तो मूंछ कटा कर सफाचट मुंह करकै आ गया !
पहलवान ने पूछा - ये क्या हुवा ? तुमने मूंछे क्यो कटा दी ? ताऊ बोला- पहल वानजी ! अब क्या बताऊँ ? मेरी मूंछे मेरे परिवार से बड़ी थोड़ी ही सें ? जो मैं उनका सफाया कर देता ? अरे भाई मैंने मूंछ नीची क्या बल्की जड़ मूळ से ही कटवा दी ! मैं तो बोल कर ही गया था की सफाया करके आता हूँ ! घरवालो का नही तो मूँछो का सफाया कर आया ! आपको मुबारक हो आपकी ऊंची मूंछे ! आप ही रखो उंची मूंछे ! हम तो मूंछ ही नही रक्खेंगे तो क्या उंची और क्या नीची ? और पहलवान अब करता भी क्या ? परिवार का सफाया कर चुका था ! और ताऊ मूंछ कटवा चुका था ! तो ताऊ का भी क्या करता ! ताकत तैं बुद्धि घनी बड़ी हुया करै सै !
इब राम राम !