गाँव का पहलवान और ताऊ

गाँव में एक पहलवान जी रह्या करै थे ! और उनकी बड़ी बड़ी मूंछ , और घणे ऊँचे

तगडे डील डोल के थे पहलवान जी ! सारा गाम उनतैं घणा डरया करै था ! गाँव के किसी आदमी की मजाल की , पहलवान साहब को नमस्ते करे बगैर उनके सामने से निकल जाय ! बात आडै तक भी ठीक थी ! पर पहलवान जी का रुतबा इसतैं भी

किम्मै घणा ज्यादा था !

पहलवान जी का घर गाम के बीचों बीच पड्या करै था और रोज शाम को पहलवान

जी घर के बाहर खटिया डालकै बैठ जाया करै थे ! और वहाँ बैठ कै हुक्का पीया करै थे ! और पहलवान जी की चिलम भरण आल्ले भी घणे ही गाम के लुन्गाडे इक्कठ्ठे हो जाया करै थे ! एक बात और की पहलवान जी के सामने से कोई भी आदमी मूंछ उंची करके नही निकल सकता था ! या तो वो पहलवान जी के सामने से नही निकले ! या फ़िर अपनी मूंछ नीची करकै उनके घर के आगै तैं निकल ले ! इब घर था गाम के बीचों बीच ! और पहलवान जी भी बाहर बैठ के हुक्का गुड गुडाया करै थे ! सो कौन उनके ऊठनै का इंतजार करे ? गाम आले अपनी मूंछ नीची करकै निकल जाया करै थे ! अगर कोई मूंछ उंची करकै उनके सामने से निकल गया , ग़लती से भी , तो पहलवान साहब उसकी ऎसी हडडी पसली तोडया करै थे की वो तो क्या , उसके टाबर ( बच्चे ) भी मूंछ ही रखना छोड़ देवै थे !

और हडडी पसली भी क्या तोड़ते थे बिल्कुल ही पागल सांड की तरह करण लाग जावै था ! मतलब ये की अगर मूंछ उंची करके निकले की पहलवान साहब ने सांड पणा दिखाना ही है ! सो गाम आले उनके सामनै मूंछ नीची करकै ही निकलया करै थे !

पुरे गाम मैं पहलवान साहब का आतंक फैला हुवा था ! पर कोई पहलवान का के बिगाड़ सकै था ? इब थोडैदिनों बाद ताऊ का ट्रांसफर उसी गाम मैं हो गया ! ताऊ भी उस समय बिल्कुल गबरू जवाण था ! ताऊ भी घनी बड़ी बड़ी मुन्छ्याँ राख्या करै था , बिल्कुल नीबू मूंछ ! जब ताऊ पहली बार गाम मैं पहुंचा तो गाम आले बोले- ताऊ मूंछ कटवा ले ! ताऊ को इब घणा छोह (गुस्सा) आग्या ! ताऊ बोल्या - अरे बावली बूचो .. मैं क्यूँ कर मूंछ कटवावुन्गा ?

अब गाम आल्लो नै ताऊ को सारी बात बताई तो ताऊ भी किम्मै ज्यादा ही अकडू था !
सो गाम आल्लों को बोल्या - अरे गाम आलों .. थम चिंता ही मतन्या करो ! आज ही शाम को मैं इस पहलवान के घर के सामने से मूंछ उंची करकै ही नही बल्कि मूंछों पर ताव देता हुवा निकलूंगा ! अब शाम को वही हुवा जो होना था ! ताऊ पहलवान जी के घर के सामने से मूँछो पर ताव देता हुवा निकला ! और पहलवान जी हुक्का गुड गुडा रहे थे ! ताऊ को इस तरह निकलता देख पहलवान जी तो पागल सांड की तरह उठकर दौडे ! और जाकर ताऊ का कालर पकड़ कर उठा लिया !

पहलवान सांड की तरह भड़क कर बोला - अबे ओ ताऊ के बच्चे ! ये मेरा इलाका है ! यहाँ पर मूंछ रखनी है तो नीची करके रख और नही तो कटवा दे ! और ताऊ को गले से उठाकर कर जोर से पटक दिया ! इब ताऊ कै समझ मैं आ गया की ग़लत जगह हाथ डाल दिया ! ये पहलवान कोई छोटी मोटी चीज ना सै ! यो भोत मारैगा ! और इसतैं बचण का उपाय सिर्फ़ बुद्धि तैं ही हो सकै सै ! इब रोज इस गाम मैं रहणा और रोज इस पहलवान तैं कुण हाडड कुटवावैगा ?
सो ताऊ बोल्या - अरे पहलवान साब रुको ज़रा ! एक बात सुणो !

पहलवान सांड की तरह फुफकार बोला - बोल इब के मरना चाहवै सै ? ताऊ बोल्या- देखो पहलवान जी अब हम मूंछ तो नीची करकै रह नही सकते ! जैसे आपको मूंछों से प्यार सै उसी तरियां हम भी अपनी मूँछो तैं प्यार करै सें ! इब तो एक ही बात हो सकै सै की हम दोनों कुश्ती लड़ लेते हैं आर -पार की ! जो जिंदा बचेगा वो मूंछ रख लेगा ! बस मैं एक बार घर जाकर घर वालो का सफाया कर आता हूँ ! क्योंकि अगर आर-पार की लड़ाई में मैं हार गया तो उनका क्या होगा ! क्योंकि युद्ध आर-पार का होगा ! आप भी चाहो तो जब तक मैं आवूं आप भी अपनै घर वालों को रस्ते लगा दो ! हो सकता है की गलती से आप हार गए तो फ़िर वो भी जिंदा रह कर क्या करेंगे ? बात पहलवान को भी जम गई ! और दोनों अपने २ घर पर घरवालो को ठिकाने लगाने चल पड़े !

इधर पहलवान जी ने अपने घरवालों का सफाया कर दिया ! और गुस्से में बैठ कर ताऊ का इंतजार करने लग गया ! थोडी देर बाद उसको ताऊ आता दिखाई पडा ! पर ये क्या ? ताऊ तो मूंछ कटा कर सफाचट मुंह करकै आ गया !
पहलवान ने पूछा - ये क्या हुवा ? तुमने मूंछे क्यो कटा दी ? ताऊ बोला- पहल वानजी ! अब क्या बताऊँ ? मेरी मूंछे मेरे परिवार से बड़ी थोड़ी ही सें ? जो मैं उनका सफाया कर देता ? अरे भाई मैंने मूंछ नीची क्या बल्की जड़ मूळ से ही कटवा दी ! मैं तो बोल कर ही गया था की सफाया करके आता हूँ ! घरवालो का नही तो मूँछो का सफाया कर आया ! आपको मुबारक हो आपकी ऊंची मूंछे ! आप ही रखो उंची मूंछे ! हम तो मूंछ ही नही रक्खेंगे तो क्या उंची और क्या नीची ? और पहलवान अब करता भी क्या ? परिवार का सफाया कर चुका था ! और ताऊ मूंछ कटवा चुका था ! तो ताऊ का भी क्या करता ! ताकत तैं बुद्धि घनी बड़ी हुया करै सै !
इब राम राम !

तुम भी पुण्य कमालो गांव वालो !

म्हारै गाम का दर्जी मरग्या ! और सारे ही गाम आले वहाँ
पर इक्कठ्ठे हो गये अफ़्सोस प्रकट करण कै लिये !
दर्जी की घर आली को सारे गाम आले तसल्ली देण लाग रे थे !
और दर्जी की बीबी जोर जोर तैं रोये जावै थी ! इब ताऊ भी वहीं
पर बैठा था !

इब ताऊ ने उसको यानी दर्जी की बीबी को पूछा - इब रोना
धोना बंद करो और बच्चों को संभालो ! अब रोने से तेरा घर
आला तो वापस आवैगा कोनी ! तो दर्जिन बोली - अर ओ ताऊ !
रोवूं क्युं ना ! अरे वो मेरा खसम था ! कोई पराया थोडे था !
अब जब तू मरेगा तब तो मैं रोवूं कोनी ! और मेरा रोने का
कारण एक दुसरा भी है !

अब सारे ही वहां मौजूद लोग चौंके कि भई यो दुसरा कारण
कुण सा सै ? इब ताऊ ने पूछा - हां तो बताओ , तू क्युं कर
रौवै सै इतनी जोर तैं ? इब वो बोली - ताऊ मैं तो न्युं करके
रौवू सुं कि इबी मरने के तीन दिन पहले ही वो मोटर साइकिल
हिरोहोन्डा आली खरीद कै ल्याया था ! इब उस मोटर साइकल
नै कुण चलावैगा ? और फ़िर दहाड मार कै रोण लाग गी !
ताऊ बोल्या - अरे तैं भी के बावली बात करै सै ? अरे मैं
गाम का सरपंच सुं ! वो जो काम बाकी छोड ग्या सै ! उनको
मैं पूरा करुंगा ! तू चिंता ही मत कर ! मोटर साइकल मैं चलाउंगा !
और तेरे दर्जी की आत्मा की तसल्ली की खातर उसमै पेट्रोल
तू भरवा दिया करणा ! तेरे जी को भी तसल्ली रहवैगी !

इब वो तो फ़िर दहाड मारके रौवण लाग गी ! ताऊ ने फ़िर पूछी की -
इब के हुया ? इब तूं क्यु रौवै सै ?
वो बोली - अरे ताऊ इब के बताऊं ! मैने उसके लिये परसों ही देशी
घी के गौन्द के लडडु बनाए थे ! इब वो लडडु कुण खावैगा ?
ताऊ बोल्या - अरे तू बावली बात मत कर ! अरे जब मैं गाम का
सरपंच सुं तो ये सारे काम भी मैं ही करुंगा ! तू फ़िकर ना कर !
वो लडडु भी मैं ही खा ल्युंगा ! पर इब तू रौवै मना !

इबकै दर्जिन नै किम्मै जोर तैं रुक्का मारया ! और रौवण लाग गी !
ताऊ -- इब के होया ?
वो बोली - अरे ताऊ इब के बताऊं ? दर्जी तो मरग्या पर मेरे माथे
पै पचास हजार रुपये का कर्जा छोडग्या ! इब मैं न्युं करकै
रौवूं सुं कि वो कर्जा कौन चुकायेगा ?
इब ताऊ गांव वालों की तरफ़ मुंह करके बोला - अरे भई गांव
वालो ! सुनो ! क्या सारा काम सरपन्च के जिम्मै ही होवै सै ?
पहले के काम सब मैने निपटाने का वादा कर लिया है ! इब ये
जो आखिरि काम है ये तुम लोग करदो ! और भाई थोडा पुन्य
कमा लो ! अकेला ताऊ ही इतना पुन्य कमाए ये अच्छी बात ना सै !



ताऊ के बदले जुड़वां का दाह संस्कार

एक दिन घर कै बाहर बैठकै ताऊ जोर जोर तैं हन्सण लाग रया था !
लोग पुछण लागरे.. रे .. ताऊ तू क्यूँ हन्सण लागरया सै ?
ताऊ बोल्या - र भाइयो आज तो चाल्हे ही कट गे ! ताऊ और जोर तैं
हन्सण लाग ग्या !

लोगों ने फ़िर पूछी तो ताऊ बोल्या - र भाइयो सुणों ! मेरा एक जुड़वां
भाई था ! ( मैं योगीन्द्र मौदगिल जी की बात नही कर रहा हूँ ) और
हम दोनुआं की शक्ल बिल्कुल एक जैसी थी ! कोई फर्क नही कर सकै था !

अब होता ये था की स्कुल म्ह बदमासी वो करया करै और जूते खाण
का काम मेरे जिम्मै !

चोरी वो कर लिया करै था और सजा मन्नै भुगतनी पडै थी !
एक रोज थानेदार साहब नै गाली दे कै आ गया और सिपाही
आकै मन्नै पकड़ कै थाने म्ह ले गए और जो मेरा हाल वहाँ
किया सो क्या बताऊँ ? उन सिपाहियां नै मेरी शक्ल पै तेरा
( १३ ) बजा कै रख दिए ! बहुत मारा मेरे को ! बस नु समझ
ल्यो की मन्दिर के घंटे की तरह बजा दिया मेरे को !

फ़िर एक रोज वो कितै तैं दारु पीके आग्या और म्हारे बाबू नै
लट्ठ म्हारे ऊपर बजाये ! बाबू न भी हमको बहुत कूटा !

लोगो नै फेर पूछी -- अर् तो ताऊ तैं क्यूँ इतणा राजी होवे सै ?
जब तन्ने जूत्ते ही खाए सें तो इसमै राजी होण की के बात सै ?

ताऊ बोल्या -- अर् थम मेरी पूरी बात तो सुण ल्यो !

अब लोगो ने सोचा ये ताऊ पागल हो गया लागै ! और यूँ भी
ताऊ तो पागल ही हुया करै सै !

ताऊ बोल्या - भाई हद्द तो तब हो गई जब एक छोरी तैं प्रेम तो
मन्नै करया और उसनै लेकै फरार वो हो लिया ! पर परमात्मा के
घर भी अंधेर थोड़ी सै ? आख़िर देर सबेर उसको दंड तो मिलना ही
था !

इब ताऊ बोल्या - लोगो अब बस कल के दिन मेरा सारा हिसाब
उससे बराबर हो गया !

लोगो को अब उसकी कहानी में कुछ इंटरेस्ट आया तो पूछा की
-- ताऊ अब जल्दी बता की आख़िर हुवा क्या ?

ताऊ बोला -- भाई बात ये हुई की पहली बार वो मेरी जगह फंसा !
हुवा ये की कल मर तो मैं गया था ! और लोगो ने हमशक्ल समझ
कर उसको पकड़ लिया ! और मेरी जगह उसका दाहसंस्कार कर
दिया !

यदि किम्मै उंच नीच हो जाती ?


आजकल म्हारै छोटे भाई योगिन्द्र मौदगिल नै हरयानवी म्ह किस्से लिखणा
शुरु कर दिया सै ! तो भाइ इब ताऊ न भी यो तय कर लिया सै कि इब ताऊ
भी कविता करया करैगा ! और भाइ बात भी सही सै कि पडौस की दुकान आला
दुकानदार जो माल बेचैगा वो माल तो हमको भी रखना पडैगा ! नही त म्हारी
दुकान क्युं कर चालैगी ? तो इब सुनो ताऊ की ये कविता !



परसों रात की बात
अकस्मात
एक क्युट सी छोरी ने ताऊ को रोका
हम समझे पहचानने मे हो गया धोखा !
हम ताऊ-सुलभ लज्जा से
नजर झुकाए गुजर गये
छोरी के केश मारे गुस्से के बिखर गये
जोर जोर से चीखने चिल्लाने लगी-
गांव के जवान लोगो, आवो
इस शरीफ़जादे ताऊ से मुझको बचाओ
मैं पलको मे अवध की शाम
होठों पर बनारस की सुबह
बालों मे शबे-मालवा
और चेहरे पर बंगाल का जादू रखती हूं
फ़िर भी इस लफ़ंगे ताऊ ने मुझे नही छेडा
क्या मैं इसकी अम्मा लगती हुं ?
ताऊ बोल्यो अरे छोरी बात तो तू सांची कहवै सै
पर मन्नै या बतादे
यदि किम्मै उंच नीच हो जाती
तो ताई लठ्ठ लेकै
के थारै बाप के पास जाती ?

अच्छा भाई इब आज की राम राम !

यह कैसा युद्ध ?

दो योद्धा तलवार बाजी कर रहे थे ! और चूँकी योद्धा है और युद्ध करना
उनका पेशा है ! धर्म है ! सो बिना किसी वैमनस्य के युद्ध जारी है ! कोई भी
फैसला नही हो पाया काफी देर तक ! अचानक एक योद्धा जमीन पर गिरा !
दूसरा उसकी छाती पर चढ़ा हुवा, और तलवार हाथ में हैं , बस नीचे पड़े योद्धा
का गला काटने को तत्पर ! नीचे पड़े योद्धा ने अपनी छाती पर चढ़े योद्धा के
मुंह पर थूक दिया गुस्से में नीचे पड़े पड़े ही !

ऊपर उसकी छाती पर बैठा योद्धा तुंरत खडा हो गया ! अपने हाथ की तलवार
फेंक दी ! नीचे पडा योद्धा बड़ा आश्चर्य चकित हुवा ! आख़िर ये हुवा क्या ? क्यों
इसने मुझे जिंदा छोड़ दिया ? शायद मौत तो मुझे आ ही चुकी थी ! एक बार
उसकी इच्छा हुई की ऊपर बैठा योद्धा अब तलवार फेंक चुका है और यही
उचित मौका है , इसको निपटाने का !

तुंरत उसके मन में आया की अब इसको मारना तो बिल्कुल आसान है ! कोई
अड़चन ही नही है ! पर ये मर गया तो मेरी जिज्ञासा कौन शांत करेगा ?
अब उसने दुसरे योद्धा से पूछा - आप मुझे कृपा कर के ये बता दीजिये की मैं तो
मर ही चुका था ! आपकी तलवार से मेरी गर्दन को कटने से कोई ईश्वर भी नही
बचा सकता था ! फ़िर आपने मुझे क्यों बख्श दिया ? और आप यह भी अच्छी
तरह जानते हैं की एक मैं ही आपका प्रबल शत्रु हु , जिसने आपको यह राज्य
जीतने से रोका हुवा है ! अगर मैं मारा गया , इसका मतलब यह राज्य आपका
हुवा ! दुसरे योद्धा को शांत देख कर पहले ने कहा - मैं बहुत अधीर हो रहा हूँ !
कृपया मुझे जवाब दीजिये !

अब दुसरे योद्धा ने कहा - तुमने गुस्से में आकर मेरे मुंह पर थूक दिया और
तुम्हारी इस हरकत पर मुझे भी गुस्सा आ गया ! और मैं तुम्हारी गर्दन
काटा ही चाहता था की मुझे मेरे गुरु की शिक्षा याद आ गई की गुस्से में
कोई काम मत करना ! भले कितना ही जरुरी हो ! और खासकर जब की
तुम्हारा पेशा ही युद्ध करना हो ! और यदि तुम सेना नायक हो, या किसी
समूह के नायक या मुखिया हो तो और भी जरुरी हो जाता है ! बस मुझे
मेरे गुरु की शिक्षा सही समय पर याद आगई और मैं एक ग़लत काम को
करने से बच गया !

पहले योद्धा ने अपना खंजर उठाया और सामने वाले योद्धा के हाथ की
तरफ़ बढाते हुए नीचे बैठ गया और गर्दन झुकाते हुए बोला - लीजिये इस
खंजर को और तुंरत ही मेरी गर्दन काट दीजिये ! और मुझ पर उपकार
कीजिये ! आप जिस गुरुकुल में पढ़े हैं, मैं भी वहीं पढा हूँ और मुझे भी
वही शिक्षा दी गई थी जो आपको ! मैंने गुस्से में आकर थूक दिया और
गुरु की शिक्षा का अपमान किया ! और आपने ऐसे समय में गुरु की शिक्षा
याद रखी जब की आपके सामने अपने प्रबलतम शत्रु को ख़त्म करने का
सुनहरा मौका था ! और किसी को पता भी नही चलता की आपने यह
नियम विरुद्ध कार्य किया ! और एक विशाल साम्राज्य आपको बदले में
मिलता !

दूसरा योद्धा बोला - आप जो कह रहे हैं वह भौतिक स्तर पर बिल्कुल सत्य
है ! अब हम दुनिया में आए हैं तो हम किसी ना किसी पेशे में रहेंगे ही ! और
कोई उपाय नही है ! लेकिन हमारी आत्मा तो शुद्ध है ! अगर जीवन में हम
नित्य जीवन में भी आत्मा की बात सुन ले तो सब शिक्षा सही समय पर
याद आ जाती है ! और उसका उपयोग भी करवा देती है ! इसलिए अब आप
तैयार हो जाइए , मेरा गुस्सा शांत होने को है और अब हमें फ़िर से युद्ध शुरू
करना है ! और दुसरे योद्धा ने अपनी तलवार उठाली !


कहानी आगे कहती है की पहला योद्धा दुसरे योद्धा के पांवो में गिर पडा और
बोला - मैं आपसे युद्ध नही कर सकता ! आपकी और मेरी कोई बराबरी नही है !
मैं आपसे युद्ध अब से कुछ मिनट पूर्व हार चुका हूँ ! अब से आप मेरे गुरु हैं !
और कहते हैं दोनों गहरे मित्र बन गए ! यहाँ तो बात साम्राज्य की थी और
हम तो अपनी बात से असहमत होने वाले पर बस चले तो तलवार चला दे !


ताऊ इन दोनों योद्धाओं को प्रणाम करता है और हमेशा ही ताऊ बने रहने
की कसम लेता है ! भाई अपने को तो ताऊ गिरी ही रास आती है ! हमारे
गुरु की शिक्षा भी यही कहती है ! खुश रहो और दुसरे को खुश रहने दो !
इब राम राम !

उड़न तश्तरी पर कब्जे की कोशीश



अभी परसों की ही बात है ! अरे बिरादर की दुकान पर गुरुदेव समीर जी के नाम से किसी ने
छदम टिपणी की ! उपरोक्त छदम टिपणी की भाषा देख कर हमको भी कुछ अटपटा तो लगा !
पर हमने ज्यादा ध्यान नही दिया ! हमने सोचा शायद पू. गुरुमाता के स्वास्थ्य की वजह
से समय कम रहा होगा , इसलिये ऐसा लिख कर चले गये होंगे ! और साहब हमको
उस दिन कोई मिला नही सो हम आराम से वहां बैठे टिपिया रहे थे ! क्योंकि और कोई नई
पोस्ट जान पहचान वाले की दिखी नही और नई जगह मुंह मारने की अपनी आदत नही है !
सो सोचा आज इस बिरादर की बिरादरी ही देख लेते हैं कि अपने को झेल पाता है या नही !
फ़िर पता नही कहां से गुरुदेव को खबर लगी और आकर सकारात्मक रुप से उपरोक्त टिपणी का
अपनी आदत अनुसार सौम्य रुप से खन्डन भी कर गये !

अब पता नही गुरुजी को क्या गलत-फ़ेमिली.. अरे.. नही भाई... गलत फ़हमी हो गई कि गुरुजी ने
तुरन्त हमारे नाम के वारन्ट जारी करते हुये हाजिर होने के आदेश दे दिये ! अब हम क्या करते
सब काम काज छोड कर दरबार मे हाजिर हो गये ! वहां हमारे हाजिर होते ही पहले तो हमको
दो चार जबलपुरिया सुनाई और बोले - क्यों ताऊ ? तुम उस जगह मौजूद थे ! तुम वहां पर एक
मील भर की पोस्ट से भी बडी टिपणी लिख रहे थे ! वो कौन था ? जिसने मेरे नाम से छदम टीपणी
की ? तुमने उसको जरुर देखा होगा ? बताओ वो कौन था ? अब भाई हम क्या बोलते ? और सच मे
हमको कुछ मालूम भी नही था ! सो हम मना कर दिये कि हम कुछ नही जानते !

अब गुरु बोले - देखो ताऊ , तुम उसी क्षेत्र मे घूम रहे थे तो यह तो हो नही सकता कि तुमने उसको
देखा ही नही हो ? कहीं ऐसा तो नही की तुम मेरे साथ मक्कारी कर रहे हो ? क्योंकी मैने सुना है तुम
हरयाणवी पक्के आयाराम गयाराम होते हो ?

हम बोले - गुरुदेव आपकी बातों का जवाब देने की हमारी हैसियत तो नही है पर हम अपनी
सफ़ाई जरुर देना चाहेंगे ! आप हमको मक्कार की गाली तो दो मत ! हां अगर आपकी प्रेक्टीस
छूट गई है और जबलपुरिया जबान की प्रेक्टिस करनी है तो आप हमको चाहे जितनी जबलपुरिया
बोल लो ! हमको उससे खुशी होती है ! बुरा भी नही लगता ! और हरयाणवी का मतलब
आयाराम गयाराम तो जरुर होता है पर हम जब तक जिसके पाले मे रहते हैं तब तक
उसी के पाले मे रहते हैं ! आसानी से पाला नही बदलते ! और गुरुओं का पाला कभी नही छोडते !
यह अलग बात है कि गुरु ही हमको छोड जाये ! आप तो चेले को आदेश करिये कि समस्या क्या है
और अब किसकी लंका जलानी है ? हम तो आपके हनुमान हैं ! हमारा तो परमानेन्ट यही धन्धा है !

अब गुरु थोडा यकिन करके बोले - जाओ वत्स ! और तुरन्त पता लगा कर बताओ कि ये कौन उडन-
तश्तरी आई है जो हमारे साम्राज्य मे सेन्धमारी करना चाहती है ? हम बडे अधीर हो रहे हैं !

अब हम वहां से निकल कर जांच पडताल मे लग गये और पाया कि ये वाकई उन उडन तश्तरियों
का समूह था जिनको कई वैज्ञानिकों ने भी देखा था ! और उनमे से एक को ब्लाग जगत पसन्द
आ गया और उसने शायद अपने ब्लाग का नाम ही उडनतश्तरी रख लिया हो ! और उडन तश्तरी
की तरह टिपणी कर दी हो ! अब ताऊ ने जो जांच रिपोर्ट गुरुदेव को सौपीं है उसकी एक कापी
आप लोगो के लिये हमने स्केन करके लगा दी है ! आप भी देख ले और तय करे कि क्या
भविश्य मे ऐसा होना असम्भव होगा ?


हिन्दी दिवस पर ताऊ उवाच

हमको गर्व है अपनी मातृ भाषा पर ! हमारे देश मे दिन की शुरुआत ही भजन आरती से होती है ! हमारी सांसो मे हिन्दी महकती है ! हमारे प्राण हिन्दी मे बसते हैं ! आज चारो तरफ़ हिन्दी दिवस की बधाईयों का ढेर लगा है ! ताऊ के मन मे अचानक एक सवाल ऊठा कि आखिर हमको रोज क्यूं
ये हिन्दी पखवाडे मनाने पड रहे हैं ? आखिर हम हिन्दी को कब महसुस कर पायेंगे ? कुछ गिने चुने लोगो की सनक मे आखिर हम कब तक अपने आपको उपेक्षित महसूस करते रहेंगे ! आज इतने साल की आजादी के बाद
भी हमको हिन्दी को बढावा देने के प्रयास करना पड रहे हैं ? क्या ये हमारे लिये गौरव की बात है जब हम कहते हैं कि हिन्दी की सेवा करो ?

आज इन सब बातो की वजह से ताऊ का दिमाग बिल्कुल ही खराब था ! ताई से भी झगडा चल ही रहा था ! आज कल ब्लाग जगत मे नया फ़ैशन चल पडा है कि इसके कपडे फ़ाडो उसको पहनावो ! कोई किसी की टांग खींच रहा है ! कोई भाई तो किसी किसी की गर्दन ही खींच रहा है ! कोई किसी...खैर जब हमने अपनी बुद्धि दौडाई तो लगा कि ये तो ठीक हो रहा है !

अरे भाई जरा सोच के देखो ये सब हिन्दी की सेवा ही तो हो रही है ! आखिर कार सब एक दुसरे के कपडे हिन्दी मे ही तो फ़ाड रहे हैं ! कोई अन्ग्रेजी मे तो फ़ाड नही रहे हैं ! बहुत सकारात्मक बात है यह तो ! बिल्कुल साहब
आप तो चालू रखिये ! हिन्दी की सेवा का इससे बेहतर तरिका नही हो सकता ! क्योन्की हिन्दी पखवाडा मना कर भुला दिया जा सकता है, पर एक दुसरे के कपडे तो हम हमेशा फ़ाडते रह सकते है !

आज हमारा बन्दर कई महिनों बाद आया था ! वो तिन्छाफ़ाल के जंगलो मे किसी कालेज मे पढता है ! अब पढता है या बंदरियों के पिछे घुमता है यह तो हमकॊ नही मालुम पर आज आकर बोला - ताऊ ! आप आज हमारी कालेज
मे चलो ! मैं लेने ही आया हूं आपको ! मैने कहा - यार बंदर , मेरा तुम लोगो के बीच क्या काम ?

बंदर बोला - ताऊ बात ये है कि हमारे कालेज मे भी आज हिन्दी दिवस मनाने की सनक किसी को सुझ गई है ! और समस्या यह है कि अब हिन्दी मे भाषण देना किसी को आता नही है ! और नेता आज के लिये सारे बुक हुये पडे हैं ! तो आप ही चल कर दो शब्द हिन्दी मे बोल दो ! और आज रविवार भी है ! आपको हम वापस भी डिनर करवा कर छोड जायेन्गे ! और हुवा तो प्रिन्सिपल से कह कर एक लिफ़ाफ़े का जोगाड भी करा देंगे !

सो साहब लिफ़ाफ़े के नाम पर हम राजी हो गये ! यहां कौन ब्लागिन्ग मे, हिन्दी सेवा का पैसा मिलता है ? अगर गूगल बाबा कुछ देते भी होंगे तो वो हम तक पहुंच नही पायेगा ! अब हम बंदर के कालेज पहुंच गये !

वहां हमारा परिचय हिन्दी के मुर्धन्य विद्वान बता कर कराया गया ! जब्की हमको मुर्ख और मुर्धन्य का भी पता नही ! वहां बहुत सारे बंदर और
बंदरियां अजीब २ कपडों मे घूम रहे थे ! हमको विद्वान समझ कर ५/७ बंदर बंदरियाओ ने घेर लिया और सवाल जवाब करने लगे ! इतने मे एक बंदरियां जो हिरोइन टाइप दिख रही थी ! आकर बोली- हे ताऊ ! आई मीन
जेन्टल्मैन .. यु आर लूकिन्ग गुड.. व्हाट अ .. ड्रेसिन्ग सैन्स ...

इतने मे एक दुसरी बंदरी आई और बोली-- सर आई वांट टू आस्क अ क्वश्चन .

मैने उसकी बात काटते हुये कहा - पूछो पर हिन्दी मे ..

इतने मे एक बंदर बोल पडा - हे टाऊ .. एक्चुली वी डोन्ट वान्ट टू लर्न हिन्डी ..
य़ू नो ? गिव यौर लेक्चर... एंड डोन्ट डिस्टर्ब अस ! और वहां से दो तीन बंदरीयो के साथ कैन्टीन की तरफ़ चला गया !

आज हिन्दी इन नौनिहालो के लिये सिर्फ़ हिन्दी दिवस होकर रह गई है ! आखिर कब हम समझेंगे अपनी भाषा का दर्द ? कोई विदेश से आता है उसको हम सर आंखों पर बिठाते हैं ! अपनो को गरियाते हैं ! हम मे आत्म सम्मान का होना जरुरी है और वो तभी होगा जब हम अपनी भाषा को सम्मान देना सीख जायेंगे !

गंभीरतम बात हो, मजाक हो अथवा गाली देना हो ! आप सोच कर देखिये क्या आप हिन्दी के अलावा किसी अन्य भाषा मे उस शिद्दत से अपने आपको व्यक्त कर सकते हैं ! यहां मैं चिठ्ठा चर्चा का जिक्र करना चाहुंगा ! क्या शुक्ल जी, तरुन जी, कुश जी , अथवा समीर जी चिठ्ठा चर्चा मे जो चुटकियां लेते हैं वो अन्गरेजी मे सम्भव है ? अगर चिठ्ठा चर्चा
अन्ग्रेजी मे की जाये तो क्या ऐसे २ टाइटल फ़ुर्सतिया जी आप दे पाओगे ?

शायद नही ! तो हम क्यूं अपनी भाषा से दूर भाग रहे हैं ? और दिवस मना रहे हैं ! हम रोज रोटी खाते हैं उसी तरह रोज हिन्दी का उपयोग करे तो इन दिवस पखवाडो की जरुरत ही नही पडेगी ! नीचे बाक्स में खूंटे पै एक पुरानी याद जेहन मे हिन्दी के नाम पर आगई ! वो लिख रहा हुं !

मर्यादा वादी कृपया सकारात्मक रुप मे ग्रहण करें !



इब खूंटे पै पढो:-

मरहूम अमजद खान साहब (शोले वाले गब्बर सिन्ह ) का जिक्र करना चाहुंगा !

एक दिन किसी पिक्चर की शूटिन्ग मे फ़ुर्सत के क्षणो मे हमको पकड लिया ! हम उनकी उस पिक्चर के डिस्ट्रिब्युटर थे ! और कहने लगे, यार रामपुरिया ...तेरे मजे हैं ! तू भी जिन्दगी के असली आनन्द लेता है !

मैने कहा -- सर जी क्या हो गया ? आज कोई मिला नही क्या ?

वो बोले - नही यार मुझे तो तेरी भाषा सुन के मजा आजाता है ! पता नही तू जब गालियां देता है तो मुझे हंसी आती है !

( उन दिनो मैं किसी भी बात पर मेरे मुंह से गालियां फ़टाफ़ट निकल जाया करती थी ! और मैं इस वजह से बदनाम भी था इस मामले मे ! और हमारे अन्चल मे तो आज भी आदमी दस बीस गाली, दिन भर मे खुद को और
३०/४० सामने वाले को नही दे ले ! तब तक खाया पीया हजम ही नही होता ! वैसे आप चिंता नही करें अब मैं सुधर गया हूं.:)..)

एक हमको देखो ! साला अन्ग्रेजी मे गाली देता है .. ईडियट, ब्लडी..बास्टर्ड.. ! कुछ मजा ही नही आता ! और एक तुमको देखो ! गाली भी देते हो तो लगता है कि हां चलो २० / २५ किलो की कोई चीज दी है ! अन्ग्रेजी की गालियां दस बीस ग्राम की ! वो कहने लगे यार, गालियां देने का मजा तो हिन्दी मे ही है !


मेरी समझ से अपने आपको अभिव्यक्त करने का सशक्त माध्यम तो हिन्दी ही है ! पर अन्ग्रेजी के शौकीन इसको सबके सामने कबूल नही करते ! आप एक प्रयोग कर के देंखे - किन्ही अन्ग्रेजी वाले साहब को दो चार जबलपुरी या इन्दोरी गालियां बक दे ! फ़िर देखें वो आपको अन्ग्रेजी मे जवाब देते हैं या हिन्दी मे !

( आप अपनी जिम्मेवारी पर ही ये प्रयोग करें ! किसी भी अनहोनी के लिये हम जिम्मेवार नही होंगे ! :) )

ऊंटनी कै दूध आले ३ ही थन होवैं सैं !


रयाणवी लोगो के जवाब में भी एक प्रश्न् छुपा होता है और यही इस भाषा की खूबसूरती है !
ताऊ आज कल भुट्टे बेच रहा है ! एक ग्राहक को बाक़ी रुपये वापस किए तो एक दस का
नोट कुछ सड़ा गला था ! ग्राहक ने कहा - यह नोट बदल दे ताऊ ! अब ताऊ ने नोट बदल
कर देते हुए पूछा - क्यों इस नोट की.. आँख दुखणी री सै के ?


ताऊ किसी काम से शहर गया हुवा था ! वापसी मे बस मे काफ़ी भीड भाड थी !
ताऊ किसी तरह जबरदस्ती करता हुवा अपने लठ्ठ को लेके बस मे चढ तो लिया !
पर बैठण की जगह मिली कोनी ! ताऊ का माथा दिन भर की परेशानी से कुछ गर्म
तो था ही सो चुप चाप बस का डन्डा पकड कै खडा हो गया !

असल मे ताऊ शहर मे अपने लडके की स्कूल मे गया था ! क्योन्की ताऊ के छौरै नै
स्कूल म मास्टरनीजी तै किम्मै उटपटांग हरकत कर दी थी ! सो मास्टरनीजी ताऊ कै
छोरै पै किम्मै ज्यादा ही भडक ली थी और उस बालक नै स्कूल तैं निकालण की
जुगत भिडावै थी ! और इसीलिये ताऊ को स्कूल मे बुलवाया था ! इब ताऊ भी ताऊ
ही था ! वो भी जाकै मास्टरनी जी तैं भिड लिया !

मास्टरनी जी ने ताऊ को अन्ग्रेजी मे कुछ गालियां दे दी ! वो तो गनीमत की ताऊ का
अन्ग्रेजी से कुछ उधार लेना बाकी नही था सो ताऊ कुछ समझा नही ! और ताऊ को
मुर्ख समझ कै मास्टरनी जी किम्मै ज्यादा ही चटर पटर करण लाग री थी !
अब आप तो जानते ही हैं कि अन्ग्रेजी बोलनै वाले को कोई गांव का ताऊ मिल जाये
तो अपनी अन्ग्रेजी का सारा ज्ञान उसी पर उंडेल देते हैं !

तब ताऊ नै भी अपणी देशी जबाण मे किम्मै उलटा सीधा बोल दिया !
तब मास्टरनी जी चिल्लाई - सिक्युरिटी..सिक्युरिटि... असल मै वो सिक्युरिटी वाले को
बुलवा कर ताऊ को बाहर निकलवाना चाहती थी ! जब वो सिक्युरिटी..सिक्युरिटि...
चिल्लावण लाग री थी तब ताऊ नु समझ्या के यो बोल री सै .. सेक रोटी.. सेक रोटी..!
इब ताऊ का तो पारा चढ लिया और ताऊ बोला - अर मास्टरनी मै क्यूं रोटी सेकूं ?
रोटी सेक तू ! हम तो मर्द आदमी सैं ! रोटी नी सेक्या करते ! और मास्टरनी जी नै
ताऊ को बाहर का रास्ता दिखा दिया ! और ताऊ किसी तरह भूखा प्यासा घर आ गया !

घर लौट कर ताऊ की इच्छा हलवा खावण की हो री थी ! और ताई किम्मै
बणा कै देण आली नही थी ! सो ताऊ नै जोगाड लगाते हुये कहा -
अर भागवान सुण .. जरा ! आज त हल्वा बणा तू !
ताई बोली - क्यूं के काम करकै आया सै ? जो तेरे लिये हलवा बणाऊं ?

ताऊ बोल्या - अर मैं रामलाल तैं शर्त जीत कै आया सूं !
ताई बोली - कुण सी शर्त जीती सै तन्नै ! जरा हमनै भी बता !
ताऊ - मैं बोल्या, ऊंटनी कै दुध आले थन होवैं सै ! रामलाल बोल्या
- कि नही होवैं सै !
ताई - तो तू क्यूं कर जीत गया ? सारी दुनियां जानै सै कि ऊंटनी कै ४
ही थण होवैं सै !
ताऊ बोल्या - नही ३ होवैं सै ! तू मान जा !
ताई - मैं मान ही नही सकती ! झूंठी बात किस तरियां मानी ज्यागी !
ताऊ नै पूछी - इब भी सोच ले ! मानैगी या नही ?
ताई बोली - जा जा फ़ालतू बात ना करया करै ?
इब ताऊ नै किम्मै छोह (गुस्सा) सा आग्या घणे दिनों मै ! और राज भाटियाजी
नै ताऊ को कल ही दो लठ्ठ भेजे थे जरमनी तैं ! सो ताऊ नै तो उठा कै
ताई कै मार दिये कई लठ्ठ ! और ताई तो आज ताऊ का रूप देख कै रोती रोती
एक तरफ़ मै बैठगी ! और आज ताऊ कै हाथ मे मेड इन जर्मनी लठ्ठ देखकै
बोली -- हां बिल्कुळ मानगी थारी बात ! ऊंटनी कै दूध आले ही थन होवैं सैं !
ताऊ बोल्या - सही कह री सै ! रामलाल भी इसी तरह लट्ठ खाकै ही मान्या था !


आप जो बॉक्स देख रहे हैं उसकी जानकारी मुझे डा. अनुराग जी ने
उपलब्ध करवाई है , भाई अभिषेक जी ओझा की मेल द्वारा ! और इस ब्लॉग
का नया डिजाइन मुझे भरत मुदगल (stockmode.com/tech) ने सुझाया !
मैं, आप तीनो महानुभावों का आभारी हूँ !

गंजे मास्टर ने ताऊ को मुर्गा बनाया !

आज यूं ही बैठे बैठे ताऊ को एक स्कूल के जमाने का किस्सा याद आगया !
थम भी सुण ल्यो ! म्हारै स्कूल म्ह एक मास्टर जी थे ! मास्टर का नाम था
किशन लाल ! और भई म्हारै मास्टर जी थे एक दम सफ़ाचट यानी बिल्कुल
गन्जे ! और हम भी मास्टर जी को उनके पीछे से गन्जे मास्टर या गन्जे सर ही
बुलाया करै थे !


और मास्टर जी की घर आली को सारे गाम के लोग मास्टरनी कह कै बुलाया
करते थे ! और इब थमनै के बताऊं ? यो मास्टरनी जी थी एक आंख तैं काणी !
मास्टर जी का रहण का कमरा भी वहीं स्कूल म्ह ही था ! इब एक बार नु हुया कि
सर्दी के दिन थे ! मास्टर जी ने बाहर धूप म्ह ही क्लास लगा रखी थी ! और भई
वो जनवरी फ़रवरी पढाण लाग रे थे !




इब मास्टर जी रामजीडा लन्गड तैं पुछण लागे - अर लन्गड नु बता की अक्टुबर म्ह
कितने दिन हुया करैं ?
लन्गड बोल्या - मास्टर जी १३ दिन हुया करैं !
गन्जा मास्टर बोल्या - अर क्युं कर ?
लन्गड बोल्या - अजी मास्टर जी , इस महिने म्ह १८ दिन तो दिवाली
और दशहरे की छुट्टी ही पड ज्यावै सैं ! तो पिटने के दिन तो १३ ही हुये ना !

इब मास्टर जी ने लन्गड को २ रैपटे बजाये और सब लडकों को
ये कविता , अन्ग्रेजी के महिनों के दिन, याद करने को दे दी !
और इस कविता को याद करने मे मास्टर नै हमको कितने ही
बार तो मुर्गा बणाया और भई रैपटे कितने बजाये होंगे ?
इसका हिसाब ही कोनी ! म्हारी हड्डी आज भी गन्जे मास्टर जी
की याद आते ही कडकडाने लगती हैं ! और न्युं समझ ल्यो कि
हमको गन्जे आदमी से ही चिढ हो गई ! जो आज तक नही गई !
याने अपने आप से भी चिढ हो गई !




अप्रैल सितम्बर नवम्बर जूना,
पन्द्रह दिन के कहिये दूना,
और मास इकतीसा मानूं,
केवल फ़रवरी अठ्ठाइसा जानू,
चौथे साल लिपियर जब आवे,
दिन उन्तीस फ़रवरी कहावै,
भाग ४ का जिसमै जाता,
लिपियर सन वही कहलाता !



इब हम बालक तो ये हाड्ड तुडवाण आली कविता के रट्टे मारण लाग गे !
और मास्टर जी इबी आया हुया अखबार उठाकै बांचण लाग गे !
इतनी ही देर म्ह काणी मास्टरनी चाय ले के आगी और गन्जे मास्टर को
चाय दे के बोली - मास्टर जी कोई नई खबर आई सै के अखबार म्ह !
इब गन्जा मास्टर उसकी काणी आंख की तरफ़ देखता हुआ बोला -
हां, काणीपुर मे आग लाग गी सै !
काणी मास्टरनी भी हाजिर जवाब थी ,
मास्टर के गन्जे सर की तरफ़ देखते हुये तुरन्त जवाब दिया -
फ़ेर तो गन्ज के गन्ज जल गये होंगे !
हम बालक मन ही मन काणी मास्टरनी की बात समझ कै खूब हंसे
और गंजे मास्टर जी खिसिया कर ऊठ कर चले गये !
अच्छा भाई इब ताऊ की राम राम !

ताऊ ने भुट्टे बेचने का ठेला लगाया !

लगता है कि आज कल ताऊ के दिन ही खराब चल रहे हैं ! अभी अभी ताऊ के ब्लाग की हड्डी पसली दोस्तों ने जोड जाड कर ठीक किया था ! और अभी नई आफ़त आ गई ! ये तिवारी साहब ने ताऊ को नया धन्धा पकडवा दिया था ! और धन्धा भी अच्छा चल निकला था !

और इस धन्धे मे गजब का मुनाफ़ा देख कर अब तिवारी साहब ने अपनी जमी जमाई ओटोपार्ट्स की दुकान बंद करकै ताऊ के साथ इस धन्धे
मे साझेदारी कर ली थी !  तिवारी साहब ने इस धन्धे के नये नये गुर भी  ताऊ को सिखा दिये थे !

तिवारी साहब के कहने से ताऊ वहां पर एक फ़कीर के वेश मे बैठता था ! और उसका कटोरा देखते देखते ही नोटो से लबा लब भर जाता था ! ताऊ तो वहां फ़कीर बनकै लोगो दुआ दिया करै था ! और तिवारी साहब वहीं पास मे खडा होकर कटोरे पै नजर रखता था ! जैसे ही कटोरे मे नोटों की बाढ आती , तिवारी साहब आकै चुप चाप कटोरा खाली करके ले जाता और पीछे बैठ कर गिनना शुरु कर देता !

अब पता नही किसको इस बात से जलन मची कि उसने जाकर यह बात ताई को बता दी कि ताऊ तो आज कल दारुखाने के बाहर कटोरा लेके बैठता है ! और वहां भीख मांगने का काम करता है ! और साथ मे ये भी बता दिया की ये धन्धा तिवारी साहब ने सिखाया है !  इसी बात पर ताई का तो माथा सटक गया !  ताई ने फ़टाफ़ट
अपना "मेड इन जरमनी" लठ्ठ उठाया और पहुंच ली , वो तो, दारुखाने के बाहर !

अब वहां ताऊ तो दाढी मुंछ लगाकै बाबाजी बना किसी का हाथ देख रहा था ! सो ताऊ को तो उसने पहचाना नही और वहीं पीछे बैठ कर तिवारी साहब गिन रहे थे कटोरे के नोट ! ताई ने इधर उधर नजर दौडाई तो तिवारी साहब दिख गये ! ताई नै जाकै सीधे ही दो लठ्ठ बजाये तिवारी साहब कै माथे पे और बोली - क्युं रे तिवारी ? ये कुणसा धन्धा शुरु करया सै थमनै ? मेहनत से कमाकै नहीं खा सकते थम ? और बता वो नाशपीटा ताऊ कित सै ? ताऊ तो ताई को देख कर पहले ही वहां से उठ कर भाज लिया था ! और फ़ंस गया बिचारा तिवारी साहब !

ताई नै फ़िर ताऊ के घर मे आने के बाद जो पूजा पाठ और आरती करी सै वो थम ताऊ तैं ही पूछ लियो ! शायद ताऊ इब इस जनम मै यो भीख मांगण आला धन्धा तो नही करैगा ! ताई नै गाम मै बाबू धोरै खबर भिजवाई कि तेरा सपूत आज कल इसे काम करण लाग रया सै ! फ़िर बाबू और ताई नै समझा बुझा कै ताऊ को एक बैंक के बाहर मुंगफ़ली और मक्का के भुट्टे सेक कर बेचने का ठेला लगवा दिया ! और ताऊ को हिदायत दे दी की इस तिवारी से दोस्ती नही रखना ! ये अच्छा आदमी नही दिखता !

ताऊ की दुकान दारी वहां भी चल निकली ! एक दिन शाम कै समय तिवारी साहब ताऊ कै धोरै आकै बोल्या - अरे ताऊ राम राम ! इब ताऊ चुप चाप ! तिवारी साहब फ़िर बोल्या - ताऊ जरा सौ का नोट उधार दे दे ! मैं बटुआ घर भूल आया और इब मेरा पीने का समय हो गया है ! मैं कल तेरे को लौटा दूंगा !

ताऊ बोला - तिवारी साहब , बात ये है कि मेरा इन बैंक वालो से समझोता हो चुका है कि ये बैंक वाले मुंगफ़ली नही बेचेंगे और मैं लोन नही दुंगा ! इसलिये मैं आपको लोन नही दे सकता !

तिवारी साहब समझ गये की ताऊ लठ्ठ खा खा कै किम्मै हुंशियार होग्या दिखै ! सो ताऊ को पटाने की कोशीश करण लाग ग्या !

जब घणी देर होगी तो ताऊ बोल्या - अर तिवारी साहब मैं थमनै एक धेल्ला भी नही दूंगा ! तुम चाहे जितनी जोगाड लगालो ! मेरे बाबू ने मेरे को टके (रुपिये ) का महत्व समझा दिया है ! और मैं समझ भी गया हूं !

तिवारी साहब ने पूछा - ताऊ वो कौन सा गुरु मंत्र थारै बाबू नै दिया सै ? जरा हमनै भी बतादे !

इब ताऊ बोल्या - सुण ले भई तिवारी साहब ! म्हारा बाबू बोल्या --

टका धर्म: टका कर्म: टका ही परमं तपं
यस्य ज्ञान टका नास्ति हा: टका टक टकायते


अर्थात

टका ही धर्म, टका ही कर्म, टका ही परम तप है !
टका रूपी ज्ञान नही है, तो कुछ भी नही है !
सिर्फ़ टकाटक देखते रहो !


इसलिये आजकल जेब मे टका ( रुपिया ) होना आवश्यक है ! तो तिवारी साहब इब राम राम !

ताऊ के ब्लॉग की टूटी हड्डी फ़िर जुडी

प्रिय ब्लॉगर मित्रों , कुछ दिनों से मेरे ब्लॉग पर एक तकनीकी समस्या से जूझ रहा था ! फ़िर कल मैंने बहुत परेशान होकर एक अपील ब्लॉगर बंधुओं से की थी ! जिसके जवाब में मैं यह लिख रहा हूँ !
एक बात तो तय है की ये ब्लॉग जगत वाकई एक अलग ही दुनिया है ! यहाँ आप निजी रूप से भले एक दुसरे को कम ही जानते होंगे ! पर यहाँ एकांकी पन नही है ! और शायद यह इस विधा के उज्जवल भविष्य की और एक इशारा है !


मैं तो सोच रहा था की इस पर शायद ही कोई ध्यान देगा ! और मैं पिछले एक महीने से इतना परेशान था की पोस्ट पब्लिश करने में ३ - ३ घंटे का समय लग जाता था ! औरमैं सोच रहा था की ऐसी ब्लागरी भी क्या काम की ! मुझे बड़ा आश्चर्य हुवा की मेरी तीन लाइनों की अपील के एवज में तुंरत ही डा. अनुराग जी की सलाह आगइ की ये कर लीजिये ! लगे हाथ सतीश सक्सेना साहब की सलाह आगइ ! और माननीया मनविंदर जी भिम्बर ने भी दिलासा दे दी !


और अजब आश्चर्य हुवा की जिन से मेरा आज के पहले किसी तरह का कोई परिचय नही था ! उन माननीया रचना जी ने काफी सलाह दी ! और पूरी कोशीश की इस समस्या को हल करने में ! पर ताऊ का गम दूर नही हुवा !


अब आप जानते ही हैं की जब गम सताता है तो दुःख: की घडी में मित्र ही काम आते हैं ! अब चूँकी रात काफी होचुकी थी सो सोने का विचार कर ही रहा था की भाई योगिंदर मौदगिल जी प्रकट हो गए ! और उन्होंने एक से बढ़ कर एक सलाह दे डाली ! उनकी सलाहे आप उस पोस्ट की टिपणी कालम में पढ़ सकते हैं !


और एक बात तो बताना ही भूल गया की इस गम को सेयर करने के लिए महानविभूति श्री तिवारी साहब तो रात ८ बजे से हमारे पास ही बैठे थे ! आख़िर इतने बड़े दुःख की घडी में ताऊ को तिवारी साहब अकेला थोड़ी छोड़ सकते हैं ? अब यहाँ बैठ कर तिवारी साहब ने जो हमारी छाती पर मूंग दले हैं वो तो हम ही जानते हैं ! क्योंकि तिवारी महाराज का शाम का साथ अपने को नही जमता ! पर क्या करे ? गम में तो लोग बिना बुलाए चले आते हैं ! और यहाँ तो इनको निमंत्रण था ! आकरदो चार खरी खोटी और सुनाई की आपकी दूकान पर इतनी परेशानी चल रही थी तो बताना चाहिए था ना ? तिवारी साहब मर थोड़ी गए थे ? अरे हमको तो आपकीबीमारी का पता आपकी पोस्ट से चला ? तो आ गए आपके गम को बांटने ! अब तिवारी साहब का गम बांटने का तरीका तो राज भाटिया जी और मौदगिल जी कोअच्छी तरह मालुम है !


और रात १२ बजे प्रकट हुए आदरणीय भाटिया साहब ! इब एक हरयाणवी से एक हरयाणवी को क्या सलाह मिल सकती है ? भैंस, लट्ठ, और अनाडी नुस्खे !आपका भी ब्लॉग कभी भगवान ना करे परेशानी में आए , उसके पहले ही इनकी सलाह रूपी टिपणी का टीका लगावाले ! यह बेहतर रहेगा ! बड़ी मुश्किल से तिवारी महाराज को घर से बाहर निकाल कर उनकी गाडी में पटक कर आकर सो गए !


सुबह उठते पहले ही तरुण भाई साहब की सलाह मिली ! मैं बड़ा खुश था की अब तो काम हो गया ! पर उनकी जो सलाह थी वो ऎसी थी की उसमे हम कुछ भी नही कर सकते थे ! तकनीकी रूप से हम बिल्कुल अंगूठा छाप हैं ! सो सोचा की आफिस जाकरकिसी को पकड़ कर तरुण जी से सलाह लेंगे !


तरुण भाई की सलाह के बाद तुंरत परम मित्र पित्सबर्गिया एक साथ तीन सलाहले के आगये ! उनको भी कोशिश की पर काम नही बना ! मित्र आपकी तीसरी सलाह के लिए अलग से मेल करदी है ! आपने दूसरी सलाह ख़ुद ही आजमा ली !मतलब आपने ताऊ की बीमारी ठीक करण की पूरी कोशीश की !


फ़िर आए श्रीमान फ़न्डेबाज ! इनहोने पता नही सलाह दी है या दुश्मनी निकालने की सोची है ! आप सबसे अनुरोध है की इनकी भी टिपणी पढ़ने लायक है , आप अवश्य पढ़े ! ये तो इतने बड़े डाक्टर लगते हैं की भाई समस्या को जड़ से ही ख़त्म करने का उपाय बता दिया ! हे महामुनि आपको तो ताऊ प्रणाम करता है ! शायद इसीलिए आप मार्केटिंग के बादशाह कहलाते हैं ?


और फ़िर टिपणी आई हमारे गुरु समीरजी की ! जो लास वेगास से बहुत सारे डालर खींच कर लाये हैं ! उनहोने एक दांव वहा चेले के नाम से भी लगाया था और उसी एक दांव में लाखो का वारा न्यारा हो गया ! हमारा प्रसाद तो गुरुदेव हमको दे ही देंगे ! इसमे उनकी तरफ़ से कोई मनाही थोड़े ही है ? खुशी की बात है की आजकल जैसे कई जगह वर्षा का अकाल है उसी तरह टिपणियो का अकाल अबख़त्म ! और हमारे जैसे छुटभैये को जब तक आशीर्वाद नही मिले वो किसी काम कानही सो आज से हम भी काम के हो जायेंगे ! 5 दिनों से सब कुछ सूना सूना सा पडा है !मेरे को गुरुदेव ने पकड़ कर ब्लॉगर बनाया तब से यह शायद पहला मौका है की इतने समय समीरजी गायब हुए हों ! एक बार बीमारी के समय जरुर ऐसा हुवा था ! गुरुदेव आपकी यह बात जमी नही ! आपको जब भी जाना हो इसका उपाय करके जाया करना ! वाकई मुश्किल है आपके बिना जीना इस दुनिया में !


इस बीच हमने अपने आफिस के सहयोगी को पटा लिया था जो तरुण भाई के कहे अनुसार सब सेटिंग देख ले ! और कहाँ हड्डी पसली टूटी है ये तरुण भाई को बतादे !

यह आज ४ बजे शाम का समय था ! इतने में हमने ब्लॉग खोला तो माननीया सीमा गुप्ताजी की सलाह आ गई ! उस सलाह की भाषा ऎसी थी की मैंने अपने सहयोगी से कहा की भाई तू तो यो काम करदे ! और साहब सीमाजी की सलाह बिल्कुल सटीक बैठ गई ! महीनो की समस्या मिनटों में दूर हो गई ! अब सीमा जी सलाह रोमन में थी ! और आप ताऊ को जानते ही हो की ताऊ को अंग्रेजी आवै कोनी ! सो आपको भी जरुरत लग सकती है ! आप सीमाजी की सलाह को टिपणी में पढ़ ले !

मेरा सहयोगी कुछ फायर फॉक्स या ऐसा ही कुछ बोल रहा था ! मैंने उससे पूछा भी था की -अरे बावली बूच ये आग और लोमडी ? तू क्या बकन लाग रया सै ? वो बोल्या ताऊ काम करवाना सै तो चुप चाप बैठ्या रह ! सो भाई म्हारा तो काम होगया ! इब जैसे भी हो !

और अभी अभी भाई विक्रांत बेशरमा जी भी आ गए हैं ! धन्यवाद आपका ! आप भी कोशीश कर लीजिये ! एक्स्प्लोरर को बचाने की !


यह सब लिखने का मतलब ये है की इस दुनिया में जो अपनापन मिला है उसको मैंने इतने सालो क्यों गंवाया ? मैं आप सभी का एहसान मंद हूँ ! आप सबकी टिपनिया (सलाह ) कितने अपनत्व से भरी हैं ? मैं दिल से आप सबका आभारी हूँ !


और सीमाजी आपके ब्लॉग पर मैंने कहा था की आप चंद लफ्जों में बात कह जाती हैं और हमको पन्ने रंगने पड़ जाते हैं ! देख लीजिये उदाहरण ! मैंने ये सिर्फ़ आप लोगो को धन्यवाद देने के लिए ४ लाइन लिखने में कितने पन्ने रंग दिए की आप लोगो को धन्यवाद लेना भी सजा लग रही होगी ?


और अंत में गुरुदेव डा. अमर कुमार जी का नाम स्मरण करके मैंने यह सब लिख मारा है ! अगर आपको कुछ अच्छा लगे तो मेरे गुरु को बताना ! और अगर अच्छा ना लगे तो ताई को बताना ! वो दो लट्ठ मार लेगी ! लट्ठ खाए बिना नींद भी नही आती ! आदत सी हो गई है ! :)


आप सभी का ह्रदय से आभारी हूँ ! प्रणाम !


कृपया कोई जानकार मेरी मदद करिए !

माननीय ब्लॉगर बंधुओं ,

मेरे ब्लॉग का "font & colours " शायद deactivated हो गया है !

मैं पिछले एक महीने से इसमे कोई बदलाव नही कर पा रहा हूँ !

मैं आपसे निवेदन करता हूँ की कोई जानकार मेरी मदद करिए !

धन्यवाद !