चाय वाला छोकरा

चाय वाला बारीक छोकरा,
चाय की केतली और कप लेकर ।
हमेशा लहराता हूवा
सेठ की फैक्ट्री मे दाखील होता।

सबसे हँसी मजाक करता,
और चाय पिला जाता।
फैक्ट्री मालीक ने भी उसको ,
काफी मुंह लगा रखा था।

एक दिन ऐसा हुवा की,
चाय पिला कर बारीक ।
कूलर के सामने बैठकर,
ठंडी हवा खा रहा था।

वो इस फैक्ट्री मे,
चाय जल्दी से जल्दी ले आता था।
ताकि कप खाली होने तक ,
कूलर की हवा खा सके।

थोड़ी देर मे फैक्ट्री मालिक आया ,
गरमी से मूड थोडा उखडा था।
शायद बाहर या घर से ,
लड़ भिड़ कर आया था।

बारीक ने सेठ के ,
आते ही ।
चहक कर पूछा,
सेठ , तमी आवी गया।

सेठ ने आव देखा न ताव ,
एक झन्नाटेदार झापड रसीद कीया।
और बोला हाँ हूँ (मै) आवी गयो ,
सूं (क्या) करवानो छे .

यही हश्र होता है ,
अमीर और गरीब की बेतक्लुफी का ।
सही कहा है , सेठ के अगाडी
और घोड़े के पिछाडी नहीं होना.



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