पाँच छुट्टी इक्कठी

हम जिस गाम के स्कूल मै पढ्या करते थे, वो स्कूल
बिल्कूल ही शमशान घाट के पास था । सो जब भी कोई
गाम का बुढा ठेरा मर जाया करता तो मास्टर जी
म्हारी छूट्टी कर दिया करते और भई म्हारी हो लेती मौज !

एक दिन इसी तरियों एक बुढा मर लिया और म्हारी हो ली छूट्टी !
हम सारे बालक वापस घर जा रहे थे । रास्ते मे एक चबुतरे
पर ५ कती फ़ूस बुढ्ढे बैठे थे । उनको देख कै म्हारा साथी
रामजीलाल लंगडा बोल्या - भाइ ५ छूट्टी तो यो इकट्ठी
इत ही बैठी सैं .......!

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