पडौसन भाभी जी और नागरिक अधिकार

जब से पडौस वाले नेता जी की लालबत्ती का सुख छिन गया था तब से हमारी घर वाली बडे सकून में थी और हो भी क्यों ना? अपनी जब दोनों ही आंखे फ़ूटी हुई हों तब पडौसी की एक आंख भी फ़ूट जाये उस आनंद को कोई भोगने वाला ही समझ सकता है. और बात ही ऐसी थी कि भाभीजी यानि पडौस वाले नेताजी की श्रीमती ने लाल बत्ती के रौब में हमारी घरवाली को खूब नीचा दिखाया था. और दोनों के बीच कुछ ऐसी अंजानी सी दुश्मनी  होगई थी मानों दोनों सांप और नेवले का अवतार हों. कहीं भी, कोई भी मौका हो, दोनों चूकने का नाम नहीं लेती थी.

शातिर तो हम भी कोई कम नहीं हैं और हमारी घरवाली भी कोई ज्यादा शरीफ़ नहीं है पर हम दोनों को ही इस बात का कभी अंदाजा भी नही था कि भाभीजी इस तरह की हरकत भी पटक सकती हैं पर भगवान को हाजिर नाजिर जानकर आपसे निवेदन कर रहे हैं और आप पाठक ही इस बात का फ़ैसला करें कि भाभीजी ने ये गलत किया या सही किया? अब बदला लेने का ये कौनसा तरीका है?

बीती रात हम और घरवाली दोनों गहरी नींद में सो चुके थे, नींद इतनी गहरी आई थी कि लगा सपने में कहीं कोई गोला बारी हो रही है.....प्रकृति ने खास इंतजाम कर रखा है कि नींद में खलल नही पडे, इस लिये हमारे सपने में वैसा ही सीन तैयार कर देती है सो हमें लगा कि हम काश्मीर घूमने गये हुये हैं और वहां आतंक वादियों के साथ चल रही मुठभेड में चल रही गोलाबारी के बीच फ़ंसे हुये हैं सो हम दुम दबाये गोलाबारी की आवाज सर घुटनों में दबाये सुन रहे थे.....पर घरवाली को प्रकृति ने शायद यह सुविधा नही दे रखी होगी सो उसने हमें जोरदार धक्का मारते हुये चिल्लाकर झिंझोड डाला और बोली - तुम तो घोडे बेचकर सो रहे हो और बाहर गोलीबारी की आवाजे आ रही हैं, जावो बाहर जाकर देखो क्या मामला है?

हमने आंखे मलते हुये घडी की तरफ़ देखा तो रात के 1 बजने में 5  मिनट बाकी थे.....चलते हुये कूलर ने बाहर से सारे बारूद की गंध घर में भर दी थी, घबडा तो हम भी गये थे कि कोई अनहोनी तो अवश्य हुई है.
डर भी लगा बाहर निकलने में, पर क्या करते? बाहर से बडा डर घरवाली के रूप में घर के अंदर बैठा था सो रामराम करते हुये दरवाजे खोलकर बाहर पोर्च पर निकल कर देखा तो पडौस वाले नेता जी अपने बीबी बच्चों और नौकरों के साथ घर के बाहर पटाखे छुडा रहे थे. आमने सामने वाले पडौसी भी बाहर निकल आये थे...

हमने रस्सी बम को माचिस लगाती हुई भाभीजी से पूछा - भाभीजी आज क्या बात है? ना दिवाली और ना ही क्रिकेट का मैच.....पटाखे क्यों बज रहे हैं? क्या भाई साहब कार्पोरेशन के अध्यक्ष की बजाये केबिनेट मंत्री बन गये या कोई किसी का जन्म दिन है?

भाभीजी ने बडी अदा से रस्सी बम को तीली लगाते हुये कहा - सही पकडे हैं आज नेताजी का जन्म दिन है. रात के 12  बजते ही केक काटने की रस्म किये फ़िर अब आकर यह खुश खबरी मोहल्ले में भी देनी थी सो हम बम चला चला कर दिये हैं...कैसा लगा आपको हमारा आईडिया?

आसपास के घरों के छोटे बच्चे जागकर चिल्लपों मचा रहे थे....बुढे बुढियायें भी नींद में खलल पडने से परेशान थे. हमने होठों में बुदबुदाते हुये ही कहा - भाभीजी आप जैसे छिछोरे लोग जिनके पडौस में रहते हों वो जरूर पिछले जन्म में कोई पाप करके आये होंगे......भाभीजी ने हमारे मुंह की तरफ़ देखते हुये पूछा - भाई साहब आपके होंठ फ़िर से कुछ फ़डफ़डा से रहे हैं जरा जोर से बोलिये ना.....

हम क्या बोलते? भुनभुनाते हुये अंदर आगये...और सोचने लगे कि क्या यही हमारे देश का कल्चर है कि दिन रात जब मर्जी आये तब लोगों को परेशान करो...सारे नागरिक अधिकारों का ठेका सत्ता संपन्न लोगों के ही हाथ में है?  जिनके हाथ में पावर हो उनको कोई कुछ नही कहेगा.
यदि भाभीजी की जगह हमारी घरवाली ऐसा कोई कांड हमारे जन्म दिन पर करदे तो क्या होगा? और अब यही हमारी गहन चिंता का विषय है क्योंकि हमारा जन्म दिन भी आने ही वाला है और हमारी घरवाली को हम बहुत अच्छी तरह से जानते हैं वो कोई कांड करेगी जरूर.......फ़िर क्या होगा?

है कोई इलाज या सलाह आपके पास?

Comments

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज गुरूवार (01-06-2017) को
    "देखो मेरा पागलपन" (चर्चा अंक-2637)
    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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