ताऊ महाराज धृतराष्ट्र द्वारा गधा सम्मेलन 2017 के आयोजन की सूचना

हवाओं में आजकल गधों की कुछ विशेष सी खुशबू छाई है. सोशल मीडिया हो या ताऊ टीवी के चैनल बस गधा...गधा और गधा.....। वैसे भी बसंत आगया है और होली भी सामने ही है सो गधा सम्मेलन 2017 के आयोजन की सूचना बतौर यह पोस्ट लिखी गई है.
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जैसे दुनियां में शुरू से ही,  एक ही जाति में दो वर्ग होने का फ़ैशन रहा है वैसे ही ब्लाग जगत तो क्या बल्कि कोई भी जीव समाज इससे कभी   अछूता नही रहा.  देखा जाये तो गधे और घोडे भी  शायद एक ही प्रजाति के जीव हैं पर घोडों को अपने ऊपर विशेष गर्व है. घोडा कहलाना फ़ख्र की बात है और गधा कहलाना अपमान की, जबकि  दोनों ही बिना सींग के हैं और दोनों ही लीद करते हैं. दोनों मे कुछ भी फ़र्क नही है. एक राज की बात आपको और बता देते हैं कि ये तथाकथित घोडे भी कभी गधे ही थे पर चालाकी,  मौका परस्ती और चापलूसी से अपने आपको स्वयंभू  घोडा घोषित कर लिया. इस वजह से  जो भी मान सम्मान, पुरस्कार, सुविधाएं होती हैं वो सब घोडों के हक में आ गयी और गधे बेचारे निरीह बन कर रह गये.  

एक दिन कुछ गणमान्य गधों का डेलीगेशन ताऊ महाराज धृतराष्ट्र के पास आया और उन्होंने अपना दुखडा रोया. अब ताऊ महाराज धृतराष्ट्र  से किसी का दुख देखा नही जाता सो उसी दिन से ताऊ महाराज धृतराष्ट्र  ने गधा सम्मेलन करवाना शुरू कर दिया. इस मौके पर सभी गणमान्य गधों को उचित मूल्य पर  विशेष पुरस्कार और सम्मान दिया जाने लगा. लेकिन घोडों को यह भी बर्दाश्त नही हुआ, उन्होंने उल्टे सवाल उठा  दिये कि गधों को सम्मेलन करवाने का हक ही नही है. यह सिर्फ़ और सिर्फ़ घोडों का एकाधिकार है जिस तरह समुद्र मंथन से निकले  अमृत पर देवताओं का एकाधिकार था.   

इस तरह महाराज धृतराष्ट्र द्वारा आहूत गधा सम्मेलन अस्तित्व में आया. पिछले वर्ष यह गधा सम्मेलन इस लिये नही हो पाया कि पिछला साल गधों और घोडों के बीच शीत युद्ध का रहा. असली युद्ध तो इराक, मिश्र, सीरिया और अफ़गानिस्तान में चल रहा था सो दोनों ही पक्ष उलझे हुये थे. इस साल एक दिन गधों और घोडों के मध्य जमकर बहस हो गई. दोनों ही सर्वश्रेष्ठता का दावा कर रहे थे. 

घोडों के लीडर ने कहा - अबे गधों अपनी औकात में रहो, हम तो तुमको हमारे सम्मेलन में आमंत्रित ही नही करते...तुम गधे हो और हम घोडे हैं. तुम कभी घोडे नही बन सकते....और ना ही हमारे सम्मेलन में शामिल हो सकते हो और ना ही कोई सम्मान पा सकते हो.

इस बार गधों का लीडर था रामप्यारे जो कि महाराज धृतराष्ट्र की संगत में रहकर आरपार हो चुका था. रामप्यारे ने घोडों के लीडर से कहा - घोडों के लीडर जी.. ये सही है कि हम गधे कभी घोडे नही बन सकते पर क्या तुममें से कोई एक भी गधा बन कर दिखा सकता है?

अब तो घोडों के अस्तबल में खामोशी पसर गई...सब हैरान परेशान...ऐसे घोडे क्या काम के? जो कभी वापस गधे  ही नही बन सकें? घोडों ने गधा बनने के लिये तुरंत अपनी इमरजेंसी मीटिंग आहुत कर ली है जो शीघ्र ही होने वाली है.

इधर गधों के लीडर रामप्यारे की जय जय कार होने लगी....और इस जीत के शुभ अवसर पर गधों ने भी एक प्रीतिभोज का आयोजन कर डाला जिसमे खूब गुलाब जामुन, रसमलाई और समोसे  खाये गये. 



इसके बाद विचार विमर्श शुरू हुआ गधा सम्मेलन की तारीख,  समय और स्थान तय करने का.

आप दिल थाम के बैठिये....गधा सम्मेलन की तारीख, समय और स्थान शीघ्र ही घोषित किये जाने वाले हैं. जिन्हें भी गधा सम्मेलन में हिस्सा लेना हो वो तुरंत संपर्क करें. 

विशेष नोट : - सिर्फ़ आमंत्रित अथितियों के ही आने जाने, ठहरने व खाने पीने की व्यव्स्था मुफ़्त रहेगी बाकी के सभी लोग अपनी अपनी व्यवस्था से आयें और सम्मेलन स्थल का पास अग्रिम प्राप्त कर लें. गधा सम्मेलन में कोई जातिगत भेद भाव नही किया जाता यानि अपने आपको घोडा समझने वाला भी समिल्लित हो सकता है.

विशेष सम्मान प्राप्त करने के लिये  अपना आफ़र आप सील बंद लिफ़ाफ़े में रखकर  एडवांस में भी भिजवा सकते हैं पर आखिरी निर्णय  बोलियां लगवा कर  सम्मेलन स्थल पर ही लिया जायेगा. सम्मान और पुरस्कार हर श्रेणी और वर्ग में दिया जायेगा.

पुराने गधा सम्मेलनों की झलकियां निम्न पोस्टों में पढ सकते हैं.

Comments

  1. ताऊ कुछ बिल भेजे है पेमेंट करवा देना गधा सम्मलेन के लिए हवा बनवाने के लिए अमिताभ और गधो का विज्ञापन बनवाया , अखिलेश के भाषण में गधा डलवा का चर्चा में लाया , पैसा दे कर सोशल मिडिया पर लोगो से पोस्ट लिखवाये ताकि माहौल बना रहे और लिफाफे और ऑफर ज्यादा आये और हां वो जो बड़ा वाला पेमेंट है वो अमिताभ अखिलेश का नहीं गधो का है , उनका भाव ज्यादा है और मेरा कमीशन मेरे अकाउंट में ।

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  2. मजा आ गया ताऊ आपको आज फिर से ब्लॉग पर देख कर ... बहुत बहुत शुभकामनाएं नयी पारी के लिए ...

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  3. एडवांस भेज दिया है प्राप्ति की रसीद काटकर
    अवार्ड बुक कीजिये

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  4. एडवांस भेज दिया है प्राप्ति की रसीद के साथ अवार्ड बुकिंग की कन्फर्मेशन भेजिए

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  5. वाह! ज़माने बाद। स्वागत और आनंद बरसे।

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  6. taau ke bina maza saa nahi aa raha tha ... swaagat hai

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  7. ताऊ जी ,आपको फिर से देख कर मज़ा आ गया .
    धन्यवाद
    मैं तो इस सम्मलेन में आऊंगा !

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  8. बहुत सार्थक व्यंग्य है ताऊ जी, सच में आजकल गली से लेकर संसद तक हर जगह गधा चिंतन चल रहा है ! आपने सही कहा घोड़े और गधे में कोई फर्क नहीं है सिर्फ बारीक़ सा फर्क ये है कि गधा गधा है घोडा थोड़ा बड़ा गधा है बस ! आपको ब्लॉग पर फिर से सक्रीय देखकर ख़ुशी हुई :) !

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